आज चहुँओर से दु:खद खबरें सुनने को मिल रही हैं . सुबह जब से ब्लॉग्स पढ़ रहा हूँ, जिया बेचैन हुआ जाए है . पता चला है कि शिवकुमार मिश्र जी के घर से दुपट्टा चोरी होगया है . हालाँकि पुलिस से लेकर इतिहासकार तक से सम्पर्क साधा गया है पर चोर भी दुपट्टा विशेषज्ञ साबित हुआ है .
उधर अरविन्द मिश्रा जी भी दु:ख की खबर दे रहे हैं .
आज फिर यहाँ के चोलापुर क्षेत्र में एक बच्चे की सर्पदंश से अकाल मौत हो गयी !पर अनजाने में ही उन्होनें एक ऐसे युवक की प्रतिभा को सामने ला दिया है जो १०० मीटर की फ़र्राटा रेस को पाँच सेकण्ड से भी कम समय में पूरा कर सकता था . पर अफ़सोस उसे उचित मंच नहीं मिला
सुल्तानीपुर (चोलापुर ) निवासी दस वर्षीय प्रदीप शनिवार की शाम बाग़ में खेल रहा था
-सर्प दंश का शिकार हुआ ,मंडलीय अस्पताल में भर्ती कराये जाने के बावजूद नही बच सका ! जैसा कि जिला प्रशासन ने वादा कर रखा है कि इस तरह की मौतों की जिम्मेदारी तय की जायेगी -देखिये क्या होता है !
. युवक ने कहा कि तुंरत बच्चे को लेकर ब्लाक पर पहुँचो और वह वहां सायकिल से खुद पहुँच रहा है ! तब आवागमन के साधन उतने अच्छे नहीं थे ! पगडंडियों के सहारे युवक ने डेढ़ मील का रास्ता उस दिन २ मिनट में पूरा कर लिया जिसे पहले वह ५-१० मिनट में पूरा करता था !
उड़नतशतरी पर भी मातम पसरा हुआ है . लोगों को इमोशनल किया जा रहा है .
पता चला कि दफ्तर की महिला सहकर्मी का पति गुजर गया. बहुत अफसोस हुआ. गये उसकी डेस्क तक. खाली उदास डेस्क देखकर मन खराब सा हो गया. यहीं तो वो चहकती हुई हमेशा बैठे रहती थी. यादों का भी खूब है, तुरन्त चली आती हैं जाने क्या क्या साथ पोटली में लादे. उसकी खनखनाती हँसी ही लगी गुँजने कानों में बेवक्त. आसपास की डेस्कों पर उसकी अन्य करीबी सहकर्मिणियाँ अब भी पूरे जोश खरोश के साथ सजी बजी बैठी थी. न जाने क्या खुसुर पुसुर कर रहीं थी. लड़कियों की बात सुनना हमारे यहाँ बुरा लगाते हैं, इसलिए बिना सुने चले आये अपनी जगह पर. हालांकि मन तो बहुत था कि देखें, क्या बात कर रही हैं?इस पर कुश कहते हैं कि अनूप जी डण्डा लेकर आते ही होंगे . अनूप जी आये या नहीं ये बहस का मुद्दा नहीं .
डॉ. अनुराग के दिल का हाल भी अच्छ नहीं . वहाँ भी मातम है . शोक है .
..मंत्रो के उच्चारण के बीच तेरहवी की रस्म जारी है ...जोशी जी धोती पहनकर पंडित जी के साथ बैठे है...ऊपर कंधे पे सफ़ेद चादर .....पीछे सफ़ेद शामियाने पे उनके पिता की तस्वीर लटकी है ....एक ओर खाने का इंतजाम है ..कोई साहब लगातार दौड़ भाग कर रहे है.....सभी इंतजामात देखते..नंगे पैर सफ़ेद कुरते पजामे में .हाथ में काला मोबाइल ..उन्हें देख डायरेक्टर साहब कुछ बुदबुदाये है ...जिसका कुछ अपरिहार्य कारणों से मूल अनुवाद नहीं दे सकता .लिप मूवमेन्ट से अलबत्ता आप आईडिया लगा सकते है.....ईश्वर जाने वालों को शान्ति दे . आइए मातम से निकलें . ज्ञान जी निकालेंगे हमें मातम से . अपने श्वसुर जी के बारे में बताते हैं :
असल में एक व्यक्ति के पर्यावरण को योगदान को इससे आंका जाना चाहिये कि उसने अपने जीवन में कितने स्टोमैटा कोशिकाओं को पनपाया। बढ़ती कार्बन डाइ आक्साइड के जमाने में पेड़ पौधों की पत्तियों के पृष्ठ भाग में पाये जाने वाली यह कोशिकायें बहुत महत्वपूर्ण हैं। और पण्डित शिवानन्द दुबे अपने आने वाली पीढ़ियों के लिये भी पुण्य दे गये हैं।पर्यावरण की बात चली तो एक और पाण्डेय यानी अशोक जी का लेख विचारणीय है . उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग की गम्भीरता को उजागर करने का प्रयास किया है . और आशा है जो लोग भी इसे पढेंगे वे प्रभावित हुए बिना न रह सकेंगे .
