शनिवार, जुलाई 04, 2009

शनीचरी चर्चा राजधानी से


मंहगाई

इतवार की सुबह-सुबह ज्ञानजी स्पैम मतलब कूड़ा-करकट ठेल दिये। इसके बाद इसके बाद इरशादजी ने हिन्दी ब्लागिंग के दस सबसे बड़े खतरे बता डाले। एक खतरा बताया:
लोगों को लिखने से मतलब, क्या लिखा, कुछ भी जो दिमाग में आया
हमको लगा इरशाद भी की इस बात को उनकी पोस्ट सार्थक करती है। इरशाद जी लिखते हैं:
अगर आपके लेखन का कोई इस्तेमाल करे तो ये अच्छी बात है बशर्ते आपको भी उसका लाभ मिलना चाहिये।
कोई बता रहा था कि इरशादजी ने ब्लाग जगत के लोगों के लेख उठाकर एक किताब छाप दी है। जिनके लेख छापे उन्होंने उनको क्या फ़ायदा यह जानने की इच्छा है।:)

रचनाजी ने पोस्ट लिखी:
तीन दिन पहले गाजियाबाद मे एक काम वाली बाई का बलात्कार कर के उसको छत से नीचे फेक दिया । तहकीकात चल रही हैं पर घर के मालिक जो एक प्राइवेट बैंक मे मैनेजर हैं उनको पुलिस हिरासत मे लिया गया हैं ।
ये सब क्यों और कब तक ???

विवेकसिंह ने अपने अंदाज में टिपियाया:
कपड़ों में कोई दोष नहीं होता इस लिए कपड़े पहनने से परहेज़ नहीं होना चाहिए !

इस पर रचनाजी ने उनको हड़काया:
विवेक आप ब्लोगिंग केवल और केवल समय बिताने के लिये करते हैं और हंसी माज़क के लिये करते हैं {ये आप ने खुद मुझे एक बार चैट पर कहा था }आप के लिये ब्लोगिंग करना टाइम पास हैं
पर सब के लिये नहीं हैं , नारी ब्लॉग पर तो बिलकुल नहीं . आप से निवेदन हैं जब तक कुछ बात सार्थक ना कहनी हो ब्लॉग पोस्ट से जुडी कृपा करके इस ब्लॉग पर कमेन्ट ना किया करे .


विवेक को पता नहीं यह बात कब समझ में आयेगी कि रचनाजी पूरी गम्भीरता से महत्वपूर्ण सवाल उठाती हैं। ब्लागिंग उनके लिये केवल समय बिताने के लिये करने वाला काम नहीं है। जबकि विवेक ब्लागिंग केवल समय बिताने के लिये और हंसी-मजाक के लिये करते हैं। विवेक को रचनाजी की गम्भीर बहस को हल्के लेने में लेने से बाज आना चाहिए।

वैसे रचनाजी के ब्लाग पर माडरेडन की सुविधा है। वे चाहती तो विवेक के की इस टिप्पणी को बिना प्रकाशित किये भी उनको मेल लिख सकती थीं। लेकिन उन्होंने विवेक की टिप्पणी पहले प्रकाशित की फ़िर खुले में समझाइस दी। अगर वे विवेक टिप्पणी मिटा देतीं या फ़िर उनको मेल लिखकर उनसे अपनी बात कहतीं तब शायद उनका यह मकसद हल न होता कि वे हल्की-फ़ुलकी बातों वाले को खुले आम हड़का सकती हैं। यह उनको इसलिये भी जरूरी लगा होगा ताकि आगे से उनके ब्लाग पर विवेक और उसकी तरह के और लोग अगम्भीर बातें करने से बाज आयें।

एक लाईना


  1. स्पैम (SPAM) के मायने:ज्ञानजी तक को पता हैं

  2. देश विकसित बने भी तो कैसे ? :लोग समलैंगिकता को तवज्जो ही नहीं देते

  3. तो क्या टिप्न्नियाँ भी बंद कर दूं...? :कोई हर्जा नहीं है धमकी देने में

  4. चाँद फ़िर निकला..... :ओफ्फ्फ्फ़ ....!!! ....

