चर्चा की शुरुआत शरद कोकास की कविता से :
नंगे पाँव रेत पर चलने का सुख
सिर्फ उन्हे महसूस होता है
जो कभी नंगे पाँव नहीं चलते ।
बाक़ी के लिये
सुख क्या और दुख क्या ?
शरद कोकास की कविताओं पर अमरेन्द्र त्रिपाठी की टिप्पणी है--
अनुभव तो सब करते हैं लेकिन कविता का जामा
कलाकार ही बैठते हैं ,, यहाँ दिल्ली में रोशनी की
इसी महानता (?) से मैं भी बावस्ता होता रहता हूँ ,, पढ़कर अच्छा लगा आभार
अमरेन्द्र जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोधछात्र हैं। अवध का यह बबुआ अपने ब्लॉग अवधी के अरघान
में नियमित रूप से कौवा-बगुला संवाद करता है। इसके अलावा अवधी की प्रमुझ रचनाओं से परिचित कराने का प्रयास करते हैं अमरेन्द्र। मकर संक्रांति के अवसर पर इस त्यौहार की जानकारी अवधी में देते हुये अमरेन्द्र लिखते हैं:
ई गजब कै संजोग है कि कमोबेस यही समय पूरे भारत मा तिउहार मनावा जात है ..
हाँ अलग -अलग नाम भले हुवैं तिउहार कै , मसलन तकरीबन यही समय ( यकाध दिन आगे
पीछे) जम्मू, हरियाणा, पंजाब मा 'लोहड़ी' मनाई जात है , गुजरात औ महाराष्ट्र मा यहिका 'हडगा '
के रूप मा मनावत हैं, असम कै उल्लास 'बिहू' के रूप मा सामने आवत है , बंगाल कै 'गंगासागर
कै मेला' तौ बेजोड़ होबै करत है , तमिलनाडु मा 'पोंगल' अउर आन्ध्र मा 'उगादी' के मनावै कै
जोरसोर से चलन अहै,छत्तीसगढ़ मा यहिका 'खिचड़ी अउर तिलगुझिया के तिहार' के तौर पै मनावत हैं सब,
उत्तर प्रदेस बिहार, मध्य प्रदेस आदि जगहन 'खिचडी' ही मुख्य रूप से कहा जात है ई तिउहार,
उत्तराँचल मा 'घुघुतिया या कालाकौवा' कै चलन अहै, बुंदेलखंड मा 'सुकरात' कहत हैं ... यहितरह
भारत के विभिन्न भागन मा ई परब मनावा जात है
अमरेन्द्र की इस रचना पर शिखा वार्ष्णेय का कहना है--थोड़ी मशक्कत करनी पड़ी पढने में ..पर जानकारी अच्छी लगी. अपनी कविता में शिखा लिखती हैं:
नजरें कुछ और कह रहीइस कविता संगीता स्वरूप जी की प्रतिक्रिया है--आज के माहौल के अनुरूप रचना लिखी है....सच है कि आज के वक्त में दोस्ती से ज्यादा दुश्मनी पर भरोसा रहता है ..क्यों कि ये पता होता है कि कम से कम दुश्मन है...संगीताजी अपने ब्लॉग में मुक्तक सरीखी कविता लिखती हैं:
लब की अलग कहानी है
देते आगे से मिश्री और
पीछे हाथ में आरी है
कोई बड़ा हुआ है कैसे
और कोई कैसे चढ़ा हुआ है
खींचो पैर गिराओ भू पर
ये किस की शामत आई है.
ख़ामोशी के घुंघरू भी
करते हैं बहुत शोर
कभी कभी
महफ़िल में भी
तन्हाई होती है
चारों ओर .
