हाल ही में उनके बारे में हिंदू अखबार में एक लेख पढ़ रहा था जिसे शास्त्रीय गायिका शन्नो खुराना ने लिखा है। शन्नो लिखती हैं कि गंगूबाई को इस बात का मलाल रहा कि स्वतंत्रता के पश्चात भी महिला शास्त्रीय गायकों के लिए अभी तक सम्मान सूचक उपाधियाँ जैसे पंडित , उस्ताद आदि के सामानांतर कोई पदवी नहीं बनी है जिसे उनके नाम के साथ लिया जा सके।
गंगूबाई का प्रश्न वाज़िब है और संगीत के मठाधीशों को इस बारे में गहन चिंतन की आवश्यकता है कि इस स्थिति में बदलाव क्यूँ नहीं आ रहा?
वैसे गंगूबाई का नाम गंगूबाई की क्यूँ पड़ा इसके पीछे भी एक कहानी है। उनका वास्तविक नाम गान्धारी था पर उनके संगीत को जनता के सामने पहुँचाने का जिम्मा जिस कंपनी ने पहले पहल लिया उसके अधिकारियों का मानना था कि उस ज़माने का श्रोता वर्ग सिर्फ नाचने गाने वाली बाइयों के ही रिकार्ड खरीदता है। इसीलिए उन्होंने गान्धारी हंगल जैसे प्यारे नाम को बदल कर चलताऊ गंगूबाई हंगल कर दिया।
चिट्ठाजगत में भी गंगूबाई हंगल पर कई लेख लिखे गए पर एक जिद्दी धुन पर असद ज़ैदी का ये आलेख मुझे उनके व्यक्तित्व के ज्यादा करीब ले जा पाया। असद ज़ैदी उनके बारे में कहते हैं।
सवाई गन्धर्व की इस किस्मतवाली शिष्या ने अब्दुल करीम खां, भास्करराव बाखले, अल्लादिया खां, फैयाज़ खां को चलते फिरते देखा और गाते हुए सुना था. उन्होंने बचपन और जवानी के आरंभिक दौर में घोर ग़रीबी, सामाजिक अपमान और भूख का सामना किया. किसी कार्यक्रम में उस्ताद अब्दुल करीम खां ने उनका गाना सुना, उनका हुलिया अच्छी तरह देखा, फिर पास बुलाकर उनके सर पर हाथ फेरकर बोले: "बेटी, खूब खाना और खूब गाना!" बालिका गंगूबाई सिमटी हुई सोच रही थी : गाना तो घर में खूब है, पर खाना कहाँ है!
वहीं राधिका बुधकर जी ने भी उनकी गाई कुछ रिकार्डिंग्स का यहाँ एक संकलन पेश किया। वैसे शास्त्रीयता के रंग में कई सांगीतिक चिट्ठे इस महिने डूबे रहे। भाई संजय पटेल ने तो हमारी मुलाकात ऍसे साधक से करवा दी जो कमाल का गायक भी है। इनके बारे में संजय जी लिखते हैं..
आसमान में बादल छाए हैं.आइये गोस्वामी गोकुलोत्सवजी के स्वर में सुनें राग मियाँ मल्हार. बंदिश उनकी स्वरचित है. यह गायकी उस रस का आस्वादन करवाती है जो किसी और लोक से आई लगती है और जब कानों में पड़ती है तो उसके बाद कुछ और सुनने को जी नहीं करता.
वैसे शास्त्रीय संगीत या फिर शास्त्रीय रंगत में रंगे कुछ फिल्मी गीत सुनना चाहें तो इन लिंकों का रुख करें ...
- जब याद पिया की लाए मुबारक अली खाँ
- राग कलावती पर संगीतकार रौशन की जादूगरी
- पंडित छन्नू लाल मिश्र की कज़री
- और ये रहा भरा पूरा राग मालकौस
- कैसे छाया जगाई हृदयनाथ मंगेशकर ने..
