सोमवार, जुलाई 20, 2009

जो बना रहे थे साफ्टवेयर, अब बनायें समोसा


नंदन नीलकेनी


ज्ञानजी देश में इलेक्ट्रानिफ़िकेशन की स्थिति पर अपने विचार व्यक्त करते हैं। सरकारी विभागों में इलेक्ट्रानिफ़िकेशन पर अपनी अपनी पीड़ा बताते हुये ज्ञानजी लिखते हैं:
यह हताशा अवश्य होती है कि ये लोग जब इन्फोसिस बना रहे थे तब हम दफ्तर की फाइल में नोटिंग पेज और करॉस्पोण्डेंस पेज पर नम्बर डालने और फ्लैग लगाने में महारत हासिल कर रहे थे।
ऐसा क्यों है कि सरकारी विभागों में इलेक्ट्रानिफ़िकेशन की हालत इत्ती गयी-गुजरी है? ज्ञानजी की राय में
ब्यूरोक्रेसी इलेक्ट्रॉनीफिकेशन नहीं चाहती। इससे उसका किला ढ़हता है। पावर कम होती है। जनता एम्पावर होने लगती है। जो भ्रष्ट हैं, उनके खेलने खाने के अवसर कम होने लगते हैं।

केंद्रीय कार्यालयों में तो थोड़ी-बहुत इलेक्ट्रानिकी चहल-पहल तो दिखती भी है। राज्य सरकारों में तो हाल और भी गये बीते हैं। वहां नंदन नीलकेनी को कौन जानता होगा! :)

प्रभातगोपाल ने अपने ब्लाग के एक साल पूरे होने पर अपने विचार बताये कि ब्लागिंग जितना आसान लगता है, उतना है नहीं

आजकल बराबरी का जमाना है। घरेलू कामकाम में पतिलोग अपनी पत्नियों की सहायता करने लगे हैं। लेकिन ऐसे पति लोगों के लिये कुछ घरवालों का क्या सोचना होता है यह बता रही हैं रचना त्रिपाठी:
अगर वह अपनी पत्नी के साथ किचेन में हाथ बँटा रहा है तो ‘जोरू का गुलाम’ कहलाने लगता है। अगर उसे अपनी पत्नी की परेशानी से तकलीफ होने लगे और वह उसे दूर करने के लिए कुछ उपाय करे तो उसे कुछ इस तरह कहा जाता है- “घरघुसना कहीं का, जब देखो तब अपनी बीबी का मुँह देखता रहता है। ...इतनी तपस्या से पाल-पोस कर बड़ा किया लेकिन बहू के आते ही हाथ से निकल गया।” अपने आप को कोसते हैं- ‘न जाने पिछले जन्म में कौन सा कर्म किया था जो हमें यह दिन देखने को मिल रहा है।’


आजकल अमेरिका की विदे्शमंत्री श्रीमती हिलेरी क्लिंटन भारत में पधारी हैं। ऐसे मौके पर अजय कुमार झा कहते हैं कि बस्स कुछ समय में ही भारत अमेरिका बनने वाला है। अजय कुमार झा एक सवाल भी उठाते हैं- शादी के कार्ड पर क्यों, एक्सपायरी डेट नहीं होती?

निर्मलानन्द अभयतिवारी अपने कबूतर की तरह के पक्षी हरेवा के बहाने अपने बारे में लिखते हैं:
कभी-कभी डर भी लगता है कि कहीं एक दिन ऐसा न आए कि लोग काम के लिए पूछना भी छोड़ दें। लोग पुर्सिश करते रहें और आप कहें कि अमां जाओ यार कहाँ फंसा रहे हो, हमें अपनी आज़ादी कहीं प्यारी है। मन-माफ़िक काम न मिले तो दो-चार पैंटो और नए-ताज़े असबाब की हवस के लिए रुपये के लिए गधा मजूरी करने से तो इन्कार की यह लज़्ज़त भली। नए कपड़े नहीं खरीदता हूँ, जहाँ तक हो सके बस और ट्रेन से चलता हूँ, सिगरेट छोड़ ही चुका हूँ। जब तक सर पर ना आ पड़े ग़ुलामी नहीं करेंगे ऐसा सोचा है।


संजीव गौतम कुछ दोहे पेश करते हैं:
शहरों में जा गुम हुआ, गांवों का सुख-नेह.
गांवों को भी हो गया, शहरों का मधुमेह.

गोदी में सूरज लिये, मन में गूंगी चीख़.
दोनों हाथ पसारकर, चन्दा मांगे भीख़.


