जीन्स गुरू के एक पोस्ट पर आई टिप्पणी है यह. जीन्स गुरू ‘हर्ष’ ने अपने अंग्रेज़ी-हिन्दी दुभाषी चिट्ठे में कुछ शानदार पोस्ट हिन्दी में लिखे हैं. वैसे तो उन्होंने वहाँ कॉपीराइट का बड़ा सा बोर्ड तान रखा है, मगर हमने इसे अनदेखा करते हुए उनकी एक पूरी की पूरी पोस्ट उड़ा ली है – 96 घंटे और 4 बातें.
अरे! ये घटना तो हमारे साथ अभी ही घटी थी - कुछ दिन पहले. और, छठे-चौमासे यदा-कदा घटती रहती है. शायद आपके साथ भी कभी कभार घट जाती हो…
...96 घन्टे और 4 बातें...
... "डिसको".. "बार लाऊँज".. या लगभग रोज़ यूँ ही पीना..दोस्तों के साथ या अकेले...
आदत नहीं, कभी थी नहीं...इन दिनों काम भी नहीं, मतलब छ्ह सात दिन की छुट्टी
है...और अगर दोस्त हैं भी तो सब अपने अपने काम में...सो घर पर ही हूँ..जब से
वह गयी है तबसे लेकर अब तक....बैठे बैठे यूँही आठ दस नम्बर घूमा दीये, यह
मेरी फितरत में नहीं...
और उसे शहर से बाहर गये अब तक लगभग 96 घन्टे हो चुके होंगे...
घर में मै हूँ और नारायण दा... नारायण दा, घर संभालते हैं और घर
के लोगों को भी...यही समझ लें कि अब तो यह आलम है की अगर वह
नहीं, तो सब ठप....ऐसा कहा जा सकता है की " दहेज" मे मिले हैं !
उसके साथ आये थे जब उसने अपना शहर छोड़ा था, शादी के बाद...
लेकिन उसके परिवार में आये थे तब जब चौदह साल के थे..उसके
पिताजी कि शादी से भी पहले...जी हाँ , मैं तो यही केहता हूँ..हमारे
घर के "ए.के. हंगल " हैं ,नारायण दा.... जिनको पता नहीं..ए.के
हंगल साहब ने कुछ फ़िल्मों में ऐसे किरदार निभाये हैं जो अक्सर
घर में आयी नयी बहू से यह कहता है.." मुझे ना सीखाओ, नयी बहू
मैं इस घर में तब से हूँ जब तुम्हारा पती पैदा भी नहीं हुआ था..."
बहरहाल, मैं आदतन फिर अपनी बात से भटक गया...
तो मैं कह रहा था कि ’वो’ तो घर पर इन दिनों है नहीं तो बचे
मैं और नारायण दा..और मै दिन भर घर पर ही रहता हूँ..मैं
अपने कमरे में और नारायण दा अपने कमरे में...टी वी देखने
कि मुझे ज़रा सी भी आदत नहीं, किसी भी बहाने...नारायण दा
अपना कमरा बन्द रखते हैं, सो उन्के दरवाज़े पर ही उन्के
कमरे के टी वी कि आवाज़ का गला घोंट दिया जाता है...
पूरे घर में सन्नाटा रहता है...बस पंखे या ए.सी. का चलना
उस सन्नाटे की दीवार में थोडी़ बहुत दरार सी खोद देते हैं...
और इस बात को अब तक चार दिन हो चले हैं... किसी
से एक लब्स बात नहीं.... लगभग । मतलब बात होती
है , तो नारायण दा से... सुबह जब वह मेरे उठ्ते ही पूछते हैं..
"चाय बना दें साहब?"..मैं कहता हूँ " हाँ बना दीजीये"....फिर
कुछ एक-आध घन्टे बाद .."साहब नाश्ता बना दें?" और मैं
कहता हूँ "जी बना दीजीये"...दोपहर साढे़ बारह बजे.."साहब
एक कप चाय बना दें ? "... "हाँ बना दीजीये"... देढ बजे.."खाना
लगा दें साहब?"...अब तक मैं शायद चुप्पी से ऊब चुका होता हूँ
सो कुछ बात हो इसीलिये ज़्यादा शब्दों का इस्तेमाल करते हुए
जवाब देता हूँ.... "हाँ नारायण दा खाना लगा दीजीये"....फिर
श्याम छः बजे तक सन्नाटे पर सिर्फ़ पंखे का या ए.सी. का कब्ज़ा
रहता है....साढे पाँच बजे "हलचल" होती है..नारायण दा दोपहर की नींद
पूरी कर, कुछ देर टीवी देख ,दरवाज़ा खोल अपने कमरे से बाहर आते हैं
और .."चाय बना दें साहब ?".."हाँ बना दीजीये.."....फिर साढे़ सात के आसपास
, "एक कप चाय बना दें?".."जी, बना दीजीये.."... और रात के साढे नौ-दस बजे..