वे नहीं हैं। उनके गये एक दशक से ऊपर हो गया। पर ये वृक्ष उनके हरे भरे हस्ताक्षर हैं!
क्या वे पर्यावरणवादी थे? हां, अपनी तरह के!
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है ग्लोबल वार्मिंग या भूमंडलीय उष्मीकरण धरती के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी को कहते हैं, जिसके फलस्वरूप जलवायु में परिवर्तन हो रहा है। ऐसा धरती के वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों का घनत्व बढ़ने, ओजोन परत में छेद होने और वन व वृक्षों की कटाई की वजह से हो रहा है।
भारत में तो जलवायु परिवर्तन की विभीषिका शुरू भी हो गयी है और मुझे इस बातखबर मिली है कि :
में तनिक भी संदेह नहीं कि इसकी सबसे अधिक पीड़ा हम भारतीय ही भोगने जा रहे हैं। एक अरब से अधिक की आबादी वाले जिस देश में अधिकांश लोगों के लिए रोटी, कपड़ा और मकान आज भी समस्या है, आग उगलती धरती के स्वाभाविक शिकार वही लोग होंगे। हमारी दृढ़ मान्यता है कि प्रकृति अपना न्याय जरूरी करती है। भारतवासियों को बगानों, वृक्षों व ताल-तलैयों को नष्ट करने की कीमत धरती की आग में जलकर चुकानी होगी। मानसून में विलंब होने भर से पेयजल और सिंचाई के लिए यहां किस तरह हाहाकार मच गया है, यह गौर करने की बात है।
पाकिस्तानी फौजों ने पकड़े गए तालिबानों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करने की ठान ली है। इन तालिबानों को कश्मीर घाटी का रास्ता पाकिस्तान पहले ही दिखा चुका है और अब एक बड़े तालिबानी कमांडर के हवाले से कहा गया है कि भारत तालिबान की आर्थिक मदद कर रहा है।
सुरेश चिपलूणकर आज आतंकवाद पर उबल रहे हैं और व्यवस्था पर बरस रहे हैं . कॉपी नहीं हो पा रहा है कृपया वहीं जाकर पढ़ें .
मोहल्ले में पर आज टॉफ़ियाँ बाँटी जा रही हैं . हमारी सलाह है कि आप जरूर जाकर ले लें . अलबत्ता जो लोग मोहल्ले में नहीं जाते उनके लिए टॉफ़ी वितरण की व्यवस्था मोहल्ले से बाहर भी की गई है .
आप चाहें तो नीरज जाट को सौवीं पोस्ट की बधाई दे सकते हैं . अब ब्लॉगिंग करने में कोई खतरे वाली बात नहीं क्योंकि अभिषेक ओझा की श्रंखला ब्लॉगिंग के खतरे अब नहीं रही ! बेधड़क ब्लॉगिंग करिए अब . चाहें तो टिप्पणी भी कर सकते हैं कोई जबरदस्ती नहीं है ! क्योंकि हम डॉन थोड़े ही हैं जो जबरदस्ती करें !
ये डॉन का किस्सा भी कॉपी की सुविधा बन्द होने के कारण यहाँ प्रस्तुत न हो सका कृपया वहीं जाकर पढ़ लें .
लगता है ये कॉपी सुविधा हम जैसे सीधे सच्चे लोगों को परेशान करने के लिए ही बन्द करते हैं लोग . चोर तो अपना काम किसी तरह निकाल ही लेते हैं .
माउस परेशान कर रहा है . आज इतना ही !
