लेखक ने शुरुआत में ही अनुरोध किया है- हमे आप कतई गवार, अनपढ, जाहिल, खरदिमाग बेअकलो की श्रेणी मे रख सकते है.
लेख पाकिस्तानी आतंकवादी कसाब और उसके वकील से संबंधित है। इसमें वकील की नैतिकता की बात भी है। पाठकों की प्रतिक्रियायें भी हैं। कुछ पाठकों का मत है कि कसाब जैसे आतंकवादियों को गोली मार देनी चाहिये। इसके पहले भी इस विषय पर काफ़ी कुछ लिखा जा चुका है जिसमें वकील की देशभक्ति पर सवाल उठाये गये थे जिस पर द्विवेदीजी का कहना था-
जो पेशे के प्रति ईमानदार नहीं वह किसी जन्म में देशभक्त नहीं हो सकता।
द्विवेदीजी अपने लेख वकील और कानून व्यवस्था में अपने विचार व्यक्त करते हुये लिखते हैं:
वकील पुलिस, अदालत, परिवादियों, अपराधियों, राजनेताओं के लगातार संपर्क में रहते हैं। वे इन सब के चरित्र को अच्छी तरह समझते हैं और समझ सकते हैं। लेकिन अन्य पेशेवर लोगों की तरह वे भी इन सब की अनदेखी कर अपनी रोजी-रोटी कमाने की फेर में पड़े रहते हैं।द्विवेदीजी के अनुसार अधकचरी विधि शिक्षा का नतीजा होता है कि
एक नया वकील विधिक उपायों को अभ्यास से सीखता है। प्रारंभ में वह अनेक मुवक्किलों को गलत उपायों के मार्ग पर डाल देता है। उस का हाल उस कहावत जैसा है, "सीखे बेटा नाऊ को, मूँड मुढ़े काहू को"। किसी का भी सर कटे या गाल नाई का बेटा तो हजामत बनाना सीख ही जाता है।
सिद्धेश्वर जी हिन्दी किताबों के संस्करण की घटती संख्या पर अफ़सोस जाहिर करते हुये लिखते हैं:
पहले पाँच हजार , फिर तीन हजार , फिर ग्यारह सौ, फिर पाँच सौ, फिर तीन सौ और अब सुना है कि सौ पर मामला आ गया है।
तस्वीर का दूसरा पहलू भी वे दिखाते हैं:
कुछ किताबें हैं जो अब भी धड़ाधड़ छप रही हैं और बिक रही हैं. आपने कभी सोचा है कि उनके सदाबहार होने / बने रहने का रहस्य आखिर क्या है ! वह कहाँ छिपा है - काम में, नाम में या फिर दाम में ? अब दाम का क्या कहें ! क्या ग़ज़ब है साहब एक गत्ता भर लगा देने से दुगना दाम ! इस करिश्माई करामात को नमस्ते - सलाम !
इस लेख पर अपने विचार व्यक्त करते हुये बालसुब्रमण्यम का कहना है कि इसका स्वर निराशावादी है। पुस्तकों के महत्व को रेखांकित करते वे सुझाव देते हैं:
हिंदी भाषियों में पुस्तक पठन को बढ़ाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? पहले तो हमें स्वयं पुस्तकें खरीदकर पढ़ने की आदत डालती होगी। हर महीने एक पीजा कम खाएं, या एक पैकेट सिगरेट कम फूंकें, या अन्य प्रकार से बचत करें और इस पैसे से हम किताब खरीदें। बच्चों में खास तौर पर पढ़ने की आदत डालें।उनका यह भी कहना है:
अपने ब्लोगों में किताबों की खूब चर्चा करें। इससे हमारे ब्लोगों के पाठकों में किताबें पढ़ने की रुचि बढ़ेगी।
आप भी इस बारे में कुछ कहना चाहेंगे?
दिलीप कवठेकर ने अपने बच्चे अमोघ के जन्मदिन के अवसर (सात जून)उससे जुड़ी उपलब्धि की भी जानकारी दी:
अभी अभी एक बडा अचीवमेंट भी उसके नाम रहा है. युसीमास मेंटल अरिथमेटिक्स एबेकस प्रतियोगिता में लगातार तीसरी बार मध्य प्रदेश में पांचवे लेवल में वह चेम्पियन याने प्रथम घोषित किया गया है.