आलोक पुराणिक आज बता रहे हैं कि मंदी के हालात में समोसा साफ़्टवेयर पर भारी है:
मंदी ने लीक बदलवा दी है, कईयों की। जो अमेरिका में साफ्टवेयर बना रहे थे, अब इंडिया में समोसे बनाने की टेकनीक सीख रहे हैं। मंदी में साफ्टवेयर कम बिकता है, पर समोसा मंदीप्रूफ होता है। बल्कि मंदी में ज्यादा बिकता है, जो साफ्टवेयर बनाने में बिजी नहीं होते, वो समोसे ज्यादा खाने लगते हैं। समोसे का महात्म्य समोसे से ज्यादा है। फिर भी पता नहीं, ज्यादातर इंस्टीट्यूट समोसा बनाना नहीं, साफ्टवेयर बनाना सिखाते हैं।


मंदी के मौसम की कहावतें रिलीज करते हुये वे बताते हैं
मंदी में टूटा लीक का भरोसा, जो बना रहे थे साफ्टवेयर, अब बनायें समोसा। काहे का यूएसए काहे की लीक, जो नोट कमवाये, सो समोसा ही ठीक। साफ्टवेयर से होते ना गुजारे, सो चलो समोसे के सहारे।


हम लोग नमस्ते क्यों करते हैं पता है आपको? न पता हो जान लीजिये लगे हाथों।

अजित वडनेरकर आज चूसने और चखने के किस्से सुना रहे हैं।

रमन कौल काफ़ी दिन बाद हमनाम हमसफ़र के बहाने ब्लाग पर आये:
केली हिल्डेब्राँड नाम की एक युवती फेसबुक पर थी। उसने सोचा, जैसा कि हम सब सोचते हैं, कि अपने नाम पर खोज की जाए। अब यह नाम तो इतना आम नहीं है, पर पता लगा कि फेसबुक पर उसी नाम का एक और प्रयोक्ता है, पर वह पुरुष है। उसे ऐसे ही एक संदेश भेजा, कि हम हमनाम हैं तो मैं ने सोचा नमस्ते कह दूँ। बात कुछ आगे बढ़ी, और कुछ समय बाद पुरुष केली सफर पर रवाना हुए और स्त्री कैली से मिल आए। बात फिर आगे बढ़ी और अब केली और केली शादी कर रहे हैं। जी हाँ, केला और केली नहीं, केली और केली।


बच्चे मन के सच्चे की तर्ज पर बुजुर्गों के लिये लिखते हुये विवेक सिंह रचते हैं:
बूढ़े, न समझो कूढ़े........

अगर पुरातनवादी हैं
फ़िर भी दादा-दादी हैं
हमको पाला-पोषा है
कल का नहीं भरोसा है
सेवा इनकी आज करें
इनके दिलों पर राज करें
इनके साथ बिताएं दो पल
दूर करें सन्नाटे.............


विवेक ने अल्पना वर्माजी से अनुरोध भी किया है कि वे इसे अपनी आवाज में गाकर इसे सुनवायें:
अल्पना वर्मा जी से विशेष रिक्वेस्ट है कि यदि संभव हो तो इस गाने को अपनी सुरीली आवाज में गाकर सुना दें । समीर जी कृपया इसे ट्राई न करें :)

अल्पनाजी के प्रयास का इंतजार है लेकिन वे अगर इसे गायें तो कूढ़े की जगह कू़ड़े कहें। समीरलालजी के ट्राई करने न करने के बारे में हम कुछ नहीं कहेंगे।

शयामल सुमन कहते हैं:

है प्रेमी का मिलन मुश्किल, भला कैसी रवायत है
मुझे बस याद रख लेना, यही क्या कम इनायत है
भ्रमर को कौन रोकेगा सुमन के पास जाने से
नजर से देख भर लूँ फिर, नहीं कोई शिकायत है


योगेन्द्र मोद्गिल फ़रमाते हैं:

