शुक्रवार, दिसंबर 18, 2009

'सर्वाइवल इज नॉट नेगोशिएबुल' - टपकते एडीएसएल से चर्चा की कुछ बूंदें

इंटरनेट सुबह से रूठा हुआ है, मॉडम की एडीएसएल की लाइट दिलासा देते देते अचानक टपक जाती है। यूँ तो छुट्टी है पर इतने भी खाली नहीं हैं कि एमटीएनएल मॉडम के टप टप देखने के अलावा कोई काम न हो। सोचा अनूपजी को बताकर खेद व्‍यक्‍त कर दें पर उनके यहॉं से भी किसी ने कहा कि 'साहब...अभी उपलब्‍ध नहीं है' तो जब जक साहब उपलब्‍ध न हों जाएं या इंटरनेट निर्बाध न मिलने लगे हम एक ऐसा काम करने जा रहे हैं जो चिट्ठाचर्चा में आज तक किसी ने नही किया यानि एक आफलाइन चर्चा। सो भी बस चर्चा कर रहे हैं लाइवराइटर पर अगर बाद में नेट मिला तो पोस्‍ट होगी नहीं तो खुद ही पढ़ लेंगे।  इस बीच एडीएसएल की टिमटिमाहट बंद हुई और हम कुठ पढ़ पाए तो चर्चा में आन लाइन तत्‍व भी जोड़ दिए जाएंगे।

2009 बस जाना ही चाहता है अपनी पिछली चर्चा में डा. अनुराग ने रिट्रोस्‍पेक्टिव की शुरूआत भी कर दी है। उन्होंने छांट छांटकर चिट्ठाकरों की रचनाएं खोजकर उनके लिंक प्रदान किए। एक चर्चाकार जानता है कि ये कितने श्रम का काम है। तो रिट्रोस्‍पेक्टिव इस बात की ओर इशारा करते हैं कि साल जाने को है जरा मुड़कर देखें..कैसा बीता। अगर चिट्ठाचर्चा के लिहाज से देखें तो ये सल खासा सक्रिय साल रहा है... जाने अनजाने चिट्ठाचर्चा को नारद समूह से जोड़कर देखा जाता था लेकिन इस साल चर्चा ने बेनारद ही सबसे ज्‍यादा पोस्‍टें ठेलीं हैं जिनमें से कई गुणात्मकता के लिहाज से श्रेष्‍इतम चचाएं कही जा सकती हैं। कोई सांख्यिकीय आंकड़े तो मेरे पास नहीं हैं लेकिन अनुभव का कोई मोल हो तो कह सकता हूँ कि जितने घंटे 2009 में चिट्ठाचर्चा को दिए गए हैं इससे पहले किसी साल नहीं दिए गए। कई नए चर्चाकार इस साल जुड़े हैं 2009 चचा्रसाल के लिहाज से खूब हैप्‍पनिंग ईयर रहा है। 

 

एडीएसएल टिमटिमा रहा है..लगता है थमेगा...

ये थमा... लीजिए झट से जितने हो सके ब्‍लॉग खोल लेता हूँ फिर इत्‍मीनान से चर्चा में शामिल कर सकूँगा-

ScreenHunter_01 Dec. 18 15.57

ScreenHunter_02 Dec. 18 15.57

काव्‍यमंजुषा की ल‍ेखिका  अदा का बेटा मृगांक आजकल घर आया हुआ है ममता उड़ेल उड़ेल दी जा रही है...मॉं अदा खूब रीझ रही हैं अपने बेटे पर... सो अपनी जगह पर हमें जो बात मजेदार लग रही है वह यह कि ब्‍लॉगजगत कैसे इसमें शामिल हो रहा है एक नितांत निजी अवसर पर हम सब शामिल.. जै बलॉगजगत की।

जब वो आया तो देख कर हैरान हो गई ..... कितना बदल गया है....बॉडी-शोदी बना ली है ...तभी तो जब भी फोन करो ...फोन नहीं उठाता....बाद में वापिस फोन करके कहता ...जिम में था ...फोन जिम बैग में था.... पता नहीं सच या झूठ ...लेकिन बॉडी देख कर तो यही लगता है.... 

दूसरे पक्ष में आराधना मॉं को याद करती हैं-

कई तरह की
सज़ाएँ पायीं
मार भी खायी
कई बार
पर
नहीं भूलती माँ
तुम्हारी वो अनोखी सज़ा
कुछ भी न कहना
सभी काम करते जाना
एक लम्बी
चुप्पी साध लेना

कोपेनहेगन में चल रही सरगर्मियों पर कुछ लोगों ने कलम चलाई है। मालदीव का कथन 'सर्वाइवल इज नॉट नेगोशिएबुल' अहम लगता है। दृस्टिकोण पर एक समग्र लेख देखें

