वो,
शख्स जो मुझे बात बात पर
डाँटता था
या मेरी शैतानियों से तंग आकर
कभी मारता भी था
वो,
कभी अच्छे मूड़ में हो तो
घुमानए भी ले जाता था
यदि तनख्वाह के बाद घर लौटा है
तो कुछ भी मांग लो ना नही कहता था
संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी लिखते हैं:
पिता को कितना था रूलाया?
पिता बनकर समझ आया।
अम्बरीश श्रीवस्तव पिता को याद करते हुये कहते हैं:
घंटों पापा मुझे खिलाते
मुझको अपनी गोद उठाते
मेरा सारा काम निबटाते
लोरी तक वो मुझे सुनाते
सजीवन मयंक अपने बाबूजी को याद करते हुये बताते हैं:
बाबूजी ने दिया सहारा तब तो मैं चलना सीखा ।
अगर कभी मैं गिरा उठाने झट से आये बाबूजी ।।
कम पैसों में घर का खर्चा अम्मा कैसे ढोती है ।
तीस बरस हो गए अभी तक समझ न पाये बाबूजी ।।
आकांक्षा पितृ दिवस के बारे में जानकारी देती हुई लिखती हैं:
माना जाता है कि फादर्स डे सर्वप्रथम 19 जून 1910 को वाशिंगटन में मनाया गया। इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है- सोनेरा डोड की। सोनेरा डोड जब नन्हीं सी थी, तभी उनकी माँ का देहांत हो गया। पिता विलियम स्मार्ट ने सोनेरो के जीवन में माँ की कमी नहीं महसूस होने दी और उसे माँ का भी प्यार दिया। एक दिन यूँ ही सोनेरा के दिल में ख्याल आया कि आखिर एक दिन पिता के नाम क्यों नहीं हो सकता? ....इस तरह 19 जून 1910 को पहली बार फादर्स डे मनाया गया।अरविन्द मिश्र ने अपने पिताजी को याद करते हुये उनकी ही कविता पोस्ट की।
युनुस ने पिता पर केन्द्रित कुछ कवितायें पोस्ट की हैं। बोधिसत्व अपने पिता को याद करते हुये लिखते हैं:
पिता थोड़े दिन और जीना चाहते थे
वे हर मिलने वाले से कहते
बहुत नहीं दो साल तीन साल और मिल जाता बस!
वे जिंदगी को ऐसे मांगते थे जैसे मिल सकती हो
किराने की दुकान पर।
धनंजय मंडल ने भी अपनी कविता के द्वारा पिताको याद किया। ज्ञानजी ने इस मौके पर श्वसुर पण्डित शिवानन्द दुबे को याद किया और लिखा :
मेरे श्वसुर जी ने पौधे लगाये थे लगभग १५ वर्ष पहले। वे अब वृक्ष बन गये हैं। इस बार जब मैने देखा तो लगा कि वे धरती को स्वच्छ बनाने में अपना योगदान कर गये थे।कुछ दिन पहले नीरज रोहिल्ला ने अपने पिताजी के बारे में लिखा:
कुछ आदतें कभी नहीं सुधरती। उन्हे कभी दफ़्तर के लिये लेट और समय से पहले घर आते नहीं देखा। अक्सर लेट ही घर आते देखा है। एक दिन बता रहे थे, बहुत से लोगों ने VRS (Voluntary Retirement Scheme) ले लिया है और इसके बदले भर्ती बिल्कुल नहीं हुयी हैं। इस पर भी जो लोग काम करते थे, उन्होने ही VRS लिया है और बाकी कम काम पर ऐश करने वाले अभी भी लगे हुये हैं, इससे सन्तुलन बिगड गया है।
फ़ादर्स डे अवसर पर नारी ब्लॉग के सभी सदस्यों की और से सभी पिताओं को प्रणाम निवेदित किया गया।
कल के ही दिन सायना नेहवाल(फ़ोटो ऊपर बायें) ने इंडोनेशिया ओपन सुपर सीरीज बैडमिंटन खिताब जीता! वे सुपर सीरीज जीतने वाली पहली भारतीय बनीं! कुमार सुधीर ने लिखते हैं:
सायना नेहवाल अपने पिता और वैज्ञानिक डॉ. हरवीर सिंह के काफी क्लोज्ड हैं और उनकी यह उपलब्धि खास दिन पर आई. आज फादर्स डे है और इससे बेहतर तोहफा किसी पिता के लिए और क्या हो सकता है. सायना की उपलब्धि से गौरवांन्वित महसूस कर रहे उनके पिता हरवीर ने इसे देश के लिए विशेष क्षण करार दिया और कहा कि उन्हें अपनी बेटी पर गर्व है. हरवीर जी आप ही को क्यों, पूरे देश को सायना की इस उपलब्धि पर गर्व है!
