ब्लागिंग एक बवाल है, बड़ा झमेला राग,
पल में पानी सा बहे, छिन में बरसत आग!
भाई हते जो काल्हि तक,वे आज भये कुछ और,
रिश्ते यहां फ़िजूल हैं, मचा है कौआ रौर!
हड़बड़-हड़बड़ पोस्ट हैं, गड़बड़-सड़बड़ राय,
हड़बड़-सड़बड़ के दौर में,सब रहे यहां बड़बड़ाय!
हमें लगा सो कह दिया, अब आपौ कुछ कहिये भाय,
चर्चा करने को बैठ गये, आगे क्या लिक्खा जाय!
कल गोलू और रामप्यारी के रिश्ते की बात कुछ साथियों को जमी नहीं! रचनाजी का मन तो कुते और बिल्ली की शादी के लड्डू बंटते देखकर इत्ता उखड़ गया कि चर्चा कलेवर की तारीफ़ करने का मन होने इच्छा पूरी किये बिना चली गयीं।
पूजा इसलिये रामप्यारी -गोलू का निकाह नहीं होने देना चाहतीं हैं कि रामप्यारी के चले जाने के बाद उनको हिंट कौन देगा। बताओ अपने फ़ायदे के लिये वे एक शादी हुसका रही हैं। उनको यह भरोसा नहीं कि रामप्यारी शादी के बाद भी सक्रिय रह पायेगी।
गोलू और रामप्यारी के अभिभावकों की चुप्पी के चलते इस मसले पर आगे कुछ कहना ठीक नहीं है। अपनी इज्जत, भले ही वह कितनी ही काल्पनिक न हो, सबको प्यारी होती है।
सुरेश चिपलूनकर जी ने अपना एतराज दर्ज कराया-
"सुरेश चिपलूनकर का दर्द है कि काश मैं एससी/एसटी होता…" बिलकुल गलत बात। पूरी पोस्ट पढ़िये फ़िर चर्चा कीजिये… मुझे कोई दर्द नहीं है… मेरे समय में आरक्षण जैसा कुछ नहीं था, फ़िर भी मैंने बिजनेस ही चुना… और मैंने किसके दर्द की बात की है, यह भी देखियेगा।अब हमने पोस्ट तो पढ़ी थी। जैसा समझा लिखा। अब उसकी और क्या चर्चा करें! वैसे अनिल कान्त की तरह मैं भी चाहता हूं कि "सुरेश चिपलूनकर" जी उनकी पोस्ट पर आई हुई टिप्पणियों का जवाब दें
एक लाईना
- गज़ल मुझसे रुठी है.. :कहती है जाओ उसी मुंहझौंसी अतुकांत, बेबहर कविता के पास
- अम्मा जरा देख तो ऊपर : बाल कवि बरसा रहे हैं कहर
- भूतों का बेलआऊट :ताकि बोरियत सलामत रहे
- वजूद तलाशती औरत ....:आज के कवियों की कविता की तरह
- दिल ने दिल को पुकारा है,होठों पर नाम तुम्हारा आया है:हमको अब चाहिये हमदर्द का टानिक सिंकारा
- अब तो शर्म आती है फिल्मी हीरो शाइनी आहूजा ने रेप किया :शर्मनाक ही है यह
- अमर उजाला में 'शब्द-शिखर' ब्लॉग की चर्चा :चर्चा बिन चैन कहां?
- किताबों की दुनिया : दुलार की कमी से खत्म हो सकती है। दुलराते रहिये!
- एक आस : कहीं खो गयी है! रपट लिखानी है!
- गोलू पांडे और राम प्यारी का रिश्ता तय हो गया है :लेकिन कुछ लोग इस रिश्ते से खुश नहीं हैं!
- जानेमन इतनी तुम्हारी याद आती है कि बस :फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन में ही गजल लिखवाती है
- चंद अल्फाज़...: अब वाह,वाह ही कह दो जी आज
- जानिये माइक्रोसोफ्ट वर्ड में छुपा एक रहस्य:काहे को किसी के पैबंद उघाड़ रहे हो जी!
- क्या खूबसूरत होना लता का जुर्म है ?:क्या बतायें कुछ कहेंगे तो लता मुंह फ़ुला लेंगी
- नैनीताल में गुरुपर्व की झलकियां : ही झलकियां ! देखिये तो सही!!
- शब्द कुछ भटके हुवे : चिंता न करें आ जायेंगे वापस, जायेंगे कहां ब्लाग छोड़कर
- रात ऊनांदे में लिखी मम्मी को एक एस.एम.एस.:मम्मी कह रही हैं लड़के की अब शादी करा दो
- क्यों नहीं हम भगत सिंह की बात करते ? :क्योंकि आजकल रूपा फ़्रंटलाइन चर्चा में है!
