कई बार तो ऐसा देखा गया है कि जो कवि बनना चाहते हैं वे बसंत पंचमी का इंतज़ार करते हैं. उन्हें अगर लोग दिसम्बर या जनवरी में कविता लिखने के लिए उकसायें भी तो भी वे कविता नहीं लिखते. टालते हुए कहते हैं; "अब इतना दिन कविता नहीं लिखे तो चार दिन और सही. बसंत पंचमी आ रही है. उस दिन लिखेंगे. उस दिन कवि बन जायेंगे". (स्माइली).
तो पेश है बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर कविताओं वाली एक चर्चा.
तो सबसे पहले पढ़िए नीशू तिवारी जी की कविता. शीर्षक है; "बसंत की फुहार में....फागुन की बयार में." तिवारी जी लिखते हैं;
बसंत की फुहार में,
फागुन की बयान में,
आम के बौरों की सुगंध,
दूर -दूर तक फैली है,
बाकी कविता आप उनके ब्लॉग पर जाकर पढ़िए. ये रहा लिंक. बसंती टिप्पणी भी कीजियेगा.
नारदमुनि जी की कविता पढ़िए. बसंत से किस बात की तुलना की है उन्होंने, यह देखिये. वे लिखते हैं;
तेरा जाना पतझड़
तेरा आना बसंत,
मन एक
कामनाएं अनंत।
पूरी कविता पढने के लिए यहाँ क्लिकियाइये.
डॉक्टर श्याम गुप्ता की कविता पढ़िए. वे लिखते हैं;
सखी री ! नव बसंत आये ॥
जन जन में ,
जन जन जन मन में ,
यौवन यौवन छाये ।
सखीरी ! नव बसंत आये ॥
यह रहा लिंक. यहाँ क्लिक्क कीजिये और पूरी कविता पढ़ डालिए.
इसी बसन्ती कड़ी में पढ़िए निपुण पाण्डेय 'अपूर्ण' की कविता. मुझे कवि का उपनाम बहुत भाया. 'अपूर्ण.' आप पढ़िए वे क्या लिखते हैं;
शुभ बसंत ये आया खिल उठी प्रकृति रे !
मुस्काते स्वागत गीत मधुर हर तरु से फूटे
शुभ्र पुष्प दल खिले खिले यूँ लगे महकने,
पल पल हर चंचल कोपल नयी छठा बिखेरे
पूरी कविता आप ब्लॉग पर पढ़ें. बसंती टिप्पणी से कवि का स्वागत करें.
सतीश एलिया जी की कविता पढ़िए. वे लिखते हैं; "बसंत कलेंडर पर लिखी तारीख नहीं है." फिर क्या है बसंत? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए वे बताते हैं;
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बच्ची की किलकारी है, चिडियों की चहचहाट है,
पति की प्रतीक्षा है, पत्नी के विरह का स्वर है
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इस कड़ी में पढ़िए राजीव रंजन प्रसाद जी की रचना. रचना १८ साल पुरानी है. वे लिखते हैं;
सुख की थाती का क्या करना
करने दो दुख को क्रीड़ा माँ
वीणा के तार से गीत बजे
मैं गा लूं जग की पीडा माँ
सुन्दर रचना है. आप पूरी रचना पढने के लिए यहाँ क्लिक कर दीजिये.
बसंत पंचमी को 'निराला' जी का जन्मदिन भी माना जाता है. आज अनूप शुक्ल जी ने अपना एक पुराना लेख फिर से प्रस्तुत किया है. 'निराला' जी के बारे में प्रसिद्द आलोचक स्व. रामविलास शर्मा लिखते हैं;
यह कवि अपराजेय निराला,
जिसको मिला गरल का प्याला;
ढहा और तन टूट चुका है,
पर जिसका माथा न झुका है;
शिथिल त्वचा ढलढल है छाती,
लेकिन अभी संभाले थाती,
और उठाये विजय पताका-
यह कवि है अपनी जनता का!
बहुत ही बढ़िया पोस्ट है. अनूप जी के ब्लॉग का लिंक यह रहा. वहां जाकर पढ़िए.
श्री उदय प्रकाश के ब्लॉग पर 'निराला' जी के एक कविता प्रस्तुत की गई है. इस लिंक के सहारे जाइए.
जहाँ कवि इस बात से आश्वस्त है कि बसंत आ गया है वहीँ डॉक्टर महेश परिमल को बसंत के आगमन पर संदेह है. संदेह क्या है, वे मानकर चल रहे हैं कि बसंत नहीं आया. लिहाजा वे बसंत को खोजने के लिए तमाम जगह जाते हैं. कहाँ-कहाँ जाते हैं, यह जानने के लिए उनके लेख को पढ़िए. वे लिखते हैं;
"पर वसंत है कहाँ? वह तो खो गया है, सीमेंट और कांक्रीट के जंगल में। अब प्रकृति के रंग भी बदलने लगे हैं। लोग तो और भी तेज़ी से बदलने लगे हैं। अब तो उन्हें वसंत के आगमन का नहीं, बल्कि ‘वेलेंटाइन डे’ का इंतजार रहता है। उन्हें तो पता ही नहीं चलता कि वसंत कब आया और कब गया। उनके लिए तो वसंत आज भी खोया हुआ है। कहाँ खो गया है वसंत? क्या सचमुच खो गया है, तो हम क्यों उसके खोने पर आँसू बहा रहे हैं, क्या उसे ढूँढ़ने नहीं जा सकते।"
पूरा लेख आप डॉक्टर परिमल के ब्लॉग पर पढ़िए. ये रहा लिंक.
बसंत के आगमन पर पॉडकास्ट भी सुनिए. कबाड़खाना पर अशोक पाण्डेय जी ने ताहिरा सैयद द्वारा गाया
गीत लगाया है. ये रहा लिंक. सुन आइये. बहुत सुख मिलेगा.
आज की चर्चा में बस इतना ही. आप सब को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
यहाँ ठण्ड से हाड कांप रहा है और हिन्दी के कवियों को बसंत सूझ रहा है ...बाभैया !
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी वही तो...:)
जवाब देंहटाएंsardi me aap jaane, hame to ynha sardi ka ehasaas nahi he, so charcha achhi rahi.
जवाब देंहटाएंbasant panchami ki shubhkamnaye
http://ankahibaaten.blogspot.com/2010/01/blog-post_20.html
जवाब देंहटाएंवसन्तपंचमी कवितामय बनाने के लिए आभार। आपकी पोस्ट लगते लगते मेरी भी वसन्त पर कविता पोस्ट हुई। वसन्तपंचमी की शुभ कामनाएँ!
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
सर्दी हो, सम-शीत हो आये भले वसंत।
जवाब देंहटाएंमँहगाई का हाल जो नहीं दुखों का अंत।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंसुन्दर कवितामयी चर्चा !!!!!!
जवाब देंहटाएंवसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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औरतों के दाढ़ी-मूछें उग आएं तो..?
ज्योतिष के सच को तार-तार करता एक ज्योतिषाचार्य।
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जवाब देंहटाएंअबकी बसंत का आनंद तो कोहरे की चादर में छुप गया ,सूर्यदेव ने अपनी बसंती अभा बिखेरने से इनकार कर दिया और कोहरे की रजाई मुह तक ढांप कर सो गए..फर्रुखाबाद का आसमान अपनी गोद में पतंगों का इंतज़ार करता रहा ..और छते "वो कटा " के शोर से वंचित रही.....खैर पीले चावल चखकर बसंत मन लिया
जवाब देंहटाएंhttp://sonal-rastogi.blogspot.com
शुभ बासन्ती चर्चा.
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