ये एक ऐसे चैनल की कहानी है जो 'आपको रखे आगे'के दावे के साथ हमारे बीच पैर पसार रहा है। जाहिर है इस 'आप' में स्त्रियां भी शामिल है। अब गंभीर सवाल है कि जिस आगे रखने के काम में लोग लगे हैं,वहां काम करनेवाली स्त्रियां की धकेली जा रही हों,इतनी गुलाम है कि वो अपने साथ हुई ज्यादती की बात तक नहीं कर सकती, अगर करती है तो उसे धमकियां झेलनी पड़ती है,नौकरी से हाथ धोने पड़ते हैं। दुनियाभर के लोगों की कहानी सुनाने और बतानेवाले लोगों मेँ ठीठपना इस हद तक है कि वो इसें या तो नजरअंदाज कर जाते हैं या फिर पूरे मसले को दफनाने की कोशिश करते हैं,ऐसे में आप कैसे और किस तरह से आगे होने के दावे कर सकते हैं? आपको लगता है कि ये लाइनें बिजनेस और विज्ञापन की पंचलाइन से कुछ आगे जाकर असर करेगी?
उधर अविनाश अपने मोहल्ले में वर्धा यज्ञ करवा रहे हैं। वे वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय को लगातार माइक्रोस्कोप से देखे जा रहे हैं। इस सिलसिले वे वहां आते-जाते पर भी निगाह रखे हैं। इसी महीन कैमरे की जद में आये हैं राजकिशोरजी। बस फ़िर क्या! अविनाश ने उनकी जाति, पद लालसा और धमकियाना अन्दाज जैसी बातों को बल-भर देख डाला। अविनाश को दी गयी शायद बुजुर्गाना सलाह-
में से आखिरी बात को धमकी की तौर पर छांट कर अविनाश ने अपने मोहल्ला लाइव में पेश कर दिया। देखिये!अविनाश जी, आपकी प्रतिभा और श्रम शक्ति का मैं कायल हूं। आपसे मुझे प्रेम और सद्भाव है। मैं चाहता हूं कि आप इसका बेहतर उपयोग करें। इससे आपका और दुनिया का भला होगा। अभी आप जो कुछ कर रहे हैं, उससे तो आप न घर के रहेंगे न घाट के।
उधर अफ़लातूनजी मुख्यमंत्री बिहार के ब्लॉग में दम किये पड़े हैं। मुख्यमंत्रीजी अपनी पहली पोस्ट अंग्रेजी में लिखे इसलिये अफ़लातूनजी उनसे नाराज हैं! इसके पहले एक गड़बड़ी नितीशजी ये कर दिहिन कि वो अफ़लातूनजी की टिप्पणी को रोक लिहिन। बस अफ़लातून जी ने एक ठो पोस्ट धांस दी-सेन्सरशिप में यकीन रखने वालों का माध्यम ब्लॉग नहीं है,नीतीश कुमार! अरे अफ़लू भैया तनिक गम खाओ! मुख्यमंत्रीजी अभी लिखना शुरू किये हैं। पहले स्वागत सत्कार करो एहिके बाद हल्ला-गुल्ला करा जाये।
मुख्यमंत्री जी ने आपकी टिप्पणी रोक ली तो भैया आप हमसे एक ठो पहेली में सवाल पूछ लिहौ-बूझौ तो जाने कि कौन सी टिप्पणी आप किये हुइहौ। गजब है भैया।
अरे भाई नितीश कुमार को अगर कोई बात नहीं जमी तो नहीं छापे होंगे उसे अपने ब्लॉग पर छाप देव और एक ठो पोस्ट निकाल लेव। अब ये क्या कि बेचारे नवोदित ब्लॉगर को हड़का रहे हो कि अंग्रेजी में काहे लिखते हैं! लिख रहे हैं ई का कम है। दूसरी पोस्ट से हिन्दी में आ भी तो गये। उसके लिये बधाई दिये क्या?
