आपने किशोरदा का गाया हुआ पहला गीत सुना है जिसे उन्होने १९४८ में खेमचन्द्र प्रकाश जी के संगीत निर्देशन वाली फिल्म जिद्दी में गाया था? गीत के बोल थे मरने की दुवायें क्यूं मांगू, जीने की तमन्ना कौन करे।
चलिये अगर इस गीत को आपको एक बहुत ही सुन्दर और रूहानी आवाज में सुनाया जाये तो? आप इस गीत को सुनेंगे तो अपने आप वली मोहम्मद साहब की सुन्दर आवाज में डूबे बिना नहीं रह पायेंगे। तो आप सुनना चाहते हैं तो सुखनसाज पर आईये यहां संजय भाई पटेल इस इस सुन्दर गीत को सुनवा रहे हैं।
वली मोहम्मद जी के बारे में संजय भाई कहते हैं
उन्हें सुनें तो लगता है जैसे सहरा में एक बाबा बाजा लेकर बैठ गए हैं औरकन्दीलआइये अब आपको और इन्तजार करवाने के बजाय सीधे सुखनसाज पर बज रहे इस कलाममरने की दुवायें क्यूं मांगू, जीने की तमन्ना कौन करेपर ही ले चलते हैं।
की मध्दिम रोशनी में आपको मनचाही बंदिशें सुना रहे हैं।
सुन्दर गीत को सुनने के बाद संजय भाई के खुद के चिट्ठे सुरपेटी पर जाना हुआ तो वहां पीनाज मसानी की आवाज में एक सुन्दर भजन सुनने को मिला.. मैं तेरी दासी, तू मेरा दाता
यूनुस भाई के चिट्ठे पर कम ही पोस्ट आती है पर जो आती है वे बहुत ही बढ़िया होती है। बहुत बढ़िया गीतों की पसंदगी के साथ गीत, गायक, संगीतकार और फिल्म की जानकारी भी बहुत बढ़िया होती है। अपने चिट्ठे पर इस बार सुरैया को याद करते हुए यूनुस भाई सुनवा रहे हैं एक गीत कोई दिल में समाया चुपके चुपके।
मनीष भाई लगातार दो पोस्ट में सुप्रसिद्ध गज़ल गायक चंदन दास के बारे में बताते हुए उनकी गाई हुई कुछ गज़लें सुनवा रहे हैं। पहली गज़ल है आती जाती हर मोहब्बत है चलो यूं ही सही... और दूसरी गज़ल है जब मेरी हकीकत जा जा कर उनको सुनाई लोगों ने....
गीतों की महफिल पर इस महीने में अब तक दो पोस्ट आई हैं, और दोनों ही पोस्ट में लता जी के वे गीत हैं जो अमूमन रेडियो पर सुनाई नहीं देते। पहला गीत है ओ जिन्दगी के मालिक तेरा ही आसरा है और दूसरा गीत है जमालसेन का संगीतबद्ध वह गीत जो रचा गया था फिल्म पहले कदम के लिये पर बाद में फिल्म में इसे शामिल नहीं किया जा सका। यह गीत है बीता हुआ एक सावन एक याद तुम्हारी
चिट्ठाचर्चा में पता नहीं क्यों हिन्दी में टाईप करने का ऑप्शन रखा हुआ है, कुछ टाइप करने के बाद एडिट करना हो तो यह अपने आप ही सुझाव दे कर कभी हिन्दी तो कभी अंग्रेजी में शब्दों को बदल देता है, और एडिट करते समय इतनी खीझ होती है कि पूरी चर्चा को डिलीट कर दिया जाये। अभी मुझसे टाइप के दौरान एक गलती हुई मैने थे, मरने की बजाय थमरने टाइप कर दिया। जब उसे सुधारने की कोशिश की तो अपने आप कभी ठेमराने तो कभी marraney टाइप हो जाता। ऐसा पहली बार नहीं हुआ, पिछली बार मुझे शीर्षक में चिट्ठाचर्चा टाइप करना था और ये जबरन चित्त्ता और ना जाने क्या क्या टाईप करवाने तुला हुआ था।
एक बार तो मन हुआ कि डिलीट ही करदें पर अनूपजी से वायदा किया था कि आज पोस्ट की जायेगी इसलिए फिर हटमल में जाकर आवश्यक सुधार किया। पोस्ट में तो किये जा सकते हैं लेकिन शीर्षक में..?
