कल सुबह जब चर्चा करने बैठे तो सबसे पहले पल्लवी की पोस्ट देखी। पल्लवी ने नये साल की शुरुआत के किस्से सुनाये हैं। कभी वे दस्तखत में पिछले साल की तारीख डाल गयीं और कहीं तारीख सही करने में इतना मशगूल हो गयीं कि दस्तखत ही करना भूल गयीं। आप देखिये उनकी पोस्ट साल का पहला दिन...पपड़ी चाट सा! आखिरी तक जाते-जाते पोस्ट संवेदनशील् हो गयी जिसमें वे लिखती हैं:
.एक बच्चे को गोद में उठाकर उछालती हूँ! वो खिलखिला उठता है! अब सारे बच्चे गोद में आने के लिए मचल रहे हैं...उन्हें भी ये उछालने वाला खेल भा गया है! मुझे विश्वास नहीं होता ...मेरी गोद में तीन बच्चे चढ़े हुए हैं...सारे के सारे हलके फुल्के हैं!मैं बहुत बहुत बहुत खुश हूँ! पहले कभी क्यों नहीं आई यहाँ पर.....? आठ बज गए हैं..बच्चों के सोने का टाइम हो गया है! " आपको कभी आना हो तो दोपहर चार बजे आइये...बच्चों का खेलने का समय होता है" केयर टेकर हमें बताती है! बच्चों को बाय करके हम निकलते हैं! " चटाक....एक आवाज़ सुनकर हम पीछे पलटते हैं! " अब सो जाओ चुपचाप...कुछ देर पहले का खिलखिलाता बच्चा गाल सहलाता हुआ बिस्तर के तरफ जा रहा था! मन में कहीं कुछ गहरे तक चटक गया है! मन से दुआ निकलती है...." काश जल्दी से कोई इस बच्चों को यहाँ से गोद लेकर चला जाए!"
इस पोस्ट के बाद फ़िर देखी और पढी जीके अवधियाजी की पोस्ट मुझे वही पोस्ट अधिक पसंद आता है जो कि आम पाठकों के लिये लिखी गई हो! इसमें अवधियाजी बताते हैं :
रोज ही मैं हिन्दी ब्लोगों के अधिकतर पोस्टों को पढ़ता हूँ किन्तु मुझे वही पोस्ट अधिक पसंद आता है जो कि आम पाठकों के लिये लिखी गई हो। आम पाठकों के लिये लिखी गई पोस्ट से मेरा मतलब है जिसे पढ़ने से किसी की कुछ जानकारी मिले, उसे कोई सार्थक सन्देश मिले या फिर उसका स्वस्थ मनोरंजन हो।
कल की अवधियाजी की पोस्ट थी क्या टिप्पणियाँ ही किसी पोस्ट की गुणवत्ता का मापदंड हैं? उनका मानना है
मैं तो समझता हूँ कि किसी पोस्ट की गुणवत्ता तय करने वाले वास्तव में उसके पाठकगण हैं न कि टिप्पणियाँ।
इस मामले में संजय् बेंगाणी की टिप्पणी मौजूं है।संजय लिखते हैं:
जब मैं काम की जानकारी जुटाने के लिए कुछ अच्छे अंग्रेजी या अन्य भाषा के ब्लॉग देखता हूँ, वे काफी मेहनत से लिखे होते हैं मगर टिप्पणी होती ही नहीं. या एक दो कहीं कहीं दिख जाती है. वह भी केवल नाइस या थेंक्यू में. और उनके पाठक हजारों में होते हैं.
मेरी इतने दिन की समझ के अनुसार टिप्पणियों का बड़ा जटिल गणित होता है। लेखन् के साथ-साथ अच्छी नेटवर्किंग , व्यवहारकुशलता और आपकी लोकसमझ का योगदान रहता है टिप्पणियों में। मेरी समझ में तो
बहुत दिन के अपने अनुभव से बताते हैं कि टिप्पणी किसी पोस्ट पर आयें या न आयें लिखते रहें। टिप्पणी से किसी की नाराजगी /खुशी न तौले। मित्रों के कमेंट न करने को उनकी नाराजगी से जोड़ना अच्छी बात नहीं है। मित्रों के साथ और तमाम तरह के अन्याय करने के लिये होते हैं। फ़िर यह नया अन्याय किस अर्थ अहो?
