बुधवार, दिसंबर 09, 2009

उसने मुझे चूमा बहुत धीमे मैंने कसके

 

एक लाईना

  1. मेरी बगियाँ... : में फ़ूल  300 खिलेimage
  2. चंद फुटकर ब्लॉग-कवितायें: इत्ता चिल्लर कहां से लाये?
  3. 6 दिसंबर को बहुत कुछ याद आता है...: 6 के बाद सब बिसर जाता है।
  4. प्रजाति या पर्यावरण: के बहाने जीनियस की पूंछ से मुलाकात
  5. आपसे कहता हूँ:  लेकिन आपने सागर से कह दिया। वो आया टिपियाया और चला गया।
  6. किस्सा कुर्सी का : बैठा है मेज पर!
  7. कीर्ति चाहिए तो कुकूर बनिए: भूकिए कम कम-कम तनिए
  8. 'भगवान' से बड़ा 'इंसान'...खुशदीप: ही हो सकते हैं।
  9. तुम यौवन की राजकुमारी में पीड़ा शहजादा हूँ: प्रेम कीट हित उपलब्ध रहूंगा यह तो  अपना  वादा है।
  10. पहले पढ़ा, अब देखिये..: सुनिये अपने जोखिम पर।image
  11. वाह बाबु क्या ठाठ है..: सोफ़े पर बैठा जैसे कोई लाट है।
  12. अधूरा रह गया दुबई देखने का ख़्वाब: पलट के सो जाओ और देख लो ख्वाब
  13. जरूरी है मास्टर ऑफ जुगाड़ मैनेजमेंट: मंगाओ यार किलो- दो किलो दौड़ाओ कोई एजेंट
  14. इस बटवारे में ५ लाख हिंदू सीखो की जाने गयी: ५ लाख मतलब ५x १०x१०० x१००
  15. मैं तस्वीर उतारता हूँ...:इज्जत उतरवाने के लिये उधर जाइये!
  16. वन-रूम सेट में बसती दिल्ली : का डबलपना जालिम है।
  17. आपके दिन और मेरी रातें मँगलमय हों... हैप्पी ब्लॉगिंग...: टिप्पणियां मिलती रहें होती रहे जय हो।
  18. जहाँ स्त्रियों की स्थिति गुलामों से भी बदतर थी: होगी ही क्योंकि गुलाम भी थे तो पुरुष ही!
  19. ललित शर्मा अंकल से मिले हम: लेकिन उनकी मूंछों के बारे में कोई बयान नहीं देंगे।
  20. मनुष्य और पशु प्रेम की एक मिशाल !!!!: बसंती कुतिया ने जन्मे छह लाल।
  21. नमक आंखों में होना चाहिए: विद्या बालन:नमक के साथ थोड़ा मिर्च भी तो होना चाहिए था!
  22. सवाल हुर्रियत की भूमिका का भी है !: लेकिन वे तो ब्लागर हैं नहीं।
  23. जनता कौन-सा तरीका अपनाये ? : जब तक तय न हो तब तक जूता ही सही।
  24. पैसेंजरों को सताने के कुछ उपाय: खोजने के लिये ब्लागरों के पास आयें।

  25. शहीदों की प्रतिमाओं पर बैठेंगे रोज़ ही कौए ..: नीचे बैठा पियक्कड़ कहेगा- नशा अच्छा है चख ले भैये।

  26. नियमों का पालन करनाः क्यों मज़ाक करते हो...: आदत खराब करवाओगे?
  27. कोपेनहेगन में दुनिया को बचाने का मौका.: गंवा के तब फ़िर बात करें।
  28. न जाने नया साल क्या गुल खिलाए !: कहीं कोई ब्लागर कविता सुनाकर न चला जाये।
  29. समीर लाल "समीर" जी की कविता रेडियो मिष्टी सिक्किम 95FM par: सुनने के पहले कन्फ़र्म करो कि आवाज उनकी नहीं है।
  30. जीवन में पुरूषार्थ और भाग्य.दोनों का ही अपना अपना महत्व है...............: दोनों अपनी-अपनी ढपली बजाते रहते हैं जीवन राग के लिये।
  31. कोई दम में आतिशफ़िशाँ फटेगा कभी ?: फ़टे तो बताइयो भैया कान बंद कर लेंगे।
  32. डीयू में सेक्शुअल हरासमेंट के खिलाफ पिंक लिटरेचर कैंपेन: स्वागत है।
  33. नये शहर में एक पुराने दोस्त से मुलाकात...: पुरानेपन के बावजूद कुंवारापन बचाये  है।
  34. यथार्थ का क्रॉस वेरिफिकेशन !:आभासी दुनिया का पसंदीदा चोचला है।
  35. चूसता ही जा रहा दहेज मेरे देश में..........: देश और दहेज दोनों को मजा आ रहा है।
  36. अगर एक महीने के अंदर आरोप लगाने वालों व मीडिया को नहीं निपटाया तो मैं ढाढी मुंछ मुड़वा लूंगा। आशाराम बापू ने दी खुलेआम धमकी...: धमकी छोड़ो ये बताओ कि नाई तय किया कोई?
  37. सरकारी ज़मीन और पूजा स्थल: पर माफ़िया कब्जा करते जा रहे हैं।
  38. आधी रात को बिस्तर में ध्यान करता है.........: अनिद्रा के रोगी की बड़ी आफ़त होती है।
  39. देखें कार्टून :--- अफसर के लोंकर में दो किलो सोना मिला....: दो किलो -बस्स?
  40. लेखक और बीवी!: में 36 का आंकड़ा होने से गठबंधन पक्का रहता है।
  41. जिन्हें राष्ट्रपति ने गुण्डे कहा अखबार ने उन्हें शहीद कहा: इसे कहते हैं कम्युनिकेशन गैप।
  42. देखिये आज का जादू!!!!: देखियेगा पहले ताली तो बजाइये।
  43. गूगल को शिकायत: हिन्दी में अच्छा कन्टेन्ट नहीं है: हिंदी वाले उछल-कूद में लगे हैं।