अफ़लातूनजी ने अपनी टिप्पणी को बूझने के लिये जो तीन विकल्प दिये हैं वे ये हैं:
१.हिन्दी के प्रयोग से देशवासी आपको अपने अधिक निकट व आत्मीय पाएँगे 20%
२.नरेन्द्र मोदीजी के प्रति आपका सार्वजनिक व्यवहार जरूर आहत करने वाला है. 20%
३.पहली पोस्ट अंग्रेजी में लिखना शर्मनाक था। हिन्दी लिखने में न शर्माइए । 60%
अफ़लातून जी कौन सी टिप्पणी नितीशकुमारजी ने दबा ली यह तो अब अफ़लातूनजी ही कन्फ़र्म करेंगे। वैसे 60% लोगों ने यह मत दिया है कि पहली पोस्ट अंग्रेजी में लिखना शर्मनाक था। हिन्दी लिखने में न शर्माइए । ही वह टिप्पणी होगी जो नितीशकुमार जी के ब्लॉग पर प्रकाशित नहीं हुई। वैसे भी नरेन्द्र मोदी जी के जिक्र वाली टिप्पणी का उस पहली पोस्ट से कोई संबंध नहीं है। अगर यह शर्मनाक वाली टिप्पणी ही है अफ़लातूनजी की तो मेरी समझ में यह जबरियन उनको अर्दभ में लेने की कोशिश है और फ़िर यह साबित करना कि नितीश कुमार अपनी आलोचना बर्दास्त नहीं कर पाते। हिन्दी के प्रयोग से देशवासी आपको अपने अधिक निकट व आत्मीय पाएँगे! जैसी टिप्पणियां बहुत लोगों ने की हैं और वे प्रकाशित भी हुई हैं। अगर यह प्रकाशित नही हुई तो किसी अनजान चूक की वजह से हुई होगी।
अब फ़िर बात इस पर कि अगर अफ़लातूनजी ने यह लिखा -पहली पोस्ट अंग्रेजी में लिखना शर्मनाक था। हिन्दी लिखने में न शर्माइए ।और उसे नितीश कुमारजी के ब्लॉग पर प्रकाशित नहीं किया गया तो मेरी समझ में ऐसा होना संभव है। नितीशकुमार जी का ब्लॉग उनका जो भी व्यक्ति संभालता होगा वह इस तरह की टिप्पणी जिसमें नितीश कुमार के लिये शर्मनाक लिखा हो प्रकाशित करने की हिम्मत नहीं करेगा। इसे नितीशकुमार जी ही कर सकते होंगे। और मुख्यमंत्री से यह उम्मीद रखना कि वे अपनी दुनियादारी और राजनीति छोड़कर आपकी टिप्पणी प्रकाशित करें देख-देखकर उनके साथ अन्याय होगा।
मेरी समझ में अगर अफ़लातूनजी ने यह टिप्पणी की तो जबरियन भाव मारने के लिये की। बेहतर शब्द चयन किया जा सकता था।
एक मुख्यमंत्री तो अगर जनता से संवाद के लिये अंग्रेजी में बात शुरू करता और अगली पोस्ट में ही हिन्दी में आ जाता है तो उसकी तारीफ़ की जानी चाहिये न कि यह बवाल खड़ा किया जाना कि उन्होंने आपकी टिप्पणी इसलिये रोक ली क्योंकि आपने उनके अंग्रेजी में लिखने को शर्मनाक बताया था।
अफ़लातूनजी देखें कि जब उन्होंने ब्लॉग लिखना शुरू किया तो शुरुआती पोस्टें कौन भाषा में लिखते थे। हिन्दी में लिखना शुरू करने के पहले वे भी तो अंग्रेजी में ही लिखते थे। इत्ता काहे गरमाते हैं मुख्यमंत्रीजी पर भाई! नये ब्लॉगर हैं वो! सीखते-सीखते सीखेंगे।
इसी समय मुझे परसाईजी के लेख का शीर्षक याद आ रहा है जो उन्होंने समाजवादियों के विरोध करने के अन्दाज के बारे में लिखा था- वॉक आउट, स्लीप आउट, ईट आउट!
शोभना चौधरी ने एक अधूरी कविता लिखी:
कभी खुद से मुलाकात करनी हो तो तन्हाई में डूब कर देखो
कभी खुद को सुकून देना हो तो खुद की परछाई से लड़कर देखो
कभी खुद को ऊंचाई पर पाना हो तो सपनों को बुनना सीखो
कभी खुशियों को दामन में समेटना हो तो दुखों से लड़ना सीखो
यहां टिपियाने पहुंचे गिरिजेश राव ने लिखा:
कमाल है मैं भी 4 पंक्तियों पर अटकने के बाद उन्हें पोस्ट कर यहाँ आया हूँ !अब गिरिजेश राव की भी अधूरी पंक्तियां देखी जायें:कौन कहता है
आसमाँ में नहीं होते सुराख
ग़ौर से देखिए हमने भी कुछ बनाए हैं ।
नज़र भटकती नहीं किनारों की महफिल पर
ज़ुनूँ का शौक तो मझधार की बलाए हैं।
अपनी कविता के बारे में खुलासा भी कर दिया गिरिजेश ने:
स्पष्ट है कि पहली पंक्ति दुष्यंत से प्रेरित है। पहली दो पंक्तियों का संशोधन अमरेन्द्र जी ने किया है। अंतिम दो पंक्तियों को आचार्य जी ने पास कर दिया :) ;)
जाने क्यों न तो इनके पहले कुछ रचा जा रहा और न बाद में। जैसा है प्रस्तुत है।
अब ई अमरेन्द्र कविताई ही सुधारते रहेंगे तो इम्तहान की तैयारी को करी भैया?
नये ब्लॉगर
- राजे शा का ब्लॉग चित्रगान है। अपने बारे में लिखते हुये बताते हैं-
एक आम आदमी के पास होता क्या है उसके बारे में बताने के लिए। वो रोज 8 से 10 घंटे किसी नौकरीधंधे में बिताता है। उसकी इच्छाएं बचपन की तरह ही साथ्ा छोड़ चुकी होती हैं।
आगे की बात उनके ब्लॉग पर ही देखिये। उनका खुद का फोटो भी है भाई! - अभिषेकगर्ग अपनी पोस्ट में लिखते हैं-
में तो बस इतनी रेकुएस्ट कर रहा हूँ की कृपया अपने माँ- बाप को भरपूर सम्मान दे क्योंकि उन्ही के आशिर्बाद और मेहनत से आप इस मुकाम पर पहुंचे हैं.
