कल संजय बेंगाणी के हवाले से खबर मिली कि रविरतलामीजी को भी मीडिया मंथन पुरस्कार मिला है। सो उनको यानि की रविरतलामी जी को भी बधाई।
इनामों की इस कड़ी में एक और इनाम की घोषणा कल हुई। ब्लाग जगत के जुड़े इस पुरस्कार की विस्तार से जानकारी लीजिये।
प्रवीण पाण्डेयजी बंगलौर की हरियाली की किस्सा सुना रहे हैं:
बेंगळुरु को बागों का शहर कहा जाता है और वही बाग बढ़ती हुयी वाहनों की संख्या का उत्पात सम्हाले हुये हैं। पार्कों के बीचों बीच बैठकर आँख बन्द कर पूरी श्वास भरता हूँ तो लगता है कि वायुमण्डल की पूरी शीतलता शरीर में समा गयी है। यहाँ का मौसम अत्यधिक सुहावना है। वर्ष में ६ माह वर्षा होती है। अभी जाड़े में भी वसन्त का आनन्द आ रहा है। कुछ लिखने के लिये आँख बन्द करके सोचना प्रारम्भ करता हूँ तो रचनात्मक शान्ति आने के पहले ही नींद आ जाती है। यही कारण है कि यह शहर आकर्षक है।
प्रवीण जी की पोस्ट के अंश दोहराते हुये श्रीश पाठक ’प्रखर’ लिखते हैं: यह विश्लेषण रोचक है और सोचने के और कई तार देता है. मोहक सी हरी-भरी जानकारी...प्रवीण भाई आपको पढ़ना बेहद अच्छा लगता है..थोड़ा और लिखा करिये ना...!
ज्ञानजी फ़टाफ़ट फ़ोटो भी सटा दिये। अब सब देखिये आप उधर ही। बंगलौर के किस्से पढ़ते हुये मुझे बंगलौर में ही बसी पूजा की कविता याद आती है जिनका मन दिल्ली के लिये हुड़कता है:
बंगलौर में पढ़ने लगी है हलकी सी ठंढ
कोहरे को तलाशती हैं आँखें
मेरी दिल्ली, तुम बड़ी याद आती हो
पुरानी हो गई सड़कों पर भी
नहीं मिलता है कोई ठौर
नहीं टकराती है अचानक से
कोई भटकी हुयी कविता
किसी पहाड़ी पर से नहीं डूबता है सूरजपार्थसारथी एक जगह का नाम नहीं
इश्क पर लिखी एक किताब है
जिसका एक एक वाक्य जबानी याद है
जिन्होंने कभी भी उसे पढ़ा हो
अभिषेक ओझा काफ़ी दिन बाद गणितगीरी के लिये आये और कहानी सुनाये:
गणित ने लड़ाइयाँ जीती है. गणित की एक शाखा का नाम ‘ऑपरेशनस रिसर्च’ ही इसीलिये पड़ा क्योंकि उसका विकास द्वितीय विश्वयुद्ध के समय युद्ध रणनीति बनाते समय हुआ. वालस्ट्रीट गणितीय फोर्मूलों पर चलता है, किसी भी नयी दवाई को बाजार में लाना हो या मौसम की भविष्यवाणी करनी हो या फिर नए मौद्रिक नीति की घोषणा करनी हो... गणित के प्रयोगों की सूची कभी नहीं ख़त्म होने वाली.
