भगवान बहुत चालू चीज होता है मित्रों । कहते हैं कि भगवान कण कण में छिपा है । तो ढूंढने वालों ने मैग्नीफाइंग लेन्स लेकर पहले तो जितने प्रकार के कण हो सकते थे उनमें ढूंढा । भगवान जी थोड़ा महीन टाईप भगवान थे, नहीं मिले । फिर जब माइक्रोस्कोप का अविष्कार हुआ तो एक बार फिर ढूंढाई चालू हुयी । इस चक्कर में साला अणु, परमाणु, न्यूट्रान, प्रोटान, इलेक्ट्रान, क्वाट्र्ज एक से बढ़ कर एक ससुरे घर-घुस्सू मिल गये लेकिन वो नहीं मिला जिसे भगवान कहते हैं । लगे रहे वैज्ञानिक भाई लोग । कभी अपने खर्चे पर, कभी सरकारी खर्चे पर ।
मिश्रजी अपने ब्लॉग में एनिमेटेट चित्र मजेदार लगाते हैं। देखिये गर्मी से बचाव का कित्ता तो माकूल उपाय बताया है बगल की फोटो में। सामूहिक स्नान ही गर्मी से बचा सकता है। सानिया मिर्जा के विवाह के किस्से उनके ब्लॉग पर एनिमेटेट फोटू के साथ बांच सकते हैं आप!
मिश्रजी के ब्लॉग पर नजर फ़ेरते हुये हास्य व्यंग्य पर आधारित ब्लाग की सूची देखी। इसमें अनवरत सबसे पहले सूचित है। यह हमारे लिये सच में एक नयी सूचना थी कि द्विवेदीजी का ब्लॉग हास्य-वयंग्य का ब्लॉग है। कभी-कभी माइक्रो चुटकी लेने के सिवाय द्विवेदीजी मेरी समझ में फ़ुल गम्भीरता से अपने आसपास की समसामयिक घटनाओं पर अपने विचार लिखते हैं। आज द्विवेदीजी ने होम्योपैथिक की जानकारी देते हुये पोस्ट लिखी है- क्या होम्योपैथिक अवैज्ञानिक है।
बात वैज्ञानिकता की हो रही है तभी मुझे याद आया कि इस बार लवली ने वैज्ञानिक पोस्टों पर आधारित चिट्ठों की चर्चा नहीं की। कल उन्होंने बताया कि हिन्दी में वैज्ञानिक पोस्टों पर आधारित चिट्ठे लिखे ही नहीं गये। जो लिखे भी गये वे इस लायक नहीं लगे उनको कि उनकी चर्चा की जा सके। अगली बार वे इंशाअल्लाह शायद चर्चा कर सकें। लवली ने एक लेख में प्रसिद्ध वैज्ञानिक सिगमंड फ़्रायड के बारे में विस्तार से लेख लिखा है। इस लेख के कुछ अंश :
अमेरिका का वातावरण उन्हें अच्छा नही लगा. उन्हें यहाँ पेट की गड़बड़ी की शिकायत रहने लगी थी जिसका कारन उन्होंने विविध अमेरिकी खाद्य सामग्री को बताया. १९२३ में फ्रायड के मुह में कैंसर का पता चला जिसका कारन उनका जरुरत से अधिक सिगार पीना बताया गया. उनके मुह में ३२ ओपरेशन किये गये. १९३३ में हिटलर ने जर्मनी की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया उसने साफ कहा की फ्रायड वाद के लिए उसकी सत्ता में कोई जगह नही है. हिटलर ने फ्रायड की सारी पुस्तकों और हस्तलिपियों को जला दिया. फ्रायड पर यह भी आरोप लगे की वह मनोविज्ञान में जरुरत से अधिक कल्पनाशीलता और मिथकीय ग्रंथों का घालमेल कर रहे हैं, यौन आवश्यकताओं को जरुरत से अधिक स्थान दे रहे हैं. फ्रायड का यह मत था की व्यस्क व्यक्ति के स्वभाव में किसी प्रकार का परिवर्तन नही लाया जा सकाता क्योंकि उसके व्यक्तित्व की नीव बचपन में ही पड़ जाती है, जिसे किसी भी तरीके से बदला नही जा सकता, हलाकि बाद के शोधों से यह साबित हो चूका है की मनुष्य मूलतः भविष्य उन्मुख होता है.
