मंगलवार, जुलाई 14, 2009

हमको अच्छी नहीं लगी यह रीत तिहारी !

नमस्कार ! चिट्ठा चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है ।

नरोत्तमदास जी ने सुदामा चरित में लिखा है :

सीस पगा न झगा तन में प्रभु, जानै को आहि बसै केहि ग्रामा।
धोति फटी-सी लटी दुपटी अरु, पाँय उपानह की नहिं सामा॥
द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एक, रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा।
पूछत दीन दयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा॥

**********************************************

ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये।
हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये॥


इसी को हमारे एक मित्र कुछ इस तरह सुनाते थे:

टायर सोल की चप्पल पाँव में और बुशर्ट पै ढीलौ पजामा ।
खूब चकाचक बीड़ी पियत हैं, बतावत आपनौ नाम सुदामा ।

***********************************************

मैले भये कपड़ा हलवाईन से हाय कबहु इनको नहिं धोये ।
हाय महा डर्टी हो सखा तुम बामन जाति कौ नाम डुबोये ।


इसके बारे में वे बताते थे कि यह कलयुग का सुदामा चरित है । हमने इसे कभी गम्भीरता से नहीं लिया, लेकिन आज जब ज्ञान जी की पोस्ट पढ़ी तो अनायास ही इसकी याद आ गयी और मित्र की बात सच लगने लगी । ज्ञान जी लिखते हैं :

कुर्सी में फोन के साथ धंसा न होता तो उठकर “बीयर हग” में लेता बचपन के सखा को। पर मैं उठ न पाया। घुन्नन अपने रिजर्वेशन की डीटेल्स मेरे सहायक को दे कर चला गया। शायद वह जल्दी में था। कोई सम्पर्क नम्बर भी नहीं है मेरे पास कि बात कर सकूं। काम से निपट कर मैने केवल यह किया कि सहेज कर उसके रिजर्वेशन के लिये सम्बन्धित अधिकारी से स्वयं बात की।

इस पर टिप्पणी करते हुए सिद्धार्थ जोशी Sidharth Joshi कहते हैं :

कहना अच्‍छा नहीं लग रहा लेकिन... मित्रता के नाते आपके साथ कुछ शेयर करना चाहता हूं। फोन के साथ कुर्सी में धंसने की आपकी अदा ने उस निर्मल ग्रामीण को संकेत दिया होगा 'तो॥ क्‍या' का। मै खुद भी कई बार ऐसी गलतियां कर चुका हूं। प्रेमचंद की ही एक कहानी है। उसमें बेटे की टीबी की बीमारी का ईलाज कराने की बजाय एक बाप अपने दूसरे बेटे को इंग्‍लैण्‍ड भेजने में पैसा निवेश करता है। बड़े बेटे की मौत के बाद धूम-धाम से उसका क्रियाकर्म किया और ब्राह्मणों को जिमाया। कुर्सी पर इग्‍नौर करने के बाद आपको अपने व्‍यवहार पर ग्‍लानि हुई और अब तक के सबसे एडवांस माध्‍यम पर आपने अपने मित्र घुन्‍नन को याद कर उसकी पूर्ति करने की कोशिश की। इसे मैं पुराने दिनों की याद नहीं वर्तमान का प्रायश्चित कहूं तो शायद गलत नहीं हो।

कुछ कड़वा कहा है लेकिन उम्‍मीद करता हूं कि आप इसे इस पोस्‍ट के संदर्भ में ही लेंगे। आपका फैन

सिद्धार्थ जोशी, बीकानेर


एक कहानी जो बचपन में गाँव में सुनी थी याद आ रही है, जो कुछ ऐसे थी :

एक गरीब किसान का बेटा जब थानेदार बन गया तो एक दिन किसान अपने बेटे से मिलने थाने जा पहुँचा । जब थानेदार के साथी लोगों ने जानना चाहा कि आगन्तुक कौन है तो थानेदार ने कह दिया कि हमारे घर का नौकर है ।

हालाँकि इस कहाने को सुनाते समय हमें बताया गया था कि यह सच्ची कहानी है पर मुझे कभी भरोसा न हुआ कि ऐसा भी हो सकता है । होने को तो वैसे कुछ भी संभव है । आजकल कन्या भ्रूणहत्या के समाचार सुनने को कम मिल रहे हैं क्योंकि अब यह छिपकर होता है । पर होता तो है । कुश ने आज इसी विषय पर भावुक कर देने वाली कविता लिखी है :

बाँट प्यार सभी को
सबके दर्द मैं लेती॥
गर माँ तेरी कोख से
जन्म मैं लेती....