हमारे लिये टिप्पणी तो मन की मौज है। जब मन , मौका, मूड होगा -निकलगी। टिप्पणी का तो ऐसा है- टिप्पणी करी करी न करी।
शुरुआत से ही कुछ ऐसा हुआ हिन्दी ब्लागिंग के साथ कि हम अभी तक टिप्पणी के आकर्षण से बाहर न आ पाये। ज्ञानजी ने अपनी ब्लागपोस्ट पर टिप्पणियां बन्द कीं तो लोगों ने अपनी अपनी समझ के अनुसार बातें की। यह तो इस पोस्ट तक की बात है।अगली पोस्ट में फ़िर् उनका टिप्पणी काउंटर खुलेगा।
शुरुआती दौर में मैं देखता था अंग्रेजी ब्लॉग में आपस में कहा-सुनी काफ़ी होती थी। उतनी शायद अभी भी नहीं होती है हिन्दी ब्लॉगिंग में। इसके बाद कुछ अंग्रेजी ब्लॉगर्स् ने अपने ब्लॉग पर टिप्पणियां बन्द कर दीं। इनमें से एक अमित वर्माका ब्लॉग है। अंग्रेजी के सबसे लोकप्रिय ब्लॉग्स में से एक ब्लॉग है अमित वर्मा का ब्लॉग। अमित वर्मा ने अपने ब्लॉग पर टिप्पणियां बन्द की थीं सन 2005 में। ऐसे ही गौरव सबनीश भी काम भर के पापुलर ब्लॉगर हैं। उनके ब्लॉग पर भी टिप्पणियां बंद हैं। आप अपनी प्रतिक्रिया उनको मेल से भेज सकते हैं। अन्य कई नामधारी ब्लॉगर के ब्लॉग पर टिपियाने के पहले वहां रजिस्टरट्रेशन करना पड़ता है।
कहासुनी की बात् से याद आया कि अमित वर्मा का भी एक विरोधी ब्लॉग था। उसका एकमात्र काम अमित वर्मा का विरोध करना था। उसका नाम भी कुछ इसी तरह था एन्टीअमितवर्मा ब्लॉग। हिन्दी में फ़िलहाल इतने मेहनती और लगनशील लोग नहीं हैं। उसने तो खुले आम लोगों को पैसा देकर अपने ब्लॉग में लिखने के लिये आवाहन भी किया था शायद। अब वो विरोधी ब्लॉग दिखता ही नहीं है मुआ।
जिन लोगों को लगता है कि हिन्दी ब्लॉगिंग में बहुत गंध मची है उनको शायद ये और ये पोस्टें सुकून दें कि जित्ती चिरकुटई अंग्रेजी ब्लॉगिंग में सन 2005 में हो ली हम अभी भी उससे काफ़ी बेहतर स्थिति में हैं।
अब यह बात अलग है कि जहां अंग्रेजी ब्लॉगरों में तमाम लोग समसामयिक लेख भी लिखते हैं वहीं हमारे बुद्धिजीवी हिन्दी ब्लॉगर भाई बेटा कविता सुनाओ तो टॉपी देंगे जैसी बुजुर्गसुलभ लीलाओं में अपना मन लगा रहे हैं और मुग्धा नायिकाओं सरीखे अपने ही सौंदर्य पर रीझ रहे हैं। बहरहाल!