इस पठनीय पोस्ट में एबेकस प्रतियोगिता के बारे में जानकारी दी है और अमोघ का संकल्प भी-
पापा- मैनें सोचा कि ये बात गलत है, और मैं कुछ भी हो जाये चीटींग नहीं करूंगा. हो सकता है, कि आज मैं हार जाऊं मगर मैं गलत काम नहीं करूंगा.
अमोघ को उसके जन्मदिन पर बधाई और आगे की प्रतियोगिताओं के लिये शुभकामनायें।
नीरज जी दुष्यन्त कुमार की प्रसिद्ध गजल ( जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में/हम कहां हैं आदमी हम झुनझुने हैं)की तर्ज पर सुबीर जी के आशीर्वाद के चलते अपनी बात कहते हैं:
ये कैसे रहनुमा तुमने चुने हैं
किसी के हाथ के जो झुनझुने हैं
तलाशो मत तपिश रिश्तों में यारों
शुकर करिये अगर वो गुनगुने हैं
ये सेकुलरिज्म जो न करवाये। शिवजी को काशिफ़ आरिफ़ की बात कुछ ऐसी जमी कि सेकुलर दोहेबाजी पर उतर आये:
हम सेकुलर हैं जनम से और कम्यूनल हैं आप
संग हमरे जो न चले लेंगे गर्दन नाप
खुद को सेकुलर कह दिए ठप्पा लिया लगाय
वे टस से मस न करें चाहे सब मरि जाय
साठ साल से गा रहे अपना सेकुलर गान
बाकी चाहे जो कहें सुनें न उनका तान
बाँट रहे सर्टिफिकेट गाकर सेकुलर राग
सेकुलर साबुन यूज कर छुपा लिए सब दाग
आप अगर यह दोहेबाजी देखें तो पायेंगे कि इसमें ज्ञानजी अपना चवन्निया हिस्सा भी मांग रहे हैं- सेकुलर सम्मान का और काशिफ़ आरिफ़ का कहना है:
शिव जी, सबसे पहले काफ़ी अच्छी कविता लिखी है आपने, दुसरी बात आपकी टिप्पणी पढ्ने के बाद ही आपका नाम लिखा है। और एक चीज़ समझ मे नही आती सबकॊ अपना नाम लिखना बुरा लगा लेकिन किसी ने ये देखने की ज़हमत नही की मैरी ये पोस्ट लिखने की मुख्य वजह क्या थी?
इतने बडे-बडे लोग लेकिन किसी को भी मेरी अस्ली वजह नही दिखी? मैने सुना था उम्र के साथ तजुर्बा आ जाता है लेकिन मुझे तो इस ब्लोग्गर समुदाय मे ऐसा नही दिखा।
ज्ञानजी अपने स्वभाव के विपरीत बिना मोबाइल कैमरा मुट्ठीगंज की आढ़त में चले गये और लिखते भये आढ़तकथा जिसमें कामायनी की तर्ज पर कुछ लिख जाने की हसीन हसरत भी नत्थी है:
आढ़त की गद्दी पर बैठ काम करते श्री जयशंकर “प्रसाद” बनने के चांसेज बनते हैं। पर क्या बतायें, “कामायनी” तो लिखी जा चुकी!
