पी डी कहते है.. आपके इस लेख ने मुझे इस ब्लॉग का फोलोवर बना लिया.. बहुत शानदार तरीके से लिखा गया है यह लेख..आपकी ही तरह मैं भी आशावान हूँ..
ब्लॉग पर चन्दन मनोज और बबली के हत्याकांड के आरोपियों को मिली सजा से समाज में छोटे स्तर पर ही सही आने वाले परिवर्तन की बात करते है.. जज सुश्री वाणी गोपाल शर्मा के फैसले का स्वागत करते हुए उनसे मिलने की इच्छा रखते है.. ये बात अनूठी रही.. क्योंकि इस फैसले के बारे में सुना तो मैंने भी था पर ये जानने की कोशिश नहीं की कि किस जज ने ऐसा फैसला दिया.. अच्छे लोगो को हम लोग कम ही जानते है..
चन्दन कहते है ..
मैंने तय किया है कि मैं इन सबसे मिलूंगा. चारो तरफ जिस अँधेरे की तारीफ़ में इस देश की मीडिया मारी जा रही है( पढ़े टाइम्स ऑफ़ इंडिया के आज और कल के अखबार; वो उन हत्यारों को नायक बनाने का कोई कोर कसार छोड़ना नहीं चाहती है, ढूंढ ढूंढ कर ऐसे ऐसे लोगो के साक्ष्ताकार छाप रही है जो इन हत्याओं को जायज ठहराते है) उसी समय ये जज, ये वकील और वो पत्रकार प्रिंस जिसने सबसे पहले यह खबर लगाई थी, उनसे एक एक कर के मिलना की इच्छा है.
इस फैसले से भविष्य में क्या होगा ये पाता नहीं पर चन्दन अपने शब्दों से एक उम्मीद जगाते है..
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टाइम्स ऑफ़ इंडिया चाहे जितनी मर्जी जोर से कह ले कि फैसले का असर इन पंचायतो पर नहीं पडा है, पर मैंने करीब से लोगो की आवाज बदलते देखा है. अगर बाकी के मामले में ऐसे ही फैसले आये और उन्हें लागू भी किया जाए तो पंचायतो पर ही नहीं पूरे देश पर असर पडेगा. फिर यह समाचार चैनल शानिया और शोएब से ज्यादा पंचायती मामलों पर टी आर पी लूटेंगे. नेता प्रेम के पक्ष में बोलते हुए पाए जायेंगे. धोखेबाज लोग घडियाली ही सही पर आंसू बहाते पाए जायेंगे.
शहरो में रहते हुए हम ऐसी घटनाओ को जान ही नहीं पाते.. नौ प्रतिशत की विकास दर की बाते उस वक्त हवा हो जाती है.. जब आप कबीलाई प्रथाओ से रु ब रु होते है.. भारत में पल रहे छोटे छोटे तालिबानों से परिचय कराती है जाने माने मिडिया एक्टिविस्ट 'स्टेलिन के' की ‘वन बिलियन आईस इन्डियन डोक्युमेन्ट्री फ़ि्ल्म फ़ेस्टीवल २००७ ’ कि विजेता डोक्युमेंट्री फिल्म "इण्डिया अनटच्ड " |
फिल्म में गुजरात के गाँव में पंद्रह साल पुराने दो दोस्तों के बारे में भी बताती है जिनमे से एक ऊंची जात का है और दूसरा नीची जात का.. और ऊंची जात का व्यक्ति नीची जात के दोस्त के घर पानी भी नहीं पीता और इस पे दुसरे दोस्त का समर्थन भी हासिल है.. यहाँ तक कि बच्चो से पूछे जाने पर कि इस कुंए से पानी क्यों नहीं पीते हो तो एक बच्चा कहता है ये भंगी का कुआ है.. ना जाने हम अपने देश का भविष्य कहाँ ले जा रहे है... मैंने तो बहुत कम लिखा है.. पर आप ये वीडियो देख सकते है.. देवेंदर कुमार के ब्लॉग पर जहाँ उन्होंने ये विडियोस पोस्ट किये है..
