आज हम विज्ञान की परिभाषा और उसके निहितार्थों पर बात करेंगे. कई बार ऐसा देखा गया है की विज्ञान अथवा वैज्ञानिक खोजों का नाम लेते ही हमारे कई मित्रों के मन में परमाणु बम और लड़ाकू जहाजों की छवि ही उपस्थित होती है, इससे इतर विज्ञान को वे देख नही पाते.
पहले विज्ञान की परिभाषा के बारे में थोड़ी चर्चा कर लें. सबसे सटीक परिभाषा जो अब तक मेरी नज़रों से गुजरी वह यह है "मानव की उन्नति के लिए अनिवार्यता की खोज ही विज्ञान है". लोगों की सामाजिक जरूरतें पूरी करने की कोशिशों के बीच ही विज्ञान का जन्म हुआ है. यह कोई ऐसा विषय नही है जिसे किसी प्रकार की विलासिता को ध्यान में रखते हुए प्रोत्साहित किया गया, जब नए समाज की वर्गीय संरचना में यह आवश्यक हुआ तभी इसका जन्म हुआ. यानि कहा जा सकता है की उत्पादन में लगने वाले समय को किसी प्रकार कम किया जा सके,मनुष्य के भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति सरलता से की जा सके इसी प्रयास ने विज्ञान को जन्म दिया.
छिटपुट प्रयासों के बीच से गुजरते हुए यन्त्र युग में आकर विज्ञान की पहचान बनी. आधुनिक समाज में विज्ञान के जिस रूप को हम देख रहे हैं वह उसी यंत्र युग की देन है. इसी कारण विज्ञान के सह -उत्पाद के रूप में उपरोक्त साम्राज्यवादी उपक्रमों को हम विज्ञान के उपर हावी हुआ देखते हैं, किन्ही कारणों से हमारा ध्यान इस कुव्यवस्था पर न जाकर सीधे-सीधे इसके परिणामो पर जाता है और परिणाम पर दृष्टि पड़ते ही हम विज्ञान को दोषी ठहरा देते हैं, जो किसी प्रकार सही नही है...उन महान वैज्ञानिकों की दिन-रात की मेहनत का अपमान है जो उन्होंने अपनी सुख -शांति, विलासिता, परिवार, धन, स्वस्थ्य और जीवन को नजरंदाज करके मानव के कल्याण के लिए की है. जिन्होंने मानव सभ्यता के लिए अपना सब कुछ होम कर दिया उनमे से कई जीवन के अंतिम समय में भी भयंकर आर्थिक समस्याओं से घिरे रहे. अतः मेरा आप सब से विनम्र अनुरोध है की किसी प्रकार के निष्कर्ष पर पहुँचाने से पहले इन बातों को ध्यान में रखें.
विज्ञान के बारे में कुछ निर्विवाद तथ्य हैं जैसे की - किसी उपक्रम के लिए प्रत्यक्षता और व्यावहारिकता ही वैधता है, जिस क्रियाकलाप में यह नही है वह विज्ञान नही है, जहाँ हम कारण और परिमाण में सम्बन्ध नही देख सकते उसे विज्ञान अथवा वैज्ञानिक क्रियाकलाप की श्रेणी में नही रखा जाता. पदार्थ के गुणधर्म की प्रत्यक्ष जाँच/पड़ताल ही विज्ञान है. विज्ञान में सिद्धांत और व्यवहार को अलग नही किया जा सकता. इच्छित परिणाम तक पहुँचाने के लिए विज्ञान में प्रयोग होते हैं..हम उन प्रयोगों और उनके परिणामों के बीच स्पष्ट सम्बन्ध देखते हैं..विश्लेषित करते हैं और उसके आधार पर आगे बढ़ते हैं. कई असफल प्रयोगों के बाद मिली सफलता को व्यावहारिकता की कसौटी पर जांचा जाता है फिर उस तकनीक को सार्वजनिक किया जाता है और सिद्धांत को धरोहर के रूप में रखा जाता है जिससे की अगर कोई उस प्रयोग को दोहराय तो उसे वही परिमाण हासिल हो.