कमाल कानपुर सीना ठोककर कनपुरिया हैं। अपने ब्लाग के जरिये कानपुर की बात कहने, सुनने और समझने की कोशिश करना शुरू किया है। कानपुर से संबंधित बातें लिखते हैं जिनमें कानपुर के कोतवाल बजरंगबली हैं, मोतीझील है, काकादेव की कोचिंग मंडी है। कानपुर के कोतवाल में वे लिखते हैं:
कानपुर के हर छोर पर संकट मोचन के प्रतिष्ठित मंदिर हैं, जहाँ पर यहाँ के निवासी ही नहीं बल्कि अन्य प्रदेशों से आये लोगों की आस्था नमन करती है। इनमें आप शोभन गढ़ी, पनकी, जी. टी. रोड स्थित रुमावाले हनुमान, गोल चौराहे के निकट स्थित दक्षिणेश्वर तथा सत्ती चौरा के सालासार वाले बालाजी और किदवई नगर वाले हनुमान मंदिर को गिन सकते हैं। मंदिर छोटा हो या बड़ा, यह भी चमत्कार की बात है कि शहर से जुड़े हर पुलिस स्टेशन और चौकी में हनुमान जी प्रतिष्ठित हैं।
प्रख्यात रंगकर्मी हबीब तनवीर के निधन पर उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुये अशोक पाण्डेय ने लिखा:
कल ८ जून. २००९ के दिन हमारे देश ही नहीं ,बल्कि दुनिया के महान रंगकर्मियों में शुमार हबीब तनवीर साहब का भोपाल में ८५ साल की उम्र में निधन हो गया। हबीब साहब का जाना सचमुच एक युग का अंत है। उन्होंने नाटक को ज़िंदगी के इतना करीब ला दिया कि उनके नाटक देख कर यह लगता था कि हर इंसान में एक अदाकार छिपा है। दिल्ली में ओखला की मज़दूर बस्तियों के मज़दूरों, जामिया के छात्रों और छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों को उन्होंने शानदार अदाकारों में ढाल दिया। उन्होंने अदाकारी के लिए बड़े- बड़े संस्थानों में प्रशिक्षित कलाकारों की जगह आम जनता के सामान्य लोगों पर भरोसा किया।
देश के वामपंथी आंदोलन, प्रगतिशील आंदोलन और इप्टा के साथ १९४५ से ही उनके सघन जुड़ाव ने उन्हें यह सीख दी थी कि जनता की कला जनता के भीतर से पैदा होगी, न कि अभिजन संस्थानों या फ़िर अपनी दुनिया में रहने वाले बुद्धिजीवियों से। हबीब साहब किसी भी जगह को स्टेज बना सकते थे, फ़िर वह बाज़ार हो, गली मुहल्ले हों या गांव। वे दक्षिण एशिया के बर्टोल्ट ब्रेष्ट थे।
अनुराग वत्स ने हबीब तनवीर जी के बारे में चर्चा करते हुये उनके उल्लेखनीय योगदान की विस्तार से चर्चा की है।
हबीबजी को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि।
कल ही विदिशा से भोपाल जा रहे देश के प्रख्यात कविगण ओमप्रकाश आदित्य, नीरजपुरी, लाड़सिंह गुर्जर,ओम व्यास ओम और ज्ञानी बैरागी एक सड़क दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो गये। इनमें से ओमप्रकाश आदित्य, नीरजपुरी और लालसिंह गुर्जर की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गयी और ओमव्यास और ज्ञानी बैरागी की हालत गंभीर है।
ओमप्रकाश आदित्य जी , नीरजपुरीजी और लालसिंह गुर्जर के प्रति श्रद्धांजलि। ओमजी और ज्ञानी जी के लिये दुआ है कि हमारे बीच बने रहें।
ब्लागर परिचय
मेरी पसंद
शब्द,
बस दम घोंटे हुये
चुपचाप वहीं बैठे रहे
बाट जोहते अपनी बारी की
विचार,
छटपटाते हुये
ढूंढते रहे रास्ता बस
किसी तरह बह निकलने का
मैं,
दोनों के बीच
हाशिये पर टंगा
तलाश रहा था वुजूद अपना
त्रिशंकु सा
और,
क्षितिज पर
केवल तुम थी,
सत्य की तरह
शाश्वत!
मुकेश कुमार तिवारी
एक लाईना
- पुस्तक पढ़ने में हममें इतनी अरुचि क्यों है? : ये अंदर की बात है
- परिंदे प्यार के उड़ने दे:कार्यक्रम के प्रायोजक हैं नीरज गोस्वामी
- बाँट रहे सर्टिफिकेट गाकर सेकुलर राग : यही है तन्नी गुरू का बनारस वाला आग राग
- 1800 करोड़ की ठगी, क्या सिर्फ जड़ेजा दोषी? :लोग श्रेय लेने में शरमाते हैं अपने यहां
- क्यों सहें कमेंट बॉक्स के नखरे? :नखरे बिना चैन कहां रे?
