काव्य मंजूषा पर अदा जी का लेख पढा और टिप्पणियाँ पढने के बाद लगा कि यही आज की चिट्ठाचर्चा के लिए सर्वाधिक उपयुक्त पोस्ट है।समीर जी की तरह मै कोई ठिठोली नही कर रही हूँ।यूँ साड़ी के लुप्त हो जाने की कोई सम्भावना मुझे दूर दूर तक नही दिख रही फिर भी मै अदा जी की और बाकी टिप्पणी कारों की इस चिंता मे शामिल हूँ कि साड़ी (माने साड़ी वाली महिला) ही भारतीयता की पहचान है , गरिमा है । खुद मेरे पास साड़ियों का भण्डार है , तिस पर भी और लेने की तृषणा नही जाती , यही हाल मेरे आस पास सभी महिलाओं का है।इसलिए सोचने की बत यह है कि साड़ियों का बहिष्कार - जिसे लेकर ब्लॉग जगत को चिंता है वह कहाँ , कब कैसे हो रहा है ? स्कूल में जब फेयरवेल मनाया जाता है या टीचर्स डे होता है तो लड़कियाँ भाग भाग कर साड़ी पहनती हैं।कोई शादी या कोई समारोह हो पहली पसन्द महिलाओं के लिए साड़ी ही होती है।छोटी बच्चियाँ माँ की चुन्ने से जब तब साड़ी पहन कर खेलती हैं।
साड़ी भारतीय महिला की फॉर्मल ड्रेस है और रहेगी । फॉर्मल ड्रेस और कम्फरटेबल ड्रेस मे अंतर करना गरिमा पर आघात का सवाल नही है। काम के वक़्त कोई क्या पहनना चाहता है उसकी पसन्द है और उसके काम की शैली पर भी निर्भर करता है। यह क्यों ज़रूरी है कि स्त्री के बाल , चाल, ढाल , पहनावा ....जब सब कुछ संस्कृति और अस्मिता और पह्चान से ही नही चिंतन से भी जबरन जोड़ दिया जाए ?इसलिए इन तर्कों की ज़रूरत नही कि साड़ी सिर्फ फाइट करते हुए तो आड़े आती है वर्ना तो कम्फर्ट उसमे भी है या यह कि स्कर्ट वाली महिला से साड़ी वाले महिला अधिक खूबसूरत दिख रही है।
मिथिलेश जी को पढकर वाकई लगा कि स्त्री भारत मे देवी या डायन दो ही रूपों मे जानी जाती रही है और जानी जाएगी।उसे नॉर्मलता पाने में, या कहूँ कि ऐसी स्थिति, जब उसका स्त्री होना हर वक़्त हाइलाइट न होता रहे और उसका चाल ढाल , पहनावा संस्कृति और अस्मिता के सवाल के आड़े न आए, पाने मे अभी कई सदियाँ लगेंगी।
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ऐसी चर्चा पहली बार देख रहा हूँ, जिसमें चर्चाकार का नाम ही नहीं है। शायद इसीलिए मुझे लग रहा है कि यह चर्चा दूसरी वाली पोस्ट के लिए ही लिखी गयी है, वर्ना यह ऐसा विषय है, जिसपर ब्लॉग जगत में बहुत कुछ लिखा जा रहा है।
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बारिश की वो सोंधी खुश्बू क्या कहती है?
क्या सुरक्षा के लिए इज्जत को तार तार करना जरूरी है?
"साड़ी भारतीय महिला की फॉर्मल ड्रेस है और रहेगी ।"
जवाब देंहटाएंहां जी, मैक्सी तो इन्फ़ार्मल ड्रेस जो बन गया है :)
nice
जवाब देंहटाएं@ नोट पैड
जवाब देंहटाएंकारण जो भी रहे हों इंसानों नें तन ढ़कने की शुरुआत खाल और छाल से की थी ! ज्ञान और तकनीक के परिष्कार /बदलाव के साथ साथ सब कुछ जस का तस कहां रह पाता है ?
जीवन शैली / अभिरूचियां / समाज , सभी कुछ तो बदलना तय है फिर वस्त्र विन्यास की खास शैली अपरिवर्तित और स्थायी बनी रहे ऐसा संभव तो नहीं लगता ! हां ये जरुर है की सोशल कंडिशनिंग किसी अभिरुचि / किसी विन्यास की उम्र थोड़ी लम्बी जरुर कर सकती है !
फिलहाल मैं ये समझ पाने में असमर्थ हूँ की साड़ी पहनने या ना पहनने को लेकर इतना बवाल क्यों है ! क्या अपने वस्त्र विन्यास तय करने की स्वतंत्रता भी इंसानों को नहीं होनी चाहिए ?
