शुक्रवार, मार्च 05, 2010

बेटा जी ,अभी बहुत छोटे हो ...इस फिक्र में क्यों घुल रहे हो

किसी महान दार्शनिक ने कहा है - संक्रमण काल में कई बार बुद्धि विभ्रम मे पड जाती है और हमारा मन कुछ अजाने भयों की कल्पना करके उनके खिलाफ मोर्चाबन्दी की शुरुआत कर देता है।यह मोर्चाबन्दी वचन ,कर्म की किसी भी हद तक जा सकती है।इस अधकचरे समय में स्त्री की स्थिति भी ऐसी ही अधकचरी हो गयी लगती है।जितना ही वह साहस करती है उतना ही प्रताड़ना बढती जाती है।एक मोर्चा सम्भालती है तो दूसरेपर धराशायी कर दी जाती है।अब देखिए , जितना ही स्त्री विमर्श ब्लॉग पर बढ रहा है उतना ही उसके विरोध के स्वर भी सामने आ रहे हैं।स्त्री को महानता की भारी पदवी और ज़िम्मेदारी देकर हाथ झुलाते घूमने वाले महानुभावों का समर्थन करने वालों से एक विवाद खत्म हो चुकता है तो ठीक उसी बिन्दु से वही विवाद पुन: कोई और उठा देता है।गोल-गोल इसी झाले मे घूमते घूमते दो वर्ष बीत चुके ...जो सुनना नही चाह्ते , वे नही ही सुन पा रहे .. इतनी नारियाँ कह रही हैं कि बेटा और भी गम हैं ज़माने में ..पर... .ऐसे में यही जवाब देते बनता है कि भाई पदवी वापस ले ल्यो और चैन से जीने दो.....

महेन्द्र मिश्र said...
आपके विचारो से सहमत हूँ .पहिनावा से निश्चित ही सांस्कृतिक प्रदूषण काफी हद तक बढ़ रहा है . इस तरह के न्यून वस्त्र पहिनती हैं की बच्चे भी बहुत कुछ बड़े ध्यान से देखते है ....
March 4, 2010 7:27 PM

kunwarji's said...
मिथिलेश भाई एकदम सही बात है ये!नारी को अपनी एहमियत समझनी ही होगी!

वो कब तक पुरुषो के लिए खिलौना बनी रहेगी!लेकिन ये उसे अपनी मर्यादाओं में छुपी गरिमा को समझ कर

ही करना होगा!नारी पूजने योग्य सदा ही है यदि वो इस लायक स्वयं को समझे!जब भी वो दिखावे के लिए तैयार होती है तो लाखो पुजारी तब भी तैयार है,मगर वो कैसे पुजारी है वो नारी खुद भी जानती है!

Arvind Mishra said...
'कोमलता, शील, ममता, दया और करूणा संजोने वाली यह नारी अपनी प्रकृति और अपने उज्जवल इतिहास को भूल कर भ्रूण-हत्या, व्यसनग्रस्तता, अपराध और चरित्रहीनता के भोंडे प्रदर्शन द्वारा अपनी जननी और धारिणी की छवि को धूमिल कर रही है।'
इसमें और जोडिये मिथिलेश जी -
नारीवादी आधुनिकाएं बच्चों को उनके नैसर्गिक अधिकर मां के दूध से भी वंचित करती हैं -ताकि उनका दैहिक सौन्दर्य लम्बी अवधि तक बना रहे -अपनी फिजीक के प्रति सहसा इतनी जागरूक बन जाती हैं की गर्भपात से भी तनिक नहीं हिचकती -थू है इन आधुनिकताओं पर !
March 4, 2010 8:21 PM


विनोद कुमार पांडेय said...
मिथिलेश भाई लेखनी में दम है....आज के परिवेश में नारी के बदलते विचारधारा और खुलेपन पर चिंता जायज़ है..आधुनिकता की चकाचौंध में नारी-पुरुष सब अपने वास्तविक स्वरूप और उद्देश्य से विचलित होते जा रहे है और बस भौतिकता में डूब कर अपने इस अमूल्य जीवन को मूल्यहीन करने पर तुले है.....धन्यवाद भाई भारत के युवा नेतृत्व के रूप में आपकी इस प्रकार की विचारधारा प्रभावित करती है...
March 4, 2010 8:34 PM

अदा' said...
मिथिलेश,
एक बात बताओ...क्या सारा दारोमदार सिर्फ महिलाओं पर ही होना चाहिए...
क्या संस्कृति को बचाए रखना सिर्फ महिलाओं का ही काम है.....
क्यूँ ये पुरुष समाज हर बात के लिए महिलाओं की तरफ ही देखता है....कुछ संस्कृति का बोझ अपने सर पर भी ले लेवें तो अच्छा रहेगा.....ये आधुनिकता का जामा पुरुष पहन लेवें तो ठीक है अगर स्त्री पहने तो 'थू' ...क्यूँ भला ?
March 4, 2010 10:01 PM

डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...
पहनावा किसी का भी यदि शालीन नहीं है तो वह प्रदूषण ही फैलेगा. इधर देखने में आया है कि आज़ादी के नाम पर नंगई दिखाई जा रही है. आप गानों में देखिये कितनी भीषण बर्फ का सीन हो हीरो तो पूरे कपडे पहने होगा और हीरोइन छोटे से छोटे कपड़ों में होगी.
यदि इसे दर्शकों की मांग कही जाए तो क्या दर्शकों में महिलायें नहीं होतीं? यदि होतीं हैं तो क्या वे कपडे पहने हुए मर्द ही पसंद करतीं हैं?
विचार अच्छे हैं.........लगे रहिये...........
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
March 4, 2010 10:40 PM



अनामिका की सदाये...... said...
मिथलेश जी

इसमे कोई शक़ नही की लेख बहुत बढिया और असरदार है लेकिन मै अदा जी की बात से भी सहमत हू...कि क्या सिर्फ
नारी की ही जीम्मेवारी है...जबकी पुरुष ही नारी को expose करने के लिए मजबूर भी करता है..इसी तऱ्ह केवळ
नारी ही पर संस्कृती बचाने का सारा बोझ क्यू??
March 4, 2010 11:52 PM




mukti said...
अदा जी से सहमत हूँ. ज़रा स्वामी नित्यानन्द, भीमानन्द आदि पर भी प्रकाश डालिये. इन्हें निश्चित ही कुछ आधुनिकाओं ने बर्गला दिया होगा ? न.
@Arvind Mishra,
मुझे तो आज तक ऐसी औरत नहीं मिली, जो अपनी फिगर के लिये बच्चों का दूध छुड़वा दे. हॉस्टल में नौ साल रही हूँ. आज मेरी जितनी भी सीनियर्स, जूनियर्स और साथ की सहेलियाँ हैं, वे चाहे नौकरी कर रही हों या नहीं, चाहे देश में हों या विदेश में, माँएँ हैं. उनमें से कईयों ने तो अपना कैरियर छोड़कर फुलटाइम माँ बनना पसंद किया. आपलोगों द्वारा वर्णित भारतीय नारियाँ जाने कहाँ रहती हैं???? अपनी हॉस्टल लाइफ़ में मुझे एक भी ऐसी औरत नहीं मिली. और अगर आप उच्च वर्गीय नारियों की बात कर रहे हैं या सिने तारिकाओं की, तो उनकी संख्या कितनी है?
March 5, 2010 12:02 AM





'अदा' said...
मुझे एक बात कोई बताये कि नारी को नारी नहीं रहने देने में किसका हाथ है...
मेरा जवाब है ....सिर्फ और सिर्फ पुरुषों का.....नारी का शील हरण कौन करता है सिर्फ और सिर्फ पुरुष ....फिर भी इलज़ाम नारी पर कैसी विडंबना है यह...
कितनी अजीब बात है ..ये ब्यूटी कॉम्पिटिशन ...ये सारे नाप जोख ..का बाज़ार पुरुषों ने ही बनाया हुआ है....
अगर बीवी बच्चे होने के बाद ख़ूबसूरत न लगे तो यही पुरुष ...रोज पड़ोसन का उदहारण देने से बाज नहीं आयेंगे... किसी पोस्ट पर खूबसूरत लड़की की तस्वीर भी आ जाए तो सारे सारी दुश्मनी त्याग कर उस ब्लॉग से मधुमक्खी की तरह चिपक जायेंगे....और घूम कर नारी पर तोहमत लगा देते हैं....
मिथिलेश अब नारी कि बातें करना थोडा कम कर दो हम नारियों को भी आत्ममंथन का समय दो.....ऐसी दनादन पोस्ट पढ़-पढ़ कर अब थोड़ी परेशानी होने लगी है....
March 5, 2010 12:33 AM


mukti said...

मुझे तो नहीं लगता कि एक-दो प्रतिशत औरतों के पाश्चात्य संस्कृति अपना लेने से भारतीय संस्कृति नष्ट हो जायेगी. तुमसे कम औरतों से नहीं मिली हूँ मैं. मुझे तो नहीं लगता कि हमारी संस्कृति पर इतना बड़ा खतरा आन पड़ा है कि हम सारी समस्याओं को छोड़ बस यही राग आलापें.

और ये मिथिलेश भाई कल ही एक ब्लॉग पर एक नारी की फोटो की तारीफ़ करके आये हैं और आज नारी के बाज़ारीकरण का विरोध कर रहे हैं. अब बताइये मिथिलेश भाई औरतें बिकती हैं बाज़ार में तो खरीदता कौन है और बेचता कौन? कल एक पुरुष ने अपने ब्लॉग पर एक महिला का चित्र लगाया और दूसरे पुरुष वाह-वाह कर रहे थे. हम तो उस समय भी औरतों के बाज़ारीकरण का विरोध कर रहे थे और आज भी कर रहे हैं.
March 5, 2010 2:43 AM



वाणी गीत said...
अदाजी और मुक्ति से शत प्रतिशत सहमत ....

आप जिन नारियों की चिंता में घुले जा रहे हैं ...उन्हें बाजार में प्रतिष्ठापित करने वाले वही लोग है जो यौन कुंठाएं मिटाने निकले हैं ....जो नारियां ये सब कर रही हैं ...किसके लिए ...कौन देखता है उन्हें ...इस पर गौर करे तो आपके सारे प्रश्नों का जवाब मिल जाएगा ...
बेटा जी , फिर से कह रही हूँ अभी बहुत छोटे हो ...इस फिक्र में क्यों घुल रहे हो ...अभी पढने लिखने में ध्यान दो ...
March 5, 2010 5:36 AM



Dr. Smt. ajit gupta said...
मिथिलेश जी
आपकी बात से सौ प्रतिशत सहमत हूँ लेकिन यह सिक्‍के का एक पहलू है। नारी पर लेखनी तो सब कोई चला रहा है लेकिन कभी पुरुष पर भी तो लेखनी चलाओ। वे समाज को किस तरह दूषित कर रहे हैं, उस पर भी तुम्‍हारे जैसे चिंतक का लेख आना चाहिए। भारत में कभी भी स्‍त्री और पुरुष का चिंतन नहीं किया गया, हमेशा से ही परिवार प्रमुख रहा है। परिवार की मान्‍यता ही समाज को विकृत करती हैं। अत: आज जो भी हो रहा है उसमें स्‍त्री और पुरुष दोनों ही दोषी हैं। मुझे तो लगता है कि शायद समाज महिलाओं के सहारे ही खड़ा है, तभी तो केवल महिलाओं की ओर ही सब लोग देख रहे हैं। पुरुष को क्‍या इतना नाकारा समझ लिया गया है कि उस पर कुछ भी लिखा जाना व्‍यर्थ सिद्ध होगा?
March 5, 2010 9:18 AM



रचना said...

