कल विनीतकुमार ने
दागदार हुआ स्टार न्यूज, वहशी बॉस हुए बेनकाब पोस्ट में स्टार न्यूज की अन्दरकी कहानी बयान की। एक प्रतिष्ठित माने जाने वाले न्यूज चैनल में एक महिला कर्मी के शोषण की कहानी बताते हुये अपनी बात कहते विनीत ने लिखा:
ये एक ऐसे चैनल की कहानी है जो 'आपको रखे आगे'के दावे के साथ हमारे बीच पैर पसार रहा है। जाहिर है इस 'आप' में स्त्रियां भी शामिल है। अब गंभीर सवाल है कि जिस आगे रखने के काम में लोग लगे हैं,वहां काम करनेवाली स्त्रियां की धकेली जा रही हों,इतनी गुलाम है कि वो अपने साथ हुई ज्यादती की बात तक नहीं कर सकती, अगर करती है तो उसे धमकियां झेलनी पड़ती है,नौकरी से हाथ धोने पड़ते हैं। दुनियाभर के लोगों की कहानी सुनाने और बतानेवाले लोगों मेँ ठीठपना इस हद तक है कि वो इसें या तो नजरअंदाज कर जाते हैं या फिर पूरे मसले को दफनाने की कोशिश करते हैं,ऐसे में आप कैसे और किस तरह से आगे होने के दावे कर सकते हैं? आपको लगता है कि ये लाइनें बिजनेस और विज्ञापन की पंचलाइन से कुछ आगे जाकर असर करेगी?
उधर अविनाश अपने मोहल्ले में
वर्धा यज्ञ करवा रहे हैं। वे वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय को लगातार माइक्रोस्कोप से देखे जा रहे हैं। इस सिलसिले वे वहां आते-जाते पर भी निगाह रखे हैं। इसी महीन कैमरे की जद में आये हैं राजकिशोरजी। बस फ़िर क्या! अविनाश ने उनकी जाति, पद लालसा और धमकियाना अन्दाज जैसी बातों को बल-भर देख डाला। अविनाश को दी गयी शायद बुजुर्गाना सलाह-
अविनाश जी, आपकी प्रतिभा और श्रम शक्ति का मैं कायल हूं। आपसे मुझे प्रेम और सद्भाव है। मैं चाहता हूं कि आप इसका बेहतर उपयोग करें। इससे आपका और दुनिया का भला होगा। अभी आप जो कुछ कर रहे हैं, उससे तो आप न घर के रहेंगे न घाट के।
में से आखिरी बात को धमकी की तौर पर छांट कर अविनाश ने अपने मोहल्ला लाइव में पेश कर दिया।
देखिये!
उधर अफ़लातूनजी मुख्यमंत्री बिहार के ब्लॉग में दम किये पड़े हैं। मुख्यमंत्रीजी अपनी पहली पोस्ट अंग्रेजी में लिखे इसलिये अफ़लातूनजी उनसे
नाराज हैं! इसके पहले एक गड़बड़ी नितीशजी ये कर दिहिन कि वो अफ़लातूनजी की टिप्पणी को रोक लिहिन। बस अफ़लातून जी ने एक ठो पोस्ट धांस दी-
सेन्सरशिप में यकीन रखने वालों का माध्यम ब्लॉग नहीं है,नीतीश कुमार! अरे अफ़लू भैया तनिक गम खाओ! मुख्यमंत्रीजी अभी लिखना शुरू किये हैं। पहले स्वागत सत्कार करो एहिके बाद हल्ला-गुल्ला करा जाये।
मुख्यमंत्री जी ने आपकी टिप्पणी रोक ली तो भैया आप हमसे एक ठो पहेली में सवाल पूछ लिहौ-बूझौ तो जाने कि कौन सी टिप्पणी आप किये हुइहौ। गजब है भैया।
अरे भाई नितीश कुमार को अगर कोई बात नहीं जमी तो नहीं छापे होंगे उसे अपने ब्लॉग पर छाप देव और एक ठो पोस्ट निकाल लेव। अब ये क्या कि बेचारे नवोदित ब्लॉगर को हड़का रहे हो कि अंग्रेजी में काहे लिखते हैं! लिख रहे हैं ई का कम है। दूसरी पोस्ट से हिन्दी में आ भी तो गये। उसके लिये बधाई दिये क्या?