मालदीव के प्रतिनिधि का उद्गार-‘SIRVIVAL IS NOT NIGOTIABLE’ ना केवल मालदीव के आम जनसाधारण के जीवन पर आसन्न संकट के प्रति गहरी चिंता को अभिव्यक्त करता हैं, बल्कि एक तरह से यह वाक्य सारी दुनिया के जलवायु परिवर्तन से पीड़ित आम जनसाधारण की आवाज को भी अभिव्यक्ति देता सा लगता है

प्रो. जगदीश्‍वर चतुर्वेदी स्‍थापित आलोचक व मीडियाविद हैं इससे उनके एक ब्‍लॉगर बनने के राह में भयानक बाधाऍं उठ खड़ी होती हें पर उम्‍मीद है कि वे उनसे पार पा लेंगे (उम्‍मीद में क्‍या जाता है) फिलहाल वे ब्‍लॉग का इस्‍तेमाल प्रिंट के लिए लिखे गए लेखों को सहेजने के लिए कर रहे हैं। इस क्रम में आज वे स्‍त्री भाषा के सवाल को उठा रहे हैं-

कुछ भाषाविद इस निष्कर्ष पर पहुँचे हुए जान पड़ते हैं कि भाषा पुरूष की होती है। यह एक पुंसवादी संरचना है। वे सहज ही यह मानते हैं कि पुरूष ही भाषा का निर्माता और आविष्कर्ता है।मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्रीय दृष्टि से भाषा का अध्ययन करनेवालों ने भी भाषा के निर्माण में स्त्री की किसी तरह की भूमिका को अस्वीकार किया। स्त्रियों के पास जो कुछ है वह पुरूषोंका अनुकरण है या उनसे चुराया गया है।

ब्‍लॉगजगत के शर्मीले बालक को देखें कि वो इस चित्र को छापने में गजब संकोच महसूस कर रहे हैं-

 

  यह तस्वीर पोस्ट करते हुए एक संकोच मन में लगातार बना रहा कि इसे इजहार का अश्लील नमूना ना समझ लिया जाये और मेरे इस प्रयास को एक उच्श्रृंखल व्यवहार। जबकि मेरा यह भरपूर मानना है कि और जो भी हो, यह कहीं किसी कोने से अश्लील इजहार नहीं है। साथ ही यह भी, बचपन से ऐसी लिखावटों को पढ़ना ठीक लगता है। इजहार के ये तरीके आकर्षण लिए रहे हैं। मालगाड़ियों के लाल डब्बों पर लिखी ये इबारतें अक्सर पढ़ने को मिलती हैं। कहीं कहीं तो गाँव कस्बे का नाम भी दर्ज मिलता है। लड़के और लड़की का नाम भी। मैं सोचता हूँ कि इतनी मेहनत करने की हिम्मत जुटाना भी एक बात है

अपना तो कहना है कि अगर इस लिहाज से ही अश्‍लीलता परिभाषित होती तो तमाम पापुलर कल्‍चर ही मटिया देनी पड़ती।

प्रेम में चौंकने का इरादा है तो चौंकाएबुल प्रेम की कमी थोड़े ही है मसलन संदीप के चौंकने के कारण को सराहें-

आज सुबह अख़बार में एक तस्वीर पर नजर गयी. अख़बार में एक फोटो छपी थी जिसके नीचे लिखा था- विवाह के बाद माता-पिता आशीर्वाद देते हुए. बीच में मां-बाप बड़ी शान से अपने दोनों तरफ खड़े नवविवाहित जोड़े के सर पर हाथ रख आशीष दे रहे थे. मै तस्वीर में दुल्हन ढूंढता रह गया. मां-बाप के दोनों तरफ दो लड़के शेरवानी पहने खड़े शान से नए जीवन में प्रवेश के वक्त मां-बाप का आशीर्वाद ग्रहण कर रहे थे.

जब मसला प्रेम पर टिका ही हुआ हे तो थोड़ा पीछे जाकर देखें कि कैसे शिव के वीर्य को चुराने के लिए देवताओं ने क्‍या कया नहीं किया, कामदेव तो अपनी पूरी सेना लेकर ही जुट गए -

उन्होंने अपना ऐसा प्रभाव दिखाया कि वेदों की सारी मर्यादा मिट गई। कामदेव की सेना से भयभीत होकर ब्रह्मचर्य, नियम, संयम, धीरज, धर्म, ज्ञान, विज्ञान, वैराग्य आदि, जो विवेक की सेना कहलाते हैं, भाग कर कन्दराओं में जा छिपे। सम्पूर्ण जगत् में स्त्री-पुरुष संज्ञा वाले जितने चर-अचर प्राणी थे वे सब अपनी-अपनी मर्यादा छोड़कर काम के वश में हो गये। वृक्षों की डालियाँ लताओं की और झुकने लगीं, नदियाँ उमड़-उमड़ कर समुद्र की ओर दौड़ने लगीं। आकाश, जल और पृथ्वी पर विचरण करने वाले समस्त पशु-पक्षी सब कुछ भुला कर केवल काम के वश हो गये। सिद्ध, विरक्त, महामुनि और महायोगी भी काम के वश होकर योगरहित और स्त्री विरही हो गये। मनुष्यों की तो बात ही क्या कहें, पुरुषों को संसार स्त्रीमय और स्त्रियों को पुरुषमय प्रतीत होने लगा।