पिछले कई दशको से संस्कृति को संभालने का ठेका नारी के सिर पर रहा हैं और इस पोस्ट को पढ़ कर लगा कि गलती कि शुरुवात यही से हुई हैं । क्युकी एक बे पढ़ी लिखी नारी को बच्चो को यानी बेटे और बेटी को बड़ा करने का काम दिया गया उसने वो काम सही नहीं किया । उसी कि वजह से बेटे उदंड और बेटियाँ फैशन परस्त होगयी । इसका निवारण बहुत आसान हैं । ये काम नारी से वापस लेलिया जाए क्युकी वो इस को करने मे अक्षम रही हैं और उसको पढ़ने लिखने और नौकरी करके अपने मानसिक स्तर को सुधारने का काम दिया जाए । बच्चो को संस्कार देने का काम उनके पिता को दिया जाए ताकि भारतीये संस्कृति और सभ्यता सही दिशा मे चल सके । नौजवान लडको को इस दिशा मे सोचना चाहिये और अपनी पत्नियो से ये काम तुरंत वापस ले लेना चाहिये !!
March 5, 2010 11:25 AM



- सुजाता

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91 टिप्‍पणियां:

  1. apni upstheethi darj karaa dee aur gayee NOT DONE

    sehmati ka shukriyaa भाई पदवी वापस ले ल्यो और चैन से जीने दो..... merae kament kaa sukshm varjan

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  2. बहुत चटपटी चर्चा आनंद आ गया जो मैं कहना चाहती थी वो अदा,बाणी,मुक्ति और रचना जी ने पहले ही कह दिया है ,इस बार मिथिलेश जी ने गलत सुर लगा लिया है .... समाज में जो भी गलत हो रहा है वो नारी की वजह से बेटा अगर कुछ गलत करे तो "तेरी माँ ने यही सिखाया है " और अगर कहीं कामयाब तो "आखिर है किसका बेटा ", नारी अगर बलात्कार का शिकार हो तो उसके आचरण पहनावे को दोष दिया जाता है , और वो पुरुष जिसने ये घिनौना काम किया है कहीं नेपथ्य में चला जाता है
    सिर्फ यही ऐसा मुद्दा है हैं पीड़ित को दोषी माना जाता है ,
    कृपा करके ये ये बताये जो छोटे छोटे बच्चे इनका शिकार बनते है उन्होंने कौन सा सांस्कृतिक प्रदूषण फैलाया है,

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  3. सच,इतने महानुभावों के ऐसे विचार देख तो सोचना पड़ जाता है.कि नारी को अभी भी कितने मुश्किल रास्ते तय करने हैं....रास्ते से इतने कांटे बीनते, हाथ लहू लुहान हुए जाते हैं...वे कुछ सृजनात्मक क्या रच पाएंगी.....कांटे बीनते हुए ही सारा समय गुजर जाता है

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  4. मिथलेश,
    तुम्हारा आलेख बहुत ही ज्ञानवर्धक और दिग्दर्शक है . इसके लिए बधाई स्वीकार करो. तुम्हारा सम्पूर्ण ज्ञान और शोध बहुत जायज है किन्तुसम्पूर्ण नारी वर्ग तो क्या ५० प्रतिशत का भी प्रतिनिधित्व नहीं करता है.
    जिस नारी के बारे में चिंतकों ने वर्णन किया है वह आज भी इसी भारत भूमि पर रहती हैं. तुम्हारा विषय मात्र उँगलियों पर गिनी जाने वाली महिलाएं हो सकती हैं. भारत में सबसे अधिक आवादी कहाँ बसती गाँवों में . कभी वहाँ जाकर देखा है? अपने बच्चों और परिवार के लिए कितने घंटे काम करती हैं और उफ भी नहीं करती है. असली नारी कि तस्वीर वही है. सिर्फ कुछ अभिनेत्रियाँ या माडल को देख कर समूर्ण नारी जाति के लिए बोलने से पहले ये सोचो कि कितने प्रतिशत से आप वाकिफ हैं. मेरे साथ चलो मैं दिखाती हूँ तुमको भारत कि नारीकी तस्वीर.
    इस समय खेतों में जाओ. कितनी महिला मजदूर कोसों दूर आलू के खेत में खुदाई के लिए रात ३ बजे घर से चल देती हैं और ८ बजे से काम शुरू करती हैं. आने से पहले रोटी बना कर साथ लती हैं और छोटे बच्चों को गोद में लेकर चलती हैं. शाम ५ बजे काम ख़त्म करके फिर पैदल जाती हैं और ८ बजे घर पहुँच कर खाना बना कर सोती हैं. सुबह से वही काम फिर. अगर गणना करने चलोगे तो ये शील त्यागने वाली महिलाओं के १ के हिस्से में १०० महिलायें आएँगी.
    ये माएं , पत्नियाँ और गृहणी सब कुछ हैं. तुम आइना किसको दिखा रहे हो. पहले खुद आइना देखो अगर उसने घर संभालना और संस्कृति का दमन छोड़ दिया तो यहाँ पर सिर्फ खानाबदोश नजर आयेंगे.

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  5. चर्चाकार का नाम स्पष्ट नही है।

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  6. चर्चाकार का नाम सुजाता हैं और वो दिल्ली विश्विद्यालय मे रीडर हैं चोखेर बाली ब्लॉग कि जननी हैं और ब्लॉग पर नारी आधारित विषयों पर "अंट शंट " !!! लिखना उनकी आदत मे शुमार हैं ।

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  7. सच में बड़ी खीझ होती है जब संस्कृति के स्वघोषित पहरुए नारी के पीछे पड़ जाते हैं. सच में हम औरतों ने तो भारतीय संस्कृति को चौपट कर डाला है. मैं रचना की बात से सहमत हूँ. हम से तो ये संस्कृति का बोझ सहा नहीं जाता, अब ये ज़िम्मेदारी पुरुष ही सँभाल लें तो शायद बची-खुची संस्कृति बची रह जाये.

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  8. सबला नारी हाय तुम्हारी यही कहानी ।
    आँचल में नेतागीरी, आँखों पानी ॥

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  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  10. आँचल में नेतागीरी 8TH MARCH official declaration will be done by parliament at least wait till then !!!!!!

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  11. जिस लेख के कारण यह चर्चा हुई उसके लिए मेरी टिप्पणीः
    'जयशंकर प्रसाद जैसे कवि नारी,तुम केवल श्रृद्धा हो कहकर चुप हो जाते है।'

    माफ करना, मैं बहुत कुछ हूँ, केवल श्रद्धा नहीं। यदि कोई यह कहता मानता है तो कहता मानता रहे। उसको सच साबित करने के लिए मैं केवल यह या वह नहीं हो सकती।
    'प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू ने भी यही बात कही है कि स्त्री की उन्नति और अवनति पर ही राष्ट की उन्नति और अवनति निर्भर करती है।'

    तो क्या भारत की गुलामी के लिए भी स्त्रियों को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हो? क्या मुगलों के आने से भी पहले से स्त्रियों यह आज वाली राह अपना ली थी और देश की अवनति हुई?
    'जब नारी को अपने परंपरागत मूल्यों से हटते हुए देखता हूं तो स्टील का कथन याद आ जाता है कि संसार में एक नारी को जो करना है वह पुत्री बहन,पत्नी और माता के पावन कत्र्तव्यों के अंतर्गत आ जाता है।'

    और पुरुषों को जो करना है क्या वह पुत्र, भाई,पति व पिता के पावन कर्त्तव्यों में नहीं आ जाता? पुरुष क्यों भागा फिरता है यह वह व सब करने? जैसे ब्लॉग लिखने? क्यों नहीं माता की सेवा में समय का सदुपयोग करता?
    'चीन के दार्शनिक कन्फ्यूशियस ने नारी को संसार का सार बताया है वह युवावस्था में पुरूष की प्रेमिका रहती है, प्रौढ़ की मित्र और वृद्ध की सेविका रहती है।'

    वाह, सेविका बनने की आकांक्षा न रखना कितनी बुरी बात है!
    'सेविलि नारी के प्रमुख अस्त्र आसुओं से बहुत प्रभावित है। वे कहते है कि नारी के रूप मात्र में हमारे कानूनों से अधिक सरलता रहती है। उनके आसुंओं में हमारे से अधिक शक्ति होती है।'

    तो अब रोना शुरू किया जाए? भाई सभी को आसुँओं में विश्वास नहीं होता, कुछ को अपने आप पर भी होता है!
    'नारी के शर्महया गुणों से प्रभावित कोल्टन को कहना पड़ा कि लज्जा नारी का सबसे कीमती आभूषण है।'

    पसन्द अपनी अपनी! अब कोल्टन जी को खुश करने के लिए उनके मनपसन्द आभूषण तो नहीं ही पहनेंगे लोग ना!
    'आज नारी स्वयं अपनी भूल से अनेक समस्याओं से घिर गयी है ।'

    सोलह आने खरी बात कही! जब तक वह जड़ थी तो समस्याओं को क्या समझती जानती, बस भुगतती थी? अब चैतन्य हुई है तो समस्याएँ तो सामने आएँगी ही। कभी सुना है कि कोई चट्टान समस्याओं से घिर गई?

    कहने को और भी बहुत है।
    घुघूती बासूती

    जवाब देंहटाएं
  12. नारी अब अबला क्यों सबला कहो,
    जिसकी आँखों में
    पानी नहीं अब तो है अंगारे
    बात बात पर टोकने वाले भस्म हो जायेंगे सारे.