  5. ‘‘ समलैंगिक सम्बन्ध : मेरी दृष्टि में ’’:एक दुराचार, अनाचार और भ्रष्टाचार ही है

  6. गर्मी का सौन्दर्य वर्णन :अब बारिश में करने से क्या फ़ायदा?

  7. ऐसे गया रामप्यारी की क्लास में... :वापस कैसे आये ये बताओ बच्चे!

  8. हिन्दी ब्लॉगिंग के 10 सबसे बड़े खतरें :में से एक का नमूना

  9. समलैंगिकता, सविता भाभी, भूजल दोहन और हिंदी :की गठबंधन पोस्ट

  10. आशाराम बापू के आश्रम में काला जादू :दो बच्चों की मौत

  11. उत्सव का अवसाद, पीड़ा का पर्वत :शब्द सफ़र पर निकल लिये

  12. ताकि हंसती रहे पृथ्वी ! : इसलिये तुम रो रो कर तैयार करती हो आधार

  13. जो कदम उठे प्यार में महफ़िल में खुद को पाया है :इकल्ले थे क्या महफ़िल में?

  14. गरीबी नहीं मिट रही तो क्या गरीब तो मिट रहे हैं :एक्कै बात है !

  15. साइकलें, ठहरने वाले मेहमानो के लिये हैं :मेहमान लोग हवा भरवा के आगे बढ़ें



और अंत में


अभी शाम को राजधानी दिल्ली में आकर देखा चर्चा हुई ही नहीं है। सोचा कुछ चर्चिया दिया जाये। मौसम उत्ता मजेदार नहीं है जित्ता दिल्ली वाले हल्ला मचा रहे थे। बहरहाल कल सुबह हम चेन्नई के लिये प्रस्थान करेंगे। यह देखना जरूरी है कि प्रशान्त चियरगर्ल के लिये क्यों हुड़क रहे हैं। शिवकुमार का शायर को नौकरी देने का प्रस्ताव लौट के देखेंगे।

बकिया चकाचक। कल चर्चा रविरतलामी करेंगे। अगले हफ़्ते की हमारे हिस्से की चर्चा चर्चाकार के भरोसे। :)

आपका इतवार चौकस बीते। मस्त रहें।

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30 टिप्‍पणियां:

  1. कोई दिन खाली न जाये.. अनुप जी आपको साधुवाद..

    चर्चा की फिड़ अपडेट नहीं होती.. नया कोड भी ट्राई किया.. कोई और उपाय..

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  2. अरे प्रभु ई का गजब कर दिए...राजधानी में हैं...आर दर्शन का कौनो जुगाड़ नहीं..का गुरुदेव हम ता कभिये से इंडिया गेट खोलकर खड़े थे..चरण राज माथे लगाने को.इन ...अब जाइए..प्रशांत भाई...होंगे चीयर चीयर करते....चर्चा badhiyaa रहा..इससे jaade नहीं कहेंगे..जादे टिपियाओ तो ..कौनो धमका सकता है....फिर मुआ एगो पोस्ट ठेलो ऊ पर...

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  3. चलते चलते भी अच्छी चर्चा कर लेते हैं।

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  4. गये तो चेन्नई मगर सही चर्चा कर गये.

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  5. विवेक भाई से हमदर्दी है

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  6. विवेक आप ब्लोगिंग केवल और केवल समय बिताने के लिये करते हैं और हंसी माज़क के लिये करते हैं -- तो चलो, समलैंगिकता की बात करते हैं:)

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  7. मुझे तो समलैंगिकता वाले मामले में एक पेंच नज़र आ रहा है : कहीं ऐसा तो नहीं कि जो लोग अब तक समलैंगिक होने की वजह से मनचाहा जीवनसाथी नहीं पा सके थे उन्हीं के प्रयासों का यह नतीजा हो . ऐसे लोग देश में कम नहीं हैं . कुछ तो ब्लॉगजगत में भी मिल जाएंगे !

