शुक्रवार, अप्रैल 13, 2007

चिट्ठा चर्चा- एक और महिला चिट्ठाकार

पिछले कुछ दिनों से गिरिराज जोशी के यहाँ नेट का कनेक्शन सही नहीं चल रहा और उसकी वजह से वे नियमित चर्चा नहीं कर पा रहे हैं। कई दिनों से तो उनकी कोई खोज खबर भी नहीं है। वैसे वे किसी काम में व्यस्त होते हैं तो चर्चा का जिम्मा मुझे सौंप देते हैं। कल मुझे भी याद नहीं रहा कि आज चर्चा का जिम्मा उनका है और उनकी अनुपस्थिती में मेरा। कल रात १० बजे ध्यान आया कि चर्चा लिखनी तो रह ही गई, अब क्या होगा?? ऐसे में मदद के लिये आई कोटा राजस्थान की डॉ गरिमा तिवारी! उन्होने कहा आप निश्चिंत हो घर जाईये आपका काम सुबह मिल जायेगा, और वाकई ऐसा हुआ भी जब सुबह आकर मेल चैक की तो गरिमाजी ने चर्चा कर मुझे मेल में भेज दी थी।
डॉ गरिमा ने अभी जमा तीन चार पोस्ट ही लिखी है पर नारद पर पंजीकरण ना होने से किसी के नजर में नहीं आई। गरिमा परिचर्चा में सबसे सक्रिय सदस्यों में से एक हैं और बहुत सुन्दर कवितायें लिखती है।
यहाँ से शुरु होती है डॉ गरिमा की लिखी चर्चा।

आज कल महिला अधिकार के चर्चा हर मोड पर मिल जाते हैं उसी कडी मे कुछ नया जोडते हूए उन्मुक्त जी संजीदगी के साथ बता रहे है
व्यक्ति' शब्द पर उठे विवाद पर सबसे पहला प्रकाशित निर्णय Chorlton Vs. Lings (१८६९) का है। इस केस में कानून में पुरूष शब्द का प्रयोग किया गया था। उस समय और इस समय भी, इंगलैंड में यह नियम था कि पुलिंग में, स्त्री लिंग भी शामिल है। इसके बावजूद यह प्रतिपादित किया कि स्त्रियां को वोट देने का अधिकार नहीं है। "
तो यही आशीष जी पत्रकारिता पर निराश हो रहे हैं, पर और लोगो की हताशा को नही बल्कि अपने नाम कि तरह हिम्मत से नयी दिशा मे बढने के लिये अग्रसर भी हैं|
लेकिन एक बात तो तय है कि अब पहले जैसी पत्रकारिता संभव नहीं है। अब तो जो है, इन्‍हीं के बीच में से रास्‍ता निकालना होगा। लेकिन हाथ पर हाथ रखकर बैठना भी सही नहीं है।

इस सबके बीच महाशक्ति जी कहा चुप बैठने वाले हैं, ये समाजवाद पर शक्ति प्रहार कर रहे हैं.. देखिये कैसे! और रवि रतलामी जी तकनीक क्षेत्र मे नयी रोशनी दिखा रहे हैं.. आप खुद ही देखिये और जानिये मै किस तरफ इशारा कर रही हूँ!

यहाँ तक गम्भीरता से पढते आये तो अब "मस्ती की बस्ती" मे भी गोता लगा लिया जाये... हाँ तो मस्ती के बस्ती मे गोता लगाते वक्त एक कथानक याद आ गया..." एक पंडित जी कहते थे, भईया हमरे ऑमलेट बनाना तो उमे प्याज मत डालना हम ब्राम्हण है ना" नही समझ मे आया ... तो देखिये... कैसे बनते है हम मह्त्वपूर्ण

मान लीजिये किसी आनुवांशिक या अन्य कारण से - जिसमें आपका कोई दोष नहीं है, आप साढ़े छह फ़ुट के हो गये तो आप हो गये महत्वपूर्ण।
कुछ लोग इसलिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं कि वे खाने में नमक नहीं लेते और पीने में शराब के अलावा कुछ नहीं लेते। कुछ इसलिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं कि दारू पी लेते हैं मगर चाय किसी हालत में नहीं पीते या वे अल्लमगल्लम सब कुछ खा लेते हैं मगर पालक नहीं खाते।

और भी महत्वपूर्ण होने के कायदे कानून है.. पढिये और महत्वपूर्ण बनिये ...

