सोमवार, नवंबर 02, 2009

हमारी ललनाओं की छाती पर अपनी कुत्सित नंगी जांघें दिखाने की दु:शासनी वासना को धिक्कार





अभी कुछ घंटे पूर्व की बात है कि रविवारीय हल्ले-गुल्ले और मेलजोल  के बीच विदा होने से पूर्व मेरे एक ब्रिटिश मित्र ने यकायक कहा  कि - " सुना है भारत में कोई अग्नि दुर्घटना हो गयी है, इतनी बड़ी कि यहाँ बीबीसी से हमें भी पता चला है ! क्या सच में ?"

इस पर मेरे बेटे ने आर्थिक आकलन का आँकड़ा देने वालों को  उद्धृत करते हुए हामी भरी  | जिसे सुन कर  प्रतिक्रिया में यही बात मुद्दा बन गयी कि यदि भारत के पास एक आग में स्वाहा हो जाने वाली संपत्ति (संपदा) का मूल्य यह है तब तो भारत बहुत धनी देश है|   खेद की घड़ियों में कभी ऐसी संवेदनाएँ मिलें तो क्या कीजिएगा ?      हम तो देश टटोलने निकले ||  इस क्रम में घर, बसेरा, खेती बाड़ी, अदालत,  कस्बा, देश,  राष्ट्र.... महाराष्ट्र,  और यूपी-बिहार तक बड़े अनौपचारिक ढंग से घूम आए| अब यहाँ यहाँ हमने क्या देखा,  क्या पाया, ....उसे आप भी देखें |

खेतों में हमें कनक ही सबसे लुभाता  जान पड़ता है | "कनक कनक ते दोगुनी मादकता अधिकाय ..." 
 


    योगेश श्रीवास्तव द्वारा लिखित इस आलेख द्वारा पानी की कमी से खाद्य उत्पादन पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों और  खतरों के बीच एक संभावना का उदय होता जान पड़ा| तकनीक और प्रयोग की विधियों के मेल से आगे बढ़ कर इसकी सर्वसुलभता की दिशा में कारगर उपाय करने से मझले और निर्धन किसानों के जीवन को शायद आशा की किरण दिखाई दे |





देश में खेती का बहुत बडा रकबा असिंचित है या फिर यहां सिंचाई के पर्याप्त साधन नहीं है। ऎसे क्षेत्रों के किसानों के लिए जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (जबलपुर) के वैज्ञानिकों ने गेहूं का ऎसा बीज तैयार किया है, जिसके उपयोग से बिना सिंचाई के भी 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार ली जा सकती है। कृषि विश्‍वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ.आर.एस. शुक्ला ने बताया कि करीब तीन साल की मेहनत के बाद जे डब्ल्यू 3211 किस्म के शरबती गेहूं का बीज ईजाद करने में सफलता प्राप्त की गयी है।

कम पानी में भी अघिक उत्पादन
डॉ. शुक्ला ने बताया कि यह बीज कम पानी से भी अच्छा उत्पादन देने की क्षमता रखता है। इस बीज से एक पानी से प्रति हेक्टेयर करीब 25 से 30 क्विंटल तक उत्पादन हो सकता है। इसी प्रकार यदि दो पानी की व्यवस्था हो तो प्रति हेक्टेयर करीब 35 से 40 क्विंटल तक गेहूं की पैदावार ली जा सकती है। जिन क्षेत्रों में सिंचाई के साधन उपलब्ध नहीं है उनमें किसान पहले की नमी को बचा कर अच्छी पैदावार ले सकते हैं। इसकी फसल को तैयार होने में करीब 118 से 125 दिन लगते हैं। मध्‍यप्रदेश के अलावा इस बीज की मांग महाराष्ट्र व आस-पास के क्षेत्रों से अघिक हो रही है।




इधर अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन जो नौटंकी और दादागिरी कर रहा है वह देश का सबसे ज्वलंत प्रश्न  बना  इस समय पता नहीं कितने राजनीतिज्ञों को चिकोट रहा हो, किन्तु मेरे जैसा साधारण व्यक्ति इस शैतानी से अत्यंत क्षुब्ध और आगबबूला है कि क्या युद्ध हमेशा सीमाओं पर ही लड़ा जाता है ?

इस की तह में जाएँ तो,  ... पूर्वांचल के सातों राज्य भारत की मुख्यभूमि के निवासियों से प्रत्यक्षतः कुछ भिन्न दिखाई देने के कारण बहुधा अलग थलग  से पड़ते चले आए हैं| यों भी उनकी सरलता, भाषागत  दुविधा आदि कई कारणों ने उन्हें एक निश्चित दूरी पर खड़ा करने के साथ मुख्यधारा में सम्मिलित न करने की त्रासदी दी ही है| यह किसी से नहीं छिपा कि देश की सत्ता, संसाधनों और सकल भोग्याधिकारों पर किनका बाहुल्य रहा है और कौन कौन निष्कासित रहे हैं अथवा किन्हें वंचित रहना पड़ा है| चालाकी और छद्म की दुन्दुभि बजाती पलटनें सारे अधिकार लीलती रही हैं इसमें कोई दो राय नहीं| ऐसी नीतियों, स्थितियों और दूरियों का लाभ शत्रुशक्तियों ने उठाया है, उठाते रहेंगे| पूर्वांचल में ऐसे लाभ लेने की  ताक में भाँति भाँति के गिद्ध सदैव मंडराते रहे हैं, जिन्होंने कभी धर्मांतरण, कभी भाषाई अलगाव, कभी सीमाओं का अतिक्रमण (१९६२ के बाद भी) जैसे अपने अपने अलग भयंकर कुचाली खेल खेले हैं, खेल रहे हैं| देश के इस  भूभाग को इन त्रासदियों से बचा कर  मुख्य भूमि और उसके सरोकारों से जोड़ने का कार्य करने वाले लोगों ने अपनी जान हथेली पर लेकर वहाँ काम किया है, कर रहे हैं ताकि पूर्वांचल को मुख्य राष्ट्रीय धारा का अंग बना कर देश में यथोचित स्थान दिया जाए और भारत को एकछत्र रखते हुए उन्हें इसी देश के स्थाई वासी होने का अधिकार व विश्वास दिया जा सके| वहाँ की हिंसात्मक  स्थितियों से त्रस्त होकर गत कई वर्षों से वहाँ के विद्यार्थी और युवावर्ग भारत के विभिन्न संस्थानों में प्रवेश लेकर इस दिशा में अग्रसर भी हुए हैं| किन्तु यदि उन्हें हम अपने शब्दभेदी, देहभेदी और विभेदी बाणों से मारते ही रहेंगे तो सच मानिए हम चीन से कम शत्रुता अपने देश से नहीं  कर रहे हैं| उल्टे हम तो चीन को न्यौत रहे हैं कि आओ आओ हमारी ललनाओं की छाती पर अपनी कुत्सित नंगी जांघें दिखाने की दु:शासनी वासना को साधो और माँ का चीरहरण कर  उसके वक्ष पर अपना रथ  दौड़ाओ|  ( जो कि वह दौड़ाने लगा ही है, पाकिस्तान तक जाता सीधा राजपथ इसका गवाह है)|


रवीश के 

हर मर्द नज़र जिन्हें वेश्या समझती है -




अब आप इन पंक्तियों को पढ़ने के बाद सोच रहे होंगे कि हमारी मर्द नज़र किस तरह से लड़कियों को देखती है। पूर्वोत्तर की लड़कियां भी बेहद आहत। एक ने कहा कि चिंकी चिंकी बोलते हैं। हम जिन्स और टी शर्ट ही तो पहनते हैं। अकेले जाना खतरनाक होता है तो हर बार अपने इलाके के किसी लड़के के साथ निकलते हैं। तो इन्हें लगता है कि हम ब्वाय फ्रैंड बदलती हैं। एक लड़के ने कहा कि नज़र गंदी है तो वो पूरे कपड़े में किसी लड़की को वैसी ही देखेगी। जब पूछा कि आप लोग घुलते मिलते नहीं हैं? जवाब आया कि किरायेदार कितना घुलेगा मिलेगा। हिंदी नहीं आती लेकिन क्या हिंदी आती और हम उनसे घुलते मिलते तो लोगों की नज़रें बदल जातीं? इसका जवाब मेरे पास नहीं था।

