मंगलवार, दिसंबर 22, 2009

तरकश को मंथन मीडिया अवार्ड

image विस्फ़ोट के हवाले से मिली खबर है कि  तरकश को मिला मंथन मीडिया अवार्ड!  इस् समाचार की जानकारी देते हुये आगे बताते हैं विस्फ़ोट के साथी --

ज्ञान विज्ञान से जुड़े हिन्दी पोर्टल तरकश.कॉम को ई न्यूज श्रेणी में प्रतिष्ठित मंथन मीडिया अवार्ड से सम्मानित किया गया है. यह मीडिया अवार्ड 19 दिसंबर को दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान दिया गया.

मंथन डिजिटल मीडिया अवार्ड इंटरनेट पर सफल या इन्नोवेटिव साइटों को दिया जाता है. मंथन को हिन्दी की ई न्यूज श्रेणी में यह पुरस्कार दिया गया है. पुरस्कार देते हुए मंथन के निर्णायक मंडल ने कहा है कि "तरकश एक अनोखी साइट है जो स्थानीय भाषा में लोगों तक उपयोगी लेख पहुंचा रही है. तरकश देश के उन लोगों का प्रतिनिधित्व कर रही है जो अंग्रेजी की बजाय हिन्दी को प्राथमिकता देते हैं."

मंथन पुरस्कार का आयोजन हर साल डिजिटल एम्पावरमेन्ट फाउण्डेशन के द्वारा वर्ल्ड समिट अवार्ड और भारत सरकार के सूचना तकनीकि मंत्रालय के साथ मिलकर किया जाता है. दक्षिण एशिया में यह डिजिटल मीडिया का सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता है. तरकश का संचालन अहमदाबाद से संजय बेंगाणी और पंकज बैंगाणी करते हैं. दोनों ही तकनीकि कार्यों में दक्ष में है और तरकश नेटवर्क के तहत विभिन्न प्रकार की साइटों का संचालन कर रहे हैं.

हालांकि हमारा मानना है कि अब तरकश.कॉम में अब ऐसी सामग्रियों की भरमार है जो सेमी पोर्न केटेगरी में आती हैं. लेकिन इसके लिए तरकश के संचालकों को भी दोषी नहीं माना जा सकता. आज हिन्दी की जितनी बड़ी वेबसाइटें हैं वे सब सेमी पोर्न साइट में तब्दील हो गयी हैं क्योंकि हिन्दी में ऐसे कंटेट को पढ़नेवालों की तादात सबसे अधिक है.

बेंगाणी बंधुओं को हमारी भी बधाई।

image रचना त्रिपाठी की नयी पोस्ट् का शीर्षक अपने आपमें पूरी पोस्ट है। शीर्षक ही अपनी पूरी कह देता है--जिस दिन एक गृहिणी के कार्यों को महत्व मिलने लगेगा उसी दिन नारीवादी आन्दोलन समाप्त हो जायेगा…।अपनी बात कहने के लिये जिस बात का उदाहरण पेश किया रचनाजी ने वह वही वाक्य था जिसके लिये नामवर जी के बयान की लोगों ने कड़ी आलोचना की थी।उन्होंने लिखा--

इलाहाबाद में हुए ब्लॉगर सम्मेल्लन में नामवर सिंह जी का यह वक्तव्य मुझे बहुत अच्छा लगा था कि ब्लॉगरी में  हम कुछ भी लिखने पढ़ने को स्वतंत्र है लेकिन इसके साथ एक जिम्मेद्दारी भी है कि हम क्या लिख रहे हैं। हमें स्वतंत्र होना चाहिए मगर स्वछन्द नही होना चाहिए कि जो मन में आया लिख दिया। ब्लॉगरी भी एक जिम्मेद्दारी है। इसी प्रकार हम अपनी सामाजिक जिम्मेदारी से किसी भी क्षेत्र में भाग नहीं सकते।

नामवरजी ने भी जब इस बात को कहा था तब भी उनका इशारा शायद इसी तरफ़ रहा होगा कि स्वतंत्रता को स्वछंदता की तरह न लें। लेकिन भाई लोगों ने उनके इस कहे को अभिव्यक्ति पर अंकुश की तरह लिया और उनको जमकर गरियाते हुये अपनी जबान साफ़ की।