    अब बात रही रचना जी वाले प्रकरण की : असल में रचना जी हड़काने के लिए ही बनी हैं और हम हड़कने के लिए ही. कहने का मतलब यह कि वे किसी को भी हड़का सकती हैं और हमें कोई भी हड़का सकता है .
    बहरहाल हमारी हड़काई न होती तो अरविन्द मिश्र जी जैसे हमदर्द हमें कैसे मिलते ? बताइये !
    बताइये,बताइये !
    बताइये ना !

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  8. आप आज फिर चलते-चलते ही सही लेकिन कर दी दमदार चर्चा.

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  9. अनूप जी,
    जोरदार चर्चा रही, कही से ये नहीं लगा की जल्दीबाजी में की गई चर्चा है या किसी और की जगह आपने चर्चा की है

    एक समय था आपने साइकिल से भारत भ्रमण किया था, चलिए वो तो हुनर दिखने का जोश रहा होगा और कही उत्सुकता भी रही होगी की साइकिल कैसे चलाई जाती है :)
    मगर आप ये शगल अभी तक क्यों पाले हुए हैं ये हम नहीं समझ पा रहे, कृपया शंका समाधान करिए

    वीनस केसरी

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  10. कार्टून अच्छा है इसका एक पाठ यह भी हो सकता है नंगे आदमी के पास भी स्कूटर है और क्या चाहिये?

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  11. आदरणीय अनूप जी,
    आपके जैसी सार्थक समग्र चर्चा करना बाक़ी के लोग कब शुरू कर रहे हैं ?

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  12. शाम में भी सुबह की ताजगी का अहसास करानेवाली चर्चा.. वाह।

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  13. इस चर्चा में तो हड़कतत्व की प्रधानता है।

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  14. अनूप
    विवेक ने उसके बाद भी दो कमेन्ट दिये जिनका
    पोस्ट से कोई लेना देना ही नहीं था . उन्हे मिटा
    दिया . और ये पहली बार नहीं हुआ विवेक कई बार
    अपने स्वभावगत टिपण्णी देते हैं पर ये भूल जाते
    हैं की हर व्यक्ति की जिंदगी मे केवल हंसी नहीं
    होती . जो नौकरानी मरी उसके विषय मे दो
    शब्द भी नहीं . आप की आभारी हूँ की आप ने
    जाहिर कर दिया मे मुद्दों पर ब्लॉग करती हूँ
    नारी ब्लॉग पर .

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  15. वैसे हम सब प‍ीडि़त हैं समस्‍याओं के जंजाल में
    अगर हंस भी लिए दो चार ख्‍याल में
    तो क्‍या गुनाह हो गया, क्‍या विवेक खो गया
    अगर यूं ही सदा गंभीर ही रहेंगे हम सब
    तो मरने से पहले ही मर जाएंगे अब सब
    पर मरने से पहले किसी को मरने नहीं देना है
    हंसने को हमें गुनाह घोषित नहीं करना है।

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  16. मुद्द्त्व, हडकत्व, इस चर्चातत्व के प्रमुख विषय रहे.

    हडकना हडकाना
    अनामी सुनामी
    उथला गहरा
    गंभीर कम गंभीर
    हडकाई मिलाई
    अनाम अनामिका
    फ़ीड गई नही आई
    वर्षा अवर्षा
    आई और गई
    बिना आये ही
    ज्यादा क्या लिखें
    लो होगई कविता पूरी.