लेकिन कैमरे के साथ गलियों से गुज़रती पूर्वोत्तर की लड़कियों के आस-पास उठती गिरती निगाहों को देख रहा था। वो सब शरीफ इन्हें दबोच लेना चाहते थे। वैसे ही जैसे पुष्पम सिन्हा नागालैंड की उस लड़की को मार कर खा गया। खा ही गया। सिनेमाई संस्कार भी इस तरह की नज़रों को लाइसेंस देते हैं। मुझे पूर्वोत्तर के उस लड़के की बात याद रह गई। उसने बहुत समेट कर कहा..एक बात बताइये...लड़कियों को ऐसे देखने वाले लोग किसी भी राज्य की लड़कियों को ऐसे ही देखेंगे। नार्थ ईस्ट बहाना है। उनकी प्राइवेट निगाहों में हर लड़की एक इशारे पर उपलब्ध हो जाने वाली माल ही होती है। गाली की तरह लगी उसकी बात। इस तरह की बातचीत के ज़्यादातर हिस्से को अपनी रिपोर्ट में दिखाया लेकिन इस लाइन को नहीं दिखा सका। जानबूझ कर किया गया फैसला नहीं था,बस एडिटिंग करते वक्त भूल गया। लेकिन बाद में जब बात याद आई तो परेशान हो गया। नॉर्थ ईस्ट की लड़कियां रोज़ ऐसे बेहूदों की नज़रों के जंगल से गुज़रती होगीं। सोच कर डर गया। क्या हालत होती होगी उनकी हर दिन?

को पढ़ कर इसे प्रादेशिक मानापमान से जोड़ कर देखने की बात पर इतना कहना अनिवार्य लगता  है कि ज़रा किसी स्त्री से भी पूछ कर देखिए कि निगाहों तक की भी गुंडई करने वाली स्थितियों में कौन सबसे ऊपर और कौन कम ठहरता है| इसमें कोई दो राय नहीं कि स्त्रियों के प्रति लोलुपता और व्यभिचार अखिल भारतीय है किन्तु यह उस से भी बड़ा सच है कि  उत्तर व मध्य भारत का इसमें विशेष स्थान है| दक्षिण की स्थिति उसकी तुलना में काफी अच्छी है| लड़कियाँ उतनी भूख के मध्य प्रतिपल चिरने से कुछ कम घिरी रहती हैं| चाहें तो परिवारों में एक सर्वेक्षण करवाया जा सकता है| इस सच से आँख मूँद कर हम झूठा मन बहलाव करेंगे|


कस्बा के उपर्युक्त आलेख के पूरक आलेख के रूप में आप इस आलेख को भी बांचें  जिसमें स्वयं पंचम लिखते हैं -



क्या हिंदी पट्टी के पत्रकारों के वजह से देश में हिंदी प्रदेशों की गलत छवि बन रही है ?
यह लेख मैने रवीश जी की एक पोस्ट में जो टिप्पणी दी थी उस पर आधारित है । इस मुद्दे पर चर्चा, प्रतिक्रिया आदि को जानने के लिये रवीश जी के ब्लॉग में जाया जा सकता है । मैं यहां व्यक्तिगत होकर पोस्ट नहीं लिख रहा हूँ बल्कि इस पोस्ट को समस्त नेशनल ( ? )  हिंदी पट्टी के पत्रकारों के लिये  ही समझा जाय । रवीश जी के बोलने बताने के तौर तरीकों को मैं भी काफी पसंद करता हूँ, लेकिन कहीं न कहीं यह मुद्दा रह रह कर मन में  करक रहा था, सो पोस्ट के रूप में लिख रहा हूँ




सामंतवाद का `वही' नशा ( जिसने कभी यवनों और फिर ईस्ट इंडिया कंपनी को न्यौता था ) यहाँ भी सर चढ़ कर बोल रहा है -

हिन्दी की मांग करने वाले यूपी-बिहार चले जाएं : राज ठाकरे

हिंदी अपने ही देश किस तरह बेगानी समझी जा रही है इसी की ताज़ा मिसाल है, एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे की बयानबाज़ी, जिसमें उन्होंने हिन्दी की मांग करने वाले लोगों को यूपी-बिहार जाने को कहा है. दरअसल, समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आज़मी द्वारा महाराष्ट्र विधानसभा की कार्यवाही की पत्रिका मराठी और अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी छापने की मांग कर रहे हैं, जो राज ठाकरे की भौंहें तन गयी हैं.




देश को खोखला बनाने वाली भीतरी बाहरी घातों-प्रतिघातों से अंत की आशा मत कीजिए| अभी भारत के भा+ रत होने  में कम से कम १०० बरस लगने वाले है|

मुम्बई से हिन्दी भाषियों को बाहर निकल  जाने की सलाह देने वाला मद और मत्सर से चूर यह राजनेता अपने खोखले अहम् की दुम  दबाए तब कहाँ  था जब मुम्बई पर आतंक की छाया में सारे देश ने मिलकर प्राण झोंके थे?  आप उन सैनिकों के मिट्टी में मिले रक्त के अपमान के अधिकारी कब से हो गए श्रीमान ? तब आप ने तुरत फुरत आकर सेना से मराठियों को चीन्हने का काम क्यों नहीं किया ? और कोई भी सच्चा मराठी आप को करने देता? इस  देश की सेना बड़ी राष्ट्रनिष्ठ है बंधु ! जुबान को लगाम दीजिए और याद कीजिए शिवाजी से लेकर मुम्बई आतंक तक का इतिहास ! वरना कोई पढ़ाने वाला पैदा होना पड़ेगा |


मुम्बई के आतंकी आक्रमण का जो लिजलिजा हाल नपुंसक सरकार ने किया उस से भला कौन राष्ट्र प्रेमी आहत न हुआ होगा और किस बलिदानी की आत्मा ने इस देश के केंचुओं को धिक्कारा न होगा?  ऊपर से उन हत्यारों को पोसा जा रहा है, विशिष्ट आतिथ्य में | आहा आहा हा....|     उधर पाकिस्तान ! उसके रंग ढंग भी तनिक देखिए -


पाकिस्तानी अदालत ने कसाब सहित 14 आरोपियों को भगोड़ा घोषित किया
मुंबई 26/11 मामले की सुनवाई कर रही पाक की एक आतंकवाद निरोधक अदालत ने 31 अक्टूबर को कसाब सहित 14 आरोपियों को भगोडा घोषित कर दिया है। कसाब एकमात्र जीवित आतंकवादी है, जो मुंबई हमलों के दौरान पकडा गया था। 13 अन्य के बारे में तत्काल जानकारी नहीं मिल पाई हैं। अदालत ने 10 अक्टूबर को आरोपियों पर जिस प्रकार अभियान लगाए थे, उसे लेकर कार्रवाई के दौरान, आरोपियों ने आपत्ति जताई थीं।

पूर्व में मामले की सुनवाई कर रहे जज बाकर अली राणा ने आरोपियों पर, उनके वकीलों की गैर मौजूदगी में औपचारिक तौर पर अभियोग लगाए थे। आरोपियों ने सुनवाई के तरीके को लेकर अपनी आपत्तियों के संदर्भ में दो आवेदन भी दाखिल किए है।

न्यायाधीश अवान ने अभियोजन पक्ष से अगली सुनवाई तक इन आवेदनों का जवाब देने के लिए कहा है।

अगली सुनवाई 7 नवंबर तक स्थगित कर दी गई हैं।


  उत्पात का इस देश में कोई अंत है भाईsssssssssssssssssssssss? ? ?



ऐसे ही उत्पाती कथानायकों के एक और पग बढ़ाने की चाल से हतप्रभ वाराणसी!