किसी बात को संदर्भों से काटकर अपने मतलब की बात उछालकर गरियाना/रोना/धोना हमेशा से हर समाज में होता रहा है।

image बात गरियाने की आई तो चलिये मामला अदालत तक ले चला जाये। द्विवेदीजी ने एक किस्सा बयान किया है जिसमें आरोपी छूट गया। कल की उनकी पोस्ट में चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी ने अपनी बात रखी-

आदरणीय द्विवेदी जी. आप की अदालत में मुजरिम हाज़िर है :)
मेरी टिप्पणी पर बात चली है तो बता दूं कि मेरी टिप्पणी चिट्ठा चर्चा में लगी थी जो सुजाता जी की उस टिप्पणी की प्रतिक्रिया थी कि जब पुरुष गाली दे सकता है तो महिला क्यों गाली नहीं दे सकती? मेरा कहना था कि गाली ही क्यों, सिगरेट भी पी सकती है, शराब भी और पुरुष की तरह रेड लाईट...। इसका आशय यह था कि गिरावट में भी क्या स्त्री पुरुष का मुकाबला करेगी? जैसा कि आपने ठीक ही कहा कि मुद्दा विषय से दूर चला गया। केंद्र में मुद्दा नहीं ‘कोई cmpershad ’ आ गया। बात दूर तक जाती देख कर मैंने चिट्ठा चर्चा में क्षमा भी मांग ली थी। शायद बात आई गई हो गई... पर नहीं, एक बार फिर रचनाजी ने उस टिप्पणी का लिंक पुनः चिठाचर्चा पर हाल ही में दिया। बात को आगे नहीं बढाते हुए मैंने उसे इग्नोर कर दिया।
विषय अपनी जगह है और मेरा प्रश्न भी- नारी पुरुष के मुकाबिल किस हद तक गिरना चाहती है। क्या ‘नारी’ के पास इसका उत्तर है... या केवल पुरुष को केवल कोसने का ही कार्य करती रहेंगी??
यदि वह गाली तक ही रुकना चाहती तो यह भी स्पष्ट कर दे ॥

image सिद्धार्थ त्रिपाठी ने अपनी पोस्ट खाकी में भी इन्सान बसते हैं और कम्प्यूटर में…!?! में खाकी में इंसान का जिक्र किया है। इस किताब के पन्ने खुलने लगे हैं ब्लाग पर और लिखा गया है--इलाहाबाद में ट्रेनिंग के शुरुआती अनुभव आँखें खोलने वाले थे…! अशोक कुमार जी के अनुभव आप देखिये। पढिये। सराहिये। उनसे अनुरोध ही कि वे आगे भी लिखते रहें। किताब से इतर संस्मरण भी।

इस ब्लाग पर किताब के बारे में जो समीक्षा विभूति राय जी ने लिखी है उसको पढ़कर पहली नजर में लगता है कि उन्होंने आई.ए.एस. और आई.पी.एस्. सेवाओं के तुलनात्मक अध्ययन जैसे किसी शोध की समीक्षा लिखी है। इस पर श्रीलाल शुक्ल जी का लेख सफ़ेद कालर का विद्रोह याद आता है। जिसमें उन्होंने लिखा है:

.१.इंजीनियर ,डाक्टर, सिविल सर्वेंट आदि जब ’युद्ध मार्ग पर प्रवृत्त ’ होते हैं तो मुझे इत्मिनान रहता है कि वे ऐसे खच्चर हैं जो तबेले में तलियाउझ करेंगे , कुछ देरे तबेले के बाहर टहलेंगे भी और फ़िर तबेले के अन्दर आकर अपने-आपको बन्द कर लेंगे।
२. इस तरह सारा विद्रोह और आन्दोलन एक उस तालाब की शक्ल ले लेता है जिसमें गन्दे पानी की लहरें एक-दूसरे पर टूट रही हैं और बड़े जोश के सथ एक-दूसरों को काट रही हैं और तालाब के बाहर किनारे पर खड़े भारी-भरकम पेड़ों को इनसे कोई खतरा नहीं है।

बहरहाल अशोक कुमार जी का स्वागत है ब्लाग जगत् में।

कल की अपनी टिप्पणी में डा.अनुराग आर्य ने अपनी इस पोस्ट का जिक्र किया। मैंने इसे दुबारा पढ़ा और एक बार फ़िर मन अनमना हो गया। डा.अनुराग की लेखनी में हलचल मचाने की जबरदस्त ताकत है। अपने लेख की शुरुआत ही वे करते हैं इस वाक्य से---

जिंदगी में हमारी सबसे बड़ी ग्लानि हमारे द्वारा किये ग़लत काम नही अपितु वे सही काम होते है जो हमने नही किये
- आज सुबह ९.१५ मिनट पर मेरी दोस्त डॉ प्रिया का एस .एम्.एस

इसके बाद कैंसर से जूझती अपनी मित्र के बारे में। इस पोस्ट के ये संवाद आशा की कहानी कहते हैं:

उसके एक हफ्ते बाद हम सब मिलकर लॉन्ग ड्राइव पर समंदर पे गये ....वहां समंदर के किनारे खड़े होकर उसने फ़िर कहा "देखा मै neurologist बनकर रहूंगी ".......