  44. अमिताभ नहीं होते तो देखते पा?: कोई पा हैं क्या जो देखते?

  45. मीडिया का नया सच : अब न्यूज़ रूम में सिर्फ़ दारु पी जाएगी, सिगरेट नहीं.....: कलेजा जल्दी जलवाना है क्या भाई।
  46. देख शीश शर्म से झुक जायगा!!!!: जिसके स्पांडलाइटिस है वो तो मर जायेगा।
  47. बाहर निकाल लो मेरी त्वचा से अपनी सुवास: मेरे अंदर फ़िर से जीने की उठी है आस।
  48. चुनावी विकृतियों पर अंकुश जरूरी: चुनावी विकृतियों के हाथी का महावत किधर है?
  49. एक सूटकेस में भरे प्रेम के सारे विशेषण: और उड़ चला सारी भाषाओं के पार।image
  50. जब हम प्यार करते हैं: तो एक कविता तो लिख ही मारते हैं।
  51. ‘उत्तर’ वे हैं, किन्तु प्रश्न हमसे पूछ रहे हैं: बोले तो उल्टे बांस बरेली को।
  52. गीत का एक भी बोल याद नहीं: मेमोरी कैप्सूल खाया करो भाई।
  53. महंगाई ने बदली जीवन शैली: सब्जी खरीदने में ही सारी जेब ढीली।
  54. चिड़िया भर आसमान:चलो फुर्र से निकल उड़ चले
  55. 'अपनी शर्तो पर जीना': बहुत मेहनत का काम है जी।
  56. ज़िन्दगी हमारी रोज़ क्लास लेती है..: लेकिन हम रोज फ़ूट लेते हैं
  57. मुंबई ब्लॉगर मीट - रपट विवेक रस्तोगी:  की लिख गयी! बड़ी आफ़त है।
  58. तब तो अब हड़ताल भी खत्म हो ही जाएगी: तो कोई नयी चीज आयेगी।
  59. "सभ्यता का फट गया क्यों आवरण?: सस्ता कपड़ा प्रयोग करने पर यही होता है।

  60. उसने मुझे, चूमा बहुत धीमे, मैंने कसके: दिखे पिताजी, सर पे धरा पैर, भागे कस के।

डा.लाल रत्नाकर के हायकू

बाथ रूम में

नहीं है वे जिन्हें

होना था वहाँ

जिससे मिला 

वह कोई और था 

निकाला काम

जब बात हो

यह कह देना मै 

नहीं आऊंगा

उसने मुझे 

चूमा बहुत धीमे 

मैंने कसके

सुबह उठा 

जैसे संगिनी उठी 

सपने टूटे

तारों की छाँव 

नदी के किनारे का 

हमारा गाँव 

वह नज़र 

भोगा जब उसका 

मैंने कहर 

जिसने सुना 

भरोसा नहीं किया 

आरोपों पर 

निकाला मैंने 

दिल में चुभती सी 

उनकी यादें 

नहीं चाहते 

वह मै आगे आऊ

राजनीति में 

कुचक्र गढ़ा

जान बूझ करके 

तब उसने 

जब सहज 

हो रहा था उसका 

उजड़ा मन

धैर्य नहीं था 

उसके चक्कर में 

फसा हुआ

   परम वीर 

मिलना ही चहिये

बेईमानों को 

थाबटी रेवड़ी

अपनो अपनो को  

हमें मिली थी 

वह खुश थे 

सपना भाग गयी 

बेवफा  बीबी 

आप कहाँ थे 

लूट रहा था जब 

घर उनका 

हम सो गए 

जब लूट रहा था 

पडोसी घर 

षडयंत्र हाँ 

सरकारी दफ्तर 

रचवाते है

उसने पूंछा 

बिकती है नौकरी 

चपरासी की

मेरी पसंद

image एक ऐसे समय में
जब काला सूरज ड़ूबता नहीं दिख रहा है
और सुर्ख़ सूरज के निकलने की अभी उम्मीद नहीं है