आप जो भी है चूकि आपका नाम तो यहाँ है नहीं , लेकिन आपने जो किया वह कायरता से परिपूर्ण है । अरे कुछ करना है तो जरा साहस दिखाओ , ऐसे गीदडो जैसी चाल से कुछ नहीं हो पायेगा । और आपसे निवेदन है कि मेरे ब्लोग पर पुनः जायें और ये बातये कि मैने कहाँ कहा है कि नारी बस देवी और डायन के रुप मे ही होती है । और हाँ रही बात अदा जी की पोस्ट की तो उन्होने सही लिखा है , बाकी आपकी इक्षा साडी पहने,सकर्ट पहने या कुछ भी नहीं , उसके बाद होता क्या है ये भी आप ही समझीए गा ।
जवाब देंहटाएं@मिथिलेश दुबे, यह चर्चा सुजाताजी ने की है। नोटपैड के नाम से उनका ब्लाग है, इसके अलावा वे चोखेरबाली ब्लॉग भी चलाती हैं।
जवाब देंहटाएं(मैं आज साड़ी कि हिमायत करने जा रही हूँ परन्तु एक बात स्पष्ट कर देना चाहती हूँ कि मैं यहाँ यह हरगिज नहीं कह रही कि सबको प्रतिदिन साड़ी पहननी चाहिए ...इतनी तो पहननी ही चाहिए कि उसका अस्तित्व बना रहे.... कम ही पहने लेकिन पहने...आप अपनी मर्ज़ी से पहनें ...और ख़ुद के विवेक से ही काम लें ...और इतना ज़रूर सोचें....कि क्या साड़ी का लुप्त हो जाना सही होगा ?? )
जवाब देंहटाएंमेरे आलेख की शुरुआत में शायद आपने यह पढने की ज़हमत नहीं की....या फिर पढना ही नहीं चाहा....जो भी हैं आप ..इसे पढ़ ज़रूर लीजियेगा....और उससे भी ज्यादा ज़रुरत है समझने की.....कोशिश कीजियेगा....समझ में आ जायेगी बात....
@mithilesh
जवाब देंहटाएंplease read your post again and see the same view expressed by three female there .
@ADA ji
क्या साड़ी का लुप्त हो जाना सही होगा ?? )
is this is the same senetence which you write ? i think thats create a confusion.thats why sujata write
साड़ी के लुप्त हो जाने की कोई सम्भावना मुझे दूर दूर तक नही दिख रही .
i dont know why you are reacting in this way. sujata actually pointing some other point.
मेरे जीवनकाल में मेरा नाम लुप्त हो जाए, कोई दुख नहीं। सारे तमगे, प्रमाणपत्र अपने न होकर किसी अजनबी के चुराए हुए लगें, कोई दुख नहीं, किन्तु हमारी संस्कृति की रक्षक साड़ी लुप्त न हो, इस प्रयास में मुझे सतत लगे रहना चाहिए। लगी हुई हूँ, लगी रहूँगी। किन्तु अगली पीढ़ी पर यह कर, वह कर, संस्कृति की रक्षा कर(वह भी केवल स्त्री के कंधे पर रखकर बन्दूक चलाते हुए और निशाना भी उसे ही बनाते हुए) आदि का बोझ नहीं डालूँगी। कोई लुप्त होते ethics की बात करे(मानव में,स्त्रियों में ही नहीं) तो मुझे अवश्य बताइए। मैं अगली पीढ़ी के लिए ethics से बेहतर कोई भेंट नहीं समझती।
जवाब देंहटाएंहिन्दी में ethics के लिए जो शब्द मिले वे हैं..
आचारनीति, नीति विद्या, नीति शास्त्र
घुघूती बासूती
मुझे तो वह भ्रम हो गया है की नारी बीच साड़ी है कि साड़ी बीच नारी है ......एक ओर साड़ी एक ओर नारी ......मारी गयी मति विचारी .
जवाब देंहटाएं"साड़ी हमारी पहचान है...गाय हमारी माता है..." kya isme kisee ko koi shanka hai kya?
जवाब देंहटाएंTarannum ji,
जवाब देंहटाएंI must confess and call a spade a spade...
My reaction towards this particular post was totally based on the first comment by mr. zakir 'rajnish' , I am totally an aware of 'notepad' ..so my immediate reaction was this is another be-naami gimmick ..as it is all around...
secondly, my impression towards the team of chittha charcha is bit hazy...now this is not a very healthy relation, then again I am a new kid in the block...just 5 months old ...Chittha Charcha team never took a time or bothered to look at the new comers...like us...I personally never got a word, forget about the encouragement part....from this place ever...