आवाज़ पर सुजॉय चटर्जी ने फिर कुछ सदाबहार पुराने नग्मे सुनाए और उनसे जुड़ी जानकारियाँ बाँटी। पर उनके चुने गए गीतों में मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया मुकेश का गाया जब गमे इश्क़ सताता है तो हँस लेता हूँ.....। इस गीत के कम चर्चित गीतकार न्याय शर्मा के बारे में सुजॉय लिखते हैं..गीता दत्त , या गीता रॊय… एक अधूरी सी कविता , या बीच में रुक गयी फ़िल्म , जो अपने मंज़िल तक नहीं पहुंच पायी. क्या क्या बेहतरीन गीत गाये थे .. दर्द भरे भाव, संवेदना भरे स्वर को अपनी मखमली मदहोश करने वाली आवाज़ के ज़रिये.
गीता दत्त रॉय, पहले प्रेमिका, बाद में पत्नी.सुख और दुःख की साथी और प्रणेता ..अशांत, अधूरे कलाकार गुरुदत्त की हमसफ़र..
जयदेव की धुन और संगीत संयोजन उत्तम है, मुकेश के दर्द भरे अंदाज़ के तो क्या कहने, लेकिन उससे भी ज़्यादा असरदार हैं शायर न्याय शर्मा के लिखे बोल जो ज़हन में देर तक रह जाते हैं। ऐसे और न जाने कितने फ़िल्मी और ग़ैर फ़िल्मी गीतों और ग़ज़लों को अपने ख़यालों की वादियों से सुननेवालों के दिलों तक पहुँचाने का नेक काम किया है न्याय शर्मा ने।
पुराने गीतों का शौक है तो इन लिकों पर भी नज़र डालिए
- आशा ताई के गाए खुशबू फिल्म के यादगार गीत
- मदनमोहन की वो लुभावनी ग़ज़लें और गीत
- अमीर खुसरों की तान जिसमें गुलज़ार ने डाली जान
- रूठ के तुम जो चल दिए
ऍसा नहीं कि नई रचनाएँ असर नहीं डाल रहीं। इस बार नए गीतों में मेरी पसंद के इन दो गीतों को सुनना ना भूलिए
- पहली आवाज़ पर गुलज़ार का अपने ही दिल को धिक्कारता ये कमीना गीत
- और दूसरे एक शाम मेरे नाम पर राहत फतेह अली खाँ का गाया प्रेम की चाशनी में डूबा सूफ़ियाना नग्मा हाल-ए-दिल. और हाँ इन दोनों ही गीतों के संगीतकार हैं विशाल भारद्वाज
लोकवाद्य में अगर आपकी रुचि है तो झारखंड के वाद्य यंत्रों के बारे में प्रीतिमा वत्स का ये आलेख बेहद ज्ञानप्रद रहेगा।
तो ये थी इस महिने हिंदी चिट्ठा जगत पर प्रस्तुत गीत संगीत की यात्रा। तो अब चलते चलते कुछ शेर-ओ-शायरी भी हो जाए। मोहब्बतों के शायर क़तील शिफाई जिनकी पुण्य तिथि इसी ग्यारह जुलाई को थी, की एक ग़ज़ल के चंद शेर देश के आज के हालातों को बड़े करीब से छूते हैं। मिसाल के तौर पर रहर दाल की आसमान छूती कीमतों पर उनका ये शेर याद आता है..
हौसला किसमें है युसुफ़ की ख़रीदारी का
अब तो मँहगाई के चर्चे है ज़ुलैख़ाओं में
(जनाब यूसुफ़ हजरत याकूब के पुत्र थे जो परम सुंदर थे और जिन्हें उनके भाइयों ने ईर्ष्यावश बेच दिया था। आगे चल कर इन पर मिश्र की रानी जुलैख़ा आसक्त हो गईं थीं और वे मिश्र के राजा बन गए। )
तमाम भविष्यवक्ता इस साल भी ठीक ठाक मानसून की घोषणा कर रहे थे। अब पाते हैं कि कहीं अकाल है तो कहीं बाढ़ ऍसे में देश का आम किसान तो यही कहेगा ना
जिस बरहमन ने कहा है के ये साल अच्छा है
उस को दफ़्नाओ मेरे हाथ की रेखाओं में
क़तील की आवाज़ में ये पूरी ग़ज़ल आप यहाँ सुन सकते हैं।
गीत-संगीत की अच्छी चर्चा पढ़ने को मिली सुबह-सुबह। महिला गायकों को पंडित या उस्ताद के समकक्ष न पुकारे जाने की बात पर बहस होनी चाहिये। गंगूबाई को हमारी विनम्र श्रद्धाजंलि।
जवाब देंहटाएंआपका आभार भाई कि आपने ब्लागजगत का सारा संगीत एक ही जगह ला दिय. इनको मैं आराम से सुनुंगा.
