चिट्ठा चर्चा साहित्य में आपका हार्दिक स्वागत है । चर्चा के साथ साहित्य शब्द के इस्तेमाल पर आप अवश्य चौंके होंगे । पर आपने अगर टिप्पणी में यह कह दिया कि चर्चा साहित्य नहीं है तो आपसे ज्यादा हम चौंक जायेंगे । कोई हमें बताये कि जब सस्ता साहित्य होता है, अश्लील साहित्य होता है, और मस्तराम साहित्यकार हो सकते हैं तो क्या हम साहित्यकार नहीं हो सकते ? जी हाँ आज से हम साहित्यकार हैं और घोषणा की जाती है कि हमारे द्वारा जो भी लिखा जायेगा वह साहित्य कहलायेगा । और तो और हम अपने ऑफ़िस में जो लॉग लिखेंगे वह भी साहित्य होगा । हम संप्रभु साहित्यकार हैं और हमें किसी से सर्टिफ़िकेट लेने की आवश्यकता नहीं है । जो साहित्य की परिभाषा पूछते-पूछते थक गये उन्हें लोगों ने ब्लॉगर कह दिया । बात हो रही है समीर जी की । कहते हैं :
जिसको देखो बस एक लाईन बोल कर भाग जाता है कि साहित्य नहीं रचा जा रहा है ब्लॉग पर। मगर कोई ये बताने तैयार ही नहीं कि आखिर साहित्य होता क्या है, क्या है इसकी परिभाषा और हमें क्या करना होगा कि साहित्य रच पायें। बहुत बार और बहुत जगह जाकर पूछा, रिरिया कर पूछा, गिड़गिड़ा कर पूछा मगर जैसे ही पूछो कि आखिर साहित्य है क्या, भाग जाते हैं। बताते ही नहीं॥मानो सरकार बता रही हो कि भारत का विकास हो रहा है। पूछो कहाँ, तो भाग जाते हैं? आप खुद खोजो।
पर शिवकुमार मिश्र भी मोम के नहीं बने थे लिहाजा नहीं पिघले । दुखद टिप्पणी कर ही दी । कहते हैं :
बेहतरीन पोस्ट है। कार्टून तो गजबे है। विकास और साहित्य, दो बिलकुल अलग विषय एक ही जगह....ऐसा एक ब्लॉगर ही कर सकता है।
विश्वामित्र की कथा याद आती है कि उन्होंने ब्रह्मर्षि कहलाने के लिये बहुत तपस्या की थी । हम होते तो खुद को ब्रह्मर्षि घोषित कर दिये होते । बात खतम । चर्चा अभी बाकी है, जाइयेगा नहीं ।
बात करते हैं सुरेश चिपलूणकर जी की जो आज जमकर बरसे हैं । हालाँकि कॉपी सुविधा न होने के कारण हम उस लेख के अंश यहाँ नहीं दिखा पा रहे हैं पर इतना कह सकते हैं कि आज जिसने यह लेख नहीं पढ़ा उसने कुछ नहीं पढा़ ।
ब्लॉग जगत के अब तक ज्ञात ब्लॉगरों में सबसे भारी धीरू सिंह जी शेर सिंह के पीछे लग गये हैं । भारी ब्लॉगर हैं लिहाजा इनकी बात में भी वजन है ।
कल सूर्यग्रहण है । भारत में सूर्यग्रहण हो या चन्द्रग्रहण ये किसी त्योहार से कम नहीं होते । इनके बारे में लोगों के मन में कई तरह की भ्रांतियाँ होती हैं । अरविंद मिश्रा जी बड़े रोचक ढंग से सूर्यग्रहण की गहराइयों को नाप रहे हैं । एक झलक देखिये :
आख़िर सूर्यग्रहण क्यों लगता है ? यह सवाल जब हजारो साल पहले लोगों ने गुनी जनों /तत्कालीन बुझक्कडो से पूंछा होगा तो अपने तब के ज्ञान और कल्पनाशीलता के मुकाबले उन्होंने लोगों की जिज्ञासा शान्त करने के लिए जो कुछ कहानी गढी होगी वह विश्व के मिथकों का एक रोचक दास्तान बनी -भारत में यह कथा अदि समुद्र मथन से जुड़ती है जिसमें मंथन से निकले कई रत्नों मे से एक अमृत के बटवारे में राहु का छुप कर
देवताओं के बीच आ धमकना सूर्य और चन्द्रमा से छिपा नही रह गया तो उन्होंने विष्णु को इशारे से इस घुसपैठिये राक्षस के बारे में बता दिया और उन्होंने झटपट सुदर्शन चक्र से राहु का सर काट दिया , धड केतु बन गया -अब चूंकि वह अमृत पान तब तक कर चुका था इसलिए जिंदा रह कर आज भी सूर्य और चन्द्रमा को रह रह कर मुंह का ग्रास बना लेता है ! अब यह कहानी आउटडेटेड हो गयी है -आज हमें पता है की सूर्य की परिक्रमा के दौरान धरती और चन्द्रमा जो ख़ुद धरती की परिक्रमा करता है ऐसे युति बना लेते हैंकि सूरज के प्रकाश को देख नही पाते तब सूर्य ग्रहण लग जाता है ! दरअसल राहु केतु का कोई अस्तित्व नही है ! यह महज कपोल कल्पना है -हाँ ज्योतिषीय गणनाओं की परिशुद्धि के लिए इन्हे छाया ग्रह मानकर काम चलाया जाता है !