इस प्रकार हम देखते हैं की विज्ञान प्रयोगों का संग्रह मात्र नही है. किसी प्रयोग के सिद्धांत बनाने की शर्त का मार्ग उसकी व्यावहारिकता, प्रमाणिकता और उपयोगिता से होकर गुजरता है. कहा जा सकता है कोई उपक्रम तब तक विज्ञान का सिद्धांत बनाने योग्य नही है जब तक उसने किसी विवादास्पद मत को सुलझा नही लिया, किसी समस्या का परिणाम नही ढूंढ़ लिया. इसके बाद ऐसा समझा जाता है की सिद्धांत/प्रयोगों की व्याख्या होगी उसके अनुप्रयोगों की खोज होगी, जिससे की दोहराय बिना भी हम उसके परिणामो का अनुमान तार्किक ढंग से लगा सकेंगे...इसलिए हम कह सकते हैं की विज्ञान की किसी खोज का महत्वपूर्ण होना उसकी सामाजिक उपयोगिता पर ही निर्भर है, अन्यथा उस क्रियाकलाप में लगा श्रम और समय निरर्थक है.
यंत्र युग ने इस आधुनिक विज्ञान की नई परिभाषा गढ़ी है, इससे मुक्त होना ही विज्ञान के लिए सबसे बड़ी समस्या है..अब सवाल है यह कैसे संभव हो? कोई भी समाजोपयोगी कार्य करने वाला सिर्फ प्रेरणा के आधार पर कार्य नही कर सकता उसे भी जीवित रहने के लिए भौतिक साधनों की जरुरत होती है. यहीं से मध्यम वर्ग और समाज के उस हिस्से का कार्य आरम्भ होता है जो जनसंख्या की दृष्टि से इस समाज का एक बड़ा हिस्सा है और जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद थोडा समय और उर्जा समाज के सापेक्ष अपने दायित्व के लिए लगा सकता है. यही वह वर्ग है जो अपनी आवश्यकताओं और रुचियों में परिवर्तन करके विज्ञान का रुख समाज की नीव की ओर मोड़ सकता है. ऐसा तब तक संभव नही जब तक की उसे अपनी सामाजिक सापेक्षता और दायित्व बोध का ज्ञान न हो. यह आसान नही है, पर इतना कठिन भी नही. इसके लिए जिस बाजारवाद ने आज समाज के विशाल तबके को चपेट में ले रखा है उसकी निरर्थकता का ज्ञान आवश्यक है.
आज छोटे बच्चे इस बाजार द्वारा प्रायोजित प्रतियोगिता का शिकार होकर आत्महत्या कर रहे हैं, हर ओर फूहड़ द्विअर्थी संवादों और अश्लील विज्ञापनों की धुंध छाई हुई है. रंग -बिरंगी रोशनिओं के बीच सामाजिकता कहीं गम हो चुकी है लोग व्यक्तिगत विलासिताओं में उलझकर अपनी सामाजिक सापेक्षता को विस्मृत कर बैठे हैं. यह भविष्य के लिए अच्छे संकेत नही कहे जा सकते, पर सत्य यही है इसे आंखें खोलकर देखना ही इसके प्रति बदलाव की इच्छा को जन्म दे सकता है.
बात जब आरंभ होती है अपना विस्तार पा ही लेती है ...क्षमा कीजिएगा इसपूरी चर्चा में "चिठ्ठा चर्चा" नही हो पाई ..और न हो कोई ऐसा चिठ्ठा दिखा(एक-दो छोड़ कर, उसकी चर्चा अगली बार की जाएगी) जो उपरोक्त शर्तों को
पूरा करे विज्ञान चर्चा में अपना स्थान पाने के लिए...तो, अगर आपको कोई मिले इधर टिप्पणी में उसका लिंक प्रेषित करें इस विचार को ध्यान में रखते हुए की "सूचनाएं विज्ञान नही होती"...न ही ऐसे किसी चिठ्ठे की चर्चा मुझसे हो सकेगी जिसमे विज्ञान के नाम पर छद्मविज्ञान अथवा अधकचरा ज्ञान परोसा जा रहा हो.....अगर मेरे चर्चा के अंदाज में कोई समस्या दिख पड़ी हो ..मैं अपने पाठकों और इस ब्लॉग के मोडरेटर से अनुरोध करुँगी की वे अपना मंतव्य जाहिर करें ..जिससे की चर्चा में अपेक्षित सुधार लाया जा सके. आज के लिए इतना ही, अब विदा ..फिर आपकी सेवा में प्रस्तुत होउंगी अगले माह के अंतिम शनिवार को.. आपका दिन सार्थक हो.
- लवली
बाकी सब सही है, लेकिन एक बात समझ में नही आई। इस पोस्ट को आपने अपने ब्लॉग के स्थान पर यहाँ क्यों प्रकाशित किया?
जवाब देंहटाएं--------
या इलाही ये माजरा क्या है?
क्या इच्छाधारी साँप सचमुच अपना रूप बदल सकता है?