चुटकुले तो मंच पर ऐंठे रहे
गीत-गजलों का मरण होता रहा

वोट- चंदा- लूट- हेराफेरियां
शहर में जनजागरण होता रहा



जादू
दिन पर दिन ब्लाग की दुनिया में नये-नये लिखने वाले जुड़ते जा रहे हैं। अभी -अभी फ़रवरी , २००९ में जन्म लेने वाले जादू भी अब ब्लाग की दुनिया से जुड़ गये हैं:
लो मैं आ गया । मेरा मतलब मैं 'जादू' ब्‍लॉगिंग की दुनिया में आ गया । आप सोच रहे होंगे कि भला 'जादू' भी कोई नाम हुआ । अरे भई छब्‍बीस फरवरी 2009 को जब मैं पैदा हुआ था तो मेरे बबलू चाचू ने पहले ही दिन देखकर कहा था--'अरे ये तो जादू है' । उन्‍हें मैं फिल्‍म 'कोई मिल गया' के 'जादू' की तरह cute जो लगा था । उसके बाद परिवार के सभी लोग मुझे 'जादू' ही कहते हैं । वैसे मेरा एक असली नाम भी है, जो मैं आपको आगे चलकर कभी बताऊंगा ।



काफ़ी दिनों से दिल्ली में ब्लागर सम्मेलन कराने के प्रयास चल रहे हैं। आज फ़िर अपील की गयी है!

दिल्ली में हुआ मेट्रो हादसा अभी जांच के दौर से गुजर रहा है। आदर्श राठौर का मानना है कि मैट्रो हादसा दैवीय प्रकोप का नतीजा! है!

प्रिंट मीडिया हिन्दी की कैसी दु्र्दशा कर रहा है देखिये:
यहाँ मैं हिन्दी समाचार पत्र 'दैनिक भास्कर', जो उसमें छपने वाली एक पंक्ति के अनुसार 'भारत का सबसे बड़ा समाचार पत्र समूह' है, द्वारा की जाने वाली हिन्दी की दुर्दशा का वर्णन कर रहा हूँ. इस पत्र में छपने वाले कॉलम इस प्रकार हैं - 'मानसून वॉच' और 'न्यूज इनबॉक्स'. अन्य नमूने - सिटी अलर्ट,सिटी इन्फो, डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क,मार्केट डिजिट्स,वर्ल्ड स्पोर्ट्स, सिटी स्पोर्ट्स,आदि. गनीमत है की सिटी भास्कर , सिटी प्लस,सिटी हॉट और वूमन भास्कर में वे देवनागरी का प्रयोग कर रहे हैं. 'भास्कर classified' और 'DB स्टार' में तो उन्होंने देवनागरी को भी नहीं बख्शा है.


मुनीश आपको आज सैर करा रहे हैं कोणार्क की। देखिये और आनन्दित होइये। कोणार्क की मूर्तियों के बारे में विभिन्न मत हैं:
मूर्तियों के बारे में एक थ्योरी ये है की वर्षा का देवता इन्द्र इन दृश्यों को देख कर प्रसन्न होगा और समयानुकूल वर्षा होगी , दूसरी थ्योरी ये है की कलिंग युद्ध में हुए भीषण रक्त-पात के बाद आम-जन में वैराग्य व्याप गया और जनसँख्या में हो रही गिरावट से परेशान होकर तत्कालीन राजाओं ने जनता को विवाह संबंधों के लिए प्रेरित करने के मकसद से इन्हें बनवाया , तीसरा मत ये है की मूर्तिकारों को १२ वर्ष तक पूरी रचनात्मक छूट दी गयी मगर परिवार से दूर रखा गया और ये उनकी दमित आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति है , एक मत इन चित्रणों को जीवन की पूर्णता का गान मानता है . बहरहाल , भारत के गौरवमयी अतीत को जान पाना इस मंदिर को देखे बिना असंभव है ।


पाखी
कल आइसक्रीम डे था। इसकी जानकारी पाखी ने दी बाकायदे आइसक्रीम खाते हुये:
आइसक्रीम खाना मुझे बहुत अच्छा लगता है। कोई भी सीजन हो आइसक्रीम के बिना मेरा दिन पूरा नहीं होता। स्ट्राबेरी मेरा सबसे फेवरेट है. पर मैं बटर स्काच, चाकलेट, केसर पिस्ता, ब्लेक करेंट भी खा लेती हूँ। वेनिला तो मुझे अच्छी नहीं लगती है. मेरी टीचर बता रही थीं कि आज "नेशनल आइसक्रीम डे" है। यह हमेशा जुलाई मंथ के थर्ड संडे को सेलिब्रेट किया जाता है. यू.एस.ए. के प्रेसिडेंट रोनाल्ड रीगन को आइसक्रीम इतनी अच्छी लगती थी कि उन्होंने जुलाई को आइसक्रीम मंथ ही डिक्लेयर कर दिया, देखा न आइसक्रीम का कमाल. अब आप भी खूब आइसक्रीम खाओ। मैं तो चली एक और आइसक्रीम खाने कहीं मेल्ट न हो जाए ...हा..हा..हा...!!