काशी की देव-दीपावली खतरे में

बनारस की देव-दीपावली विश्वविख्यात है। बहुत से सैलानी इस अवसर के लिए बनारस आते हैं। भारत के दूसरे शहरों के निवासी भी देव-दीपावली पर बनारस आते हैं। या फिर टीवी पर देखते हैं। आज के जनसत्ता में इस पर्व के संदर्भ में एक चिंताजनक खबर आई है। बनारस का होने और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पढ़ने के कारण मेरे और मेरे जैसे कईयों की स्मृति में देव-दीपावली की यादें हमेशा सजीव रहेंगी। और यह बात सिर्फ बनारस वालों की नहीं है। इस खबर की फलक विशाल है। मैं उस खबर के टुकड़े को हूबहू पोस्ट कर रहा हूं। कहना न होगा खबर जनसत्ता से साभार है। शेष, पाठकों की राय का इंतजार है। उम्मीद है बनारस में मौजूद पाठक इस मसले पर और जानकारी उपलब्ध कराएंगे।
रंगनाथ



'रीढ़ की हड्डी' है कि नहीं ....?? को अवश्य बाँचिएगा, आँखों की धुलाई और दूरदर्शिता के लिए उपयोगी है -



सुना कि २९ अक्टूबर को राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल गयी थीं लन्दन, महारानी एलिजाबेथ से कॉमनवेल्थ खेलों के लिए 'बैटन' या 'बेतोन' लेने के लिए....
क्या हो रहा है....??
क्या हम दिमागी तौर पर इतने ज्यादा गुलाम हो गए हैं कि अपने इतिहास को ही भूल गए हैं.......???
आज तक किसी भी देश के 'हेड ऑफ़ स्टेट' ने इस लकुटी को महारानी से लेने कि जहमत नहीं कि.... कॉमनवेल्थ के अर्न्तगत ५३ देश आते हैं जिसमें से एक 'नौरु; भी है....आज तक उनके यहाँ से भी कोई नहीं आया ..इस 'बैटन' या 'बेतोन' या 'लकुटी' को लेने लन्दन .....

बहुत ज्यादा वितृष्णा होती है जब यह सुनते हैं कि श्रीमती पाटिल के पास समय नहीं है हुसैनीवाला आने के लिए ...जहाँ भगतसिंह और राजगुरु कि यादें हैं...उन्हें समय नहीं मिला है जालियांवाला बाग़ देखने का ........लेकिन लन्दन में महारानी के दरबार में शीश झुकाना उन्होंने बहुत जरूरी समझा.......जैसे और देश भेजते हैं अपने नुमाइंदे ...भारत से भी कोई चला जाता.......क्या जरूरी था 'राष्ट्रपति' को जाना ? सुना है कि 'ड्यूक ऑफ़ विंडसर' के द्वारा 'पटेलों' पर भद्दा सा मज़ाक वो सुन चुकी हैं....और इस घटिया मज़ाक पर प्रतिभा जी को कोई खेद भी नही हुआ...
मुझे नहीं मालूम वो मज़ाक क्या था...अगर आप जानते हैं तो कृपा करके बताइयेगा........ 






जाते जाते चंद्रशेखर आजाद की पुण्य- स्थली (२७ फरवरी, १९३१ /  बलिदान दिवस) को प्रणाम करते जाएँ|  जिसे सिद्धार्थ ने इलाहाबाद का फेफड़ा कहा है| सच मानिए यह इलाहाबाद का फेफड़ा ही नहीं समूचे भारत का प्राणाधार है| भारत की जीवनी शक्ति है| 




सिद्धार्थ लिखते हैं -

यह वही पार्क है जिसमें चन्द्र शेखर आजाद को अंग्रेजो ने मार डाला था। २७ फरवरी, १९३१ को जब वे इस पार्क में सुखदेव के साथ किसी चर्चा में व्यस्त थे तो किसी मुखवीर की सूचना पर पुलिस ने उन्हें घेर लिया। इसी मुठभेड़ में आज़ाद शहीद हुए। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इसका नाम अब ‘चन्द्रशेखर आज़ाद राजकीय उद्यान’ कर दिया गया है।




इस पर आई टिप्पणियों में ज्ञान जी ने एक दम सही संशोधन सुझाया है -

ज्ञानदत्त पाण्डेय| Gyandutt Pandey said...

यह वही पार्क है जिसमें चन्द्र शेखर आजाद को अंग्रेजो ने मार डाला था। ------------ अच्छा, मैं तो जानता था कि किसी फिरंगी की गोली आजाद को गुलाम न बना पाई थी?!

 

सच है, आजाद किसी मुठभेड़ में मारे नहीं गए और न ही अंग्रेजों ने उन्हें मार डाला था, अपितु उन्होंने  स्वयं अपने को जीवन पर्यंत आजाद रहने के प्रण के कारण गोली मार ली थी कि मैं जीते जी किसी के हाथ नहीं आने वाला| .... और ब्रिटिश शासन के दास सिपाही कितनी देर उनकी मृत व वीरगति पाई देह को छूने का साहस तक न  कर सके थे|

उस वृक्ष का एक चित्र भी इस लेख पर अभी प्रतीक्षित है, जिसके तले यह बलिदान हुआ और अब वहाँ एक स्मारकशिला लगी हुई है|


भारत में दिन उग आया होगा| और चर्चा अब तक मुझे लगा देनी चाहिए थी| आप से विदा लूँ उस से पूर्व 2 जानकारियाँ सार्वजनिक  हित के पश्नों से सम्बंधित -

बसेरा (जर्मनी) ने  भारत द्वारा व्यावसायिक वीज़ा संबन्धी प्रश्नोत्तर में लिखा है कि  -

यह पोस्ट फिलहाल अंग्रेज़ी में है।

By: Margit E. Flierl, Delta Consultants

FAQs relating to work related visas issued by India
Introduction
In recent weeks, several queries have been raised about the type of Visas issued by India to foreigners for work related visits. It is clarified that basically there are two (2) types of work related Visas, namely:-
1. Business Visa designated as ‘B’ Visa
2. Employment Visa designated as ‘E’ Visa
Frequently asked questions with regard to the above issues and replies thereto are outlined below for information, guidance and compliance of all concerned: - 

विस्तार से तद्संबंधी जानकारियों को पढ़ने के लिए आपको बसेरा को चटका लगाना होगा |



अब रही दूसरी जानकारी -

रेलयात्री एसएमएस से कर सकते हैं रेलवे की शिकायत

अब रेलयात्रियों की किसी भी परेशानी की हालत में स्टेशन आने का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा. वे सफ़र के दौरान ही एसएमएस ( मोबाइल नंबर 9717630982) कर अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं. उत्तर रेलवे ने यह सुविधा उत्तर रेलवे ने कल से शुरू कर दी है.


उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक विवेक सहाय के मुताबिक़ रेलयात्री प्लेटफार्मों पर रेलगाड़ी, कोच संख्या, स्थिति, डिस्पले इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड और स्वचालित सीढ़ियां आदि से संबंधित अपनी शिकायतें शामिल हैं. उनका कहना है कि पिछले कुछ महीनों में यात्रियों की शिकायतें दर्ज कराते वक्त उनसे मोबाइल नंबर भी लिखवाया जा रहा है. उन्होंने दावा किया कि एसएमएस सेवा से कुछ ही मिनटों में शिकायतें पर सुनवाई करते हुए यात्रियों के समस्या का समाधान हो सकेगा.






चर्चा के पाठकों से  सप्ताह के आरम्भ में मिलना इन अर्थों में भी सुखद है कि आपको सप्ताह-भर के लिए आरम्भ में ही शुभकामनाएँ दी जा सकती हैं | सो, आप सभी अपने स्नेही जनों, परिवारी जनों के साथ नूतन, मंगलमय, आनंद से भरे रहें और समाज के लिए कुछ न कुछ सकारात्मक करते रहें  - ऐसी आशाओं, शुभकामनाओं व अपेक्षाओं के साथ हार्दिक नमस्ते|

- कविता वाचक्नवी 



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47 टिप्‍पणियां:

  1. सर्वप्रथम सभी ब्लोगर मित्रो को गुरुनानक जयंती की हार्दिक शुभकामनाये !
    वाहे गुरु सतनाम, सतनाम वाहे गुरु !


