आजकल आमिर खान की फ़िलिम थ्री इडियट् चर्चा में है। इस फ़िल्म के बारे में लोगों ने अलग-अलग मुद्दे को सामने रखते हुये पोस्टें लिखीं। जहां अभय तिवारी निर्देशक विधु विनोद् चोपड़ा को महीन चोट मारते हुये लेखक चेतन आनंद के साथ खड़े होते हैं वहीं रवीश कुमार इस फ़िलिम का लब्बो-लुआब पेश करते हुये इसे आमिर खान की ही फ़िल्म तारे जमीं से कमतर फ़िलिम बताते हैं। विनीत कुमार की शिकायत इस फ़िलिम या लेखक के रोने-धोने से अलग है। उनको IB7 के एंकर शंकर चौधरी के उस अंदाज से शिकायत है जिस अंदाज में उन्होंने चेतन भगत की बेइज्जती खराब की। वे तो सीधे सीधे सवालै दाग देते हैं --क्या IBN 7 के एंकर संदीप चौधरी में भाषाई शऊर नहीं है? डा.अभिज्ञात का मानना है कि चेतन भगत को अपनी लड़ाई नैतिकता के आधार पर लड़ने के बजाय कोर्ट ले जाना चाहिये।
विनीत कुमार के लेख पर किन्ही अनामी पोल-खोल और विनीत् कुमार की ज्ञानवर्धक नोंक-झोंक् भी है। विनीत के इस लेख पर टीवी एंकर संदीप चौधरी के तीखे रवैये पर कार्टूनिस्ट काजल कुमार की महीन टिप्प्णी है:
कोई हैरानी नहीं हुई ये पढ़ कर. सभी चैनलों पर आज बस दो ही चीज़ें प्रचलित हैं - 1. पटापट तेज़ी से बोलना 2. बद्तमीज़ी से बोलना. नई पौध को लगता है कि यही है सफलता व महानता की कुंजी. लानत है.
अर्कजेश तो किताब और फ़िलिम का तुलनात्मक अध्ययन भी कर दिये और कहते हैं कि किताब के मुकाबले फ़िलिम लचर है।
इस मामले में चेतन भगत का बयान उनके ब्लाग पर है।
इन लेखों के चुनिंदा अंश यहां दिये जा रहे हैं। ऊपर का कार्टून कीर्तीश भट्ट का है।
थ्री इडियट्स मौजूदा सिस्टम से निकलने और घूम फिर कर वहीं पहुंच जाने की एक सामान्य फिल्म है। जिस तरह से तारे ज़मीन पर मज़ूबती से हमारे मानस पर चोट करती है और एक मकसद में बदल जाती है,उस तरह से थ्री इडियट्स नहीं कर पाती है। चंद दोस्तों की कहानियों के ज़रिये गढ़े गए भावुकता के क्षण सामूहिक बनते तो हैं लेकिन दर्शकों को बांधने के लिए,न कि सोचने के लिए मजबूर करने के लिए। फिल्मों के तमाम भावुक क्षण खुद ही अपने बंधनों से आजाद हो जाते हैं। जो सहपाठी आत्महत्या करता है उसका प्लॉट किसी मकसद में नहीं बदल पाता। दफनाने के साथ उसकी कहानी खतम हो जाती है। कहानी कालेज में तीन मसखरों की हो जाती है जो इस सिस्टम को उल्लू बनाने का रास्ता निकालने में माहिर हैं। ऐसे माहिर और प्रतिभाशाली बदमाश हर कालेज में मिल जाते हैं। सिस्टम के थ्री इटियॉटिक बागी रवीश कुमार | फ़िल्मी दुनिया में लेखक सबसे निरीह जानवर रहा है। सबसे पहले डाका उसके पैसों और नाम पर ही पड़ता है। यहाँ हर निर्देशक को अपने नाम के पहले 'रिटेन एन्ड डाइरेक्टेड बाइ' देखने का शौक़ है। इस दुनिया ने तो बड़े-बड़े फ़िल्मों, बड़ी-बड़ी किताबों पर डाके डाले और किसी को कोई आभार तक नहीं दिया, छोटे-मोटे लेखक तो रोज़ ही मारे जाते हैं। चोपड़ा जी ने कम से कम किताब के अधिकार खरीदे, पैसे भी दिये, और भले आख़िर में, पर नाम दे तो दिया। चेतन भगत को उन के पैर छू कर धन्यवाद देना चाहिये, उन्होने धन्यवाद नहीं दिया इसीलिए चोपड़ा जी को क्रोध आ गया, नहीं तो वो देवता आदमी हैं। चेतन भगत शुड बी थैंकफ़ुल अभय तिवारी |