बेचैन आत्मा का नाम बेचैन बनारसी होता अनुप्रास अलंकार जमता। बहरहाल जो है सो है। शौक बेचैनजी के हैं-कविता लिखना और शतरंज खेलना।
सनीमा पसंद हैं मेरा नाम जोकर, ब्लैक और तारे जमीं पर। बाकी आप उनके परिचय खाते पर देखिये। कल की पोस्ट पर उनकी टिप्पणी थी-
मुझे लगता है कि अच्छे ब्लॉग की चर्चा करने के स्थान पर तू तू मैं मैं की चर्चा ब्लॉग को ज्यादा मजा आता है।मुझे लगा कि कोई अनामीजी फ़िर टिपिया गये जिनका प्रोफ़ाइल मिसिंग लिंक की तरह गायब है। लेकिन ये अपने बेचैनी जी दिखे जिनकी पिछली कविता को देखकर ही मैंने सोचा था इनकी सब पोस्टें बांचनी हैं। कविता देखिये:
इस पोस्ट पर आई रोचक टिप्पणियों को बांचते हुये पता चला कि बनारस के लेखा अनुभाग की मुलाजिम बेचैन आत्मा का नाम देवेन्द्र है। उनकी ताजा कविता का एक अंश देखा जाये :डाल में आ गए जब टिकोरे बहुत
बाग में छा गए तब छिछोरे बहुत
पेंड़ को प्यार का मिल रहा है सिला
मारते पत्थरों से निगोड़े बहुत
धूप में क्या खिली एक नाजुक कली
सबने पीटे शहर में ढिंढोरे बहुत
कार्यालय में सो रहा है कुत्ता
बकरियाँ आती हैं
बाबुओं के सीट के नीचे
सूखे पान के पत्तों को चबाकर
चली जातीं हैं
अधिकारी आते हैं और चले जाते हैं
लोग आते हैं और चले जाते हैं
काम नहीं होता।
वह कुछ नहीं होता जो होना चाहिए।
लगता है दफ़्तर का फोटो खैंचकर धर दिया गया शब्दों में! ज्ञानजी तो पूछ ही बैठे- कहां का दफ़्तर है?
ज्ञानजी की बात चली तो बताते चलें कि कल उन्होंने नाऊ के किस्से सुनाये। किस्सा-कहानी अपने आप में ऐसी चीज है जिसमें लोग अपनी बात जोड़ते चलते हैं। देखिये कित्ते लोगों ने अपने किस्सा-लत्ता जोड़ दिया ज्ञानजी के नाऊ किस्से में। आखिर नाऊ भी कोई ऐरा-गैरा तो था नहीं राजेन्दर बाबू जी का प्रिय नाऊ जो था!
अपनी एकाध पोस्टों में ज्ञानजी ने लिखा है कि निशांत ज्ञानजी के पसंदीदा ब्लॉगर हैं! निशांत का साक्षात्कार कनिष्क कश्यप ने लिया। यह साक्षात्कार बांचना अपने आप में रोचक और सुकूनदेह है। इसके कुछ अंश देखिये:
मेरी समझ में, ब्लौगिंग की तरफ आकर्षित होनेवाले अधिकांश लोग उत्सुकतावश इसमें कदम रखते हैं. इनमें से बहुत से लोग बहुत अच्छा लिखते हैं और अपने विचारों से दूसरों को अवगत कराना चाहते हैं. कविता-ग़ज़ल या विचारोत्तेजक लेखन से उनको टिप्पणियों के रूप में वाहवाही और प्रोत्साहन मिलता है तो उन्हें इसकी आदत सी पड़ जाती है. सामाजिक मुद्दों पर मैंने अभी तक सूचनापरक आलेखों से ज्यादा कुछ ख़ास नहीं देखा है. इन्टरनेट से बाहर की दुनिया में क्रांति और विप्लव की घटनाओं में हजारों-लाखों की मौत या बलिदान ने इस दुनिया को बेहतर नहीं बनाया तो ब्लौगिंग से यह उम्मीद करना बेमानी है कि इससे हालात बदलेंगे लेकिन एक पत्थर तो तबीयत से उछाला जा सकता है. हांलाकि पोस्ट के छपते ही उसका स्पष्ट प्रभाव दिखे तो ब्लॉगर को भरपूर प्रेरणा मिलेगी. इसके लिए अच्छे-बुरे लेखन के कुछ उदाहरण भी पेश किए जा सकते हैं पर यहां अपरिपक्वता इतनी अधिक है कि एक का नाम लेंगे तो पक्षपात के आरोप लगने लगेंगे. हम सभी तुरत-फुरत समाधान, तीव्र लोकप्रियता, और 'बड़े' ब्लॉगर कहलाना चाहते हैं और यह सब अच्छे लेखन के आड़े आता है. न तो यहाँ कोई मठाधीश है न कोई सीनियर-जूनियर लेकिन कुछ लोग आयेदिन इस बात का हल्ला मचाते रहते हैं क्योंकि वे यह पाते हैं कि कुछ ब्लौगरों को बहुत ज्यादा पढ़ा और सराहा जाता है. एग्रीगेटरों को ध्यान से देखनेवाला नॉन-ब्लौगर भी इस बात को दो-तीन दिन में जान जायेगा कि कुछ गुट यहाँ बहुत सक्रिय हैं और वे एक दुसरे को टिपियाते और पसंद करते रहते हैं. यही नहीं, वे एक-दुसरे के सपोर्ट में ही लिखते रहते हैं. इसे देखने में मज़ा भी आता है इसलिए मुझे तो इससे कोई शिकायत नहीं है जब तक बात व्यर्थ की छीछालेदर तक न पहुँच जाये.