"...न ही ऐसे किसी चिठ्ठे की चर्चा मुझसे हो सकेगी जिसमे विज्ञान के नाम पर छद्मविज्ञान अथवा अधकचरा ज्ञान परोसा जा रहा हो...
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ. बेबाकी का शुक्रिया!
ज़ाकिर जी वाली बात हम भी सोच रहे हैं..
जवाब देंहटाएंविज्ञान चर्चा
जवाब देंहटाएंशुक्रिया lovely चर्चा मंच को एक सही दिशा देने के लिये । विज्ञान चर्चा मे किन ब्लॉग का लिंक दिया जाये क्या उनका "जो विज्ञान के नाम पर छद्मविज्ञान अथवा अधकचरा ज्ञान परोसा जा रहा हो" ??? आप ने बहस के लिये एक सही मुद्दा दिया हैं इस मंच पर कि जितने भी ब्लॉग अपने को "विज्ञान के ब्लॉग मानते हैं " क्या वो सच मे विज्ञान पर ही लिख रहे हैं ?? इस मंच इस प्रकार कि बहस हो तो बेहतर है । आप को नहीं महसूस हुआ आप ने लिंक उपलब्ध नहीं किये पर "आधार " बता दिया अब लोग खुद पढ़ कर इस पर बहस कर सकते हैं और अपनी राय दे सकते हैं । बस ध्यान देना होगा कि राय ब्लॉग पर हो उसके कंटेंट पर हो और व्यक्तिगत ना हो ।
PD वाली बात मैं भी सोच रहा हूँ
जवाब देंहटाएंवैसे कल की दुनिया पर क्या विचार रखते हैं साथी
यदि कुछ पता चल पाए तो आत्मावलोकन हो
बी एस पाबला
लीक से हटकर चर्चा का अन्दाज....?
जवाब देंहटाएंप्रतीक्षा थी विज्ञान-चर्चा की ! किंचित निराश हूँ ! यह मान लिया जाय कि विज्ञान-संबंधित या वैज्ञानिक-दृष्टि-युक्त एक भी पोस्ट इन दिनों प्रकाशित नहीं हुई !
जवाब देंहटाएंअंग्रेजी के ही कुछ लिंक दे दिये जाते !
बहुत निडर और झन्नाटेदार चर्चा है. बधाई स्वीकार करें.
जवाब देंहटाएंमेरे विचार से इस पोस्ट के लिये इससे बेहतर और कोई मंच नहीं हो सकता. बात को उठाने का हर चर्चाकार का अपना अंदाज होता है और इस मुद्दे को भी इसी परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिये.
छद्मविज्ञान वाली बात सही कही. छद्म उपदेशी-वैज्ञानिक इशारा समझ गए होंगे :)
जवाब देंहटाएंबचपन की क्लास में हमें पढाया गया था -- विग्यान माने विशेष ग्यान। इस विशेष ग्यान को प्रस्तुत करने के लिये आभार।
जवाब देंहटाएंएकाध लिंक भी दे देते कैसा भी,
जवाब देंहटाएंअब आदत पड़ गई है सो पोस्ट पढ़ने के बाद भी हाथ में खुजली हो रही है
दूसरे लिंक पर जाने की...
अब भी लिंक दे दीजिए ऑरीजिनल विज्ञान ब्लॉग के हिन्दी या अंग्रेजी कैसे भी हों
जवाब देंहटाएंयह चर्चा तीन घँटे पहले मोबाइल पर पढ़ ली थी,
लिखा बड़ी मेहनत से है, फिर भी आलोचना की खिड़कियाँ दिख रही हैं । विज्ञान को लेकर एक साधारण सी परिभाषा पर्याप्त है,
" किसी क्षेत्र या विषय के सूक्ष्म अवलोकन और तथ्यपरक विश्लेषण की अवधारणा विज्ञान है ।"
यहाँ टिप्पणी देने आया, सोच रहा हूँ कि देना चाहिये या नहीं ?
चलो लवली, आज मेरा असहमत मौन ही सही !
न ही ऐसे किसी चिठ्ठे की चर्चा मुझसे हो सकेगी जिसमे विज्ञान के नाम पर छद्मविज्ञान अथवा अधकचरा ज्ञान परोसा जा रहा हो...