- हंसी न आये तो कहना और हंस लेना जनाब : बाद में कर लेंगे अपन लोग हिसाब-किताब
- बिटिया की महिमा अनन्त है : इससे ही घर में बसन्त है
- रणजी खेलकर ही एक पीढ़ी तर सकती है : लेकिन खेलने का मौका पाने में ही नानी मर सकती है
- छुपा छुपी खेले आओ.. : कल से छिपे हो अब कोई नया नटखटपन दिखाओ
- हार गया तन भी, डूब गया मन भी :अरे! वैसे बीमा किस कम्पनी का था?
- धर्म,विज्ञान और अन्धविश्वास:ने गठबंधन सरकार बनाने का दावा पेश किया
- लवी की पहचान पहेली :ताऊ की स्टाइल में बिना रामप्यारी के
- मैं कविता हूं : इसमें कौन नयी बात है! यहां कविता के अलावा सबका प्रवेश वर्जित है
- लेकिन अब शैतान हुए.. :अच्छा हुआ असलियत खुल के सामने आ गई
- शास्त्री फिलिप जी से मुलाकात : सारथी ही तो हैं वे : उमर कम कर देते हैं !कित्ते भले हैं न!
- वक़्त ने किया क्या हसीं सितम...तुम रहे न तुम हम रहे न हम :एक जरूरी पोस्ट
- कविता’प्यास : पाठक- बिसलरी की बोतल झकास
- इसमें किसी प्रकार की साम्प्रदायिकता नहीं :तो फ़िर नाम काहे ले रहे हो इस कलमुंही का!
- मीडिया का ग़जब तमशा.. जिसका पैसा उसकी भाषा: हकीम सनसनीचंद से मिल लो, मत छोड़ी इतनी जल्दी आशा
- एक कप चाय के लिए मोहताज़ हम : ब्लैक काफ़ी पीने के लिये नया बहाना !
- प्रभू अपन अपना एक चैनल शूरू कर देते है और एक अख़बार भी! : पहले चैनेल के लिये सांडे का तेल बेचने वाले अंदाज में बोलने वाले संवाददाता तो जुगाड़ लो प्रभू
- क्रिकेटर भी आदमी हैं, मशीन नहीं, किचकिच मत कीजिये : बहुत हो तो विक्स की गोली लीजिये, खिचखिच दूर कीजिये
- जान छोड़ो : ये थामो अपनी टिप्पणी
- आततायी शहर की तरफ़ आ रहे हैं! : अब इनका स्वागत समारोह करना पड़ेगा- नाक में दम है!
- तब ये कहती हैं मुझे प्यार करो... :जबकि हमें ब्लागिंग से फ़ुरसत नहीं
- जिंदगी की परीक्षा:की कहीं कोचिंग नहीं होती!
- बस गंगा जल हो: बकिया इंतजाम हम देख लेंगे
- ये कैसा बदनाम प्रेम ? :प्रेम करने वालों की बात ही कुछ और है!
और अंत में
अब इतना लिखने के बाद कुछ लिखने की कोई न कथा बची न तथा। दफ़्तर का समय हो गया ये एक अलग व्यथा। इसलिये हम तो भैया चलते हैं। आप आराम से टिपियाइये। कोई टोके तो हमें बताइये। जो कहना हो कह के ही जाइये। मन की बात मन में रखने से लफ़ड़ा हो जाता है। बड़े-बड़े ज्ञानी बताइन हैं ऐसा। वैसे आप जाने से पहिले ये नैनीताल वाली तस्वीरें देख के जाइयेगा। गर्मी का मौसम है। तरावट मिलेगी देखने से ही!
आज की तस्वीर
मुसाफ़िर के ब्लाग से
सब से सुंदर-सटीक...
जवाब देंहटाएं# प्रभू अपन अपना एक चैनल शूरू कर देते है और एक अख़बार भी! : पहले चैनेल के लिये सांडे का तेल बेचने वाले अंदाज में बोलने वाले संवाददाता तो जुगाड़ लो प्रभू
jab sapnaa hamee ko aayaa hai to ham to unke abhibhaavakon ke raajee na hone kee soorat mein bhee ham court marriage karwaa denge...daaktar saahibaa ko bataur gawaah bulaayenge..theek rahegaa na..shukal jee ..ka charchaa rahee..hamaare munh se to yahee nikaltaa hai bas...
