माफ कीजिए, आपके अपने टेक हो सकते हैं. आपके अपने दृष्टिकोण हो सकते हैं. मगर, छटे चौमासे, अगर नीचे दिए उदाहरणों जैसे एकाध पोस्ट भी आ जाएँ, तो क्या आप नहीं मानेंगे कि थोड़ा सा ही सही, हिन्दी ब्लॉगिंग में सार्थकता की झलक दिखती तो है?
(पोस्ट नं 1)-
चिचिंडा कि उन्नत आर्गनिक जैविक खेती खीरा या कद्दू वर्गीय सब्जियां
जलवायु :--
चिचिंडा के लिए गर्म एवं आद्र जलवायु अच्छी रहती है ।
भूमि :---
चिचिंडा कि अधिक पैदावार लेने के लिए जीवांश युक्त दोमट रेतीली भूमि अच्छी रहती है पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करे इसके उपरांत २-३ बार हैरो या देसी हल चलायें पाटा लगाकर मिटटी भुरभुरा एवं समतल बना ले ।
प्रजातियाँ अधिकांस चिचिंडा कि स्थानीय किस्मे उगे जाती है कई राज्यों के कृषि बी.बी.भारतीय बागवानी अनुसन्धान संस्थान बंगलोर द्वारा उन्नत किस्मे बिकसित कि गयी है जिनके नम निचे दिए गए है ।
एच.-८।
एच.-३७१।
एच.-३७२।
को.-१।
टी.इ.-१९।
आई.आई.एच.आर.-१६ ऐ।
बीज - बुवाई :---
उत्तरी भारत में चिचिंडे को वर्षाकालीन फसल के रूप में उगाया जाता है अत: वंहा पर इसे जून के अंत तक बो देते है दक्षिण भारत में इसे अप्रैल से जुलाई तक या अक्तूबर से नवम्बर तक बोते है पंक्ति से पंक्ति कि दुरी १.५से २.५ मीटर रखकर थामलो में ७५- ९० से.मी.कि दुरी पर उगाते है प्रत्येक थामले में दो या तिन बीज बो देते है ८-१० दिन में बीज उग जाते है ।
बीज कि मात्रा :---
प्रति हे.५-६ किलो ग्राम बीज पर्याप्त होता है ।
आर्गनिक जैविक खाद :---
१- भू पावर वजन ५० किलो ग्राम या १-बैग माइक्रो फर्टी सिटी कम्पोस्ट वजन ४० किलो ग्राम , १ बैग माइक्रो भू पावर वजन १० किलो ग्राम ,१- बैग सुपर गोल्ड कैल्सी फर्ट वजन १० किलो ग्राम ,१- बैग माइक्रो नीम वजन २० किलो ग्राम और ५० किलो ग्राम अरंडी कि खली इन सब खादों को मिलाकर मिश्रण तैयार कर प्रत्येक पौधे को थामलो में २ किलो ग्राम और १० किलो ग्राम गोबर कि सड़ी हुयी खाद देते है पानी देते है फसल जब २५ -३० दिन कि हो जाये तो माइक्रो झाइम ५०० मी.ली.और २ किलो सुपर गोल्ड मैग्नीशियम ४०० लीटर पानी में अच्छी तरह से घोल कर पम्प द्वारा तर बतर कर छिड़काव करे दूसरा तीसरा छिड़काव हर २५-३० दिन में करते rahat- hai is tarh swadisht swasthy bardhak bharapur fasal taiyar kare ।
सिंचाई :--
आम तौर पर वर्षा कालीन फसल कि सिंचाई करने कि आवश्यकता नहीं पड़ती है यदि अधिक समय तक वर्षा न हो तो आवश्यकता अनुसार सिंचाई कानी चाहिएshushk mausham me panchawe din sinchai karani chahiye दक्षिण भारत मेंchichinde ki purn fasal awadhi me kai sinchaiyo ki awashyakata padati hai jinhe 15-20 din ke antar par diya jata hai .