अफ़लातूनजी ने अपनी टिप्पणी को बूझने के लिये जो तीन विकल्प दिये हैं वे ये हैं:
१.हिन्दी के प्रयोग से देशवासी आपको अपने अधिक निकट व आत्मीय पाएँगे 20%
२.नरेन्द्र मोदीजी के प्रति आपका सार्वजनिक व्यवहार जरूर आहत करने वाला है. 20%
३.पहली पोस्ट अंग्रेजी में लिखना शर्मनाक था। हिन्दी लिखने में न शर्माइए । 60%
अफ़लातून जी कौन सी टिप्पणी
नितीशकुमारजी ने दबा ली यह तो अब अफ़लातूनजी ही कन्फ़र्म करेंगे। वैसे 60% लोगों ने यह मत दिया है कि
पहली पोस्ट अंग्रेजी में लिखना शर्मनाक था। हिन्दी लिखने में न शर्माइए । ही वह टिप्पणी होगी जो नितीशकुमार जी के ब्लॉग पर प्रकाशित नहीं हुई। वैसे भी नरेन्द्र मोदी जी के जिक्र वाली टिप्पणी का उस पहली पोस्ट से कोई संबंध नहीं है। अगर यह शर्मनाक वाली टिप्पणी ही है अफ़लातूनजी की तो मेरी समझ में यह जबरियन उनको अर्दभ में लेने की कोशिश है और फ़िर यह साबित करना कि नितीश कुमार अपनी आलोचना बर्दास्त नहीं कर पाते।
हिन्दी के प्रयोग से देशवासी आपको अपने अधिक निकट व आत्मीय पाएँगे! जैसी टिप्पणियां बहुत लोगों ने की हैं और वे प्रकाशित भी हुई हैं। अगर यह प्रकाशित नही हुई तो किसी अनजान चूक की वजह से हुई होगी।
अब फ़िर बात इस पर कि अगर अफ़लातूनजी ने यह लिखा -
पहली पोस्ट अंग्रेजी में लिखना शर्मनाक था। हिन्दी लिखने में न शर्माइए ।और उसे नितीश कुमारजी के ब्लॉग पर प्रकाशित नहीं किया गया तो मेरी समझ में ऐसा होना संभव है। नितीशकुमार जी का ब्लॉग उनका जो भी व्यक्ति संभालता होगा वह इस तरह की टिप्पणी जिसमें नितीश कुमार के लिये
शर्मनाक लिखा हो प्रकाशित करने की हिम्मत नहीं करेगा। इसे नितीशकुमार जी ही कर सकते होंगे। और मुख्यमंत्री से यह उम्मीद रखना कि वे अपनी दुनियादारी और राजनीति छोड़कर आपकी टिप्पणी प्रकाशित करें देख-देखकर उनके साथ अन्याय होगा।
मेरी समझ में अगर अफ़लातूनजी ने यह टिप्पणी की तो जबरियन भाव मारने के लिये की। बेहतर शब्द चयन किया जा सकता था।
एक मुख्यमंत्री तो अगर जनता से संवाद के लिये अंग्रेजी में बात शुरू करता और अगली पोस्ट में ही हिन्दी में आ जाता है तो उसकी तारीफ़ की जानी चाहिये न कि यह बवाल खड़ा किया जाना कि उन्होंने आपकी टिप्पणी इसलिये रोक ली क्योंकि आपने उनके अंग्रेजी में लिखने को शर्मनाक बताया था।
अफ़लातूनजी देखें कि जब उन्होंने ब्लॉग लिखना शुरू किया तो शुरुआती पोस्टें कौन भाषा में लिखते थे। हिन्दी में लिखना शुरू करने के पहले वे भी तो अंग्रेजी में ही लिखते थे। इत्ता काहे गरमाते हैं मुख्यमंत्रीजी पर भाई! नये ब्लॉगर हैं वो! सीखते-सीखते सीखेंगे।
इसी समय मुझे परसाईजी के लेख का शीर्षक याद आ रहा है जो उन्होंने समाजवादियों के विरोध करने के अन्दाज के बारे में लिखा था-
वॉक आउट, स्लीप आउट, ईट आउट!शोभना चौधरी ने एक
अधूरी कविता लिखी:
कभी खुद से मुलाकात करनी हो तो तन्हाई में डूब कर देखो
कभी खुद को सुकून देना हो तो खुद की परछाई से लड़कर देखो
कभी खुद को ऊंचाई पर पाना हो तो सपनों को बुनना सीखो
कभी खुशियों को दामन में समेटना हो तो दुखों से लड़ना सीखो
यहां टिपियाने पहुंचे गिरिजेश राव ने लिखा:
कमाल है मैं भी 4 पंक्तियों पर अटकने के बाद उन्हें पोस्ट कर यहाँ आया हूँ !