- रवीन्द्र गोयल परी कथा में बताते हैं:विनम्रता और मधु स्वभाव से
जिसने दिलों को जीता है
प्यार से सभी घर वाले
कहते उसे स्मिता हैं। - तंत्र मंत्र के ब्लॉग वैसे तो हम नहीं बांचते लेकिन जब इस वाले तंत्र-मंत्र वाले ब्लॉग में ये देखा तो लगा ये बहुतों के काम आ सकता है:
आज एक महिला से मैरे मोबाइल पर बात हुई वह बहुत दुखी थी, कारण आज कल उसके पतिदेव उन पर एंव बच्चों पर कम ध्यान देते है और नेट पर ज्यादा से ज्यादा समय दे रहे है ।
- मार्च से लिखना शुरू करने वाले अरविन्द माधुरी गुप्ता से बहुत खफ़ा हैं और कहते हैं:
दरअसल यह देश से तो गद्दारी है ही, उससे भी ज्यादा खुद से गद्दारी है। देश तो आपको देर-सवेर भूल जायेगा, या माफ़ कर देगा लेकिन खुद से कहा तक भाग पाएंगी?
- अपनी दसवीं पोस्ट में प्रियंका अपने मन के भाव व्यक्त करती हैं:
में आज गलत सही के फेर में नहीं पड़ना छह रही.... सिर्फ अच्छा बुरा मुझे खटक रहा है। खटकने के लिए कारन तो नहीं है॥ क्यूंकि में भी बंकि लोगो की तरह ही हु... मुझे भी बाकियों की तरह इस पर चर्चा कर इससे छोड़ देना चाहिए .... पर में ऐसा नहीं कर प् रही॥
- कैलाश वर्मा की तीन सालों में चौथी पोस्ट है यह
:वो खिल खिला रहा हैं
बातें किसी तो वो कर रहा हैं
वो देखो उस छाव में
किसी से वो कुछ जिकर कर रहा हैं - दिल्ली में रहने वाले केदारनाथ’कादर’ की पोस्ट में देखिये दर्द के कित्ते नमूने हैं:
दर्द क्या सिर्फ सहने के लिए होता है
या दर्द होता है इसलिए हम सहते हैं
दर्द को कोई दर्दवान ही समझता है
दर्द अपनी अपनी सोच पर निर्भर है
- शेरो-शायरी में देखिये जलवे शेर और शायरी के बजरिये देव!
तेरा ही ज़ोर रहे मेरे दस्तो बाज़ू में,
तेरी ही क़ुव्वते परवाज़ बालों पर में रहे।
मुझे दिखा दे तू शाहराए इश्क़ ऐ दोस्त,
कि सुबहो शाम मेरा हर कदम सफ़र में रहे। - जान्ह्ववी भट्टाचार्य बताती हैं जिन्दगी की गणित के बारे मेंकुछ गुज़रे हुए "पल" ऐसे होते हैं
जो जीए जाते हैं हर "पल"
जिनकी महक "याद" बनकर
ता-उम्र महकाती है
हर "सांस" में
जीया हुआ हर "पल"
फिर क्या ज़िन्दगी में
"आज" और "कल"...... - आर.रेनुकुमार अपने को समय के हाथ में अदना सा खिलौना बताते हैं। गीत अभी जिन्दा हैं उनके ब्लॉग का नाम है। रवीन्द्र नाथ जी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुये वे पेश करते हैं:
कंटकों के पथ मिले , चलता रहा
भीड़ का एकांत भी छलता रहा
मैं दिया-सा रात भर जलता रहा
टिमटिमाता था अंधेरे में अटल विश्वास
एक पल तो बैठने दो आज अपने पास। - हिमांशु पन्त की सुनिये:
.लो जी चिट्ठाजगत का एक और चिट्ठा.. भीड़ मे एक और अटपटा सा नाम घूमता चश्मा. हाँ जी बिलकुल अपने चश्मे के भीतर से जो दुनिया देखता चलूँगा या देखा है हाल फिलहाल तक उसका कच्चा चिट्ठा और मन के उदगार निकालने की एक नयी कोशिश करने को इस चिट्ठे को अवतरित कर दिया है. सच बोलूँ तो नक़ल ही की है बाकी चिट्ठों की. लेख लिखता रहता हूँ पर पुराने ब्लॉग मे कविता भी ग़जल भी और लेख भी सब कुछ लिख डाल रहा था तो खुद भी खिचड़ी लगने लग गयी थी. अपने 'अपूर्ण' दोस्त को देखा की एक नया ब्लॉग बना दिया कुछ इधर उधर की लिखने को तो बस मुझे भी हो गयी खुजली और बना डाला ये चिट्ठा - यसोदा कुमावत का कहना है शबनमी शायरी की पहली पोस्ट में:
एक मुलाक़ात करो हमें दोस्त समझकर |
हम निभाएंगे दोस्ती अपना समझकर ||
मेरी दोस्ती पर एतबार मत करना |
हम दोस्ती भी करते हे प्यार समझकर || - रतन चंद 'रत्नेश'जी का ब्लॉग अभी बन रहा है।
मेरी पसंद
गीत !