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(पोस्ट नं 2)
रोजगार के वैकल्पिक अवसरों की कमी नही ...
श्री मान् जिला नियोजन अधिकारी,
……….. जिला, ..................... राज्य (भारत)
विषय: - देश के प्रत्येक तहसील मुख्यालय पर Mentoring Services के लिए प्रतिभाशाली युवा साथियों की आवश्यकता है।
महोदय,
नमस्कार। सादर निवेदन है कि आर्थिक बुद्धिमता के अभाव में देश भर का युवावर्ग आज बेरोजगारी और अकर्मण्यता के भीषण दौर से गुजर रहा है। कहीं एक रोजगार विज्ञप्ति निकलती है तो आवेदकों की तादाद देखकर समझदार प्रशासक सहज ही भविष्य के खतरनाक दौर का अनुमान लगा सकता है।
आज जब कि –
· विज्ञान व तकनीक के विकास के द्वारा हजारों हाथ का काम मशीनें करने लग गई हो और दिमाग का काम कम्प्यूटर करने लगे हों तो प्रत्येक नियोजक व्यक्ति के स्थान पर मशीन अथवा कम्प्यूटर का ही चुनाव करेगा।
· लगभग 50 करोड़ युवा आबादी काम के लिए कतार में है पर संगठित क्षेत्र की सरकारी व गैर सरकारी नौकरियाँ मात्र दो करोड़ ही है। शेष युवा के लिए कहीं कोई प्रभावी कार्यक्रम दिखाई नही दे रहा। प्रत्येक हाथ में बुलडोजर या कम्प्यूटर दिया जाना समझदारी नही है।
· कोई समय था जब अधिक लोगों के काम करने और अधिक समय तक काम के अभ्यास से उत्पादन की मात्रा व गुणवत्ता दोनों बढती थी पर अब मशीनें व कम्प्यूटर हटा कर हाथों को काम देने की जिद की जाती है तो उत्पादन व गुणवत्ता दोनों में ही गिरावट आ जाएगी। जब कि बटन दबाते ही पलक झपकते ही सैंकड़ों आदमियों का काम एक मशीन कर लेती हो।
· दुनिया के समस्त प्राकृतिक संसाधनों पर पैसे की छाप पड़ चुकी है, आज पानी और हवा भी बिना पैसे मिलना सम्भव नही है। जब कि कोई समय था जब दूध घी बेचना पाप समझा जाता था, आपसी सहयोग से गाँव के नये परिवार के लिए मुफ्त मकान तक बन जाया करते थे। आज कोई सोचे कि मैं सन्यास ले कर अकेला जीवन यापन कर लूँगा तो जंगल में पेट भरने की कोशिश पर फोरेस्ट ऑफिसर उसे वन्य सम्पदा को नुकसान पहुँचाने के आरोप में घेर लेगा।
· भूखमरी के कारण जहाँ अपराधों व आत्महत्याओं का दौर लगातार बढ़ रहा हो।
· अधिकांश सरकारी कर्मचारी व अधिकारी भी अपने ही परिवार के पचासों युवाओं को यहाँ तक कि अपने ही बच्चों को इच्छा होते हुए भी किसी प्रकार का सहयोग करने में असमर्थ हैं।
· लगता है जैसे पूर्ण रोजगार की माँग करना और वचन देना राष्ट्रद्रोह घोषित कर दिया जाएगा, क्यों कि इस मांग की पूर्ति तब ही सम्भव है जब मशीन और कम्प्यूटर हटा कर आदमी को काम दिया जा सके। ऐसा करने पर हमारा देश संकट में पड़ जाएगा, क्यों कि उत्पादन की गिरावट के कारण हम घरेलू माँग की पूर्ति भी नही सकेंगे और गुणवत्ता में गिरावट आएगी तो अंतर्राष्ट्रीय साख पर असर पड़ेगा। और यह कृत्य राष्ट्रघात नही तो और क्या कहा जाएगा?
तो सहज ही प्रश्न उठते हैं कि जीविका के वैकल्पिक अवसर क्या हो? और कैसे हो?