    जवाब देंहटाएं
  13. उफ़ फिर शुरू हो गया ये ...और कोई सब्जेक्ट ही नहीं है लिखने को.हे महापुर्शो! बक्श दो नारी को ...अपनी संस्कृति संभालो नारी अपनी खुद सम्भाल लेगी ...इतनी फिकर है संस्कृति कि तो खुद उठाओ बोझ उसका.रहो परदे में कौन मना करता है

    जवाब देंहटाएं
  14. कभी भगवा लपेट कर ,कभी झंडे उठा कर
    ना जाने क्या पाते है नारी को सता कर
    ऐसे चलो ऐसे बोलो और दिखो इस तरह
    हम तै करेंगे सारे नियम ,जियो इस तरह

    बस करो भाई .............बहुत हुआ

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  15. यहीं तो अंतर है स्त्री और पुरुष के सोच में। स्त्री ने कभी कोसने का काम नहीं किया, अपनी कमजोरियों को अपनी शक्ति बनाने के लिए हमेशा संर्घष करती रही और आज भी कर रही है। लेकिन अधिकांश पुरुष जब कुछ कर नहीं पाते, तो कोसने लगते है। जब नारी खुद से अधीनता स्वीकार न करें, तो उसे कोसने, उस पर लांछन लगाने का काम करता है ये पुरूष समाज। आखिर सदियों से अपना एकाधिकार स्थापित करने के लिए पुरुषों ने किया तो यही है। लेकिन ये पुरूष समाज भूल गया है कि पहले के ये कारगर हथियार अब भोंतरे हो चुके है। लाख चला लो, कोई असर नहीं होगा। चाहे परिवार की दुहाई दो, संस्कृति की या नारी होने की। अब इन दकियानुसी बातों से न तो नारी ना री बनेगी और न ही पुरूष की ज्यादतियां सहेगी। वह दिन भी आयेगा, जब पुरूषों की यह आदत पूरी तरह से छूट जाएगी।

    जवाब देंहटाएं
  16. जिस तरह ये संस्कृति बचाओ आन्दोलन चला हुआ है पुरुषों की तरफ से और जिस तरह ये डंडा लेकर पीछे पड़े हुए हैं ...लगने लगा है ये बहुत ही कठिन काम है ...नारी तो वैसे भी अबला है, और इन महापुरुषों के हिसाब से किसी काम की भी नहीं....ये भी लगने लगा है इन सबके घरों में संस्कृति बैंड बजी हुई है क्योंकि इनके घरों की नारियों ने भी कोई बहुत अच्छा काम नहीं किया तभी तो ऐसे-ऐसे लाल नज़र आ रहे हैं .....अपनी जात दिखा रहे हैं ...लगता है इन सबकी माँओं ने अपना दूध बचा लिया है..और अपना फिगर बना लिया है....और अब बहनें भी यही कर रहीं होंगी.......बेचारे तभी तो इतना परेशान हैं......हर बात की एक हद्द होती है......और अब इन बातों ने अपनी सीमा पार कर दी है.....कहते हैं दौड़ते हुए घोड़े को चाबुक नहीं मारना चाहिए....और हम जी-जान से इसी में जुटे हुए थे.......लेकिन आज के बाद मेरी तरफ से ये संस्कृति भाड़ में जाए.....नहीं उठाना है इसका बोझ अपने सर पर......कर लो जो करना है....

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  17. हाहाहा, अदा जी!
    घुघूती बासूती

    जवाब देंहटाएं
  18. क्या इस चर्चा को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्वपीठिका माना जाए ?

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  19. शरद भाई, आपका विचार उम्दा है और चर्चा भी .

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  20. बिलकुल सही कहा आपने कोकास जी -अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष का रिहर्सल चल रहा है!
    किटी पार्टियों के बाद वहां भी तो गला खखारना है न!

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  21. वाह! लोग हमें दिन रात बताएँ कि हम कैसे उठें, बैठें, रोएँ, पहने, ओढ़ें, लजाएँ और लोग उन्हें वाहवाही देते नहीं थकते हम कुछ बोलें तो गला खँखारना/खखारना हो जाता है।गजब!
    घुघूती बासूती

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  22. यहाँ तक कि किस ब्लॉग पर अपनी पोस्ट डालें,किसपर नहीं :)
    http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2010/03/blog-post_04.html

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  23. uff!yahan to poori jung chhidi huyi hai aur sirf ek din ke liye uske baad koi yaad nhi karega nari ko ..........koi fayada nhi hai kisi bhi bahas ka.........jo jaisa hai vaisa hi rahega na to koi kisi ko badal sakta hai aur na hi badalne se kuch hoga jab tak mansikta nhi badlegi.

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  24. These people are bunch of jokers and they proov it previously also,same people but i am surprise they will write again something, appreciate a lady and she will forget it .
    i feel its wastage of time to discuss these gentleman oh sorry man.

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  25. @
    किटी पार्टी ...ये क्या होता है ....मैं तो आज तक नहीं गयी किसी किटी पार्टी में ...कभी फुर्सत ही नहीं मिली ... घर गृहस्थी से और उसके बाद जो समय मिला अपनी शिक्षा पूरी की ....और थोडा बहुत उसके अलावा पढ़ा लिखा ...
    यहाँ ये लिखने का मतलब सिर्फ यही है कि अपने घर परिवार को नजरंदाज करने वाली मुट्ठी भर महिलाएं पूरे नारी समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करती ...

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  26. ये ऐतिहासिक दबाव हैं अरविन्द जी कि पहले भरा हुआ गुबार फूटने लगा है ,इसे महिला दिवस के साथ जोड़ने मे कोई बुराई न होती यदि ये बहस हिन्दी ब्लॉग जगत मे पहली बार छिड़ी होती। पॉज़िटिव यह है कि आज सभी स्त्रियों का स्वर एक है।इसलिए आपकी तिलमिलाहट भी अधिक है ।अधिकांश एक दूसरे से परिचित तक नही हैं।लेकिन वे संस्कृति-चिंतन से कितना आज़िज आ चुकी हैं यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
    वन्दना की बात भी सही है ,कोई नही बदलेगा इन बहसों से ।ऐसा होना होता तो तीन साल से मै इस दुनिया मे ऐसी बहसों की गवाह रही हूँ और इनमे शरीक भी पर जो नही सुनना चाहते थे वे आज भी अपना हीराग अलाप रहे हैं।
    पर कोई चिंता नही।यह बहुत ज़रूरी था कि अपनी कोफ्त,अपना गुस्सा ,अपनी नाराज़गी,अपना विरोध दर्ज किया जाए,सो आज यहाँ किया !

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  27. वाह वाह !!! आज यहाँ की टिप्पणियाँ देखकर मज़ा आ गया. खासकर Mired Mirage और अदा जी की टिप्पणियाँ. सही है, ये लोग अब अपनी संस्कृति अपने पास रख लें. हम बिना संस्कृति के अच्छे.

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  28. यही क्या प्रमाण नहीं है कि अपनी दुकान चलाने के लिए महिला का उपयोग [ध्यान दें वह केवल उपयोग की वस्तु है, @ सेंगर साहब! कोई फ़िल्मों में पुरुषों की भीड़ जुटाने, कोई अपने ब्लॉग की टीआरपी बढ़ाने के लिए कभी नायिकाभेद के रूप से संतृप्त होने व कभी नायिकामात्र बनने से विरोध जताती स्त्री की छवि का चीरहरण करने के प्रयासों में विघ्न डालने को कोसते हुए)] ही करता है,तो बताइये भला कि बाजार में लाने का दारोमदार किस का हुआ?

    सारे के सारे यौनकुंठितों के बीच यदि स्त्री बेधड़क हो कर खड़ी हो जाती है तो इस साहस को उसका नग्न होना ही कह कर तो दबाया जाएगा न!!
    उसे फिर-फिर अपनी सुरक्षा की चादर ओढ़ाने का झाँसा देने की कोशिशों को क्यों बेनकाब करती जाती हैं ये पागल औरतें!!

    जब औरत को नंगा ठहराया जाएगा तभी तो बेचारे चादर ले कर दौ़ड़े आएँगे ना, जिसकी ओट में सारे कुकर्म सफ़ाई से किए जा सकें!!

    भला ये औरतें यदि उस चादर को जब नोंच कर उतार फेंकेंगी, तो जिनकी नंगई उघड़ेगी उन्हें काँय काँय कर रोने का अधिकार तो बनता है जी,
    उनके इस विलाप और हाहाकार से चादरों में छिपाने की उनकी प्रवृत्ति का सही सही कारण और मंशा समझती ही नहीं हैं, आज तक उनकी नंगई सँवारती चली आईं औरतें!! अब सारी पोल खोल देंगी क्या??

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  29. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  30. बड़ा सन्नाटा हैं आज चर्चा पर रेगुलर ब्लॉगर तक चुप हैं सच का साथ देना इतना मुश्किल होता हैं पता था आज दिख रहा हैं । लेकिन ख़ुशी हैं कि एक स्वर से नकार दिया जायेगा इस प्रकार के ब्लॉग पोस्ट को जहां नारी को वस्तु से ऊपर कुछ नहीं समझा जाता और अब खुल कर वो नाम सामने आयेगे जो ब्लॉग परदकियानूसी बातो के हिमायती हैं और रुढिवादिता को ग्लेम्राइज़ करते हैं ख़ुशी हैं कि मेरे एक कमेन्ट के साथ असंख्य भावनाए जुड़ी हैं ।

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  31. हा हा...
    @अदा जी ...आपका यह रूप नया लगा ....पर अच्छा लगा.
    @सुजाता जी आपको यहाँ देख कर मन पुलकित हुआ जा रहा है..अब हम भी कुछ लिखने की सोंच सकते हैं...ना..री पर..
    @अनूप जी नोटिस मिल जाएगा - आपने किस्से पूछ कर यह पोस्ट यहाँ लगाई ..जरा बताइए ...?
    ---------

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  32. मिथिलेश जी,
    आपकी पोस्ट कहाँ लगाई है ?केवल टिप्पणीकारों की टिप्पणियाँ लगाई हैं!
    चलिए और कुछ न सही ,यही आपत्ति सही ।

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  33. लीजिये..अब पोस्ट को लेकर स्पस्टीकरण भी मिल गया...अब कौन सी आपत्ति आएगी संस्कृति के रक्षकों की ओर से..देखा जाय...