इस पर रंजना जी की टिप्पणी है :

तुम्हारी इन पंक्तियों ने आवेश उद्वेग क्षोभ रुदन और न जाने क्या क्या भर दिया है.........मैंने अपने सामने अपने आस पास कईयों को ,जो किसी भी मायने में ऐसी आर्थिक परिस्थिति के नहीं जो की अपनी संतान का भरण पोषण विवाह न कर सकें....पुत्र लालसा में भ्रूण परीक्षण कराकर कन्या भ्रूण हत्या करवाते देखा है...एक नहीं कई कई बार......और यह पति या परिवार के दवाब में नहीं अधिकतर स्त्रियाँ स्वेच्छा से करती हैं....कुछेक के तो मैंने पैर तक पकडे....उन्हें पूर्ण आश्वासन दिया की वे उस बालिका को मुझे दे दें,मैं उन्हें अपनी संतान बनूंगी....पर किसी तरह उनके कठोर ह्रदय को न पिघला सकी..........क्या कहूँ.........आने वाले समय में पूरी मानवता इसका मूल्य चुकायेगी,देखना....

बच्चे सभी प्यारे होते हैं, पता नहीं क्यों लोग लड़का लड़की में इतना भेद करते हैं ! ब्लॉग जगत के एक प्यारे बच्चे रुद्र को कल करेण्ट लग गया । अभी चिन्ता की कोई बात नहीं है । रुद्र एकदम ठीक है । मगर इस घटना से हम सभी को सबक लेना चाहिये । जैसा कि रंजन जी ने कहा है कि बाजार से डमी प्लग लाकर सारे प्वॉइण्ट में लगा दें तो बच्चे ज्यादा सुरक्षित रहेंगे ।
सुरक्षा की बात चली तो देश की सुरक्षा की भी कुछ चिन्ता कर ली जाय । अनुराग शर्मा खबर लाये हैं कि चीन भारत पर हमला कर सकता है :

जी हाँ! चौंकिए मत। वही कम्युनिस्ट चीन जिसने १९६२ में पंचशील के नारे के पीछे छिपकर हमारी पीठ में छुरा भोंका था, जो आज भी हमारी हजारों एकड़ ज़मीन पर सेंध मारे बैठा है। तिब्बत और अक्साई-चीन को हज़म करके डकार भी न लेने वाला वही साम्यवादी चीन आज फ़िर अपनी भूखी, बेरोजगार और निरंतर दमन से असंतुष्ट जनता का ध्यान आतंरिक उलझनों से हटाने के लिए कभी भी भारत पर एक और हमला कर सकता है। उइगर मुसलामानों, तिबाती बौद्धों, फालुन गोंग एवं अन्य धार्मिक समुदायों का दमन तो दुनिया देख ही रही है मगर इन सब के अलावा वैश्विक मंदी ने सस्ते चीनी निर्यात को बड़ा झटका दिया है। इससे चीन में अभूतपूर्व आंतरिक सामाजिक अशांति पैदा हो रही हैं। निश्चित है कि अपनी ही जनता की पीठ में छुरा भोंकने वाले चीनी तानाशाह चीनी समाज पर कम्युनिस्टों की ढीली होती पकड़ को फ़िर पक्का करने के लिए भारत को कभी भी दगा देने को तैय्यार बैठे हैं।

इस पर टिप्पणी करते हुए भारतीय नागरिक - Indian Citizen कहते हैं :

इसमें सत्यता हो सकती है। चीन ने पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के
जरिये भारत को घेर लिया है। यहां के नेता कुछ देख नहीं पायेंगे। रक्षा सौदे कमीशन
में अटके रहेंगे। सेना में अहम के चलते गैर सैन्य परिवेश के लोग जा नहीं पायेंगे।
हिन्दुस्तान जिन्दाबाद होता रहेगा। नेहरू जी ने कहा था कि चीन से एक-एक इन्च जगह
वापस लेने तक बात नहीं करेंगे क्या हुआ??

