पिछले दिनों ब्लॉग जगत में महिलाओं के बारे में काफ़ी बातें कहीं गयीं। वर्णन किये, तमाम उपमायें दी गयीं। उनको अविश्वनीय और बेवफ़ा कहा गया। लेकिन इनमें अधिकतर बयान पुरुषों की तरफ़ से आये थे। स्त्रियां पुरुषों के बारे में क्या सोचती हैं! इस बारे में एक चित्र प्रदर्शनी हुई जयपुर में। इसमें टूम-10 संस्था की ओर से सात महिला कलाकारों की संयुक्त प्रदर्शनी के आयोजन का. और विषय—द मेल!
इन सात महिला कलाकारों में से एक निधि सक्सेना के चित्रों की व्याख्या करते हुये चंडीदीन शुक्ल लिखते हैं:
निधि पुरुष के उलझाव बयां करती हैं और इस दौरान उसके हिंसक होते जाने की प्रक्रिया भी. समाज के डर से सच स्वीकार करने की ज़िम्मेदारी नहीं स्वीकार करने वाले पुरुष का चेहरा अब सबके सामने है. जहां चेहरा नहीं, वहां उसके तेवर बताती देह.
एक चित्र में अख़बार को रजाई की तरह इस्तेमाल कर उसमें छिपे हुए पुरुष के पैर बाहर हैं…जैसे कह रहे हों, मैंने बनावट की बुनावट में खुद को छिपा रखा है, फिर भी चाहता हूं—मेरे पैर छुओ, मेरी बंदिनी बनो!
एक्रिलिक में बनाए गए नीले बैकग्राउंड वाले चित्र में एक आवरण-हीन पुरुष की पीठ है. उसमें तमाम आंखें हैं और लाल रंग से उकेरी गई कुछ मछलियां. ये अपनी ज़िम्मेदारियों से भागते पुरुष की चित्त-वृत्ति का पुनःपाठ ही तो है!
उनके एक चित्र में देह का आकार है…उसकी ही भाषा है. कटि से दिल तक जाती हुई रेखा…मध्य में एक मछली…और हर तरफ़ गाढ़ा काला रंग. ये एकल स्वामित्व की व्याख्या है. स्त्री-देह पर काबिज़ होने, उसे हाई-वे की तरह इस्तेमाल करने की मंशा का पर्दाफ़ाश. निधि के पांच चित्र यहां डिस्प्ले किए गए हैं।
निधि सक्सेना
इसी क्रम में एक पुरुष चित्रकार रामकृष्ण अडिग के बनाये चित्रों की विवेचना निधि सक्सेना ने की है। वे चित्रों के बारे में लिखती हैं:
अडिग के सभी चित्रों में महिला अपनी ही आकृति में उलझी और बंधी हुई दिखाई देती है। हर फ्रेम में महिला की वह उलझी आकृति अकेली है! कहीं-कहीं उस उलझी आकृति में गोलाकार लय भी है और साथ में शहरी जीवन के कुछ भौतिक बिंब भी हैं। क्या अडिग की ये महिलाएं ब्यूरोक्रेट, दंभी, अति-अति आधुनिक, वाचाल, अभिमानी रूप हैं! दरअसल, महिलाओं के दो ही रूप कलाओं में अधिकतर सर्टिफाइड रहे हैं। एक तो आंख में पानी वाली मां और दूसरा अल्ट्रा मॉडर्न आज़ादी में मिनी स्कर्ट को पैराशूट बनाकर उड़ने वाली औरत…लेकिन ये दोनों ही रूप औरत के शोकेस पीस हैं।
उसका एकदम निजी रूप भी है, जो उसका खुद का, अपने लिए मैं वाला रूप है। जिसमें औरत खुद अपना खोया-पाया वाला हिसाब रखती है। अडिग की मोहतरमा दरअसल वही हैं। औरत का स्वयं वाला निजी स्वरूप।अडिग के दो चित्र नीचे दिये हैं:
आज अदा ने भारतीय समाज की कुछ प्रसिद्ध महिलाओं के बारे में बताया है। कल उन्होंने हिन्दी की स्थिति के बारे में चिंतन किया था।
कल इन्दौर की कविता वर्मा की चिट्ठियां पढ़ीं। इन चिट्ठियों में उनके बचपन से लेकर पत्रों की खजाने की तरह रक्षा करने से होते हुये अपने ’उनका’ पत्र आने के प्यारे किस्से हैं। उनके पत्र का जिक्र करते हुये उन्होंने लिखा
इस पत्र की एक लाइन ने तो दिल को छू ही लिया,न-न ऐसा-वैसा कुछ मत सोचिये,वो लाइन थी "तुम पत्र का जवाब देने से पहले अपने मम्मी- पापा से पूछ लो उन्हें कोई एतराज़ तो नहीं है."