......एक साधारहण इन्सान अपनी हठ ओर लगन से कब जिंदगी को इबारत में बदल लेने की ठान ले …कौन जाने ! कही पढ़ी हुई ऐसी बातें जब सामने से गुजरे तो ?

जिंदगी से रोज उसी शिद्दत से जूझना ओर पल पल के लिये लड़ना ,कहते है औरत अपने अधूरे सपने बेटी की आँखों में डाल देती है उन्हें उतने ही जतन ओर प्यार से सहेजती है ,पर टूटे सपनो को रोज सिलेवार लगाना उन्हें जोड़ने की जद्दोजहद मेरी जबान में उसे हिम्मत नही कहते ,हिम्मत से बड़ी ,उससे जुदा कोई चीज़ है .

बाद में कैंसर से जूझते हुये कृपा की मौत हुई। डा.अनुराग की कल की टिप्पणी के बाद मुझे परसाई जी लिखा संस्मरण याद आया जो उन्होंने मुक्तिबोधजी के मरने के बाद लिखा था--

बीमारी से लड़कर मुक्तिबोध निश्चित जीत गये थे। बीमारी ने उन्हें मार दिया ,पर तोड़ नहीं सकी। मुक्तिबोध का फौलादी व्यक्तित्व अंत तक वैसा ही रहा। जैसे जिंदगी में किसी से लाभ के लिये समझौता नहीं किया,वैसे मृत्यु से भी कोई समझौता करने को वे तैयार नहीं थे।
वे मरे। हारे नहीं। मरना कोई हार नहीं होती।

नीचे का अंग्रेजी वाला कार्टून समीरलालजी ने मेल से भेजा। शायद कल की चर्चा पर अपनी टिप्पणी के रूप में। फ़िलहाल इतना ही।

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17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत-बहुत धन्यवाद इस चर्चा में हम दोनो प्राणियों को स्थान देने के लिए। चर्चा तो शानदार होती ही है। इस बार भी है। पुनि-पुनि सराही जाती रहेगी।

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  2. खाकी में इंसान के लिंक के लिये शुक्रिया देव!

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  3. तरकश के सभी साथियों एवं विशेषरूप से बेंगाणी-बन्धुओं को बहुत-बहुत बधाई!!

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  4. बात दूर तक जाती देख कर मैंने चिट्ठा चर्चा में क्षमा भी मांग ली थी। शायद बात आई गई हो गई... पर नहीं, एक बार फिर रचनाजी ने उस टिप्पणी का लिंक पुनः चिठाचर्चा पर हाल ही में दिया। बात को आगे नहीं बढाते हुए मैंने उसे इग्नोर कर दिया।

    गोदियाल जी ने एक पोस्ट लिखी हैं जिसमे आप कि तारीफ़ मे और मेरी बुराई मे कहा गया हैं कि आप कि पोस्ट नारी शिक्षा पर हैं और मेरी टिप्पणी वहाँ निराशा जनक हैं और मुझे कोई अधिकार नहीं हैं आप जैसे वरिष्ठ , सम्मानित ब्लॉगर जो सीनियर सिटिज़न हैं और अवकाश प्राप्त हैं के ब्लॉग पर इस प्रकार कि तिपनी देने का । सो मैने अपनी पोस्ट मे गोदियाल जी को वो लिंक दिखाये हैं जिनकी बिना पर मैने वो टिप्पणी आप कि पोस्ट पर दी थी ।

