ब्लॉगजगत में समय घनघोर शब्दविरोधी हो चला है। उधर ज्ञानदत्तजी ने उम्मीद जाहिर की थी कि जितना जल्द हो सके शब्द का बबल बर्स्ट होना चाहिए। तिस पर अगर आप ये जो भी हैं अवधिया चाचा की टिप्पणियॉं देख रहे हैं तो आप जान ही रहे होंगे कि शब्द के होने न होने से अब फर्क कम ही पड़ता है मसलन इस टिप्पणी को ही लीजिए
इस कमेंट से कापी कर लें कुत्ता कभी मुझे लिखना होगा तो यहाँ से कापी कर लूंगा(मैं जो कीबोर्ड प्रयोग करता हूँ उसमें टाइप नही कर पाता), हो सके तीसरे किरदार से कहें वह भी अपना ब्यान नोट करवादे, अवधिया की तरफ से कहना प्रवचन का समय नहीं है यह,अन्यथा वह फेल होजाएगा, यार लोग स्टोरी एवार्ड जीत लेंगे अब अवधिया की दो ही इच्छाऐं है एक अवध देखना दूसरा खान का ब्यान पढना
अगर इस अवधिया अभिव्यक्ति का कुछ अर्थ, भाव, कुभाव, अभाव, विभाव, अनुभाव, संचारी, व्यभिचारी भाव पता चले तो बताइएगा। पिछली चर्चा भी टैंपलेट केंद्रित थी। अत: कुल मिलाकर आजकल पढ़ने पढ़ाने पर कम और दिखने दिखाने पर ज्यादा जोर है.. ये वो पक्ष है जो हमारा काफी कमजोर है। दिखते हम एकदम अदर्शनीय हैं और दिखाने का ऐसा है कि डोमेन लिए तीन साल हो चुके अभी तक ब्लॉगर पर ही पड़े हैं क्योंकि वहॉं अपने स्पेस पर सजावट का काम करना पड़ेगा इससे डरे हुए हैं। लेकिन किसी भी डर से जूझने का तरीका ये हैं कि सीधा जाकर उससे जाकर टकरा जाओ इसलिए आज हमारी ये चर्चा पढ़ने नहीं देखने की चर्चा है। हमने हर उस ब्लॉग पर जिस पर कोई चित्र आज की पोस्ट में है चित्र उठाया है अगर चित्र में जी रूचे तो उस पर क्लिक करें वह आपको सीधा उसी पोस्ट पर ले जाएगा। उदाहरण के लिए
यह चित्र जितेंद्र भगत की कविता तक ले जाएगा जहॉं उन्होंने ये चित्र सटाया है। इसी प्रकार नीचे प्रत्येक चित्र भी संदर्भित पोस्ट का लिंक है तो आज चित्र देख देखकर तय करें कि क्या पठनीय दर्शनीय है :)
चित्रचर्चा है अत: स्वाभाविक है चित्र उन पोस्टों से ही लिए गए हैं जिनके लिंक चित्र पर हैं। जहॉं एक ही पोस्ट में एक से अधिक चित्र मिले हैं उनमें से कुछ जानबूझकर एक से ज्यादा बार लिंकित कर दिया है। तो बताएं कैसी लगी चित्रितचर्चा ?
ये बिलकुल सही रहा. वैसे हम तो अपना फोटो ढून्दते नज़र आये.
जवाब देंहटाएंहमारे ब्लाग का भी तो चित्र दो, अब हमारी दो ही इच्छाऐं हैं एक हमारे ब्लाग 'धान के देश में' की निम्न पोस्ट का चित्र इस पोस्ट में लगे दूसरे अवध को देखने की, एक तुम पूरी कर सकते हो दूसरे की हमें कोई जल्दी नहीं
जवाब देंहटाएंब्लागवाणी पर पत्रकारों को दी गाली का पब्लिश होना उचित या अनुचित?
http://dhankedeshmen.blogspot.com/2009/12/blog-post.html
अवधिया चाचा
जो कभी अवध न गया
मजेदार.. नया अंदाज..