हमारा संगठन देश भर में युवा वर्ग के लिए इस आवश्यकता का अनुभव करता है कि –
· जीविकोपार्जन की परम्परागत प्रणाली में आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है।
· युवावर्ग में भविष्य मुखी आर्थिक बुद्धिमता का विकास किया जाना अत्यंत आवश्यक है अन्यथा आर्थिक विषमता के कारण हमारा देश भीषण आंतरिक कलह का शिकार हो सकता है।
· आर्थिक बुद्धिमता के विकास के अनौपचारिक शैक्षिक कार्यक्रमों की अत्यंत आवश्यकता है क्यों कि औपचारिक शैक्षिक गतिविधियों में परिवर्तन की दर अत्यंत धीमी होती है।
· शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्ववित्तपोषित समानांतर पूरक व्यवस्था की आवश्यकता है जो समाज के युवा वर्ग द्वारा स्वयं संचालित हो।
हमारा संगठन उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रख कर कुछ ऐसे कार्यक्रमों का विकास कर रहा है जिससे कि तहसील मुख्यालय स्तर तक कुछ (प्रत्येक तहसील में पाँच/दस) प्रतिभाशाली युवा साथियों को स्व रोजगार का अवसर मिल सके। केवल सही दिशा में सामुहिक चिंतन भी आरम्भ हो जाए तो खर्च किए गए संसाधनों व प्रयासों से परिणाम मिलने आरम्भ हो जाते हैं।
इस जिले में आपके कार्यालय के माध्यम से हमें जिला स्तर पर लगभग 20 चुने हुए प्रतिभाशाली युवा साथियों की आवश्यकता है जो अपने जीवन में कुछ नया करना चाहते हों। इन्हें हमारे केन्द्र (राजस्थान में चूरू) में प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा करना होगा। हमारे सम्पूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रम से सफलता पूर्वक गुजर कर जो युवा साथी अपने यहाँ तहसील स्तर पर केन्द्र का गठन कर लेंगे वे न केवल अपना जीविकोपार्जन करेंगे बल्कि अन्य युवा साथियों को भी मार्ग दर्शन कर सकेंगे।
इस पत्र के साथ में संलग्न फोल्डर (राजस्थान में रोजगार अधिकारियों को डाक से भेजे गये हैं) से भी हमारे कार्यक्रम की कुछ झलक देखने को मिलेगी, फोल्डर में वर्णित तथ्य जिले भर के लिए ही नही बल्कि पूरे देश के युवावर्ग के लिए विचारणीय विषय है।
अपेक्षित सहयोग की कामना के साथ –
भवदीय
सुरेश कुमार शर्मा
केन्द्रीय संयोजक (युवा परामर्श)
ई – 144, अग्रसेन नगर,
चूरू 331001
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सही कहा आपने. पिछले कुछ दिनों से आरोप-प्रत्यारोप करने की प्रवृत्ति कुछ अधिक ही बढ़ गई है और यह सब अपनी पोस्ट की टी.आर.पी. बढ़ाने के उद्देश्य से हो रहा है. फिर भी कुछ लोग अपने सामाजिक सरोकारों, अपनी रचनात्मकता और साहित्य साधना के चलते भी ब्लॉगिंग कर रहे हैं. बहुत से ऐसे ब्लॉग हैं, जहाँ मुद्दों की बातें होती हैं. ज़रूरत उन्हें आगे लाने की, प्रोत्साहन देने की है, इस क्षेत्र में आपकी ये चर्चा एक सार्थक पहल है. आपका आभार ऐसे चिट्ठों से परिचय करवाने के लिये.
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंis baar ki chitthacharcha to badi zordar ki hai....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं"थोड़ा सा ही सही, हिन्दी ब्लॉगिंग में सार्थकता की झलक दिखती तो है?"
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने किन्तु इन सार्थक पोस्टों को कितना प्रोत्साहन मिलता है?
