ब्लॉगिंग का माया को समझने की कोशिश में आने वाली पोस्टें एक फैशन का रूप लेती जा रही हैं ! हर नया पुराना ब्लॉगर कुछ दिन अपने को ब्लॉगिंग में खपाकर , झोंककर इस मकडजाल में उलझकर इसकी विवेचना करने बैठ जाता है ! ब्लॉगिंग कर ब्लॉगर ने क्या पाया , ब्लॉगर के कर्तव्य , ब्लॉगिंग के उद्देश्य ब्लॉगर के मन की व्यथा और भी न जाने क्या- क्या ! आखिर में ब्लॉगर यह भी कह सकता है कि ब्लॉगिंग एक खेल है जिसे दिन, दोपहर और रात खेलिए
ब्लागिंग ब्लागिंग खेलिये सुबह दोपहर शाम
और नहीं गर आपको दूजा कोई काम
दूजा कोई काम, धरम पत्नी ना पूछे
चले आओ कम्प्यूटर पर तुम आंखें मींचे
कह 'धौंधू कवि' जहां न कोई लेता रेगिंग
ऐसा इक कालेज हमारा है ये ब्लागिंग
ब्लॉगिंग मानसिक कब्ज़ को मिटाने का ज़रिया है ! घर से लडा हुआ, बॉस से झाड खाया हुआ , साहित्य का ठुकराया हुआ , मन से मुरझाया हुआ , दुनिया का सताया हुआ जीव यहां आकर अचानक ही सजीव और मुखर हो उठता है और की बोर्ड पीट- पीटकर अपनी कुंठा का निवारण करता है ! दिए गए काव्यांश की आप भी अपने मन- मुताबिक व्याख्या कर सकते हैं ! :)
इधर सारी अगंभीरता को धता बताकर चोखेरबाली पर समलैंगिकता पर खुली बहस छेडी है जिसमें पर आई लंबी - लंबी टिप्पणियां बताती हैं कि इस मंच का इस्तेमाल खुली और जीवंत बहसों के लिए कितने बेहतर तरीके से हो सकता है !
मुझे हैरानी नही होगी अगर आप यह कहें कि हमारी युवा पीढी गेय प्राइड परेड को आजकल के फैशन का एक एक्स्प्रेशन मानती हो।गेय , लेस्बियन होना ट्रेंडी होना हो।फिर भी , बहुत सी ऐसी अस्मिताएँ हैं जो अपनी सेक्सुअल ओरियंटेशन को लेकर या तो हीनता बोध मे जीती हैं या हमेशा दुविधा मे पड़ी रहती हैं क्योकि यह दुनिया तो केवल दो लिंगो के लिए बनी है - स्त्री लिंग और पुल्लिंग ।अपनी लैंगिक अस्मिता के प्रति मनुष्य कितना सजग है इस पर बात बहुत लम्बी चलाई जा सकती है।मर्दानगी होना , मर्दानगी न होना...नपुंसकता ..बांझपन ....समलैंगिकता ....तृतीय लिंग होना ........समाज के हाशिए पर पटक देता है। इस बाइनरी संरचना से बाहर निकलना उतना ही मुश्किल है जितना इसके बीच रहना अपनी अस्पष्ट लैंगिक पहचान के साथ।
समाज में फैशन और पॉलिटिकल करेक्टनेस की वजह से और हाशिए के वर्गों को तरजीह देने के नए चलन के चलते हमारा समलैंगिकता को एक सहनशील नजरिए से देखने लगे हैं ! किंतु हमारे संक्रमणशील मूल्यों वाले समाज में इस तरह के मुद्दों पर खुली और टाइम और स्पेस की बाधाओं से मुक्त बहसें होती रहनी चाहिए ! संयोग से ऎसा केवल ब्लॉगिंग के माध्यम से संभव हो सकता है !साहित्य या अन्य माध्यमों के पास एस तरह की योग्यता नहीं है ! सो ब्लॉगिंग की दुनिया को सीमित और कुंठित मानने वाले साहित्यकार जनों से मेरा यहां डिसऎग्रीमेंट है ! साहित्य की रचनात्मक प्रक्रिया में सामाजिक मुद्दे स्मृति खंड में जाकर पहले मथे जाते हैं और किसी रचनात्मक क्षण का इंतजार करते हैं ! साहित्य में संवाद की त्वरितता कहां ? वहां ठहराव है है यहां गति है !