एक ऐसे समय में
जब यथार्थ गले से नीचे नहीं उतर रहा है
और आस्थाएं थूकी न जा पा रही हैं

एक ऐसे समय में
जब अतीत की श्रेष्ठता का ढ़ोल पीटा जा रहा है
और भविष्य अनिश्चित और असुरक्षित दिख रहा है

एक ऐसे समय में
जब भ्रमित दिवाःस्वप्नों से हमारी झोली भरी है
और पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक रही है

एक ऐसे समय में
जब लग रहा है कि पूरी दुनिया हमारी पहुंच में है
और मुट्ठी से रेत का आख़िरी ज़र्रा भी सरकता सा लग रहा है

एक ऐसे समय में
जब सिद्ध किया जा रहा है
कि यह दुनिया निर्वैकल्पिक है
कि इस रात की कोई सुबह नहीं
और मुर्गों की बांगों की गूंज भी
लगातार माहौल को खदबदा रही हैं

एक ऐसे समय में
जब लगता है कि कुछ नहीं किया जा सकता
दरअसल
यही समय होता है
जब कुछ किया जा सकता है

जब कुछ जरूर किया जाना चाहिए

रवि कुमार

image

image “जब कविता राजसभा की रुचि के अनुकूल रची जाने लगे, जब कवि मां सरस्वती की अर्चना से पूर्व राजसभा को नमन करने लग जाये , जब कविता  उन दिशाओं से नेत्र मूंदकर चले, जिसका निषेध राजसभा ने कर रखा हो….तब कोई कविता रचे ही क्यों?…और तुम मूर्खों सम कहती हो कि मैं कविता लिखूं।”

इतना लंबा वाक्य बोलते-बोलते श्वास भर आई उनकी।
शुभांगदा ने व्याकुल होकर उनका हाथ पकड़ा और आग्रहपूर्वक उन्हें आसन दिया। शुभांगदा के स्पर्श में भी सांत्वना है, और यह आश्वासन भी कि उनकी हर विपत्ति में वह उनके साथ है। प्रसन्नजित के हाथ उत्तेजनावश कंपित हैं। कंपन शुभांगदा की हथेलियों तक पहुंच रहा है।

”यह कविता रचने का समय नहीं है शुभांगदा…।”
प्रसन्नजित के स्वर में निराशा है, और पराजय भाव भी। पराजित तो वे हुये ही नहीं थे कभी। पुन:?

शुभांगदा ने प्रसन्नजित की कंपित हथेलियों को सहलाते हुये कहा,” मैं बहुत बुद्धिमति तो नहीं स्वामी…., परंतु
मुझे प्रतीत होता है कि यही तो सच्चा समय है कविता रचने का…. सच्ची कविता रचने का….।

प्रसन्नजित अवाक होकर शुभांगदा के मुख को देखते ही रह गये।
पत्नी को सदैव ही उन्होंने मंदबुद्धि माना है, जैसा कि अयोध्या के पतियों के मध्य परंपरा सी रही आती है। परंतु कितनी गहन बात कह गयी है वह …और वे स्वयं को बड़ा बुद्धिमान मानते रहे।
सत्य ही तो कहा शुभांगदा ने।
सत्य है कि कोई भी समय ऐसा कठिन नहीं हो सकता कि कविता न लिखी जा सके! वस्तुत: समय जितना क्रूर  ,प्रतिकूल और कठिन होगा ,कविता रचने हेतु वह उतना ही अनिवार्य समय भी होगा। समय का सच तब और भी कविता के सच में उतरना चाहिये जब झूठ का समय चल रहा हो। कविता मात्र व्याकरण सम्मत छंद या श्लोक रचना ही तो नहीं है।… काश कि ऐसा होता। तब कवि का जीवन कितना सरल और सुखी हो जाता।
पत्नी का एकदम नवीन रूप है यह।
imageप्रसन्नजित उसे एकटक निहार रहे हैं।
पादुकाराज की भंवर में डूबते प्रसन्नजित को कुछ समय पूर्व तक मानों तिनके का भी संबल भी नहीं था—और यहां  तो मानो तट ही प्राप्त हो गया था।
सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार ज्ञानचतुर्वेदी के उपन्यास मरीचिका से

और अंत में:

कल रंजन ने टिपियाया --अच्छी चर्चा बस एक लाईन शाम को ले आइये... वक्त मिले तो..

रंजन बोले तो आदि के पापा की मांग पूरी करने के लिये कल ही चर्चा करने के बहाने एक लाईना लिखने बैठे तो लिखते ही रह गये और तारीख पलट गयी। इसके बाद डा.लाल रत्नाकर के हायकू दिख गये। मजेदार लगे। खासकर ये वाला फ़िर देखिये न!