हम गाते नहीं
तो कौन गाता?
ये पटरियां
ये धुआँ
उस पर अंधरे रास्ते
तुम चले आओ यहाँ
हम हैं तुम्हारे वास्ते।
गीत !
हम आते नहीं तो
कौन आता?
छीनकर सब ले चले
हमको
हमारे शहर से
पर कहाँ सम्भव
कि बह ले
नीर
बचकर लहर से।
गीत!
हम लाते नहीं
तो कौन लाता?
प्यार ही छूटा नहीं
घर-बार भी
त्यौहार भी
और शायद छूट जाये
प्राण का आधार भी
गीत!
हम पाते नहीं
तो कौन पाता?
विनोद श्रीवास्तव
और अंत में
१.मसिजीवी ने अपनी चर्चा में रश्मि रविजा की एक पोस्ट शामिल की थी!
इस पर रश्मिजी की टिप्पणी थी:
हम्म...आपने ब्लोगवाणी खोला,चर्चा के लिए, तभी हमारे पोस्ट तक भी पहुँच गए...शुक्रिया.
वैसे चिट्ठाचर्चा की परंपरा देखी है कि कुछ चयनित ब्लोग्स की हर पोस्ट शामिल की जाती हैं...और बहुत ख़ुशी होती है जान कि हमारे ब्लॉगजगत में इतना अच्छा लिखने वाले हैं कि उनकी हर पोस्ट recommend की जाती है,पढने को (चर्चा का अर्थ ,मेरी समझ से recommend करना ही होता है,) यह जान भी सुकून मिला कि हमारे जैसे अति साधारण लिखने वाले भी दो-तीन महीने में दस-बीस पोस्ट के बाद कुछ ऐसा लिख जाते हैं कि उसे चर्चा लायक समझा जाता है.
वैसे मैं यह निवेदन करने आई थी कि मैं इस चर्चा के स्तर के अनुकूल नहीं लिखती ...अतः मेरी पोस्ट कृपया चर्चा में शामिल ना करें. पर एक तो आप अक्सर चर्चा नहीं करते और ब्लोगवाणी में पोस्ट देखी थी आपने, इसलिए कुछ कहना बेमानी है...फिर भी दूसरे चर्चाकारों से यही अनुरोध है कि मेरी पोस्ट में कुछ आपत्तिजनक लगे, या किसी बात का विरोध या आलोचना करनी हो तभी मेरी पोस्ट शामिल करें...अन्यथा नहीं. मेरे जैसे अति-साधारण लिखने वाले का भी साधारण सा पाठकवर्ग है. और मैं उसी से संतुष्ट हूँ.
जितना मुझे समझ में आया उससे ऐसा लगा कि रश्मिजी को इस बात की नाराजगी है कि कुछ लोगों की पोस्टों की चर्चा अक्सर होती है और उनकी पोस्टों की चर्चा दो-तीन माह में एकाध बार ही हो पाती है। इसीलिये उन्होंने यह अनुरोध/आग्रह किया कि उनकी चर्चा यहां न की जाये।
अब मैं और मेरे साथी क्या करते हैं यह तो आगे आने वाला समय बतायेगा। लेकिन चिट्ठाचर्चा में चिट्ठों की चर्चा के तरीके के बारे में मैं बहुत विस्तार से अपनी पोस्ट चिट्ठाचर्चा के बहाने कुछ और बातें में अपनी बात कह चुका हूं:
कई बार यह भी सोचते हैं कि इस पोस्ट की चर्चा करेंगे ! ऐसे करेंगे ,वैसे करेंगे। लेकिन पोस्ट बटन दबने के बाद दिखता है अल्लेव वो हमारी दिलरुबा पोस्ट तो नदारद है। उसकी चर्चाइच नहीं हो पायी। शकुन्तला की अंगूंठी की तरह उसे समय मछली निगल गयी। फ़िर सोचते हैं कि दुबारा करेंगे/तिबारा करेंगे तो उसे शामिल कर लेंगे लेकिन ऐसा अक्सर नहीं होता। सब मामला उधारी पर चला जाता है। लेकिन कभी-कभी सरकी पोस्टें मेले में बिछड़े जुड़वां भाइयों से दिख जाती हैं तो उनका जिक्र धक्काड़े से कर देते हैं।
यह तो हमारी बात है। हमारे अलावा हमारे साथियों की पसन्द/नापन्द है। किसी को एक तरह की पोस्ट पसंद हैं किसी को दूसरी तरह की। उसके हिसाब से चर्चा करते हैं साथी लोग। अब इसके बावजूद किसी के चिट्ठे की चर्चा चिट्ठाचर्चा में नहीं हो पाती और कोई कहता है कि चर्चा में पक्षपात होता है, मठाधीशी है तो यह कहने का उसका हक बनता है। उसका मौलिक अधिकार है– हरेक को अपनी समझ जाहिर करने का बुनियादी अधिकार है।
कभी-कभी यह भी होता है कि कोई पोस्ट चर्चा के तुरंत पहले पोस्ट होती है या फ़िर चर्चा के तुरंत बाद। वह शामिल नहीं हो पाती। अगले दिन तक वह इधर-उधर हो जाती है। वैसे भी हमारा यह कोई दावा भी नहीं है कि हम लोग सब चिट्ठों की चर्चा करेंगे। या सब बेहतरीन पोस्टों की चर्चा करेंगे। या ऐसा या वैसा। हम तो जैसा बनता है वैसा चर्चा करते रहने वाले घराने के चर्चाकार हैं। उत्कृष्टता या श्रेष्ठता का कोई दावा हम नहीं करते। हमे तो जो चिट्ठे दिख गये, जित्ते हमने पढ़ लिये उनकी चर्चा कर देते हैं। जितना खिड़की से दिखता है/बस उतना ही सावन मेरा है वाले सिद्धान्त के अनुसार जित्ते चिट्ठे बांच लिये उतने लिंक टांच दिये के नारे के हिसाब से चर्चा कर देते हैं। अब उसी में कोई चर्चा अच्छी या बहुत अच्छी निकल जाये तो उसका दोष हमें न दिया जाये।
रश्मिजी ने मेरी यह पोस्ट पढ़ी होती तो शायद उनको कुछ कम शिकायत होती और तब शायद चर्चा करने में होने वाली हम लोगों की समस्याओं को समझ सकतीं!