अब गिरिजेश राव की भी
अधूरी पंक्तियां देखी जायें:कौन कहता है
आसमाँ में नहीं होते सुराख
ग़ौर से देखिए हमने भी कुछ बनाए हैं ।
नज़र भटकती नहीं किनारों की महफिल पर
ज़ुनूँ का शौक तो मझधार की बलाए हैं।
अपनी कविता के बारे में खुलासा भी कर दिया गिरिजेश ने:
स्पष्ट है कि पहली पंक्ति दुष्यंत से प्रेरित है। पहली दो पंक्तियों का संशोधन अमरेन्द्र जी ने किया है। अंतिम दो पंक्तियों को आचार्य जी ने पास कर दिया :) ;)
जाने क्यों न तो इनके पहले कुछ रचा जा रहा और न बाद में। जैसा है प्रस्तुत है।
अब ई अमरेन्द्र कविताई ही सुधारते रहेंगे तो इम्तहान की तैयारी को करी भैया?
नये ब्लॉगर
- राजे शा का ब्लॉग चित्रगान है। अपने बारे में लिखते हुये बताते हैं-
एक आम आदमी के पास होता क्या है उसके बारे में बताने के लिए। वो रोज 8 से 10 घंटे किसी नौकरीधंधे में बिताता है। उसकी इच्छाएं बचपन की तरह ही साथ्ा छोड़ चुकी होती हैं।
आगे की बात उनके ब्लॉग पर ही देखिये। उनका खुद का फोटो भी है भाई!
- अभिषेकगर्ग अपनी पोस्ट में लिखते हैं-
में तो बस इतनी रेकुएस्ट कर रहा हूँ की कृपया अपने माँ- बाप को भरपूर सम्मान दे क्योंकि उन्ही के आशिर्बाद और मेहनत से आप इस मुकाम पर पहुंचे हैं.
- रवीन्द्र गोयल परी कथा में बताते हैं:
विनम्रता और मधु स्वभाव से
जिसने दिलों को जीता है
प्यार से सभी घर वाले
कहते उसे स्मिता हैं।
- तंत्र मंत्र के ब्लॉग वैसे तो हम नहीं बांचते लेकिन जब इस वाले तंत्र-मंत्र वाले ब्लॉग में ये देखा तो लगा ये बहुतों के काम आ सकता है:
आज एक महिला से मैरे मोबाइल पर बात हुई वह बहुत दुखी थी, कारण आज कल उसके पतिदेव उन पर एंव बच्चों पर कम ध्यान देते है और नेट पर ज्यादा से ज्यादा समय दे रहे है ।
- मार्च से लिखना शुरू करने वाले अरविन्द माधुरी गुप्ता से बहुत खफ़ा हैं और कहते हैं:
दरअसल यह देश से तो गद्दारी है ही, उससे भी ज्यादा खुद से गद्दारी है। देश तो आपको देर-सवेर भूल जायेगा, या माफ़ कर देगा लेकिन खुद से कहा तक भाग पाएंगी?