सवाल ये कि क्या तटस्थ होने या ऑडिएंस को दिखलाने के लिए भाषाई स्तर पर अपने को ख़त्म कर लेना ज़रूरी है? ऐसा लोगों को वाजिब सम्मान देते हुए नहीं किया जा सकता क्या? ये ज़रूरी है कि एंकर हर शो में ये साबित करे कि वो एंकर है और उससे बात करनेवाले जो भी लोग हैं, उनसे नीचे की कतार में खड़े हैं। देखा-देखी में पूरी की पूरी पीढ़ी तटस्थ होने का मतलब भाषाई स्तर पर लोगों की उतार देना समझा करेगी। लोगों को सम्मान देने और भाषाई स्तर पर सभ्य होने का हुनर क्यों खत्म कर रहे हैं हमारे एंकर, जरा सोचिए। क्या IBN 7 के एंकर संदीप चौधरी में भाषाई शऊर नहीं है? विनीत कुमार | फिलहाल चेतन भगत की जो लड़ाई है उसका नैतिकता से ताल्लुक नहीं है बल्कि मामला व्यावसायिक लाभ में हिस्सेदारी का है। अच्छा होगा कि भगत इसे कानूनी तौर पर हल करें। ढिंढोरा पीटकर तो वे अपनी भद्द ही पिटायेंगे वरना फिल्म के नाम के तीन में एक वे स्वयं साबित होंगे बाकी दो विधु विनोद चोपड़ा और राजकुमार हिरानी तो हैं ही। 3 इडियट्सः चेतन भगत और दो अन्यडा.अभिज्ञात |
चेतन भगत को फिल्म के क्रेडिट हिस्से में वाजिब श्रेय मिला या नहीं यह तो फाइव प्वाइंट समवन देखने वाला और किताब पढने वाला मनुष्य समझ ही जायेगा । इसमें कोई आईआईटी बुद्धि या पटकथा लेखन के कौशल की कतई आवश्यकता नहीं है । और यह भी कि सबको पहले से ही पता था कि यह फिल्म चेतन भगत के उपन्यास पर बन रही है । जिनको पता नहीं था अब पता हो गया है । अंत में यदि पूछा जाय कि फिल्म देखने और उपन्यास पढने में ज्यादा मजेदार क्या है तो बेहिचक मैं यह कहूंगा कि फाइव प्वाइंट समवन के मुकाबले 3 इडियट्स बहुत कमजोर है । वजह : फिल्म हमें सिर्फ मनोरंजन देती है जबकि उपन्यास मनोरंजन से आगे भी कुछ देता है । 3 ईडियट्स बनाम फाइव प्वाइंट समवनअर्कजेश | हाल ही में प्रदर्शित फिल्म '3 इडियट्स' की कहानी को लेकर विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। लेखक चेतन भगत का कहना है कि यह फिल्म उनकी किताब 'फाइव प्वाइंट समवन' की कॉपी है, जबकि फिल्मकार विधु विनोद चोपड़ा इससे पूरी तरह सहमत नहीं है। भगत ने अपने ब्लॉग पर पूरे मामले पर विस्तार से लिखा है। चेतन भगत कह रहे हैं 'पढ़ो तब बोलो..'गिरीन्द्र नाथ झा |
साल के शुरु में आपने भी कुछ संकल्प लिये होंगे। पूरे हों या न हों संक्ल्प किये तो जा ही सकते हैं। गौतम राजरिशी के संकल्प देखिये। शायद आपको भी कुछ संकल्प लेने का मन करे।
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अविनाश वाचस्पतिजी ने अपना नाम पुरस्कार सूची से अलग करने का आग्रह करते हुये लिखा है |
और अंत में:कल ज्ञानजी ने ब्लाग जगत के बारे में अपनी बात कहते हुये लिखा
ऐसे में हिन्दी ब्लॉगरी को बढ़ावा देने का श्री समीरलाल का अभियानात्मक प्रवचन मुझे पसन्द नहीं आया। यह रेटोरिक (rhetoric) बहुत चलता है हिन्दी जगत में।
पता नहीं ज्ञानजी को यह प्रवचन पसन्द क्यों नहीं आया। समीरलाल जी ऐसा तो बहुत दिनों से करते आ रहे हैं। वे हिन्दी के सच्चे सेवक हैं और हिन्दी की सेवा का कोई मौका गंवाते नहीं। चिट्ठाचर्चा में भी नये चिट्ठों की सूचना वाली मेल में उनकी तरफ़ से अनुरोध रहता है