नेहरू जी के बाद लालबहादुर शास्त्री जी ने देश की बागडोर सँभाली थी । और दुश्मनों को करारा जवाब दिया था । लेकिन उनकी मौत आज तक अनसुलझा रहस्य बनी हुई है । अनुराग हर्ष अपने ब्लॉग पर पूछते हैं : लाल बहादुर शास्‍त्री की मौत के कारण सार्वजनिक क्‍यों नहीं ? सुना है देश की सरकार ने कहा है कि इससे पड़ौसियों से सम्बन्ध बिगड़ सकते हैं । आखिर किस पड़ौसी देश से हमारे सम्बन्ध अच्छे हैं जो बिगड़ जायेंगे ? समझ नहीं आता । कहीं नेता लोग अपने पड़ौसियों की बात तो नहीं कर रहे ?

जब कार्य होता न दिखे तो परिस्थितियों से समझौता कर लेना चाहिये । कुछ ऐसा ही कहती हैं संगीता पुरी जी :
इतना निश्चित हो गया है कि ग्रहों , नक्षत्रों के प्रभाव को इतना हल्‍का भी नहीं लिया जाना चाहिए । इसके साथ ही साथ अन्‍य रहस्‍यमय शक्तियों और आध्‍यात्‍म को भी महत्‍व देने लगी हूं। ग्रहों के बुरे प्रभाव के कारण हो या अन्‍य किसी रहस्‍मय शक्ति का प्रभाव , मुझे जीवन में यह समझौता करना पडेगा , इसकी उम्‍मीद सपने में भी न थी। पर खैर, जीवन शायद समझौते का ही नाम है , यह समझौता करके मै निश्चिंत हो जाना चाहती हूं।

इसी तरह हेम पाण्डे कहते हैं कि :

मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि अन्धविश्वासी बातों पर अंधविश्वास तो मत कीजिये
लेकिन यदि उन बातों को मानने से किसी का कोई नुक्सान न होता हो तो उन्हें मानने में
हर्ज नहीं।

इस बात से काफ़ी लोगों ने इत्तेफ़ाक जाहिर किया है ।

ज्योतिषियों के लिए एक बाछें खिला देने वाली खबर है । Science Bloggers' Association पर ज्योतिषियों के लिए 10,000.00 आस्ट्रेलियन डालर की एक और चुनौती वाली पोस्ट लगी है सभी ज्योतिषी चर्चा अधूरी छोड़कर पहले वहाँ जा सकते हैं । चर्चा तो बाद में भी पढ़ सकते हैं । इस पर संगीता पुरी कहती हैं :
यह चुनौती ज्‍योतिषियों के किसी काम की नहीं ॥ ज्‍योतिष ग्रहों की स्थिति का आम
जीवन पर पडनेवाले प्रभाव का संकेत मात्र देता है ॥ जिन्‍हें ज्‍योतिष का अर्थ तक
पता नहीं ॥ वे उन्‍हें चुनौती क्‍या दे सकते हैं ॥ तंत्र मंत्र या किसी प्रकार की
सिद्धि रखनेवाले योगी को वहां अवश्‍य संपर्क करना चाहिए ॥ वे जीत सकते हैं।

अगर कोई ज्योतिषी जीत जायें तो पैसा बैंक में जमा अवश्य करेंगे । और जब जमा करेंगे तो कभी न कभी ATM से निकालेंगे भी । और अगर निकालते हुए लूट का शिकार हो गए तो ? तो भी चिन्ता की बात नहीं । बता रहे हैं प्रवीण जाखड़ :
एटीएम में कोई आपको लूटने की कोशिश करे, तो आप बस दबाएं यह सीक्रेट कोड, ताकि पुलिस तुरंत पहुंच कर आपको बचा सके। एक ऐसा सीक्रेट कोड जिसे अब तक आपको एटीएम बनाने वाली कंपनी या बैंक ने भी नहीं बताया है।

