शेक्सपीयर जी ने जब यह बात कही होगी तो उनके ऊपर भोलेपन का दौरा पड़ा होगा. ऐसा दौरा न पड़े तो कौन ऐसी बात कहे? पता नहीं तब उन्हें भारत के बारे में कितनी जानकारी होगी? कितना सुना होगा उन्होंने? इस बात का इतिहास में कहीं जिक्र नहीं है.
हो सकता है उन्हें भारतवर्ष की जानकारी ही न हो. अगर होती तो ऐसा नहीं कहते. वैसे भी अगर वे नास्त्रेदमस की तरह भविष्य देख पाते तो भी ऐसा नहीं कहते. अगर उनके अन्दर भविष्य देखने की कूबत होती तो वे देख पाते कि उनके भाई-बन्धुवों से स्वतंत्र होने के बाद भारत में नाम की क्या महत्ता होती. अगर ऐसा हो जाता तो वे बिना शर्त अपनी इस बात को वापस ले लेते. माफी मांगते, सो अलग.
अब अगर आप यह सोच रहे हैं कि मैं ऐसा क्यों लिख रहा हूँ तो बता देता हूँ. वैसे नाम की महत्ता से हम भारतीय परिचित हैं. ऐसे में मुझे विश्वास है कि आप ऐसा नहीं सोच रहे होंगे. हाँ तो नाम की बात मैं बता रहा था कि मैं ऐसा क्यों लिख रहा हूँ. उसका कारण है हर्षवर्धन त्रिपाठी जी की पोस्ट.
वे लिखते हैं;
"बांद्रा-वर्ली सी लिंक, राजीव गांधी ब्रिज—ये दोनों नाम एक ही पुल के हैं। पहला नाम बांद्रा-वर्ली सी लिंक- वो, है जो पुल बनने की योजना बनने के समय से लोगों के जेहन में दर्ज है। भौगोलिक, स्थानीय आधार पर देश के पहले समुद्री पुल की असली पहचान बताता है।
दूसरा- राजीव गांधी ब्रिज वो, नाम है जो सिर्फ इसलिए रखा गया कि महाराष्ट्र में कांग्रेस की सत्ता है। केंद्र में भी कांग्रेस की सरकार है। स्वर्गीय राजीव गांधी की पत्नी सोनिया और उनका बेटा राहुल देश के सबसे ताकतवर लोग हैं। यही वजह है जो, मुंबई की नई पहचान पर राजीव गांधी का नाम लिख दिया गया।"
अब बताईये, ऐसा क्यों न हो. हवाई जहाज की यात्रा करके सोनिया जी दिल्ली से मुंबई जाएँ. किस लिए? एक अदद रीबन काटने के लिए? इतनी मेहनत, इतना समय लगाकर कोई दिल्ली से मुंबई पहुंचेगा केवल एक रीबन काटने के लिए? यह तो बड़ी नाइंसाफी होगी. रीबन काटने का कुछ तो मिलना चाहिए. अब पैसा वगैरह की लालच तो उन्हें है नहीं. ऐसे में भरपाई अगर नाम से की जाय तो इसमें बुराई क्या है?
लेकिन कुछ लोग हैं कि इसका विरोध कर रहे हैं. कौन लोग हैं, यह तो आप हर्षवर्धन जी की पोस्ट पढ़कर ही जानिए. अपनी राय भी व्यक्त कीजिये.
लेकिन ये नाम वाली बात पर कुछ संशय भी है. वो इसलिए कि अनामी, बेनामी वगैरह अपने कर्म से पहचाने जाते हैं. या कह सकते हैं कि कर्म से भी नहीं पहचाने जाते. मेरा मतलब अपने ब्लॉग जगत में व्याप्त अनामी टिप्पणियों से हैं. शायद अनामी भाइयों की बात शेक्सपीयर बाबू ने गेस कर लिया हो. इसलिए उन्होंने ऐसा कहा होगा.
खैर, आज रचना बजाज जी ने बेनामियों के लिए किसी अज्ञात कवि की एक कविता पोस्ट की है. कुछ सीख टाइप दी गई है कविता में. अज्ञात कवि लिखते हैं;
भला किसी का कर न सको तो बुरा किसी का मत करना,
पुष्प नही बन सकते तो तुम कांटे बन कर मत रहना.
बन न सको भगवान अगर तुम, कम से कम इन्सान बनो,
नही कभी शैतान बनो तुम, नही कभी हैवान बनो.