- वकील की नजर मे न्याय ? :एक और पंगा
- कलयुग की सीता:को अपना परिचय पत्र तो दिखाना ही होगा
- दोस्तों ,माफ़ कर देना मुझे:अभी टाइम नहीं है भैये देख नहीं रहे चर्चा में व्यस्त हैं
और अंत में
फ़िलहाल इतना ही। एक लाईना और जोड़ते रहेंगे इस पोस्ट में। एकलाईना प्रेमी टहलते रहें, कुछ देर में शायद नया मिल जाये। आपका दिन टनाटन बीते।
सार्थक और बेहतरीन चर्चा .ओमप्रकाश आदित्य जी , नीरजपुरीजी और लालसिंह गुर्जर के प्रति श्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएंumda !
जवाब देंहटाएंविस्तृत और अच्छी चर्चा। हबीब साहब का जाना तो अपनी उम्र को भरपूर जी कर जाना है। वे कई जन्मों का काम एक में कर गए। लेकिन ओमप्रकाश आदित्य, नीरजपुरी और लालसिंह गुर्जर का अचानक इस तरह दुर्घटना में चले जाना हृदय विदारक घटना है। पर यातायात दुर्घटनाएँ अब असमय जीवन लेने का मुख्य साधन बन गई हैं। इस में मानवीय गफलत और लापरवाही का भरपूर योगदान भी है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा. केवल खानापूर्ती नहीं है.
जवाब देंहटाएंहबीब जैसे लोगो के लिए एक उम्र भी कम पड़ती है....उनकी कर्मठता ओर हिंदी रंगमंच के उत्थान के लिए सही दिशा में निरंतरता .लोक कलाकारों को रंगमंच से जोड़ना ...अनेको कारण है उन्हें याद करने के लिए ....
जवाब देंहटाएंओमप्रकाश आदित्य जी , नीरजपुरीजी और लालसिंह गुर्जर के प्रति श्रद्धांजलि...
अरे, कहां रहे पण्डिज्जी?
जवाब देंहटाएंअब रंग लाई है चर्चा!
सुन्दर चर्चा.
जवाब देंहटाएंचिठ्ठा चर्चा की जान ही एक लाइना है। इनकी संख्या बढृाएं तो मजा आए। यानि कम से कम दस तो हो ही। कभी पांच या सात तक ही होती है तो लगता है आज चर्चा कुछ कम हुई है। एक लाइन में सारी बात आ जाती है।
जवाब देंहटाएंचर्चा के लिए आभार।
tahal rahe hain...
जवाब देंहटाएंpasanda behatareen...!
जवाब देंहटाएंSundar Sarthak charcha...Aabhar.
जवाब देंहटाएंहबीब जी के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बढ़िया चर्चा.
जवाब देंहटाएंहबीब तनवीर साहब रंगमंच की दुनिया के लिए युगपुरुष थे. उन्हें सबसे बढ़िया श्रद्धांजलि यह होगी कि रंगमंच की दुनियाँ के लोग उनके काम को आगे बढायें. दिवंगत कवियों को हमारी श्रद्धांजलि.
का फुर्सत में चर्चियाये हैं..हमहूँ फुर्सत से सांस ले ले कर पढ़े हैं..अगले एक लाईना का इन्तजार है..काहे से की अपना चांस उससे ज्यादा का कभी भी नहीं रहा न....
जवाब देंहटाएंदिल से की गई चर्चा, कल के हादसे में सभी दिवंगत आत्माओं को विनम्र श्रद्दांजलि.
जवाब देंहटाएंरामराम.
रंग जमाने वाली चर्चा है.
जवाब देंहटाएंबधाई आपको.
बहुत जबर्दस्त चर्चा। शिव जी के दोहे तो गजब के हैं। उन्हें पढवाने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
दिन तो टनाटन बीत गया रात के लिए क्या आदेश है :)
जवाब देंहटाएंवीनस केसरी
इतने सुन्दर दोहे लिखना जानते हैं, जरुर कवि होंगे. :)
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा चर्चा से आज का दिन टनटन बीता > शुक्रिया दिल से !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे अनुप जी, बहुत उम्दा
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