बाकी के साक्षात्कार के लिये आप इस पोस्ट पर ही आइये। हमें एक और बात निशांत की जमी-पता नहीं क्यों सब यह मानते हैं कि सरकारी दफ्तरों में लोग काम नहीं करते!
डाक्टर अमर कुमार रानी केतकी की कहानी के किस्से सुनाते क्या-क्या कह गये, क्या-क्या बता गये देखिये।
चोखेरबाली पर शोयेब-सानिया विवाह प्रकरण पर आई इस पोस्ट को देखियेगा। जबसे मैंने यह पढ़ा-
आएशा को, खुद को शोएब की बेगम साबित करने के लिए सुहागरात का जोड़ा सबूत के तौर पर पेश करना पड़ा जिसमें शोएब का वीर्य लगा था।तबसे सोच रहा हूं कि क्या सच में ऐसा हुआ होगा? अगर ऐसा था तो मीडिया ने इसको क्यों नहीं उछाला?
मेरी पसंद
मैनें देखा,
मैनें देखा
जीर्ण श्वान-तनया के तन से
लिपट रहे कुछ मोटे झबरीले पिल्लों को
रक्त चूसते से थे जैसे शुष्क वक्ष से
मुझे याद आई धरती की।
मैनें देखा,
मैनें देखा
क्षीणकाय तरुणी, वृद्धा सी
लुंचित केश, वसन मटमैले, निर्वसना सी
घुटनों को बाँहों में कस कर देह सकेले
मुझे याद आई गंगा की।
मैनें देखा,
मैनें देखा
बीड़ी से चिपके बचपन को
कन्धे पर बोरा लटकाये, मनुज-सुमन को
सड़ते कचरे से जो बीन रहा जीवन को
मुझे याद आई प्रायः सूकर छौनों की।
मैनें देखा,
मैनें देखा
कमरे की दीवाल-घड़ी का सुस्त पेण्डुलम
धक्कों से ठेलता समय को, धीरे-धीरे
टन-टन की ध्वनि भी आती ज्यों दूर क्षितिज से
मुझे याद आई दादी की।
मैनें देखा,
मैनें देखा
गया न देखा फिर कुछ मुझसे
दिनकर के वंशज समस्त ले रहे वज़ीफे
अंधियारों से
मंचों पर सन्नाटा फैला, आती है आवाज़ सिर्फ़ अब,
गलियारों से
आँखें करके बन्द सोचता हूँ अच्छा है
नेत्रहीन होने का सुख कितना सच्चा है
तब से आँख खोलने में भी डर लगता है
रहता है कुछ और, और मुझको दिखता है।
अमित इस कविता को अमित की आवाज में सुनने के लिये इधर आयें!
और अंत में
लिखने को और बहुत कुछ था लेकिन दफ़्तर बुला रहा है सो निकलते हैं! आप अपना ख्याल रखिये। मौज करिये जो होगा देखा जायेगा।
पोस्टिंग विवरण: सुबह पांच बजकर पचपन मिनट पर शुरु करके अभी आठ बजकर बीस मिनट पर प्रकाशित किया इसे। इस बीच दो चाय पी। एक दोस्त से आनलाइन गपियाये। एक से एस.एम.एसियाये। बीच में बच्चे को भी छोड़कर आये। नहाये। अब बहुत हुआ भैया। निकलते हैं दफ़्तर जायें! मिलते हैं जल्दी ही- बॉय,बॉय!