पर अगर यह फ़ॉर्मूला फ़ेल हुआ तो आपका बैण्ड बजना तय है । अरविन्द मिश्रा जी के तो इण्टरनेट का ही बैण्ड बज गया । बेचारे बहुत तड़पे । अब हालत नियन्त्रण में बतायी जाती है । पर जब सतीश पंचम अपना सफ़ेद घर छोड़कर केंन्द्रीय ब्लॉगर अनुसंधान संस्थान पहुचे तो हालात नियन्त्रण से बाहर होते दिखे ।
अब साहित्य और टिप्पणी जैसे सदाबहार मुद्दों की बात की जाय तो ? बालसुब्रमण्यम जी ने पूछा : क्या ब्लोग साहित्य है? तो शिवकुमार मिश्र नाम के एक ब्लॉगर ने सवाल का जवाब प्रतिसवाल से दिया और पूछा : वही बात...ब्लॉग को साहित्य कहा जा सकता है या नहीं? अब प्रतिसवाल का उत्तर देते हुए बालसुब्रमण्यम कहते हैं :
पहली बात, शिव जी, कि आप साहित्य और ज्ञान को एक नहीं मान सकते। ज्ञान पल-पल बदलता है, पर साहित्य अधिक स्थायी चीज है, वरना हम आज भी क्यों रामायण-महाभारत का रस ले पाते हैं उन्हें पढ़ते हैं? या आज प्रकाशित उपन्यासों की तुलना में एक शताब्दी से भी पहले प्रकाशित प्रेमचंद, निराला, अमृतलाल नागर या वृंदावनलाल वर्मा की उपन्यास-कहानियों में ज्यादा रस ले पाते हैं?

अन्तिम समाचार मिलने तक शिवजी उत्तर का प्रश्न ढूँढ़ने चले गए हैं । उधर सिद्धार्थ जोशी ने भी शिवजी की पोस्ट रूपी समुद्र का मंथन करके उड़न तश्तरी की सबसे लम्बी टिप्पणी रूपी अमृत निकाल लिया है ।
नौ सम्पादकों और एक स्तम्भकार वाली ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का ३० वाँ अंक आज नीबू मिर्च वाले ब्लॉग पर सफ़लता पूर्वक प्रकाशित हो गया । स्तम्भकार को बधाई जिसने नौ सम्पादकों को झेला ।

और अब कुछ आश्चर्यचकित करने वाली खबरें : cmpershad कलम में लिखते हैं । आप सोचने लगे कि पहला आश्चर्य तो यही हो गया कि कलम में लिखते हैं तो हमारी सलाह है कि पहले पूरी बात पढ़ा कीजिये । बेवजह अपनी अक्ल लगाकर बखेड़ा खड़ा मत करिये । पहले ही यहाँ बहुत बखेड़े होते रहते हैं । हाँ तो वे लिखते हैं कि :
रामायण का वह प्रसंग तो प्रसिद्ध है कि हनुमान जी का पुत्र समुद्र के मत्स्य से हुआ
था। आधुनिक युग में यह स्विमिंग पूल में भी सम्भव है। यह कपोल-कल्पना नहीं! पोलैंड
के वसॉ की एक महिला ने मिस्र की एक होटल पर दावा ठोक दिया है। इस महिला का मानना है कि उसकी बेटी स्विमिंग पूल में तैरने से प्रेग्नेंट हो गई है।