जवाब देंहटाएंआपके इस कथन से अक्षरश: सहमति....यहाँ विज्ञान के नाम पर जो परोसा जा रहा है...आज के समय में उतना ज्ञान तो एक मैट्रिक में पढने वाला विद्यार्थी भी रखता है।
कहते है कि "मूषक को मिल गई हल्दी की गठिया ओर वो खुद को पंसारी समझने लगा". बस यहाँ भी कुछ लोगों का ऎसा ही हाल है..जिनकी नजर में विज्ञान ओर बच्चों की कविता/कहानियों में कोई बहुत ज्यादा फर्क नहीं ।
खैर आपके विचारों से पूर्णत: सहमत हैं...इस बेबाक लेखन के लिए बधाई स्वीकारें!!!
इस चर्चा में किसी पोस्ट का लिंक नहीं है लेकिन अच्छा लगा कि इसी बहाने हाल-फ़िलहाल के ब्लॉग जगत के विज्ञान ब्लॉग की सामान्य प्रवृत्तियों पर बातचीत करते हुये अपनी सोच जाहिर की। सुन्दर। अब विज्ञान से जुड़े ब्लॉगपोस्टों की चर्चा का इंतजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंshee chintan.
जवाब देंहटाएंमानव की उन्नति के लिए अनिवार्यता की खोज ही विज्ञान है --> मेरी समझ से ये प्रौद्योगिकी/तकनीक है।
जवाब देंहटाएंविज्ञान तो बस विशिष्ट ज्ञान ही है और जब तक उसका उपयोग-अनुप्रयोग न हो...
@जाकिर जी - क्योंकि यह विषय "विज्ञान चर्चा" से सम्बंधित था.
जवाब देंहटाएं@पाबला जी - मैंने वह चिठ्ठा नही देखा है..देख कर कहूँगी.
@हिमांशु जी - कभी चर्चाकार की समस्या भी सुन लिया करें...शेष हम हैं ही पाठकों की सेवा में.
@अमर जी - आलोचना का अर्थ ही अनुपलब्धता की ओर ध्यान आकर्षण है...और उसका सदैव स्वागत है..पर मेरे अनुसार हर विषय को सामाजिक सरोकारों से जुड़ा होना ही चाहिए..इस कारण मैंने ऐसी परिभाषा लिखी..आपकी कृपा दृष्टि बनाये रखें.
@ RC Mishra जी - कभी वक्त मिला इसपर विस्तृत चर्चा की जाएगी.. अनुरोध है, परिभाषा को निहितार्थों के सापेक्ष देखा जाए..ऐसे लिखने का मेरा विशेष प्रयोजन है जो आपको लेख के द्वितीय पैराग्राफ से स्पस्ट होगा.
- शेष मित्रों का भी बहुत धन्यवाद.
तो... आपका तात्पर्य यह है कि हाल फिलहाल हिब्दी ब्लॉगजगत में विज्ञान सम्बन्धी कोई पोस्ट चर्चा के लायक नहीं पायी गयी।
जवाब देंहटाएंऐसा क्या...?!!ऽ :(
मैं बार बार अपने को रोकता रहा हूँ की टिप्पणी न करूँ इस पोस्ट पर -एक भयंकर असमंजस -टिप्पणी करूँ तो लवली जी का कोपभाजन बनूँ ,और न करूँ तो अपने कर्तव्य से च्युत हो जाऊं -जी कड़ा कर लवली जी का कोप भाजन बना स्वीकार करता हूँ .
जवाब देंहटाएंकुछ टिप्पणियाँ महत्वपूर्ण हैं -आर सी मिश्र की जैसे -मानव की उन्नति के लिए अनिवार्यता की खोज ही विज्ञान है --> मेरी समझ से ये प्रौद्योगिकी/तकनीक है।
विज्ञान तो बस विशिष्ट ज्ञान ही है और जब तक उसका उपयोग-अनुप्रयोग न हो...
उन्होंने बहुत स्पष्ट तौर पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अंतर्संबंध और उनके अर्थ बता दिए .
हिमांशु जी और सिद्धार्थ जी की निराशा जायज है -कुछ ब्लोग्स की चर्चा भी चिट्ठाचर्चा में होना ही चाहिए -जैसे कल्किआन के कुछ लेख अच्छे आये हैं .
प्रूफ की गलतियां भी कभी कभी अर्थ का अनर्थ करती हैं -"उस प्रयोग को दोहराय तो उसे वही परिमाण हासिल हो." यहाँ मुझे परिणाम शब्द सही लगता है -ऐसे और भी हैं -दोहराय भी ठेठ शब्द है -होना चाहिए था "दोहराया जाय" लवली जी आपने इस महत्वपूर्ण दायित्व को स्वीकार है तो यह उत्तरदायित्व आपको या अनूप शुक्ल जे को लेना होगा की वे यथासम्भव वर्तनी त्रुटिहीन चर्चा /आलेख यहाँ दें .हिन्दी ब्लॉगजगत अब पारस्परिक पीठ खुजाई से निवृत्त हो रहा है अगर हम नहीं सावधान हुए तो केवल हास्यास्पद बनते जायेगें .