    जवाब देंहटाएं
  34. इतना सन्नाटा क्यों है भाई....एक भी नियमित ब्लॉगर ने अपनी अमूल्य राय नहीं दी ..क्या उनके मौन को उनकी स्वीकृति समझा जाए ... बहनों आधुनिकता के नकाब उतर रहे है और सोलहवी सदी के विचार सामने आ रहे है

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  35. @ प्रिय मिथिलेश,
    यदि आप अँतर्जाल पर कुछ विचार डालते हैं तो,
    वह सार्वजनिक पठन अवलोकन की सामग्री स्वयँ ही बन जाती है ।
    यदि आपके विचार किसी सामूहिक मनन को उत्प्रेरित कर पाते हैं, तो यह आपकी सफलता में शुमार किया जायेगा ।
    इस प्रकार के उज्ज्वल पोस्ट यदि चर्चित न हों पायें, तो कम से कम मुझे तो बड़ी निराशा होती है ।
    इस नज़रिये से आज इस पोस्ट को देर सवेर यहाँ होना ही चाहिये था ।
    अधिकाँश बहसें भले ही परिणाम साक्षेप न हों, पर अनगढ़ चिन्तन से लेकर परिपक्व विचारक तक को एक दिशा देती हैं, इसमें आप सफल रहे । आज के चर्चा के बहाव को किसी भी कोण से ख़ारिज़ नहीं किया जा सकता ।
    आदरणीय रचना जी की एकाँगी टिप्पणी को छोड़ यहाँ कुछ भी ऎतराज़ करने योग्य नहीं है ।
    यदि आपके ब्लॉगपृष्ठ पर अनुमति लिये जाने की शर्तें दर्ज़ हैं, तो बात दीगर.. पर आपकी पोस्ट को यहाँ देख कर हर्ष ही हुआ, अधिकार की बात न उठायी जाये तो बेहतर ।
    किसी के निजी विचार उसके स्वयँ के द्वारा सार्वजनिक किये जाने पर, उस पर बहस या चर्चा के अधिकार की बात उठाना अप्रासँगिक है ।
    और.. आपकी पोस्ट इतनी अप्रासँगिक तो नहीं ।
    [ भले ही मैंनें वहाँ टिप्पणी न दी हो, पर काश कभी इतनी महिलाओं ने मुझे घेरा होता :) ]

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  36. अच्छा लगा यह देखकर कि सार्थक चर्चा हुई है ..
    कुछ पुरुष तो ऐसे बोल रहे हैं कि कामदेव के धनुष
    की प्रत्यंचा पर उन्हीं की टंकार होनी चाहिए , यही तो अधिनायक शाही है
    जिसने नारी को 'कमोडिटी' बनाया और मानव-पद से च्युत कर दिया !
    एक तरफ नारी को श्रद्धा की मूरत बना कर मंदिर में रख दिया जहाँ '' भीमानंद ''- प्रभृति
    पुजारी श्रद्धा - सह - शोषण करते रहे और दूसरी ओर वेश्यालय में नारी के एक रूप को
    नंगा करके देखते रहे और बाहर 'बुरका' और 'घूंघट' की वकालत करते रहे , लज्जा को
    नारी का आभूषण बताते रहे !
    हे नारी - स्थिति पर चिंतित पुरुषों ! यह दोहरापन आपके द्वारा ही दिया है ! दोष तो स्वयं का है !
    आज पुरुषों में यह बौखलाहट इसलिए है क्योकि नारी आज आधुनिक स्थितियों में स्वतंत्रता का
    लाभ उठाकर पुरुष-राजनीति को प्रश्न-विद्ध कर रही है ! इसीलिये यह स्वतंत्रता पुरुष को नागवार
    गुजर रही है ! पुरुष-वर्ग दो-चार उदहारण से ( जो बेशक उसी की व्यवस्था से पैदा हुए हैं ) सम्पूर्ण नारी
    जाति पर फतवा दे रहा है ! यह भी इसकी चाल ही है ! नारी पर ऐसी पोस्टें भी रखेगा जिसमें
    पारंपरिक छवि की नारी की वकालत हो और सेंसेसन के साथ सारा विमर्श (?) '' ढाक के तीन पात ''
    बन पर रह जाय !
    हे नारी के अर्थ को नूतन और यथेष्ट अर्थ देने वाली नारियों ! आप इस पुरुष - वर्ग के समस्त
    राजनीति को चिंतन और व्यवहार में दरकिनार करती रहें ! नहीं तो पूर्वोक्त '' आँचल में नेतागीरी,
    आँखों पानी '' वाली फिजूल की उलटवासी विषय को हल्का और मजाक नानाने की राजनीति का पर्याय है
    और पुरुष - दर्प ( मेल इगो ) का अनैतिक प्राकट्य ! ............ सम्हालियेगा गंभीरता से स्वयं को !
    ............
    सुजाता जी को तहे दिल से आभार देता हूँ जिन्होंने इतनी सार्थक पोस्ट बनाई !

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  37. स्त्री को समाज में इतना लाचार और असुरक्षित कर देने वाले पुरुष-वर्ग के पास अब स्त्री-विमर्श ही तो बचा है.....बेहतर हो, कि सब अपने-अपने घरों में महिलाओं की स्थिति को ऊपर उठायें, पूरा स्त्री समाज अपने आप ऊपर उठ जायेगा, अनावश्यक दोषारोपण बन्द करें.

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  38. आश्चर्य है इतनी पिपिहरियों के एक साथ बजने पर भी महिला ठकुरसुहाती के लम्बरदार लोग नहीं दिखे -जो नारी वादी नारियों के लिए हमारे हरि हारिल की लकड़ी बने रहते हैं -अलबत्ता डॉ अमर कुमार जी आये मगर वे तो जयकारे से हमेशा अलग ही रहे हैं हैं -निश्चित ही नारी सक्रियकों ने आज एक रिकार्ड बनाया है -हर का या जीत का यह कहना अभी ठीक नहीं है - खुशी तब होगी जब उनका यह अरण्य रुदन देश राग बन जाय और तब शायद हमारे कानों पर भी जू रेग जाय .अभी तो हमें यह महज तमस और कलुष का वमन लग रहा है -शायद इसके बाद विष देवियाँ चैन से सो सकें -आमीन!

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  39. देखकर बड़ा दुख हो रहा है कि भारतीय संस्कृति के सच्चे प्रेमी की बात को सच्चे अर्थों में न लेकर उनकी बातों को अपने खिलाफ़ समझकर उनका विरोध जैसा किया जा रहा है। कित्ती तो खराब बात है। :)

    भारतीय नारी अपनी लज्जा के लिए विश्व प्रसिद्ध है। शर्म उसका प्रिय गहना है! यह पढ़ने के बावजूद अपना प्रिय गहना न धारण करके लोग संस्कृति प्रेमियों की अवहेलना करेंगे तो खराब लगेगा ही संस्कृति पुरुषों को।

    चर्चा बहुत छोटी है लेकिन बहुत मजेदार, सुन्दर। एक साथ सभी महिला साथियों ने महिलाओं की चिन्ता करने के बहाने उनको मध्यकाल में सीमित रखने की बचकानी समझ की खिल्ली उड़ाई। सुन्दर। बेहतरीन।

    नियमित ब्लागरों की टिप्पणियां न आना अच्छा ही रहा है। महिला ब्लागरों की टिप्पणियां एक साथ आना सुखद और मजेदार रहा।

    मुझे चक दे इंडिया का वह सीन याद आ रहा है जिसमें महिला हॉकी टीम की लड़कियां उनको छेड़ने वाले लफ़ंगों की वो तुड़ैया करती हैं कि देखकर मजा आ जाता है।

    महिलाओं की चिंता में दुबले होने वालों कुछ (महा)पुरुष उसको ऐसा आइटम बना के रखना चाहते हैं जिससे कि वह शर्मीली,लजीली, सलज्ज बनी वह संस्कृति की रक्षा में जुटी रहे ताकि वे संस्कृति के साथ कबड्डी खेलते रहें।

    कुछ संस्कृति की चिंता में दुबले होने वाले लोगों के विचार,प्रतिक्रिया और सोच देखकर लगता है कि वे सीधे सोलहवीं सदी से इक्कीसवीं में भये प्रकट कृपाला हुये हैं और पैदा होते ही इक्कीसवीं सदी को हड़काकर वापस सोलहवीं सदी के दड़बें घुसेड के कुंड़ी चढाकर इक्कीसवीं सदी को हड़काकर कहना चाहते हैं कि खबरदार अब कहीं बाहर निकली। टांग तोड़कर धर देंगे।

    मजे की बात है जो लोग अपनी एक पोस्ट पर लोगों की प्रतिक्रियायें सहन कर सकने में असमर्थ है वह भारत भर की स्त्रियों को संस्कृति की सिखाइस दे रहा है कि अपना शर्म का गहना पहनो/लज्जा मत त्यागो।

    अब इंतजार कीजिये वैज्ञानिक चेतना संपन्न विद्वान के संस्कृति मूसल का। वे आयेंगे और आपकी सारी प्रगतिकामना को प्रतिगामी,पश्चिमोन्मुखी और पतनशील ठहराकर धर देंगे।

    कुछ बातें पोस्ट पर आई टिप्पणियों के बारे में:
    १.जिन पोस्ट पर आई टिप्पणियों का जिक्र करते हुये यह चर्चा हुई उस पोस्ट में व्यक्त विचार कुछ महान संस्कृतज्ञ पुरुषों के हैं!सब पुरुषों के नहीं!
    २.इस पोस्ट पर रचनाजी ने जो कमेंट किया @ख़ुशी हैं कि मेरे एक कमेन्ट के साथ असंख्य भावनाए जुड़ी हैं वह गैर जरूरी है। यहां और लोगों ने अपनी-अपनी स्वत:स्फ़ूर्त टिप्पणियां की हैं। ऐसे में इस तरह की बात कहना मतलब श्रेय लेने की ललक इस तरह के प्रयास के लिये देर तक अच्छा नहीं रहता।
    ३. वहीं यह लिखना भी गैर जरूरी थी कि रेगुलर ब्लॉगर क्या कर रहे हैं? कोई बहादुरी का काम जब किया जाता है तब यह हिसाब नहीं लगाया जाता कि कौन नहीं आया आपके साथ !

    कुल मिलाकर इस संक्षिप्त चर्चा वाली पोस्ट पर आई टिप्पणियों को बांचकर मन खुश हो गया।

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  40. '' पुनश्च '' के रूप कुछ बातें लिखने आया पर 'अनूप शुक्ल ' जी की
    मुकम्मल सी टीप ने मेरे कथ्य को काफी कुछ कह दिया , सो इन महराज से
    सहमत हूँ , बड़े संतुलन और प्रवाह में रखी हैं चीजें ! आभार !
    .
    @ महिला ठकुरसुहाती , अरण्य रुदन , महज तमस और कलुष का वमन , विष देवियाँ
    चैन से सो सकें -आमीन !
    --------------- कोई तो बताओ(दिखाओ) इन शब्दों के झुरमुट में छिपे
    पाक / नापाक मंतव्य ( कहर-कसक) को और बर्बर असंतोष को !
    या ,,,, सभी नायिका - विमर्श में काम - लुंठित से हैं !
    या ,,,, वैज्ञानिक(?)-चेतना के आतंक - अंक में समा गए हैं !

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  41. "आश्चर्य है इतनी पिपिहरियों के एक साथ बजने पर भी महिला ठकुरसुहाती के लम्बरदार लोग नहीं दिखे -जो नारी वादी नारियों के लिए हमारे हरि हारिल की लकड़ी बने रहते हैं..."