सदाचार अपना न सको तो पापों मे पग ना धरना,
पुष्प नही बन सकते तो तुम कांटे बन कर मत रहना.
भला किसी का……
पूरी कविता आप रचना जी के ब्लॉग पर ही पढिये.
हाँ, एक बात ज़रूर है. कविता को पढ़कर अनामी, बेनामी वगैरह कह सकते हैं कि; "भगवान बनने में वो मज़ा नहीं जो अनामी बनने में है."
कविता की बात चली है तो आपको एक नवगीत पढ़वाता हूँ. डॉक्टर श्रीमती अजित गुप्ता ने लिखा है. वे लिखती हैं;
एक गाँव में देखा मैंने
सुख को बैठे खटिया पर
अधनंगा था, बच्चे नंगे,
खेल रहे थे मिटिया पर।
मैंने पूछा कैसे जीते
वो बोला सुख हैं सारे
बस कपड़े की इक जोड़ी है
एक समय की रोटी है
मेरे जीवन में मुझको तो
अन्न मिला है मुठिया भर
एक गाँव में देखा मैंने
सुख को बैठे खटिया पर।
सुन्दर गीत है. आप पढिये और सराहिये.
कविताओं की बात आगे बढ़ाता हूँ और आप को विवेक सिंह जी की कविता पढ़वाता हूँ. अरे वाह. ये तो कविता टाइप हो गया. संगत का असर है. विवेक हमारे शिष्य हैं. ऐसे में असर तो होगा ही.
खैर, आप विवेक की कविता पढिये. पाठकों के लिए उन्होंने कविता से पहले एक नोट दिया है. अरे पैसे वाला नोट नहीं. नोट बोले तो नोट. सूचना टाइप. वे लिखते हैं;
"इस कविता को पढ़ते समय कम्पनी द्वारा बीच में एक बार ही साँ लेने की अनुमति दी गयी है, इसलिए पहले लम्बा साँस लेकर आरम्भ करें !"
पढ़कर लगा जैसे बाबा जी टाइप लोग कोई प्राणायाम करवाने से पहले जैसा नोट बोलते हैं, वैसा कुछ है. खैर, आप कविता पढिये. शीर्षक है; देवी तेरी महिमा अपार. वे लिखते हैं;
मैं होश सँभाला हूँ जब से ।
तुझको महसूस किया तब से ॥
तू मेरे साथ रही हरदम ।
खुशियाँ हों या घेरे हों गम ॥
मैं होता हूँ जब महफ़िल में ।
तू रहती है मेरे दिल में ॥
जब कभी अकेला होता हूँ ।
तेरे सपनों में खोता हूँ ॥
अब किस देवी के बारे में कविता है यह तो आपको पूरी कविता पढ़कर ही पता लगेगा. या नहीं लगेगा. आप पूरी कविता विवेक के ब्लॉग पर ही पढिये.
एक मध्यमवर्गीय परिवार के मुखिया पर अपना घर बनाने के सपने से बढ़कर और क्या है? शायद कुछ नहीं. इसी सपने के बारे में भारती परिमल की कहानी पढिये. शीर्षक है, अपना घर. परिवार के मुखिया प्रकाश बाबू की कहानी है. बहुत प्रभावशाली है. एक अंश देखिये;
"यह तस्वीर हर उस मध्यम वर्गीय परिवार के मुखिया की मिल जाएगी जो अमीरी के ठाट-बाट अपना नहीं सकता, दिखावे की ज़िन्दगी जी नहीं सकता और समाज जिसे ग़रीबी की श्रेणी में रख नहीं सकता। ऐसे त्रिशंकु मुखिया की क्या हालत होती है यह वह खुद ही समझ सकता है। प्रकाश बाबू की हालत भी वैसी ही थी। उस पर मेहरबानी यह कि बड़ा परिवार जिसमें एक बूढ़ी माँ, तीन जवान होती बेटियाँ और जमाने की हवा के साथ रूख बदलते दो लड़के। हाँ गृहस्थी की चक्की में उनके साथ-साथ पिसने वाली जीवनसंगिनी भी थी। परिवार का मुखिया होने के नाते घर का पूरा दायित्व उन पर ही था। जिसे वे निभाने की पूरी कोशिश भी करते। एक मशीन की तरह जुटे हुए थे वे अपनी गृहस्थी में। दुनिया की तमाम रंगीनियों से दूर उनकी आँखों में एक ही सपना था- अपना घर बनाने का सपना।"
कस्बे के प्रेम-चित्र कैसे होते हैं? मेट्रोपोलिटन सभ्यता के शापिंग माल और मल्टीप्लेक्स सिनेमाघरों से कितनी दूर? या फिर गाँव के प्रेम-चित्रों के कितने नज़दीक? यह जानने के लिए संजय व्यास जी की पोस्ट पढिये.