चलते-चलते :
माउस परेशान कर रहा है . आज इतना ही !
चलते-चलते :
घुम-घूमकर जाट ने, लिख दी सौवीं पोस्ट .
अब इसके सिर चढ़ गया, दो सौवीं का घोस्ट .
दो सौवीं का घोस्ट, जाट अब कित जाएगा .
देखें कब तक डबल सेन्च्युरी कर पायेगा .
विवेक सिंह यों कहें, जाट दिल्ली में घूमै .
मेट्रो में नित रहै, ब्लॉग लिख लिखकै झूमै .
अब इसके सिर चढ़ गया, दो सौवीं का घोस्ट .
दो सौवीं का घोस्ट, जाट अब कित जाएगा .
देखें कब तक डबल सेन्च्युरी कर पायेगा .
विवेक सिंह यों कहें, जाट दिल्ली में घूमै .
मेट्रो में नित रहै, ब्लॉग लिख लिखकै झूमै .
बहुत दिनों बाद आपकी चर्चा देख मन प्रसन्न हुआ । निरन्तरता बनी रहेगी, यही आशा है ।
जवाब देंहटाएंसमापन की कविता बढिया लगी विवेक भाई और बाकी रपट भी
जवाब देंहटाएं- लावण्या
का चर्चियाये हैं विवेक भाई...बस ऐसी ही मातम के बीच ढोल नगाड़ा बजता रहे....
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंक्या कहें, अब तक तो लोग धोतीचोरों से आज़िज़ थे, ई आपन नायिका से दुपट्टा नहीं सँभलवा पाये ।
कृपया यह चर्चा सँशोधित कर लें, वर्षों के बाद किसी इतिहास खँगालू पाठक ने पढ़ा तो खड़बड़ा जायेगा कि, प्राचीनकालीन भारतीय नारियों का दुपट्टा होता क्या था और उसकी ज़रूरत इस युग में क्यों थी ? शोधार्थी बहक जायेगा यार, जरा समझा करो !
चलिए इस दुप्पट्टे के बहाने आप् अपने 'हायबरनेशेन " से बाहर तो आये ....
जवाब देंहटाएंअगर नायिका की जगह नायक हो तो दुपट्टे
जवाब देंहटाएंकी जगह चोरी क्या होगा ?? ये हमेशा नायिका
का की कुछ क्यूँ चोरी होता हैं ?? क्या नायक
इतना दीन हीन हैं की उसके पास कुछ नहीं हैं
जिसे कोई चुरा सके ?? स्मायली की जगह !!
समझ ले .
फ़ार्म मे वापसी की बधाई।
जवाब देंहटाएंइतने दिनों के बाद आपके द्बारा की गई चिट्ठाचर्चा ने मन मोह लिया. आशा है अब से आप नियमित चर्चा करेंगे. चर्चा के समापन पर लिखी गई कविता अति सुन्दर है. आपकी शैली चिट्ठाचर्चा मंच को विविधता देती है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
Bahut hi lajawaab charcha....niyamit charcha aur blog lekhan kiya karen....
जवाब देंहटाएंजय हो जाटराज.... सैकेंड इनिंग में वेलकम वेलकम एंड वेलकम...
जवाब देंहटाएंchalte chalte mein-
जवाब देंहटाएं-antim panktiyan Vivek ji ke apne purane style mein bahut mazedaar hain.
अच्छी चर्चा!
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता!
अच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजबाब चिट्टा-चर्चा
जवाब देंहटाएंइस पर कुश कहते हैं कि अनूप जी डण्डा लेकर आते ही होंगे . अनूप जी आये या नहीं ये बहस का मुद्दा नहीं हम निकले थे लेकिन फ़िर यह चर्चा दिख गयी सो इसे बांचने लगे। सुन्दर,झकास। मुसाफ़िर जाट को सौवीं पोस्ट की बधाई। दो सौवीं की यात्रा के लिये कदम बढ़ायें जायें। बोल बजरंगबली की जय!
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा.
जवाब देंहटाएंमैं यही सोच ही रहा था की आखिर विवेक जी आये तो मगर निकल kidhar को लिए !
जवाब देंहटाएंचर्चा के लिए आभार। मस्त कविता लिखी है, बिल्कुल मुसाफिर जाट की तरह मेट्रो में घूमती और झूमती हुई :)
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा। बोल बजरंगबली की जय!
जवाब देंहटाएं