जनाब अब तक मस्ती के बस्ती मे ही घूम रहे हैं तो यथार्थ के दुनिया मे भी कदम रखिये... घबराईये नही जिन्दादिल अपूर्व कुलश्रेष्ठ आपका जिन्दादिली से स्वागत कर रहे हैं... आपको यथार्थ मे आसमान छूने के उपाय या यूँ कहिये कि रास्ता दिखा दिया चलना तो आपको है.. तो सैर कर ले आसमान का.. फिलहाल ब्लाग.. जब ये मंत्र जिन्दगी मे अपनायेंगे तो अपनी जिन्दगी मे भी|
इसी जमीनी हकिकत को एक नया दर्जा भी मिल रहा है... कल्पना ही कहिये.. खुदा नहीं आता यहाँ.. आ जाये तो पहले यहा के पंडितो और मौलवियो पर शामत आ जाये... तब हम ईंसान बन के रहने लगे.. तब को धर्म के नाम पर दंगा ना हो... शूऐबजी कह रहे हैं
शुक्र है आज हम भारतीयों के नौजवान बच्चे हर किसम की ज़ंजीरों से आज़ाद हैं - एक आज़ाद देश मे मज़े से सांस ले रहे हैं। और धर्मों की परवाह किए बगैर अपने देश की तरक्की मे सब एकसाथ जुटे हैं। माईक्रोसॉफ्ट, याहू, गूगल पंटागॉन और नासा दुनिया की हर तरक्की मे हमारे भारती बच्चे बराबर शामिल हैं। और आज हमारी नई पीढी के बच्चे शान से सीना तान कर कहते हैं: हम भारती हैं - कोई धर्म हमारे देश से बडा नहीं - और हम ना हिन्दू हैं ना मुस्लमान बल्कि अपने देश के ख़ुद ख़ुदा हैं।

अब इतने भी संजीदा ना हो जाईये.. मनीषा जी एक मजेदार तथ्य ले कर आयी हैं .. गाँधीजी जहाँ कागज के टुकडे़ भी सँभाल के रखते थे.. अब हम भारतीय आपातकालीन स्थिती के लिये भी बचत नही कर रहे हैं... है ना मजेदार तथ्य.. वक्त के साथ सब कैसे बदलता है,तो मसिजीवी अपने एकालाप मे ही व्यस्त लग रहे हैं, और बिहारी बाबू नेताओं की समीक्षा मे लगे हूये है... पर क्या नेता जी समझ पायेंगे...??

कमल शर्मा जी कर रहे हैं व्‍हर्लपूल इंडिया लिमिटेड कि समीक्षा... जानिये क्या होगा व्‍हर्लपूल का भविष्य। और चंद्र प्रकाश जी जो बताते है बात पते की आज खोल रहे हैं ढोल की पोल... देखिये..
ढोल की पोल अपनी जगह.. पर मुहब्बत का दिया इन सब बाधाओ से दूर जलता रहता है.. उसे बुझाना का दम किसमे...
वो कहते है ना.... प्यार मे ऐसी ताकत होती है कि पर्वत भी सर झुकाता है,कुछ ऐसा ही बताने कि कोशिश मे है रन्जू जी
तुझे सोचा है इतना महसूस किया है रूह से
कि बस अब तेरी जुदाई का भी हम पर कोई असर नही

और योगेश जी अपने बदलते हूए गाँव की पीडा या यूं कहिये अपने प्यार को सम्भाल रहे हैं
बीमारी तब से बढी जब पडे शहर के पांव.
कितना बूढा हो गया वो मेरे वाला गांव.


