भारत से पिछले ट्वेंटी20 विश्व कप में मिली शिकस्त ने पाकिस्तानियों का दिल तोड़ दिया था। इसके अलावा वहां का माहौल क्रिकेट के लिए बिगड़ता जा रहा था क्योंकि पाकिस्तान में हवाओं का रुख हमेशा खतरनाक रहा है। खौफ की आंधियां कब चल पड़ें, खून के छींटे कब गिर जाएं, कोई नहीं जानता। सियासी हलचलों ने पाकिस्तान को अजीब तरह का मुल्क बना दिया है। आतंकवाद और आतंकवादियों से जूझता मुल्क जहां की सड़कें कब छींटो से लाल हो जाएं, यह भी कोई जानता नहीं। कब लाशें बिखर जाएं और मंजर खौफनाक हो जाए, नहीं मालूम।
कुदरतनामा में मोर के बारे में जानकारी देते हुये बालसुब्रमण्यम बताते हैं:
पशु-पक्षियों में मादा की अपेक्षा नर बहुधा अधिक सुंदर होते हैं। मोर के साथ भी यही बात है। आकर्षक रंग, लंबी पूंछ, माथे पर राजमुकुट सी बड़ी कलगी आदि सारी व्यवस्थाएं नरों तक सीमित हैं। मोरनी में सुंदरता के अभाव का एक जबरदस्त प्राकृतिक कारण है। खूबसूरती और आकर्षण के अभाव में वह आसानी से नहीं दिखती है। इस तरह अंडा सेते समय वह दुश्मन की नजर से बची रहती है।
यादों की खूंटी पर टंगा पजामा !!! यादों का पिटारा है रंजनाजी। वे लिखती हैं:
दो सप्ताह के अथक परिश्रम के बाद मुझसे किसी तरह हल्का फुल्का हाथ पैर तो हिलवा लिए गुरूजी ने पर जैसे ही आँखों तथा गर्दन की मुद्राओं की बारी आई ,उनके झटके देख मेरी ऐसी हंसी छूटती कि उन्हें दुहराने के हाल में ही मैं नहीं बचती थी.. गुरूजी बेचारे माथा पीटकर रह जाते थे... माँ जितना ही अधिक मुझमे स्त्रियोचित गुण देखना चाहती थी,मुझे उससे उतनी ही वितृष्णा होती थी.पता नहीं कैसे मेरे दिमाग में यह बात घर कर गयी कि बुनाई कढाई कला नहीं बल्कि परनिंदा के माध्यम हैं अब हम भाई बहन चल निकले लंगोट अभियान में..माताजी के बक्से से उनके एक पेटीकोट का कपडा हमने उड़ा लिया फटाफट कपडे को काटा गया और सिलकर आधे घंटे के अन्दर खूबसूरत लंगोट तैयार कर लिया गया...मेरे जीवन की यह सबसे बड़ी सफलता थी.. जो भी हो... वह पजामा आज भे हमारी यादों की खूंटी पर वैसे ही लटका पड़ा है,जिसे देख हम भाई बहन आज भी उतना ही हंसा करते हैं.
आपको समसामयिक कार्टून देखने हैं तो मनोज शर्मा की निगाह से देखिये।
एक लाईना
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और अंत में
फ़िलहाल इतना ही। आप मस्त रहें। आज वुद्ध है, मन से शुद्ध रहें। बकिया जो होगा देखा जायेगा।
ऊपर की फ़ोटॊ आदित्य की है।
आज की तस्वीर
बालसुब्रमण्यम जी के ब्लाग से
जाने वो कैसा चोर था, दुपट्टा चुरा लिया :शायद पिको करा के ही वापस करेगा
जवाब देंहटाएंwaah
हिन्दी ब्लॉग जगत की भटकती आत्माएं ! : अरविन्द मिश्र के ब्लाग पर कब्जे की फ़िराक में हैं
जवाब देंहटाएंvaegyanik kaa blog aur pret aatmao kaa kabjaa
जवाब देंहटाएंपहली बात तो यह की , यदि धोती टँगी होती तो ?