अनिल पुसदकर भी काफ़ी दिन से नेपथ्य में थे। पता चला उनके दुश्मनों की कुछ तबियत भी नासाज थी। कल उनसे टेलीवार्ता हुई तो हालचाल पता चले। उन्होंने फ़िर से हलचल मचाते हुये लिखना शुरू कर ही दिया। देखिये तो सही:
छत्तीसगढ मे इन दिनो नगरीय निकाय के चुनावो की धूम है।चुनावो में हर प्रत्याशी चाहता है कि उसकी बात अख़बारों के जरिये जनता के सामने आ जाये। और अख़बारो का शायद काम भी यही है आम आदमी की आवाज़ को पूरी ताक़त से उठाना।पर छत्तीसगढ मे इन दिनो या कह लिजिये कुछ समय से एक नया ही ट्रेंड चल रहा है पैकेज के नाम पर।
पैकेज याने याने रेट तय किजिये फ़िर जो चाहे छपवा लिजिये।दो बार विज्ञापन तो साथ मे दो बार भी खबर भी।तीन बार विज्ञापन तो तीन बार खबर और कोम्बो पैक यानी की सिर्फ़ आपकी आवाज़ उठाने के साथ-साथ विरोधी की आवाज़ नही सुनने या जनता को नही सुनाने का ठेका।सबके अलग अलग रेट्।लोकसभा और विधानसभा चुनावो के बाद पैकेज का जादू जब नगर निगम और नगर पालिका चुनाव मे भी सर पर चढ कर बोलने लगा तो मुझे लगा कि ऐसे मे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करने का अधिकार अख़बारों को नही रहा।
महिलाओं में गाली, शराब और सिगरेट....!!! में अदा जी ने विस्तार से लिखा है। गाली क्यॊम् देते हैं, कौन वर्ग की महिलायें क्या गाली देती हैं, शराब सिगरेट और बीड़ी के किस्से भी हैं लोगों के। इस लेख के कुछ अंश यहां
महिलाएं भी गालियाँ देतीं हैं...लेकिन ज्यादातर....या तो वो बहुत हाई क्लास औरतें होतीं हैं जो हाई क्लास गलियाँ देतीं हैं....अंग्रेजी में......या फिर नीचे तबके कि महिलाओं को सुना है चीख-पुकार मचाते....मध्यमवर्ग कि महिलाएं यहाँ भी मार खा जातीं हैं....न तो वो उगल पातीं हैं न हीं निगल पातीं हैं फलस्वरुप...idiot , गधे से काम चला लेतीं हैं....हाँ idiot , गधे का प्रयोग ही हम भी करते हैं....और बाकि जो भी 'अभीष्ट' गालियाँ हैं....उनमें कोई रूचि नहीं है...
फिर भी, किसी महिला का सिगरेट पीना, शराब पीना या गाली देना बहुत बुरी आदत मानी जायेगी लेकिन इस कारण से उसे चरित्रहीन नहीं कहा सकता .....इन आदतों और चरित्र में कोई सम्बन्ध नहीं है....हाँ, इन आदतों से उसके मनोबल/आत्मबल को आँका जा सकता है....लेकिन सम्मान को नहीं.....
कल डा.अनुराग आर्य के ब्लाग पर मैंने पढ़ा था--जिंदगी में हमारी सबसे बड़ी ग्लानि हमारे द्वारा किये ग़लत काम नही अपितु वे सही काम होते है जो हमने नही किये! इतने दिनों के नेट सक्रियता के समय में मुझे एक अफ़सोस होता है वह यह कि हम निरंतर जैसी पत्रिका के कई अंक निकालने के बावजूद उसको नियमित न रख सके। आज उसके पुराने अंक फ़िर से देखे तो बीते दिनों की याद आ गयी। अद्भुत सामूहिक् लगन से हम लोगों ने कुछ दिन यह पत्रिका निकाली। समय की कमी के कारण अंग्रेजी लेखों के पैराग्राफ़ बांट –बांट कर किये। पहले तीन –पैरा तुम करो उसके बाद के तीन तुम और उसके बाद के हम। इस तरह काम न हमने पहले किया कभी न बाद में। कुछ पुराने अंक देखिये। इसमें अतानु डे का इंटरव्यू भी है जिसमें वे कहते हैं ब्लॉग से देश नहीं बदलेगाः अतानु डेऔर भी बहुत कुछ है जो आप यहां पायेंगे और जैसा शायद और कहीं आपको न दिखा हो। कच्चा चिट्ठा में मैंने उस समय के कुछ ब्लागरों के बारे में लिखा था। समीरलाल का कच्चा चिट्ठा भी यहां मौजूद है। समीरलाल अगर इसे पढ़ें तो शायद उनकी यह चिर-शिकायत कुछ कम हो सके कि हम उनके बारे में लिखते नहीं। और भी बहुत कुछ है यहां पर! आने वाले समय में अगर निरंतर दुबारा से शुरू कर सकने में सहयोग दे सका तो इसे अपनी उपलब्धि मानूंगा। |
फ़िलहाल इतना ही। शेष फ़िर। चलते-चलते रमानाथ अवस्थी जी की पंक्तियां दोहराता हूं:
आज इस वक्त आप हैं,हम हैं
कल कहां होंगे कह नहीं सकते।
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।
वक्त मुश्किल है कुछ सरल बनिये
प्यास पथरा गई तरल बनिये।
जिसको पीने से कृष्ण मिलता हो,
आप मीरा का वह गरल बनिये।
जिसको जो होना है वही होगा
जो भी होगा वही सही होगा।
किसलिये होते हो उदास यहाँ
जो नहीं होना है नहीं होगा।
बढिया चर्चा ।
जवाब देंहटाएंबहुत छोटी चर्चा .. रविरतलामी जी को बधाई !!