    बहुत खूब !

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  2. "यदि भारत के पास एक आग में स्वाहा हो जाने वाली संपत्ति (संपदा) का मूल्य यह है तब तो भारत बहुत धनी देश है..."

    इसीलिए तो कहा जाता है कि भारत एक सपन्न देश है जिसकी जनता गरीब है:)

    >आज की ताज़ा खबर यह है कि बनारस के अधिकारियों ने अपनी गलती मान ली है और अब देव दीपावली का पर्व यथावत मनाया जाएगा॥

    >हमेशा की तरह चिंतनपरक चर्चा के लिए साधुवाद॥

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  3. वाहे गुरु सतनाम, सतनाम वाहे गुरु !

    निःसँदेह डा. वाच्क्नवी सदैव की भाँति एक तथ्यपूर्ण एवँ तर्कपूर्ण वज़नदार परिचर्चा लेकर आयी हैं ।
    पर, न जाने क्यों एक चुलबुली यौनिक शीर्षक इसके माथे पर चस्पॉ कर दिया !
    पूरी चर्चा पढ़ने के दौरान इस शीर्षक की नँगी जाँघें ही दिमाग पर हावी रही !
    इसे चुनने के मोह का सँवरण किया जा सकता था ।

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  4. यह शीर्षक तो एक पुराने विवाद की याद दिला गया जिससे हम मुश्किल से उबर पाए थे -अब वही पुनरावृत्ति आखिर क्यों ?
    क्या सनसनाहट चर्चा के लिए अनिवार्य तत्व है ?

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  5. यह समझ से परे है कि हाल ही में कविता जी द्वारा की गई चिट्ठा-चर्चायों के शीर्षक इस तरह के क्यों रहते आए हैं।

    बी एस पाबला

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  6. हमेशा की तरह कविता जी द्वारा सार्थक चर्चा।
    खेती-बाड़ी की चर्चा के लिए धन्‍यवाद।

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  7. ये क्या ?
    दिखाने को सांप और अजगर ..........

    बेचने को
    दन्त मन्जन...............

    सांप और अजगर मन्जन करते हैं क्या ?

    ______________मैं इस पोस्ट के अत्यन्त घटिया, वाहियात और अश्लील शीर्षक का घोर समर्थन करता हूँ......इसे बदला जाए । इस शाब्दिक और सांकेतिक अंग प्रदर्शन की कोई ज़रूरत नहीं है । चर्चा में दम होगा तो पाठक वैसे ही आ जायेंगे जबकि मैं सिर्फ़ इस शीर्षक को देख कर कौतूहलवश आया हूँ और मुझे निराशा हुई क्योंकि बाहर बोर्ड कुछ और है, अन्दर माल कुछ और है ।

    इस से अधिक विनम्र निवेदन मैं कर नहीं सकता ।

    ईश्वर आपको सद्बुद्धि दे !

    -अलबेला खत्री

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  8. घोर समर्थन का मतलब आप समझ ही गए होंगे.............

    कृपया इसे बदलिए

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  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  10. यदि मुनिरका, दिल्ली ( भारत का हृदय,वक्ष, छाती) में पूर्वांचल की हमारी बेटियों के साथ यह हो रहा है कि काम कुंठित लोग उनकी गर्व से हत्या कर देते हैं, आँखों आँखों में बलात्कार करने की होड़ में उन्हें खा जाना चाहते हैं, (देखें http://naisadak.blogspot.com/2009/11/blog-post.html) तो आप क्या आप समझते हैं कि उन्हीं पूर्वोत्तर क्षेत्रों (अरुणाचल प्रदेश) में बसने वाली शेष ललनाओं को चीन क्या माता (भारतमाता) का प्रतिरूप मानते हुए उनकी चरण वन्दना करेगा?


    यदि इस देश के वासी "भारतमाता" का निहितार्थ नहीं जानते हुए अपनी दुशासनी वासनाओं के लिए लज्जित न हो कर गर्वित होते हैं ( देखें वहीं - " उनकी प्राइवेट निगाहों में हर लड़की एक इशारे पर उपलब्ध हो जाने वाली माल ही होती है। गाली की तरह लगी उसकी बात। इस तरह की बातचीत के ज़्यादातर हिस्से को अपनी रिपोर्ट में दिखाया लेकिन इस लाइन को नहीं दिखा सका। जानबूझ कर किया गया फैसला नहीं था,बस एडिटिंग करते वक्त भूल गया। लेकिन बाद में जब बात याद आई तो परेशान हो गया। नॉर्थ ईस्ट की लड़कियां रोज़ ऐसे बेहूदों की नज़रों के जंगल से गुज़रती होगीं। सोच कर डर गया। क्या हालत होती होगी उनकी हर दिन?" ) तो शत्रु शक्तियाँ क्या आपकी इस इस असली भारतमाता को पूजनीया की पद पर बिठाने का उपक्रम कर रही है?


    चीन और भारत+ माता ( श्रीमान ! पूर्वोत्तर भारत में ही है ) में बनते समीकरण के लिए क्या दुशासन की द्रौपदी के प्रति व्यक्त की गयी कदाचारी भंगिमा ( मिथकीय प्रतीक द्वारा अर्थवत्ता उजागर करने की शैली ) का वास्तव में कोइ सहसबंध नहीं है? और वे राजपथ जिन्हें सीधे पाकिस्तान तक बनाकर चीन हमारी छाती पर मूंग दलता आया है, क्या वे माँ की छाती पर किया गया कुत्सित कार्य नहीं हैं? उन "सेवन सिस्टर्स" के साथ संभाव्य कुत्सित कार्य नहीं है ? याद है न कि पूर्वोत्तर को सत- भगिनी कहा जाता है, आप की भगिनी के साथ शत्रु और क्या सम्बन्ध बनाएगा उसे भी शीर्षक में लिख दें तब भी शीर्षक यौनिक नहीं कहा जाएगा|

    और यदि स्त्री की छाती और नंगी जाँघों में रस लेने का सपना पालने वाले पाठक का यह कुत्सित सपना यहाँ आकर चूर चूर होता है, और उसे अपनी माँ को लज्जित करवाने की नपुंसकता के चलते शर्मिन्दगी उठानी पड़ती है, तो भी क्या बुराई है जी? क्यों न उनके सपनों को चूर चूर किया जाए ? क्यों न वैसे भारत - पुत्रों को जलील किया जाए जो पूर्वोत्तर और पूर्वोत्तर की जनता से, उनकी बेटियों से केवल हड़प जाने भर का सरोकार रखती है? वरना क्या किया हम-आपने पूर्वोत्तर के लिए? केवल वे और चीन ही नहीं हम सभी "सेवन सिस्टर्स" के दोषी हैं|

    हमने क्या किया और क्यों किया का उत्तर मिल जाए और हमारे व चीन के दुशासनी कार्य को व्यक्त करने वाला कोई शालीन - सा, मीठा-सा, मनोहारी-सा शब्द-युग्म मिल जाए तो उसे लेकर हम अपनी शालीनता के मुखौटे पर चस्पा कर लें , क्योंकि मुझे तो दुशासन / उसकी जाँघ / द्रौपदी का चीरहरण (नंगा करना) और राजसभा में बैठे बुजुर्गवारों सभासदों का अंधे होना से आगे कुछ समझ नहीं आ रहा|

    केवल इस बात के, कि- द्रौपदी ने भीम द्वारा दुशासन की उस जाँघ को उखाड़, छाती के रक्त को लाकर द्रौपदी के बालों में लगा, प्रतिज्ञा पूरी कर बाल बाँधे थे|

    है कोई भीम ?

    जवाब देंहटाएं
  11. कोई और तो आपके नामसे प्रेत लेखन नहीं कर रहा कविता जी !
    बात समझ नहीं आयी कुछ ! यह आप नहीं हो सकतीं -सचमुच !