    आप कि पोस्ट नारी को शिक्षित करने कि बात कर रही हैं और मेरा कमेन्ट था कि "बात सो प्रतिशत आप की सही हैं पर जब शिक्षित हो जायेगी तो वो अपनी शिक्षा को केवल जनसंख्या की समस्या के लिये ही नहीं उपयोग मे लायेगी । फिर वो सशक्तिकरण की बात करेगी , बराबरी की बात करेगी । अपने पहनावे पर टीका टिप्पणी नहीं सहेगी जो आपके सो कोल्ड भारतीये सभ्यता और संस्कारों के हिमायतियों को नहीं हज़म होगी । शिक्षा के अपने "दुर्गुण " भी हैं । वो हमारे अन्दर एक जागरूकता ला टी हैं और २०१० मे नारी जागरूकता किसी कोई नहीं चाहिये क्युकी नारीत्व के साथ जागरूकता का क्या सम्बन्ध हैं ??? और बराबरी तो किसी कोई भी पसंद नहीं होती नारी की सो उसको अशिक्षित रखना ही सबके हित मे हैं"

    ये कमेन्ट आप कि सुजाता के ऊपर अभद्र टिप्पणी को बेक ग्राउंड मे रख कर ही किया गया था कि जब आप ब्लॉग जगत कि सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी महिला ब्लॉगर { डॉ सुजाता , दिली विश्विद्यालय मे अध्यापिका हैं } को इतना अभद्र केम्न्त दे सकते हैं तो नारी को शिक्षित करने का आवाहन ना ही दे ।

    और एक बात क्षमा माँगने से मात्र आप कि गिल्ट ख़तम होती हैं ना कि अपराध कम होता हैं । आप कि hypocracy बिलकुल साफ़ दिखती हैं कि पढे लिखे महिला को गाली दो और बेपढ़ी लिखी को पढने कि पैरवी करो ।

    आप मुझे इग्नोर कर सकते हैं पर मे गोदियाल जी कि पोस्ट को क्यूँ कर इगनोरे करू जहां मेरा कमेन्ट करने के अधिकार पर ही आपति हैं क्यों कि आप सम्मानित जो हैं ।

    वैसे सम्मानित कैसे बना जाता हैं कभी इस पर भी विवेचना हो अनूप और जब एक पोस्ट लगाए तो कृपा कर सन्दर्भ मे नारी ब्लॉग पोस्ट का भी लिंक दे दिया करे ।

    एक वार्ड बॉय ने रेप किया , सात साल कि सजा काट कर बारी होगया , Aruna Shanbaug, आज भी २५ सालो से कोमा मे हैं

    आप सब लोग कभी जरुर सोच कर देखे कि क्यूँ महिला ब्लॉगर कम सक्रियाए होती जा रही हैं । कभी उनसे समय हो तो पूछे क्या बीतती हैं आप के अभद्र टिप्पणी से उन पर ।


    नारी पुरुष के मुकाबिल किस हद तक गिरना चाहती है।

    ये भ्रम आप का हें कि नारी , पुरुष से मुकबला करती हैं । नारी बात करती हैं क्षमता के आधार पर , संविधान के आधार पर सामान अधिकार कि और बाकी ये नारी को सोचने दे उसको कितना उठाना और गिरना हैं क्युकी नारी के पास एक दिमाग हैं जो ईश्वर का दिया है

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  5. चार्चा पड्ढ ली जी, सबकु्झ चँगा चँगा लगदा प्या !
    अनुराग दा कोई ज़्वाब णी, पण इत्थों कुझ अग्गा ते चिनगारियाँ वी दिखदे हण, ते असीं कुझ दसना माकूल णी ऎ !

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  6. चिट्ठाचर्चा में तरकश को मिले सम्मान को शामिल करने के लिए चिट्ठाचर्चा का तथा बधाई देने वाले सभी मित्रों का आभार. धन्यवाद.

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  7. मंथन-अवॉर्ड हमारे रवि रतलामीजी को भी मिला है. उन्हे बहुत बहुत बधाई, शुभकामनाएं.

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  8. सुंदर चर्चा! बहुत सारे कार्टून एक साथ देने के बजाए हर चर्चा में आज की तरह एक दो दिया करें तो इस से कंटेंट अधिक नहीं होगा। पेजलोड आसान रहेगा।

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  9. बेंगाणी बंधुओं को बहुत बहुत बधाई!

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  10. सब तो सही था, अंत तक आते आते मन भारी हो गया

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  11. बेहतरीन चर्चा । बेंगाणी बंधुओं को बधाई ।

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  12. गरियाने का मौसम जा ही न रहा।
    दो दिन से गलन बढ़ी है। हीटर निकला है। अब शायद बदलाव आये।

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  13. बेंगाणी बंधुओं को और रवि जी को बहुत बहुत बधाई!

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