काजल कुमार आजकल कोरिया भ्रमण पर हैं। उन्होंने जो तस्वीरें खींची वे इधर देखिये। उनकी एक तस्वीर जो किसी और ने खींची वो हम आपको यहीं दिखा दे रहे हैं।
अच्छी चर्चा रही। निशांत जी के विचार अच्छे लगे।
जवाब देंहटाएंइंसान से चालू कोई नहीं
जवाब देंहटाएंभगवान को नाहक बदनाम न करें
चर्चा अच्छी लगी आज की. बेचैन आत्मा की पिछली कविता पढ़ी थी, इसे भी पढ़ुँगी. बहुत सरल भाषा और लोकबिम्बों का प्रयोग होता है उनकी कविता में...सिगमंड फ़्रायड पर लवली की पोस्ट के विषय में लिंक पाकर अच्छा लगा. वैसे मैं भी फ़्रायड के निष्कर्षों से पूरी तरह सहमत नहीं हूँ, हालांकि कुछ बातें सही लगती हैं. पर मेरा साइकोलॉजिस्ट जे.एन.यू. बेस्ड मित्र उनका परम भक्त है.... निशांत मेरे भी मनपसंद ब्लॉगर हैं और उनमें से एक हैं, जिन्हें मैं पढ़ती हूँ, पर टिप्पणी कम ही करती हूँ. उनकी बात सही है...मुझे सही लगी.
जवाब देंहटाएंआपकी आज की पसन्द भी मुझे बहुत अच्छी लगी...हमेशा ही लगती है...पर आज ज्यादा अच्छी लगी.
और अंत में...भगवान सच में चालू चीज़ है. जाने कहाँ छिपकर डोर खींचता और ढीली करता रहता है.
भगवान बहुत चालू चीज होता है मित्रों । पकड़ में अब आया है! :)
जवाब देंहटाएंजे बात तो सई कही उनने कि भगवान बहुत चालू चीज होता है
जवाब देंहटाएं;)
बढ़िया चर्चा। शुक्रिया
बढिया चर्चा.. आपके धीरे से पूछे गये सवाल का उत्तर नही आया अभी? :P देवेन्द्र जी की कविता जबरदस्त है... आप सब लोग अपने अपने आफ़िस मे एक ठो जीराक्स करके लगवा लीजिये :)
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद चिट्ठा-चर्चा पढ़कर अच्छा लगा। कुछ अच्छी पोस्टें व चिट्ठे पता चले, धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा ! ये कोरिया के रंग में कार्टून कब आ रहे हिं काजलजी के?
जवाब देंहटाएंवाह !!
जवाब देंहटाएंबहुते nice !!
आत्मा से महसूस करो तो किसी मशीन की जरूरत नहीं पड़ेगी।
जवाब देंहटाएंऐल्लो ये कही बात पते की अविनाश जी ने। इंन्सान से ज्यादा चालू चीज कोई नहीं।
जवाब देंहटाएंसार्थक शब्दों के साथ अच्छी चर्चा, अभिनंदन।
जवाब देंहटाएंहां भगवान चीज़ तो नहीं ही है और चालू तो कदापि नहीं वरना वह इंसान बानाता ही क्यॊं?
जवाब देंहटाएंत्या भौगवान दी, बीलागींग भी कलते हैं ?
वो सबकुथ जानते हैं, तो त्या वो तँकी पे भी रहते हैं ?
लोग ऊपल की ओल मूँ कलके फिल त्यों उन्को पूकालते हैं ?
उनती तालीफ़ न कलो, तो वो गुस्से होकल कुत्ती कल लेते हैं ?
लेकिन आज एक पईसा वसूल लिंक दिहौ, गुरु !
मान गये भाई कि पोस्ट खँगाले मा आपकेर बड़ी गिद्ध दृष्टि है !
जवाब देंहटाएंहत्त तेरे की जय हो ।
ऍप्रूवल का लटका आजौ है ?
बता दिये का रहा तौ कुँजी न खटखटाइत ।
अम्मा जी केर भूत अबहूँ डोलि रहा है, का ?