पाज़ामा टँगा है.. तो टँगा है । पर यह आपका पाज़ामा प्रेम ज़ाहिर करता है ।
आपकी यही सब हरकते पाठक को पाज़ामें से बाहर होने को प्रोत्साहित करता है ।
मैं तो खैर अपवाद हूँ, काहे कि यह आज तक तय न हुआ कि मैं आदमी हूँ या पाज़ामा ?
ज्ञानजी की पोस्ट का जिक्र हम जानबूझकर नहीं कर रहे हैं। करेंगे तो रचनाजी कहेंगी कि मुझको इनके अलावा और कोई दिखता नहीं।
जवाब देंहटाएंउफ़ क्या पर्दादारी हैं , कह भी दिये
और घुघट बद्दस्तूर जारी हैं .
और कहे तो वो लिंक भी खोज दूँ इसी चर्चा पर
जहां आप सप्रेम लिखे थे आज ज्ञान की पोस्ट
सुबह नहीं आयी तो चर्चा शाम को होगी . अब
मान भी ले वरना लिंक खोजने जाती हूँ
ब्लॉग पर भटकने मे माहिर या कहलाए शातिर
हूँ
एक लाइना मजेदार है...
जवाब देंहटाएंरचनाजी, मैंने लिखा होगा ऐसा आज ज्ञान की पोस्ट सुबह नहीं आयी तो चर्चा शाम को होगी। मुझे इससे इंकार नहीं हैं। अब आप समझिये कित्ती परेशानी का कारण बन जाते हैं ज्ञानजी हमारे लिये। चर्चा करो तो आफ़त न करो तो आफ़त! वैसे आप वो वाली चर्चा का लिंक खोजियेगा और बताइयेगा। मजेदार है यह भी। कोई हड़बड़ी नहीं आराम से।
जवाब देंहटाएंडा.अमर कुमार, हम तो आपको शानदार आदमी मानते हैं। ब्लागर भी आप हैं हीं। फ़िर आप जबरियन दूसरी और चीजें काहे बनने का प्रयास करते हैं। आपको बता दें आदमी और पैजामा का मात्रक अलग-अलग है। आदमी नम्बर में गिना जाता है जबकि पैजामा जोड़े में। दो नितांत अलग-अलग मात्रक वाली वस्तुओं की तुलना की इजाजत भौतिकी के नियम नहीं देते। :)
मोरों के पीछे क्यों पडे़ हैं ? :)
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहास्य से युक्त सुन्दर मनोरंजक चर्चा......
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार...
लो जी आप मान गए अब हम फुरसतिया तो न हैं की फिर भी
जवाब देंहटाएंलिंक खोजे . लिंक चाहिये था तो ना मानते की की लिखा
एक स्पष्टीकरण दे दूँ .......
जवाब देंहटाएंबालमन ने जो देखा था अपने चारों ओर कि महल्ले की औरतें फुर्सत के समय हाथों में बुने की सालियां ले जब भी बैठती हैं तो बस परनिंदा पुराण कितने रस लेकर बांचे जाते हैं....उसीने बुनाई के प्रति वितृष्णा उपजाई थी...
यूँ अब नहीं मानती कि "बुनाई कढाई परनिंदा के माध्यम हैं"
सुंदर चर्चा के लिए धन्यवाद. मोर का चित्र वास्तव में ही मोहक है.
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा!
जवाब देंहटाएंअनूप जी,
जवाब देंहटाएंउत्तम चर्चा, रोचक तो थी ही और उत्तर प्रत्युत्तर की श्रृंखला ने उसे और जायकेदार बना दिया। एक लाईनों में ब्लॉग जगत को समेटे हुये।
इस चर्चा का सबसे खूबसूरत हिस्सा बालसुब्रमण्यम जी के ब्लॉग से लिय गया चित्र ही है । चर्चा ठीक रही । आभार ।
जवाब देंहटाएंप्रिय अनूप,
जवाब देंहटाएंएकलाईने की धार अभी भी तेज है!!
चित्र अच्छे बन पडे हैं, चर्चा दिल को बांध लेती है
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
हमने तो आदमियों के लिए भी जोड़े भी सुना है.. ये डायलोग भी फेमस है कि भाईसाहब अगली बार जोड़े से आना..
जवाब देंहटाएंवैसे हम आपसे नाराज़ है ज्ञान जी की पोस्ट काहे नहीं आई.. ???