The only thing I ever get is sarcastic one laaina..
So honestly..I reacted...
Still fact of the matter about 'saari' in my view remains the same....the very existence of 'saari' in future is doubtful and that 'saari' is loosing her ground very fast...
so lets 'agree to disagree'
and I extend my sincere apology towards Sujata ji about my total ignorance about her blog name 'Notepad'....
sincerely...
Ada..
I am totally an aware of 'notepad'
जवाब देंहटाएंplease read 'unaware'
नोटपैड और चोखेरबाली के लिंक नीचे दिये हैं:
जवाब देंहटाएंhttp://bakalamkhud.blogspot.com/
http://blog.chokherbali.in/
क्या है ये सब, कुछ बेहतर कहिये मित्रो.
जवाब देंहटाएंलो जी!
जवाब देंहटाएंअब तो बेहतर ही कहना पड़ेगा!
ऐसा प्रतीत होता है कि ज्ञानदत्त जी ने ठीक ही कहा था?
दुनिया में सबको अपने पसंद के कपडे पहनने की सामर्थ्य और स्वतंत्रता हो !
जवाब देंहटाएंआमीन !
मुझे दोनो बातों में कोई सांजस्य नज़र नही आता .......
जवाब देंहटाएंहन गाय हमारी माता है इस बात को कहने में कोई गुरेज़ नही है ..........
जवाब देंहटाएंअदा जी से असहमत.. विहँगम भारतीय परिदृश्य से साड़ी के लुप्त होने की सोच एक ध्यानाकर्षण फ़ँतासी से अधिक कुछ भी नहीं.. और वह इसमें सफल रहीं हैं ।
मिथिलेश से सहमत.. हमारे पुरोधाओं की कृपा से नारी इन्हीं दो पराकाष्ठाओं के बीच डोलती आयी है । मजे की बात यह कि स्वयँ नारी भी इस प्रचारतँत्र में एक अहम भूमिका निभाती चली आयी है ।
सुजाता सुलझी हुई चर्चाकार हैं, पर आज विषय को कुछ असँम्पृक्त मूड में प्रस्तुत कर पायी हैं, और यही चिल्ल-पों का कारण बन गया ।
गाय हमारी माता है, तो साँढ़ अपुन का बाप ठहरा.. लिहाज़न हम चिट्ठाकार साँढ़ के छौने सरीखे बात बेबात सींग भीड़ा लेते हैं, तो क्या बेजा बात ? परम्परा का निर्वाह तो करना ही है, वरना वह लुप्त हो जायेगी !
जवाब देंहटाएंयार.. यह एप्रूवल का लटका यहाँ भी ?
सँसद में चल रही गाली-गलौज़ से एक चटखारेदार पोस्ट बना लेने वाली चिट्ठाकारिता में यह कैसा लोकतँत्र है ?
यहाँ हाथीदाँत से एक ज़ुमला टँगा हुआ है, " आपकी प्रतिक्रियाये हमारे लिए महत्वपूर्ण है! "
इसके उलट सच तो यह है कि आपका एप्रूवल हम ग़रीबों के लिये महत्वपूर्ण है !
बेनामी का विकल्प हटाना तो समझ में आता है, पर पँजीकृत लोगों की उन्मुक्त अभिव्यक्ति पर यह डँडा ?
अशोभनीय क्या है.. क्या नहीं, यह पाठकों के विवेक पर छोड़ दीजिये ।
सॉयोनारा !
"अदा " और "नोटपैड " दोनों ही छद्म नाम हैं इस लिये इस विषय मे क्या आपत्ति और क्यूँ क्युकी ये दोनों का अधिकार हैं ।
जवाब देंहटाएंरही बात साडी के विलुप्त होने कि वो असंभव हैं और रही बात चर्चा मंच पर केवल दो चिट्ठो कि चर्चा करने कि तो चिटठा चर्चा पर अगर केवल एक ही ब्लॉग पोस्ट लेकर "चर्चा" हो और व्यक्तिगत कमेन्ट से उठ कर हो तो क्या ही अच्छा हो । एक विषय पर वाद विवाद हो एक प्रतियोगिता कि तरह अपने अपने पक्ष और अपनी अपनी दलीले । केवल लिंक जुटा देने से क्या होता हैं चर्चा नहीं होती
नि:संदेह साड़ी में महिलएं बहुत सुंदर दिखती हैं.
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