अधिकतर लोगों की रुचि तो सिर्फ धर्म-अधर्म, तू-तू मैं-मैं और आप-हम हम-आप वाले पोस्टों को पढ़ने में ही दिखाई देती है।
भारत फूहड़ों का देश है जो तू-तू मैं-मैं में ही उलझे रहते हैं. इस विडंबना पर भी कुच्छ अच्च्चे प्रयास किए जेया रहे हैं किंतु उनकी कोई कद्र नहीं की जा रही है - इस 'चिट्ठा चर्चा' पर भी - साक्षी प्रस्तुत हैं -
जवाब देंहटाएंhttp://mahaamaanav.blogspot.com
http://baarat-bhavisya-chintan.blogspot.com
बढिया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंघर मे बरतन आपस मे टकराते रहते हैं..ऐसी रसोई मे ना घुसे या ध्यान से घुसे। जरूरत है एक ऐसे रसोईये की जो इन बरतनों को सही जगह रख सके....और फालतू के बरतन इस्तमाल ना किए जाए।एक ऐसी सोच की।सभी को अपनी अपनी रसोई संभाल लेनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ श्रीमान,
ट्राँसलिटेरेशन से तकरार तक के प्रथम दर्शन यहीं होते हैं ।
ब्लॉगिंग बच्चों के भटकन पर एक जाँच समिति गठित की जानी चाहिये ।
विकृत ब्लॉगिंग-सँस्कार पर शोध की आवश्यकता है ।
सार्थक पढना होगा तो व्यक्ति किताब खरीद कर पढेगा ना की मुफ़त का ब्लाग . विवादास्पद लेखो को पढने का ठिकाना है यह ब्लाग . यह सच ही लगता है मुझे . और समय समय पर मै इसका प्र्योग करता रहता हू
जवाब देंहटाएंजो अनछुआ सा रह गया था, आप आये राम बनकर और इन आलेख रुपी अहिल्याओं को भी तार गए.
जवाब देंहटाएंचिचिंडा वाले ब्लॉग की जानकारी अच्छी लगी.
bacha rah jayega sirf sarthak lekhan hi, tu-tu, mai-mai wali post ya blog lehan vakti taur par so called hits ya pasand-napasand pa sakta hai lekin saarvkalik to sarthak lekhan hi hoga.
जवाब देंहटाएंइन सब की जरूरत बहुत है। लेकिन उन क्षेत्रों के लोग इधर आएँ तो काम बन सकता है।
जवाब देंहटाएंआजकल हिन्दी ब्लागजगत पूरी तरह से चन्द मायावी राहूओं से ग्रसित है...जिसके निवारणार्थ सामूहिक अनुष्ठान आवश्यक है...अन्यथा बहुत जल्द ये हिन्दी से "चिन्दी ब्लागजगत" बनता दिखाई देगा :-)
जवाब देंहटाएंहमारे जैसे कुछ बुरे लोगों की बजह से भारत को वुरा कहना वरी बात है आपकी सादगी की कदर करते हुए हम और कुछ न कहेंगे। पर बगवान के लिए कुच भी कहिय पर अपने देश को बुरा न कहिय क्योंकि ऐसा करने से देश के शत्रुओं को गाली निकालने का मौका मिलता है।
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयास है बस थोडी समझदारी की आवश्यकता है।बाकी परमजीत जी ने भी सही कहा है………………सबको अपने अपने कर्म मे लगे रहना चाहिये ।
जवाब देंहटाएंmujhhe to lagta hai ki achhe blog kii chrcha ke sthan par too-too, main-main kii charcha karne men is blog ko jyada maja aata hai..!
जवाब देंहटाएंपता नहीं रवि जी कि हिंदी ब्लोग्गिंग में सिर्फ़ यही हो रहा है या और भी कुछ मगर इतना जरूर है कि उभर कर सामने यही आता है हर बार बार बार ।
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
ऊपर के सभी पाठकों की प्रतिक्रियाओँ से सहमत..
जवाब देंहटाएंऔर मै अपूर्व से सहमत..
जवाब देंहटाएं