इस लेख पर Ghost Buster जी की टिप्पणी है :
काफ़ी सारा सीज़न तो लगभग सूखा बीत गया पर अब सूर्य ग्रहण के पास आते आते सावन को अपने कर्त्तव्य का स्मरण हो आया है। दो-तीन दिनों से घटाएँ छाई हैं और बूंदा-बांदी चालू है। हमारे यहां तो सूर्य ग्रहण खुद ग्रहण की चपेट में है। ईश्वर करे कि स्थिति
बने और हम लोग भी इस दुर्लभ घटना के साक्षी बन सकें। वैसे आप तो किस्मतवाले हैं,
वाराणसी में पूर्ण ग्रहण है। हम कुछ किलोमीटर से चूक गये। पूर्ण ग्रहण वाली पट्टी थोड़ा नीचे से गुजर रही है।
ज्योतिष के क्षेत्र में ब्लॉग जगत की जानी मानी हस्ताक्षर संगीता पुरी जी ने भी ज्योतिष के दृष्टिकोण से सूर्यग्रहण के बारे में जानकारी दी है । एक झलक :
वास्तव में ज्योतिषीय दृष्टि से अमावस्या और पूर्णिमा का दिन ही खास होता है। यदि इन दिनों में किसी एक ग्रह का भी अच्छा या बुरा साथ बन जाए तो अच्छी या बुरी घटना से जनमानस को संयुक्त होना पडता है। यदि कई ग्रहों की साथ में अच्छी या बुरी स्थिति बन जाए तो किसी भी हद तक लाभ या हानि की उम्मीद रखी जा सकती है। ऐसी स्थिति किसी भी पूर्णिमा या अमावस्या को हो सकती है , इसके लिए उन दिनों में ग्रहण का होना मायने नहीं रखता। पर पीढी दर पीढी ग्रहों के प्रभाव के ज्ञान की यानि ज्योतिष शास्त्र की अधकचरी होती चली जानेवाली ज्योतिषीय जानकारियों ने कालांतर में ऐसे ही किसी ज्योतिषीय योग के प्रभाव से उत्पन्न हुई किसी अच्छी या बुरी घटना को इन्हीं ग्रहणों से जोड दिया हो। इसके कारण बाद की पीढी इससे भयभीत रहने लगी हो। इसलिए समय समय पर पैदा हुए अन्य मिथकों की तरह ही सूर्य या चंद्र ग्रहण से जुड़े सभी अंधविश्वासी मिथ गलत माने जा सकते है। यदि किसी ग्रहण के दिन कोई बुरी घटना घट जाए , तो उसे सभी ग्रहों की खास स्थिति का प्रभाव मानना ही उचित होगा , न कि किसी ग्रहण का प्रभाव।
सूर्यग्रहण से सम्बन्धित और लेख पढ़ने के लिए भूपेन्द्र सिंह जी के ब्लॉग पर जा सकते हैं । अपने ब्लॉग पर भूपेन्द्र जी कहते हैं :
भारतीय खगोलविद आर्यभट्ट ने तारों की गति के अध्ययन के लिए लगभग एक हजार वर्ष पूर्व जिस स्थान पर शिविर लगाया था, उसी गांव में 21वीं सदी के सबसे लंबे सूर्य ग्रहण के दर्शन के लिए बुधवार को कई लोग एक बार फिर जुटेंगे। वह स्थान है बिहार की राजधानी
पटना से 30 किलोमीटर दक्षिण में तरेगना। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी इस ऐतिहासिक खगोलीय घटना को देखने के लिए इसे सबसे उपयुक्त स्थान करार दिया है। गांव
के नाम का अर्थ निकालने पर लगता है कि तारों की गिनती के कारण ही इसका यह नाम पड़ा होगा।
आगे बढ़ते हैं, आज मुम्बई हमलों के दोषी कसाब ने अदालत में अपना जुर्म कुबूल कर लिया । लो मान गया कसाब... अब सुनाओ सज़ा । मंथन ब्लॉग पर कहा गया है :
अब संसद पर हमले के आरोपी अफज़ल गुरु को ही ले लीजिये... १३ दिसम्बर २००२ को संसद पर हुए हमले के आरोपी अफज़ल गुरु को २००६ में सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन आज भी अफज़ल गुरु सही सलामत सरकारी मेहमान बनकर सरकारी आरामगाह यानी जेल में बैठा है... संसद पर हमले को लेकर जितनी चर्चा नहीं हुई थी उससे ज्यादा चर्चा तो अफज़ल गुरु की फंसी को लेकर होती रही है... सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी उसे फांसी नहीं दी गयी है...