प्रमोदजी काफ़ी दिन बाद फ़िर सक्रिय हुये। घर में पड़े-पड़े चट चुके व्यक्ति की व्यथा-कथा बयान करते हुये लिखते हैं वे:
जनवैया भाई लोगों से सुनते हैं बीजिंग में घर की किल्लत है टोकियो में आदमी घर में नहीं रहता, आदमी में घर का निवास है, मगर सच पूछिये तो मेरे लिए सब परिलोक की कथायें हैं. बीजिंग और टोकियो में अंड़सहट होगी मगर आदमी आदमी की तरह देह फैला सके की सहुलत भी ज़रूर होगी.. मैं तो पिछले चार दिनों से फंसा हुआ हूं और चाह रहा हूं घर का एक ऐसा हिस्सा आये जिसपर लात फेंक सकूं, लेकिन हक़ीक़त यह है, लात के रास्ते दूसरी चीज़ें आ जा रही हैं, घर पर फेंक सकूं ऐसा हिस्सा लात की रेंज में नहीं आ रहा!
सात खसमों को खाकर हज को चली की तरह हरामख़ोर के पीछे पक रहा हूं, खौलते तेल में पका सकूं ऐसी मेरी किस्मत नहीं सज रही.
कनाडा में हुई एक गमी के किस्से सुना रहे हैं समीरजी! आप भी सुनिये और दो देशों की निधनोपरान्त क्रियाविधियों की तुलना कीजिये और संगीतापुरी की तरह पूछिये:
पढकर सोंचने को मजबूर हो गयी .. क्या सचमुच भारत और कनाडा के लोगों के व्यवहार में इतना अंतर है .. या आप बढा चढाकर पेश कर रहे हैं ?
सिद्धार्थत्रिपाठी के.एम.कीथ के हवाले से व्यवहार और सत्यनिष्ठा दिग्दर्शक सिद्धान्त बताते हैं:
लोगों को मदद की जरूरत होती तो है लेकिन यदि आप मदद करने जाय तो वे आपके प्रति बुरा बर्ताव कर सकते हैं। फिर भी आप मदद करते रहें।
यदि आप किसी की भलाई करने जाते हैं तो लोग इसमें आपकी स्वार्थपरता का आरोप लगा सकते हैं। फिर भी आप भलाई करते रहें।
आप आज जो नेक काम कर रहे हैं वह कल भुला दिया जाएगा। फिर भी आप नेकी करते रहें।
यदि आप सफलता अर्जित करते हैं तो आपको नकली दोस्त और असली दुश्मन मिलते रहेंगे। फिर भी सफलता प्राप्त करते रहें।
ईमानदारी और स्पष्टवादिता आपको संकट में डाल देती है। फिर भी आप ईमानदार और स्पष्टवादी बने रहें।
आप यदि दुनिया को अपना सर्वश्रेष्ठ अर्पित कर दें तो भी आपको घोर निराशा हाथ लग सकती है। फिर भी अपना सर्वश्रेष्ठ अर्पित करते रहें।
जीतेन्द्र चौधरी बचपन की खुराफ़ातों में एक बार फ़िर से डूब गये हैं:
ये शौंक भी अजीब था। कंचे खरीदने और जीतने का जुनून इस कदर सवार था कि समय का पता ही नही चलता था। कंचे भी अलग अलग साइजों मे आते थे, टिइयां, सफेदा, डम्पोला और ना जाने क्या क्या देसी नाम रखे गए थे। अक्सर कोई एक कंचा लकी कंचा हुआ करता था। लेकिन अजीब बात ये थी कि ये लकी कंचा रोज बदल जाता था। गर्मिया शुरु होते ही इस शौंक को पर लग जाते। हम अपनी झोले जैसी निक्कर, बहती नाक के साथ कंचे खेलने निकल पड़ते। कभी कभी तो हम बहुत कन्फ़्यूज हो जाया करते थे, खिसकती निक्कर सम्भालें की बहती नाक। अक्सर जीत नाक की होती थी, निक्कर का क्या है खिसकती है तो खिसकती रहे। इस खेल मे लड़ाई बहुत होती थी, क्योंकि अक्सर लोग बेईमानी पर उतर आते थे। हाथापाई तो बहुत कॉमन बात हुआ करती थी। हमने इस शौंक के द्वारा अपना जुकाम सभी साथी खिलाड़ियों को ट्रांसफर किया था।
एक लाईना
- क्या होगा ब्लॉग लिखकर ? : जो होगा देखा जायेगा
- बचपन के खुराफ़ाती शौक:अब फ़िर शुरू हो गये
- अश्लीलता पर सरकारी फंदा : इस पोस्ट के बाद हट जायेगा
- मन गीला नहीं होता :अपना ड्रायर सिस्टम झकास है
- ये कैसे डाक्टर हैं भाई? :अब हम का बताई?