शिवकुमार मिश्र दिनकर के भीषण प्रशंसक हैं। इसी के चलते उन्होंने दिनकरजी को एक ठो पत्र लिखवा दिया हलकान विद्रोही जी से ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' का राष्ट्रकवि 'दिनकर' के नाम पत्र। अरविन्द मिश्रजी को लगा कि लोगों के ज्ञानकी परीक्षा लेनी चाहिये सो उन्होंने आवाहन किया कौन बताएगा पहली लाईन का अर्थ .......समर शेष है! उन्होंने यह भी कह दिया कि जो इस पहली लाइन का अर्थ् बतायेगा वे उसकी शागिर्दी कर लेंगे। पता चला बहुत् लोग इसी डर से इस सरल सी कविता का अर्थ नहीं बता रहे हैं कि कहीं मिश्रजी उनके शागिर्द न बन जायें। यह क्या कुछ ऐसे ही नहीं है जैसे लोग इंगलैंड के ओपनर क्रिकेटर ज्यॉफ़ बायकाट को एकदिवसीय क्रिकेट में आउट करने के बजाय खिलाने रहने में ज्यादा उत्सुक रहते थे ताकि इंग्लैंड की रनगति कछुआ चाल बनी रहे। मिश्रजी की इस पोस्ट पर अजित वडनेरकरजी का कहना है:
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इस ब्लाग जगत में अरविंद मिश्र से ज्यादा शरारती व्यक्ति और कोई नहीं है, इस नतीजे पर अब पहुंच चुका हूं। लोग इनकी शरारतों पर न जाकर इन्हें संजीदगी से भी लेते हैं, ये इनकी शख्सियत का अलग पहलू है। कुछ खास लोगों को इनकी ये दोनों अदाएं नहीं भाती हैं।
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नीरज गोस्वामीजी मरहूम नासिर काजमी की किताब के बारे में बताते हैं। उनकी गजल के कुछ नमूने देख लिये जायें:
मीठी नींद अमीरों की
रात गये तेरी यादें
जैसे बारिश तीरों की
मुझसे बातें करती है
ख़ामोशी तस्वीरों की
कुलवंत हैप्पी ने समीरलाल का इंटरव्यू ले डाला। देखिये विस्तार से।
क्या आप बिहारियों को भी अच्छा लग रहा है? में रवीश कुमार का बिहार विमर्श है। बिहार की 11फ़ीसदी से अधिक की विकास दर से उत्साहित होकर वे अपने मन की बात कहते हैं:
बिहार के प्रवासी लोग अपने अपने शहरों में राज्य की छवि को लेकर काफी चिंतित रहते हैं। ये उनकी किसी भी कामयाब पहचान को प्रभावित करता है। अगर आप यू ट्यूब देखेंगे तो उसमें पटना शहर को लेकर कितने तरह के वीडियो हैं। विदेशों में बसे लोग पटना की चंद इमारतों को खूबसूरत लगने वाले एंगल से शूट कर उन्हें अंग्रेजी गाने के साथ परोस रहे हैं। दावा करते हैं कि देखो, ये है पटना। किसी की मत सुनो,अपनी आंखों से देख लो। और बिस्कोमान का एफिल टावर नुमा शाट घूमने लगता है। कोने में पड़ा कृष्ण मेमोरियल वीडियो में बुर्ज दुबई की तरह दिखने लगता है। वीडियो अपलोड करने वाला कहता है,देखा पटना गांव नहीं हैं। बिहार को लेकर नई किस्म की इस उत्कंठा पर और नज़र डालनी चाहिए। दिवाली के दिन मैंने अपने इसी ब्लॉग पर वीडियो में बसता एक शहर लिखा था। जिसमें पटना को लेकर बिहारी अभिलाषाओं की झलक मिलती है।
बिहार से जुड़े कई साथियों के अलावा अन्य साथियों ने इस पोस्ट पर उत्साही टिप्पणियां की हैं।
पंकज सुबीर जी द्वारा आयोजित इस तरही मुशायरे में ये गजलें भी देखिये तो सही!
यहां पेश है मनोज कुमार का एक लेख और उस पर घुघुती बासूतीजी की प्रतिक्रिया।
