यूँ तो घनश्याम ठक्कर के मूल ग़ज़ल का मूल शेर ये है -
उडे आकाश में शायर, जमीं पे वो भी है इन्सां,
कभी 'घनश्याम' ये चेहरा, कभी 'ठक्कर' मेरा चेहरा
मगर इस उम्दा शेर की स्केलेबिलिटी भी बेहद उम्दा है. इस पोस्ट का शीर्षक भी इसी स्केलेबिलिटी का नतीजा है. कुछ प्रयोग आप भी करें!
घनश्याम ठक्कर बहुभाषी, बहुमुखी प्रतिभाशाली ब्लॉगर हैं. गुजराती, हिन्दी, अंग्रेज़ी में समान रूप से ब्लॉगिंग करते हैं. गीत-ग़ज़ल तो लिखते ही हैं, गायन वादन भी करते हैं. उनके ब्लॉग पर बहुत सा मसाला है. टहल आएँ (हालांकि नेविगेशन थोड़ा अजीब सा, इरीटेटिंग है), आपका इतवार का दिन यकीनन खुशगवार गुजरेगा. डाउनलोड के लिए भी बहुत सा मसाला है वहाँ. यहीं से मैंने ओएसिस ठक्कर के ब्लॉग में लिंकित हैलोवीन तथा मुड़ मुड़ के न देख रीमिक्स संगीत डाउनलोड कर सुना. इम्प्रेसिव संगीत!
उडे आकाश में शायर, जमीं पे वो भी है इन्सां,
जवाब देंहटाएंकभी 'घनश्याम' ये चेहरा, कभी 'ठक्कर' मेरा चेहरा
achi panktiyon ke sath soch ahe aap ne
http://kavyawani.blogspot.com/
shekhar kumawat
nice
जवाब देंहटाएंअच्छा जिक्र किया आपनें,धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसार्थक शब्दों के साथ अच्छी चर्चा, अभिनंदन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा..बधाई हो.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा.
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