    जवाब देंहटाएं
  12. डीयर कविता ये कह सकूँ कि आप कि हिन्दी गलत हैं इतनी हिन्दी कि काबलियत नहीं हैं मुझमे । आप ने अपना सारा जीवन हिन्दी ज्ञान अर्जित करने मे लगाया हैं । आप चर्चा करती हैं तो वो सब जो हिन्दी साहित्य का दर्पण हिन्दी ब्लॉग को मानते हैं जरुर इस मंच पर आते हैं और आप कि चर्चा मे दिये हुए लिंक से उन पोस्ट तक जाते हैं जो खोजने वो आप कि चर्चा मे आते हैं ।
    हेडिंग मे दिया वाक्य भी शायद आप ने नहीं लिखा हैं ओरिजनल , मात्र कही से लेकर यहाँ दिया हैं । लेकिन ये इस चर्चा मे लिये हुआ परिश्रम को निरस्त्र कर रहा हैं क्युकी सारा समय चर्चा पर ना देकर इस वाक्य का सन्दर्भ खोजने मे लगा । क्या सार्थकता हैं इस वाक्य कि यहाँ मे नहीं समझ सकी , और मुझे हेडिंग मे इसका होना भी बहुत ही सवेंदन हीन लगा हैं । हो सकता हैं आप कि नज़र मे इसकी सार्थकता हो , क्युकी लेखक अगर कुछ कोट करता हैं तो सन्दर्भ से ही करता हैं । कोशिश करे हम लोगो को वो समझा दे या इस वाक्य को हेडिंग से हटा दे । किसी भी चीज़ को नेट पर बदलना मुश्किल नहीं होता अगर सब कहे तो विमर्श शायद इसी को कहते हैं ।
    and i am writng with refrence to the charcha heading as like dr arvind i have also failed to understand the significance of the comment with kavits name

    जवाब देंहटाएं
  13. क्या खूब कही और क्या दूर की कौड़ी खोजी !

    कुछ सप्ताह पूर्व की मेरी चर्चा पर डॉक्टर अमर कुमार जी ने इस आशय की टिप्पणी की थी, कि इस चर्चा ने यह तो सिद्ध कर दिया है कि यह आपके ही कीबोर्ड से निकली है । उस टिप्पणी का निहितार्थ मैंने यह भी लगाया था कि मानो मेरे नाम से की जाने वाली चर्चा कोई और करता है, यह आरोपित किया जा रहा है|
    माननीय डॉ. अमरकुमार जी, अरविंद जी और रचना से निवेदन है कि मेरा कोई भूत वूत अभी नहीं बना है, क्योंकि मैं सही सलामत जिंदा हूँ (वैसे मरने के बाद भी वह तथाकथित भूत नहीं बनने वाली हूँ क्योंकि चिर शान्ति से मरूँगी), इसलिए मेरे नाम से चर्चा करने या मेरे खाते का सदुपयोग करने का अधिकार मेरे अतिरिक्त किसी को नहीं मिला है| इसलिए तथ्य से हटकर व्यक्तिगत बातें करने जैसा होगा यह |

    मेरी टिप्पणी की वर्तनी में, वाक्य संरचना में एकाध स्थान पर शब्द का पुनर्प्रयोग देख कर ही इसे भाई आधार पर मुझ से इतर किसी ओर की प्रमाणित कर देना, घोषित कर देना, सचमुच गलत है| किसी शैली वैज्ञानिक को दिखा लीजिए वह भी ऐसी मीमांसा नहीं करेगा | चर्चा मैंने यात्रा में की है| लन्दन में घर पर सिस्टम में बारहा है, किन्तु ग्लासगो में बेटे के लैपटॉप पर गूगल मेल में देवनागरी एक्टीवेट कर के काम चलाया जा रहा है| ऐसे में किसी शब्द के कोपी पेस्ट के समय पुनरावृत्ति होने को ओरिजिनल न होने का प्रमाणपत्र देना बड़ा ही औचक है|

    शीर्षक किसी का कोटेशन नहीं है|
    रचना ! ऐसे शैलीगत प्रयोग को भाषाविज्ञान / समाज भाषाविज्ञान प्रोक्ति कहता है; जिसे "वाक्य पदीयम्" ने `महावाक्य' की संज्ञा दी है | किसी सच्चे और खरे भाषा-वैज्ञानिक / शैली वैज्ञानिक से पूरी जानकारी मिल सकती है|

    अनूप जी या चर्चाकार मंडली का समवेत निर्णय यदि शीर्षक के औचित्य को आधारहीन पता है तो वे इसे बदलने में स्वतंत्र हैं|

    वैसे, बंधुओ ! ऐसी कोई भी चर्चा कम से कम ऐसे हथकंडों की मोहताज नहीं कि उसे चौंकाने वाले शीर्षक को आरोपित करना पड़े ( हाँ, बड़े सरोकारों के लिए मारक शीर्षक अधिक उपयोगी होते हैं; मार्क और चौकाने वाला दोनों अलग चीज हैं) | हजार `सही है', `बढिया है' की अपेक्षा एक भी व्यक्ति यदि इसमें निहित पीड़ा तक पहुँच जाता है तो वही बस है|

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  14. सच कहने के लि‍ए, नंगा क्‍यों हुआ जाये
    ,
    क्‍यों न सवस्‍त्र इस, करंट को छुआ जाये।
    ..................................
    http://rajey.blogspot.com/

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  15. आपने अनूप जी या चर्चाकार मंडली से पूछ कर तो यह शीर्षक नहीं रखा होगा, तब इसे बदलने के लिये अनूप जी या चर्चाकार मंडली का समवेत निर्णय किसलिये?

    क्या अनूप जी या चर्चाकार मंडली चिठाचर्चा के उन पाठकों से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई जो सब समवेत स्वर में इसे बदलने को कह रहे हैं।

    यह सार्वजनिक मंच है।

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  16. Ok, leave the other detailed explanations, Please READ your heading again and try to give the literal meaning only. Please try at once, If you find any justifiable meaning, please communicate.

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  17. हम तो "टिपिया" दिये, अब आप "चर्चिया" दीजिये !

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  18. आश्चर्य है कि डॉ कविता वाचक्नवी के हैडिंग पर इतना बवेला, हालाँकि तात्कालिक प्रतिक्रिया मेरी भी डॉ अमर की तरह ही थी ! मुझे लगता है कि कविता जी को जो पहले पढता रहा है उसके लिए उनकी तीखी और बेवाक भाषा कोई नई बात नहीं होनी चाहिए !

    अरुणाचल प्रदेश और सेवन सिस्टर्स की समस्या हम लोगों की अनपढ़ और अदूरदर्शी सोच के कारण विकट से विकटतम होते देर नहीं लगेगी !

    कुछ दिन पहले एक उत्तरपूर्वीय मुख्या मंत्री का वक्तव्य था कि मेरे ही देशवासी मुझे इस देश का नहीं समझते , मुझे नेपाली मानते हैं ! और "चिंकी" कॉमन बोलचाल में बोलते हुए हमें कतई शर्म नहीं आती कि हम एक पूरी सभ्यता जो अभिन्नतम तौर पर हमारी है, का अनजाने में अपमान कर रहे हैं !

    हमारे द्वारा, अपनों का ही यह मखौल, हमारी सभ्यता का एक हिस्सा बनता जा रहा है ! अगर कविता जी ने अपने तल्खी भरे शब्दों से हमें हमारी मानसिकता याद दिला दी तो मेरी निगाह में मात्र हमें झकझोरना था कि दुबारा कोई नागालैंड की हमारी बच्ची देश की राजधानी में दम न तोड़ दे !

    मुझे आश्चर्य है कि डॉ अमर जैसे विद्वान् इस शीर्षक के दूसरे पक्ष को कैसे भूल गए ? आशा है वे अवश्य दुबारा बोलेंगे ....
    डॉ अमर के प्रति आदर सहित !

    जवाब देंहटाएं
  19. WAAH JI WAAH !