बदल गया है गाँव पर नही.. आज भी उसी पुराने ढकोसले पर चला रहे हैं हम, जो कहने को आधुनिकता का चोंगा भर बदला है, पर मन दिल दिमाग वही 40 साल पुराना... अगर ऐसा ना होता तो पंकज जी को उमर-प्रियंका के शादी पर हूये बवाल को लेकर यह लेख नही लिखना पडता
उमर-प्रयंका अपने घर लौटना तो चाहते हैं उनके साथ पूरे देश और न्यायालय का समर्थन भी है, लेकिन उनके घर और समाज के सम्मान की चिंता करने वाले लोगों के बयान और तेवरों को देखकर उमर-प्रयंका के चेहरे पर उभरे भावों से तो ये नहीं लगता कि वे जल्द से जल्द अपने घर जाने को तैयार हो जाएँगे। अब उनके लिए ये तय करना वाकई मुश्किल है कि कौन उनका है कौन पराया।


यहाँ तक की चर्चा की है गरिमा ने और आगे मैं कर रहा हूँ प्रतीक को हम चिट्ठा जगत कामदेव कहते हैं क्यों कि वे सबसे अच्छी अच्छी तस्वीरें लेकर आते हैं पर कल उनके साथ पंकज भाई को कामदेव बनने का भूत लग गया और दोनो ही मंदिरा बेदी के पीछे पड़ गए। और जहाँ प्रतीक अपने टाइमपास वाले चिट्ठे पर मंदिरा की Maxim में छपी तस्वीरों को बता रहे हैं तो पंकज बैंगाणी अपने स्तम्भ पर और सागर अपनी पसंदीदा अभिनेत्री की तस्वीरों को देखकर दोनों जगहों पर प्रलाप करते पाये गये.. हे मंदिरा तूने यह क्या किया..... लाहौल विला....

आज की सबसे दुखद: खबर यह है कि चिट्ठाजगत में हो रहे विवादों से दुखी हो कर रचना बजाज जी ने चिट्ठा लिखना बंद करने का फैसला किया है जो हम सबके लिये वाकई आघात जनक है। रचना कहती है
…..…..ज्यादातर इस तरह का लिखा जा रहा है कि एक चिट्ठा समझने के लिये कम से कम चार अन्य चिट्ठे पढने जरूरी हैं..हम आपके पास आते हैं तो परिचित नामों को ढूँढते ही रह जाते हैं….आप बिल्कुल हिन्दुस्तानी मीडिया की तरह हुए जा रहे हैं जिससे ऊब कर ही हम यहाँ आए थे…३० पेज के अखबार और चौबीसों घन्टे की खबर से परेशान होकर…मानो खबरों के बाहर जिन्दगी है ही नही….
सब नये लेखकों (या शायद पुराने लेखक लेकिन नये चिट्ठाकार!)से भी कुछ न कुछ सीखने को मिलेगा ही..लेकिन फिलहाल जितना सीखा उतना ही काफी है..माना कि कम ज्ञान खतरनाक होता है लेकिन अत्यधिक ज्ञान शायद उससे भी ज्यादा खतरनाक!!
हम आपका बोझ कम करना चाह्ते हैं, और अब से अपने ‘फेवरिट‘ की लिस्ट से ही नये पोस्ट देख लिया करेंगे.
अपनी सेहत का खयाल रखियेगा, आजकल ओवर टाइम काम जो कर रहे हैं

चिट्ठा चर्चा मंडल की तरफ से और अपनी तरफ से मैं रचनाजी से अनुरोध करना चाहता हूँ कि कृपया आप ऐसा ना करें। आप जो चिट्ठे ना पढ़ना चाहें ना पढ़ें पर कम से कम लिखना तो बंद ना करें। प्लीज रचना जी अपने निर्णय पर एक बार फिर से विचार करें।
पंगेबाज, पंगे लेते लेते और गलियॊं और होहल्ले के मुकदमें को जनता की अदालत में सौंपने के बाद एक बहादुर बच्चे अंकित की बहादुरी को सलाम कर रहे हैं, वाकई उस छोटे से बच्चे अंकित की बहादुरी को मैं नमन करता हूँ।