जवाब देंहटाएंगज़ल मुझसे रुठी है.. :कहती है जाओ उसी मुंहझौंसी अतुकांत, बेबहर कविता के पास
जवाब देंहटाएं--जाना ही पड़ेगा..जब आप जैसे अपने साथ छोड़ गये तो रास्ता भी क्या है. :)
बढ़िया है, छाए रहिए...
जवाब देंहटाएंअनूप जी,
जवाब देंहटाएंआपका विस्तृत और व्यापक दृष्टीकोण चर्चा में रोचकता पैदा करता है। दोहो के चटकारों से ऐपेटाईज़र लेने का अहसास होता है।
सुन्दर रोचक ऊर सार्थक चर्चा।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
अनूप जी आज की पोस्ट तो लाजवाब है हमे लगता था कि हम ही बेकार ब्लोगिँग के चक्क्र मे अपने मन का चैन खो बैठे हैं मगर् अब जा कर मन शान्त हुअ कि कई हमरे जैसे अशान्त हैं जो टिपियाते हैं गिरियाते हैं और गुर्राते भी हैं फिर भी आपकी तरह चहकते हैं आपकी पोस्ट पढ कर हम भी चहकने लगे हैं आभार्
जवाब देंहटाएंसच में ब्लॉगिंग ऐसा बवाल है, जिसमें फंसने के बाद न निगलते बनता है न उगलते। बढिया चर्चा।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
एक लाईना, कार्टून, नैनीताल के चित्र सभी बढ़िया लगे।
जवाब देंहटाएंएक लाइना शानदार.. बहुत विस्तार से शार्ट में कवर किये..:)
जवाब देंहटाएंएक लाईन के साथ नैनीताल के चित्रों ने माहौल जमा दिया.. रामप्यारी ऑर गोलू पांडे को शीर्षक में महत्व देना गलत लगा होगा सबको.. आखिर इस से आगे भी बहुत कुछ है..
जवाब देंहटाएंएक लाइना ने बाँधा खूब । चित्रों ने तो और भी जमा दिया । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंएक लाइना के साथ चित्रों ने मन मोह लिए. चर्चा को विस्तृत प्रारूप देने के लिए आप को धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा. बधाई.
अपुन खुद ही चिल्ला चिल्ला कर प्रेक्टिस कर रहे है प्रभू।वैसे भी अख़बार और चैनल का हाल आप लिखो-खुद बांचो या आप बताओ-खुद समझो,होने वाला है।मस्त चर्चा।मज़ा आ गया।दिनेश जी से सहमत हूं लगा है तीर चिड़िया की आंख मे।
जवाब देंहटाएं:) इक लाइना और चित्र बहुत बढ़िया लगे
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा पर कोई शाम को शिवभाई की पोस्ट आने के बाद लिखेंगे ।
पर, वरिष्ठ जन गरिष्ठ मुद्दों पर नरसिंहारावीय मौन साध लें ।
थोड़ा अटपटा लगता है ।
एक मेल पर फ़िमेल रीयेक्शन पर आप कुछ लिख बोल देते,
मुझ सहित चँद निट्ठल्ले सहमें हुये हैं,
टिप्पणी देना कम कर दिया है,
अब पोस्ट भी लिखा करूँ कि,
पुनःपाठको भव को प्राप्त हो जाऊँ ?
लिंक चयन की आरक्षण नीति पर बाद में,
हम्मैं भी क्लिनिक की देर होय गई है ।
भला मानों या बुरा, यह तो मेरी टिप्पणी है ।
इसे मेरे टिप्पणियों की टैगलाइन माना जाय !
"हड़बड़-हड़बड़ पोस्ट हैं, गड़बड़-सड़बड़ राय,
जवाब देंहटाएंहड़बड़-सड़बड़ के दौर में,सब रहे यहां बड़बड़ाय!"
एकदम सहमत.
जमाये रहिये महाराज जी बड़ी जोरदार चर्चा लगी. आपकी इस चर्चा से मुझे भी कुछ कुछ सीखने मिल रहा है.
जवाब देंहटाएंबढिया चिट्ठाचर्चा।
जवाब देंहटाएंकुछ लोग ये कहते पाए जा रहे है की ब्लॉग्गिंग मजबूरी वश कर रहे है
जवाब देंहटाएंऔर मजबूरी बता नहीं रहे हैं
गन्दा है पर, धंधा है ये, की तर्ज पर की गई ब्लॉग्गिंग का क्या फायदा
वीनस केसरी
जबरदस्त एक लाईना...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंभूसे के ढेर में सुई कहां दिखती है!
हटाएं