- अपनी दसवीं पोस्ट में प्रियंका अपने मन के भाव व्यक्त करती हैं:
में आज गलत सही के फेर में नहीं पड़ना छह रही.... सिर्फ अच्छा बुरा मुझे खटक रहा है। खटकने के लिए कारन तो नहीं है॥ क्यूंकि में भी बंकि लोगो की तरह ही हु... मुझे भी बाकियों की तरह इस पर चर्चा कर इससे छोड़ देना चाहिए .... पर में ऐसा नहीं कर प् रही॥
- कैलाश वर्मा की तीन सालों में चौथी पोस्ट है यह
:वो खिल खिला रहा हैं
बातें किसी तो वो कर रहा हैं
वो देखो उस छाव में
किसी से वो कुछ जिकर कर रहा हैं
- दिल्ली में रहने वाले केदारनाथ’कादर’ की पोस्ट में देखिये दर्द के कित्ते नमूने हैं:
दर्द क्या सिर्फ सहने के लिए होता है
या दर्द होता है इसलिए हम सहते हैं
दर्द को कोई दर्दवान ही समझता है
दर्द अपनी अपनी सोच पर निर्भर है
- शेरो-शायरी में देखिये जलवे शेर और शायरी के बजरिये देव!
तेरा ही ज़ोर रहे मेरे दस्तो बाज़ू में,
तेरी ही क़ुव्वते परवाज़ बालों पर में रहे।
मुझे दिखा दे तू शाहराए इश्क़ ऐ दोस्त,
कि सुबहो शाम मेरा हर कदम सफ़र में रहे।
- जान्ह्ववी भट्टाचार्य बताती हैं जिन्दगी की गणित के बारे में
कुछ गुज़रे हुए "पल" ऐसे होते हैं
जो जीए जाते हैं हर "पल"
जिनकी महक "याद" बनकर
ता-उम्र महकाती है
हर "सांस" में
जीया हुआ हर "पल"
फिर क्या ज़िन्दगी में
"आज" और "कल"......
- आर.रेनुकुमार अपने को समय के हाथ में अदना सा खिलौना बताते हैं। गीत अभी जिन्दा हैं उनके ब्लॉग का नाम है। रवीन्द्र नाथ जी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुये वे पेश करते हैं:
कंटकों के पथ मिले , चलता रहा
भीड़ का एकांत भी छलता रहा
मैं दिया-सा रात भर जलता रहा
टिमटिमाता था अंधेरे में अटल विश्वास
एक पल तो बैठने दो आज अपने पास।
- हिमांशु पन्त की सुनिये:
लो जी चिट्ठाजगत का एक और चिट्ठा.. भीड़ मे एक और अटपटा सा नाम घूमता चश्मा. हाँ जी बिलकुल अपने चश्मे के भीतर से जो दुनिया देखता चलूँगा या देखा है हाल फिलहाल तक उसका कच्चा चिट्ठा और मन के उदगार निकालने की एक नयी कोशिश करने को इस चिट्ठे को अवतरित कर दिया है. सच बोलूँ तो नक़ल ही की है बाकी चिट्ठों की. लेख लिखता रहता हूँ पर पुराने ब्लॉग मे कविता भी ग़जल भी और लेख भी सब कुछ लिख डाल रहा था तो खुद भी खिचड़ी लगने लग गयी थी. अपने 'अपूर्ण' दोस्त को देखा की एक नया ब्लॉग बना दिया कुछ इधर उधर की लिखने को तो बस मुझे भी हो गयी खुजली और बना डाला ये चिट्ठा
.
- यसोदा कुमावत का कहना है शबनमी शायरी की पहली पोस्ट में:
एक मुलाक़ात करो हमें दोस्त समझकर |
हम निभाएंगे दोस्ती अपना समझकर ||
मेरी दोस्ती पर एतबार मत करना |
हम दोस्ती भी करते हे प्यार समझकर ||
- रतन चंद 'रत्नेश'जी का ब्लॉग अभी बन रहा है।
मेरी पसंद
गीत !
हम गाते नहीं
तो कौन गाता?
ये पटरियां
ये धुआँ
उस पर अंधरे रास्ते
तुम चले आओ यहाँ
हम हैं तुम्हारे वास्ते।
गीत !
हम आते नहीं तो
कौन आता?
छीनकर सब ले चले
हमको
हमारे शहर से
पर कहाँ सम्भव
कि बह ले
नीर
बचकर लहर से।
गीत!
हम लाते नहीं
तो कौन लाता?
प्यार ही छूटा नहीं
घर-बार भी
त्यौहार भी
और शायद छूट जाये
प्राण का आधार भी
गीत!