    आपको नवभारत ने अमेरिका का बशिंदा बनाया है. तबसे आपने हमारी फ़ीड ही बंद करवा दी है. क्या नाराजी है? हम तो ऐसे ही चिट्ठाजगत पर चले गये थे तो वहां से मालुंम पडा कि आपकी पोस्ट चल रही है.
    और यहां आकर फ़िर वही हडक पुराण? हंसना हंसाना पाप हो गया है क्या? भाई हमारा दिल तो कमजोर होगया है. क्या करे? आजकल हम जैसे कमजोर दिल वालों को कुछ ज्यादा ही हडकाया जा रहा है. विवेक का क्या है? वो तो खुद ही कहते हैं कि इसी काम के लिये बने हैं. भाई जरा हमारा हडकत्व ट्रेफ़िक आपकी तरफ़ झेलो.:)

    रामराम.

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  17. अविनाश वाचस्पति


    कहीं मातम हो रहा हो आप हंसे तो अविनाश
    लोग आप को क्या कहेगे ??

    ताऊ रामपुरिया
    डॉ अमर ने जो कहा हैं
    वो आप
    यहाँ देखे

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  18. http://mypoeticresponse.blogspot.com/2009/04/blog-post_04.html#comments

    have look at viveks comment on this post
    http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/2009/01/blog-post_14.html
    have a look at this post where i have delted viveks comment and see how another blogger also
    feels viveks comment are out of place


    so after a long time i decided to say it openly to him on the blog that please comment only if you have something related to the post

    and what i can say on mail i can say on blog as well .

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  19. पर ये `delted' क्या होता है जी- हमारी अंग्रेज़ी ज़रा कच्ची है:)

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  20. deleted kaa short form haen !!!!!

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  21. ठीक ही तो है जो मैं चाहता था वही तो हो रहा है ,मतलब असलियत का सामने आना !

    मैं जो लिंक पकड़कर पोस्ट तक पहुँचा उसका शीर्षक था " कामवाली बाई के कपड़ों में क्या दोष था ?" तो मैंने टिप्पणी दी :"कपड़ों में कोई दोष नहीं होता इस लिए कपड़े पहनने से परहेज़ नहीं होना चाहिए !"
    कामवाली बाई का बलात्कार हुआ और वह मामला न्यायालय में है . ऐसे में आपने उसे दूसरे मामले मतलब कपड़ों से जोड़कर अपनी विचारधारा को पुष्ट करने की कोशिश की " इसमें किस प्रकार कामवाली बाई का भला हो रहा था मुझे नहीं मालूम . हाँ लोगों को अपनी यह बात मनवाना कि समाज में कोई भी जैसे चाहे कपड़े पहन सकता है आपका मकसद था . जिसके लिए कामबाली बाई के मामले का सिर्फ़ यूज किया गया था .
    मैं अभी भी अपनी टिप्पणी पर कायम हूँ कि कपड़ों में कोई दोष नहीं होता !

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  22. हाँ लोगों को अपनी यह बात मनवाना कि समाज में कोई भी जैसे चाहे कपड़े पहन सकता है आपका मकसद था

    yae samvidhaan mae diyaa haen mae nahin kehtee
    aur balatkaar jaesee baat par aap kyaa kament kartey haen usii sae aap ki "asliyat" bhi saamane aatee haen .

    aur aap to maerae kavita blog par issi prakaar sae tiipatae kyuki kahin aap mansik kundha kae
    shikaar haen mahila kae prati aur yahii baat samane aatee haen .
    mahila ki azadi yaa kisi ki bhi azaadi kanun aur samvidhan sae hotee haen aap ki yaa maeri soch sae nahin

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  23. संविधान में क्या लिखा है और समाज में कितनी आजादी ली जा सकती है यह तो हमें किसी से सीखने की आवश्यकता नहीं .
    रही बात मानसिक कुण्ठा का शिकार होने की, तो मानसिक रोगी तो आप हैं ही यह तो आपकी हरकतों से जाहिर हो ही जाता है .आप पहली महिला नहीं हैं जिससे हम मिले हैं बल्कि आप पहली महिला हैं जिसे हर बात में अपने महिला होने की दुहाई देने की आवश्यकता होती है .यह मानसिक रोग ही तो है :)