समय के लिहाज से अब तक चर्चा पोस्‍ट कर दी जानी चाहिए पर बिना मन का पाखी का उल्‍लेख किए आज की चर्चा अधूरी रहेगी उन्‍होंने मुंबई की अपनी जिंदगी पर लोकल के बहाने से एक पोस्‍ट लिखी है। हमारी नजर में रश्मि की यह पोस्‍ट ब्‍लागिंग का शानदार उदाहरण है, उम्मीद है प्रो. जगदीश्‍वर चतुर्वेदी की नजर इस पर पड़ेगी और वे ब्लॉगर बनने की ओर प्ररित होंगे :)-

"थर्ड क्लास कहाँ है?"
"थर्ड क्लास नहीं होता"
कुछ देर सोचता रहा फिर चिल्ला कर बोला,"ओह्हो! थर्ड क्लास में तो हमलोग पटना जाते हैं",(उसका मतलब थ्री टीयर ए.सी.से था )पर मैंने कुछ नहीं कहा,सोचने दो लोगों को कि मैं थर्ड क्लास में ही जाती हूँ.अगर एक्सप्लेन करने बैठती तो ४ सवाल उसमे से और निकल आते.

इसी तरह शानदार ब्‍लॉगिंग का एक उदाहरण शेफाली पांडे की पोस्‍ट मजे का अर्थशास्‍त्र है। शेफाली की यह पोस्‍ट उन चंद लंबी पोस्‍टों में से हैं जो आकार में फुरसतिया हैं अनूप शुक्‍ला ने नहीं लिखी हैं पर बिना आदि से अंत तक पढ़े छोड़ी नहीं जा सकती।  शेफाली कामकाजी बनाम घरेलू महिलाओंके जीवन की एक तकलीफदेह झलक देती हैं-

वह नौकरी नहीं करती, मैं करती हूँ , इस लिहाज़ से वह मुझे कुछ भी कहने की अधिकारिणी हो जाती है , मोहल्ले से हँसती - खिलखिलाती गुज़रती है ,मुझे देखते ही उसे दुखों का नंगा तार छू जाता है . ''हाई ! तुम कितनी लक्की हो !तुम्हें देखकर जलन होती है''  का हथगोला मेरी ओर फेंककर,अपना कलेजा ठंडा करके वह आगे बढ़ लेती है.

घड़ी 5 से ज्‍यादा बजा रही है, एमटीएनएल की दुआ से साढ़े चार घंटे खप चुके हैं...आज बस इतना ही। चलते चलते चंद तस्‍वीरें आदि की हट में से-

 

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10 टिप्‍पणियां:

  1. वाह क्या स्टाइल है.. ये तो उनके भी काम आएगी जो पर एम् बी नेट के लिए पैसा देते है.. करता तो मैं भी ऐसे ही हूँ पर हाँ नेट ऑफलाइन नहीं होता.. लिंक्स बढ़िया है और प्रस्तुतिधुआधार

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  2. "अगर चिट्ठाचर्चा के लिहाज से देखें तो ये साल खासा सक्रिय साल रहा है... जाने अनजाने चिट्ठाचर्चा को..."

    काफ़ी छेड़छाड झेलना पड़ा, गुटबाज़ी के लांछन से उबरना पड़ा और शायद गाना पडा़---
    क्या क्या न सितम सहे ओ चर्चा तेरे लिए :)

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  3. आश्चर्य हुआ अपने पोस्ट का जिक्र देख...मेरा ब्लॉग भी पढ़ते हैं लोग?...और पोस्ट पसंद भी आई?...हम्म...शुक्रिया.

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  4. चिटठा चर्चा में ???
    हमारा चर्चा ???
    जिक्र तो एकाध बार देखा है...लेकिन चर्चा ???
    कहीं हम सपना तो नहीं देख रही हैं......या कहीं नज़र बहुते ख़राब तो नहीं हो गयी हमरी....ज़रा चिकुटी काट लें... उई माँ....!!!
    नहीं भाई ...इ तो सचमुच हमहीं हैं ...कमाल हो गया...धमाल हो गया...भूचाल हो गया है कि हड़ताल हो गया...!!!
    अरे भाई बड़ी मेहरबानी आपकी....नतमस्तक हैं हम...और ह्रदय से धन्यवाद करते हैं....आपने इस काबिल समझा तो कम से कम...

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  5. बहुत सुन्दर चर्चा.. और अंत में आदि के फोटो देख कर मन गद गद हो गया.. आभार!!

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  6. अच्छी लगी खास तौर से रेल वाली फोटो ...ओर आदि की फोटो इसे ओर विशेष बनाती है

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  7. सुंदर चर्चा...अदा जी की बात भी.....!

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