मनोज कुमार का लेख फिरोजाबाद का नाम भारत के कोने कोने में जाना जाता है तो इसलिये कि वहां किसम किसम की चूड़ियां बनती हैं। शायद बिंदी और सिंदूर बनाने का काम भी होता होगा। इस बारे में मेरी जानकारी थोड़ी कम है। जब स्त्रियां श्रृंगार की इन महत्वपूर्ण वस्तुओं का त्याग करना आरंभ कर देंगी तो फिरोजाबाद के कारखाने मर जाएंगे। एक दो नहींे सैकड़ों परिवारों के समक्ष भूखों मरने की नौबत आ जाएगी। भारत में जिस तरह कई प्राचीन लघु और गृह उद्योग खत्म होते रहे हैं, वैसे ही एक और लघु और गृह उद्योग खामोषी से मर जाएगा। बिलकुल उसी तरह जिस तरह पावरलूम खत्म होते जा रहे हैं, जिस तरह भोपाल का जरी उद्योग सांसें गिन रहा है। आधुनिक मषीनें कपड़े बुन रही हैं और महंगे लेदर के पर्स।क्या चूड़ी, बिंदी और सिंदूर त्यागने से स्त्री आजाद हो जाएगी? क्या वह श्रृंगार की इन वस्तुओं का उपयोग नहीं करेगी तो उसकी षान पर कोई फर्क पड़ जाएगा, षायद तो फिरोजाबाद की चूड़ियां ढूंढ़ते रह जाओगे | घुघुती बासूती की प्रतिक्रिया बहुत रोचक बात कही है। संसार कभी भी किसी के लिए रुका नहीं रहता। वह बदलता रहता है, प्रगति करता रहता है। यदि चूड़ी, बिंदी और सिंदूर का उपयोग केवल इसलिए किया जाए कि इससे लोगों को रोजगार मिलता है तो शायद हमें वापिस लकड़ी के चूल्हे जलाने होंगे, उपले जलाने होंगे, पुरुषों को धोती, लंगोट,बंडी पहननी होगी, मोची गठित जूते पहनने होंगे, खड़ाऊँ पहनने होंगे,शनि देव को तेल दान करना होगा,बैलगाड़ी व घोड़ागाड़ी उपयोग करने होंगे,पीतल व मिट्टी के बर्तन उपयोग करने होंगे,आदि आदि.......... अन्यथा बहुत से लोगों का रोजगार चले जाएगा! बात कुछ जमी नहीं! सीधे से कहिए कि स्त्रियों को चूड़ी, बिंदी और सिंदूर का उपयोग करना चाहिए क्योंकि उन्हें यह सब धारण करता देख आपके मन को सुकून मिलता है। क्यों व्यर्थ में इसे रोजगार से जोड़ रहे हैँ? वैसे तर्क के लिए आप कुलिओं का जिक्र भी कर रहे हैं। वैसे वह एक बाद में आया विचार सा ही है। पुरुष जितना समय स्त्री के वस्त्रों, साज श्रृंगार व पहनावे पर सोचकर व्यर्थ करते हैं यदि अपने पहनावे व रखरखाव पर लगाएँ तो................घुघूती बासूती |
अब कुछ कवितायें भी देखिये। संगीता स्वरूपजी और पुष्पेन्द्र सिंह को पहली बार पढ़ा ,अच्छा लगा। आप भी देखिये:
अरे ! मैं यहाँ हूँ ... बाँहों का दायरासंगीता स्वरूप | बचपन से जो ख्वाब संजोया वो पूरा कब होगा ! अपना क्या है.......वस्ल का हिज्र से मुकाबला क्या है| |
पीडी के पास हाथ से लिखा पत्र आया तो मुस्कराने लगे,मारे खुशी के इतराने लगे और लगे हाथ किस्से सुनाने लगे-खुशियों का जरिया : ई-मेल या स्नेल-मेल
साहित्य एक तपस्या है, साधना है!! ऐसा बता रहे हैं ललित शर्माजी। देखिये।
महेन्द्र मिश्र रिटायर्ड हो लिये हैं। घर आ गये हैं लेकिन पुराने कागज उनको परेशान करते हैं और वे लिखते हैं-
पुराने कागज के चंद टुकड़ो से - "उनकी यादो में,अब हम विरह गीत गाने लगे हैं" अब किसकी याद है, कैसा विरह है यह मिसिरजी का निजी मामला है।
जगदीश भाटिया जानकारी देते हैं बरह में हिंदी टाइपिंग कैसे करें How to type in Hindi with Baraha
अनिलकान्त को पढिये तो ऐसा लगता है कि गद्यगीत पढ़ रहे हैं। देखिये आप भी:
उन नीम के झरते हुए पीले पत्तों और उतरकर गाढे होते हुए अँधेरे के बीच चलती हुई बातें बहुत दूर तक चली गयी थीं । हम अपने अपने क़दमों की आहटों से अन्जान बहुत दूर निकल गये थे । तब उसने यूँ ही एकपल ठहरते हुए कहा था ....
-यह नीम की ही पत्तियाँ झड रही हैं न...
-हाँ, शायद पतझड़ का मौसम है ।
-नहीं ये अँधेरे का मौसम है...लगता है अँधेरा हौले हौले झड़ता हुआ गहरा रहा है ।उस खामोश फैली हुई चाँदनी में उसके ओंठ तितली के पंखों की तरह खुले और काँपे थे और उसकी पलकें सीपियों की तरह मुंद गयीं थीं...जिस पल दोनों के ओठों के स्पर्श ने उस यादगार गहराए हुए पल को एक खुशनुमा न भूलने वाली याद बना लिया था । खुलती और बंद होती सीपियों का वह संसार एक अध्याय बन जिंदगी से जुड़ गया...