इसके बाद जब उनकी मम्मी ने जब कहा --पत्र का जवाब दे दो इसमे तो कोई हर्ज़ नहीं है! तो मुझे मनोहर श्याम जोशी के उपन्यास ’कसप’ की बेबी को आये पत्र की याद आयी।
पत्र की बात चली तो मक्खन का भी खत देख लीजिये जो उसने बिल गेट्स को लिखा उसकी पहली शिकायत है---कंप्यूटर पर 'Start' का बटन तो है 'Stop' का नहीं हैं...कृपया इस ओर ध्यान दीजिए..!
दिल्ली के यशवंत सिन्हा ने एक ब्लॉग की तारीफ़ की है लेकिन नाम नहीं बताया है। अन्दाजा लगायें कहीं वे आपकी ही तो तारीफ़ नहीं कर रहे।
और चलते-चलते एक पोस्टर और एक कार्टून देखिये!
अपराध का नारीवाद | कार्टून कमंडल |
और अंत में:
इन दिनों टिप्पणियों में मजेदार रुझान देखने में आया है। सभा समिति में जैसे एक व्यक्ति कोई प्रस्ताव रखता है दूसरा व्यक्ति उसका समर्थन करता है वही रुख टिप्पणियों में भी नजर आ रहा है। लोग समूह में टिप्पणियां करना शुरू कर रहे हैं।
कुछ और टिप्पणियां तथा और प्रतिक्रियायें देखकर ब्लॉगिंग के बारे में लिखी ये बातें याद आईं:
जब कोई ब्लागर अपना ब्लाग बन्द करने की धमकी देता है तब यह समझ लेना चाहिये कि वह नियमित लेखन के लिये कमर कर चुका है।
किसी पोस्ट पर आत्मविश्वासपूर्वक सटीक टिप्पणी करने का एकमात्र उपाय है कि आप टिप्पणी करने के तुरंत बाद उस पोस्ट को पढ़ना शुरु कर दें। पहले पढ़कर टिप्पणी करने में पढ़ने के साथ आपका आत्मविश्वास कम होता जायेगा।
आपके विरोध में नियमित लिखने वाला ब्लागर आपके लिये बिना पैसे का प्रचारक है।
कल शास्त्री जी की एक टिप्पणी के संदर्भ में चिट्ठाचर्चा की पहली पोस्ट से यह अंश यहां दिया जा रहा है:
इसी परिप्रेक्ष्य में शुरु किया जा रहा है यह चिट्ठा.दुनिया की हर भाषा के किसी भी चिट्ठाकार के लिये इस चिट्ठे के दरवाजे खुले हैं.यहां चिट्ठों की चर्चा हिंदी में देवनागरी लिपि में होगी. भारत की हर भाषा के उल्लेखनीय चिट्ठे की चर्चा का प्रयास किया जायेगा
फ़िलहाल इतना ही। आपका दिन शुभ हो। हफ़्ता शानदार शुरू हो। स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें।
शास्त्री जी की टिप्पणी मील का पत्थर है।
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएं"चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।"
जवाब देंहटाएंमैं हमेशा ही इस आदेश का पालन करता हूँ जी!
फ़िलहाल इतना ही। आपका दिन शुभ हो।
हफ़्ता शानदार शुरू हो।
स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें।
Jai Ho!!!!!
जवाब देंहटाएंJai Jai Ho!!!!!
Mukesh Kumar Tiwari
बढियां . .
जवाब देंहटाएं@शास्त्रीजी,आपके लिये हमारा कोई आदेश नहीं है। बात आपकी कल की पोस्ट पर आपकी प्रतिक्रिया के बारे में कर रहा था मैं। कल आपने लिखा था--चिट्ठा चर्चा यदि हिन्दी चिट्ठामंडल का मंच है तो इसमें अंग्रेजी भाषा के ब्लॉगों के उदाहरण प्रस्तुत कर आप निश्चितरूप से चिट्ठा-चर्चा के गौरव और गरिमा में वृद्धि कर रहे है?