- एक रुपये की ही तो बात है...:इत्ते में महीने का खाना हो जायेगा
- इस तरह तो एक - दो माह में सभी ब्लॉग बंद हो जायेंगे:फ़िर से खुल जायेंगे
- कोई जीते ना जीते.. पाकिस्तान नहीं जीतना चाहिए ! :लेकिन अब तो जीत गया पाकिस्तान
- नाच रहे हैं देखो मोर --: बादल छाये हैं घनघोर
- संसार का सबसे ऊंचा जीव जिराफ :बालसुब्रमण्यम की पोस्ट में बरामद
- उस खत को पढ़ लेने के बाद : डायरी में रख लिया गया
मेरी पसन्द
आंखों में फिर तिर आये वे यादों की पुस्तक के पन्ने
बुदकी फ़िसली सरकंडे की कलमों से बनती थी अक्षर
प से होता पत्र, जिसे था लिखना चाहा मैने तुमको
जीवन की तख्ती पर जिसके शब्द रह गये किन्तु बिखर कर
शायद कल इक किरण हाथ में आकर मेरे कलम बन सके
सपना है ये, और तुम्हें मैं वह अनलिखा पत्र लिख डालूँ
फिर उभरे स्मॄति के पाटल पर धुंधले रेखाचित्र अचानक
सौगंधों के धागे कि्तने जुड़ते जुड़ते थे बिखराये
पूजा की थाली का दीपक था रह गया बिना ज्योति के
और मंत्र वे जो अधरों तक आये लेकिन गूँज न पाये
शायद पथ में उड़ी धूल में लिपटा हो कोई सन्देसा
सपना है ये, और बुझा मैं दीपक फिर वह आज जला लूँ
राकेश खण्डेलवाल
और अंत में
कोई मेहनती अनामी ब्लागर अपना पसीना बहा रहा है द्विवेदीजी द्वारा अरुण अरोरा को दी गयी सलाह के अंश तमाम ब्लागों में टिपिया के। अनामी ब्लागर अपना नाम Dinesh लिखता है और यह अंश टीपता है:
आप का यह आलेख व्यंग्य भी नहीं है, आलोचना है, जो तथ्य परक नहीं। यह साईबर कैफ़े समुदाय के प्रति अपमानकारक भी है। मैं अपने व्यक्तिगत जीवन में बहुत लोगों को परेशान होते देख चुका हूँ। प्रभाष जोशी पिछले साल तक कोटा पेशियों पर आते रहे, करीब दस साल तक। पर वे व्यवसायिक पत्रकार हैं। उन्हें आय की या खर्चे की कोई परेशानी नहीं हुई। मामला आपसी राजीनामे से निपटा। मुझे लगा कि आप यह लक्जरी नहीं भुगत सकते।
अधिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ।
इस बात का जिक्र भारतीय नागरिक ने अपने ब्लाग में विस्तार से किया है।
अब इस तरह की बचपने वाली हरकतों के लिये उस अनाम ब्लागर को क्या कहा जाये। आप ही बतायें।
फ़िलहाल इत्ता ही। आपका हफ़्ता मंगलमय शुरू हो। शानदार गुजरे। मस्त-टिचन्न!
आज की तस्वीर
रजियाजी की पोस्ट से साभार
मस्त चर्चा..जिसे जो पूछना हो, पूछे...सच ही कहूँगा और सच के सिवा कुछ न कहूँगा.. गीता जी पड़ोस में चार पाँच घर छोड़ कर रहती हैं, उन पर हाथ धरे कसम खाता हूँ. :)
जवाब देंहटाएंहम तो बताने के लिए भरे बैठे ही हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां चर्चा .
जवाब देंहटाएंसीतापुर के एक नन्हें मुन्ने कक्षा -8 के छात्र कवि नील श्रीवास्तव की कविता बहुत अच्छी लगी| वास्तव में इस नन्हें से बचपन नें अपने पिता के प्रति दिल खोलकर अपने सारे भाव अत्यंत संक्षेप में ही व्यक्त कर दिए हैं |
जवाब देंहटाएंपापा बहुत अच्छे ...
मुझे बहुत प्यार करते ....
जब भी मैं गलती करता ....
वे मुझको डांट भी देते ....
और तो और ...
मेरा छोटा भाई....
जब शैतानी करता .....
तो पापा साथ-साथ.....
मुझको भी डांटते हैं ....
मेरे पापा.....
मेरे साथ खूब खेलते हैं .....
मेरे पापा ....
हर कठिन घड़ी में ....