और अंत में

हफ़्ते की शुरुआत में फ़िलहाल इतना ही। आपका हफ़्ता चकाचक शुरू हो इसके लिये शुभकामनायें।

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13 टिप्‍पणियां:

  1. एक लाईना कहां गईं
    चर्चा मस्‍त रही।

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  2. जादु और पाखी को एक साथ चिट्ठा चर्चा में देख अच्छा लगा..देखते देखते एक साल में कितने बच्चे चिट्ठा लिखने लग गये.. वो दिन दूर नहीं जब एक एक्सक्लुजिव चर्चा बच्चों के चिट्ठों की हो्गी..:))

    आपको भी चकाचक शुभकामनाऐं..

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  3. क्या साफ्टवेअर इंजिनियर क्या वे भजिया समोसा के साफ्टवेअर बनायेगे इतने गए गुजरे हो गए . आनंद आ गया. पंडित जी बढ़िया चर्चा

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  4. अब तो नन्हे मुन्नों की गैंग बन रही है.. लगता है खूब धमा चौकडी होने वाली है.. वैसे आप तो हर बात पर कुछ ना कुछ कहते है फिर समीर लाल जी के ट्राई करने के मामले में चुप क्यों है.. जवाब दीजिये.. अदालत जवाब मांगती है..

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  5. हिन्दी ब्लोगजगत परिवार की तरह बढ़ रहा है, अच्छा लग रहा है।

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  6. कल सुबह नाश्ता कराया था आज सीधे भोजन करा दिया,नाश्ता/एक लाइना कंहा है भैया जी।

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  7. हमें नयी चर्चाये भी दिखने लगी है वैसे ...देखे कही एक लाइना भी ना दिख जाये.कृपया "पेटेंट " के लिए शीघ्र एप्लाय करे...

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  8. ब्यूरोक्रेसी का इलेक्ट्रोन और पोलिटिक्स का एलेक्ट्रान मिल कर जो न्यूट्रान का धमाका होगा वो सारे समोसे खा जाएगा 15 पैसे भी जनता के लिए नहीं बचेंगे:)

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  9. चर्चा का इन्फेक्शन बड़ा तगड़ा दिख रहा है । अनुराग जी ने कहा ही कि नयी नयी चर्चायें दिखने लगी हैं अब ।
    बेहतर चिट्ठा चर्चाकारी ।

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  10. @ फ़लाँ, फ़लाँ & फ़लाँ,

    समीर जी से ट्राई न करने का आग्रह किए जाने को लेकर काफ़ी हल्ला सुनाई दे रहा है, लिहाज़ा कम्पनी को अपना दृष्टिकोण किलियर करना पड़ रहा है . दर असल कम्पनी का मानना है कि समीर जी की आवाज जैसी धाँसू आवाज ब्लॉगरों में शायद ही मिले और वे गाने का शौक भी रखते हैं , अगर उन्होंने गाया तो गाना तो हिट हो जाएगा पर इसकी मूल भावना, जो इसको कोमल आवाज में गाने से ही सामने आ सकती है, शायद जाती रहेगी , सिर्फ़ इसीलिए उनसे रिक्वेस्ट की गयी थी ,

    नहिं सन्तोष त पुनि कछु कहहूँ ?

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  11. @ कुश

    ये जानते हैं कि मना करने के बाद मैं और ज्यादा मन लगा कर, बहुत सुरीली आवाज में गाने लगता हूँ..फुरसतिया जी को तो साक्षात घर पर सुनाकर आया हूँ. आँख भर आई थी उनकी आवाज में दर्द देखकर. अब आखिर बार बार रो भी तो नहीं सकते वो!!

    @ विवेक

    चिन्ता न करो बालक..रिकार्डिंग चालू है. मना करके तुमने बड़ा ही अच्छा किया..अब गीत में पूरा सही दर्द उतरेगा..जो इस गाने की मांग है..हा हा!!


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    बहुत मस्त और विस्तूत चर्चा.

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  12. चर्चा बढ़िया है - पूर्व की तरह। इस ब्लॉग की फीड नहीं मिल रही - पूर्व की तरह!

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  13. Kya aren sab behal hai.. bhai aap bhi hamre blog me samil ho gaye ab to apke post aake bbad sidhe bhojpurikhoj par link ke roop me dikhegen

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