आपने विवेचन अच्छा किया है -विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अंतर को और स्पष्ट करना होगा .
अगले चर्चा का इंतज़ार रहेगा !
अब देखिये न ,पर उपदेश कुशल बहुतेरे -यहाँ भी वर्तनी की अशुद्धियां हो गयीं -
जवाब देंहटाएंरोकता रहा हूँ (कि)......
कोप भाजन (बनना )
दोहराया जाय के बाद पूर्ण विराम
(स्वीकारा ) है
शुक्ल (जी )
अगले वाक्य में हो रहा है के बाद पूर्ण विराम
(अगली )
सुधीजन कृपया सुधार कर पढ़ें -(अब तो पढ़ चुके होगें )
असावधानी के लिए खेद है .
हूँ।
जवाब देंहटाएंमैं तो कहूँगा कि विज्ञान के व्यापक अर्थ लिए जायँ तो हिन्दी ब्लॉगरी के गौरव अभिषेक ओझा जी के गणित के लेख इस श्रेणी में आते हैं।
बाकी लवली जी की बातों से सहमति है। विज्ञान पर न लिखना मैं अपनी काहिली मानता हूँ। साइंस ब्लॉगर असोसिएशन पर लेख देने होंगे। शुरू करता हूँ।
अरविन्द जी से सहमति है। वर्तनीगत अशुद्धियाँ नहीं होनीं चाहिए।
लवली कुमारी की मेल से प्राप्त टिप्पणी
जवाब देंहटाएं@अरविन्द जी - परस्पर पीठ खुजाई से मुक्त होने का सुझाव अच्छा लगा ..अब आपके साईं ब्लॉग के उन लेखों की पड़ताल की जा सकेगी जो आपने व्यवहार शास्त्र के नाम पर छांप रखें हैं ..रही बात विज्ञान की परिभाषा की तो यह परिभाषा विज्ञान को सामाजिक सरोकारों से जोड़ने, समाज की नीवं की और मोड़ने के लिए लिखी गई है ..आप इसे उसी सन्दर्भ में देखें ..अगर इस परिभाषा को बदला जाएगा और सिर्फ प्रेक्षण को विज्ञान साबित किया जाए ..तब कई ऐसी चीजें जो छद्म विज्ञान के अन्दर आती है उसे भी मुझे स्थान देना होगा.
मुझे मित्रों से सिर्फ इस प्रश्न का उत्तर चाहिए ...आखिर प्रेक्षणों से
ज्ञान प्राप्त हुआ ..उसे उसकी सटीकता के आधार पर परखा गया ..(न की किसी को सपने में दैवीय प्रेरणा मिली) फिर किस प्रकार व्यवहार और सिद्धांत को आप लोग अलग करके देख रहे हैं ...? लगता है आलोचना की जल्दी में मित्रों ने लेख पूरा पढ़ा नही है ..और पढ़ा तो समझना जरुरी नही समझा.जिसे इस विषय में चर्चा आगे बढ़ानी है ..अपने ब्लॉग पर लिख कर लिंक मुझे प्रेषित कर सकता है ...
जब तक किसी क्रियाकलाप को लेख में दिए गए शर्तों के आधार पर न परखा जाए ..और उसकी प्रमाणिकता न साबित हो मैं उसे वैज्ञानिक क्रियाकलाप मानने से इंकार करती हूँ ... और यह मेरी घोषणा है इस मंच से जिसे चुनौती देनी है मेरी इस मान्यता को उसका स्वागत है. मुझे पीठ खुजाई का कोई विशेष शौक नही है.
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@गिरिजेश जी - जैसा की मैंने कहा - "कुछ को छोड़ कर" उसकी चर्चा अगली बार...मुझे उपरोक्त बातों पर सबका ध्यान आकर्षित करना था ..इसे मेरे विरोध प्रदर्शन का शांति पूर्ण तरीका समझ लें ..आखिर मुझसे अपेक्षा की जाए मैं अच्छी चर्चा करूँ, मैं क्यों न अपेक्षा करूँ की लोग अच्छा (सबसे जरुरी है सार्थक )लिखें ?
@साईब्लाग तो पड़ताल के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है .
जवाब देंहटाएंऔर तो कुछ कहना ही व्यर्थ है .
आपके इस लेख की अगली,कड़ी और इससे स्मबन्धित लेखों की प्रतीक्षा रहेगी ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
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