    उफ़ ये कैसी शर्त है? अगर साल में ५० बार पचास ब्लॉगर बेतुकी बात करें तो क्या हमें पचास बार आकर कहना पडेगा कि भैया गुड मार्निंग? यही शर्त कभी कभी दूसरी तरफ से भी विचलित करती है जब लोगों पर आरोप लगता है कि साहब कोई ऐसी टुच्ची बेतुकी बात कह गया और किसी ने विरोध न जताया|

    तो क्या करें लोग? या तो डंडा लेकर पिले रहें या फिर "सबको सन्मति दे भगवान..." कहकर उम्मीद करें, और या फिर हम अपना नया तकिया कलाम "गुड मार्निंग" कह कर चलते बने...
    हिन्दी ब्लागजगत के साथ समस्या है कि लोग सोचते हैं कि आन द रिकार्ड लिख रहे हैं तो निबंध टाइप लिखते रहे...हाईस्कूल में जितने भी क्योटेशन पढ़े सब पेल दे,,,
    नारी पर लिखें तो शुरुआत, "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते..." से ही होनी चाहिए....कसम से ऐसे उदगारों और संस्कृति जैसे शब्दों को पढ़कर इतनी ऊब हो जाती है कि लगता है कि बन्दे ने हाईस्कूल वाला निबंध लिखा है, अच्छा लिखा है, १० नंबर दो और चलते बनो, क्योंकि ऐसे निबंध को चर्चा/विमर्श समझना और उस पर ऊर्जा व्यर्थ करना...बाप से बाप इतने में तो १ मील दौड़ आते और मन प्रसन्न होता वो अलग से...

    एक और बात भी है, हिन्दी ब्लागजगत बड़ा आभासी लगता है, लगता है इसमें रीयल लोग नहीं हैं. क्योंकि अगर लोग वही लिखते जो वो सोचते हैं तो कम से कम वैसी सोच सामने आती जो बस अड्डे पर लोगों के विचारों में दिखती है| मिथिलेश जैसे लोगों की मैं बहुत क़द्र करता हूँ, वो कम से कम अपने मन की बात लिख रहे हैं| आप सहमत तो अच्छा और असहमत को बहुत अच्छा...लोकतंत्र में उनको उनकी बात रखने की आजादी है, और ये कहीं नहीं लिखा कि उनकी बात आपके हिसाब से ठीक ही हो...

    कम से कम टिप्पणियों के माध्यम से किसी बात के पक्ष और विपक्ष में तुलनात्मक अध्ययन बेईमानी है|

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  42. नारी को कैसे रहना है ! नारी को ही निर्धारित करने दीजिए न !

    हमें तो बस इतना ही कहना है कि अगर कोई नारी के व्‍यवहार या रहन सहन या कपडे लत्‍ते पहनने के ढंग पर टोका टाकी करता है या यह सब उसे नाकाबिले बर्दाश्‍त लगता है या इसके बहाने सभ्‍यता संस्‍कृति की दुहाई देता है तो सिर्फ इसलिए कि उसे अपने हाथ से सत्‍ता जाती हुई दिखाई देती है । नारी अपने सौंदर्य का उपयोग करे या बुद्धि का इसमें पुरुष को समस्‍या क्‍यों होनी चाहिए ?

    इसका मतलब यही है कि उसे इसलिए तकलीफ हो रही है कि नारी टोकाटाकी करने वाले को मिली मान्‍यताओं के अनुसार आचरण नहीं कर रही है !

    औरत को निर्णय लेने दीजिए ...यदि सही मायने में कोई नारी मुक्ति का पक्षधर है ...

    सारी तकलीफ वहीं से शुरू होती है कि पुरुष ही नारी विमर्श को दिशा देगा .....

    दुष्‍यंत का शेर याद आता है

    चाकू की पसलियों से गुजारिश तो देखिए ...

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  43. "अब इंतजार कीजिये वैज्ञानिक चेतना संपन्न विद्वान के संस्कृति मूसल का। वे आयेंगे और आपकी सारी प्रगतिकामना को प्रतिगामी,पश्चिमोन्मुखी और पतनशील ठहराकर धर देंगे।"
    अपनी औकात में रहो अनूप -ये लो मैं सीधे टिप्पणी कर रहा हूँ तुम्हारी तरह बेनामी टिप्पणियाँ नहीं किया करता मैं -
    किस तरह नारियों का पद चुम्बन और क्यूं करते रहते हो तुम हममे में से कई जानते हैं ,उन्हें बेवकूफ बनाते रहो -हम पुर तुम्हारी नहीं चलने वाली है .
    मर्द हो तो मर्द की तरह वार किया करो -छुपा वार कायर करते हैं!
    तुम्हारे जैसे के लिए इससे भी बुरे अल्फाज इस्तेमाल में लाये जा सकते हैं मगर छोड़ रहा हूँ -
    अब तुम रुदालियाँ गवाओ या इस टिप्पणी को माडरेट कर दो मेरे ठेंगे से .
    शठं शाठ्यम समाचरेत!

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  44. कहाँ एक स्वस्थ - सी बात - चीत चल रही थी और कहाँ
    शुरू हुई कीचड - उछाऊहल ! ऊपर से दूसरों पर
    यह आरोप कि ''.... महज तमस और कलुष का वमन लग रहा है ...
    शायद इसके बाद विष देवियाँ चैन से सो सकें -आमीन! ''
    ------------- ऐसा ही है यह समाज ! ( कुछ लोगों का ही , सम्पूर्ण नहीं )
    ब्लॉग - जगत सही तस्वीर है ! कम - से - सीमायें तो जाहिर है !

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  45. चर्चा देर से पढ़ रही हूँ पर सुजाता जी आप को धन्यवाद देना चाह्ती हूँ कि आप ने इस पोस्ट को चर्चा का विषय बनाया। वर्ना हमें तो इस पोस्त का पता ही न चलता।
    मैं अपनी सब महिला साथियों से सहमत हूँ, रचना जी, घुघूती जी, कविता जी, अदा जी और सब ने एकदम सही उत्तर दिये हैं। अदा जी, कविता जी आप की टिप्पणियां लाजवाब हैं।

    पहली बार विवेक जी की टिप्पणी से आहत महसूस कर रही हूँ। अरविन्द जी की टिप्पणीयों में तो कोई नयी बात नहीं। वो फ़क्र से कह सकते हैं मैं हूँ वहीं मैं था जहां।

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  46. ठेंगों से क्षमायाचना नहीं, पर सुना है कि,
    वैदिक युग में भी कोई साँस्कृतिक क्राँति हुई थी..
    उस एकसूत्रीय क्राँति का एकमात्र उद्घोष यही था कि,
    " कृण्वन्तो विश्र्वमार्यम "

    सबको श्रेष्ठ, सुसँस्कृत बनाओ !
    ऋग्वेद 9/63/5, अध्याय 3.2
    ब्लॉगर पर इन कृण्वन्तो को घास चरते न पाकर अक्सर चिन्ता होती है कि, क्या हम विश्र्वमार्यम के अगुआ ऎसे ही बनेंगे ?

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  47. मुझे लग रहा था कि मैं बहुत देर से यहां आया.. मगर टिप्पणियों कि बरसात अभी तक जारी है.. गुरूदेव डा.अमर जी ने जो भी कहा उससे शत-प्रतिशत सहमत हूं.. मैं यहां उनके पहले कमेंट की बात कर रहा हूं.. उनका लिखा यह वाक्य मैं लिखना चाहता था - "आदरणीय रचना जी की एकाँगी टिप्पणी को छोड़ यहाँ कुछ भी ऎतराज़ करने योग्य नहीं है" मगर बाद में आयी एक टिप्पणी मुझे एतराज योग्य जरूर लगी, वह किसी महिला की नहीं एक पुरूष की टिप्पणी थी..

    नीरज जी कि तमतमाई टिप्पणी भी हिंदी ब्लौगिंग का यथार्थ बन चुकी है.. कुछ लिखो तो बवाल, ना लिखो तो बवाल जैसी बात..

    जवाब देंहटाएं
  48. हम सभी जानते हैं कि पुरूष और स्‍त्री एक दूसरे के पूरक हैं .. और अपनी अपनी जिम्‍मेदारियों का अहसास दोनो को होना चाहिए .. पर कर्तब्‍यों के साथ अधिकारों से भी किसी को वंचित नहीं किया जा सकता .. मैं आदिवासी बहुल क्षेत्रों में रह चुकी हूं .. पच्‍चीस वर्ष पूर्व की बात करूं तो सार्वजनिक स्‍थानों में महिलाओं को छोटे छोटे भीगे कपडे में नहाकर नदी या पोखर से बाहर निकलकर बिल्‍कुल खुले में कपडे बदलते देखा है .. पर कभी भी किसी पुरूष के द्वारा अनुचित व्‍यवहार होते नहीं देखा और सुना .. अपनी मानसिकता को परिवर्तित करने की जगह हर बात पर महिलाओं पर दोषारोपण बिल्‍कुल उचित नहीं .. टिप्‍पणियों के रूप में सभी महिला ब्‍लॉगरों के एक स्‍वर को पढकर बहुत खुशी हुई .. किसी भी देश में, समाज में और परिवार में यदि सभी महिलाओं में यही एकता दिखाई पडे .. तो मेरा दावा है कि किसी एक महिला का बाल भी बांका नहीं किया जा सकता .. चाहे महिलाएं कुछ भी पहने या वे कैसा भी व्‍यवहार करे!!

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  49. अनूप शुक्ल - "की बात है जो लोग अपनी एक पोस्ट पर लोगों की प्रतिक्रियायें सहन कर सकने में असमर्थ है वह भारत भर की स्त्रियों को संस्कृति की सिखाइस दे रहा है कि अपना शर्म का गहना पहनो/लज्जा मत त्यागो।"
    ---
    ये तो छोटी दुनिया है जनाब ,बाहर निकल कर मंच से यही भाषण दीजिए और फिर आपसे लोग पूछेंगे कि -"आपको किसने अधिकार दिया यह तय करने का कि हम सब स्त्रियाँ क्या करें ?"
    स्त्रियों के लिए अरविन्द जी की अपमान जनक भाषा से उनके मन में छिपी स्त्री समाज के लिए छिपी नफरत(उनकी नज़र मेब्लॉगिंग करने वाली स्त्री की औकात भी) ज़ाहिर् होती है । ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे ! और यदि यह खालीपन का पिपहरी गान या अरण्य रुदन है तो यह समस्त ब्लॉगरों पर लागू होता है।कहना चाहिए कि हिन्दी का हर ब्लॉगर यहाँ आभासी स्पेस पर अपने खाली वक़्त में केवल अरण्य रुदनकर रहा है। सिर्फ स्त्रियाँ ही क्यों ?इतना बड़ा आक्षेप लगाने सेपहले आपको अपना चिट्ठा तो कम से कम् डिलीट कर ही देना चाहिए था ।

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  50. अदा जी की टिपण्णी से सहमत हूँ.. उनकी हिम्मत के लिए बधाई, वरना अक्सर लोग ऐसे मुद्दे पर कम ही बोलते है खैर इसे दूध का जला भी कहा जा सकता है.. वैसे इस पोस्ट पर जो कुछ भी हुआ है वो मेरे लिए नया नहीं है.. पिछले दो सालो में कई बार ये सब देख चुका हूँ.. ठेकेदारों की कमी नहीं है ब्लॉगजगत में.. ख़ास बात ये है कि इनके टेंडर कब खुलते है पता ही नहीं चलता.. वरना एक आध ठेका हम भी ले ले..