जवाब देंहटाएंआप ने बहुत सारा सुनने लायक एक साथ सजा दिया है। हम जैसे आलसी लोगों के बहुत काम का है।
जवाब देंहटाएंमहिलाओं के लिए विदूषी कहा जाता है। विविध भारती के संगीत सरिता और अनुरंजनि कार्यक्रम में महिला संगीतज्ञों के नाम से पहले अनिवार्य रूप से विदूषी कहा जाता है।
जवाब देंहटाएंsangeet se jude badhiya jaankari ke liye aapka aabhar vyakt karata hoon..
जवाब देंहटाएंaur gangubai ki kami hamesha rahegi unhone itane dino me sangeet ko ek mukam diya hai..
shrddanjali..
पंडित गंगूबाई हंगल को श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंकलाकारों की कला जो अविस्मरणीय हो, वही पांडित्य का पैमाना होगा, भले ही कोई संस्था उन्हें किसी टाइटल से नवाज़ा न हो। गंगूबाई हंगल जी को नमन॥
जवाब देंहटाएंमनीश भाई, एक बात चलते-चलते बता दें.....सभी गायिकाएं महिला ही होती हैं:)
शीर्षक में पूछे गये प्रश्न से सौ प्रतिशत सहमत...
जवाब देंहटाएंकई बार शास्त्रीय संगीत की महिला कलाकारों को विदुषी कह कर पुकारा जाता सुना है परन्तु यह संबोधन तो किसी भी विद्वान महिला के लिये हो सकता है, मसलन कोई लेखिका!
अगर श्रद्धेय गंगूबाई को पंडिता गंगूबाई कह पुआकारा जाये तो कितना बढ़िया हो!
बढ़िया चर्चा के लिये धन्यवाद मनीष भाई।
बहुत सुन्दर गीत संगीत चर्चा रही.
जवाब देंहटाएंगंगूबाई हंगल को श्रृद्धांजलि!!
गंगूबाई हंगल को मेरी श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंसागर का सुझाव काबिल-ए-गौर है . महाराष्ट्र व बंगाल में आदरणीया गंगूबाई जैसी अनन्य संगीत-साधिकाओं को पंडिता कहने की परम्परा है . अभी फ़ेसबुक पर स्व. गंगूबाई हंगल को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रसिद्ध हारमोनियम वादक पं.ज्योति गुहो ने उन्हें पंडिता गंगूबाई हंगल कह कर ही संबोधित किया है .
जवाब देंहटाएंबेहतर सवाल...
जवाब देंहटाएंशायद उन्हें पुरूषसत्ता सूचक उपाधियों की जरूरत नहीं है...
अत्यंत सुरम्य संकलन ! आपका शुक्रिया प्रस्तुति के लिए
जवाब देंहटाएं- लावण्या
वाह गीत संगीत की इतनी अछे जानकारी............ बहुत खूब............ गंगू बाई का निधन एक क्षति है गीत की दुनिया में
जवाब देंहटाएंक्षमा करे ये पोस्ट काफी दिनों बाद पढ़ रही हूँ ,सही हैं सिर्फ विदुषी शब्द को छोड़ कर मुझे भी ऐसी कोई उपाधि याद नहीं आ रही जो शास्त्रीय संगीत गयिकाओ को सम्मानजनक संबोधन देने के लिए हो.आपकी पोस्ट बहुत ही अच्छी रही . आपको धन्यवाद .
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