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  24. ab aap wo likh rahey jisko aap nirantar hansi mae keh rahey they mae to kam sae kam khul kar likhtee hun ki jo shabd haen wahiin dikhaey aap kewal aur kewal shabdo ko ghuma kar apnae ko achcha banaye rakhanae mae belive kartey haen yaani ek dohri neeti , ek doshri jindgi

    aaj wo keh rahey haen jo bahut pehlae kehna chaiyae thaa .

    samvidhaan jarur padhey

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  25. एक बात जान लें रचना जी

    जो मर गया उसके साथ मरा नहीं जाता है

    जो जी रहे हैं उनके साथ अवश्‍य जिया जाता है

    ऐसा तो कहीं नहीं होता कि हो रहा हो मातम

    और कोई हंसने लगे

    अगर हंसा भी तो

    वजह जरूर गहरी होगी

    जरूर व्‍यवस्‍था ही वहां बहरी होगी

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  26. वजह जरूर गहरी होगी

    जरूर व्‍यवस्‍था ही वहां बहरी होगी

    waah

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  27. रचनाजी के ब्लाग पर माडरेडन की सुविधा है। वे चाहती तो विवेक के की इस टिप्पणी को बिना प्रकाशित किये भी उनको मेल लिख सकती थीं -सहमत.

    "कहीं ऐसा तो नहीं कि जो लोग अब तक समलैंगिक होने की वजह से मनचाहा जीवनसाथी नहीं पा सके थे उन्हीं के प्रयासों का यह नतीजा हो . ऐसे लोग देश में कम नहीं हैं . कुछ तो ब्लॉगजगत में भी मिल जाएंगे !"---- इस टिप्पणी के कई मतलब निकलते हैं ..दुसरे आप किसी की परसनल चोइस पर उंगली नही उठा सकते

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  28. रोज तो नहीं कभी कभी ब्लोग्स की दुनिया में कदम रख पाती हूँ, मैं सोचती हूँ, की charchachittha में क्या सिर्फ दूसर्रों के ऊपर कीचड़ उछालने के अलावा भी कुछ है. कौन क्या है? इस पर राय देने की जरूरत तब होती है, जब कि आपसे मांगी जाय. नारी ब्लोग्स के लिए तो लगता है की लोगों ने कमर कास ली है, अगर आधी-रात को भी किसी write-up पर नजर पड़ जाए तो बैठ जायेंगे उसके ऊपर लिखने. लिखिए आपका अधिकार है. लेकिन व्यक्तिगत तौर पर दिए जाने वाले कमेन्ट आपकी बीमार मानसिकता के द्योतक है. रचना क्या लिखती है? क्यों लिखती है? इससे अगर आप इत्तेफाक नहीं रखते हैं तो पढ़ कर भूल जाइए. लेकिन रचना मानसिक रोगी हैं या कुछ और हैं , यह तो मैं नहीं जानती लेकिन आपके कमेंट्स आपको जरूर इस तरह के विकार से ग्रस्त प्रर्दशित कर रहे हैं. अगर नारी ब्लॉग से आपको परहेज है तो मत जाइये उसके पोस्ट को पढने के लिए. जैसे आप लिखने के लिए स्वतंत्र हैं वैसे भी नारी के ब्लोग्गेर्स भी हैं. पोस्ट की आलोचना कीजिये अगर वह इस काबिल है तो लेकिन लिखने वाले को गालियाँ देना , देने वाले की मानसिक दिवालियापन की निशानी है.
    और ऐसे लोगों को शह देने वाले या फिर बात को चर्चा का विषय बनाने वालों की श्रेणी वे स्वयं ही तय कर सकते हैं.

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