रविवार, अप्रैल 29, 2007

कल (की) कथा वाया बाईपास


चिट्ठाचर्चा हम नित प्रतिदिन एक कठिन काम बनता जा रहा है कारण साफ है पोस्‍टों की संख्‍या बढ़ रही है, इतनी पोस्‍टें समेटना तो छोडिए देख भर पाना कठिन होता जा रहा है। हम तो ऐसी कोशिश भी नहीं करने वाले आज।
आसान सा काम करेंगे करेंगे, आज की चिट्ठाचर्चा में पोस्‍टों पर चर्चा नहीं करेंगे बाईपास से निकल लेंगे केवल टिप्‍पणियों पर चर्चा करेंगे। वैसे जानने वाले जानते हैं कि पोस्‍टों वाले काम से कहीं मुश्किल काम है। भला लगे तो आशीर्वचनों के लिए टिप्‍पणियों का कटोरा नीचे रखा है...टपका दें। वरना कोई बात नहीं....अपने काकेश भाई अपनी पसंद के चिट्ठों की चर्चा शुरू किए हैं और अच्‍छी किए हैं। नजर डालें...पता नहीं क्‍यों नारद पर तो अभी हैं नहीं, शायद सोमवार का चक्‍कर होगा, पर हमें तो प्रयास अच्‍छा लगा। आप बांचें और बताएं। हम तो बता आए हैं।

तो कुल मिलाकर आज की पोस्‍ट हैं यहॉं पर उनमें से कुछ पर की गई टिप्‍पणियॉं यहॉं हैं बाकी चिट्ठों पर तो हैं ही।

कविताओं से कल की चर्चा में किनारा सा था इसलिए उन पर हुई टिप्‍पणियों से शुरू करते हैं। रंजू की कविता पर डिवाइन इंडिया ने बदलाव के लिए साधुवाद दिया है। अभिषेक के चिट्ठे पर आतिफ के संगीत को मनीष ने सूदिंग म्‍यूजिक करार दिया है। तुषार जोषी की कविता पर सबने उन्‍हें जन्‍मदिन की बधाई दी है। देवेश की कविता के शीर्षक पर अमरीका में दादा कोंडके की छाप हो देखी गई जो रविरतलामी और जितेंद्र ने बाकायदा दर्ज की। कविता एड्स से बचाव पर नहीं है। मेरी भी एक मुमताज थी पर टिप्‍पणियों में मन्‍ना डे का जन्‍मदिन मनाया गया। रमा के घर विषयक उच्‍छवास पर काव्‍यात्‍मक उच्‍छवास ही व्‍यक्‍त हुए, अच्‍छा हुआ न तो वहॉं नोट पैड पहुँचीं न अभय तिवारी...महाभारत टल गया। कविताकोश वाले मुफ्त में लोगो चाहते थे वहॉं ईपंडित उन्‍हें नाम ही बदलने की सलाह दे रहे हैं, गए थे रोजा छुड़ाने नमाज गले पड़ गई।

बाकी सब सुझाव बाद में पहले इसकी वर्तनी सही कीजिए। कोश नहीं कोष होना
चाहिए। अतः नाम बदलकर कविता कोष करें।
पता नहीं कोष की गलत वर्तनी क्यों प्रचलित हो गई ?


पर वहाँ हम उनसे भिड़ गए हैं- वे पता नहीं स्‍कूल में कौन सा विषय पढ़ाते हैं पर हम हिंदी के मास्‍टर हैं :) ।
दीपक बापू की कविता पर दिव्‍याभ की टिप्‍पणी खूब रही।

वो कहते हैं न कि शराब भी हम पियें और देख कर भी हम ही चलें…यही बात यहाँ भी लागू होती नजर आती है…। बधाई!!सुंदर रचना…।

बची, अंतर्मन की कविता उसमें सूरजमुखी हैं पर टिप्‍पणी नहीं (अब तक)

गैर कविताई पोस्‍टों पर में नई टिप्‍पणियों पर विचार करें तो सृजन बनाम मोहल्‍ला (अच्‍छा भला केवल मोहल्‍ला विवाद था, सृजन आकर न जाने क्‍यों फंस गए..) पर श्रीश की टिप्‍पणियॉं और सृजन की प्रतिटिप्‍पणियॉं आईं हैं देखें..मिलेगा वही जो आप बिना देखे सोच रहे हैं कि मिलेगा। इस मामले से नारद पर सवाल श..श..श की आवाज में उठने लगे हैं यह मेरा ई पन्‍ना पर हुई टिप्‍पणियों से पता चलता है। इस विवाद के हाशिए पर अरुण ने नया पंगा लिया है लेकिन इसबार तो सृजन तक उनसे सहमत नहीं हैं-