शाइनी आहूजा वाले बलात्कार मामले से ब्लॉग जगत को बलात्कार पर बात करने का मन हो उठा ! एक जनाब सेंटी हो बैठे कि वो बंदा तो बलात्कार कर ही नहीं सकता मैं उसे बचपन से जानता हूं उसका लंगोटिया यार हूं ! जो इस पोस्ट में व्यंग्य में कहा गया है वह हमारे समाज का कडवा सच है ! तमाम अखबायों में शाइनी के पडोसियों मित्रों के शाइअनी की सज्जनता पर आने वाले बयान समाज के इस नजरिये का बयान करते हैं ! ऎसे मामलों में लोगों का मनाना होता है मि - वह कितना लंगोट का पक्का है यह मैं ही जानता हूं आपको क्या पता......... ! मैं उसके साथ कई बार रात में भी अकेला था / थी मेरा तो बलात्कार नहीं किया उसने ! बलात्कार तो उसका हुआ है ! उसे फंसाया गया है ! विश्व के सारे बलात्कार मामले ऎसे ही बनाए गए होते हैं ! उसे छोड दो ! कुमारेंद्र जी की पोस्ट इसके समर्थन में आई - हां हां औरतें भी करतीं हैं बलात्कार ! उनकी मान्यता है कि
यह एक सार्वभौम सत्य की तरह से है कि यदि औरत चाह ले तो उसकी मर्जी के बिना कोई भी उसके साथ सेक्स नहीं कर सकता है। औरत यदि चाह ले तो किसी को भी सेक्स के लिए आमंत्रित कर सकती है
कुमारेंद्र जी आपकी इस मान्यता का अर्थ तो यह हुआ कि आजतक दुनिया में स्त्रियों के जो भी बलात्कार हुए हैं उन सब में औरत की मर्जी शामिल थी ! पुरुष समाज तो स्त्रियों की बलात्कार करवाने की इच्छा का पालन मात्र करता आया है ! ओह आपने किस मासूमियत से स्त्रियों के बलात्कार की समस्या का सरलीकरण कर दिया ! आपका मानना है कि अपने खिलाफ शारीरिक हिंसा में स्त्री खुद अपनी इच्छा से शामिल होती है और आप इस बात को एक सार्वभौम सत्य मानते हैं ? बहुत विचित्र !
कम से कम इस बात को सार्वभौम सत्य कहने से पहले कुछ विद्वानों के उद्दरण ही पेश कर दिए होते आपने !
खैर आपके इस ब्लॉग - ब्लंडर को यहाँ यह कह कर भी नज़र अंदाज किया जा सकता है कि यह आपका ब्लॉग है सो आपकी मर्जी आप उसमें कुछ भी फजीहत करें ! किंतु रचना चाहे वह ब्लॉग की ही क्यों न हो एक सामाजिक पहलू होता ही है जिसे इतनी क्रूरता से अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए !
उम्मीद कि आज की टिप्पणियों में पाठक वर्ग इस पर अपने विचार सामने रखेगा ! केवल चिट्ठों की वाहवाही से ही काम नहीं चलेगा !
हम तो बहुत दिनों से खेल रहे हैं ये खेल। पर ये दरिया कहॉं है, जिसमें डूब के जाना है।
जवाब देंहटाएंह ह हा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सत्य वचन, महाराज।
जवाब देंहटाएंखुली ओर जीवंत बहस......आपके आशावाद के हौसले की दाद देता हूँ....पर कभी कभी हमने खासे बुद्धिमानो को टिप्पणी का अर्थ न समझते देखा है .एक दो तो आज ही की पोस्ट इस बात का नमूना है ....
जवाब देंहटाएंभई ये भी ख़ूब रही।
जवाब देंहटाएं---
चर्चा । Discuss INDIA
संवेदनशील बहस की आवश्यकता । चर्चा अच्छी रही । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंकुमारेंद्र जी के नजरिये से हम सहमत नहीं। इस नजरिए का कोई आधार उन्हों ने नहीं बताया, यह तक नहीं कि यह किस के अनुभव या किसी सर्वेक्षण का नतीजा है। इस नजरिए से तो बलात्कार का अपराध ही कानून की किताब छोड़ देगा।
जवाब देंहटाएंआपकी चिट्ठाचर्चा बहुत बढ़िया रही. मुद्दे पर बहस करनी चाहिए. शर्त केवल एक ही है. और वह यह कि जो पोस्ट लिखें और जो टिप्पणी करें, वे पोस्ट और टिप्पणियों के स्तर को मुद्दे की व्यापकता और गंभीरता को ध्यान में रखकर लिखें.
जवाब देंहटाएंकुमारेन्द्र जी की पोस्ट पर एक कमेन्ट है. जिसने भी किया है, विचारणीय बात कही है. सवाल केवल एक ही है. कुमारेन्द्र जी इस अनामी की बात मानते हैं या नहीं?
डाक्टर साहेब,
बहुत छिछला लेखन है. बलात्कार जैसे मुद्दे पर इस तरह का सतही और छिछला लेखन किसी डाक्टर साहेब को शोभा नहीं देता. ये मनोहर कहानियां और सत्य कथा की कथाओं जैसा कुछ लिखकर आपने अपने जिस सवाल को सही ठहराने की कोशिश जिस ढंग से की है, वह बहुत दुखद है जी. अब पता तो नहीं है कि आप किस चीज के डाक्टर हैं लेकिन कोशिश करें कि ऐसे मुद्दे पर कुछ विचारणीय लिखें. मनोहर कहानियां जैसा कुछ न लिखें. मानता हूँ कि आपका ब्लॉग है और आप जो चाहें, लिख सकते हैं लेकिन इस तरह का लेखन भी मत कीजिये जिसका स्तर विषय की व्यापकता और गंभीरता से मेल न खाता हो. आखिर ब्लॉग आपका हो सकता है लेकिन मंच तो सार्वजनिक है. ऐसे में कुछ तो जिम्मेदारी बनती है आपकी भी.
इस मुद्दे पर आप तीन पोस्ट लिख चुके हैं. एक बार, केवल एक बार एक पाठक के स्थान पर खुद को रखकर इन लेखों को पढें. ज़रूर पढें. आपको ज़रूर पता लगेगा कि ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर आपके लेख कितने सतही हैं.
जवाब देंहटाएंसही है, यह इक आग का दरिया ही है,
देखना बस यह है, कि इसमें तप कर ब्लागर अपनी वैल्यू ख़ाक की बनाता है, या लाख की :)
यह तो कोयले और कँचन का साझा सँबल है, जी !
"हां हां औरतें भी करतीं हैं बलात्कार !"
जवाब देंहटाएंना बाबा ना, हम बोलेगा तो बोलेगे के बोलता है........:)
"जो टिप्पणी करें, वे पोस्ट और टिप्पणियों के स्तर को मुद्दे की व्यापकता और गंभीरता को ध्यान में रखकर लिखें"
कुछ दिन पहले तक सस्नेह एक और ब्लॉगर इसी
जवाब देंहटाएंमुद्दे पर इसी तरह लिकते थे जैसे कुमारेन्द्र लिख
रहे हैं और ब्लॉग जगत मे इस तरह से बिना
बात और आधार के लिखना नया नहीं हैं .
बलात्कार क्या हैं जो इसको ही नहीं समझते
वो ३ नहीं ३० पोस्ट भी लिख ले कोई फरक नहीं
हैं . बस इस बार यही अच्चा हैं की कम लोगो ने
उनके ब्लॉग पोस्ट की तारीफ़ की हैं जबकि
इस से पहले जिस ने भी सस्नेह इस टोपिक
पर लिखा हैं उनके ब्लॉग पर लोगो ने वाह वाह ही
की हैं . बलात्कार पहले भी होता था और आज भी होता हैं । फरक बस इतना हैं की आज की नारी मुखर रूप से इसका विरोध करती हैं । नारी की "ना" को "ना" समझने की गलती आज के समय मे जो करते हैं वही इस बात को पुरजोर तरीके से कहते हैं कि बलात्कार नहीं हो सकता । सदियों से नारी चाहे माँ हो या बेटी , बहिन हो या पत्नी , पडोसन हो या नौकरानी , भाभी हो या किसी भी रिश्ते मे पुरूष से बंधी हो उसकी "ना" को नहीं समझा जाता । उसकी सहमति लेने कि जरुरत ही नहीं समझी जाती ।
लोग कहते हैं बलात्कार मे अगर स्त्री कि सहमति है तो वो बलात्कार नहीं होता । ऐसे लोगो कि जानकारी के लिये बता दूँ कि विदेशो मे सेक्स एजूकेशन मे लड़कियों को ये समझया जाता हैं कि अगर दुर्भाग्य से आप किसी ऐसे हादसे का शिकार हो जाए जहाँ आप कि जान पर बन जाए तो बलात्कारी पुरूष के साथ झगडा न करे । आप को बहुत चोट लग सकती हैं । आप सहमति यानी बिना झगडे सम्भोग होने दे ताकि आप के शरीर को बहुत चोट ना आए और वो दरिंदा आप को जीवित छोड़ दे ।
जवाब देंहटाएंवैसे ऐसा नहीं होगा कि हिन्दी का बलात्कार शब्द अभी पूरी तरह व्याख्यायित न हुआ हो -कितनी ही बार कानूनविदों ने भी इसे परिभाषित किया होगा ! यदि यह अंगरेजी के रेप का समानार्थी है तो इसका अर्थ यह है कि बिना मर्जी के किसी के साथ यौन सम्बन्ध बनाना ! अब प्रश्न यह है कि यदि किसी ने किसी के साथ असम्मानजनक व्यवहार किया या अश्लील हरकत की तो क्या वह बलात्कार की परिधि में नहीं आएगा ? आभासी दुनिया के 'सेकेण्ड वर्ल्ड ' में एक आपत्तिजनक वयवहार में जर्मनी की एक महिला ने वास्तविक दुनिया में एफ आई आर दर्ज करा दी थी ! उसने कहा कि उसके शील सम्मान को सदमा पहुंचा है -भले ही वह वर्चुअल दुनिया का मामला हो !
जवाब देंहटाएंदिनेश राय जी यदि इसे पढें तो कृपया बताएं कि भारतीय कानून बलात्कार को कैसे परिभाषित करता है ? क्या यौन संसर्ग होना बलात्कार की एक तकनीकी शर्त है ?
तब ? क्या पीडिता /पीड़ित अपनी जान बचाए ? या शील ? क्योंकि यह कुछ सीमा तक सही है कि जब तक नारी न चाहे जबरदस्ती यौन संसर्ग नहीं हो सकता क्योंकि कुदरत ने अनचाहे सम्बन्धों को रोकने के लिए नारी को हायिमेन- आवरण और पेशी संकुचन जैसी संरचनात्मक सुरक्षाएं प्रदान कर रखी हैं -
कबी हमने बी ब्लागिंग पर एक पोस्ट लिखी थी और उसका आगाज कुछ यूँ करा था -
जवाब देंहटाएंबुझी को राख कहते हैं ,जली को आग कहते हैं .