२. समय के साथ ब्लॉगजगत में लोगों की शिकायत बढ़ती जा रही है कि यहां अराजकता बढ़ती जा रही है। चिट्ठाचर्चा में भी कुछ मेहनती लोग अनामी/बेनामी/फ़र्जीनामी टिप्पणियां करते हैं। उनकी टिप्पणियां ऐसी होती हैं कि मिटानी पड़ती हैं। पिछले दिनों काफ़ी मिटाईं भी हम लोगों ने। लेकिन आज जब एक पुरानी टिप्पणी देखी :
हिंदी ब्लोगिंग के स्वयम्भू दरोगा बनने की अनधिकृत चेष्टा करते कुछ अनूपों और अतुलों के मुंह पर करारे तमाचे लगाते रहिये। लिखिये, और लिखिये। ब्लोगिंग किसी के बाप की बपौती या खाला का घर नही। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन् करने वाले इन तथाकथित बुजुर्ग ब्लोगरों को गुमान है कि वे जो करें या कहें ब्रह्मवाक्य है, खुद लिखते हैं “हम तो जबरिया लिखिबे, हमार कोई का करिहे”,और आपको रोकते हैं। और ई-स्वामी पहले खुद अश्लील भाषा लिखना बंद करें, फिर “लेंगे” वाली भाषा पर एतराज करें। “पर उपदेश कुशल बहुतेरे”।इस टिप्पणी को आज फ़िर से देखकर लगा कि हमारा ही हाजमा कुछ खराब हो चला है। तीन साल पहले की तमाचा मारने जैसी बात कहने वालों की टिप्पणियां अपनी पोस्ट में धरते थे और अब मरियल-मरियल टिप्पणियां मिटा देते हैं। हाजमा खराब हो गया है सच्ची।
फ़िलहाल इतना ही। आपका समय शुभ हो। सुबह देखियेगा गुरुकुल घराने की चर्चा।
पोस्टिंग विवरण: शाम साढ़े सात बजे से शुरु करके अभी रात साढ़े ग्यारह बजे पोस्टित। इतनी देर में भी केवल पांच-सात पोस्टों का जिक्र कर पाये। न जाने कित्ती कालजयी पोस्टें रह गयीं होंगी। इस बीच दो बार चाय पिये, एक बार खाना खाये, बच्चे को पढ़ाये (कल उसका टेस्ट है भाई) दो बार पांच-पांच मिनट के लिये लाइट जाने पर जोर से झल्लाये। अब पोस्ट को भेज रहे हैं आपके पास! जाये!
उम्दा चर्चा के लिए आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा... सब कुछ एक ही जगह मिल गया भाई... वाह वाह.
जवाब देंहटाएंसारी बातें एक तरफ...अनूप जी....
जवाब देंहटाएंआज तो हम सिर्फ आपको सलाम कहेंगे.......बस..!!
हाँ नहीं तो ...!!
रश्मिजी की बात से सबक लिया जा सकता है मगर हो तो और भी बहुत कुछ सकता है.....
जवाब देंहटाएंहमरी पोस्ट भी नहीं शामिल की जा रही है |
जवाब देंहटाएंहाय हाय !
अनूप जी ! ई बात कुछ ठीक नहीं !
(अंतिम बार हम्हिये चुप्पे टांक दिए रहन !)
वैसे अब तक हमरी कित्ती पोस्टन की चर्चा हुई है ...जानने की उत्कंठा पैदा हो गयी है ? :-)
@अरे अफ़लू भैया तनिक गम खाओ! मुख्यमंत्रीजी अभी लिखना शुरू किये हैं। पहले स्वागत सत्कार करो एहिके बाद हल्ला-गुल्ला करा जाये।
जवाब देंहटाएं--- आप ठीके कहे हैं। लोग काहे हम बिहारियों के पीछे पड़ गये हैं हमको अंगरेज़ियो आता है, बताना पड़ता है, कभी-कभी। बूझे कि नहीं?
