दिल्ली पेरिस नहीं हो गई है गोकि यहॉं भी बिजली-पानी की समस्याएं हैं पर इतनी नहीं कि मध्यप्रदेश की तरह पानी के लिए दंगे हों या कलकत्ता की तरह बिजली की इतनी किल्लत हो कि शिवकुमारजी की तरह चर्चा 5-6 घंटे टाली जा सके। इस तरह के बहानों के लिए हमें आत्मनिर्भर रहना पड़ता है , तो हम भी चर्चा में 5-6 घंटे देर से हैं पर बिजली सुबह से है, पानी सुबह का दो घंटे आ चुका है..टंकी भर गई थीं शाम का आने वाला है टंकी ,खाली नहीं हुई है- नहा चुके हैं नाश्ता मिल चुका है, लंच मिलने वाला है, कॉलेज न कल जाना था न कल जाना है पिछले पूरे महीने छुट्टी थी, इस पूरे महीने छुट्टी है मतलब ये कि अगर ग्रीन हाउस गैसें, आतंकवाद,भ्रूण हत्या, भ्रष्टाचार जैसी सार्वकालिक समस्याओं से दु:खी न हों तो जीवन में ऐसा कोई कष्ट जिसके आधार पर चर्चा टाली जा सके। पर इसका मतलब ये भी नहीं कि कोशिश करने पर कष्ट खोज नहीं सकते। जब हमारी मुख्यमंत्री बैठे बिठाए इस बात पर दु3खी हो सकती हैं कि खंबों का रंग क्या है तो जाहिर है हम भी तय कर सकते हैं अगर भगवा पसंद हे तो कह सकते हैं कि हरे बोर्ड क्यों ? हरा पसंद है तो कह सकते हैं कि भगवा क्यों ? नीला पसंद है तो दिल्ली के खंबों की ओर मुँह करके दुखी होसकते हैं और पसंद नहीं तो नोएडा के खंबो की ओर मुँह कर। गनीमत है कुत्ते खंबों का इस्तेमाल करते समय उसके रंगों की शीला दीक्षीती चिंता में नहीं पड़ते वरना कुत्तों के रंगे बिरंगे डायपर अपने कचरेदानों में भरे होते और कूड़ा समेटते बच्चे इतने रंगीन न होने के कारण इसमें छिप न पाते जैसे आजकल छिप पाते हैं
घुघुती आम से दु:खी हैं उसके रंग से नहीं उसके नाम से। आम का नाम केसर जाहिर है शीला आंटी को तो पसंद आने से रहा यही घुघुतीजी की परेशानी भी है। हमारी परेशानी बस इतनी है कि दो पेड़ों पर घुघुतीजी को मात्र दो केसर आम मिले, अब जब आममालिक ही आम खाने की जगह गिन रहे हैं तो जाहिर है हमें तो गुठली भी नसीब न होंगी।
मुझे भगवान पर कुछ विशेष विश्वास न होते हुए भी कभी कभार 'हे भगवान' कहने की आदत थी। आजकल कहते कहते रुक जाती हूँ क्योंकि कोई यह न कहे कि भगवा..न के बहाने गलत रंग को याद कर रही है ।
खैर इस रंग बिरंगी नोंक झोंक में एक अच्छी बात ये भी हुई कि बहस फिर से करने की हिम्मत दिखने लगी। ब्लॉगिंग की नदी में निरंतर नया पानी जुटता रहता है इससे होता ये है कि वे पुराने बहसिए जो एकाध बार बहस करने का जोखिम उठा हाथ जला चुके होते हैं वे चुपचाप हो चुप्प्प मार लेते हैं अब रवीश- अविनाश...संजय- सुरेश- अरुण से मुखातिब होना छोड़ चुके थे गनीमत है काशिफ आरिफ इन बहसों के कड़वे-मीठे इतिहास से अंजान थे इसलिए उन्होंने नए सिरे से बहस छेड़ी केवल बहस छेड़ी थी को किसी पर कोई तोहमत नहीं लगाई थी।
परेशानी मुझे इस बात से है कि इनका हर लेख काग्रेंस, इस्लाम और मुस्लिम समुदाय की बुराई से शुरू होता है और सघं, भाजपा, और हिन्दुत्व की तारिफ पे खत्म होता है। इन सब के ब्लोग्स पर Comment Moderation लगा हुआ है, जो टिप्पणी इनको प्रकाशित करनी होती है उसे प्रकाशित करते है वर्ना जो टिप्पणी कुछ ज़्यादा ही इनके खिलाफ होती उसे ये पी जाते है,
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इन ब्लोग्गर्स मे से प्रमुख है :- सुरेश चिपलूनकर जी, त्यागी जी, अरुन उर्फ पन्गेबाज़ जी। और इनके ब्लोग पर आपको जो इनकी हौसला अफ़ज़ाई करते मिलेगें उनमे प्रमुख है :- संजय बेंगाणी, ताऊ रामपुरिया, दिनेशराय द्विवेदी, अजित वडनेरकर, संजीव कुमार सिन्हा, शिव कुमार मिश्रा, महाशक्ति, ऋषभ कृष्ण, राज भाटिया,आदि।