देवेंदर लिखते है..
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यह फ़िल्म
उन सभी धर्मो का पर्दा-फ़ास करती है जो कि दावा करते है कि उनके धर्म मे सभी बराबर है, चाहे वो सिख धर्म हो या किर्स्चन ,इस्लाम यहाँ तक कि केरल में क्मुनिस्ट ,सभी में दलितो का हाल एक जैसा है । हिन्दू धर्म तो छुआ-छूते का घर है ही । भारतिय मिडियां भी तस्वीर का सिर्फ़ एक रुख ही दिखाता है,चाहे वो रिर्जवेशन को लेकर हो ।
उम्मीद है कि यह फ़िल्म देख कर कुछ तो लोगो को शर्म आयेगी । वर्ना इस देश का कुछ भी नही हो सकता ।
ब्लॉग की बात करे तो ब्लॉग अनकही पर एक पोस्ट है.. ब्लॉग क्या है ?
पश्यन्ति शुक्ला का ब्लॉग के बारे में कहना है..
कोई माने या न माने लेकिन अपने दिल का सच तो यही है कि ये ब्लाग अब ‘डायरी’ की उपमा से निकलकर कोई ‘डायरेक्टरी’ बन चुका है, जहां संबंधो को हरा रखने के लिए 10 डिजिट का नंबर दबाने की भी ज़रुरत नहीं और न हि नए रिश्ते तलाशने के लिए किसी क्लासिफाइड ऐड पर पैसे खर्च करने की..इस महंगाई के ज़माने में भी....... यहां सब कुछ मुफ्त में उपलब्ध है बिल्कुल मुफ्त, मुफ्त की वाहवाही, मुफ्त की आलोचना, मुफ्त के सुझाव और मुफ्त के रिश्ते भी......पढ़ने का अधिकार भले ही कपिल सिब्बल आजादी के 63 साल बाद देने जा रहें है लेकिन लिखने का अधिकार तो ब्लाग महाराज ने दसियों साल पहले ही दे दिया....
चर्चा में शामिल करने की वजह शायद इस पर चर्चा करना ही रही.. पोस्ट का शीर्षक पढ़कर हम ही सोच ले कि आखिर ब्लॉग क्या है?
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बड़े दिनों बाद जीतू भाई.. वही अरे बिरादर वाले..
जीतू भाई की पोस्ट में ये पढ़कर उत्सुकता जाग ही जाएगी कि ऐसा भला क्या हुआ..?
उसके बाद टखना ने उस किताब को जला दिया जिसमें लिखा था-
किसी की निस्वार्थ भाव से मदद करो तो जो आत्मिक खुशी मिलती है- उसे बयॉं करना आसान नहीं!!
लेकिन ऐसा क्यों हुआ.. ये किस्सा बड़ा ही दिलचस्प है.. आप उनके ब्लॉग पर ही पढेंगे तो मज़ा आएगा.. अरे ज्यादा लम्बा नहीं लिखा है.. बहुत छोटा सा है..
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जुगलबंदिया
एक और तो ब्लॉग अनुराग एंड आई पर गुलज़ार साहब और आर डी बर्मन की जुगलबंदी होश उड़ा रही है.. वहीँ दूसरी ओर मेजर गौतम अर्श और दर्पण की जुगलबंदी सजा के बैठे है और यकीन मानिए मेरी चर्चा के लिए टेक्स्ट लिखते वक़्त लूप में इनकी ही जुगलबंदी चलती रही.. दोनों ही पोस्ट में सुनने के लिए बहुत कुछ है..
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सानिया जो कि पुरे भारत वर्ष की चर्चा का विषय बन गया है.. उसे हम भारत में रहते हुए अपनी चर्चा में शुमार नहीं करे.. ऐसा कैसे हो सकता है.. सानिया पर जो तमाम पोस्ट्स आयी है.. उनमे किशोर अजवानी जी ने मुझे खासा प्रभावित किया है.. मास्टरपीस फिल्म 'गर्म हवा' के बहाने उन्होंने सानिया प्रकरण पर भी अपनी कलम चलायी है..