एक चित्र तो यही देख लीजिये.
"बाहर से नौकरी करने इस क़स्बे में आए उस युवक ने मोहल्ले की तरफ़ जाने वाली गली के नुक्कड़ और मुख्य सड़क पर स्थित 'पुरोहित भोजनालय' के बाहर उस लड़की का इंतज़ार शुरू कर दिया जो टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज से उधर आने वाली थी,हमेशा की तरह। लड़की के आते ही वो उसे कनखियों से देखता था ताकि लोग उसके मन की थाह न ले सके। लड़की भी नहीं। पुरोहित की दाल आज अतिरिक्त तीखी थी जिसे वो प्रतीक्षा के कारण भरसक नज़रंदाज़ कर रहा था। पानी पीने के चक्कर में लड़की वहाँ से गुज़र कर गली में चली गई तो...."
बाकी के चित्र संजय जी की पोस्ट पर विजिट करके देखिये. गारंटी है कि आपको अच्छा लगेगा.
मिलावट की बातें आजकल खूब हो रही हैं. दूध में यूरिया मिल गया है तो घी में चर्बी. मावा में भी यूरिया मिल जा रहा है. उधर अरहर की दाल में केशारी की दाल मिल जा रही है तो जीरे के पाउडर में गोबर. सरकार इस मेल-मिलाप को चलने देना चाहती है. क्या फायदा? मिलने-मिलाने का काम क्या केवल इंसान ही करेंगे? चीजों को भी तो हक़ है मिलने-मिलाने का. आम इंसान की क्या औकात जो इस मेल-मिलाप के बारे में कुछ कह सके. पिछले कई दिनों से कमोडिटीज के बीच होने वाले इस प्रेम को टीवी वाले खूब दिखा रहे हैं. सही भी है. आखिर कितने दिन इंसानों के प्रेम-प्रसंग दिखाकर टी आर पी मेंटेन होगी?
शायद इसी मिलावट वाले किस्सों से प्रभावित होकर आज सिद्धार्थ जी ने एलान कर दिया कि भविष्य पुराण भी मिलावट से बच नहीं सका है. अपनी बात रखते हुए सिद्धार्थ जी ने लिखा;
"मेरे ख़याल से पुराणों का स्वरूप कुछ-कुछ हमारे ब्लॉगजगत जैसा रहा है। बल्कि एक सामूहिक ब्लॉग जैसा जिसमें अपनी सुविधा और सोच के अनुसार कुछ न कुछ जोड़ने के लिए अनेक लोग लगे हुए है। बहुत सी सामग्री जोड़ी जा रही है, कुछ नयी तो कुछ री-ठेल। बहुत सी वक्त के साथ भुला दी जा रही है। लिखा कुछ जाता है और उसका कुछ दूसरा अर्थ निकालकर बात का बतंगड़ बना दिया जा रहा है। लेकिन इसी के बीच यत्र-तत्र कुछ बेहतरीन सामग्री भी चमक रही है। अनूप जी के अनुसार यहाँ ८० प्रतिशत कूड़ा है और २० प्रतिशत काम लायक माल है। यहाँ सबको स्वतंत्रता है। चाहे जो लिखे, जैसे लिखे।"
बताईये हमें तो पता ही नहीं था कि हम ब्लॉग लिखने के बहाने जाने-अनजाने पुराण लिख रहे हैं. मतलब यह कि अपनी संस्कृति की न सिर्फ रक्षा कर रहे हैं बल्कि उसे आगे भी बढ़ा रहे हैं. लेकिन ये अनूप जी ने क्या कह दिया? अस्सी प्रतिशत कूड़ा है और बीस प्रतिशत ही काम का माल है.
सुबह से पोस्ट आई है. अभी तक अनूप जी का विरोध नहीं हुआ. यह अनर्थ क्यों? अरे और कोई नहीं तो बीस प्रतिशत वाले ही विरोध कर लेते. यह कहते हुए कि; " अनूप जी ने हमलोगों को माइनोरिटी क्यों बना दिया जी? हमें मेजोरिटी से बाहर क्यों कर दिया?"