और बाकी के चरचा के लिये आपको सलाम हमहूं करते हैं। बहुते नये लोग को सामिल किये हैं। और कुछ भरम था उसको भी दूर करने की कोसिस किए हैं। परवीन जी की बात से सहमत ...
जवाब देंहटाएंहमरी पोस्ट भी नहीं शामिल की जा रही है |
हाय हाय !
अनूप जी ! ई बात कुछ ठीक नहीं !
बेचारे नितीश बाबू..
जवाब देंहटाएंमेरा कमेन्ट चर्चा से सम्बंधित ना हो कर चर्चा के स्टाइल से सम्बंधित हैं । चर्चा मंच पर निरंतर ब्लॉगर कि तस्वीर डाली जा रही हैं ??? नेट एथिक्स कहती हैं कि किसी कि भी तस्वीर डालने से पहले उस से आज्ञा लीना जरुरी हैं । हम इन तस्वीरो को हटा कर भी चर्चा कर सकते हैं । तस्वीरो को किसी के निजी ब्लॉग से उठाना और उस कही और प्रयोग करना "लिंक " करने मे नहीं आता हैं । क्या इस पर कोई विचार किया जा सकता हैं । क्युकी ये चर्चा मंच सब से पूर्ण हैं अतः इसको नेट के नियमो के साथ चलना चाहिये । नैतिकता केवल सामाजिक प्रश्न ना रहे ऐसा मेरा आग्रह हैं । आशा हैं इस टिप्पणी को इस मंच को बेहतर बनाने के लिये लिया जायेगा और मुजेह ख़ुशी होगी अगर अलग से इस पर चर्चा हो सके ।
जवाब देंहटाएंरश्मि ने जो कहा कभी ना कभी वो बात हम सब ने इस मंच के लिये कही हैं इस से इस मंच के प्रति लोगो का स्नेह / आकर्षण दिखता हैं सो मंच को बेहतर बनाने के लिये आया हर कमेन्ट इस मंच के लिये जरुरी हैं । श्याद समय आ गया हैं कि दिन मे तीन लोग तीन समय पर तीन चर्चाये करे ??
हमरी पोस्ट भी नहीं शामिल की जा रही है |
जवाब देंहटाएंहाय हाय !
अनूप जी ! ई बात कुछ ठीक नहीं !
(हम तो नये ब्लॉगर हैं - वर्डप्रेस पर!)
"जितना खिड़की से दिखता है/बस उतना ही सावन मेरा है वाले सिद्धान्त के अनुसार जित्ते चिट्ठे बांच लिये उतने लिंक टांच दिये के नारे के हिसाब से चर्चा कर देते हैं। "
जवाब देंहटाएं"हमारे अलावा हमारे साथियों की पसन्द/नापन्द है। किसी को एक तरह की पोस्ट पसंद हैं किसी को दूसरी तरह की। उसके हिसाब से चर्चा करते हैं साथी लोग। "
बस, यह बात पहले पता होती फिर कैसी दुविधा और कैसी अपेक्षा?...दरअसल हर चर्चा मंच को इन पंक्तियों का उपयोग सूत्र वाक्य की तरह करना चाहिए ..फिर किसी को भी,कभी, कोई ग़लतफ़हमी नहीं होगी.
और अब तो आपके द्वारा दिया गया लिंक भी पढ़ लिया...उसमे कुछ नामों का भी जिक्र है...यह तो पहले भी पता था कि आपकी खिड़की के आसमान के कुछ परमानेंट सितारे हैं. प्रवीण जी,मनोज जी एवं ज्ञानदत्त जी....ये 'हाय हाय' क्यूँ ?? उस खिडकी से दिखते आसमान में और भी कई सितारे आते जाते रहते हैं. आपकी बारी भी आ जाएगी..आज नहीं तो कल. हाँ,मैंने इस आवागमन से खुद को अलग कर लिया है. मन के पाखी को वैसे भी सारा आसमान चाहिए..खिड़की के दायरे में बंद होना उसे कब पसंद?
वैसे खिड़की थोड़ी और बड़ी कर लें .... आजकल फ्रेंच विंडो का ज़माना भी है :)
'दस हज़ार चिट्ठे में क्या पढ़ें और क्या छोड़ें,'यह मैंने पहले भी कहा था. और मुझे जबाब मिला था, 'आपकी तो सारी पोस्ट पढता हूँ,टिप्पणी नहीं करता यह अलग बात है.' ('पसंद भी नहीं करता' शिष्टाचार के तकाज़े ने यह कहने नहीं दिया और मैं, मूढमति between the lines पढ़ नहीं सकी )
अनूप जी, आप एक अच्छे मित्र हैं .यह संवाद एक ब्लॉगर और चर्चाकार के बीच था. आशा है अन्यथा नहीं लेंगे .आपने अपना बहुमूल्य समय निकाल, मेरा लघु उपन्यास पढ़ा,पसंद भी किया (चर्चा लायक नहीं समझा ये दीगर है...हा हा....just joking....just joking ) और पोस्ट करने के कई तकनीकी सुझाव भी दिए. अनुगृहीत हूँ . शुभकामनाएं
क्या बात है ! नीतीश और हमारी धारा की राजनीति में एक शुरुआती सबक होता है - ’अच्छी-बुरी जैसी भी हो,चर्चा में बने रहो ’!
