गुरुवार, अप्रैल 01, 2010

मूर्ख दिवसीय चर्चा ...... और शिक्षा का अधिकार : कोई सम्बन्ध तो नहीं?

क्या फर्स्ट अप्रैल (फूल डे) बनाने की आज भी अहिमयत अभी भी बची हुई है ....जबकि हम तो रोज ही ठगे जा रहे ....उल्लू बनाए जा रहे हैं ? इस छलिया डे की कित्ती उपयोगिता बची है ....कभी ना कभी इस सन्दर्भ में हम सब सोचेंगे ही ....आखिर हम सब हर दिन कहीं  ना कहीं किसी ना किसी समय  छले  ही तो जा रहें है |

ऊपर की तथाकथित साहित्यिक टाइप थिंकिंग को नजरंदाज कर दें ..तो हर फर्स्ट अप्रैल को हम कुछ ज्यादा ही सतर्क हो जाते हैं ...और फिर जरूर फंस  जाते हैं , जैसे पिछली बार यहाँ धर लिए गए | कहे दे  रहें हैं यहाँ मत जाइयेगा ......लेकिन आप मानेंगे थोड़े ही ? खैर थोड़ी चर्चा हो जाए ! फूल डे मनाने के पीछे कई कहानियाँ अब तक पढ़े होंगे ...दो- चार और पढनी हो तो यहाँ जाइए |

इस दिवस को मनाने वाले कुछ लोगों का कहना है कि इस को हम इसलिए मनाते हैं ताकि मूर्खता जो मनुष्य का जन्मजात स्वभाव है.....वर्ष में एक बार सब आजाद हो कर हर तरह से इस दिवस को मनाये और इस दिवस पर जम कर हंसे। जिससे मन मस्तक में ऊर्जा का संचार पैदा हो।

जब भाई लोग इस डे के इत्ते दीवाने हों तो कहीं ना कहीं से यह आवाज तो उठेगी ही |

फूल डे को राष्ट्रीय पर्व का दर्जा न देने से बड़ी कोई बेफकूफी नहीं। यही एक पर्व ऐसा है, जिसे राष्ट्रीय त्योहार का स्थान प्राप्त होना ही चाहिए। यह बात बेकार नहीं है। इसकी वजहें हैं। ‘फूलनेस’ जो इस दिन की विशेषता है, बिना किसी नस्ल, वर्ग, वर्ण, धर्म आदि के सभी में विद्यमान है। इसमें एकता का अटूट भाव छिपा हुआ है। यही नहीं, दोनों राष्ट्रीय त्योहारों की विशेषताएं भी इसमें समाई हुई हैं। इस दिन लोगों को एक-दूसरे को फूल बनाने के लिए पूरी तरह स्वतंत्रता प्राप्त होती है। वैसे तो साल के 365 दिन इस पावन आजादी का उपभोग होता है, पर इसकी खुशी ‘फूल डे’ को मनाई जाती है।

हम सब जानते हैं कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं  ........ अब आप ही देखिये ना ? 
अगर हम फस्र्ट अप्रैल को मूर्ख दिवस की जगह समझदारी दिवस के रूप में देखें तो क्या हर्ज है। इसलिए आज सुबह पहली ही चाय से सतर्कता बरतते हुए, अपने लिए मूर्ख दिवस नहीं समझदारी दिवस सेलिब्रेट कीजिए।
कुछ लोग मूर्ख दिवस पर भी  कवितायें लिखें हैं ......कलेजा है भैये !

करते रहिए फील गुड़ गया चुटकला फैल।
देखो मूर्ख बने कौन, आने दो अप्रैल।

धोखा, झूठ, फरेब से किया हमें हैरान।
बोले मूर्ख दिवस है, करता क्या कल्यान।

बुद्धू मुझे बना दिया, बोले हैं अप्रैल।
मैं बोलूँ तो अर्थ है,
मार मुझे आ बैल
हाँ बताता चलूँ कि आज किसी के झांसे में मत अइयो .....चाहे गूगल और वर्डप्रेस ही क्यों ना हो ? इनके चक्कर में तो अपने देबू दा जैसे ज्ञानी भी फस चुके हैं या फंसा चुके ? वैसे, मूर्ख बनाने को लेकर सबसे दिलचस्प संबंध उपभोक्ता व बाजार के बीच होते हैं। देखा जाए, तो बाजार का पूरा तंत्र ही सफेद झूठ पर टिका हुआ है।

आज के मार्केट के सबसे बड़े सच 'सेल' का 'सच' हर किसी को पता है, तो बारगेनिंग का पूरा प्रोसेस ही सफेद झूठ पर आधारित है। शर्ट में लगे कीमत वाले टैग और उस पर मिले डिस्काउंट को देखकर ग्राहक अपनी पीठ थपथपाता है कि देखो, कितनी सस्ती खरीदारी कर ली, तो इस डिस्काउंट के सच को जानने वाला दुकानदार भी मन ही मन खुश हो रहा होता है कि उसने कैसे ग्राहक को मूर्ख बना डाला। जरा सोचिए, ग्राहक और दुकानदार दोनों के लिए विन-विन सिचुएशन वाले बारगेनिंग सिस्टम पर आधारित अपनी बाजार व्यवस्था में अगर ईमानदारी घुस जाए, तो उसमें बचा क्या रह जाएगा!