आगे कहा गया है :शायद हमारे देश की यही बात है जो कसाब और अफज़ल गुरु जैसे गुनहगारों को हम पर बार बार हमला करने के लिए बढ़ावा देती है... क्योंकि वो अच्छी तरह जानते है की अगर हम पकडे भी जायेंगे तो भारत का कानून हमें ज़िंदा रखने में हमारा पूरा साथ देगा... और कानून अगर सजा सुना भी दे तो भी क्या... सज़ा के हुक्म की तामिल तो हिन्दुस्तान में होगी नहीं, तो फिर डर किस बात का जी भर कर हिन्दुस्तान की धज्जिया उडा सकते है... और ये हिन्दुस्तानी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे... आज काव्य मंजूषा ब्लॉग पर अदा जी की कविता शूर्पनखा... पढ़कर दिल भर आया । आपका भी दिल भर जाये इसलिए पूरी कविता ठेले दे रहे हैं ।
शूर्पनखा ! हे सुंदरी तू प्रज्ञं और विद्वान्,किस दुविधा में गवाँ तू अपना मान-सम्मान
स्वर्ण-लंका की लंकेश्वरी, भगिनी बहुत दुलारी
युद्ध कला में निपुण, सेनापति, पराक्रमी राजकुमारी
राजनीति में प्रवीण, शासक और अधिकारी
बस प्रेम कला में अनुतीर्ण हो, हार गई बेचारी
इतनी सी बात पर शत्रु बना जहान
शूर्पनखा ! हे सुंदरी तू प्रज्ञं और विद्वान्,
क्या प्रेम निवेदन करने को, सिर्फ मिले तुझे रघुराई ?
भेज दिया लक्ष्मण के पास, देखो उनकी चतुराई !
स्वयं को दुविधा से निकाल, अनुज की जान फँसाई !
कर्त्तव्य अग्रज का रघुवर ने, बड़ी अच्छी तरह निभाई !
लखन राम से कब कम थे, बहुत पौरुष दिखलायी !
तुझ पर अपने शौर्य का, जम कर जोर आजमाई !
एक नारी की नाक काट कर, बने बड़े बलवान !