    दिक्कत ये है कि सब अपनी सोच को महान समझते है.. मिथिलेश ने अक्सर ऐसी पोस्ट लिखी है.. जिनसे मैं सहमत नहीं होता.. पर वो उनकी सोच है.. मैं उनकी सोच को बदलना भी नहीं चाहता.. पर मैं अपनी सोच पर नियंत्रण रख सकता हूँ.. मुझे ख़ुशी है कि मैं वैसा नहीं सोचता.. दरअसल हम खुद बेहतर बनने की बजाय दुसरो को बेहतर बनाना चाहते है.. जबकि हकीकत ये है कि यदि सभी लोग स्वयं को बेहतर बना ले तो समाज अपने आप ही बदल जायेगा..

    लम्बी चौड़ी टिपण्णी कर तो सकता हूँ.. पर मैं नहीं समझता उससे कोई क्रांति आ जाएगी..

    वैसे आज मुझे एक बात याद आ रही है. कि आप का व्यवहार तब नहीं आँका जा सकता जब आप सहज हो.. असलियत की पहचान तब होती है जब आप गुस्से में हो.. खैर वे लोग स्वतंत्र है अपनी पहचान बताने के लिए..

    अंत में अनुराग जी से जो सुना था.. फिर एक बार लिख रहा हूँ.. "करीब जाकर छोटे लगे.. वो लोग जो आसमान थे.."

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  51. @सुजाता जी ,
    बस इतनी ही स्रियाँ स्त्री समाज हैं या स्त्री समाज की प्रवक्ता हैं ?
    क्या वे जो इस मूर्खतापूर्ण प्रलाप से इसी ब्लाग जगत में ही अलग थलग है श्रेष्ठ नारियां नहीं हैं .
    आप लोगों की कुल उपलब्धि यही है की आप लोग खुद नारियों के प्रति घृणा और विद्वेष का वातावरण सृजित कर रही हैं -
    दुःख है यह वृहत्तर नारी समाज के लिए यह श्रेयस्कर नहीं है -रचना सिंह ने अकेले कई नारी विद्वेषी /निंदक ब्लॉग जगत में तैयार किये हैं ,उनकी यही जमापूजी है और अब आप लोग उनकी ही परियोजना को आगे बढ़ाने में जाने याअंजाने जुट गयी हैं -देखना है इससे कितना सौहार्द और सामजस्य पूर्ण परिवेश सृजित होता है !
    मेरी बात तो यही है की ब्लॉग जगत में पदार्पण के पहले मुझे नारीवाद के बारे में नहीं पता था -डिक्शनरियों में नारी निंदक (मीसोजिनिस्ट )शब्द पढ़े थे
    या तो मानस का नारी निंदा प्रसंग -लगता है सब सुचिंतित ही थी -ब्लॉग जगत का घोषित नारी निंदक होकर मैं यही सोच रहा हूँ !
    जो मैं मूलतः नहीं था उसे मुझे बना दिया गया है -श्रेय सुश्री रचना सिंह और अब आप जैसी मोहतरमाओ को है/
    और हाँ ब्लॉग भी मेरे लिए हाथ के मैल जैसा ही है -मिटा दूंगा -क्या फर्क पड़ता है ! मगर रक्त की बूंदे जो गिरेगीं उनसे अनेक नारी निंदक पैदा होते जायेगें .
    पर निंदा किस नारी की ? पुराणों से उद्धरण दूं या ब्लागजगत से या आधुनिक विश्व से .....मंथन कर लीजियेगा तनिक !

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  52. It is always a pleasure,indeed, to have Dr.Amar Kumar in the discussions. His comments assure me that i am not at a wrong place in right time .

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  53. और अँत में..
    हे ईश्वर, इन्हें क्षमा करना ।
    क्योंकि यह स्वयँ ही नहीं जानते कि अकारण क्यों कुँठित हैं ।

    @सुजाता,
    यह विषय अपनी पूरी शिद्दत के साथ जारी रहनी चाहिये ।
    पुरातन सोच अपने बदले जाने का प्रतिरोध आख़िर क्यों न करे ?
    यह अवश्यसँभावी है । सदियों की जमी काई खुरचने में घर्षण की आवाज़ होगी तो होगी । कुछ धारणायें इतने गहरे पैठ बना चुकी हैं कि वह इस तरह के बहसों से शनिः शनैः स्खलित होंगी ।
    You can't treat a chonic constipation with a sigle dose of catharsis, after all !
    कल्पना करिये कि राजा राममोहन रॉय आज हमारे बीच ब्लॉगिंग कर रहे होते, तो माहौल क्या होता ?
    अवश्य ही, वह नारी-पद चुम्बन श्रेष्ठ के ख़िताब से अब तक नवाज़े जा चुकते । मेरा समयाभाव आड़े आता है, पर यह विषय अपनी पूरी शिद्दत के साथ जारी रहनी चाहिये ।


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  54. Just saw Munees's appreciation for me,
    Its not so, nothing is artificial in my comment, Gentleman !
    I just express an iota of what I use to see in surroundings and think likewise.
    No appreciations please.. It spoils a man !

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  55. @डाक्टर साहब इतनी देर बाद आँखों के सामने नितम्ब चर्चा फ्लैश कर गयी क्या ?
    अरे प्रोफेसन हमरा भी है काह्ने को अकेले दुहाई देते हो -
    कोई काम इमानदारी से करो न
    आप तो खैर पहिले से ही घोषित पुरुष नारीवादी हो
    सब लोग यहाँ नाम दर्ज करा लो -ताकि सनद रहे और आगे वक्त बे वक्त काम आये!

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  56. @डॉ अरविन्द
    मेरी "जमा पूंजी" कि चिंता ना करे उसके लिये मेरे अपने हैं जिनको कानून वो मिल जायेगी !!!।

    @ अनूप वैसे बात बड़ी मामूली थी कि एक पोस्ट पर कमेन्ट आये उनकी चर्चा यहाँ हुई और सम्वत स्वर से जो "निवारण " मेरे कमेन्ट मे उस पोस्ट पर था उसका अनुमोदन हुआ अब इस मे अगर मे खुश हुई और मैने वो जाहिर भी करदी तो क्या गलत हुआ !!!!!!!! कभी कभी खुश हो लेने दिया करे नज़र लग जाती हैं क्युकी खुशियों कि उम्र कम ही होती हैं ।

    @डॉ अमर
    प्रणाम sadistic pleasure बहुयामी हो चला हैं !!! ।

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  57. माहौल को विषाक्त बनाने में एकाध सज्जन कर्मनाशा को बहाने पर उतारू हैं , पर विष का
    मार्जन भी होता है , उम्मीद है कि सचेत बुद्धि और रचनात्मक ऊर्जा के साथ कर्मनाशा की
    धार को गंगा में बदलेंगे ब्लोगर , क्योंकि विचार का खुला मंच आशावादी बनाता है ... अतः
    यह परियोजना ( जिससे पुरुष-वर्ग डरा है ) चलती रहनी चाहिए ....
    डा. अमर कुमार के वाक्य में कहना चाहूँगा '' पर यह विषय अपनी पूरी शिद्दत के
    साथ जारी रहना चाहिए । ''

    जवाब देंहटाएं
  58. टिप्पणियों का अर्ध शतक पूरा हो गया और मुझे लगता है "हरी अनंत हरी कथा अनंता " की तर्ज पर यह धरा अनवरत रूप से प्रवाहित होती रहेगी, ब्लॉग पर कुछ भी सृजनात्मक पढने को मिलने की बजाय ये सब मिल रहा है , समाज में वर्ण ,जाति,देश राज्य ,भाषा के भेद काफी नहीं थे जो अब लिंग भेद पर भी पूरी की पूरी महाभारत लिखी जाए ...........
    नारी का जन्म सृजन के लिए हुआ है ,,,,चलिए ये सब छोडिये कुछ ताज़ा लिखते है

    जवाब देंहटाएं
  59. मैं तो ऐसी बहसों को पढ-पढ़कर उकता चुका हूं… वही लोग, वही टिप्पणियाँ, वही रुख, वही जूतमपैजार… नारियों को उनके विवेक के अनुसार काम करने के लिये छोड़ क्यों नहीं देते यार… बन्द करो ये सब… दिमाग पक चुका है… :)

    जवाब देंहटाएं
  60. यही तो रोना है,नारियाँ, हज़ार जिम्मेवारियों का बोझ वहन कर के भी अपना अस्तित्व कैसे बचा लेती हैं??उन्हें अपना अस्तित्व मिटाकर, इन स्वः नामित संस्कृति रक्षकों के बताये राह पर, पग पग पर उनकी सलाह के अनुसार चलना चाहिए.

    जवाब देंहटाएं
  61. भाई ये सब हमें तो बिल्कुल भी अच्छा लगता नहीं कि किसी नारी को सताया जाय । कबीरदास जी ने भी कहा है :

    नारी को न सताइये, जाकी मोटी हाय ।

    राम राम !

    जवाब देंहटाएं

  62. @ डाक्टर अरविन्द मिश्र जी,
    " आप तो खैर पहिले से ही घोषित पुरुष नारीवादी हो "
    तो इसमें बुरा क्या है ? मुझे एक नारी ने ही कोख में सींच कर धरती पर उतारा है । स्तन के घाव की परवाह न करते हुये भी भूखा नहीं रहने दिया है । अँतरँगता के खालीपन को बहनों ने पूरा है । मानस रचयिता तुलसी का पेटेन्ट हुआ तो क्या, प्रेमिका की तिक्तता ने मुझे भी सुदृढ़ता दी है । वही कालाँतर में सहचरी बन मेरे सँग खड़ी है - सही ट्रीटमेन्ट मिलने पर पत्नियाँ पुरुष के रुग्ण मानस का पथ्य होती हैं । अपने अस्तित्व से नारी को अलग करके कोई कैसे देख सकता है ?

