हमारे शब्दशिल्पी अजित वडनेरकर ने कल उदयप्रकाशजी की त्वरित टिप्पणी को ब्लागर की टिप्पणी बताया और यह आशा की कि यह लफ़ड़ा जल्द निपटेगा। उदयप्रकाशजी ने अपने ब्लाग पर अपनी बात रखी और कहा:
अगर मैं क्षोभ या हताशा में कुछ ऐसा कह गया होऊं, जिससे आप में से किसी को कुछ अप्रिय लगा हो तो यह मान कर क्षमा करें कि इस उम्र और आपा-धापी में कभी-कभी ऐसा हो जाता है। रही 'कबाड़खाना' के अशोक पांडेय की बात, तो वे मेरे इसलिए प्रिय रहे हैं क्योंकि उनमें शायद वही संवेदना, अध्यवसाय और निस्संगता है, जो मैं अपने में पाता हूं। उन्हें समझने में भूल हुई है। लेकिन सच यह भी है कि उस ब्लाग में अब तक जितने अपशब्द, अशालीन टिप्पणियां और गालियां मुझे दी जा चुकी हैं, उसके बाद मैं स्वयं को क्षमा मांगने से भी असमर्थ पाता हूं।
उदयप्रकाशजी की बयान के बाद मुनीशजी ने अपनी तरफ़ से अध्याय बंद कर दिया। लेकिन अनिल यादव ने कुछ सवाल उठाये हैं। ये सवाल नये सवाल नहीं हैं पहले इनका जिक्र हो चुका है और कहते हैं:
उन्हें हम किसी खास फर्मे में रख कर नहीं देखना चाहते। बस न्यूनतम साहस की अपेक्षा है जो खुद को ईमानदारी से व्यक्त करने के लिए जरूरी होता है।
हमारे लिये तो ये बड़े लोगों की बड़ी बातें हैं। क्या कहें?
देश की तमाम समस्याओं के हल आलोक पुराणिक नये अंदाज में खोजते हैं। ज्ञान की बातें करते हुये वे कहते हैं:
राखी सावंत जी अगर किसी युनिवर्सिटी की वाइस चांसलर बन जायें, तो शायद छात्रों की कम अनुपस्थिति की समस्या खत्म हो जाये। नहीं क्या।
आज की अपनी शब्दलीला करते हुये अजितजी कहते हैं:
... सृष्टि में प्रतिक्षण होता परिवर्तन ही लीला है। जब हम इसे विराट रूप में देख रहे होते हैं तब उसकी अनुभूति होती है।
ज्ञानजी ज्ञानचर्चा करते हुये कहते हैं:
वापस लौटना, अपने गांव-खेत पर लौटना, अपनी जड़ों पर लौटना क्या हो पायेगा?! बौने बोंसाई की तरह जीने को अभिशप्त हो गये हैं हम!
विवेकसिंह अपनी ११६ वीं में घास छीलते हुये पाये गये:
घर के सामने पड़ी खाली जमीन को घास छीलकर खेती योग्य बनाया गया और फ़ावड़े से गुड़ाई करने के बाद इसमें कई तरह की पौध लगायी गयी जिनमें फ़ूलगोभी, टमाटर, बैंगन, मिर्च, और शिमला मिर्च का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा ।उनकी इस हरकत पर बवालजी का कहना है:
आप बुरा मत मानना यार पर एक बात कहूँ ? आप सिर्फ़ कवि ही नहीं, एक पुख़्ता साहित्यकार हो। मेरे भाई, आप हर बात को जिस दक्षता से प्रस्तुत करते हैं वैसा हर कोई नहीं कर सकता। आपकी बाग़बानी को हमारी ढे़र सारी दुआएँ। हमें बचपन में पढे़ हुए कोर्स की एक कहानी याद आ गई-“जीप पर सवार इल्लियाँ”।