शूर्पनखा ! हे सुंदरी तू प्रज्ञं और विद्वान्,
ईश्वर थे रघुवर बस करते ईश का काम
एक मुर्ख नारी का गर बचा लेते सम्मान
तुच्छ प्रेम निवेदन पर करते न अपमान
अधम नारी को दे देते थोड़ा सा वो ज्ञान
अपमानित कर, नाक काट कर हो न पाया निदान
युद्ध के बीज ही अंकुरित हुए, यह नहीं विधि का विधान
हे शूर्पनखा ! थी बस नारी तू, खोई नहीं सम्मान
नादानी में करवा गयी कुछ पुरुषों की पहचान
और अंत में बात कलम की । कम्प्यूटर के युग में कलम में लिखने वाले चन्द्रमौलेश्वर जी खबर लाये हैं :
पटना विश्वविद्यालय की सिंडिकेट ने तीन वर्ष तक गौर करने के बाद अब यह फैसला लिया है कि मटुकनाथ ने गुरु-शिष्य के सम्बंध को बट्टा लगाया है जिससे विश्वविद्यालय की छवि आहत हुई है। विश्वविद्यालय के प्रो-वाइस चांसलर एस।ऐ।अहसन ने सिंडिकेट की सिफ़ारिश पर मटुकनाथ को नौकरी से निकाल दिया है।
इन्हीं शब्दों के साथ हम अगले मंगलवार फ़िर मिलने का वादा करके निकलते हैं । आप सब दुआ करिये कि अगले मंगल तक कहीं ठन जाय ताकि चर्चा आल्हा में हो सके ।
चलते-चलते
प्रभु जी मोहे साहित्यकार कहौ,
मेरे शब्दन पै मत जाऔ, इनकौ अर्थ गहौ ।।
कब तक मोहि रखौगे ब्लॉगर सदियाँ बीत गईं ।
'ब्लॉगर' कहि-कहि सखा खिजावें इनकी मौज भईं ॥
कुण्डलियाँ, मुण्डलियाँ कितनी यूँ ही लिखत रह्यौ ।
ब्लॉगर-साहित्यकार भेद में सब साहित्य बह्यौ ॥
टंकी पै भी चढ़्यौ न फ़िर भी साहित्यकार भयौ ।
पूछत रहत लोग-वागन सौं भेद न मोहि दयौ ॥
एक नन्हीं सी चाह और इतनी बढ़िया रचना-कुण्डलीनुमा..वाह!! क्या बात है! क्यूँ जाया की? :) बढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंइस चर्चा की खूबसूरती शूर्पणखा और आपकी चलते चलते लिखी गयी पंक्तियाँ हैं ।
जवाब देंहटाएंहम निश्चय ही आपके शब्दों के कूटार्थ समझते हैं, और केन्द्रित भी करते हैं अपना मानस वहीं पर । आभार इस सुन्दर चर्चा के लिये ।
अच्छा लगा पढ़कर। मेरी शुभ कामना-
जवाब देंहटाएंसाहित्यकार के हृदय में हरदम दर्द रहौं
प्रभुजी निश्चित साहित्यकार कहौं
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
टंकी पै भी चढ़्यौ न फ़िर भी साहित्यकार भयौ ।
जवाब देंहटाएंकौन कहता है विवेक भाई अरे उस उत्सर्ग के बाद से ही तो आप चोटी (रखते है की नहीं ?) के चिट्ठा साहित्यकार जो आप पहले से ही थे स्वीकार भी कर लिए गए ! !
अब साहित्यकार बन ही गए हो तो फैलो साहित्यकारों को दो चार गालिया भी दे दो..
जवाब देंहटाएं"सस्ता साहित्य होता है, अश्लील साहित्य होता है, और मस्तराम साहित्यकार हो सकते हैं तो क्या हम साहित्यकार नहीं हो सकते ? "
जवाब देंहटाएंइब पच्चीस साल बाद ही पता चलेगा कि ब्लाग लेखन साहित्य है या ब्लागित्य:) तो...इन्तेज़ार कीजिए तब तक...
>लव-गुरू मटुकनाथ को चर्चा में स्थान देने के लिए धन्यवाद॥
चाह नहीं मै सुर बाला के गहनों मे गुथा जाऊं
जवाब देंहटाएंचाह हैं बस इतनी साहित्यकार कहलाऊं
यह प्रमाणित किया जाता है कि चर्चाकार साहित्य का सृजन कर रहा है और साहित्य ही रच रहा है.. :))
जवाब देंहटाएंमस्त चर्चा..
प्रभु जी मोहे साहित्यकार कहौ,
जवाब देंहटाएंमेरे शब्दन पै मत जाऔ, इनकौ अर्थ गहौ ।।
वाह जी वाह.
सुन्दर है! शूर्पणखा और चलते-चलते खासतौर पर! ठनने की कामना ताकि आल्हा लिखा जाये करना ठीक रहेगा क्या? :)
जवाब देंहटाएंमस्त चर्चा..
जवाब देंहटाएंधांसू चर्चा।
जवाब देंहटाएं@ विवेक
जवाब देंहटाएंअजी हम क्यों कहें की बढ़िया चर्चा हुई है
हम आपको बिलकुल नहीं कहेंगे की बहुत बढ़िया चर्चा की है आपने :)
वीनस केसरी
विवेक-स्टाइल वाली मस्त चर्चा !
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