जवाब देंहटाएं@ ऐ ब्लागवाणी तू आँख खोलके देख ले, तेरे बिना भी अपना नाम कम नहीं, तूने एकसे एक नालायक़ को अपना मेम्बर बनाया, एकसे एक हरामी को अपनी मेम्बरशिप देरखी है, एक बार नहीं कई बार दे रखी है, कब तक बचाएगी इन्हें, देदे हमें भी एक ब्लागवाणी का डंडा या झंडा फिर देख अवध में रहने वालों की जगह कम न पड जाए तो अवधिया चाचा नाम नहीं मेरा
जवाब देंहटाएंअवधिया चाचा
जो कभी अवध न गया
नये तरह की चर्चा । चित्रों को यूँ ही रख दिया है कि कोई संगति बैठायी है ! यूँ ही पूछ रहा हूँ ।
जवाब देंहटाएंमै तो हर नए प्रयोग का हिमायती हूँ...और ये प्रयोग तो मुझे खासा जंचा भी....!
जवाब देंहटाएंआपका सृजनात्मक कौशल हर जित्र में झांकता दिखाई देता है।
जवाब देंहटाएं@ हिमांशु आजकल लोग जल्दी आहत होते हैं इसलिए हमने इसे आमने-सामने की तरह प्रस्तुत नहीं करने की ही सोची थी... आप आमने सामने देखे संगति लगाएं तो भी ठीक है :)
जवाब देंहटाएंमसीवी जी चिठ्ठाचर्चा का ये नया अंदाज बहुत अच्छा लगा,वैसे भी एक चित्र हजार शब्दों के बराबर माना जाता है……॥
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति का नयापन पसंद आया ..
जवाब देंहटाएंमनभावन चित्र हैं ..
नि:संदेह एक अच्छा प्रयोग है इस पोस्ट में,
जवाब देंहटाएंकिन्तु दी गई लिंक्स में target blank का प्रयोग भी हो तो बेहतर होगा एक सामान्य पाठक के लिए
बी एस पाबला
कुछ न कहके भी सब कुछ कह डाला।
जवाब देंहटाएं------------------
सलीम खान का हृदय परिवर्तन हो चुका है।
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।
नये तरह का प्रयोग बढ़िया लगा.
जवाब देंहटाएंनया प्रयोग अच्छा लगा!
जवाब देंहटाएं@ पाबलाजी कुद तस्वीरों में टार्गेट ब्लैंक पहले था बाकी में कर दिया है । शुक्रिया
जवाब देंहटाएं@ मसिजीवी जी,
जवाब देंहटाएंएक सुझाव को मान देने के लिए आभार
बी एस पाबला
चर्चाकारों का यही अंदाज बार-बार मुझे अचंभित करता है- ये मेहनत. इतनी शिद्दत, डिवोशन...आह!
जवाब देंहटाएंमसिजीवी जी का आभार एक नये अंदाज के लिये।
हम का कहें ......आपके पुराने फैन जो हैं !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चित्र चर्चा,
जवाब देंहटाएंमैं आंखों से ही सुन सकता हुँ, तुम आंखो से ही बोलो, आभार
bahut shaandar prayog 1
जवाब देंहटाएंवाह...!
जवाब देंहटाएंयह प्रयोग तो बहुत बढ़िया रहा!
"अगर इस अवधिया अभिव्यक्ति का कुछ अर्थ, भाव, कुभाव, अभाव, विभाव, अनुभाव, संचारी, व्यभिचारी भाव पता चले तो बताइएगा"
जवाब देंहटाएंअब तो अवधिया चाचा ने अपने लिए कुछ और विशेषण जोड लिए हैं अपनी टिप्पणी में :)
लाजवाब चर्चा- नहीं छोड़ा कोई पर्चा
जवाब देंहटाएंKabhi kabhi ....Chitr shbdon se adhik kah jate hain.
जवाब देंहटाएंYah prayog bahut hi achchha hai..
Sujhaav hai--
saptaah mein ek din is tarah ki charcha ke liye mukrarr kar diya jaye .
Abhaar
ये हुई न बात
जवाब देंहटाएंशब्द की आवश्यकता ही जाती रही
बहुत बढ़िया
sach hai, ek chitra kai hazar bhavon ko vyakt kar deta hai.
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