मनोजकुमार ने अपने ब्लाग सफ़र के तीन माह में पोस्ट शतक पूरा किया। आज अपने ब्लाग् पर वह् कविता पेश की उन्होंने जो पहली पोस्ट के रूप में थी। देखिये विश्व विटप की डाली पर विश्व विटप की डाली पर है, |
नये चिट्ठे चिट्ठाजगत की सूचना के अनुसार पिछले 24 घंटे में 14 चिट्ठे जुड़े। डा.अमर कुमार अपनी खुद की साइट पर अपने पुराने ब्लाग ले जा रहे हैं इसीलिये नये चिट्ठाकार कहलाये। लाली जबलपुर से भोपाल जाकर लिखते हैं मन का विस्वास ही सफलता दिलाता है । राज(चित्र बायें) स्वाति से प्रेरित होकर लिखने लगे। इन्दौर पुलिस सड़क सुरक्षा सप्ताह-२०१० मना रही है। देवरिया की सुमन कहती हैं जीत गयी जिंदगी! (नीचे का चित्र सुमन का है) अनामिका नाम से लगता है स्त्री का ब्लॉग है लेकिन वहां 33 वर्ष के मूंछ वाले जवान का फोटो है। विनय कुमार कहते हैं पानी bachav । आमीन का मानना है कि स्टूडेंट नहीं लग रहे आमिर खान! नेपाल गुरु में तो लगता है वशीकरण मंत्र की बातें हैं। आत्माकवच में तेलांगना की वासना है। सपनों की शाम अभी सही लिखना सीखना रवि रायभर को।रामगोपालविश्वकर्मा ने अभी अपनी मित्रसूची जारी की है। विशाल की आस्थायें अधूरी हैं लेकिन् वेकहते हैं हाँ वो मुस्लमान है। डा.विजय मिश्र से जानिये क्या है अध्यात्मिक साम्यवाद! 1. कुछ तो है (http://kuchh.amarhindi.com) समाज चिट्ठाकार: डा. अमर कुमार |
एक लाईना
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और अंत में: आज की चर्चा में बस इतना ही। आपका दिन झकास बीते यही कामना है। मौज से रहे ,मस्ती करें।
बढ़िया चर्चा हुई। मेरी टिप्पणी व चिट्ठे का जिक्र जो हुआ इसलिए और... अन्य का जिक्र हुआ इसलिए भी!:)
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
वाह! सुकुल जी गोड़ लागी,मजा आ गया। आज का चर्चा तो धांसु रहा।आपने हमारे एक चिट्ठे की दो जगह चर्चा की-आभार,
जवाब देंहटाएंपूरी चर्चा में एक नयापन दिखा और नई खोज भी कि ब्लॉगजगत् में सबसे शरारती व्यक्ति अरविन्द जी हैं.
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा ! बहुत कुछ सजायी हुई चर्चा ! प्रविष्टि चर्चा, टिप्पणी चर्चा, एक लाइना - सब कुछ एक साथ, बहुत दिनों बाद दिखी !
जवाब देंहटाएंआभार ।
वाह..वाह...अनूप शुक्ल जी!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा किये हो आज तो!
बहुत दिनों बाद चर्चा का यह रूप दिखाई दिया।
हमें भी गुण-ज्ञान मिला जी!
नेहरू जी एक महान शख्शियत थे जी!
जवाब देंहटाएंउन्होंने एक गधे को भी चर्चा हिन्दी चिट्ठों की करना सिखा दिया!
राउर यी पिचिया हमनी लोग न छोड़ब घबडाई ना ......
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा .....मनोज जी और घुघूती बासूती की तुलनात्मक चर्चा सबसे टनाटन लगी !
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा !
जय हो !
साफ पता चलता है काफ़ी मेहनत की गयी है इस चिट्ठा चर्चा में.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चिट्ठा चर्चा है...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंउफ़्फ़...कितनी मेहनत से की गयी हैये चर्चा। अंग्रेजी ब्लौग भी खूबे पढ़ते हैं आप, देव।
जवाब देंहटाएंमिसिर जी और सुकुल जी की नोंक-झोंक कब खतम होगी...???