उसने मुझे 

चूमा बहुत धीमे 

मैंने कसके

इसके बाद दिखी रविकुमार की बेहतरीन कविता। इसके केंद्रीय भाव देखिये:

एक ऐसे समय में
जब लगता है कि कुछ नहीं किया जा सकता
दरअसल
यही समय होता है
जब कुछ किया जा सकता है

जब कुछ जरूर किया जाना चाहिए

इस बेहतरीन कविता के भाव देखकर फ़िर मुझे ज्ञान चतुर्वेदी जी के व्यंग्य उपन्यास मरीचिका का यह अंश याद आया तो किताब खोजकर टाइप किया:

वस्तुत: समय जितना क्रूर  ,प्रतिकूल और कठिन होगा ,कविता रचने हेतु वह उतना ही अनिवार्य समय भी होगा। समय का सच तब और भी कविता के सच में उतरना चाहिये जब झूठ का समय चल रहा हो।

इसी के साथ मुझे याद आई कुश की इस उपन्यास के आधार पर लिखी गयी शानदार ब्लाग पैरोडी। दुबारा पढ़ने पर एक बार क्या कई बार फ़िर बरबस हंसी छूट गयी। देखिये एक ब्लाग पैरोडी के अंश और बाकी सब के लिंक:

ब्लॉग बापू अर्तार्थ ब्लोगाश्रम के गुरुजी..

image “क्यू मित्र ये बुढऊ अभी तक आया क्यो नही? क्या कर रहा होगा अंदर..”

“पता नही मित्र कदाचित् रात्रि अधिक देर तक बैठकर लेख लिखा हो तो अभी तक शय्या पर ही आसीन हो..”

“इसका भी कुछ समझ नही आता मित्र”

“क्या कर सकते है?”

इनसे थोड़ी ही दूरी पर कुछ ब्लॉगरो का जमावड़ा था.. वे आपस में चर्चा कर रहे थे..

“क्या बात है मित्र आजकल तो तुम बहुत अच्छा लिख रहे हो..”

“बस दुआ है आपकी.. वैसे लेखन तो आपका भी कुछ कम नही. ऐसा लगता है माता सरस्वती का आशीर्वाद है आप पर..”
“अरे कहा मित्र.. हम तो बस यू ही..”

इतने में अचानक एक कीड़ा आकर इनकी पीठ पर सवार हो जाता है.. दूसरे ब्लॉगर ने कीड़ा भगाया..

“मित्र कीड़ा चलने से खुजली सी होती प्रतीत होती है.. तनिक अपने कोमल करो से खुजा दो तो मैं धन्य हो लू..”
“अरे कैसी बात करते हो मित्र.. हम नही खुज़ाएँगे तो कौन खुज़ाएगा.. उस दिन जब हमे खुजली मची थी.. तब आपने भी तो खुज़ाया था..”

और दोनो खिलखिलाकर हंस पड़े.. बाकी के ब्लॉगरो ने पीछे मुड़कर देखा.. और फिर अपनी अपनी चर्चा में लीन हो गये..

इतने में कोई ब्लॉगर चिल्लाया… गुरुजी आ गये गुरुजी आ गये..

गुरुजी अपनी कुटिया से निकले.. पीछे पीछे दो चेले उनकी लॅपटॉप पट्टीका उठाए.. आ रहे थे.. सभी ब्लॉगर अपनी अपनी जगह पर खड़े हो गये.. और झुक कर गुरुजी को प्रणाम किया.. कुछ गुरुजी जी के प्रिय ब्लॉगर तो इतना झुके की नीचे ज़मीन पर बैठा एक कीड़ा उनकी नाक में घुस गया.. उनमे से एक आध ने तो ज़ोर से छींक कर उस कीड़े को वायु मंडल की नमी को सादर समर्पित किया..

गुरुजी ने सबको बैठने के लिए कहा.. और स्वयं अपनी लॅपटॉप पट्टीका खोलकर बैठ गये..

सभी ब्लॉगर सहमे हुए से बैठे थे.. की गुरुजी पता नही इनमे से किसकी ब्लॉग खोल कर शुरू हो जाए.. सबकी नज़रे गुरुजी के चेहरे पर टिकी थी..

…गुरुजी का चेहरा तेज युक्त मानो अपने सबसे घटिया लेख़ पर सौ टिप्पणिया लेके बैठे हो…

गुरुजी का चेहरा तेज युक्त मानो अपने सबसे घटिया लेख़ पर सौ टिप्पणिया लेके बैठे हो.. मंद मंद मुस्कुराते हुए.. आज किसी चेले की शामत आने वाली है.. गुरुजी जब भी किसी की ठुकाई का मानस बना लेते है.. तब उनके चेहरे पर ऐसी ही शीतल मुस्कान रहती है..

अचानक चेहरे के भाव बदले.. उन्होने पूछा अड़ंगा राम कहा है?