जवाब देंहटाएंरवि रतलामी जी को मीडिया मंथन पुरस्कार की बहुत बहुत बधाई...जानकारी देने के लिए आपका आभार...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
सुकुल जी-आपने अनिल भाई को टेलीवार्ता से लिखने के लिए प्रेरित किया,बहुत दिनों के बाद अनिल भाई के कडवे वचन पढ़ने मिले धन्यवाद । बहुत ही बढिया चर्चा-आभार
जवाब देंहटाएंशुक्ष्म मगर सुन्दर चर्चा !
जवाब देंहटाएंचर्चा का यह स्वरूप भी अच्छा लगा!
जवाब देंहटाएंरवि रतलामी जी को बधाई !!
....और हां, रवि जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंहमारे प्रदेश की राजधानी को चर्चा में देखकर अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंचर्चा से अदा जी की पोस्ट का लिंक उठाया है अब वही जा रहे है पढने के लिए.. रवि जी तो है ही बधाई के पात्र
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा. "निरन्तर" की निरन्तरता पर आंच नहीं आनी चाहिये थी. इसे दोबारा शुरु नहीं किया जा सकता? पिछले अंक पढे, अच्छे लगे.
जवाब देंहटाएंbahut hi achchhi charcha.
जवाब देंहटाएंरविरतलामी को मिले पुरस्कार पर आपको (बताने के लिये) धन्यवाद और उन्हे बधाई।
जवाब देंहटाएंरविरतलामी जी डिज़र्व करते हैं... सो उनको हमरी ओर से भी मुबारकबाद
जवाब देंहटाएंओझा जी अपने फील्ड में माहिर हैं...
अदा जी की आवाज़ बहुत मीठी है और अलग अलग ब्लॉग पर उनके कमेन्ट बहुत रोचक होते हैं... वो जरुर पढता हूँ.
रही पूजा की बात...
तो परसों की बात है मैंने उनकी ढेर सारी पुरानी पोस्ट पढ़ी... एक जबरदस्त हूक उठी दिल में... पटना के लिए.. लेकिन फिर
"आज फी हमने दिल को समझाया.."
@कुश
जवाब देंहटाएंचर्चा से अदा जी की पोस्ट का लिंक उठाया है अब वही जा रहे है पढने के लिए.. रवि जी तो है ही बधाई के पात्र
@सागर
अदा जी की आवाज़ बहुत मीठी है और अलग अलग ब्लॉग पर उनके कमेन्ट बहुत रोचक होते हैं... वो जरुर पढता हूँ.
अरे बाप रे !!
इ का हो रहा है भाई...इ का हो रहा है .....
हम अभिभूत हूँ.....अगर आप लोग एतना सम्मान देवेंगे तो..... तो अभिये भूत हो जावेंगे भाई...:):) ....हाँ नहीं तो...!!
कुश जी, सागर जी, और चिटठा चर्चा जी.....मन से कह रहे हैं...और इ बार पक्का... झूठ नहीं कह रहे हैं...
थैंक्यू..!!!
बडिया चर्चा धन्यवाद्
जवाब देंहटाएं`वक्त मुश्किल है कुछ सरल बनिये
जवाब देंहटाएंप्यास पथरा गई तरल बनिये।'
हम पानी-पानी हुए जा रहे हैं।
रवि जी को बधाई॥
रवि रतलामी के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंआप सभी का धन्यवाद. वैसे, पुरस्कार मुझे नहीं, मेरे एम्बीशियस, पेट प्रोजेक्ट - छत्तीसगढ़ी प्रोग्राम सूट - केडीई 4.2 को मिला है. और पुरस्कार का नाम मीडिया मंथन नहीं, बल्कि आई टी सेक्टर का मंथन पुरस्कार है. अधिक जानकारी यहाँ देखें -
जवाब देंहटाएंhttp://www.manthanaward.org/section_full_story.asp?id=803
रवि भैया को हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंअनूप जैसा की आप जानते हैं निरंतर पत्रिका बंद नहीं हुई है बल्कि अब पत्रिका स्वरूप में नहीं वास्तविक ब्लॉगज़ीन के रूप में सामयिकी http://www.samayiki.com नाम से प्रकाशित होती है। आप सभी के योगदान का स्वागत है ताकि निरंतर नये स्वरूप में उसी शिद्दत से प्रकाशित की जा सके।