जहाँ से उठता ही रहे धुआँ उसे ही ब्लाग कहते हैं ..
http://karmnasha.blogspot.com/2008_01_01_archive.html
चर्चा बहुत सही रही
जवाब देंहटाएंयदि यह मान भी लिया जाय कि महिलाए भी बलात्कार करती हैं तो इससे कोई क्या सिद्ध करना चाहता हैं? यह कि पुरुषों द्वारा किये गये बलात्कार में कोई बड़ी बात नहीं हुई और हिसाब बराबर हो गया? ऐसी बेसिर-पैर की बातें बेमानी हैं। एक सनसनीखेज मसालेदार आइटम के अतिरिक्त इनका कोई दूसरा मूल्य नहीं है। घृणित प्रयास है यह।
जवाब देंहटाएंदरअसल बलात्कार अर्थात् ‘किसी व्यक्ति की स्वाभाविक इच्छा के विरुद्ध जाकर उसके शरीर से किसी प्रकार की यौन तृप्ति का प्रयास करना’ नितान्त अमानवीय, पाशविक, और निन्दनीय कृत्य है। इसमें बलप्रयोग भी अनिवार्य शर्त नहीं है। भावनात्मक शोषण, या प्रलोभन भी एक हथियार हो सकता है (वेश्यावृत्ति एक अलग व्यवसाय है)। ऐसा करने वालों के पक्ष में किसी भी तर्क के साथ खड़ा रहने वाला व्यक्ति भी बलात्कारी मानसिकता का परिचय देता है। उसकी बिना किसी लाग-लपेट के निन्दा की जानी चाहिए और सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए। किसी स्त्री या असहाय पुरुष या लैंगिक विकलांग के साथ भी यदि जोर जबरदस्ती के साथ यौन सम्बन्ध बनाने का कुकृत्य किया जाता है या इसका प्रयास किया जाता है तो उसे निश्चित दण्ड दिया जाना चाहिए।
बलात्कार के विषय पर लिखने वाले सभी ब्लॉगर्स को एक ही श्रेणी में शामिल करना उचित नहीं है। बहस उस लेखन के कन्टेन्ट पर होनी चाहिए न कि लिखने वाले व्यक्ति के ऊपर। यह मुद्दा बहस की मांग इसलिए भी करता है कि बहुत सी रूढ़ियाँ और मूर्खतापूर्ण मान्यताएं इस क्रिया के साथ जुड़ी हुई हैं जिनका निराकरण ऐसी स्वस्थ बहसों के माध्यम से किया जा सकता है।
एक उदाहरण: यह सही है कि स्त्री की इच्छा न हो तो उसके साथ सेक्स नहीं हो सकता। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि स्त्री देह के साथ पाशविक शक्ति का प्रयोग ही नहीं हो सकता या उसके अंगो को चोट नहीं पहुँचाया जा सकता। उसके शील-सम्मान को क्षत-विक्षत करने के लिए तो एक अवान्छित स्पर्श ही काफी है। फिर इसके लिए सफल यौन संसर्ग की शर्त ढूँढना तो बलात्कारी मानसिकता को ही परिलक्षित करता है। हाँ, यदि सम्भावित बलात्कारी को यह बात समझ में आ जाय कि अपने बल प्रयोग द्वारा वह किसी स्त्री देह से यौन का सुख नहीं प्राप्त कर सकता तो शायद वह ऐसा कुकर्म करने को उद्यत न हो। कदाचित् बलात्कार का उद्देश्य यौन तृप्ति प्राप्त करना होता हो लेकिन यदि इस वैज्ञानिक तथ्य को डॉ. अरविन्द जी आम जनता तक पहुँचाने में सफल हो जाँय कि बलात्कार में यौनसुख की प्राप्ति नहीं होती तो शायद ऐसे हादसों में कुछ कमी आ जाए।
अच्छी चर्चा नहीं है
जवाब देंहटाएंहम तो ये भी नहीं कह रहे की बहुत अच्छी चर्चा है
क्यों कहे क्या आप समझदार नहीं है
अरे खुद समझिये
वीनस केसरी
प्रिंट मीडीया मे इस मुद्दे पर बहुत विमर्श हो चुका है, केवल बात के लिये बात ना करें . दुश्यंत जी का शेर याद करें(सिर्फ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नहीं....) अत: सूरत बदलने की कोशिश करें
जवाब देंहटाएंसामयिक मुद्दे पर अच्छी चर्चा!
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