मोहिन्दर कुमार आज एक अच्छी गज़ल ले कर आये हैं और पूछ रहे हैं
आज तक किसने किसी गुमशुदा
अजनबी की शिनाखत की है
कुछ के हिस्से में है जमीदोजी
कुछ चिताओं पर चढ खाक में मिल जायेंगे
हश्र हर एक को मालूम तो है लेकिन
कब किसने ईमान पर चलने की जुर्रत की है


एक दिन पहले तक हम तुम गंगू हैं.. हिन्दू नाहीं.. कहने वाले अभयजी आज माफी मांग रहे हैं कि
हमारा एक ठो प्रस्ताव है.. जैसे बॉम्बे का नाम बदल कर मुम्बई किया गया है.. कलकत्ता का नाम बदल कर कोलकाता किया गया है..उसी तरज पर हम लोगो को चहिये कि हिन्दू का नाम बदल कर गंगू किया जाय.. टिप्पणी कर के सिगनेचर कैम्पेन में सहयोग कीजिये..


हिन्द युग्म पर कवि मित्रों की महफिल बढ़ती जा रही है और अब रंजना भाटियाजी भी उस महफिल से हमें उनकी अपनी कवितायें और गज़लें पढ़ायेंगी। और इस कड़ी में उन्होने अपनी पहली गज़ल लिखी है..... जिसे मैं यहाँ लिख नहीं पा रहा हूँ आप खुद ही वहाँ जा कर पढ़िये

साहब सलाम ... रमाशंकर जी आज महिला प्रशाषनिक अधिकारियों से पूछे जा रहे प्रश्नों से बड़े रोष में है। आज का दिन गज़लों के नाम रहा, एक और सुन्दर गज़ल प्रकाशित हुई है अन्तर्मन
पर हम खड़े तकते रहे इन आशियानों पर क़हर
ख्वाब सारे जल गए पर ना पड़ी उसकी नज़र
दूसरों के दर्द को भी देख आंखें न हों नम
ऐ ख़ुदा नाचीज़ को इस तू न दे ऐसा हुनर


अनाम रह कर बेहूदा टिप्प्णीयाँ करने पर प्रमोद जी के रोष और कमल जी के उनका समर्थन करने पर काकेशजी अपनी बैचेनी कुछ यूं व्यक्त कर रहे हैं
आज मैं बैचेन हूँ.. इसलिये नहीं की मेरी पिछली पोस्ट “निश:ब्द” की तरह पिट गयी.. इसलिये भी नहीं कि मुझे फिर से “नराई” लगने लगी … इसलिये भी नहीं कि मुझे किसी ‘कस्बे’ या ‘मौहल्ले’ में किसी ने हड़का दिया हो .. इसलिये भी नहीं कि मेरा किसी ‘पंगेबाज’ से पंगा हो गया हो .बल्कि इसलिये कि मुझे ‘नाम’ की चाह ना रखने वाले अनामों ,बेनामों का गालियां सुनना अच्छा नहीं लग रहा
.
काकेश अनाम रहने वालों को अच्छे अच्छे सुझाव भी दे रहे हैं मसलन
आप अनाम-बेनाम-गुमनाम नहीं हो सकते लेकिन आप चाहें तो अनामचंद , बेनामदास या गुमनाम कुमार रख सकते हो . आजकल बाजों का भी बहुत महत्व है ( बहुत दूर दूर की देख लेते हैं ) तो आप चालबाज , तिकड़मबाज , दंगेबाज रख सकते हैं . यदि कोई नया सा नाम रखना हो तो फिर फंटूस , कवि कानपुरी , निंदक , चिंतक जैसे नाम रख लें . वैसे एक राज की बात बताऊं आप अपना नाम कोई स्त्रीलिंग में रख सकें तो बहुत अच्छा

इसी विषय पर अनामदास भी कह रहे हैं कि
अनाम लोगों के संदेश को नाम वालों के मुक़ाबले ज़रा ज़्यादा ग़ौर से सुनना चाहिए क्योंकि उसमें संदेश प्रमुख होता है न कि उसे भेजने वाला. गुप्त मतदान के महत्व को लोकतंत्र में रहने के कारण आप अच्छी तरह समझते हैं. अनाम लोग अक्सर जनभावनाओं के प्रतिनिधि होते हैं, टीवी पर जो आदमी कहता है कि 'महँगाई बहुत बढ़ गई है' वह अनाम ही होता है. गुप्त टिप्पणी करने वाले को एक आम मतदाता समझने में क्या कष्ट है?