@गौतम राजरिशी
जवाब देंहटाएंमिसिर जी और सुकुल जी की नोंक-झोंक कब खतम होगी...???
it's simple
जब दोनों मिल कर मास्टर को पार्टी देंगे !!
बेहतरीन लगी यह चर्चा शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा ,बेहतरीन !
जवाब देंहटाएंनये साल मे पहली चर्चा मे शामिल हुआ हूं,कुछ दिन बाहर रहा,ऐसा लग रहा है कि बहुत कुछ छूट गया।शानदार चर्चा,जानदार चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा ... रिटायर्ड हो गया हूँ पर टायर्ड नहीं हुआ हूँ.....नववर्ष की हार्दिक शुभकामना ....
जवाब देंहटाएंअमित वर्मा का नाम मुझे राजेश रोशन ने सुझाया था ...कुछ इंग्लिश ब्लॉग वाकई अच्छे है ...खास तौर से कश्मीर विषय पर .वहां युवाओ की तादाद अपेक्षाकृत ज्यादा है .वे ज्यादा खुले हुए .है ..
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा देख कर दिल कहने पर मजबूर हो गया,
जवाब देंहटाएं"जहाँपनाह तुस्सी ग्रेट हो ! शुक्रिया कबूल करो !!"
हां पल्लवी की पोस्ट बहुत सम्वेदनशील है. संगीता जी और पुष्पेन्द्र जी की कवितायें भी अच्छी लगीं. बहुत दिनों के बाद लम्बी चर्चा की है आपने. रोचक तो है ही.
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा हुई। धन्यवाद। मेरे चिट्ठे का जिक्र जो हुआ इसलिए और... अन्य का जिक्र हुआ इसलिए भी। सदा की तरह सार्थक शब्दों के साथ अच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंचर्चा ही चर्चा है ..।
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा।
जवाब देंहटाएंअनूप जी इस चर्चा को करने के लिए आप ने बहुत मेहनत की होगी और काफ़ी वक्त गया होगा ये साफ़ झलक रहा है। बेहतरीन चर्चा। अनिलकान्त, संगीता स्वरूप का लिखा मन को भाता है। घुघुति जी ने एक्दम सही पकड़ा।
जवाब देंहटाएंबिहार की 11% से अधिक विकास दर? ये तो होना ही था हमें कोई आश्चर्य नहीं। सब महाराष्ट्रा की कृपा है। पीछे मुड़ कर देखें तो सबसे पहले गुजरातियों ने धरतीपुत्रों की मार सही और गुजरात तेजी से विकसित हो लिया, फ़िर धरती पु्त्रों ने मद्रासियों को खदेड़ने की सोची और दक्षिण में अपना सिलिकोन वैली खुल गया। अब बारी आयी बिहारियों की तो रवीश जी की पोस्ट बता रही है कि बिहार भी विकास की राह पर तेजी से अग्रसर है। जय हो……
सुन्दर चर्चा.
जवाब देंहटाएंअनूप शुक्ल जी ,
जवाब देंहटाएंआज किसी ने इस पोस्ट का लिंक मुझे भेजा....और मैं एक दम अवाक सी ही रह गयी...जो आश्चर्यमिश्रित ख़ुशी हुई उसका वर्णन नहीं कर सकती....आपने मेरी रचना को सराहा ....बहुत प्रसन्नता हुई और प्रोत्साहन मिला..इसके लिए मन से आपका आभार.
चर्चा बहुत अच्छी है....आपने नए लोगों को प्रोत्साहित करने में काफी परिश्रम किया है...और नए ब्लोग्स तक जाने का मार्ग भी दिखाया है....शुक्रिया
शुभकामनाओं के साथ
संगीता स्वरुप
मैंने कहीं पढा था कि आप हिंदी ब्लॉगिंग के ग्रेट हाइपर लिंकर है । सच है ।
जवाब देंहटाएंअनूप जी,
जवाब देंहटाएंनववर्ष की उजास भरी चर्चा, व्यापक, विस्तृत और लिंकों के खजाने से भरी हुई।
संगीता स्वरूप जी की कविता बहुत ही मोहक है सरल शब्दों से बींध लेती है। मनोज जी को शतक के लिये बधाईयाँ वो भी एक सार्थक कविता के साथ।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी