ब्लॉग को मैं साहित्य नहीं मानती। वहां मैंने पढा है कि लोग लिखते हैं 'बडी टेंशनात्मक स्थिति है'। ये 'टेंशनात्मक' क्या है ? कितने लोग ब्लॉग पढते हैं। ब्लॉग पढा जाता है अमिताभ बच्चन का। मैं ब्लॉग को साहित्य नहीं मानती।
स्तर-उस्तर का तो हम नहीं जानते लेकिन जितने प्रयोग ब्लागिंग में हो रहे हैं एक से एक धांसू से लेकर एक से एक चौपट तक उतने शायद साहित्य में न हो रहे हों।
नये-नये शब्द गढ़ने में भी ब्लागजगत में कम कलाकारी नहीं हो रही है। आज ही ज्ञानजी ने नया शब्द गढ़ा- लीगल-एथिक्स (Legal Ethics) हीनता | काकटेलिया शब्द गढ़ना ज्ञानजी की हाबी है। शब्दपुजारी की तरह वे वर्णशंकर शब्दों का गठबंधन कराते रहते हैं। लीगल एथिक्स अंग्रेजी से बटोरा और उस पर हीनता की छौंक लगा दी और परोस दिया नैतिकता की परात में। लेओ जीमो जी पाठक महाराज! :)
लेकिन भैया गरमी के कारण और कुछ सूझ नहीं रहा किसी को। मौका देखकर विवेक ने तो गर्मी की सरकार तक बनवा डाली।गर्मी की सरकार की अंदर की बात बताते हुये वे बताते हैं:
पंखों ने तो इसे समर्थन, बिना शर्त ही दे डाला ।
कूलर सिर्फ़ नाम के कूलर, उर में बसती है ज्वाला ॥
एसी सदा ध्यान रखते हैं, बस अपने ही लोगों का ।
ये गैरों की ओर बढ़ाते, बन्द लिफ़ाफ़ा रोगों का ॥
विवेक की अलग तरह की कवितागिरी देखकर लगता है ऐसे के लिये ही कहा गया है! लीक छांड़ि तीनों चलें शायर, सिंह, सपूत! अब संयोग यह कि विवेक सिंह शायर, सिंह और सपूत होने के नाते थ्री इन वन हो गये।
अब जब गर्मी की सरकार बनी तो उसके कसीदे भी काढ़े जायेंगे। इसी चक्कर में कुछ (अ)-दोहे लिख डाले हमने:
बूंद पसीने की चली, अटकी भौहों के पास,
बढ़ने की हिम्मत नहीं ,बहुत गर्म है सांस!
नल पर लंबी लाइन है, मचा है पानी हित हाहाकार,
अब तो जो पानी पिलवाय दे , है वही नया अवतार।
मिसिरजी ने चिट्ठाचर्चा करते हुये आवाहन किया:
आप सभी से अनुरोध है कि आप सभी पर्यावरण और जल संरक्षण हेतु जनजागरण के उद्देश्य से इस विषयो पर अधिकाधिक सार्थक पोस्ट लिखें जो प्रेरक हो और उनसे आम पाठक भी प्रेरणा ग्रहण कर सके. यदि पर्यावरण और जल संरक्षण की ओर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाला समय मानव जाति ओर पशु पक्षियो के खतरे की घंटी साबित होगा .
अलबेलाजी पोस्टें लिखने का रिकार्ड बना रहे हैं। इसी क्रम में वे समीरलालजी को भी बना रहे हैं। आज उन्होंने समीरलालजी को शराब और गधे से जोड़ दिया। टिपियाते हुये ताऊ कह रहे हैं -छा गये गुरू! अब यह समझ में नहीं आया कि छा गये गुरू किसके लिये कहा गया है- अलबेला जी के लिए, समीरजी के लिये या फ़िर गधे जी के लिये। :)
वैसे अलबेलाजी का एक ठो फ़ोटू अनुराग जी बनाइन हैं। सो उसे इहां देखा जाये।
वैसे द्विवेदीजी की यह पोस्ट तो यही कहती है कि ब्लागिंग स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति का अधिकार है! उनको जो मन आये वे सो करें। चाहे जिसको जो बनायें।
अजितजी आज लंबे कद और लंबी जुबान की बातें करते पाये गये। लेकिन आदित्य का कद तो अभी उतना नहीं हुआ लेकिन शरारतें जारी हो गयीं।
अरविन्द मिश्र जी आवाहन कर रहे हैं छ्द्म विज्ञान बांचने का। लग लीजिये साथ में। आश्चर्यजनक रूप से लवली आज पहली बार उनसे सहमत होने की बात कहती पायीं गयीं। :)
कभी-कभी कुछ कवितायें देखकर लगता है कि कवि योजना आयोग का चेयरमैन है। ऐसी योजना बनायी जाती है कि बस वाह-वाह ही सूझता है। दिगम्बर नासवा कहते हैं:
जब कभी
स्याह चादर लपेटे
ये कायनात सो जाएगी
दूर से आती
लालटेन की पीली रौशनी
जागते रहो का अलाप छेड़ेगी
दो मासूम आँखें
दरवाज़े की सांकल खोल
किसी के इंतज़ार में
अंधेरा चूम लेंगी
जैसे क्षितिज पर चूम लेते हैं
बादल ज़मीन को
वक़्त उस वक़्त ठहर जाएगा
अब बताइये इतनी तफ़सील से वक्त कवि के अलावा कौन ठहरा सकता है। इसी तरह इस कविता में कलम के कर्जे पर धरे होने की जानकारी दी है। एक-एक चीज विस्तार से बताई है।
अनिलकान्त ने सामान्य ज्ञान की जानकारी देते हुये बताया -क्या कारण है कि चेहरा, आँखों से दिमाग पर छा जाता है इस पोस्ट पर अनिल पुसदकरजी कहते हैं: तुम्हारी आंखे भी बहुत कुछ बोलती है इस्लिये तस्वीर मे आंखों पर चढा काला चश्मा उतार दो। जबकि घुघुती बासूती जी आत्मस्वीकार करती हैं:
मैं चेहरे याद नहीं रख पाती। समस्या किसी की आँखों की नहीं मेरी आँखों की है।
अब कोई डाक्टर साथी इसका इलाज बताये। :)
बेनामी टिप्पणियों पर अपनी राय देते हुये अरविन्द मिश्र लिखते हैं:
बेनामी टिप्पणियाँ अनेक कारणों से की जा सकती हैं -उचित और तर्कपूर्ण कारणों से भी ! मगर इस समय जो टिप्पणियाँ हो रही हैं केवल घोर हताशा और निराशा का ही परिणाम हैं -कारण जिन्होंने भी हिन्दी ब्लागिंग को ऐसे ही मौज मस्ती के लिए ले लिया और उसके साथ सामाजिक उत्तरदायित्व को नहीं जोड़ा या फिर किसी प्रायोजित उद्येश्यों की पूर्ति में लगे या फिर अपने हारे हुए मुद्दों को यहाँ लाकर हायिलायिट (हाई लाइट) करने लग गये , अब चुक गए हैं ! कुछ लोगों ने बस यही समझ लिया था कि ब्लॉग का मतलब बस अपना रोना धोना, ज्ञान जी के शब्दों में कहूं तो सुबक सुबक पोस्ट है !
अरविन्द जी यह भी कहते हैं:
वैसे भी यदि आप आधी दुनिया -नारी पर कुछ नहीं लिख्रते या फिर पहेलियाँ नहीं पूंछते तो मत घबराईये कोई बेनामी आप तक नहीं पहुँचने वाला हैमतलब बेनामी टिप्पणीकार केवल उनके ब्लाग पर ही अनाम टिप्पणी करते हैं जो या तो नारी से संबंधित कुछ लिखते हैं या पहेलियां बुझाते हैं। समझ रहे हैं ताऊ!
वैसे कुछ साथी बेनामी टिप्पणीकारों की उपस्थिति की जरूरत महसूस करते हैं। अनाम टिप्पणीकारों के समर्थन में लिखी एक पोस्ट में मसिजीवी कहते हैं:
खतरा यह है कि यदि आप इसे वाकई मुखौटों से मुक्त दुनिया बना देंगें तो ये दुनिया बाहर की ‘रीयल’ दुनिया जैसी ही बन जाएगी – नकली और पाखंड से भरी। आलोचक, धुरविरोधी, मसिजीवी ही नहीं वे भी जो अपने नामों से चिट्ठाकारी करते हैं एक झीना मुखौटा पहनते हैं जो चिट्ठाकारी की जान है। उसे मत नोचो---ये हमें मुक्त करता है।
टिपियाने पर टिप्पणी प्रकाशित करने और न करने का अधिकार चिट्ठाकार का होता है।लेकिन एम.ज्ञान जी अपनी एक टिप्पणी को प्रकाशित न किये जाने का किस्सा बयान करते हुये पूछते हैं- ऐसा क्या था इस टिप्पणी में जो इसे प्रकाशित करने में डर लगा? । इस पर रचनाजी ने अंग्रेजी में अपना जबाब लिखा है। पाबलाजी ने टिपियाया है-अज़ीब लिखा-पढ़ी चल रही :)
ब्लागिंग से जुड़े हैं इंडीरैंक से भी जुड़ लीजिये। जानकारी दे रहे हैं बालसुब्रमण्यमजी
कभी प्रेम का महत्व बताते हुये कबीरदास जी ने लिखा था:
कबिरा यह घर प्रेम का, खाला का घर नाहिं,
शीश उतारै भुईं धरै, तब पैठे घर मांहि।
मतलब प्रेम घर में घुसना हो तो शीश (अभिमान) बाहर छोड़ना पड़ेगा। लेकिन आतंकवादियों के लिये ऐसी कोई शर्त नहीं। वे मौसी का मानकर यहां घुसे चले आ रहे हैं। एक आतंकवादी के बयान जारी करते हुये सतीश पंचम जी लिखते हैं:
अरे हमारी माँ कई बहने हैं, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भारत.......सब अपुन की माँ की बहने है, तो क्या है कि अपनी एक माँ को छोड बाकी अपुन की मौसी लगेंगी। तो अभी जा रहा हूँ....मौसीयाने बम फोडने। तूम आते हो तो चलो।
घूमने का आपको जरको भी शौक हो और मोटरसाइकिल चलाने में मजा आता हो तो आप मुनीश के साथ जरूर घूमने निकलिये। देखिये क्या शानदार फ़ोटू सटायें है भैया मुनीश।
सोनालिका बिजली आवाहन करती हैं:
ओ चंचला कभी हमारी गली में भी आ, हर चेहरा खिल उठेगा, हर कोना रौशन होगा, तुम्हारे आंचल की हवा में कुछ पल सो सकूंगा, हमारे बच्चे भी सो सकेंगे जो तुम्हारे न होने के गम को और भी भयानक बना देते हैं। ठहरो और देखो तुम्हारे आने से मेरे घर में खुशी कैसे मचलती है। सुकून पसरता है। हे चंचला मैं तुम्हारी स्तुति करता हूं, तुम्हारे बढे़ हुए दामों को भी अदा करता हूं लेकिन तुम हो कि मेहरबान नहीं होती हूं। आओं कि घर का पंखा और कूलर तुम्हारी राह जोह रहा है। आओ कि बल्ब जलने को बेकरार है।
शारदा अरोराजी लिखती हैं:
दुनिया के मेले यूँ गए हमको तन्हाँ छोड़ कर
भीड़ के इस रेले में , जैसे कोई अपना न था
तन्हाई ले है आई ये हमें किस मोड़ पर
खुली आँखों की इस नीँद में , अब कोई सपना न था
मनोज मिश्र अपनी पसंदीदा रचना पढ़वाते हैं:
खूबसूरत से इरादों की बात करता है
वो पतझडों में गुलाबों की बात करता है
एक ऐसे दौर में जब नींद बहुत मुश्किल है
अजीब शख्स है ख्वाबों की बात करता है
फ़ांट्स स्वर्ग में जाने के लिये कल्पतरु के नीचे खड़े हो जाइये और मांग लीजिये अपना मनपसंद फ़ांट।
निरीक्षण के दौरान दो-तिहाई से ज़्यादा न्यायिक कर्मचारी नदारद मिले परिणाम स्वरूप द्विवेदीजी को ताऊ पहेली में विजेता घोषित कर दिया गया। अब झेलें सवाल-जबाब। हम तो बधाई कह कर कट लेते हैं।
समीरजी कहते हैं
पहली मंजिल की खिड़की पर बैठा बैकयार्ड में बगीचा देख रहा हूँ. मौसम बहुत सुहाना लग रहा है.ये हाल जब पहली मंजिल से देखने के हैं तो उड़नतश्तरी से क्या जलवे भरे नजारे दिखते होंगे।
समीरलालजी ने यह पोस्ट दुखी मन से उभरे भाव बटोरकर लिखी है। नीरज रोहिल्ला की समझाइस है:
क्यों एक टिप्पणी से ही हमारा आपा खो जाता है और फ़िर हम जवाबी टिप्पणी लिखकर उसे द्वन्द युद्ध के लिये आमंत्रित कर लेते हैं। चिट्ठे से इतना मोह ठीक नहीं, साईबर जगत में टहल रहे इलेक्ट्रानों से इतनी नजदीकी का भ्रम पालें तो अपनी रिस्क पर :-) खैर, जो इसको अपनी प्रतिष्ठा का सामान बनाकर आईटी के औजार तरकशों में सजाये बैठे हैं, उनको इस एक तरफ़ी लडाई में जीत के लिये पहले से बधाई।
एक लाईना
- हमहूँ नामी हो गइलीं : बड़ी बदनामी है
- अनामी मित्र का स्वागत और कुछ खिचडी पोस्ट !!! : दही,पापड़ अचार किधर हैं?
- किस बात का गुस्सा? कहीं कोई भय तो नहीं? : गुस्से और भय के लिये छूट है वे किसी भी बात पर लग लें
- समीर लाल जी , शराब और गधा .....:एक पोस्ट पर एक साथ दिखे
- उनके लिए जो शादी शुदा हैं या शादी करने जा रहे हैं. :एक आखिरी मौका
- प्रति व्यक्ति गढ्ढे:में भारत का स्थान टाप पर
मेरी पसंद
हे सूरज महाराज......गर्मी को बरसाओ ना यूं ,
पत्थर सा सिकवाओ ना यूं ,
दबे पांव आने दो बदरा,
पानी-पानी को तरसाओ ना यूं ।
ना मुसकाते रहो यूं अकेले,
खङी धूप में, बिन सहेले,
तुमको होगी कसम चांदनी की,
दिन में तारे, दिखलाओ ना यूं ,
दबे पाव आने दो बदरा,
पानी-पानी को तरसाओ ना यूं ।
तुमभी अगन में तपे हो,
कई बरसों के प्यासे रहे हो,
थोङा रुकलो, तो आराम कर लो,
तुमभी खुद को सुखाया करो यूं ,
दबे पांव आने दो बदरा,
पानी-पानी को तरसाओ ना यूं ।
प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
और अंत में
फ़िलहाल इतना ही। एक लाईना और जोड़ने का मन है लेकिन समय हो गया सो पोस्ट कर रहे हैं। अगर आपने कल और परसों की चर्चा न देखी हो तो देख लीजिये। मजा आयेगा। लिंक हम दिये दे रहे हैं:
कल की चर्चा: चुटकुला चर्चा
परसों की चर्चा: क्यूँ हमारी संगीत प्रेमी जनता महरूम है एक उत्कृष्ट संगीत चैनल से ?
फ़ीड के बारे में ये जानकारी भी काम की है:
टीप : कुछ पाठकों की फ़ीड संबंधी शिकायत है कि उन्हें चिट्ठाचर्चा की फ़ीड सही नहीं मिल रही. फ़ीडबर्नर की फ़ीड में कुछ समस्या है. पाठकों से आग्रह है कि वे अपनी कड़ी सही कर लें और डिफ़ॉल्ट ब्लॉगर की फ़ीड सब्सक्राइब करें. पता है –
http://chitthacharcha.blogspot.com/feeds/posts/default?alt=rss
बाजू पट्टी में दिए गए फ़ीड की कड़ी में भी सुधार कर दिया गया है.
-- कड़ियाँ - साभार चिट्ठाजगत.इन
बकिया चकाचक। हफ़्ता शानदार शुरू हो। बढि़या शुरू मतलब अधिया खत्तम। मस्त रहें बादल आ ही रहे हैं भिगोने को। मन मयूर को लगा दें नृत्य- ड्यूटी पर।
आज की तस्वीर
आज की तस्वीरें मल्हार से
सदैव की तरह आज भी आपकी चर्चा एकदम मस्त-मस्त ,बोले तो सब कुछ समेटे हुए .
जवाब देंहटाएंअनूप जी, थोडा सा एक खुलासा कर दूँ कि ये 'रि-ठेल' शब्द पर पुष्पा जी ने एतराज नहीं जताया है। रीठेल के बारे में गिरेजेश राव जी ने जानकारी मांगी जो उन्हे मैंने यथा संभव बताने की कोशिश की थी। बाद मे पता चला कि ये री-ठेल 'शब्द' के जनक ज्ञानजी हैं।
जवाब देंहटाएंपुष्पा भारती जी की आपत्ति 'टेंशनात्मक' शब्द को लेकर थी। और इसी बातचीत मे उन्होंने ब्लॉग को साहित्य मानने से इन्कार कर दिया ।
चर्चा तो फंटास्टिक रही.. बेनामियों का इतना नाम??? सही है जी...
जवाब देंहटाएंजयपुर की फोटो दिखा के तो आप इमोशनल कर दिए..
हफ़्ते की शुरूआत तो ठीक ही हुई है।
जवाब देंहटाएंशुकल जी .....बहुत फ्रुसत से चर्चियाते हैं आप तभिये तो कौनो कुछ छोटता नहीं है...पोस्टवा सब..कार्तुन्वा...और फोटो शूट भेई....कमाल है..बहुत बढियां जी..
जवाब देंहटाएंगनीमत है कि पुष्पा जी रीठेल या टेंशनात्मक से ही "सन्तुष्ट" हो गईं, अगर कहीं हमारा शब्द "शर्मनिरपेक्षता" पकड़ लिया होता तो "बहुतै टेंशनवा" हो जाता…
जवाब देंहटाएंcharcha mai saara masala hai...bahut sunder.....bahut khoob.....
जवाब देंहटाएंachchhi charcha :-)
जवाब देंहटाएंलगता है "साहित्य" को पुनः पारिभाषित करना होगा. वेरी सुन्दर समेटिंग.आभार.
जवाब देंहटाएं" इतनी तफ़सील से वक्त कवि के अलावा कौन ठहरा सकता है। "
जवाब देंहटाएंइतनी तफ़सील से चर्चा के लिए भी वक्त निकाला और लम्बी चर्चा का लुत्फ़ लेने के लिए हमने बी वक्त निकाला..........तो यों कहें कि दोनों तरफ है आग बराबर लगी हुई :-)
बहुत सी प्रविष्टियाँ आ गयीं इस चर्चा में और बहुत कुछ सिमट गया चर्चा में । सुन्दर चर्चा । आभार ।
जवाब देंहटाएं" वैसे भी यदि आप आधी दुनिया -नारी पर कुछ नहीं लिख्रते या फिर पहेलियाँ नहीं पूंछते तो मत घबराईये कोई बेनामी आप तक नहीं पहुँचने वाला है"
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत मे ख़ास कर हिंदी मे नारियों की कितनी इज्जत हैं वो इस बात से पता चलती हैं की एक प्रतिष्ठित ब्लॉगर ने एक ब्लॉग अपने नाम से बनाया हैं और एक ब्लॉग अपनी पत्नी के नाम से पत्नी का ब्लॉग नहीं हैं पर आई डी हैं और वो उस आई डी को इस्तमाल करते हैं अनाम कमेन्ट देने के लिये .ताकि लगे की महिला ने कमेन्ट दिया
रीता पाण्डेय की पोस्ट पर भी कमेन्ट किन्ही ज्ञान ने दिये जो ज्ञान पाण्डेय नहीं हैं. और मेरे ऊपर तो ये अपने ब्लॉग की पहली पोस्ट से लिख रहे हैं अपना कोई ईमेल तक उपलब्ध नहीं हैं पर कमेन्ट कर के कहते हैं आप फ़ोनकर के कमेन्ट हटाने के लिये कहती हैं यानी जिसे फ़ोन किया वो भी इनके साथ ही हैं . या वो ये खुद ही हैं . फ़ोन नंबरइनसे माँगा नहीं खुद ब्लॉग पर छोडा गया , क्यूँ ? क्यूँ निमन्त्रण दिया गया फ़ोन करने के लिये ??? सन्दर्भ को भी हो फ़ोन नंबर मेरे ब्लॉग पर आया हैं .
सुन्दर चर्चा है. हमेशा की तरह बहुत कुछ समेटा है आपने. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह काफी कुछ समेट लिया है आपकी इस चर्चा ने। बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंप्रीती जी की कविता हमें भी पसन्द आयी !
जवाब देंहटाएंपर प्रीती जी ने इतनी भीषण गर्मी में जरसी पहनी हुई है वह भी काले रंग की जो ऊष्मा का शोषण ज्यादा करेगी !
अब बताइये सूरज जी कैसे विश्वास कर लेंगे कि इन्हें गरमी लग रही है :)
बेहतरीन चर्चा..आज इत्मिनान से कवरेज की गई है, बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा . आलेख को चर्चा में शामिल करने के लिए आभारी हूँ . पर अभी अभी मुबई टाइगर में पढ़ा की आप अमेरिका पहुँच गए है और चिठ्ठा चर्चा वहां से कर रहे है . कृपया खुलासा करे. अब तो आपके दर्शन दुर्लभ हो जायेंगे. चिंता का विषय हो गया है की वहां आप वगैर सूचना के कैसे पहुँच गए महाराज जी
जवाब देंहटाएंवन्दे मातरम
सुन्दर, टिकाऊ और फुल गारंटी दार चर्चा है
जवाब देंहटाएंक्या कहाँ गारंटी किस चीज की.............
अजी, गारंटी फुल फुर एन्टरटेनमेंट की , फुर फुल मजेदार चिटठा चर्चा की :-)
venus kesari
समग्र और गहन चर्चा -मैं मशहूर ब्लागों को बुकमार्क नहीं करता ,न हीं उनकी फीड सहेजता हूँ -बिना यह सब किये ही वे आखों के सामने रहते हैं !
जवाब देंहटाएंलवली जी की सहमति और आश्चर्य से नेत्र्र विस्फारित सुकुल जी !
कभी मैं भी कुछ लिख ही डालता हूँ तो स्नेह बनाये रखिये !
बहुत चहुचक चर्चा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंपुष्पा भारती ने लगता है पूरा साहित्य नहीं पढ़ा है .या वे हरिशंकर परसाई ,मनोहर श्याम जोशी ...श्री लाल शुक्ल को भी शायद साहित्यकार नहीं मानती होगी .क्यूंकि ऐसे शब्दों के असली अविष्कारक तो वही है...अमिताभ बच्चन पर अहसान है जी उनका .जो उनका ब्लॉग पढ़ती है ....जो छपे वही अच्छा नहीं होता है..हमने तो हंस ओर नया ज्ञानोदय से लेकर कथादेश में फूहड़ कविताएं ओर कहानिया पढ़ी है...कुल मिलाकर ब्लॉग तो यूँ है .जो अच्छा लगे वो पढो...बाकी बस गुजर जाने दो...अब टी वी में भी रिमोट होता है न ! वैसे हम तो ज्ञान जी को बांचते है भाई....
जवाब देंहटाएंओर हाँ मसिजीवी जी पोस्ट नहीं पढ़ी थी आपके बहाने पढने को मिली शुक्रिया..