जवाब देंहटाएंदिसम्बर २००३ (मेरा ब्लॉगर प्रोफ़ाइल देखें)में राष्ट्रभाषा में कितने लोग चिट्ठेकारी करते थे? आप जैसे हिन्दी ब्लॉग के भागीरथियों ने जितना समय लगाया उतना लगा शुरु करने में।सप्रेम,
बहुत बढ़िया चर्चा रही।
जवाब देंहटाएंहमारी तरफ से हाय हाय नहीं।
घुघूती बासूती
जवाब देंहटाएंअह हय, अनूप दद्दा..
ई का मॉडरेशन के इत्ते इत्ते इत्ते, न जाने कित्ते लाभों को देखते हुये, अगर हमरे नीतिश बाबू ने उसमें से एगो हड़प लिया, त आपने चर्चाइच कड्डाली ? बकिया ई कोनो एक्स्कूज़ नहीं है के अफ़लातून पहिले अँग्रेज़ी में लिखते थे, त नीतिशौ उन्हीं की राह पर चलबे करें ! भला ई बताइये के, कोनो नेता अँग्रेज़ी बतिया के केतना भोट घसीटेगा ? अउर ऊ अपने भोटर के लिए लिख रहा है के अपनी जनता के लिये, यहू तय हो जाना चाहिये ! इसि बात को लेकर हम अमिताभ बच्चन को भी रगेदे रहे, मुला अब ऊ खिचड़ी लाइन पर आ गये ।
इस्टार न्यूज़ वाला रवीश बाबू का पोस्ट हमहूँ बाँचें रहे, टेप्पणी नहिं दिये । काहे कि ’ सुन्दरमुखी सर्वत्र जयेत ’ की प्रेरणा देने में बॉस लोग थोड़ा बहुत प्रैक्टीकल होईये जाते होंगे ।
चलिये ज्ञान जी का लिंक आप नहिं पकड़ते हैं, कोनो बात नहीं । वर्डप्रेस पर समानाँतर सरकार चलाय के नवा होने की दोहाई सब बूझते हैं, मुला प्रवीन मास्टर त भतीजा लगेगा.. उसको प्रोत्साहित करिये । प्रोत्साहन केतना बड़ा धर्म है, ई समीर बाबू अपको नहीं बताइन है का ?
रचना जी के टेप्पणी पर हम कुच्छौ नहीं बोलेंगे, बस एतना कि उनका ईहाँ एतराज अरसे बाद देखना सुखद है.. हम तो उनका चेहरो भुला गये थे, जो कि हम अब तक देखबे नहीं किये हैं । बकिया.. बिजली बहुतै परेसान कर रही है, सो जानियेगा !
जवाब देंहटाएंधत्त.. ऍप्रूवल तेरी की...
कृपया पहले सूचित कर दिया करें कि ऍप्रूवल लगा है ।
या तो इसको एक स्थायी फ़ीचर बना दें, सब्र रहेगा !
@रचनाजी, आपके सुझाव पर अमल करने की कोशिश करेंगे। अभी तो यह करेंगे कि जिसको भी एतराज होगा उसकी फोटो हटा देंगे। वैसे किसी के प्रोफ़ाइल पर अगर फोटो है तो उसको यहां दिखाने में मेरी समझ में एतराज तो नहीं होना चाहिये।
जवाब देंहटाएं@रश्मि रविजा,वहां जिन लोगों के नाम दिये हैं उनके बाद यह भी लिखा है-इनका-उनका न जाने किन-किन का लिखा मुझे पसंद आता है तो मैं उनकी चर्चा करता हूं। चर्चा करता हूं! बार-बार करता हूं। उस पोस्ट लिखने के बाद कम से कम आधा दर्जन ब्लॉगर और ऐसे जुड़े होंगे जिनको मैं जब समय मिलता है पढना रह्ता है।
इसके अलावा यह भी कि कई बार यह भी सोचते हैं कि इस पोस्ट की चर्चा करेंगे ! ऐसे करेंगे ,वैसे करेंगे। लेकिन पोस्ट बटन दबने के बाद दिखता है अल्लेव वो हमारी दिलरुबा पोस्ट तो नदारद है। उसकी चर्चाइच नहीं हो पायी। शकुन्तला की अंगूंठी की तरह उसे समय मछली निगल गयी। फ़िर सोचते हैं कि दुबारा करेंगे/तिबारा करेंगे तो उसे शामिल कर लेंगे लेकिन ऐसा अक्सर नहीं होता। सब मामला उधारी पर चला जाता है। लेकिन कभी-कभी सरकी पोस्टें मेले में बिछड़े जुड़वां भाइयों से दिख जाती हैं तो उनका जिक्र धक्काड़े से कर देते हैं। कल ही चर्चा करते समय सोचा था कि प्रशान्त की पोस्ट की चर्चा करेंगे और इसको उद्धरत करेंगे: किसी भी इंसान कि पहचान इससे नहीं होता है कि वह अपने से बड़े के साथ कैसा बर्ताव करता है, बल्कि इससे होता है कि वह अपने से छोटे से कैसा व्यवहार रखता है लेकिन जब पोस्ट करने के बाद देखा तो पता चला कि उसको तो हम भूल ही गये। ऐसा अक्सर होता है मेरे साथ। आपकी पोस्ट पढ़ते सब हैं। पसंद-नापसंद तो अलग बात है। हमें अपना ही लिखा सब कुछ पसंद नहीं आता तो दूसरे के बारे में क्या झूठ बोलें।
