शुक्रवार, दिसंबर 11, 2009

चित्रचर्चा: एक शब्‍द-विरोधी समय में

ब्‍लॉगजगत में समय घनघोर शब्‍दविरोधी हो चला है। उधर ज्ञानदत्‍तजी ने उम्‍मीद जाहिर की थी कि जितना जल्‍द हो सके शब्‍द का बबल बर्स्‍ट होना चाहिए। तिस पर अगर आप ये जो भी हैं अवधिया चाचा की टिप्‍पणियॉं देख रहे हैं तो आप जान ही रहे होंगे कि शब्‍द के होने न होने से अब फर्क कम ही पड़ता है मसलन इस टिप्‍पणी को ही लीजिए

इस कमेंट से कापी कर लें कुत्‍ता कभी मुझे लिखना होगा तो यहाँ से कापी कर लूंगा(मैं जो कीबोर्ड प्रयोग करता हूँ उसमें टाइप नही कर पाता), हो सके तीसरे किरदार से कहें वह भी अपना ब्‍यान नोट करवादे, अवधिया की तरफ से कहना प्रवचन का समय नहीं है यह,अन्‍यथा वह फेल होजाएगा, यार लोग स्‍टोरी एवार्ड जीत लेंगे अब अवधिया की दो ही इच्‍छाऐं है एक अवध देखना दूसरा खान का ब्‍यान पढना

अगर इस अवधिया अभिव्‍यक्ति का कुछ अर्थ, भाव, कुभाव, अभाव, विभाव, अनुभाव, संचारी, व्‍यभिचारी भाव पता चले तो बताइएगा। पिछली चर्चा भी टैंपलेट केंद्रित थी। अत: कुल मिलाकर आजकल पढ़ने पढ़ाने पर कम और दिखने दिखाने पर ज्‍यादा जोर है.. ये वो पक्ष है जो हमारा काफी कमजोर है। दिखते हम एकदम अदर्शनीय हैं और दिखाने का ऐसा है कि डोमेन लिए तीन साल हो चुके अभी तक ब्‍लॉगर पर ही पड़े हैं क्‍योंकि वहॉं अपने स्‍पेस पर सजावट का काम करना पड़ेगा इससे डरे हुए हैं। लेकिन किसी भी डर से जूझने का तरीका ये हैं कि सीधा जाकर उससे जाकर टकरा जाओ इसलिए आज हमारी ये चर्चा पढ़ने नहीं देखने की चर्चा है। हमने हर उस ब्‍लॉग पर जिस पर कोई चित्र आज की पोस्‍ट में है चित्र उठाया है अगर चित्र में जी रूचे तो उस पर क्लिक करें वह आपको सीधा उसी पोस्‍ट पर ले जाएगा। उदाहरण के लिए

यह चित्र जितेंद्र भगत की कविता तक ले जाएगा जहॉं उन्‍होंने ये चित्र सटाया है। इसी प्रकार नीचे प्रत्‍येक चित्र भी संदर्भित पोस्‍ट का लिंक है तो आज चित्र देख देखकर तय करें कि क्‍या पठनीय दर्शनीय है :)

 

image image
image
ScreenHunter_01 Dec. 10 16.45
   
mandir

 

चित्रचर्चा है अत: स्‍वाभाविक है चित्र उन पोस्‍टों से ही लिए गए हैं जिनके लिंक चित्र पर हैं। जहॉं एक ही पोस्‍ट में एक से अधिक चित्र मिले हैं उनमें से कुछ जानबूझकर एक से ज्‍यादा बार लिंकित कर दिया है। तो बताएं कैसी लगी चित्रितचर्चा ?

Post Comment

Post Comment

26 टिप्‍पणियां:

  1. ये बिलकुल सही रहा. वैसे हम तो अपना फोटो ढून्दते नज़र आये.