और साथ ही कुछ ऐसी बाते भी लिखी जो शायद मैं नहीं जानता था.. मसलन..
मुझे परेशानी सानिया की शादी से नहीं। वो उसका निजी मामला है। लेकिन इस मौक़े पर उसका अप्रैल 2005 का इंटरव्यू जब पाकिस्तान के जियो टीवी पर देखा तो बहुत अफ़सोस हुआ। इंटरव्यू में सानिया सलवार कमीज़ में थी। सवाल पूछा गया टेनिस कोर्ट पर स्कर्ट पहनने पर उठे बवाल पर। तो बोली कि मैं मानती हूं इस्लाम में बहुत फॉरगिविंग है, सड़क पर तो मैं ऐसे कपड़े पहनती नहीं लेकिन कोर्ट पर पहनना तो मजबूरी है और मैं जानती हूं कि ख़ुदा मेरे गुनाह म्वाफ़ करेगा! गुनाह म्वाफ़ करेगा? मैं भौचक्का रह गया! इस लड़की पर उंगली उठाने वाले मुल्लाओं पर, संघियों पर हमने हमला बोला कि ये हिंदुस्तान है और इस बच्ची के कपड़ों पर बोलने वाले वो होते कौन हैं और न जाने क्या-क्या, और ये है कि पाकिस्तान में इंटरव्यू दे कर आ गई कि ख़ुदा इसके स्कर्ट पहनने के गुनाह को म्वाफ़ करेगा! बहुत दुख हुआ, ग़ुस्सा भी आया।
ऐसा ही वे एम् ऍफ़ हुसैन के लिए लिखते है..
यही एम एफ़ हुसैन ने किया। यहां न जाने कितने लोग उनके नाम पर इन वीएचपी वालों को सुनाते रहे और उन्होंने क़तर की नागरिकता ले ली। और तो और अभी कुछ दिन पहले पढ़ा कि हमेशा नंगे पांव घूमने का शगल पालने वाले हुसैन साहब स्थानीय भावनाओं का मान रखते हुए दुबई में जुराबों में घूम रहे हैं। न जाने ये कितना सही है लेकिन स्थानीय भावनाओं का मान यहीं रख लिया होता तो इतना बखेड़ा ही न खड़ा होता।
पर्सनली मुझे लगता है जिन्हें देश से कोई फर्क नहीं पड़ता.. देश को उनसे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए..
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चलते चलते चंद्रशेखर हाडा जी बनाया एक कार्टून जो कल सुबह दैनिक भास्कर में छपा था.. अब उनके ब्लॉग पर चस्पा है.. और वही से लेकर हमने यहाँ चिपकाया है..
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और अब अंत में दो क्षणिकाए है..
"भिगो गयी.. रुसवाई की आँधी.. साँसें उलझी हैं.. रूह से.. खामाखां..!!" ब्लॉग प्रियंकाभिलाषी.. से | हर दिन एक ख़्वाब मेरी आँखों में उठ खड़ा होता है जिसे मैं बड़ी बेरहमी से हकीक़त की दीवार में चुन देती हूँ ! |
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चिठ्ठा चर्चा.. सोमवार, पांच अप्रैल दो हज़ार दस, प्रात आठ बाजे आरम्भ, दस बजकर बीस मिनट पर प्रकाशित..
हटके...बहुच अच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंभाई कुश, चर्चा पढ़कर हो गए खुश।
जवाब देंहटाएंसौ लम्बर तो सानिया-शोएब वाले फोटू के ही हो गए
जवाब देंहटाएं।
मुँह से निकला वाह कुश !
बेहतर आयाम लिये शानदार चर्चा ।
जवाब देंहटाएंआभार..!