अड़ंगा राम जी अपने दोनो करो को जोड़े हुए खड़े हुए..

“क्या हुआ स्वामी?”

“अबे स्वामी के पूत! क्या टिप्पणी कर रहे हो तुम सुंदरलाल के ब्लॉग पत्र पर..”

“स्वामी वो सुंदर लाल बड़ी असुंदर पोस्ट लिख रहा था. इसीलिए मैने कहा की ऐसा मत लिखो वरना ठीक नही होगा.. अब गुरुजी कोई इस तरह की पोस्ट लिखे और हम कुछ ना बोले ये तो ग़लत है ना..”

“ग़लत और सही हमे मत सिख़ाओ.. अपने ब्लॉग पत्र पर लिखने के लिए सभी स्वतंत्र है..” गुरुजी आवेश में बोले..

ब्लोगाश्रम के ऊपर मंडराता विमान
ब्लोगाश्रम का सोंटाधारी...
देवता का विमान अभी भी ब्लोगाश्रम पर मंडरा रहा है

फ़िलहाल इतना ही। आप मौज से रहिये। हलकान च परेशान रहने के मुकाबले प्रमुदित च किलकित रहने में ज्यादा बतक्कत है।

ठीक है तो फ़िर आप मौज करिये। मिलते हैं जल्दी ही।

शुभकामनायें!

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37 टिप्‍पणियां:

  1. आभारी हूँ आपका सानिध्य मिलेगा प्रेम कीट हित उपलब्ध रहूंगा यह तो अपना वादा है।

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  2. एक लाईना अच्छी है. हाईकु सुन्दर और ज्ञान चतुर्वेदी जी के व्यंग्य का क्या कहना! रवि कुमार जी की रचना बहुत गहरी है.आभार.

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  3. लंबी चर्चा

    बढ़िया चर्चा।
    धन्य भए महराज।
    वह 'कुछ' क्या किया जाना चाहिए - शोध में लगा हूँ। जब पता चलेगा बताऊँगा।

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  4. सादर अभिवादन! सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा।

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  5. उसने मुझे
    चूमा बहुत धीमे
    मैंने कसके...

    हमे भी ये बहुत पसन्द आयी :)

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  6. बहुत बढ़िया साहिब!
    आज की विस्तृत चर्चा में मजा आ गया!
    मगर हम तो गैर हाजिर ही रहे आपकी दूकान में।
    शायद माल बढ़िया नही था!

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  7. एक लाइना बेहतर रही । हाइकू भी पसन्द आये । आभार ।

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  8. आपका कुश प्रेम, जो कि आपको हर जगह बदनाम किये हुए है, वो जाता क्यूँ नहीं? उसका वाहियात आलेख इस शानदार चर्चा में टाट का पैबंद बन कर रह गया है.

    ऐसा लगता है कि आपकी प्रवृति शांति चाहने की है ही नहीं.

    एक टिप्पणी अलग कर देने मात्र से टिप्पू चच्चा शांत होने को तैयार हैं मगर फिर आपको पूछेगा कौन, इसलिये आप महा निहायत टिप्पणी अलग न करने पर अडिग हैं.

    किस तरह के वाहियात आदमी हैं आप. हर तरफ सिर्फ विवाद फैलाने के आपने किया ही क्या है आज तक.

    आपके लेखन पर इस करनी के चलते कालिख पुत चुकी है.

    अभी भी समय है कि लोग थूकें, उसके पहले यह शिष्य प्रेम त्याग हिन्दी प्रेम पालें.

    शिष्य़ लुटिया डुबो कर ही जायेंगे और आप उसके लिये तैयार दिखते हैं.

    मुझे शरम आती है आपसे बात करते हुए.

    ऐसा निकृष्ट आदमी मैने जीवन में नहीं देखा.

    थूक रहा है आप पर आधे से ज्यादा ब्लागजगत और पूरा छत्तीसगढ़.

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  9. गागर में सागर भरती अनूप चर्चा...आभार...

    जय हिंद...

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  10. शास्त्रीजी, यहां केवल एक लाईना ही थे। आपके लेख का भी न जाने कैसे रह गया था लिंक। अभी मैंने फ़िर से लगा दिया।

    राजेश स्वार्थी, आपकी टिप्पणी मिटाने में कोई समय नहीं लगता है लेकिन इसे मैं यहीं रख रहा हूं ताकि ब्लाग जगत हमारे और आपके बारे में जान ले! बाकी कुश के जैसा लिखने वाले ब्लाग जगत में बहुत कम हैं। जैसा यह लेख कुश ने लिखा है वैसे लेख का लिंक आपने कभी लिखा हो बताइयेगा।

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  11. कभी आपने अपने चेले विवेक के लिये यही कहा था और आज कुश के लिये वही बात.

    क्या आप अंधे हैं कि आप को उनसे बेहतर लिखने वाले दिखते नहीं.

    यह सही है कि आपके कहे अनुसार आपकी साजिशों को अंजाम देने उन दोनों से बेहतर कोई नहीं लिख पायेगा वरना तो आपने उदय प्रकाश, रविश, प्रमोद सिंह, प्रत्यक्षा, मसीजिवि, गिरिजेश, सिद्धार्थ, इष्ट देव संस्कृतयानन, समीर लाल, निर्मल आनन्द, बोधि सत्व, ज्ञान दत्त, शिव कुमार, आलोक पुराणिक, विनित कुमार, मनीषा, निलिमा, अजीत वडनेकर, द्विवेदी वकील, रंजना, डॉ अनुराग, गौतम राजरिशि, राकेश खण्डेलवाल, सुबीर जी, प्राण शर्मा, दिवेन्द्र द्विज, लाल्टू, लपूझन्ना आदि आदि सबको सिरे से खारिज कर दिया मात्र चेला प्रेम में.


    यह कैसा चेला मोह है. चेले तो किनारे करिये बल्कि कभी खुद इन उपर दिये नामों से बेहतर लिख कर दिखा दें तो हम आपके चरण चूंमें.

    आप लिखते क्या हैं मात्र इसके सिवाय कि इसने ये कहा, उसने वो, मैने ये कहा, ऐसा था, ऐसा है के सिवाय?

    मेरी पसंद में दूसरों का कहा छाप कर आप महान नहीं हो जाते.


    आप सही कह रहे हैं कि आप मेरी टिप्पणी मिटा सकते थे. मगर मेरा भी तो ब्लॉग है. मैं वहाँ से छापता.

    अगर मिटाना ही है तो वैमनस्य मिटाईये जो आपने फैलाया है. उस कुश की टिप्पणी मिटाईये जो टिप्पू चच्चा के विवाद का कारण बना है.

    मगर वो मिटा देंगे तो आपको पूछेगा कौन?

    और बिना विवाद आपको खाना पचेगा कैसे?

    इतना बेकार आदमी शायद ही मेरी जिन्दगी मे कोई दिखा हो.

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  12. ये तो पुरी चर्चा हो गई..

    हाइकु एक से बढ़ कर एक..डा लाल को बधाई..


    आभार मेरी एक लाइन को आपने सिरियसली लिया!!

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  13. बहुत बढ़िया, विस्तृत चर्चा मगर ये राजेश स्वार्थी
    जी इतना क्यों भड़क गए अनूप जी ? अगली बार इनको प्राथमिकता दीजिएगा चर्चा में !

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  14. @ राजेश स्वार्थी जी,

    किस तरह की टिप्पणी है यह साहेब? आप अनूप शुक्ल जी से खार खाए बैठे होंगे लेकिन उसके लिए दूसरों के कंधे पर बन्दूक रखकर क्यों ट्रिगर दबा रहे हैं. आपने जिन लोगों के नाम लिखे हैं, उसमें शायद मेरा नाम भी है. शायद इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि मेरे नाम पर कोई लिंक नहीं है. मैं अगर कहूँगा की मेरा नाम है तो आप कह सकते हैं कि न जाने कितने शिवकुमार भरे पड़े हैं ब्लॉग पर. लेकिन अगर यह मेरा ही नाम है तो कृपया वहां से उसे हटायें. मैं अच्छा नहीं लिखता. क्या कर लेंगे आप? मैं खराब लिखता हूँ और मेरे खराब लेखन के लिए मुझे अनूप शुक्ल जी से या आपसे कोई सर्टिफिकेट नहीं चाहिए.

    हद है भाई. ये टिप्पणियों की भाषा होनी चाहिए? पूरा छत्तीसगढ़ थूक रहा है अनूप शुक्ल पर? अनूप शुक्ल इतने महान हो गए हैं और पूरे छत्तीसगढ़ के लोग इतने बैठे-ठाले कि उन्हें अनूप शुक्ल पर थूकने के अलावा और कोई काम नहीं है? आप के पास सामन्य बुद्धि नहीं है जिससे यह पता लगे कि कुश के ब्लॉग पोस्ट की बात यहाँ क्यों की गई है? बात ज्ञान चतुर्वेदी जी के उपन्यास की हो रही है और उसपर कुश ने पैरोडी लिखी थी. यही कारण है कि उसकी पोस्ट की बात यहाँ आयी. यह समझने के लिए किसी राकेट साइंस की ज़रुरत है? और हाँ, एक बात और. आपने कोई पोस्ट उस स्तर की लिखी हो, जैसी कुश ने लिखी है तो लिंक दे जाइएगा. ज़रा मैं भी तो देखूँ कि किस स्तर का रचते हैं आप.

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  15. आप भी अनूप जी क्या टाइटिल मार के लाए हैं ! मैंने तो टाइटिल देखकर सोचा अलबेला खत्री की कोई पोस्ट होगी ! और आज तो आपने बडा जमके लिखा है ! साधुवाद !
    ( अब चर्चा पढने बैठती हूं ) :)

    जवाब देंहटाएं
  16. छत्‍तीसगढ़.. ऊप्‍प्स धत्‍त। हम समझिए नहीं रहे थे कि इस गल्‍लम गल्‍ले में ध्रुवीकरण का कोई आधार दिख क्‍यों नहीं रहा। बुडबक हैं हम। लेकिन क्‍या छत्‍तीसगढ़ के नाम पर इकट्ठे हुए लोगों की भाषा खुद छत्‍तीसगढ़ की पहचान के साथ अन्‍याय नहीं है। ये तो वही क्षेत्र है न जिसकी भाषा में आपरेटिंग सिस्‍टम तैयार करने में रवि रतलामी जी ने इतनी रात काली की हैं।

    हमारी मांग शांति की है साथ ही इस डिस्‍क्‍लेमर की भी कि कुपित समूह साफ करे कि उनका कोप वैयक्तिक है छत्‍तीसगढ़ पहचान से उसका कोई लेना देना नही है।

    जवाब देंहटाएं
  17. "कृपया इस टेम्पलेट के बारे में अपने सुझाव अवश्य देवे.. "

    बिलो एवरेज.

    आर्थीमिया टेम्पलेट यहां अब तक का सबसे बेहतर टेम्पलेट था और एक तरह से चिट्ठाचर्चा की पहचान बन चुका था. उसे बदला जाना समझ से परे है. वहां से यहां तक का सफ़र भूतकाल की ओर प्रस्थान करने जैसा है. ये उससे बदतर और गुजरे जमाने का सामान लगता है.

    मेरा सुझाव है कि टेम्पलेट की जिम्मेदारी कुश को सौंपी जाए. उनका डिज़ाइनिंग सेंस अच्छा है और चिट्ठे के विषय से सम्बन्धित टेम्पलेट चुनने लायक प्रतिभा भी है.

    [मुझे ठीक-ठीक नहीं पता कि इस मंच के लिये यह टेम्पलेट किसने चुना है पर मैंने अपनी सीधी सपाट राय दी है. कृपया अन्यथा न लें]
    -----------------------------
    एक बात और:

    टेम्पलेट के सोर्स कोड में लिखा है:

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    लेकिन देख रहा हूं कि टेम्पलेट बनाने वाले के लिंक फ़ुटर से हटा दिये गये हैं. शायद इसकी अनुमति ली जा चुकी हो पर यदि नहीं तो क्या ये उचित है?

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  18. बहुत बढिया लगी यह एक लाईन की चर्चा।

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  19. .
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    .
    बेहतरीन और विस्तृत चर्चा,
    परन्तु बीच बीच में टिप्पणीकारों का यों आक्रोशित होकर आपस में उलझना स्वाद खराब करता है... परन्तु क्या किया जाये ... शायद हम हिन्दी वाले इसी तरह लड़ते रहने को अभिशप्त हैं।
    'ग्लोबल वार्मिंग' और 'क्लाइमेट चेन्ज' का सच, एक बहुत बड़ा धोखा है यह गरीब देशों के साथ...

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  20. राजेश भाई जिसकी जितनी बुद्धी होती है, वैसी ही चर्चा करता है, लिखता है. शुक्ल सा'ब अपनी बुद्धी के हिसाब से चर्चा कर गए. हमारे ब्लॉग की लिंक भी बहुत बार वे नहीं देते मगर आपने भी तमाम अपेक्षित ब्लॉगरों के साथ मेरा नाम नहीं लिखा, जानकर दुख हुआ कि आपकी नजर में भी मेरे लिखे की कोई कीमत नहीं. पूरा गुजरात थूकता है.... जय हिन्द.

    भैया मैं तो कहता हूँ छोड़ो शुक्ल-वुक्ल को आप चर्चाना शुरू करो और एक आदर्श कायम करो, हम आपके साथ है. नहीं तो बकवास बन्द करो.

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  21. AAJ TO ITTE SAARE CHITHTHON KO SAMET LIYA AAPNE CHARCHA ME.....LAJAWAAB CHARCHA.....BAHUT BAHUT LAJAWAAB !!! KUSH KEE PAIRODI TO KAMAAL KI HAI.....

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  22. गागर में सागर है आज तो, बेहतरीन चर्चा, कुश के सेंस ऑफ़ ह्युमर और लेखनी के हम भी कायल हैं। आभार

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  23. एक लाइना- इधर से भी....


    लेकिन आपने सागर से कह दिया।- चुगलखोर कहीं का

    मुझे शरम आती है आपसे बात करते हुए.- फिर भी बात कर रहा है बेशरम :)

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  24. आपसे कहता हूँ: लेकिन आपने सागर से कह दिया। वो आया टिपियाया और चला गया

    दरअसल चिराग के ब्लॉग में कुछ प्रॉब्लम है... यह अपडेट नहीं दिखाता मैं लिंक देता हूँ... अच्चा लिखता है अभी हाल ही में शिमला में मंच से कविता पढ़ी थी और दिल्ली में युवा कवि के रूप में उभर रहा है... आज कल उर्दू भी सीख रहा है... मुझसे छोटा है और मुझे प्यारा भी है...

    http://tanhafalak.blogspot.com/

    रूम पर आया था तभी इसे ब्लॉग में दिलचस्पी लेने को कहा था... इस की एक पुराणी कविता "आरुषि" बहुत अच्छी है...