    जवाब देंहटाएं
  2. हमारे ब्लाग का भी तो चित्र दो, अब हमारी दो ही इच्‍छाऐं हैं एक हमारे ब्‍लाग 'धान के देश में' की निम्‍न पोस्‍ट का चित्र इस पोस्‍ट में लगे दूसरे अवध को देखने की, एक तुम पूरी कर सकते हो दूसरे की हमें कोई जल्‍दी नहीं
    ब्‍लागवाणी पर पत्रकारों को दी गाली का पब्लिश होना उचित या अनुचित?
    http://dhankedeshmen.blogspot.com/2009/12/blog-post.html

    अवधिया चाचा
    जो कभी अवध न गया

    जवाब देंहटाएं
  3. @ ऐ ब्लागवाणी तू आँख खोलके देख ले, तेरे बिना भी अपना नाम कम नहीं, तूने एकसे एक नालायक़ को अपना मेम्‍बर बनाया, एकसे एक हरामी को अपनी मेम्‍बरशिप देरखी है, एक बार नहीं कई बार दे रखी है, कब तक बचाएगी इन्‍हें, देदे हमें भी एक ब्लागवाणी का डंडा या झंडा फिर देख अवध में रहने वालों की जगह कम न पड जाए तो अवधिया चाचा नाम नहीं मेरा

    अवधिया चाचा
    जो कभी अवध न गया

    जवाब देंहटाएं
  4. नये तरह की चर्चा । चित्रों को यूँ ही रख दिया है कि कोई संगति बैठायी है ! यूँ ही पूछ रहा हूँ ।

    जवाब देंहटाएं
  5. मै तो हर नए प्रयोग का हिमायती हूँ...और ये प्रयोग तो मुझे खासा जंचा भी....!

    जवाब देंहटाएं
  6. आपका सृजनात्मक कौशल हर जित्र में झांकता दिखाई देता है।

    जवाब देंहटाएं
  7. @ हिमांशु आजकल लोग जल्‍दी आहत होते हैं इसलिए हमने इसे आमने-सामने की तरह प्रस्‍तुत नहीं करने की ही सोची थी... आप आमने सामने देखे संगति लगाएं तो भी ठीक है :)

    जवाब देंहटाएं
  8. मसीवी जी चिठ्ठाचर्चा का ये नया अंदाज बहुत अच्छा लगा,वैसे भी एक चित्र हजार शब्दों के बराबर माना जाता है……॥

    जवाब देंहटाएं
  9. प्रस्तुति का नयापन पसंद आया ..
    मनभावन चित्र हैं ..

    जवाब देंहटाएं
  10. नि:संदेह एक अच्छा प्रयोग है इस पोस्ट में,
    किन्तु दी गई लिंक्स में target blank का प्रयोग भी हो तो बेहतर होगा एक सामान्य पाठक के लिए

    बी एस पाबला

    जवाब देंहटाएं
  11. नये तरह का प्रयोग बढ़िया लगा.

    जवाब देंहटाएं
  12. @ पाबलाजी कुद तस्‍वीरों में टार्गेट ब्‍लैंक पहले था बाकी में कर दिया है । शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  13. @ मसिजीवी जी,
    एक सुझाव को मान देने के लिए आभार

    बी एस पाबला

    जवाब देंहटाएं
  14. चर्चाकारों का यही अंदाज बार-बार मुझे अचंभित करता है- ये मेहनत. इतनी शिद्दत, डिवोशन...आह!

    मसिजीवी जी का आभार एक नये अंदाज के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  15. हम का कहें ......आपके पुराने फैन जो हैं !!

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत सुंदर चित्र चर्चा,
    मैं आंखों से ही सुन सकता हुँ, तुम आंखो से ही बोलो, आभार

    जवाब देंहटाएं
  17. "अगर इस अवधिया अभिव्‍यक्ति का कुछ अर्थ, भाव, कुभाव, अभाव, विभाव, अनुभाव, संचारी, व्‍यभिचारी भाव पता चले तो बताइएगा"

    अब तो अवधिया चाचा ने अपने लिए कुछ और विशेषण जोड लिए हैं अपनी टिप्पणी में :)

    जवाब देंहटाएं
  18. लाजवाब चर्चा- नहीं छोड़ा कोई पर्चा

    जवाब देंहटाएं
  19. Kabhi kabhi ....Chitr shbdon se adhik kah jate hain.
    Yah prayog bahut hi achchha hai..

    Sujhaav hai--
    saptaah mein ek din is tarah ki charcha ke liye mukrarr kar diya jaye .

    Abhaar

    जवाब देंहटाएं
  20. ये हुई न बात
    शब्द की आवश्यकता ही जाती रही
    बहुत बढ़िया

    जवाब देंहटाएं

चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

Google Analytics Alternative