वैसे कई लोग आज के दिन कोई गंभीर बात कहें तो कित्ता सीरियस उनको लिया जाता है ..अथवा लिया जाना चाहिए ?


इसी सन्दर्भ में अपने पुराने ब्लोगिया इ-पंडित श्रीश भाई का सारा पांडित्य धरा का धरा रह गया था ...इसी अप्रैल फूल  के चक्कर में !

अरे हद हो गई यार एक अप्रैल को कोई नॉर्मल पोस्ट नहीं लिख सकते क्या? मेरी सुबह वाली पोस्ट भी जोक थी क्या? और इस पोस्ट में फूल बनाने वाली क्या बात है? खुद देख लो।मुझे अप्रैल फूल बनाना होता तो सीरियस सी पोस्ट लिखता, सीरियस सा टाइटल रखता। अप्रैल फूल बनाने के लिए इससे बेहतर कई तरीके थे। गलती हो गई जो ये पोस्ट कल पब्लिश की। अब समझ आया कोई कमेंट क्यों नहीं आई अब तक लोग अप्रैल फूल का जोक समझ कर आए ही नहीं। अच्छी खासी पोस्ट का सत्यानाश हो गया, ये पोस्ट आज करनी चाहिए थी लेकिन क्या करुँ खबर ऐसी थी कि रुका न गया।

शायद  मूर्ख दिवस को भी स्वस्थ मनोरंजन के नाम पर ही स्वीकार किया था। चलन यह बन गया  है कि इस दिन का नाम लेकर किसी भी स्तर का  आपत्तिजनक मजाक लोग करने से नहीं हिचकते !
चलिए मस्ती, मजाक को दिवस हम सब मस्ती के साथ मनायें, बिना किसी को कष्ट और परेशानी दिए। बिना किसी की भावनाओं को आहत किये, बिना किसी को दुःख पहुँचाये। देखा जाये तो किसी भी पर्व का महत्व उसके द्वारा हर्ष, उल्लास मनाने से है न कि किसी को कष्ट पहुँचान से। क्या आज का मूर्ख दिवस हम इस विचार के साथ मना सकेंगे कि कोई हमारे किसी भी कदम से हताहत न हो, परेशान न हो, दुःखी न हो? 

इधर अपने ब्लॉग जगत में भी फर्स्ट अप्रैल के चक्कर में लोग बौराए जा रहें हैं ...देखिये अपने खटीमा वाले शास्त्री जी ने सीमा जी को उलाहना क्या दिया कि सीमा जी ने पलट कर शास्त्री जी को सिरफिरा कह दिया |
फिर भी शास्त्री जी खुश हैं

सिरफ़िरे होने पर
तो नाज़ है
एक कलम में
                         समाया पूरा समाज़ है
कभी कभी लोग मूर्ख बनाने ताना बाना तो बहुत  बुनते हैं ...पर ब्लॉगवाणी जैसी सेवायें उनकी वाट लगा देती है ...बकौल झा जी !
सत्यानाश सारी पोल तो ब्लोगवाणी पर पूरी पोस्ट दिख कर ही हो गई ...धत तेरे कि ..ये क्या हुआ ये तो अपना भी अप्रैल फ़ूल मन गया यार
आज के दिन हजारों और लाखों के लुभावने ऑफर उपलब्ध हैं .....एक ऑफर इधर भी! भैये पूरे 101 रुपइया  का इनाम जो है !
 