पोलियो की दवाई पर एक मुस्लिम समाज के कुछ लोगों द्वारा विरोध किये जाने पर पोलियो से अपाहिज हुए एक मुस्लिम की पर शैलेष भारतवासी एक मुसलमान की आत्मकथा को यूं व्यक्त कर रहे हैं
अब्बा!
काश!
मैं दो घूँट पीकर
नामर्द बन गया होता।

अल्लाह उन सबको बुद्धि दे जो पोलियो की दवाई से अपने बच्चों को दूर रख कर अपने बच्चों के साथ देश का भविष्य भी बर्बाद करने पर तुले हैं।
आज की तस्वीर हमेशा की भाँति डॉ सुनील दीपक जी के चिट्ठे छायाचित्रकार से।

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11 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! दो दो चिट्ठाकारों को एक साथ पढ़ना सुखद रहा. गरिमाजी ने खुब चर्चा की. बधाई.

    सागर भाई चर्चा तथा चर्चा में सहयोग वाला प्रयोग सफल है.

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  2. बहुत खूब! सबसे पहले तो गरिमाजी की तारीफ़ करते हैं इसके लिये कि उन्होंने इस चर्चा में सहयोग दिया। सागर भाई को इस बात के लिये धन्यवाद कि उन्होंने गरिमाजी को इस काम में शामिल किया। बहुत अच्छा लगा!

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  3. गरिमा आपका स्‍वागत है। सागर आपका आभार और एक अच्‍छी चर्चा के लिए बधाई

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  4. नाहर जी,
    कविता या कहानी लिखने से भी अधिक कठिन है चिट्ठा चर्चा लिखना, जिसे आप ने बखूबी निभाया है... एक स्थान पर ही इतनी जानकारी उपलब्ध हो जाती है... आप प्रशन्सा के पात्र है

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  5. बढ़िया चर्चा रही . दो दो महिलाओं को इतनी अच्छी चर्चा की लिये साधुवाद .

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  6. बेहतरीन चर्चा, बहुत खूब. स्वागत है. मेरी पोस्ट गायब?? कोई बात नहीं, हो जाता है. :)

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  7. संजय जी, अनूप जी, मसिजीवी जी, मोहिन्दर जी, काकेश जी और समीर लाल जी... आप सबको बहूत बहूत शूक्रिया।

    काकेश जी एक बात बताईये... आपको दो महिलायें कहा दिखी? :)

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  8. समीरलाल जी
    आपकी पोस्ट आज यानि १३.०४ को पोस्त हुई है और जो चर्चा हमने की है वह १२.०४ को प्रकाशित हुए चिट्ठों की है, बाकी ऐसी गलती हो सकती है भला, पिछली बार तो तबियत के चलते बहुत से चिट्ठे छूट गये थे।
    और हाँ काकेश जी गरिमा के प्रश्न का उत्तर देवें।

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  9. @ गरिमा,
    बहुत अच्छी शुरुवात रही..शुभकामनाएँ.

    @ सागर जी,

    आपके स्नेह के लिये धन्यवाद...परिस्थितिजन्य दुविधा के चलते वो पोस्ट लिखी थी..लिखना पढना बन्द नही कर रही...चर्चा अच्छी रही..

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  10. गरिमा जी बहुत अच्छे।
    आपकी चर्चा तो बहुत अच्छी रही। लगातार करती रहिए।

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  11. बहुत बढ़िया व बहुत विस्तार से की गई चर्चा ! सागर जी तो सदा से चिट्ठाकारों के साथ न्याय करते थे , खुशी हुई कि गरिमा जी ने भी बहुत प्रेम से सबके विषय में लिखा ।
    घुघूती बासूती

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