अविनाश वाचस्पति अपनी गिरफ़्तारी के किस्से खुद ही सुना रहे हैं-... और एक हिन्दी ब्लॉगर अविनाश वाचस्पति गिरफ्तार
उधर बालकिशन जी को न जाने कहां से बोध प्राप्ति हो गयी और वे कवि जयराम’आरोही’ को ले आये और कविता सुनवाये:
अगर नहीं कुछ लिख सकते तो बड़े बनो तुम
जो छलके हर पग पर ऐसे घड़े बनो तुम
घड़े बनो और बांटो ब्लागिंग के रहस्य हो
फिरो रात-दिन दो कमेन्ट तुम हर सदस्य को
फिर देखो कैसे चलती तुम्हरी दूकान है
इसी नींव पर खड़े हुए कितने मकान हैं
कल हुये छ्त्तीसगढ़ ब्लॉगर सम्मेलन की बेबाक रपट संजीत त्रिपाठी पेश करते हैं। अनिल पुसदकर के बयान की जानकारी देते हुये संजीत लिखते हैं:
अब तक इंटरनेट पर छत्तीसगढ़ को लेकर नकारात्मक बातें ही ज्यादा दिखाई देती हैं। इसलिए ब्लॉगर साथियों को अपने प्रदेश की छवि सुधारने की दिशा में कोशिश करनी होगी। उन्होंने आगे कहा कि कुछ लोग अपने ब्लॉग में छत्तीसगढ़ के विषय में दुष्प्रचार करने की कोशिश कर रहे हैं। छ्द्म नामों से लिखे जा रहे इन ब्लॉग्स की वजह से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ की छवि खराब हो रही है। उनके ब्लॉग से यह संदेश जा रहा है कि यहां भुखमरी, तबाही और नक्सली हिंसा के अलावा कुछ नहीं है। पुसदकर जी ने ऐसे दुष्प्रचारों का जवाब देने के लिए राज्य के सभी ब्लॉगरों का एक कम्युनिटी ब्लॉग बनाने की जरुरत पर जोर दिया।
संजीत की इस पोस्ट में चिट्ठाचर्चा डोमेन नाम लेने पर उनकी राय और अन्य लोगों के विचार भी हैं। बैठक के मुख्य निर्णय रहे:
1 छत्तीसगढ़ के ब्लॉगर्स एक कम्युनिटी ब्लॉग पर जरुर लिखेंगे।
2 एक कार्यशाला आयोजित की जाएगी।
3 राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन आयोजित किया जाएगा।
संजीत को काफ़ी दिन बाद फ़िर से लिखने देखना सुखद रहा।
अमरसिंह जी के ब्लॉग पर हिन्दी ब्लॉगर साथियों की टिप्पणियां काफ़ी होती हैं कारण कि वे हिन्दी में लिखते हैं।
डा.अनुराग अपनी पोस्ट को किसी के भी ब्लॉग पर पोस्ट कर दें बिना कोई शीर्षक दिये तब भी उनके प्रेमी पाठक शायद पहचान लें कि यह अनुराग की ही पोस्ट है। अपनी पिछली पोस्ट में डा. ने लिखा:
किसी पगले कवि ने पुजारी को “धार्मिक दिहाड़ी मजदूर “कहा है...मेरा ओर्थोपेडिक दोस्त अक्सर बहक कर अकेले में हमारे तबके को" पॉलिश्ड कमीनो की जमात " कहता है...भरे पेट की थ्योरी अलग होती है ……..”.हम साले स्वेच्छा से हिप्नोटाइज लोगो का समूह है “... डिक्शनरी ऐसे शब्द एक्सेप्ट नहीं करती ...ये "ऑफ दी रिकोर्ड"...... शब्द है ....वैसी आधी दुनिया ऑफ दी रिकोर्ड ही चलती है ....नैतिकता का मेनिफेस्टो ऐसा ही है ....कोई भी इसे हाइजेक कर सकता है ...यू भी कृत्रिम नैतिकताओं" के डाइमेंशन बड़े फ्लेक्सेबल है ...किस दरो-दीवार की ऊंचाई कितनी रखनी है कब किसको खींच कर बड़ा करना है .. सारे ऑप्शन खुले है ....