उस फूल का नाम बतलायें
जो अप्रैल में खिलता है
दिमाग का पोर पोर
उससे हिलता है

वैसे आज इत्ती चर्चा के बाद पता नहीं कित्ता सीरियसली आप लें ....फिर भी बताता चलूँ कि आज ही दिल एक पुराना सा म्यूजियम वाले रौशन का जन्मदिन है। उनको हमारी बधाई के असली फूल !
  आज एक अप्रैल यानि मूर्ख दिवस के अवसर पर सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून  (पूरा पाठ : इस लिंक पर उपलब्ध) लागू करने का निर्णय लिया है।  नये कानून के तहत 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों को अनिवार्य और समग्र शिक्षा उपलब्ध कराया जायेगा। निजी विद्यालयों  मे 25 प्रतिशत गरीब छात्रों के पढाई का खर्चा सरकार उठायेगी।

देश  में गरीब और अमीर के बीच जो  अनुपात है, ऐसे में 25 प्रतिशत की सुविधा किस स्तर के गरीबों को मिलेगी यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन इसमें भी हम जैसे मास्टर  लोग पूँछ ना रहें हों  कि कहीं सरकार की योजना गरीबों को अप्रैल  फूल  बनाने की  तो नहीं?

हमारा भी कुछ विचार है ...हिम्मत करके लिंक दे रहें ....अगर आपमें हिम्मत हो तबहिये जाइयेगा!
यानी आप जितना उच्च-क्वालिटी का  झूठ बोलेंगे, तो  जाहिर  है सामने वाला उतना ही बड़ा मूर्ख साबित होगा। सच्ची बात  तो यह है कि अपने संबंधों को कायम रखने में भी झूठ की बड़ी महत्वपूर्ण  भूमिका है। दूसरे शब्दों में अगर कहना चाहें तो कह सकते  हैं कि लोगों से अपने संबंधों को कायम रखने के लिए भी हमें उन्हें मूर्ख बनाना पड़ता है।
आप का क्या विचार है ?

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21 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक शब्दों के साथ अच्छी चर्चा, अभिनंदन।

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  2. .
    .
    .
    आदरणीय प्रवीण त्रिवेदी जी,

    'मूर्ख दिवस' पर सभी को 'समझदारी' मुबारक !

    और हाँ आपको आभार भी,

    ...एक महामूर्ख ।

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  3. बढिया चर्चा मास्साब!! मस्त वाली..
    रौशन को जन्मदिन मुबारक और आपको भी आपका दिन मुबारक..
    खेले, खाये और नाचे आज..

    एक ठो कार्टून का लिन्क चेप के जा रहा हू..

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  4. बहुत अच्छे मास्साब, ये राष्ट्रीय पर्व वाली बात तो हमें भी बहुत अच्छी लगी. एक अभियान चलाया जा सकता है इसके लिये.
    मेरी ओर से भी रोशन को जन्मदिन की बधाइयाँ.

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  5. बहुत ही खुशगवार माहोल है …………………।सुन्दर चर्चा।

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  6. बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
    ढेर सारी शुभकामनायें.

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  7. मस्त चर्चा है, मास्टर साहब,
    जहाँ लोग एक दूसरे को बेवकूफ़ बनाने में लगे हैं,
    वहीं आपने आँख खोलने वाले लिंक प्रदान किये ।
    आप 85 प्रतिशत अँको से उत्तीर्ण किये जाते हैं ।

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  8. अन्यथा न लें, मास्टर बाबू !
    आपको 100 प्रतिशत दिये जा सकते थे,
    लेकिन बकिया 15 प्रतिशत मैंने अपने लिये रख लिया है ।
    इतना न्यूनतम कमीशन कोई और न लेगा ।

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  9. वाह्! मूर्ख द्वारा,मूर्खों की, मूर्खों के लिए की गई एक बढिया मूर्खतामय चर्चा :-)
    हैप्पी मूर्ख दिवस!!

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  10. @प्रवीण शाह
    हम भी आप से कम मूर्ख तो ना होंगे?

    @Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)
    कार्टून गिफ्ट के लिए आभार! नाचने के मामले में तो हम बिल्कुल अ-मास्टर हैं !

    @mukti
    यदि आप जैसे इंटेलेक्चुअल्स का सपोर्ट मिल जाए ...तो शायद ऐसा हो भा जाए | जाहिर है हम जैसे मूर्खो का बहुमत जो बढ़ ही रहा है ?


    @विवेक रस्तोगी
    हम तो सरकारी दामाद है ...सो हमको तो जाल में फसना नहीं है !

    @डा० अमर कुमार
    डाक्टर साहेब ! आपको इत्ते कम कमीशन पर चिंता तो हो रही है ....बकिया ८५% के लिए आभार !!

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  11. प्रवींण जी, सरकार ने तो अप्रैल फ़ूल को मान्यता दे ही दी है। ’शिक्षा का अधिकार कानून’ एक अप्रैल से लागू कर तो दिया। बढ़िया चर्चा।

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  12. aap sab ne yaad rakha iske liye shukriya
    warna gaayb rahne walon ko yaad rakh pana jaraa kathin hota hai

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  13. सुन्दर चर्चा मुर्ख दिवस की ।

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  14. फिर से चर्चियाना शुरू कर दीजिए मास्साब !

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