@ अरुण,जैसा कि मैंने ऊपर कहा कि किसी के भी धार्मिक विश्वासों के बारे में
अशोभनीय या अप्रिय बातें कहने का आपको अधिकार नहीं है। जो काम मोहल्ला कर रहा है, आप भी उसी पर उतर आए! इन वीभत्स तस्वीरों को दिखाकर कुछ साबित नहीं किया जा सकता।आप अपने विश्वासों और आस्थाओं की पवित्रता और महानता का प्रचार कर सकते हैं तो वह कीजिए। दूसरों को भला-बुरा कहने से, खासकर धर्म के मामले में कुछ हासिल नहीं होता।


अब पंगे का क्‍या है नोटपैड तो शनि से भी पंगे ले रही हैं और लोग भयभीत से सलाह दे रहे हैं कि ऐसा न करें। प्रमोद ने अपने उपन्‍यास में पंगा लिया मान्‍या से-



चार कदम आगे मान्‍या मिल गई. सिर झुकाये गुमसुम बैठी थी. मैं हैरान हुआ.
कहे बिना रह नहीं पाया- क्‍या बात है, भई.. बहुत दिनों से तुम्‍हारी शेरो-शायरी, दोहा-चौपाई कुछ दिख नहीं रहा?

इस पर बेनाम ने कहा...


बहुत अच्‍छा है, छंद के तो कहने की क्‍या। लेकिन संभलो गुरु, कहीं मान्‍या
ने देख लिया तो दौड़ाकर मारेगी।

एक अन्‍य पुरबिया पोस्‍ट में बकौल अभय तिवारी प्रमोद लल्‍लन टाप माल लाए हैं।
बजारवाले राहुल पेठिया की पैठ लेकर आए और रंजू शहर गांव के बीच दोलन करने लगीं।



गांव की याद दिला दी आपके इस लेख ने ..पर नीचे वाला चित्र देखा तो वापस
अपने शहर में आ गये :)अब तो यही अपना हाट बाज़ार है ..:)

अनामदास की शब्‍दों की शवयात्रा की चर्चा को सब सार्थक मान रहे हैं।

और अंत में दो दिन की शादी वाली छुट्टी में सुना है कि समीर भाई फिर से अदनान सामी बनकर लौटें हैं,


इतने दिन की मेहनत सारी
अब तो मटिया मेट हो गई
शर्ट कसी है पेट के उपर
पैन्ट लगे लंगोट हो गई.

मोटों की बिछड़ी दुनिया में,
फिर से मेरी पूछ हो गई!!!!!
मेरी मेहनत की अब दुश्मन
दो ही दिन की छूट हो गई!!!



उन्‍हें टिप्‍पणियॉं मॉडरेट करने का अभी मौका नहीं मिला है।

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4 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया है। आपने टिप्पणियों के आधार पर चर्चा करके पुण्य का काम किया। टिप्पणियां आपको दुआयें देंगी। चर्चा का काम मुश्किल होता जा रहा है लेकिन जितने चिट्ठे हो सकें उतने पढ़कर चर्चा की जाये। चर्चा का काम आनंदित होकर किया जाये कंपित होकर नहीं। बहुत अच्छा लिखा ये कहना हम भूल न जायें कहीं इसलिये कह दिये।

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  2. उह तो हम कल की चर्चा की निरंतरता में कह दिए थे गुरूजी...वरना बिना नाश्‍ता किए 4.30 घंटे आनेद लेते हुए किए हैं। इसी बहाने खूब पढ़ने का मौका मिला और दो गो नारद के बाहर के चिट्ठे भी पढ़ने को मिले। टिप्‍पणी तो चूंकि चर्चाजगत की यशोधरा हो रही थीं इसलिए उनपर केंद्रित रहकर चर्चा किए हैं।

    कमी बेसी तो फिर भी रहेगी ही। :)

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  3. आपकी टिप्पणियों के कटोरे में हमारी ट्पक स्विकारें. :)

    बढ़िया है यह टिप्पणी-चर्चा का नया मॉडल, मजा आया, बधाई.

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  4. एक नया तरीके से चर्चा, लेकिन आपने सही कहा जिस तरह से पोस्टों की संख्या बढ़ रही है, ये मुश्किल होने वाला है

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