पारुल की कविता देखिये:
अभी जमुना मे पानी है
अभी पूनम सी रातें हैं
उम्र का चढ़ता दरिया है
चलो इक ताज महल बोएँ
कविता का शीर्षक पढ़कर लगा कि एक कवि एक शहंशाह के मुकाबले कित्ता क्षमतावान हो सकता है। जिस ताजमहल को बनवाने में शाहजहां ने सालों लगा दिये और न जाने कित्तों के हाथ कटवा लिये बाद में उस ताजमहल को एक कवियत्री बोकर उगा सकती है।
प्रख्यात साहित्यकार राजेन्द्र यादव की आत्मकथा पर अपने विचार व्यक्त किये हैं कंचन ने। राजेन्द्र यादवजी अपनी तमाम चारित्रिक दुर्बलताओं और कमियों का मूल कारण अपनी शारीरिक अपंगता (उनकी एक टांग खराब हो गयी थी बचपन के ल़ड़ाई-झगड़े में) को बताते आये हैं। लेकिन कंचन का मानना और कहना हैं:
कुछ भी हो इस बात का अफसोस भी है कि चाहे वो जो भी कारण हो मगर इस मामले में मैं राजेंद्र जी को मैं भाग्यहीन मानती हूँ कि बहुत से निःस्वार्थ रिश्ते वो संभाल न सके। उन्होने इसका दोष अपनी कुंठा को दिया। वो कुंठा जो उन्होने बार बार बताया कि उनकी अपंगता के कारण आयी..यहाँ तो शायद मै बोलने का अधिकार रखती ही हूँ कि ये जो दैवीय गाँठे हैं, उन्हे खोलने का एक ही तरीका है स्वार्थहीन स्नेह..! और अगर ये स्नेह भी ना खोल सके गाँठें तो क्षमा करें मगर आप कोई भी जीवन पाते कुंठा के शिकार ही रहते।
कंचन ने अपनी बात कायदे से रखी एक पाठक के नजरिये से! राजेन्द्र यादव जी की अपनी कहानी पढ़कर अफ़सोस होता है और हंसी भी आती है कि अपनी सारी कमजोरियों को वे अपने बचपन के मत्थे मढ़ देते हैं। जिन मीता के चक्कर में वे अपनी पत्नी मन्नू भंडारी की उपेक्षा करते रहे उनसे विवाह करने की भी उनकी हिम्मत नहीं थी। उनका कहना था- मीता तेज बहुत है। अगले को सताने के लिये एक गऊ सी पत्नी चाहिये और मौज करने को तेज तर्रार प्रेमिका। जय हो! :)
रचना बजाज बहुत दिन बाद लिखने लगी लगी हैं नियमित। कविता लिखने का उनका प्रयास सफ़ल नहीं हुआ और वे लिखती हैं:
अक्षर सारे आ गये, स्वर भी सब यहीं हैं,
मात्राएं सब ये रहीं, चिन्ह भी यहीं कहीं हैं!
कहीं “अल्प विराम” मुंह छिपाये पडा है,
तो पास मे “पूर्ण विराम” खडा है!
उनकी कविता को आगे बढ़ाते हुये उनकी दीदी ने लिखा (समीरलालजी शब्दों में कहें तो डांट लगाई)अब क्या लिखा यह वहीं देखें क्योंकि उनका ब्लाग सुरक्षित है।
अजय कुमार झा अपनी पीड़ा बताते हैं:
चार अक्षर क्या लिख पाए,
सबको अभी कहाँ टिपियाये,
इतना जुल्मो सितम हुआ,,,
हाय बेगाना घर-बार हुआ..
पिछले दिनों की जो कसर थी सारी,
निकालने की थी आज तैयारी,
इन ससुरे, ससुरालियों ने ,
हाय ये सन्डे भी बेकार किया......
मुई इस निगोड़ी ब्लॉग्गिंग से,
हाय क्यूँ इतना हमें प्यार हुआ ?