जवाब देंहटाएंइसमें रविरतलामी द्वारा अंग्रेजी ब्लॉग्स का जिक्र करने पर सवाल था आपका! इस सवाल के जबाब में ही मैंने लिखा बताया कि चिट्ठाचर्चा की पहली पोस्ट में ही इस बात का जिक्र था- इसी परिप्रेक्ष्य में शुरु किया जा रहा है यह चिट्ठा.दुनिया की हर भाषा के किसी भी चिट्ठाकार के लिये इस चिट्ठे के दरवाजे खुले हैं.यहां चिट्ठों की चर्चा हिंदी में देवनागरी लिपि में होगी. भारत की हर भाषा के उल्लेखनीय चिट्ठे की चर्चा का प्रयास किया जायेगा
@द्विवेदीजी अगर आपने कल की शास्त्री जी की टिप्पणी का जिक्र किया हो तो आपके लिये भी यही सूचना है। आज की पोस्ट में शास्त्री जी की कोई टिप्पणी नहीं है। उनकी कौन सी टिप्पणी मील का पत्थर है यह साफ़ नहीं है।
सुन्दर चर्चा ! आभार !
जवाब देंहटाएंवाह ,,, चर्चा - कस्तूरी महमही ! ... वाणी फूटी वास !!...
जवाब देंहटाएंconfusion at its best you should have cleared !!!! which shastri ji u r talking about . looks like you hv forgotton j c phillip shastri and do you really believe people read all the comments
जवाब देंहटाएंरचनाजी, अगर किसी को सही में देखना है तो वह कल की चर्चा का लिंक देखेगा और समझ सकेगा कि किन शास्त्री जी की टिप्पणी के बारे में बात हो रही है। अगर भ्रमित ही होना है तो कोई यह भी सवाल कर सकता है कि कहीं यह स्व.लाल बहादुर शास्त्री के बारे में ही तो नहीं कह रहे।
जवाब देंहटाएंमैं डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी के बारे में कह रहा था जिनकी टिप्पणी यहां है और कल भी थी जिसके संदर्भ में मैंने यहां लिखा।
चर्चा हमेशा की तरह जानदार है. निधि के चित्र अच्छे ही होंगे, ये अलग बात है कि मुझे इस तरह के कला-चित्र बहुत समझ में नहीं आते.
जवाब देंहटाएं"Stree ki nigaah me purush" ???? gambheer vishy hai.....vistaar me is vishay par chitrakala se aage bhi bahut kuchh jaanne/padhne ki abhilasha hai...
जवाब देंहटाएंSughad charcha ke liye aabhaar...
सुन्दर चर्चा!!
जवाब देंहटाएंसारे चित्र मूर्खतापूर्ण , कलाहीन व कला के नाम पर कलंक हैं। आडी तिरछी रेखाओं व भौंडी आक्रितियों को कला कहना कला व कला की देवी सरस्वती का अपमान है। जिन्हें चित्रकारी नहींआती वे ही एसी ऊल जुलूल चित्र कारी करते है और वैसे ही समीक्षक समीक्षा।
जवाब देंहटाएंचित्रों को भी आपने स्थान दिया. बहुत अच्छा लगा. आभार.
जवाब देंहटाएंये सारे चित्र हमारी समझ के परे हैं...
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा!!
आभार !
'किसी पोस्ट पर आत्मविश्वासपूर्वक सटीक टिप्पणी करने का एकमात्र उपाय है कि आप टिप्पणी करने के तुरंत बाद उस पोस्ट को पढ़ना शुरु कर दें। पहले पढ़कर टिप्पणी करने में पढ़ने के साथ आपका आत्मविश्वास कम होता जायेगा।'
जवाब देंहटाएंआपके विरोध में नियमित लिखने वाला ब्लागर आपके लिये बिना पैसे का प्रचारक है।
-- kya baat kahi hai!!!!!!!
[nice]
ये सारे चित्र अति सुन्दर और ज़िंदगी के ऊँचे आयाम दर्शाने वाले हैं। इनकी व्याख्या आसान नहीं है। आपका बहुत बहुत आभार इन अनमोल चित्रों के साथ एक उम्दा चिट्ठा चर्चा के लिए, आदरणीय अनूप जी।
जवाब देंहटाएंआप कहते तो हैं कि यहां चिट्ठों की चर्चा हिंदी में देवनागरी लिपि में होगी. भारत की हर भाषा के उल्लेखनीय चिट्ठे की चर्चा का प्रयास किया जायेगा। तो क्या मुझ मूरख को यह ज्ञान प्राप्त होगा कि अब तक 1050 पोस्टों में कितनी पोस्टों पर हिंदी-अंगरेजी के अलावा अन्य भारतीय भाषायों वाले ब्लोगो की चर्चा का प्रयास किया गया है? लिन्क दे सकें उन पोस्टों का तो आभार
जवाब देंहटाएंउल्लेखनीय चिट्ठा होने के लिये क्या कोई खास क्राईटेरिया है?