मुझको....
हिम्मत बंधाते हैं ....
मैं अपने पापा का .....
खूब रखता ख्याल .....
और करता .....
उनको बहुत प्यार ......
नील श्रीवास्तव को हिंद युग्म पर आने के लिए बहुत बधाई |
आशा है कि वह आगे निश्चय ही हिंद युग्म का वाहक बनेगा |
चर्चा पढ कर मन रजिया जी के ब्लाग की तस्वीर सा खिल गया।
जवाब देंहटाएंपितृ दिवस पर सार्थक चर्चा... आपने बखुबी सब समेट लिया...
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां चर्चा .
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंएक चर्चित और बीते घँटों पर सर्वाधिक हिट पाये हुये पोस्ट पर
हमलोग रेलवे दुर्धटना स्थल पर पहुँचते ही फ़ौरन अतिगँभीर, क्षतिग्रस्त काया, दहशतज़दा, कुछ कम घायल और मामूली घायलों को चिन्हित कर दिया करते थे । यह एक आम प्रैक्टिस थी, ज़ाहिर है यह डाक्टरों की टीम में से एक कनिष्ठ डाक्टर किसी अनुभवी वार्डब्याय की सहायता से ही किया करता है । इसमें चूक भी होती है ।
एच. आई.वी. जैसे सँक्रमित रोगियों को यदि अलग वार्ड नहीं है, तो चिन्हित किया जाना अनिवार्य है । अमूमन यह वार्ड के आन ड्यूटी सिस्टर इँचार्ज के पास दर्ज़ करा दिया जाता है । यहाँ यह चूक चिकित्सारत डाक्टर और रोगी की सुश्रुषा से जुड़े जन के बीच सँवादहीनता से हुई लगती है, पर ?
पर यह निताँत एकाँगी निष्कर्ष है । क्योंकि टीवी कैमरे के सामने उसकी पहचान यहाँ तक की नाम और घटनाबयानी को को बारँबार फ़्लैश कर देशव्यापी स्तर पर प्रचारित करने वाले चौथे खँभे को आप किस रूप में देखते हैं ? क्या कोई बतायेगा ?
यदि इसके बाद किये जाने वाले एक अन्य विश्वसनीय टेस्ट वेस्टनब्लाट के लिये रक्त नमूनों को लेने आने वाले पैथालाजी-कर्मी को सावधान करने हेतु इस प्रकार की अस्थायी टैगिंग रही हो तो ?
अब कोई यह भी उछाल सकता है कि, इस अत्याधुनिक टेस्ट में एक ’ ब्लाट ’ क्यों लगा है ?
हिन्दी ब्लागिंग मीडिया कवरेज़ का अँधानुकरण करते रहने को कब तक अभिशप्त रहेगा ? बिना सम्पूर्ण तथ्यों को खँगाले कुछ भी लिख देना एक सामाजिक अन्याय है ।
अपनी नमाज़ अदा करने में डाक्टरों के गले रोज़ा पड़ना कोई नई बात भी नहीं है
मन गीला नहीं होता - चड्डी गीली हो जाती है:-)
जवाब देंहटाएंकल पिताजी दिवस पर पिताजी नामक ब्लॉग आरंभ किया गया है। जिस पर एक ही दिवस में 25 लेखक जुड़े हैं और लगभग 14 पोस्टें लगी हैं। जिन पर खूब प्रतिक्रियाएं भी प्राप्त हुई हैं। जिसका लिंक http://pitaajee.blogspot.com/ है। हैरां हूं अनूप जी की नजर इस पर जाने से क्यों रह गई जबकि यह पिताजी ब्लॉग कल यानी अपने सृजन के पहले दिन ही ब्लॉगवाणी से भी जुड़ गया था। खैर ...
जवाब देंहटाएंचर्चा अच्छी रही।
अनूप जी,
जवाब देंहटाएंमानना पड़ेगा आपके व्यापक दृष्टीकोण को बहुत खोज के लाते हैं ब्लॉग जगत की खबर।
चर्चा की रोचकता बिल्कुल किसी आचार की तरह चटखारा लगाने पर विवश कर देती है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
ब्लॉग पर मोर नाचा किसने किसने देखा
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
वीनस केसरी
पितृ दिवस पर सार्थक चर्चा...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा. पिताओं के दिन बहुरेंगे अब?
जवाब देंहटाएंनाचते मोर ने तो कमाल कर दिया. ये ब्लॉग आ गया है अब. इसलिए ये कहावत अब बंद होनी चाहिए कि जंगल में मोरा नचा..किसने देखा.
शानदार चर्चा रही जी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसाइना नेहवाल की फोटू बहुत बढियाँ चर्चा से ज्यादा नही :)
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