चित्र देखिये
आजकल गीत संगीत के चिट्ठों पर पोस्ट्स बहुत कम आ रही है, ना ही उत्साहजनक हिट्स/टिप्पणियां। इतनी पोस्ट भी नहीं कि जिनकी चर्चा की जा सके। अत: अब गीत संगीत के चिट्ठों की चर्चा कर पाना मेरे लिये मुश्किल हो रहा है सो अंतिम चिट्ठाचर्चा के साथ अलविदा।
जवाब देंहटाएंख़ुदा ज़नाब उस्ताद अली अकबर साहब को जन्नत की इनायतें बख़्शे ।
इसी भाव से मेल खाती एक पुराना गाना याद आया
जाने वाले से मुलाकात न हो पायी
जो कि अब कभी हो भी न पायेगी
अरे भाई!
जवाब देंहटाएंऐसा मत करो। चालू रखो यह चर्चा। हम भी अपने ब्लाग पर कभी न कभी कुछ गीत संगीत डाल ही देते हैं।
संगीतमय चर्चा पर टिप्पणी करने के लिए मेरे पास कोई संगीतमय कीबोर्ड होता।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अरे ऐसा गजब न करें सागर भाई..जो भी है बिना गीत संगीत तो जीवन अधूरा है तो चिट्ठाचर्चा कैसे पूरी हो सकती है?
जवाब देंहटाएंक्या किया जाए,
जवाब देंहटाएंहम तो समझदार थे ही, गूगल ने एक और से (transliterate/indic) भिड़ा दिया.
झगड़ा तो होइबे करी.
badhiya Geet sangeet charcha. badhai.
जवाब देंहटाएंअल्लाह उस्ताद अली अकबर साह्ब को कब्र के अज़ाब से बचाये और जन्नत नसीब करॆं
जवाब देंहटाएंअब ब्लोग्गर का इस्तेमाल करना है तो इसे तो झेलना पडेगा।
नहीं काशिफ जी इसे एक क्लिक कर हटाया जा सकता है पर ये संचालकों के हाथ में है।
जवाब देंहटाएं:)
टिप्पणियां भी संगीत में करने की सुविधा मिल जाए तो कानों को आनंद आए।
जवाब देंहटाएंहिंदुस्तानी क्लासिकी मूसिखी़ को विदेशों में पहुंचाने वाले अलम्बरदारों में थे स्व. अली अकवर खां साहब।
जवाब देंहटाएं> हबीब वली मुहम्मद जब तक भारत में थे, उन्हें कोई विशेष ख्याति नहीं मिली क्योंकि उस समय गज़ल गायकी को उतनी तव्वजोह नहीं मिली थी। संगीत-संसार में जब गज़ल का दौर आया तब तक वे पाकिस्तान जा चुके थे... उनके बारे में तो यही हुआ-
ये दुनिया हो या वो दुनिया, अब ख़्वाहिशे दुनिया कौन करे॥
अच्छी चर्चा.
जवाब देंहटाएंलगता है गूगल ट्रान्सलिटरेशन ने बहुत सताया आपको. देख सकता हूँ......"फिर हटमल में जाकर आवश्यक सुधार किया". हा हा हा हा.
सुविधा भी दुविधा का कारण हो सकती है. वैसे बारहा वगैरह जैसे टूल भी तो प्रयोग किये जा सकते हैं, लिखने के बाद पेस्ट कर दें.
सरोद मेरा एक प्रिय श्रव्य है इसीलिये उस्ताद अली अकबर खाँ साहब का समाचार सुन दु:ख हुआ.
कौतुक
"...चिट्ठाचर्चा में पता नहीं क्यों हिन्दी में टाईप करने का ऑप्शन रखा हुआ है,..
जवाब देंहटाएंयह विकल्प हटा दिया गया है. उम्मीद है इससे किसी चर्चाकार को कोई परेशानी न हो...