पांच अरब साल बाद की धरती की हालत के बारे में जाकिर अली बताते हैं:
एक दिन सूर्य में मौजूद हाइड्रोजन गैस का विशाल भंण्डार खत्म हो जाएगा। इससे सूर्य फूलकर अपने मौजूदा आकार से 100 गुना बड़ा हो जाएगा। तब इसके विस्तार की परिधि में जो भी आएगा, वह उसमें समाकर वाष्पशील बन जाएगा। इनमें पृथ्वी भी एक होगी। यह स्थिति करीब पांच अरब साल बाद आएगी।
रायपुर में हुई राष्ट्रीय ब्लाग संगोष्ठी के बारे में जानकारी दी। अपनी फोटो पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये अनिल पुसदकर ने लिखा:
संजू भैया एकदम माडलईच बना डाला आपने तो।गज़ब का फ़ोटू लगाया है जी इतना खपसूरत तो मै आज तक़ नही नज़र आया।हा हा हा हा।बढिया रहा ज्ञान के भंडार रवि भैया से मिलना और आप लोगो से भी बहुत दिनो बाद मुलाकात हुई थी।मज़ा आया कुछ पल तो मीठे बीते।मिलेंगे फ़िर एक बार ब्लागर मीट में।
विवेकसिंह अपनी ११६ वीं में घास छीलते हुये पाये गये
जवाब देंहटाएंकोई गलत न समझे हम सुरक्षित हैं . यहाँ ११६ वीं का मतलब ११६ वीं पोस्ट है :)
का शुकल जी, हमरे दर्द को जमाने के सामने रख दिए न आप, ऊ ता शुकर मनाइए की ससुरालियों को आपके बारे में नहीं पता ,,जे बता दें की देखिये ई प्रभु ही सब बचवा सबको बिगाड़ के ..एकदम फ़ुरसतिया गए हैं..ता बस ऊ भी फुर्सत में ही मिलने आयेंगे ..हाँ कबाड़खाने का विवाद, अब समाप्त होना चाहिए....कुछ न कुछ लफडा चलता ही रहता है ब्लॉग्गिंग में,, जो शायद रचनात्मकता से ध्यान हटाता है ,,बांकी चर्चा एकदम थां रही
जवाब देंहटाएंझगड़ों की बातें भी पता लगीं चर्चा पढ़कर. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारीपूर्ण चर्चा . आभार
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा !!
जवाब देंहटाएंझगड़े के रगड़े में हमें नहीं इंटरेस्ट (रुचि)
जवाब देंहटाएंफोटो देखकर वसूल हुए सभी इंटरेस्ट (ब्याज)
बढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंअब तो विवेक को साहित्यकार घोषित कर दिया गया है. अब भी लोग कहेंगे कि ब्लॉग साहित्य नहीं है?...:-)
बहुत बढिया रही चर्चा
जवाब देंहटाएंregards
झकास...
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएं"ताजमहल को एक कवियत्री बोकर उगा सकती है। "
जवाब देंहटाएंकाश कि हमें भी एक बीज मिल जाता....हम भी अपनी अनारकलि के लिए एक ताज उगा ही लेते:-)
बुरा न मानियेगा ... आपको मालुम है गरियाना मेरे चरित्र में नहीं है ... आप मुझे साहित्यकार लगते हैं। तनिक कम नहीं!
जवाब देंहटाएंबोले तो झकास चर्चा ...
जवाब देंहटाएंलो बताओ जी विवेक सिंह की ११६वी करा दिए शुकुल बाबू.. वो तो अच्छा है विवेक बाते दिए रहे वरना हम तो गलते ही सोच लेते..
जवाब देंहटाएंवाह जी यह भी ख़ूब रही
जवाब देंहटाएं---
प्रेम अंधा होता है - वैज्ञानिक शोध
बेहतरीन समीक्षा। इसके जरिये हमें कंचन जी की पुस्तक चर्चा का पता चला।
जवाब देंहटाएंचर्चा देखते ही पता चल गया कि माननीय चैन्नई से वापस आ गये हैं. :) बढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंचर्चा में शानदार लिंक मिले । आभार ।
जवाब देंहटाएंवाह वाह शुक्ला साहब,
जवाब देंहटाएंक्या बेहतरीन चर्चा की है। काश सरकार आपके लिए ही और रोज़ ही चिट्ठाचर्चा को कम्पल्सरी कर दे ताकि हमें रोज़ाना इसका आनंद उठाने मिले।
आपने भी वो खपसूरत वाला फ़ोटू लगाकर हिरो बना दिया। असली हिरो तो बगल वाले भैया रवि रतलामी हैं। सच अगर किसी से कुछ सीखने के लिये कहे तो मै उनसे विनम्रता सीखना चाहूंगा जिसका मुझमे नितांत अभाव है।शायद इसिलिये कहा गया है अधजल गगरी जो मेरे लिये ही है।मस्त चर्चा।ज़ल्द बुलवाने की कोशिश कर रहें है सबको छत्तीसगढ्।देखें कब बुलवा पाते हैं।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रही यह चर्चा भी
जवाब देंहटाएंसचमुच ये बड़े लोगों की बड़ी बातें हैं...
जवाब देंहटाएंपारुल जी की कविता और कंचन के पोस्ट का जिक्र पाकर सकून मिला...मैं चाहता था कि खूब पढ़ा जाये ये दो पोस्ट
जवाब देंहटाएंलुहाये रहो, भाई जी ..
शानदार लिंक मिले । आभार ।