“आप हिंदी में लिखते हैं। अच्छा लगता है। मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नए लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है। एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
शुभकामनाएँ! - समीर लाल (उड़न तश्तरी)”
समीरलालजी अपने इसी सेवा भाव के चलते उस स्थिति को प्राप्त हो गये हैं जिसके लिये कहा जाता है वे व्यक्ति नहीं संस्था हैं।
मजे की बात यह रही कि ज्ञानजी ने समीरलाल जी के जिस् प्रवचन के प्रति नापसन्दगी व्यक्त की उसके आगे के अध्याय समीरजी उनको मेल से टिका गये जिसे ज्ञानजी ने अपनी पोस्ट पर स्थापित कर दिया।
चिट्ठाचर्चा को गाड़ देने की बात ज्ञानजी ने कही उसके संबंध में एक पोस्ट ध्यान आई मुझे। इस पर टिपियाते हुये रविरतलामी जी ने मुझसे आग्रह किया था:
फुरसतिया से एक करबद्ध प्रार्थना है. काहे को वे अपनी ऊर्जा चिट्ठा चर्चा में वेस्ट करते हैं. उसके बदले वे नित्य इसी तरह की धुँआधार पोस्ट लिखा करें.
इसके बाद की टिप्पणियां पोस्ट् में देख सकते हैं। आज रविरतलाजी चिट्ठाचर्चा के नियमित चर्चाकार हैं।तो क्या ज्ञानजी का चिट्ठाचर्चा बंद करने का आग्रह यह संकेत है कि निकट भविष्य में वे चिट्ठाचर्चा करते पाये जायेंगे?
फ़िलहाल इतना ही। आपका यह हफ़्ता मजे में बीते} दिन शुभ हो। आप मुस्कराते रहें, खिलखिलाते रहें।
एक ही जगह कुछ बेहतरीन पोस्ट का संग्रह बहुत अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया आपने बढ़िया प्रस्तुति धन्यवाद जी!!!
जवाब देंहटाएंमेरे कार्टूनों को यूं याद रखने के लिए हार्दिक आभार.
जवाब देंहटाएंअच्छी रही चर्चा.
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा है।
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सुन्दर चर्चा,
धन्यवाद व आभार।
चर्चा में यह मुद्दा भी जरूरी था, सुन्दर !
जवाब देंहटाएंअनूप जी!
जवाब देंहटाएंइशारों ही इशारों मे सभी कुछ तो कह दिया आपने आज की चर्चा में।
आभार!
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई .....
यही उत्तम और सामयिक चर्चा है.
जवाब देंहटाएं- सुलभ
हमने फ़िल्म अभी नहीं देखी. अब देखनी ही पडेगी. अच्छी चर्चा. गौतम जी के संकल्प काम के हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया चर्चा!!
जवाब देंहटाएंआभार्!
ये तीन इडियट अपने स्टंटों से सब को इडियट बना रहे हैं। वर्ना इतने ब्लागर इडियट पर लिखते क्या??? :)
जवाब देंहटाएंहम भला किसी ईडियट की चर्चा में क्यों पडे? वैसे ही ब्लॉग जगत में इतने पचडे होते रहते हैं, उन्हें झेल लें, यही बहुत है।
जवाब देंहटाएं--------
विश्व का सबसे शक्तिशली सुपर कम्प्यूटर।
2009 के ब्लागर्स सम्मान हेतु ऑनलाइन नामांकन चालू है।
इत्ती ठण्ड में इस लाइनने के लिए सौ मार्क्स
जवाब देंहटाएं"कह नहीं सकते, ज्ञान जी के ब्लाग पर कमेंट बन्द हैं।"
चर्चा अच्छी रही।
जवाब देंहटाएंथोडा हंस लेने से जिंदगी के तनाव कम होते हैं।
संकलन तो बढ़िया है ही, अभय जी के कान का चित्र विशेष तौर पर पसंद आया. :०)
जवाब देंहटाएंआजकल चर्चा सजावट में टेबिल टैग का जबर्दस्त उपयोग चल रहा है. विंडोज़ लाइव राइटर में कैसे जमाते हैं मुझे पता नहीं, पर रॉ एचटीएमएल में अगर टेबिल टैग के साथ cellpadding="5" जोड़ दें तो ये शब्दों की दीवार के साथ जो सटा-सटी है वो दूर हो जाएगी और ज्यादा सुंदर दिखने लगेगा.