हम पाते नहीं
तो कौन पाता?
विनोद श्रीवास्तवऔर अंत में
१.मसिजीवी ने
अपनी चर्चा में रश्मि रविजा की एक पोस्ट शामिल की थी!
इस पर रश्मिजी की टिप्पणी थी:
हम्म...आपने ब्लोगवाणी खोला,चर्चा के लिए, तभी हमारे पोस्ट तक भी पहुँच गए...शुक्रिया.
वैसे चिट्ठाचर्चा की परंपरा देखी है कि कुछ चयनित ब्लोग्स की हर पोस्ट शामिल की जाती हैं...और बहुत ख़ुशी होती है जान कि हमारे ब्लॉगजगत में इतना अच्छा लिखने वाले हैं कि उनकी हर पोस्ट recommend की जाती है,पढने को (चर्चा का अर्थ ,मेरी समझ से recommend करना ही होता है,) यह जान भी सुकून मिला कि हमारे जैसे अति साधारण लिखने वाले भी दो-तीन महीने में दस-बीस पोस्ट के बाद कुछ ऐसा लिख जाते हैं कि उसे चर्चा लायक समझा जाता है.
वैसे मैं यह निवेदन करने आई थी कि मैं इस चर्चा के स्तर के अनुकूल नहीं लिखती ...अतः मेरी पोस्ट कृपया चर्चा में शामिल ना करें. पर एक तो आप अक्सर चर्चा नहीं करते और ब्लोगवाणी में पोस्ट देखी थी आपने, इसलिए कुछ कहना बेमानी है...फिर भी दूसरे चर्चाकारों से यही अनुरोध है कि मेरी पोस्ट में कुछ आपत्तिजनक लगे, या किसी बात का विरोध या आलोचना करनी हो तभी मेरी पोस्ट शामिल करें...अन्यथा नहीं. मेरे जैसे अति-साधारण लिखने वाले का भी साधारण सा पाठकवर्ग है. और मैं उसी से संतुष्ट हूँ.
जितना मुझे समझ में आया उससे ऐसा लगा कि रश्मिजी को इस बात की नाराजगी है कि कुछ लोगों की पोस्टों की चर्चा अक्सर होती है और उनकी पोस्टों की चर्चा दो-तीन माह में एकाध बार ही हो पाती है। इसीलिये उन्होंने यह अनुरोध/आग्रह किया कि उनकी चर्चा यहां न की जाये।
अब मैं और मेरे साथी क्या करते हैं यह तो आगे आने वाला समय बतायेगा। लेकिन चिट्ठाचर्चा में चिट्ठों की चर्चा के तरीके के बारे में मैं बहुत विस्तार से अपनी पोस्ट
चिट्ठाचर्चा के बहाने कुछ और बातें में अपनी बात कह चुका हूं:
कई बार यह भी सोचते हैं कि इस पोस्ट की चर्चा करेंगे ! ऐसे करेंगे ,वैसे करेंगे। लेकिन पोस्ट बटन दबने के बाद दिखता है अल्लेव वो हमारी दिलरुबा पोस्ट तो नदारद है। उसकी चर्चाइच नहीं हो पायी। शकुन्तला की अंगूंठी की तरह उसे समय मछली निगल गयी। फ़िर सोचते हैं कि दुबारा करेंगे/तिबारा करेंगे तो उसे शामिल कर लेंगे लेकिन ऐसा अक्सर नहीं होता। सब मामला उधारी पर चला जाता है। लेकिन कभी-कभी सरकी पोस्टें मेले में बिछड़े जुड़वां भाइयों से दिख जाती हैं तो उनका जिक्र धक्काड़े से कर देते हैं।
यह तो हमारी बात है। हमारे अलावा हमारे साथियों की पसन्द/नापन्द है। किसी को एक तरह की पोस्ट पसंद हैं किसी को दूसरी तरह की। उसके हिसाब से चर्चा करते हैं साथी लोग। अब इसके बावजूद किसी के चिट्ठे की चर्चा चिट्ठाचर्चा में नहीं हो पाती और कोई कहता है कि चर्चा में पक्षपात होता है, मठाधीशी है तो यह कहने का उसका हक बनता है। उसका मौलिक अधिकार है– हरेक को अपनी समझ जाहिर करने का बुनियादी अधिकार है।