प्रसिद्ध वैज्ञानिक सिगमंड फ़्रायड के बारे में लवली जी ने बड़ी रोचक जानकारी दी ।
जवाब देंहटाएंज्ञानजी के नाऊ के किस्से में एक किस्सा मेरा भी था टिप्पणी के मार्फत । और फिर आपके लिंक के द्वारा गुम्मा हेयर कटिंग सैलून की भी तो ज्ञानवार्धक जानकारी मिली ।
निशांत जी का साक्षात्कार बड़ा पौष्टिक रहा ।
बेचैनजी की कविता से तो हंसी के मारे बलगम निकाल गया । आज कल मौसमी सर्दी जुकाम से पीड़ित हूं ।
काजल जी कोरिया में बड़े सुंदर लग रहे हैं । आबो हवा बदलने का कारण होगा ।
"भगवान बहुत चालू चीज" वाला व्यंग्य तो मैंने दो दिन पहले ही पढ़ लिया था । अक्सर टाईप करने के बाद गलतिया ढूंढने के लिये पढ़ना पढ़ता है । ठीक लिखा है । ऐसे ही लिखता रहा तो हास्य व्यंग्य लिखना सीख जाऊंगा ।
भगवान को चालू चीज कहने वाले अक्सर यहाँ वहाँ ठिबिया जाते हैं जी। हा हा। चर्चा ज़ोरदार हमेशा की तरह।
जवाब देंहटाएंविवेक सिंह की मेल से प्राप्त टिप्पणी:
जवाब देंहटाएंभगवान अगर चीज है तो वह 'होता' नहीं 'होती' है ! पुरुषवादी कहीं के !
कनिष्क कश्यप का चित्र और मुस्कान तो मन को मोह रहे हैं।
जवाब देंहटाएंअपने पिता की म्रत्यु होने के एक महीने बाद ही जो इंसान अर्ध नगन अवस्था में नशे की हालत में अपने दोस्तों के साथ सुबह एक फ़ार्म हायूस में मिलता है ....अधिक नशे की हालत के कारण उसके दोस्त की म्रत्यु हो जाती है .....पिता के राजनैतिक रसूख से वो कानूनी कार्यवाही से बच जाता है ..कुछ महीने बाद उसकी पत्नी उससे तलाक लेती है ...क्यूंकि वो शराब पीकर उसे मारता है ....एक चैनल उसका सव्यम्वर सजाता है ..बाज़ार की जरुरत खलनायक को नायक बनाने की है......लडकिया कतार में लाइन लगा कर के उसमे शामिल होती है .ये पढ़ी लिखी लडकिया है ......जाहिर है शोएब का चरित्र अब कोई मायने नहीं रखता क्यूंकि स्टार बनने के बाद आपके दाग सर्फ़ से धुल जाते है .......
जवाब देंहटाएंवैसे सबसे दिलचस्प बात जो मैंने हैदराबाद के बारे में पढ़ी थी वो संजय बेगानी जी के ब्लॉग पर ..कई तथ्य चौकाने वाले होते है ......उन्हें इग्नोर नहीं करना चाहिए
उनकी पोस्ट को पढ़िए...
देवेंद्र जी का ब्लॉग भाषा के स्थानीय स्वाद को साहित्यिक रेसिपी मे पेश करता है..गंभीर बात को बेहद सरल और साधारण शब्दों मे और किसी नाहक बौद्धिकता के आवरण को लपेटे बिना कह जाना उनकी विशेषता लगी मुझे..और आपकी पसंद ही हमारी पसंद बन गयी इस बार!
जवाब देंहटाएंचर्चा तो अच्छी ही है, लेकिन उसके लिखे जाने के बीच किये जाने वाले काम ज़्यादा अच्छे लगे. ऑनलाइन बतियाये, एसएमएसियाये, तो फोन पे भी बतिया लेते न किसी से, वो काम काहे छोड़ दिया?
जवाब देंहटाएंशोएब का चरित्र ???
जवाब देंहटाएंहुन्ह्ह्ह ...
घी के लड्डू टेढो भलो .....
हाँ नहीं तो...!!
अमित जी की कविता ने मुझे भी बहुत प्रभावित किया। इतना कसा हुआ व्यंग्य कम ही पढ़ने को मिलता है।
जवाब देंहटाएंअनूप जी आप 2 घंटे में इतने सारे काम निपटा लेते हैं! यहां तो 2 घंटे माणस बनने में ही निकल जाते हैं उस पर तुर्रा ये कि फिर भी बात बन ही जाए ...इसकी भी कोई गारंटी नहीं रहती:)
जवाब देंहटाएंदूसरे, आपके कविता रस का मैं क़ायल हूं. समय-समय पर इतनी सुंदर कविताएं पढ़वाने के लिए आपका आभार व कवि मित्रों को हार्दिक साधुवाद.
God is truly Bhola-bhala. He, by mistake created the shrewd lot called human beings.
जवाब देंहटाएंNumber of Gods and Goddesses are still 33 crores, but human beings are multiplying in geometrical progression.
Chaloo to wo hai jisne Ishwar ki chaal-bazion ko samajh liya !
'A trick fails the moment it is noticed !'