शायद अभी तक इस बात को लेकर कन्फ्यूजन हैं कि अस्सी प्रतिशत में कौन हैं और बीस प्रतिशत में कौन हैं? इस कन्फ्यूजन की वजह से ही अनूप जी विरोध से बच गए. कभी-कभी कन्फ्यूजन बहुत काम का होता है. (स्माईली)
आप सिद्धार्थ जी का लेख पढिये. उन्होंने घोषणा की है कि;
"सत्यनारायण की कथा में ‘कथा के माहात्म्य’ का जिक्र और मूल कथा के लोप का सूत्र मिल गया है। अगले अंक में उसकी चर्चा होगी।"
ढेर सारे चिट्ठाकार सिद्धार्थ जी के अगले अंक के इंतजार में हैं. हम भी हैं. आप भी होइए. इंतजार करते समय पोस्ट वगैरह लिखने की मनाही नहीं है. आप पोस्ट लिख सकते हैं. टिप्पणी भी कर सकते हैं.
कृष्णमोहन मिश्र ने आज राखी सावंत जी से माफी माँगी है. उन्होंने ऐसा क्या कर दिया जो इस माफी की ज़रुरत पडी? यह जानने के लिए आप यहाँ क्लिकियाईये. पता चल जाएगा.
आज अनुनाद सिंह जी का जन्मदिन है. उन्हें जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं.
आज के लिए बस इतना ही.
बहुत कमाल की चर्चा रही शिव जी..कई पोस्टें नयी पढने को मिल गयी..कृष्ण जी के व्यंग्य के तो क्या कहने...
जवाब देंहटाएंWaah ! Waah ! Waah !
जवाब देंहटाएंKhoob badhiya charcha.....
राखी सावंत से मांग क्यों
जवाब देंहटाएंसब बटोरने वाले हैं
आप भी उन्हें पब्लिसिटी
ही दे रहे हैं
चाहे आप मांगे
पर पा वे ही रही हैं
कथा की पंजीरी का अवेदन तो हम सुबह ही कर आये, प्राईम टाईम के समय में राखी को भी अब देखने जा रहे है।
जवाब देंहटाएं"इतनी मेहनत, इतना समय लगाकर कोई दिल्ली से मुंबई पहुंचेगा " अरे, ये डायलाग तो उस पेंशन वाले के लिए है ना जो सैर के लिए दिल्ली से कानपूर गया था? चाहें तो स्माइली लगा लें-choice is yours:)
जवाब देंहटाएंऔर हां, हम तो अस्सी प्रतिशत वालों में से हैं जो अल्पसंख्यक के तुष्टिकरण में समय बिताते हैं:)
डॉ० श्रीमती अजीत गुप्ता जी के ब्लॉग पर पहली बार पहुँचा आपके माध्यम से । नवगीत ने प्रभावित किया । आभार ।
जवाब देंहटाएंचर्चा सुन्दर है । अनुनाद जी को जन्मदिन की बधाई ।
बहुत बढिया चर्चा .. धन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंबहुत आनन्द आया जी। मस्त चर्चा कर डाली आपने।
जवाब देंहटाएंकृष्णमोहन मिश्र की फुरसतिया जी से दूरभाष पर हुई बात-चीत तो वाकई मजेदार रही। कुछ भी हो लेकिन राखी ने बुद्धू बक्से की ख्याति में और इजाफ़ा तो करा ही दिया है।
रोचक चर्चा है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत अच्छा चुनाव.. आभार..
जवाब देंहटाएंशुक्ल जी कुछ क्लीयरन्स नहीं आई है मिश्रा जी.....नामियों ने बेनामी बनकर हमें भी अपनी मोहब्बत दे दी है...खैर...
जवाब देंहटाएंअनुनाद जी को जन्मदिन की बधाई ।
सुन्दर ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंअब तक तो क्लियरेंस आ जानी चाहिए थी ! अब तो शंका जो लघु थी, दीर्घ होती जा रही है :)
चर्चाकारी में आप सिद्धहस्त है. टेक ओवर करके रोज किया करें तो अच्छा लगेगा और शुभकामनाऐं तो आपके साथ है ही.
जवाब देंहटाएंअनुनाद जी को बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.
जवाब देंहटाएंचर्चा चौकस और चकाचक। अनूप शुक्ला के अमेरिका वाले मामले की जांच रही है। खुलासा होते ही बात सामने पटक दी जायेगी।
जवाब देंहटाएंआपने मेरे नवगीत की अपनी पोस्ट में चर्चा की इसके लिए आभारी हूँ। ऐसे ही कभी-कभी झांक जाया करिए।
जवाब देंहटाएं