कभी-कभी यह भी होता है कि कोई पोस्ट चर्चा के तुरंत पहले पोस्ट होती है या फ़िर चर्चा के तुरंत बाद। वह शामिल नहीं हो पाती। अगले दिन तक वह इधर-उधर हो जाती है। वैसे भी हमारा यह कोई दावा भी नहीं है कि हम लोग सब चिट्ठों की चर्चा करेंगे। या सब बेहतरीन पोस्टों की चर्चा करेंगे। या ऐसा या वैसा। हम तो जैसा बनता है वैसा चर्चा करते रहने वाले घराने के चर्चाकार हैं। उत्कृष्टता या श्रेष्ठता का कोई दावा हम नहीं करते। हमे तो जो चिट्ठे दिख गये, जित्ते हमने पढ़ लिये उनकी चर्चा कर देते हैं। जितना खिड़की से दिखता है/बस उतना ही सावन मेरा है वाले सिद्धान्त के अनुसार जित्ते चिट्ठे बांच लिये उतने लिंक टांच दिये के नारे के हिसाब से चर्चा कर देते हैं। अब उसी में कोई चर्चा अच्छी या बहुत अच्छी निकल जाये तो उसका दोष हमें न दिया जाये।
रश्मिजी ने मेरी यह पोस्ट पढ़ी होती तो शायद उनको कुछ कम शिकायत होती और तब शायद चर्चा करने में होने वाली हम लोगों की समस्याओं को समझ सकतीं!
२. समय के साथ ब्लॉगजगत में लोगों की शिकायत बढ़ती जा रही है कि यहां अराजकता बढ़ती जा रही है। चिट्ठाचर्चा में भी कुछ मेहनती लोग अनामी/बेनामी/फ़र्जीनामी टिप्पणियां करते हैं। उनकी टिप्पणियां ऐसी होती हैं कि मिटानी पड़ती हैं। पिछले दिनों काफ़ी मिटाईं भी हम लोगों ने। लेकिन आज जब एक
पुरानी टिप्पणी देखी :
हिंदी ब्लोगिंग के स्वयम्भू दरोगा बनने की अनधिकृत चेष्टा करते कुछ अनूपों और अतुलों के मुंह पर करारे तमाचे लगाते रहिये। लिखिये, और लिखिये। ब्लोगिंग किसी के बाप की बपौती या खाला का घर नही। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन् करने वाले इन तथाकथित बुजुर्ग ब्लोगरों को गुमान है कि वे जो करें या कहें ब्रह्मवाक्य है, खुद लिखते हैं “हम तो जबरिया लिखिबे, हमार कोई का करिहे”,और आपको रोकते हैं। और ई-स्वामी पहले खुद अश्लील भाषा लिखना बंद करें, फिर “लेंगे” वाली भाषा पर एतराज करें। “पर उपदेश कुशल बहुतेरे”।
इस टिप्पणी को आज फ़िर से देखकर लगा कि हमारा ही हाजमा कुछ खराब हो चला है। तीन साल पहले की तमाचा मारने जैसी बात कहने वालों की टिप्पणियां अपनी पोस्ट में धरते थे और अब मरियल-मरियल टिप्पणियां मिटा देते हैं। हाजमा खराब हो गया है सच्ची।
फ़िलहाल इतना ही। आपका समय शुभ हो। सुबह देखियेगा गुरुकुल घराने की चर्चा।
पोस्टिंग विवरण: शाम साढ़े सात बजे से शुरु करके अभी रात साढ़े ग्यारह बजे पोस्टित। इतनी देर में भी केवल पांच-सात पोस्टों का जिक्र कर पाये। न जाने कित्ती कालजयी पोस्टें रह गयीं होंगी। इस बीच दो बार चाय पिये, एक बार खाना खाये, बच्चे को पढ़ाये (कल उसका टेस्ट है भाई) दो बार पांच-पांच मिनट के लिये लाइट जाने पर जोर से झल्लाये। अब पोस्ट को भेज रहे हैं आपके पास! जाये!
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