सुरेश चिपलूनकर ने अपने ब्लॉग के तीन साल पूरे होने के मौके पर पोस्ट लिखी-- ब्लॉगिंग के तीन साल पूरे… सभी पाठकों, प्रशंसकों और आलोचकों को धन्यवाद… सुरेश जी को हमारी बधाई।
गौतम राजरिशी आज परिचय करा रहे हैं गणितज्ञ गजलकार कुमार विनोद से। देखिये उनके कुछ शेर:
काम पर जाते हुये मासूम बचपन की व्यथा
आँख में रोटी का सपना, और क्या कुछ भी नहीं
एक अन्जाना-सा डर, उम्मीद की हल्की किरण
कुल मिलाकर जिंदगी से क्या मिला, कुछ भी नहीं
एक खुद्दारी लिये आती है सौ-सौ मुश्किलें
रोग ये लग जाये तो इसकी दवा कुछ भी नहीं
वक्त से पहले ही बूढ़ा हो गया हूँ दोस्तों
तेजरफ़्तारी से अपना वास्ता कुछ भी नहीं
अनुराग शर्मा आत्महत्या की प्रवृत्ति पर अपनी राय देते हुये लिखते हैं:
आज मैं अपने अनुभवों और मनन से यह भली प्रकार जानता हूँ कि आत्महत्या के बारे में मनुष्य तभी सोचता है जब वह जीवन से हार चुकता है। लड़ने के लिए भी जिजीविषा चाहिए. जिसमें वह नहीं है, भले ही एक क्षण के लिए, वह भला कैसे लड़ मरेगा? आत्महत्या के बारे में इतना और कहना चाहूंगा कि आत्महत्या करने वाले की तुलना डूबते हुए उस व्यक्ति से की जा सकती है जिसे तैरना नहीं आता है मगर रहना जल के बीच ही पड़ता है। इन लोगों को बचाने के लिए दूसरों की सहायता की ज़रुरत तो है ही, बचाने के बाद इन्हें तैरना भी सिखाना पडेगा। मतलब यह कि जीवन जीने की कला सिखाना ज़रूरी है, घर में हो, मंदिरों में या विद्यालय में।
भद्र बंगाल का नया शगल : बीवियों के पोर्न वीडियो तसलीमा नसरीन का लेख है। इसमें बंगाली समाज के कुछ उदाहरण पेश करते हुये पतियों द्वारा अपनी पत्नियों की पोर्नोग्राफ़ी करने की बात से शुरू की गयी बात कही गई है। अंत में वे लिखती हैं:
पोर्नोग्राफी पर रोक कैसे लगे? समाज का सही चित्र न दिखाने की मंशा से ही तो वह सब दिखाया जाता है। अगर लोगों के मन-मस्तिष्क के भीतर किसी कोने में विकृति भरी हुई है तो आज नहीं तो कल भद्र कहे जाने वाले चेहरों पर से मुखौटा हटेगा ही। मेरा मानना है कि विकृति चिरस्थायी चीज नहीं है। स्वस्थ, सुंदर, समान अधिकार वाला समाज बनाने के लिए चल रही कोशिशों में स्त्री और पुरुष दोनों को मिल कर यह विकृति समाप्त करने की चेष्टा करनी ही होगी। इसे बुरी बात मान कर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से कुछ नहीं होगा। यह गंदगी पूरी दुनिया को अपने आगोश में लेती चली जाएगी। कानून बना कर और मानवाधिकारों के मामले में लोगों को शिक्षित करके ही इस विषमता और विकृति को रोकने में मदद मिल सकती है।
यह याद रखना होगा कि जब तक देश, धर्म, वर्ग, वर्ण आदि से परे स्त्री को मनुष्य मानते हुए संपूर्ण अधिकार हासिल नहीं होता, स्त्री शिक्षित और आत्मनिर्भर नहीं होती, जब तक नारीविरोधी कुसंस्कार का पूरी तरह विलोप नहीं हो जाता, स्त्री शरीर को लेकर पुरुषों का विकृत उत्सव चलता रहेगा। बंगाल के मुंह छिपाने वाले हीरेन या तपन भी रक्को सिफ्रेदी बनने का सपना देखते रहेंगे।
छोटी पर बड़िया चिठ्ठाचर्चा। हम अनुराग शर्मा जी से शतप्रतिशत सहमत
जवाब देंहटाएंअब अपने किस्से खुद न सुनाऊं
जवाब देंहटाएंतो क्या करूं
अच्छी बातें तो सब बतलाते हैं
जेल जाने को
न जाने क्यों छिपाते हैं
कोई दूसरा बतलाता
तो पता नहीं किसी को
यकीं आता, आता न आता
इसलिए खुद ही सुना दिये
कम से कम
भरोसा तो बना रहेगा।
जवाब देंहटाएंबड़े सँयत तरीके की सँयमित चर्चा !
मेरे पढ़े हुये पोस्ट हैं तो क्या.. आपने चुन चुन कर वह पोस्ट लिये हैं, जिनके बिना चर्चा अधूरी रह जाती ।
वन्दे मातरम !
चुनिन्दा चिट्ठों को समेटे बहुत बढिया लगी ये चर्चा.....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद्!
चिठ्ठाचर्चा सुंदर लगी.
जवाब देंहटाएंकाफी दिनों बाद चिटठा-चर्चा देखी, बढ़िया है.
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं!
पोस्ट पर टिप्पणी और फिर टिप्पणीकार की पोस्ट चर्चा का यह शिल्प अच्छा लगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंवाह ! भाई पवन के कार्टून देख का मन हरा हो गया.
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा टिपण्णी के साथ ...बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा...अच्छे लिंक्स मिले...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंअरे ! यहाँ तो हम भी हैं .
जवाब देंहटाएंचिटठा-चर्चा के साथ टिप्पणियां भी पढ़ अच्छा लगा...
बढ़िया चर्चा...शुक्रिया