भगवा-लाल की दलबंदी तो खैर पुरानी है पर मनोरंजक बात ये है कि इस सूची में द्विवेदीजी और वडनेरकरजी का भी नाम है। दिनेशजी तो हमारी समझ में अर्ध रिटायर किस्म के कामरेड हैं। खैर बहस तो अभी शुरू हुई है खत्म होने से पहले इसे बहस- लड़ाई-जूतमपैजार-टंकीबाजी- बैनकरो आंदोलन- थकान- ऊब के महत्वपूर्ण चरणों से गुजरना है।
खैर रंग-बिरंग-बेरंग चिट्ठों की चर्चा बस इतनी ही बाकी देखें आमने-सामने-
आजकल बडा शार्टकट चल रहा है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
"..टंकी भर गई थीं ..."तो फिर नीचे उतरिये ना:-)
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ आमने-सामने ।
जवाब देंहटाएंचर्चा का आभार ।
बढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लागिंग में टिप्पणी करना हौसला अफ़जाई माना जाता है. तो हम टिप्पणी करके काशिफ आरिफ जी की हौसला अफ़जाई भी कर आये हैं.
हमने लिख दिया है कि; "सुन्दर रचना.बधाई."
हो गई न हौसला अफ़जाई?
दिल्ली पेरिस नहीं है. वैसे पेरिस से कुछ कम भी नहीं. ऐसे में बिजली, पानी वगैरह की किल्लत तो नहिएँ होगी. अब हम क्या करें? बहाने बनाने के लिए आत्मनिर्भर नहीं है. बिजली का बहाना भी बनाया नहीं. सच बात तो यह है कि पिछले चार-पांच दिनों से ऐसा ही हो रहा है.
या फिर आप कहते तो चलिए यह भी मान जाते हैं कि हमें बहाना बनाना पडा.....:-)
वैसे भी हमारे राज्य के शासक उखड़े-उखड़े से हैं. कारण यह है कि आपके राज्य में शासन करने वालों ने उन्हें उखाड़ दिया है. ऐसे में उनका पॉवरलेस हो जाना लाजिमी है....:-)
अच्छी लगी चर्चा। आप की समझ को सलाम! पर हम तो अभी दुनिया को समझने में लगे हैं। जितनी समझ आती है बताते भी हैं।
जवाब देंहटाएंचर्चा मस्त है.. फुल्ली लोडेड.. सबको पढ़ आये है.. अब?
जवाब देंहटाएंअरे भाई जब छुट्टियाँ है, नाश्ता है, खाना है, सब हाथों हाथ मिल रहा है तो आप यहाँ से गायब क्यों हैं या यह हमारी ही दृष्टि का दोष है, आप यहाँ थे और हम ही नहीं देख रहे थे। वैसे हम भी लम्बी अनुपस्थिति के बाद आए हैं।
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा। वैसे जब भी हमारी पोस्ट का जिक्र हो तो ऐसा कहना हमारी परम्परा रही है। :)
घुघूती बासूती
waah jee charchaa mein aamne saamne kaa andaaj to khaasaa pasand aayaa...
जवाब देंहटाएंआज कल कुछ भी फुरसत नहीं है.. अपने मन को भी पढ़ने की फुरसत नहीं है, चर्चा ही पढ़ लेते हैं वही बहुत है.. कल कैसे फुरसत निकाल कर फुरसतिया जी से मिले वो हम ही जानते हैं.. :)
जवाब देंहटाएंवैसे मस्त रही आरिफ़ जी बात भी..
शोर्ट कट लेती हुई चर्चा ......
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जवाब देंहटाएंअगर आज टिप्पणी न दी जाये, तो चलेगा ?
चित्र भयानक है.. आमने सामने अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएंये चर्चा न होती तो रंग-बिरंग-बेरंग की पोस्ट और टिपण्णीयां तो छुट ही जाती !
जवाब देंहटाएंjara is link par bhi dekhe kitni gahmaghmi chhai hai ..................http://janokti.blogspot.com/2009/06/blog-post_05.html
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