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  25. रवि कुमार जी की कविता अपने आप में बहुत कुछ कहने वाली है ...ओर उनका चित्र भी एक कविता सा ही है ....ऐसी कुछ कविताएं हिंदी ब्लॉग को बहुत कुछ दे जाती है .....उन्हें पढ़कर मुझे दुसरे रविकांत याद आते है .जिनका एक कविता संग्रह यात्रा ....ज्ञानपीठ प्रकाशन से निकला है ....वे भी कुछ ऐसा सा ही कहते है .मसलन
    मैंने एक लम्बी अवधि में दोहरा दोहरा कर /अपनी अपर चतुराई की /स्वाद छाया ओ को भोग लिया है .....

    आगे वे कहते है .....
    आज मेरे पास सिर्फ हकीक़ते है /मेरे सच हो गये सपनो की /निष्ठुर हकीक़ते /उनके ढाँचे तो वैसे ही है /जैसे मैंने चाहे थे /पर रंग जाने किन किन के है.......
    डॉ रत्नाकर के हाइकु पढ़कर तबियत प्रसंन्न हुई......हाइकु हिंदी की अपने आप में एक अनोखी विधा है .जिसकी साईट भी है.....एक अलग पत्रिका भी .....कभी मौका लगा तो दूंगा ..
    ज्ञान जी को लम्बे अरसे से पढता आ रहा हूँ.....हिंदी के प्रसिद्ध लेखक स्वदेश दीपक के गुम होने पर उनका रेखा चित्र खीच कर उन्होंने इतना भावुक किया था के लगा उन्हें लोग व्यर्थ ही व्यंगकार कहते है .....
    अंत में एक बात .....कुश को उस दौर से जानता हूँ जब ऑरकुट में कम उम्र के लोगो ने गुलज़ार कम्युनिटी में बहुत योगदान दिया था ...वहां हौसला अफजाई थी अच्छे लिखे पर एक दूसरे की पीठ स्नेह ओर प्यार से थपथपाई जाती थी ....यहां लोग उम्र में भले ही बड़े हो .पर लगता है मन से बहुत छोटे है ...
    जब भी कुछ अच्छा लिखा पढ़ते है .प्रोत्साहित होते है .कुछ रचने को .अपने विचार बांटने को......पर ऐसी प्रक्रिया दुखद होती है ....जहाँ निजता को भद्दे तरीके से लांघ जाता है....नंदनी ने आज सुबह बड़ी दुखद प्रतिक्रिया दी है ......आपसे अनुरोध है छदम नाम वालो से अच्छी रचना प्रक्रिया को बाधित न होने दे ......ओर मोडरेशन का इस्तेमाल करे ...
    ..

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  26. कृपया यहां न थूकें ।

    बेहतर पोस्‍टों की चर्चा और लिंक यहां मिलती है , इसलिए इधर का रुख किया जाता है ।
    धन्‍यवाद ।

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  27. इतनी पोस्टों को पढ़ना और फिर एक लाईना लिखना..और विस्तृत चर्चा तैयार करना.बड़ी मेहनत का काम है.
    कुछ नये लिंक भी मिले.
    आभार .

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  28. रत्नाकर जी की हाइकु...आहहा!

    कुश की वो पोस्ट मैंने बहुत बाद में पढ़ी थी। इसमें कोई शक नहीं कि छोरा कयामत है...!

    जहां तक चरचा की बात है, मेरी समझ से ये तो चर्चा कारों की व्यक्तिगत पसंद और वो क्या कहते हैं अंग्रेजी में "एटिच्युड" पर निर्भर करता है। इसमें किसी को नागवार गुजरने वाली बात मेरी समझ से परे है।...और जिसे भी नागवार गुजरती है, वो खुद क्यों नहीं शामिल हो जाते हैं इन चर्चाकारों में? यहाँ मैं शिवकुमार मिश्र जी और अनुराग जी कथन से सहम्त हूं। ये व्यर्थ के विवाद अब घिन पैदा करने लगे हैं श्नैः श्नैः ।

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  29. बेहतर...
    कुश का फिलहाल यही पढ पाया...पर प्रभावित करता है...
    ब्लॉगजगत की कुछ प्रवृत्तियों पर सटीक व्यंग्य कर रहे हैं...

    बाकी तो है ही...

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  30. एक लाइना के क्या कहने अनूप जी। डाँ. रत्नाकर के हाइकू (त्रिपदम) गजब के है। कितनी गहरायी है।

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