पश्यन्ति शुक्ला ने बड़ी सही बात लिखी है. PD चन्दन की पोस्ट BuZZ करता रहता है ... यह सरोकारों की बात है... दुबे मामले में PD के साथ मैं भी जुडा हूँ. सानिया वाली कार्टून मस्त है... यह भी आजकल दो देशों का विकत प्रशन है... हालन की आज का हिन्दुस्तान "मिटटी खा कर रहने वाले भारत की भी बात कर रहा है... काव्य मञ्जूषा की लाइने जानदार लगी... इस ब्लॉग को इम्तेहान के बाद पढने का इरादा है.
जवाब देंहटाएंबांकी फिल्म सम्बन्धी लिंक जो दिया है वो तो इंग्लिश में है इसलिए माशाल्लाह ही लगी :)
वैसे एक बात है आपकी चर्चा की अपनी एक अलग इस्टाइल है और होना भी चाहिए... शुक्रिया
पहले तो आपका शुक्रिया की आपने मेरे किसी लेख को अपनी चर्चा में शामिल किया साथ ही सानिया के कार्टून को भी.........लेकिन आपका जवाब नहीं इतना सबकुछ एक साथ मिला दिया जिसे लिखने के लिए मुझे दो पोस्ट की जरुरत पड़ गई.
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा है ...
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा....
जवाब देंहटाएंभिगो गयी यह सँदेश
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हकीक़त की दीवार में चुनी हुई मेरी टिप्पणी !
खुश रहो, अहले चर्चाकार अब हम तो यहाँ से टलते हैं !
बहुत सुंदर जी, नाईस ही नाईस लगी
जवाब देंहटाएंमजा आ गया.......वाह....बहुत खूब......
जवाब देंहटाएंhttp://laddoospeaks.blogspot.com/
अच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंसानिया के एक वक्तव्य की प्रत्यक्ष गवाह मेरी बेटी है, जब सानिया ने २००३ में एक संस्था में एक समूह को सम्बोधित करते हुए अनावश्यक व अप्रासंगिक रूप से ऐसी सफ़ाई दी और माफ़ियाँ माँगी थीं। श्रोताओं में अधिकांश मुस्लिम ल़डकियाँ थीं, जो अत्याधुनिक समृद्ध परिवारों से थीं व लगभग सभी अपने दैनिक पहरावे में शॉर्ट स्कर्ट/ मिडि/जीन्स इत्यादि ही नियमित पहनती हैं/थीं। सानिया ने उन्हें ढके रहने की हिदायत देते हुए कहा था कि मैं तो मजबूरीवश ऐसे कपड़े पहनती हूँ, और मेरा पहरावा लड़कियों को उकसाने का काम नहीं करना चाहिए व न ही मेरे कपड़ों को देखकर मुस्लिम लड़कियों को बहकना चाहिए... आदि आदि।
जवाब देंहटाएंइसीलिए सानिया की स्त्री के रूप में स्व- तन्त्रता के प्रति किसी को सहानुभूति व्यक्त करने की कोई आवश्यकता नहीं, मन से वह भी उसी कठमुल्लेपन की हिमायती ही रही है। वरना ऐसा दोगलापन और भीगीबिल्लीपना न दिखाई देता। जबकि वह अपनी शर्तों पर जीने में समर्थ है।
समर्थ स्त्री की इस/ऐसी नौटंकी से घिन आती है ( वह भी राष्ट्रीयता के एवज में!!
धिक्कार है!!
अभी सब लिंक बांचे और कह रहे हैं वाह! नियमित चर्चा किया करो बच्चा!
जवाब देंहटाएंकुश जी,
जवाब देंहटाएंदेर से आये हैं आपके दर पर और आपकी दरियादिली को देख, दिल से दुआ दे रहे हैं...
हकीक़त की दीवार में चुनी हुई मेरी टिप्पणी !
खुश रहो, अहले चर्चाकार अब हम तो यहाँ से टलते हैं !
हाँ, यह कुश वाली चर्चा ही है ! लिंक देखकर ही लगा । नियमित चर्चा किया करें !
जवाब देंहटाएंचर्चा का आभार ।
ज़ोरदार चर्चा कुश भाई
जवाब देंहटाएंज़ोरदार चर्चा कुश भाई
जवाब देंहटाएं