    MAAN GAYE AAPKO !


    AAPKE TARK ATHVAA KUTARK KO !


    ____ASHLEEL LIKHNAA BURI BAAT HAI

    ____AAP LIKHEN TOH AUR BAAT HAI

    __________________j a i h i n d

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  20. " रचना ,ऐसे शैलीगत प्रयोग को भाषाविज्ञान /समाज भाषा विज्ञान प्रोक्ति कहता है :जिसे " वाक्य पदीयम" ने "महावाक्य " की संज्ञा दी है , "' बस यहीं तो मात खा गये हम -हिन्दी साहित्य के आधिकारिक श्रोता भी तो नहीं ..रचना जी शायद श्री मुख से निकले इस महाकाव्य को समझ जायं मगर पांडित्य की इस प्रखरता ने तो मुझे सचमुच निर्बल निस्तेज ही कर दिया ...अब जो भी बोलूँगा तो बुडबकई ही और उद्घाटित होती जायेगी ! रही बात अनूप जी इस ब्रह्म वाक्य में हेर फेर कर दें या बदल दें तो यह कम से कम इस जन्म में संभव नहीं ! आखिर वैदुष्य के प्रति समर्पण और उदात्तता भी कोई चीज होती है !

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  21. भारत वाकई धनी देश है - मेधा से भी और भौतिक सम्पदा से भी।
    ब्लॉग वह भी चिठ्ठा चर्चा जैसा - केवल पंडित और आचार्य नहीं पढ़ते, अज्ञानी भी पढ़ते हैं। महावाक्य और प्रोक्ति के आश्रय से विषयवस्तु ही गड्ढोन्मुखी हो जाय तो उनसे दूरी ही अच्छी। वैसे विवेक जी की टिप्पणी,
    "जदपि शीर्षक रद्दी फिर भी, चर्चा यह गहरी है ।
    अनुभव दिया उड़ेल बैठकर, लण्डन बीच करी है ॥
    किस श्रेणी का महावाक्य है? सम्भवत: विवेक जी लन्दन शहर को अपने लपेट में लेती भारतीय 'कढ़ी' के सहारे आप के वैदुष्य की सराहना करना चाह रहे हैं ! मैं तो यही समझ रहा हूँ लेकिन बहुत ही सूक्ष्म इशारे से भाषिक चूक से होने वाले अनर्थ की ओर उनका इशारा भी समझ रहा हूँ। भाषिक क्या उनके यहाँ तो वार्णिक 'चूक' है - अनुभव का सम्प्रेषण कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है!
    पाठक को भाषिक अश्लीलता से चौंका कर एक बहुत ही गम्भीर समस्या से रूबरू कराना चाहती थीं आप लेकिन देखिए कि कहीं उस चौंक ने उद्देश्य का गला ही तो नहीं घोंट दिया ?
    क्या यह आवश्यक था? जी हाँ हम आप की चिंता समझ रहे हैं। अपने ही देश में एलियन सा ट्रीटमेंट, नारी जाति को भोग यंत्र समझने और झपटने की मानसिकता से हर पल घायल होने की पीड़ा और पड़ोसी देश की कुदृष्टि और कुकर्म ! कुछ दर्शाना चाहती थीं आप लेकिन ये वाक्य शब्दों के गलत प्रयोग के कारण अपनी अर्थवत्त्ता से मामले को जोड़ नहीं पाते।
    हर कोई मंटो नहीं हो सकता! आप को होने की आवश्यकता भी नहीं है। जिस भाषा से आप सहज नहीं उसके व्याकरण को निगलने और फिर वमन करने की क्या आवश्यकता आन पड़ी थी आप को जो ऐसा शीर्षक दे दिया?
    क्षमा कीजिएगा "...और यदि स्त्री की छाती और नंगी जाँघों में रस लेने का सपना पालने वाले पाठक का यह कुत्सित सपना यहाँ आकर चूर चूर होता है, और उसे अपनी माँ को लज्जित करवाने की नपुंसकता के चलते शर्मिन्दगी उठानी पड़ती है, तो भी क्या बुराई है जी?"..गाली सा ही लगता है शब्दाडम्बर में लिपटी गाली! वे तो खुश होंगे यह देख कर !! पांडित्य दुधारी तलवार होती है, सँभल कर प्रयोग करना होता है।
    पीड़ा में गाली नहीं रूदन होता है और उसके बाद शायद कभी कभी उससे मुक्ति का निश्चय भी। जिस आक्रोश में गाली बकी जाती है वह आक्रोश नपुंसक (या बाँझ कहूँ? क्रोध का स्त्रीलिंग क्या है?) होता है।..
    मुझे पता है कुछ लोग आएँगें प्रत्युत्तर में, शायद आप भी - दादा कोंड़के टाइप तर्क लेकर - तुम जिसे दुअर्थी कहते हो उसका दूसरा अर्थ क्यों नहीं पकड़ते हो? बड़ी गन्दगी है तुम्हारे दिमाग में ! यह तर्क दादा कोंड़के को शोभता है, आप को नहीं।...क्यों कि आप जैसों के कन्धों पर एक अलग तरह की जिम्मेदारी है- भारी सी। हम नासमझ लोग जब अपनी छोटी जिम्मेदारियों के मामले में भी सतर्क रहते हैं तो आप से भी अपेक्षा रखते हैं। सार्वजनिक बात है. . .
    हाँ चर्चा वाकई विशद, गहन और उत्तम है, इसमें कोई दो राय नहीं। शायद इसलिए भी यह शीर्षक निरर्थक हो जाता है। किसी के ब्लॉग पर ही पढ़ा था, लुब्बो लुआब यह था कि पहले शीर्षक सोच कर फिर पोस्ट न लिखी जाय, काम उसके उलट किया जाय जो कि सीधा रास्ता है। .. आप कहेंगी यह पोस्ट नहीं चर्चा है। सहमत हूँ, इसीलिए सीधी बात कहने की जरूरत यहाँ अधिक ही है।

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  22. @अनुभव दिया उड़ेल बैठकर, लण्डन बीच करी है ॥
    क्या भाई लोग अब बताये ज़रा आप सब महानुभाव इसका सही और सार्थक मतलब ...और कोई नहीं तो कम से कम विवेक सिंह जी आप .......

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  23. kavita i merely said that the heading is not your own original creation you merely are quoting it from a post . i have no where said that its not your original post . and i have slready said " i am not the right person to debate with you on hindi language issues because i am not a qualified person in hindi language and literatuare where as you have put your life into learning hindi.

    i did not like the heading that is all as i have been against use of such language in hindi blog posts until and unless some one explains the same with easier to understand hindi so that all can follow what is being said

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  24. arvind mishra

    i am still struggling to understand the title of your blog , lest alone say it verbally !!!!! understanding such klishth hindi is not my cup of tea and the sole reason i feel hindi is unpopular as a tool of expression is because it has been made a language of elite . i am wondering how can anup challenge and change it !!!!!!!!!!!

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  25. @ सतीश सक्सेना
    मुझ पर विदुवान होने का टैग मत लगा मेरे भाई ...
    केवल कानोंसुनी का ही अनुसरण न करने के अपनी धारणा के चलते, मैं पिछले वर्ष लगभग इन्हीं दिनों मिज़ोरम की यात्रा पर अनायास ही निकल गया था । ( सँभवतः यह चर्चा के पुराने पाठकों को स्मरण भी होगा )
    जो मैंनें देखा.. सबसे पहले तो अपने ही देश के उस हिस्से में प्रवेश के लिये परमिट और भी न जाने क्या क्या औपचारिकतायें, उनको राष्ट्र की मुख्य धारा से अलग करती है । पर यहाँ मुद्दा कुछ और ही है...