    यदि कुछ नीचे उतर कर पशुवत स्तर पर देखूँ, तो पेट की भूख से लेकर यौनपिपासा तक की तृप्ति का कारक नारी ही है ।
    परतँत्र कौन.. और इससे मुकरना कैसा ?
    यदि आप यह नहीं मानते कि वह प्रजनन की औज़ार मात्र हैं तो उनके जनन-तँत्र के बॉयोलॉज़िकल एलिमेन्ट को अलग करके उनको एक व्यक्तित्व के रूप में लें, किसी वेद पुराण को खँगालने की आवश्यकता ही न पड़ेगी ।
    अपनी पहचान सिद्ध करने के लिये हर जगह हर बिन्दु पर असहमत बने रहना ठीक नहीं, और आज मेरे साप्ताहिक अवकाश का दिन भी है, अतः इदम इति करोमि ।
    और भी काम हैं निपटाने को, इस मँथन के सिवा !

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  63. ----चलिए बातें बहुत हुई अब ठोस निर्णय लिया जाय,बगैर कठोर निर्णय के कोई सुधार नही होगा ---
    १-महिला दिवस की पूर्व संध्या पर हम सभी महिला मंच के लोग रचना दीदी के नेतृत्व में यह सपथ लें कि ब्लॉग-जगत में किसी भी पुरुष ब्लागर की पोस्ट पर टिप्पड़ी नही करेंगे???????????-
    २-जो पुरुष ब्लागेर बंधू हैं उनसे भी मेरी अपील की किसी महिला के पोस्ट पर आज-अभी से कोई टिप्पड़ी पोस्ट नही करेंगे????????महिला पोस्ट पर महिलाओं कीटिप्पड़ी -पुरुष पोस्ट पर केवल पुरुषों की---
    ---बात खत्म-नया निर्णय शुरू,मुझे उम्मीद है यही सबका निर्णय होगा---
    -----और यही होना भी था न--------

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  64. ----चलिए बातें बहुत हुई अब ठोस निर्णय लिया जाय,बगैर कठोर निर्णय के कोई सुधार नही होगा ---
    १-महिला दिवस की पूर्व संध्या पर हम सभी महिला मंच के लोग रचना दीदी के नेतृत्व में यह सपथ लें कि ब्लॉग-जगत में किसी भी पुरुष ब्लागर की पोस्ट पर टिप्पड़ी नही करेंगे???????????-
    २-जो पुरुष ब्लागेर बंधू हैं उनसे भी मेरी अपील की किसी महिला के पोस्ट पर आज-अभी से कोई टिप्पड़ी पोस्ट नही करेंगे????????महिला पोस्ट पर महिलाओं कीटिप्पड़ी -पुरुष पोस्ट पर केवल पुरुषों की---
    ---बात खत्म-नया निर्णय शुरू,मुझे उम्मीद है यही सबका निर्णय होगा---
    -----और यही होना भी था न--------

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  65. @गुरुवर अमर कुमार
    आपको सेल्यूट है..

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  66. तो अब क्या तनु जी की बात ब्लाग - जगत का फैसला है ?

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  67. अपनी सारी ब्लॉग की सक्रियता को कल से इस चिट्ठे पर केन्द्रित कर
    रखा हूँ , बड़ा अच्छा लगा , सार्थक सा !
    नहीं तो रस्म-अदायगी में पोस्टें तो आया ही करती हैं !
    .
    @जो पुरुष ब्लागेर बंधू हैं उनसे भी मेरी अपील की किसी महिला के पोस्ट पर आज-अभी
    से कोई टिप्पड़ी पोस्ट नही करेंगे????????महिला पोस्ट पर महिलाओं कीटिप्पड़ी -पुरुष
    पोस्ट पर केवल पुरुषों की
    ------------------ भावावेश में निकली बातें अक्सरहा सही और अनिवार्य नहीं होतीं !
    व्यवहार का अयथार्थ , भाषा का अयथार्थ क्यों बने ! इतना तो औदार्य अपेक्षित है आपसे !

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  68. अपनी सारी ब्लॉग की सक्रियता को कल से इस चिट्ठे पर केन्द्रित कर
    रखा हूँ , बड़ा अच्छा लगा , सार्थक सा !
    नहीं तो रस्म-अदायगी में पोस्टें तो आया ही करती हैं !
    .
    @जो पुरुष ब्लागेर बंधू हैं उनसे भी मेरी अपील की किसी महिला के पोस्ट पर आज-अभी
    से कोई टिप्पड़ी पोस्ट नही करेंगे????????महिला पोस्ट पर महिलाओं कीटिप्पड़ी -पुरुष
    पोस्ट पर केवल पुरुषों की
    ------------------ भावावेश में निकली बातें अक्सरहा सही और अनिवार्य नहीं होतीं !
    व्यवहार का अयथार्थ , भाषा का अयथार्थ क्यों बने ! इतना तो औदार्य अपेक्षित है आपसे !

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  69. Main aisi koi shapath nahi le rahi hun...
    ye to paashaan yug ki vapsi ka raasta hai..
    sorry..ye main nahi kar sakti..

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  70. माफ़ कीजिये ...हम ऐसी कोई शपथ नहीं लेंगे ....इससे अच्छा है ब्लोगिंग को ही अलविदा कह दे ...!!

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  71. हाँ,अदा सही कहा...वरना लगेगा...सउदी अरेबिया में रह रहें हैं...ये कैसी बच्चों वाली शर्त है...:)

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  72. tanushri ji kae profile par koi email id nahin so mera usnae koi vyaktigat sampark hi nahin haen
    aaj ek do logo sae puchha bhi par koi jyadaa bataa nahin payaa

    dusri baat unki tippani mujhe kewal unhi blog par diktee haen jahaan dr arvind ki tippani hotee haen sabsey pehlae maene inko shri gyandutt pandey ji kae blog par daekhaa thaa kaemnt kartey is link par

    http://halchal.gyandutt.com/2010/01/blog-post_08.html

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  73. तनुश्री की बात अजीब है !!क्या हो गया है ?

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  74. मैं भी कोई शपथ नहीं लेने वाली. हम कोई पुरुष विरोधी नहीं हैं. हमारा विरोध हमेशा से पुरुषवाद से रहा है, पितृसत्ता से रहा है, जिसकी वाहक महिलाएँ भी होती हैं. वे महिलाएँ जो मुद्दों की लड़ाई में या तो चुप रह जाती हैं या नारी का ही विरोध करती हैं. ऐसी नारियों के कारण ही ये कहावत बनी है "औरत ही औरत की दुश्मन होती है." पितृसत्ता ने हमेशा ही इस तरह नारी को नारी के विरुद्ध खड़ा करने की कोशिश की है. जो नारी पितृसत्ता के विरुद्ध खड़ी होती है, उसे पुरुषविरोधी घोषित कर दिया जाता है. इसी तरह आज जब इस मंच पर सभी नारियाँ एक हो रही हैं, तो मुद्दे को दूसरा मोड़ देने की कोशिश हो रही है. यह प्रस्तुत करने का प्रयास हो रहा है कि हम सभी नारियाँ, जो यहाँ टिप्पणी कर रही हैं, वे सब चाहती हैं कि औरतें एक ओर हो जाये और पुरुष दूसरी तरफ़.
    मैं एक बात स्पष्ट तौर पर बता देना चाहती हूँ कि यहाँ जो भी औरतें टिप्पणी कर रही हैं, यह उनकी स्वतःस्फ़ूर्त प्रतिक्रिया है. किसी ने ऐसी कोई योजना नहीं बनाई, न ही कोई किसी को बरगलाकर यहाँ लाया है, जैसा कि कुछ ब्लॉग पोस्ट के द्वारा प्रचारित करने की कोशिश की जा रही है कि यह सब सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है.
    औरतें न तो इतनी बेवकूफ़ हैं कि उन्हें कोई भी बरगलाकर अपने स्वार्थ के लिये या किसी को नीचा दिखाने के लिये इस्तेमाल कर ले और न ही इतनी कमज़ोर कि उन्हें उपर्युक्त प्रकार की शपथों का सहारा लेना पड़े. यहाँ जो भी औरत ब्लॉग या टिप्पणी लिखती है, वह उसका व्यक्तिगत निर्णय होता है. कोई किसी को इस प्रकार के बचकाने निर्णय लेने के लिये बाध्य नहीं करता और न कर सकता है.

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  75. प्रियजनों के ब्लॉग /प्रिय ब्लॉग पर न जाने की शर्त कितनी कठिन हैं न ?और हाँ शोले का ही तो एक और डायलाग है न -गब्बर सिंह बोलता है -बड़ा याराना है न उससे नाच नाच एसई कुछ अब याददाश्त भी साथ छोड़ रही ससुरी ...
    फिर नारीवाद का सतत अनुमोदन भी तो होते रहना चाहिए .....
    मैंने तो तनु श्री के कथन का निहितार्थ समझ कर टिप्पणियाँ बंद भी कर चुका हूँ
    नारी के ब्लागों पर -अब घोषित नारी विरोध का मेरा भी तो अजेंडा है और मुझे भी अब अपनी
    दूकान चलानी है -नहीं तो भुखमरी का शिकार हो जाऊंगा ! अब तो कोई कन्धा भी देने वाला नहीं
    मुझे तो अब अपनी फ़िक्र करनी ही होगी -हाँ अब घोषित पुरुष नारीवादियों के ब्लॉग
    भी नहीं झाकने जाऊँगा तब भी नहीं जब उन्हें साहित्य का नोबेल मिल जाय !
    हम पाषाण काल में तो पहुँच ही गए हैं -अब विकास का स्वरुप उलटने वाला है दिल थाम कर बैठिये!

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  76. लगता है हाथों के तोते उड़ गए :-)

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  77. आश्चर्य में था कुछ बात को लेकर पर रचना जी द्वारा दी गयी लिंक
    से 'नीर-क्षीर-विभाजन' हो गया !
    आभार !
    .
    मुक्ति जी की बात सही है ,
    '' जाति न पूछो साधु की
    पूछ लीजिये ज्ञान |
    मोल करो तलवार का ,
    पडी रहन दो म्यान || ''
    ---------- फिजूल की राजनीतिक - उथली - जड़ - गर्वभरी कवायदों से
    बेहतर है कि बातों का तार्किक उत्तर दिया जाय !

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  78. .
    .
    .
    मैं सिर्फ यही कहना चाहूँगा कि नारीवाद-पुरूषवाद, पितृसत्तात्मक समाज-मातृसत्तात्मक समाज के पचड़े-झगड़े में पड़े बिना कुछ पुरूषों को अपनी वह मानसिकता बदलने की जरूरत है जिसके दम पर वह अपना जन्मजात अधिकार मानते हैं औरत की सोच पर... हर समय औरत को यह निर्देश देते फिरते हैं कि उसके लिये अच्छा क्या है.. उसे क्या करना और क्या नहीं करना चाहिये...कैसे कपड़े और कैरियर चॉईस उसके लिये बेहतर रहेगी...