अब आइये दूसरे आश्चर्य पर । यह खबर देते हुए संवाददाता कहते हैं कि भिखारी के बैंक खाते में 14 लाख रुपये मिले हैं । प्रहरी बाबा कहते हैं :
तूतीकोरिन के 70 साल के बीमार भिखारी अब्दुल घली के बैंक में 80 हजार रुपये नकद के
साथ 13 लाख रुपये की संपत्ति जमा है। यह बात तब पता चली जब इस हफ्ते की शुरुआत में कोझीकोड के स्थानीय लोगों ने शक होने पर घली के सामान की तलाशी ली। इसके बाद उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया।

बेचारे भिखारी को पुलिस के हवाले कर दिया ! जैसे इतने रुपए किसी के पास पहली बार मिले हों ।


चलते-चलते
देखि सुदामा सामने, कृष्ण आज सकुचायँ ।
कुर्सी से चिपके रहें, गरबा नहीं लगायँ ॥
गरबा नहीं लगायँ, सुदामा चकित हो गए ।
"किस खयाल में हाय प्रभु जी आज खो गये ?"
विवेक सिंह यों कहें, क्षमा करना गिरधारी !
हमको अच्छी नहीं लगी यह रीत तिहारी ॥

Post Comment

Post Comment

19 टिप्‍पणियां:

  1. यहां मैं और मेरा ब्‍लॉग दोनों हैं। देखकर अच्‍छा लगा। चिठ्ठा चर्चा अखबार की तरह हो गया है और हम छपास रोगी। :)

    जवाब देंहटाएं
  2. टायर सोल की चप्पल पाँव में और बुशर्ट पै ढीलौ पजामा ।
    खूब चकाचक बीड़ी पियत हैं, बतावत आपनौ नाम सुदामा ।

    मैले भये कपड़ा हलवाईन से हाय कबहु इनको नहिं धोये ।
    हाय महा डर्टी हो सखा तुम बामन जाति कौ नाम डुबोये ।


    --ये भी मस्त है!!

    जवाब देंहटाएं
  3. जमाये हैं खूब चर्चा। सुदामा चरित तो और आगे लिखना चाहिये। जय बजरंगबली की!

    जवाब देंहटाएं
  4. मैले भये कपड़ा हलवाईन से हाय कबहु इनको नहिं धोये ।
    हाय महा डर्टी हो सखा तुम बामन जाति कौ नाम डुबोये ।

    .अच्छी रही चर्चा .

    जवाब देंहटाएं
  5. रीत तो हमें भी ना भायी

    जवाब देंहटाएं
  6. घुन्ननवा बचपन में न लखेदे रहा होये, पर ओकरे नाम पर इहां सबइ लखेद हयें!

    जवाब देंहटाएं
  7. आज जरा हट के चर्चा की विवेक जी.. बहुत अच्छा.. लगे रहो..

    जवाब देंहटाएं
  8. "जय बजरंगबली की!"
    लोग कहत थे कि बात नहीं कहने की
    तुमने कह दी है कहने की सज़ा लो यारो:) --दुष्यंत

    ‘कलम’ को चर्चा में लाने [घसीटने] के लिए आभार :)

    जवाब देंहटाएं
  9. आज की चर्चा वाकई हट के थी.. कई अछे विषयों पर चर्चा हो गयी.. मंगलवारी चर्चा में लाल रंग का मिश्रण भी बढ़िया रहा...

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुन्दर और विस्तृत चर्चा.
    मेरा नाम शामिल करने के लिए आपको धन्यवाद और मुझे बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  11. आज पूरे फुर्सत से हुई है चिट्ठा चर्चा !

    जवाब देंहटाएं
  12. चिट्ठों का यह समाहार अच्छा लगा। जयहिंदी का उल्लेख करने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  13. विवेक भैया, हमका तो ई रीत,,,और उससे ज्यादा..ई चर्चा गीत बहुते पसंद है....कसम से..

    जवाब देंहटाएं
  14. विवेक आप सचमुच बड़ी मेहनत से लिखते हैं हर चर्चा...

    जवाब देंहटाएं

चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

नोट- चर्चा में अक्सर स्पैम टिप्पणियों की अधिकता से मोडरेशन लगाया जा सकता है और टिपण्णी प्रकशित होने में विलम्ब भी हो सकता है।

टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.

Google Analytics Alternative