    उनके स्त्रीप्रधान समाज में खुलेपन का स्तर वह नहीं जो हम सोच लेते हैं, साथ ही यह भी सच है कि उनका समाज किसी भी स्तर पर यौनकुँठाओं को साथ लेकर भी नहीं चलता, इन्हें भुनाना या आकर्षण का केन्द्र बनाना तो दूर की बात है । यहाँ पर हमारी उत्तर-भारतीय मान्यतायें दिग्भ्रमित हो जाती हैं । आज का शीर्षक तो अनायास ही यह विषय बन गया, क्योंकि यह डा. कविता के कीबोर्ड :) से उद्धरित की गयी है । किंवा यह भी इसी अवचेतन दिग्भ्रमित लोभ की उपज हो । वह भाषा की डाक्टर हैं, उनसे भला कोई क्यों टकराना चाहेगा ? डाक्टर कविता से शब्दों पर सँयम की अपेक्षा थी, वह मैंने अपने तरीके से व्यक्त कर दिया ।
    वरना, सी.आर.पी.एफ़. के नयी उम्र के ज़वान पश्चिमोत्तर में तैनाती पर एक दूसरे को बधाई और पार्टी देते देखे जा सकते हैं, सो इस चर्चा में ऎसा कोई रस लेने से हमारा मान घटता ही है, तभी मैं यह लिख सका कि, " निःसँदेह डा. वाच्क्नवी सदैव की भाँति एक तथ्यपूर्ण एवँ तर्कपूर्ण वज़नदार परिचर्चा लेकर आयी हैं ।"

    रही बात दिल्ली की घटनाओं की.. तो यह स्पष्ट कर लेना चाहिये कि कोई इसे यौनहिंसा या यौन-अपराध की श्रेणी से ऊपर उठा कर प्रदेश-विशेष या किसी नस्ल से जुड़े होने की विशिष्टता क्यों देना चाहता है ? यह उसकी व्यवसायिक मज़बूरी हो सकती है । किन्तु एक अव्यवसायिक ब्लॉगर को मीडिया द्वारा परसी हुई हर थाली को लपक नहीं लेना चाहिये । मेरे लिये ब्लॉगर के मायने तिलमिलाहट है, मनोरँजन है, तथ्यपरक सोच है, दस्तावेज़ लेखन है, और भी बहुत कुछ हो सकता है, किन्तु सनसनीपरक ? ना बाबा ना.. क्या मुझे इस बात को भी सनसनी बना देना चाहिये कि, गुरु नानक देव जी के सबद की लाइव प्रस्तुति नुसरत फ़तेह अली ख़ाँ कर रहे हैं ? नहीं, नेवर.. नॉट एट ऑल, यह उन्हें अपने अलहदा वज़ूद के लिये सोचने को उकसायेगी ।

    बदलो ऑर बदलो नॉट दैट शीर्षक, दैट्स नॉट माई एज़ेण्डा..
    पर डाक्टर कविता ने विद्वान होने का जो कद पाया है, उसकी कीमत मेरी इस सूक्ष्म आपत्ति को स्वीकार करने में ही है ।

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  26. "कोई और तो आपके नामसे प्रेत लेखन नहीं कर रहा कविता जी !
    बात समझ नहीं आयी कुछ ! यह आप नहीं हो सकतीं -सचमुच"


    डो. अरविंद मिश्र जी, खेद है कि यह बात आप जैसा विद्वान कह रहा है जो मात्र एक शब्द ‘क्वचिदंतोपि’ से ब्लाग जगत को संस्कृत सिखाना चाहता है। इससे बडा अपमान कविताजी का क्या होगा कि उन के लेखन की क्षमता पर ‘प्रेत लेखन’ का लांछन लगाया जा रहा है।

    रचनाजी की बात और है- मुल्ला की दौड़ मसजिद तक... और उन्होंने कविताजी की भाषा पर उससे पूर्व भी टिप्पणी की थी... इसलिए उनकी नासमझी को नज़र अंदाज़ किया जा सकता है।

    भाई लोग, छाती, नंगी जाघे जैसे शब्दों से आप लोग इतने विचलित हो जाएंगे कि अपनी इस कमज़ोर मानसिकता का इज़हार भी कर देंगे, इस पर आश्चर्य हुआ। शीर्षक देख कर आने वाले भाइयों को तो निराशा होगी ही।

    कभी गालिब ने एक महफिल से उठ कर जाते देख लोगों ने पूछा था कि वो क्यों जा रहे है तो उनका जवाब था मैं वहां जा रहा हूं जहां मेरी अशा’र के मायने समझने वाला होगा:)

    जवाब देंहटाएं
  27. @ पाबलाजी, कविताजी की पिछली कुछ चर्चाओं के क्रम से शीर्षक निम्नवत हैं:
    १. टिप्पणियों के रूप में कड़ी भर्त्सना और आरोप झेलने को मिलने वाले हैं आज
    २. लाख करे पतझड़ कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
    ३. जरा सी आहट होती है तो दिल...
    ४.घड़ी किन किन कारणों से रुकती/बिगड़ती हैं:घड़ीसाज के औजार...
    ५.रूठे कैसे नहीं बचे अब मान-मनौव्वल के किस्से
    ६.अपने कुत्ते के स्नेह को इस बात का अकाट्य प्रमाण मानकर चलो कि आप वास्तव में विलक्षण हैं।
    ७. धूल की मोटी परतें हैं पर उन परतों पर कहीं हैं नहीं अब उन नंगे पैरों के निशान
    ८.डायरी की अंतर्मुखता बनाम ब्लॉग का बहिर्मुख स्वभाव!
    ९.बलिदान:बलिदानी:भारतमाता की जय
    १०.बिछ़ड़ना है दिलासा दे रहे हैं/हम एक दूजे को धोखा दे रहे हैं।

    कृपया अपनी टिप्पणी देख लीजिये दुबारा और बताइये कि इन दस में कौन सा शीर्षक इस तरह का है? संभव है तो बतायें कि आपकी समझ इस तरह क्यों है कि आपकी समझ से यह बात परे कैसे हो गयी?

    जवाब देंहटाएं
  28. एक अच्छी और विशद्‌ चर्चा के लिये आपका धन्यवाद..वैसे कौए के पीछे ’कान ले गया’ चिल्लाती हुई दौड़ती भीड़ मे कितने लोग पहले कान की सलामती को चेक कर चुके हैं सोचने की बात है..बात से बात बढ़ती है...और विवाद से विवाद!!!

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  29. बाकी रचनाजी और अरविन्द मिश्र जी से क्या कहें? चंद्रमौलेश्वर जी और इसके पहले सतीश सक्सेनाजी काफ़ी कह चुके। वैसे अरविन्दजी के बारे में मुझे यह विश्वास होता जा रहा है कि वे कुछ भी कह सकते है। एक जगह कही बात के धुर उलट दूसरी जगह कह सकते हैं।

    डा.अमर कुमार जी को उनके अनुज के निधन पर हार्दिक संवेदनायें।

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  30. यहाँ तो काफी बड़ी विद्वत्‌ सभा बैठी है भाई। इसमें मैं क्या बोलूँ? वो अनूप जी कहते हैं न कि जिसको जितनी बुद्धि होती है वह उतनी बात करता है।

    मैं तो यह बताने आया था कि चन्द्रशेखर आजाद के बारे में मैंने असावधानीवश जो त्रुटिपूर्ण वाक्य लिख दिया था उसे सुधार दिया है। इसके लिए आदरणीय ज्ञान जी और अन्य टिप्पणीदाताओं से खेदप्रकाश करते हुए उन्हें धन्यवाद देता हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  31. कविता जी,
    मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि दिल्ली में पूर्वोत्तर की लड़कियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं होता है. मैं डी.यू. के नॉर्थ कैम्पस के पास गाँधीविहार की बात बताती हूँ. यहाँ पूर्वोत्तर के अनेक लड़के-लड़कियाँ रहते हैं. स्थानीय लोग उन्हें अपने यहाँ किराये पर कमरा तो आसानी से दे देते हैं क्योंकि वे सीधे-सादे होते हैं, पर पूर्वोत्तर की लड़कियों पर छींटाकशी आम बात है. इस बात को लेकर कई बार झड़पें भी हो चुकीं हैं. यहाँ यू.पी. बिहार की भी लड़कियाँ रहती हैं पर उनके साथ इतनी बदतमीज़ी नहीं होती. शायद इसका कारण यह है कि स्थानीय लड़के यह समझते हैं कि पूर्वोत्तर की लड़कियाँ उनकी हिन्दी में कही गयी बात समझ नहीं पायेंगी. इसका कारण रेसियल भी हो सकता है. जो भी हो इससे पुरुषों की कुत्सित मानसिकता ही उजागर होती है.