आज की चर्चा मीडिया केंद्रित रही ...बहुत अच्छी लगी !
जवाब देंहटाएंवहाँ भी लंबा सा टीप आया सोचा यहाँ भी चिपका दूँ !
मेरी बात संक्षेप में !
१-विनीत को अपनी पसंद और दूसरे को अपनी पसंद रखने का पूरा हक है |
२-संदीप का कार्यक्रम काफी समय से देखता रहा हूँ ……उनकी या ऐसे किसी एंकर का अचानक इतना लाउड हो जाना कभी कभी सीमा से ऊपर हो जाता है तो मुझे भी आश्चर्य होता है !
३- कभी कभी न्यूज़ चैनल पूर्वाग्रह से ग्रस्त होते हैं ….सो अपने गेस्ट से उसी रूप में ही , उसी भाषा में नंगा करना शुरू कर देते हैं !
४- हिन्दी भाषा की पत्रकारिता और पत्रकार अधिकांशतः मुझे ब्लैकमेलर समझ में आते हैं सो वही उनके व्यक्तित्व में भी दिखलाई पड़ता है ….जोकि इंग्लिश के बजाय हिन्दी में ज्यादा है !(कोई इंग्लिश का दास कहे …वह भी स्वीकार !)
५-टी आर पी के मामले में मैं पूरी तरह से विनीत से सहमत हूँ …..कि आखिर इसके अर्थशाश्त्र पर आधारित कोई चैनल कैसे समाज के बदलाव की बात कर सकता है ? ….सो यह असंभव ?
५-आई बी एन -७ के बारे में पोल-खोल की बात से सहमति ……कि यह चैनल ही है लाउड !!!
६- सारे पुरस्कार के तरीके ठीक नहीं …सो पत्रकारिता के कैसे पाक-साफ़ हो सकते हैं?
७-एन डी टी वी की चाल अलग है….पर उसके बावजूद मुझे रवीश और कुछ और एंकर पसंद हैं भाई !
८- समस्या की जद यही समझ आती है कि हम एक व्यक्ति की किसी बात से असहमति का स्थाई अर्थ उससे हमेशा की असहमति मान लेते हैं !! और इसीलिये अब तक खेमे बन चुके हैं …वही यहाँ नजर आ रहा है तो इसमें कैसा आश्चर्य?
आज के लिए इत्ता ही !!!
इतने दिनों बाद दिखे भी आप और अभी-अभी सुन भी रहा था आपको...हलकान विद्रोही की मस्त कथा कि भीषण बर्फबारी ने मोबाइल का सिगनल गुम कर दिया है।
जवाब देंहटाएंकैसी रही राजस्थान यात्रा? अपना मूडी कुश कैसा है?
"ब्लॉग जगत में छाया 3 इडियट्स विवाद :बड़ा स्वाभाविक सीन लग रहा है"
जवाब देंहटाएंजय हो !
सुकुल जी
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा देखी पर लगता है आप केवल कुछ ख़ास लोगों की
चर्चा करने से कतराते हैं
इस विषय पर हमने भी लिखा था हजूर
जवाब देंहटाएंकोई बुराई हो तोउ बताइयेगा जी
चिठ्ठाचर्चा देखकर लगता है कि इतनी मेहनत अखबारों के पेज मेकर किया करते तो..
जवाब देंहटाएंफ़ाइव पोंइट समवन पढ़ने के बाद 3 ईडियट्स फ़ीकी लगती है। इस लिए हमारा समर्थन चेतन को जाता है। बकिया चर्चा बढ़िया रही
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा चिट्ठा चर्चा अनूप जी।
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