बाकी आपके एतराज को ’जस्ट जोक’ की ही तरह लिया गया। आप मजाक बड़ा अच्छा कर लेती हैं। बड़ा परिपक्व अंदाज है आपके जोक करने का। लघु उपन्यास की दो किस्तें अभी पढ़नी हैं। देखिये कभी उसका भी जिक्र क्या जाने कब हो जाये।
@अफ़लातूनजी, ’अच्छी-बुरी जैसी भी हो,चर्चा में बने रहो ’! ठीक है लेकिन ऐसा भी न हो कि चर्चा में बनें रहने की कोशिशें मसखरी का मजा भी न दें। समाजवादियों के विरोध करने के मसखरे अंदाज के चलते ही तो परसाईजी ने लिखा था लेख- वॉक आउट, स्लीप आउट, ईट आउट!
आपने जब भी ब्लॉग लिखना शुरू किया कुछ दिन अंग्रेजी में लिखा। हिन्दी में लिखे जाने की तरकीब पता चलते ही आप हिन्दी में आये। आपके हिन्दी में लिखने से पहले तमाम लोग हिन्दी में लिखने लगे थे। क्या किसी ने आपने कहा -आपका हिन्दी में न लिखना शर्मनाक है आपकी खुद के द्वारा टिप्पणी प्रकाशित करने के पहले ही नितीशजी हिन्दी में लिखने लगे थे। उसकी तारीफ़ करने की बजाय आप वीरता पूर्ण पहेलियां बुझा रहे हैं कि आपने नितीश कुमार के अंग्रेजी में ब्लॉग लेखन को शर्मनाक कहा!
@अनूप शुक्ल
जवाब देंहटाएं"लघु उपन्यास की दो किस्तें अभी पढ़नी हैं। देखिये कभी उसका भी जिक्र क्या जाने कब हो जाये। "
नो चांस...अनूप जी, अपना लिखा कुछ भी,इस चर्चा में शामिल ना करने का आग्रह, मैं पहले ही कर चुकी हूँ.
Dr Amar
जवाब देंहटाएंI do understand you dislike all others who raise their voice thru comments except yourself or else you would not continue to raise your voice in every comment against moderation on this blog . I think we are all with in our permissible limits to say what we want no just you . We all are equally learned and equally idiots
यह समग्र पसन्द आया। बने रहे और मिलाते रहें।
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जवाब देंहटाएंहम इत्तै तो लिक्खा, मादाम के..
" रचना जी के टेप्पणी पर हम कुच्छौ नहीं बोलेंगे, बस एतना कि उनका ईहाँ एतराज अरसे बाद देखना सुखद है.. हम तो उनका चेहरो भुला गये थे, जो कि हम अब तक देखबे नहीं किये हैं । बकिया.. बिजली बहुतै परेसान कर रही है, सो जानियेगा ! " अउर आपकै बताव के ज़रूरतै नहिं, हम तो खुदै मानित है के
I am an declared Idiot, with a volatile shrunken mind, equipped with inbuilt short circuit features.
तबहूँन मुला आपकी बहुते इज़्ज़त करित है, अउर हमेशा करत रहब ।
अउर आज्ञा करें, ठँडा लेहें कि गरम, चा-क़ाफ़ी या मिलावटी दूध के बनी लस्सी ?
मिलावटी दूध के बनी लस्सी
जवाब देंहटाएंएप्रूवल की टाँग ते, लटके अमर कुमार ।
जवाब देंहटाएंएप्रूवल को देखकर, इनको चढ़त बुखार ॥
इनको चढ़त बुखार, टिप्पणी का इंजेक्शन ।
एप्रूवल हट जाय, कह रहे कब से सज्जन ?
विवेक सिंह यों कहें, सुझावों का स्वागत हो ।
किन्तु जबरदस्ती मनवाने पर लानत हो ॥
नाईस...
जवाब देंहटाएं’नाईस’ इसलिये नही कि कुछ पढने को नही है.. इसलिये की सबकुछ पढने के बाद कुछ भी कहने को नही है...
आज थोड़ा अलग ही रंग है....
जवाब देंहटाएंकुछ बेहतर लिंक मिले..
इस बार का अंदाज़ जरा अलग है.....
जवाब देंहटाएंकुछ बेहतर लिंक मिले....आभार...
कुछ बेहतर लिंक मिले...आभार...
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