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  32. चर्चा अच्छी लगी। चर्चा पर परिचर्चा और भी अच्छी.....

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  33. @ अनूप शुक्ल जी,

    औरतों के जननांग पर फहरा दो विजय की पताका? याद होगा आपको जिसमें

    रंजना [रंजू भाटिया] की ही टिप्पणी हैं कि कविता जी ..मैं इस शीर्षक को नहीं समझ पायी कि इस चर्चा को यह शीर्षक क्यों?

    अल्पना वर्मा जी की टिप्पणी है कि मेरी 'छोटी सी 'निरीह बुद्धि इस शीर्षक के तर्क को गले उतार नहीं पाई. आप को मेरे मत से फरक नहीं पड़ेगा यह मैं जानती हूँ लेकिन अगर यही शीर्षक इन्हीं तर्कों के साथ अगर किसी पुरुष ब्लॉगर ने दिया होता क्या तब भी आप और आप के समर्थक उसे सहर्ष स्वीकारते ? मुझे अपना मत देना था सो चुप नहीं न बैठ सकी .अगर इस का कोई और शीर्षक भी रखा जाता तब भी आप का सन्देश सब तक पहुँचता ही... शीर्षक पढ़ कर इस चर्चा को शीर्षक देने वाला संवेदनहीन लगा... आप ने भी यह साबित कर दिया सिर्फ कुछ किताबें लिखने और साहित्य के मंच तक पहुँचने से कोई बड़ा नहीं हो जाता.

    ज़वाब में कविता जी का कहना है कि इन सब आपत्तियों की परवाह करना मुझे आवश्यक नहीं लगता। किसी को अच्छा लगता है बुरा - यह मेरे विवेक को विचलित नहीं करता न कर सकता। जिसे जो समझना है समझे। मैंने ऐसा लिखा है और डंके की चोट पर लिखा है। जिसका जो जी चाहे पढ़े, न चाहे- न पढ़े।

    आपका भी तो मौजियाने वाला प्रिय वाक्य है ना हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै

    तो फिर मेरी एक लाईन की टिप्पणी पर यह दस का दम क्यों भई?

    क्या कहूँ।
    अपनी अपनी समझ

    सुबह-सुबह स्वर्गीय मुकेश का एक गीत भी याद आ रहा
    बेगानी शादी में... दीवाना ... ऐसे मनमौजी को मुश्किल है समझाना
    है ना

    बी एस पाबला

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  34. डा.अमर कुमार जी को उनके अनुज के निधन पर हार्दिक संवेदनायें।
    ईश्वर उनके परिवार को इस दुख: से उबरने हेतु शक्ति दे।

    बी एस पाबला

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  35. पाबला जी, मठाधीशों और उनके चेलों के खिलाफ नहीं बोला करिये, वरना आप को भुगतान करना होगा। ये सबको आपके खिलाफ भड़कायेंगे।

    कोई इनकी पोल पट्टी खोल गया है कि ये ही इलाहाबाद में निमंत्रण तय कर रहे थे, इसलिये बौराये हुये किसी को भी दबोच सकते हैं।

    इनका चेला अपनी औकात उपर टिपनी में दिखा गया है और अब पंकज जी के जबाब देने में कहीं जा छिपा है.

    ये बेगैरत लोग हैं। रचना जी और अरविंद मिश्र इनका पहला निशाना बने हुये हैं।

    इस मंच को अपना मंच माने बैठे ये मठाधीश। इनको मूढ़मति का अविनाश सही सर्टीफिकेट दिये थे।

    जवाब देंहटाएं
  36. ऐसे मनमौजी को मुश्किल है समझाना
    है :)
    wah pabala ji wah

    जवाब देंहटाएं
  37. चंद्रमोल जी
    मैने कविता की भाषा पर नहीं "क्लिष्ट हिन्दी " पर टिप्पणी की हैं । आप और कविता साँझा ब्लॉग भी चलते हैं ये भी जानती हूँ और मेरे ब्लॉग नारी पर भी कविता लिखा करती थी आप भी जानते हैं । अब कौन कितना "मुल्ला " हैं आज ये कहने की क्या आवश्यकता हैं । लोग शायद आप की सुजाता का लिये की हुई टिप्पणी भूल गये हैं जहाँ आप ने कहा था
    आगे बढ़कर अपने लिए एक रेड लाईट एरिया[ चाहें तो रंग बदल लें] खोल लें ....

    जिस पोस्ट की बात श्री पाबला कर रहे हैं उस पोस्ट पर भी मेरा कमेन्ट हैं जो ये कहता हैं की हम को कोई अधिकार नहीं हैं की हम कविता को बताये क्या हेडिंग रखे क्युकी वहा वो हेडिंग मुझे तर्कसंगत लगी थी यहाँ नहीं लगी ।

    ब्लॉग मे अपनी हिन्दी को अगर आप इतना कलिष्ट बना देगे तो आम पाठक नहीं पढेगा मै अपने मत पर कयाम हूँ लेकिन आप से निवेदन हैं कविता के कंधे पर रख कर तीर ना छोडे !!!!!!

    मुझे इस पोस्ट का हेडिंग असंवेदनशील लगा हैं और मै कोई विदुषी नहीं हूँ मात्र एक ब्लॉगर हूँ ।

    जवाब देंहटाएं
  38. डा.अमर कुमार जी को उनके अनुज के निधन पर हार्दिक संवेदनायें।
    ईश्वर उनके परिवार को इस दुख: से उबरने हेतु शक्ति दे।

    जवाब देंहटाएं
  39. अपने विचार व्यक्त करना हम सबका अधिकार है, हर पाठक अपनी अपनी सोच और उस विषय पर अपने ज्ञान के आधार पर ही पढता और समझता है !प्रतिक्रिया इस समझ का फल है ! मेरी समझ में हम व्यक्तिगत आक्षेपों से तो बच ही सकते हैं मगर इसका प्रयास कोई नहीं करता !

    हिन्दी ब्लाग जगत में बदगुमानी मशहूर रही है, बेहद सम्मानित ब्लागर और लेखक भी एक दूसरे पर कीचड उछालते देखे जा सकते हैं ! व्यक्तिगत तौर पर मैं जिन लोगों का सिर्फ उनके लेखन और विचारों के कारण बेहद सम्मान करता हूँ उनकी पगड़ी उछाले जाने का कई बार गवाह बना हूँ ! खुद मुझे कई बार शालीन लगने वाले, सुसंस्कृत लोगों से, बिना दुर्भावना, बेहद भद्दी गाली सहन करनी पड़ी है ! मैं सर्विस एसोसिअशन और ट्रेड यूनियन से सम्बंधित हूँ और इस निरंकुश भाषा पर मेरा पूरा अधिकार है मगर इसे मैं अपने बड़ों पर या बच्चों पर प्रयोग करुँ , मेरा मन इसकी अनुमति नहीं देता और झंडे गाड़ने का मेरा कोई उद्देश्य नहीं है ! अतः गालियाँ और वैमनस्य के बावजूद यहाँ रहता हूँ ताकि छोटे बड़ों से कुछ सीख सकूं !

    अंत में जो अनजाने में ही मेरे प्रति वैमनस्य रखते हों उनके लिए पूरे अपनापन के साथ यह विनम्र निवेदन ...

    बदगुमानी आपस में देर तक नहीं रखना
    रंजिशें भुलाने को,एक सलाम काफी है !

    आप सबको सादर !

    जवाब देंहटाएं
  40. KYA TIPIYANA BHAIYA

    BHARAT KI SACHCHAI RAKH DI AAPNE

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