"खाना लगा दें साहब?"..और मेरा जवाब.." जी नारायण दा खाना लगा दीजीये"...
...चौथा दिन हो चला है...रोज़ बस इतना ही पूरे दिन में बोला जाता है...उनके
वह सात सवाल और मेरे यह सात जवाब... और मजाल है जो पूछे गये सवाल
और दिये गये जवाब के शब्द भी यहाँ से वहाँ हों...मेरे या उनके...।
उसके लौटने में अभी बहत्तर घन्टे और बाकी हैं.... उसका पाँव घर में
पड़ा नहीं कि इस सन्नाटे को एक बार फिर "घर" कि शक्ल मिल जायेगी....
...इंन्तज़ार है....
हर्ष...
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हर्ष की ये पोस्ट - ...लोल के बोल.. ’लोली’ ... भी अवश्य पढ़ें.
धन्यवाद एक नये ब्लॉग से परिचय के लिये
जवाब देंहटाएंउनका कॉपीराइट...और आपकी उठाईगिरी...
जवाब देंहटाएंफ़ायदा हमें हुआ...
हर्ष जी हिन्दी मे भी लिखते है और वाह क्या लिखते है..
जवाब देंहटाएंदिल खुश हो गया पढकर..
बाकी पोस्ट्स पढने उनके ब्लाग पर जा रहा हू... c yaa. :)
dhanyawad aap ko
जवाब देंहटाएंshekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/\
अच्छी पोस्ट ... अच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंshukriya parichay karaane ke liye, ja rahe hain ham bhi udhar hi....ab yaha ruk kar kya karenge
जवाब देंहटाएं;)
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जवाब देंहटाएंमेरे पास नारायण दा नहीं हैं वरना यही हाल मेरा भी...
जवाब देंहटाएंसहज अभिव्यक्ति.
वाह ये तो मेरी ही कहानी रही...कुछ इसी तरह का समय मैंने भी एक बार जिया :) पर पारिवारिक स्तर पर नहीं ...वह कहीं लंबा समय था
जवाब देंहटाएंपोस्ट पढ़ कर मज़ा आ गया. धन्यवाद रवि जी.
जवाब देंहटाएंएक अच्छे लेख से परिचय देने के लिए शुक्रिया ...
जवाब देंहटाएं..सच कहूँ तो यही ब्लोगिंग है .....
Its a really good discussion .......I like it .......
जवाब देंहटाएं..रवी...मेरे ही नाम पर ,मेरी बात को लोगों तक पहुँचाने को ’उठाना’ कहा तब तो ज़्यादती कहलायेगी..!..शुक्रीया अदा करना ही ठीक रहेगा..!..और अगर मेरे ब्लोग पर ऊपर लिखा "कॉपीराइट रिज़र्व्ड" , ’तने’ हुए होने का एहसास दिलाता है तो मुआफ़ी चाहता हूँ, यह तो भला हो उस एक व्यक्ती का कि उसने मेरी लिखी बात को ”उठा” अपने नाम कहीं ’चेप’ दि्या और मुझे ’वहम’ मे डाल दिया ! और तबसे मैं अपना लिखा ”दर्ज” करा लेता हूँ...
जवाब देंहटाएं..रवी..मेरी लिखी बात को मेरे ही नाम पर लोगों तक पहुँचाने को अगर ’उठाना ’ कहा तो ज़्यादती कहलायेगी!..शुक्रिया अदा करना ही ठीक रहेगा..और मेरे ब्लोग के ऊपर ’कॉपीराइट रिज़्र्व्ड’ अगर ’तने’ हुए होने का एहसास दिलाता है तो मुआफ़ी चहता हूँ..पर क्या करूँ,यह तो भला हो उस एक व्यक्ती का कि मेरा लिखा ऊठा कर कहीं और अपने नाम ’चेप’ दिया, और मुझे हमेशा के लिये ’वहम’ में डाल गया ! ;-)..तबसे अपना लिखा दर्ज करा लेता हूँ..
जवाब देंहटाएंदहेज में नारायण दा की बजाय नारायणी मिलती तो शायद ‘उसकी’ कमी नहीं खलती :)
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