    इस तथाकथित जन्मजात अधिकार का आधार यही पुरूष बनाते हैं अपनी प्राचीन और महान संस्कृति और सभ्यता को...

    बानगी देखिये...

    नारी के संस्कार, शील व लज्जा से किसी भी देश की सांस्कृतिक पवित्रता बढ़ती है , लेकिन यदि इसके विपरीत होने लगे , नारी का शील उघड़ने लगे , लज्जा वसन छूटने और लुटने लंगे तो सांस्कृतिक प्रदुषण बढ़ता है ।


    आधुनिकीकरण के दुष्प्रभावों से भारतीय नारी भी बच नहीं पाई है। 'सादा जीवन, उच्च विचार' की उदात्त संस्कृति में पली यह नारी अपने को मात्र सौन्दर्य और प्रदर्शन की वस्तु समझने लगी है।

    यह समझ लेने की बात है कि यदि नारी-चरित्र सुरक्षित नहीं रहा तो सृष्टि की सत्ता भी सुरक्षित नहीं रह पायेगी क्योंकि नारी में ही सृष्टि के बीज निहित हैं।

    वह युवावस्था में पुरूष की प्रेमिका रहती है, प्रौढ़ की मित्र और वृद्ध की सेविका रहती है।

    भारतीय नारी अपनी लज्जा के लिए विश्व प्रसिद्ध है। शर्म उसका प्रिय गहना है,

    नारियों का संपर्क ही उत्तमशील की आधारशिला है। शीलवती नारियो के संपर्क में आकार ही पुरूष चरित्रवान, धैर्यवान, एवं तेजस्वी बनता है।

    फिर भी पता नहीं क्यों आधुनिकता के चक्कर मे पड़ी नारी पश्चिमी देशों के बनाए हुए अंधे रास्ते पर चलकर ग्लैमर की दुनिया में खोना चाहती है। और यही वह कदम है जो पंरपरागत मूल्यों पर चलने वाली कल की नारी और आज की स्वच्छंद नारी में अंतर स्पष्ट करता है। भारतीय नारी भारतीय संस्कृति के परंपरागत मूल्यों को त्यागकर विदेशी नारी की नकल कर रही है।



    हटो किनारे भाई... पृथ्वी के ऊपर विचरण कर रहे हर मनुष्य के पास अपना दिमाग है और जिंदगी में क्या उसे पाना है, अपना जीवन कैसे जीना है इसकी समझ भी...Now, Will you stop this nonsense please...चलो हटो किनारे, थोड़ी ताजी हवा आने दो न यार... बहुत सडांध कर दी है इन ठहरे हुऐ निर्देशों ने ब्लॉगवुड में...

    जवाब देंहटाएं

  79. Why are you aggravating the things, Dr. Arvind ?
    Is it a platform to settle personal scores ? Everyone has a right to nurture his inherent ideas derived from his own experiences !

    You are a scientist, as I assume.. that deepens your responsbility for the Genre not the Gender !
    As far as -हाँ अब घोषित पुरुष नारीवादियों के ब्लॉग
    भी नहीं झाकने जाऊँगा तब भी नहीं जब उन्हें साहित्य का नोबेल मिल जाय ! is concerned, Who Cares for it ?
    I did n't compromised on print media, so Why should I tailer my thoughts to gratify a few ?
    Welcome !

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  80. @ हम पाषाण काल में तो पहुँच ही गए हैं -अब विकास का स्वरुप उलटने वाला है दिल थाम कर बैठिये!
    आपका ही पूर्व-प्रयुक्त शब्द आपको नवाज रहा हूँ --- '' अरण्य - रोदन '' !
    '' द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र '' , '' आह उत्सुक है तुमको धूल '' !!!
    .
    @ लगता है हाथों के तोते उड़ गए :-)
    अच्छा हुआ तोते उड़ गए नहीं तो क्या पाया हाँथ ही उड़ जाते !
    मैं नहीं चाहता कि कोई ठाकुर की नियति को प्राप्त हो !
    [ सन्दर्भ : '' .... और हाँ शोले का ही तो एक और डायलाग है न -गब्बर सिंह बोलता है -
    बड़ा याराना है न उससे नाच नाच ..... '' ..... साभार ; '' पूर्वोक्त - अरण्य - रोदन '' .... ]
    .
    .
    संतोष हो रहा है ,यह उपलब्धि क्या कम है कि लोगों को लग रहा है कि '' हाथों के तोते उड़ गए '' ! इत्यलम् !

    जवाब देंहटाएं
  81. प्रियेषा को ...
    मैं भी दुगुने आवाज में चीखते हुए एक एक शब्द को चबाते हुए से बोला -
    "स्टेशन पर जहाँ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन लिखा हुआ है उसके ठीक सामने देखो.... "और मैंने अनिर्दिष्ट
    दिशा में हवा में हाथ भी लहराया ...
    " हद है पापा, गरीब रथ कहाँ नई दिल्ली से जाती है ,पुरानी दिल्ली से जाती है " वह सातवे सुर में बोल रही थी ..
    मानो मुझमें स्प्रिंग सा लग गया हो उछल कर खड़ा हो गया ,मोबाईल हाथ से छूटते छूटते बचा -सुरक्षा कर्मीं भी अचानक हुई इस हलचल से सकपका गया और मुझे अविश्वास से देखने लगा ...
    '' वहीं रुकिए मैं पहुँच रही हूँ " मानों बेटी को भान हो गया था कि यह संस्मरण लम्बा खिंच जायेगा और उसे विराम देने (मेरी और फजीहत न हो और इज्ज़त कुछ तो बंची रहे, )उसने मुझे खुद लेने का फैसला लिया -(आखिर बेटी है न ! पापा की इज्ज़त प्यारी है उसे )


    jitna samay dr arvind yug parivartan ki chinta mae lagaatey haen utna samay railway ki saarni ko dakhnae mae lagaa tey to pyari bitiya presha ko itni pareshni naa ho .

    http://mishraarvind.blogspot.com/2010/02/blog-post_27.html

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  82. arey bhai bina nari k to bhagwaan bhi adhure hai...fir kya bina nariyo ke comments k purusho ka blog sampoornta payega???????to ab bas band kariye is behas ko.

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  83. नारी तुम श्रद्धा हो जब तक चुपचाप मंदिर की मूर्ति की तरह विराजों. यदि तुम चाहो कि तुम मूर्ति से निकल कर घूमोगी बाहर पुरुष की तरह तो श्रद्धा की पात्र नहीं रहोगी. तुम्हें हम ये कहेंगे और वो भी. वैसे तो मंदिर में कहाँ छोड़ा तुम्हें, देवदासियों का हाल जानती ही हो तुम, स्टेज पर नाचने को निमंत्रण मान लेंगे. छोड़ा नहीं साड़ियों में लिपटी या स्कर्ट में लजाती तुम्हें. आज जब तुम चाहो कि तुम्हें श्रद्धा नहीं सहचर्य चाहिये तो हम मुहावरे तलाशेगे, लज्जा के, शील के,मूल्यों के, परंपरा के. निर्णय तुम्हें लेना है, मुक्ति, अदा,वाणी,रचना कि मुहावरों से सहम कर तुम्हें चाहिये मूर्ति बन विराजना मंदिर में या शक्ति बन विचरना धरा पर.

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  84. @ बी एस पाबला
    शुक्रिया !
    आप न बताते तो इस अर्थ तक पहुंचना संभव न था !
    .
    पर ऐसे मौके पर आपसे थोड़ा विस्तार में लिखे जाने
    की उम्मीद थी , कम-से-कम बात तो स्पष्ट हो जाती
    मुझ से स्थूलबुद्धि को !
    और वैसे भी कभी - कभी '' वचने का दरिद्रता '' की
    सूक्ति पर भी ध्यान दिया करें तो भला हो इस ब्लॉग जगत का !

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  85. पाबला जी,
    पता नहीं क्यूँ ...ये तनुश्री जी भी मुझे मुखौटा ही लग रहीं हैं ...इनके ब्लॉग पर इनकी अपनी कोई कृति नहीं है ...सब 'इनकी' पसंद की हैं...
    ये भी मुझे उसी तरन्नुम की जोड़ीदार ही लग रही हैं....एक बात और भी गौर करनेवाली है....कि ये हमेशा कुछ ही विशिष्ठ, वरिष्ठ ब्लॉगरस के आस-पास ही नज़र आतीं हैं...
    मुझे बड़ा ही अटपटा लगा है इनका इस तरह ब्लॉग जगत के behalf में फैसला सुनाने की हिम्मत करना ...वो भी बिना सिर-पैर का फैसला...
    सहमती-असहमति अपनी जगह है लेकिन ब्लॉग जगत को सुरक्षित बनाने की जब भी बात आएगी हम साथ-साथ हैं....इसी अधिकार से मैं आपसे निवेदन करती हूँ ...ज़रा देखिएगा....तोते तो सचमुच के हैं पर क्या हाथ भी सचमुच के हैं....?
    आभार...

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  86. @ अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
    विस्तार में न लिखे जाने का एक व्यक्तिगत कारण था।
    @ 'अदा'
    आप को तो बता चुका वह कारण :-)

    जवाब देंहटाएं
  87. रचना जी एवं अन्य को कहना चाहूँगा कि गड़े मुर्दे न उखाडें.. यहाँ जिस मुद्दे पर बात हो रही है उस पर बात करें.. नहीं तो फिर एक ढंग का मुद्दा गड़े मुर्दे के पीछे गायब हो जायेगा..

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  88. बाप रे, पहले हम भी अपनी राय रखने वाले थे पर अब हम कुछ नहीं कहेंगे, पता नहीं महिला मुक्ति मोर्चा या पुरुष आर्मी पीछे पड़ जाय। बस इतना कहेंगे कि मिथिलेश जी का लेख पढ़ा उनकी भावनायें शायद किसी ने समझी नहीं, बल्कि उसका अर्थ कुछ और निकाल लिया। बाकी इस नूरा-कुश्ती से कुछ हासिल होने वाला नहीं है।

    वैसे हमारे अज्ञातवास के दौरान पिछले दो साल में पता नहीं कितने मोर्चे, खेमें डेवलप हो गये हैं। किसी न किसी मोर्चे को जॉइन करना कम्पलसरी तो नहीं बना दिया गया है ब्लॉगरों के लिये? :-)

    जवाब देंहटाएं
  89. रचना जी एवं अन्य को कहना चाहूँगा कि गड़े मुर्दे न उखाडें.. pd in which comment of mine i have done this here please give full context when you take my name so that i know what you are talking about

    like tanushree ji has taken my name to draw attention i feel you have also doen the same

    all my comments are related to this post only

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  90. करीब जाकर छोटे लगे.. वो लोग जो आसमान थे..

    जवाब देंहटाएं

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