खबर समकालीन जनमत से मिली बाद में पीटीआई से पुष्टि- प्रख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी नहीं रहे।
मशहूर पत्रकार प्रभाष जोशी नहीं रहे। 72 साल के जोशी जी का निधन दिल का दौरा पड़ने से हुआ। प्रभाष जोशी ने पत्रकारिता की शुरुआत नई दुनिया से की थी। वे 1983 में शुरू होने वाले जनसत्ता अखबार के संस्थापक संपादकों में से एक थे। 1995 में अखबार से सेवानिवृत्त होने के बाद वे संपादकीय सलाहकार बन गए थे। उनके कार्यकाल में जनसत्ता ने हिंदी पत्रकारिता के नए प्रतिमान स्थापित किया।वे विचारों से वे गांधीवादी थे और समकालीन राजनीति के साथ क्रिकेट में उनकी गहरी दिलचस्पी थी।
क्रिकेट के दीवाने वरिष्ठ पत्रकार ने तेंदुलकर की कल की अद्वितीय पारी के बाद प्रभाषजी की जीवन पारी हृदयाघात से समाप्त हुई। आपातकाल तथा 1992 के बाबरी ध्वंस जैसे मुद्दो पर अपनी स्पष्ट व सुचिंतित लेखनी ने प्रभाषजी को हिन्दी पत्रकारिता के शिखर पुरुष के रूप में स्थापित किया था। कागदकारे स्तंभ अपने तेवर व कलेवर में कम से कम हमें तो एक आत्मीय ब्लॉगलेखन सा ही लगता रहा है। समकालीन जनमत पर इस समाचार के साथ ही प्रभाषजी का एक साक्षात्कार भी पोस्ट किया गया है-
आप पत्रकारिता का क्या भविष्य देखते हैं?
आप कुछ भी कर लें खबर के नाते खबर का भविष्य हमेशा रहेगा क्योंकि मनुष्य की जिज्ञासा हमेशा रहने वाली है और मनुष्य हमेंशा कम्युनिकेट करने के लिए खबर देगा। उससे जिसे कमाई करनी है उसका लेवल हमेशा बदलता रहेगा, जिसको ज्यादा करना है वह जो भी करे उसको छूट है वह पोर्नोग्रापफी में चला जाए, हमको क्या एतराज है, यदि देश का कानून उसकी इजाजत देता होऔर परंपराएँ समर्थन करती हों।
विनीत ने अपनी स्मृति पोस्ट में कहा-
कहना न होगा कि प्रभाष जोशी उन गिने-चुने पत्रकारों में से रहे हैं जिनकी लोकप्रियता सिर्फ पठन-लेखन के स्तर पर नहीं रही है,उन्हें चाहने और माननेवालों की एक लंबी फेहरिस्त है। मीडिया इन्डस्ट्री के भीतर सैकड़ों मीडियाकर्मी और पत्रकार ये कहते हुए आसानी से मिल जाएंगे कि आज वो जो कुछ भी है प्रभाषजी की बदौलत हैं।
:
:
इन सबके वाबजूद प्रभाष जोशी को एक ऐसे कर्मठ पत्रकार के तौर पर जाना जाएगा जो कि अपनी जिदों को व्यावहारिक रुप देता है,नई पीढ़ी के लोगों को गलत या असहमत होने पर खुल्लम-खुल्ला चैलेंज करता है,अपनी बात ठसक के साथ रखता है और सक्रियता को पूजा और अराधना को पर्याय मानता है
नुक्कड़ पर अविनाश वाचस्पति की पंक्तियॉं हैं-
विचार नहीं जाते
वे मानस में
बस जाते हैं
सत्यमार्ग दिखाते हैं
हम देह से ही
मार खाते हैं
देह से विजय पाते हैं।
संजय पटेल की ओर से श्रद्धांजलि है-
दिल्ली जाकर भी वे कभी भी मालवा से दूर नहीं हुए. बल्कि मैं तो यहाँ तक कहना चाहूँगा कि श्याम परमार, कुमार गंधर्व,प्रभाष जोशी और प्रहलादसिंह टिपानिया के बाद मालवा से मिली थाती को प्रभाषजी के अलावा किसी ने ईमानदारी से नहीं निभाया
समस्त चिट्ठाचर्चा समूह प्रभाषजी को श्रद्धांजलि व्यक्त करता है।
जवाब देंहटाएं" इन सबके वाबजूद प्रभाष जोशी को एक ऐसे कर्मठ पत्रकार के तौर पर जाना जाएगा जो कि अपनी जिदों को व्यावहारिक रुप देता है,नई पीढ़ी के लोगों को गलत या असहमत होने पर खुल्लम-खुल्ला चैलेंज करता है,अपनी बात ठसक के साथ रखता है और सक्रियता को पूजा और आराधना को पर्याय मानता है ।"
आपके लिखे इस पैराग्राफ़ का, मैं एक सकारात्मक सूत्र के रूप में अनुमोदन करता हूँ । वर्तमान में हमें इसकी बहुत ज़रूरत है । श्रद्धाँजलि का यह अँश विभोर करता है । निष्ठापूर्ण की गयी एक सँक्षिप्त चर्चा !
दिवँगत को श्रद्धाँजलि, उनके द्वारा निष्पादित कार्य सदैव जीवित रहने वाले हैं !
सर्वप्रथम जोशी जी को मेरी श्रदांजलि ! इसमें कोई संदेह नहीं की वे एक कर्मठ लेखक थे ! साथ ही इस बात का भी दुःख है कि उनके अंतिम दिनों में उनके वेबाक भाषा पर जिस तरह एक ख़ास वर्ग ने उलटा सीधा लिखा ( इस चिट्ठाजगत पर भी ) और उन्हें भला बुरा कहा ! खैर, वो जो थे, उसके लिए सदा ही याद किये जायेंगे !
जवाब देंहटाएंप्रभाष जोशी जौर्नालिस्म में एक माइल स्टोन हैं... तहलका और जनसत्ता में लिखे उनके कुछ लेख मैंने पढ़े हैं... ऐसा विचारणीय और मंझा हुआ लेख बहुत कम पढने को मिलता है... उनकी प्रसिद्धि से जलने वाले लोग भी कम नहीं थे... अपनी हाल के दिनों तक वो ब्राह्मणवादी विचारधारा को लेकर किये गए टिपण्णी को लेकर खासा बवाल कटता रहा... कुछ भी हो उनके कहे भर का महत्त्व इससे झलकता है... पत्रकारिता का सौभाग्य है की अगर भारतीय पत्रकारिता ने स्वर्ण युग देखा है तो इसमें काफी कुछ योगदान प्रभाष जोशी जी को जायेगा... बेहतर तो यही होगा हम उनके विजन को लेकर चलें... जहाँ पत्रकारिता मानव जीवन से शिद्दत से सरोकार रखती थी...
जवाब देंहटाएंजोशी जी को मेरी श्रदांजलि
जवाब देंहटाएंसभी मैनपुरी वासीयों की ओर से जोशी जी को शत शत नमन और श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंएक करमठ कलमकार, जुझारू चिंतक और ख्यातिप्राप्त सम्पादक को भावभीनी श्रद्धांजली। अभी कम्प्यूटर खोल कर चिठाचर्चा देखा तो दंग रह गया यह समाचार पढ़कर!! कल तक उनके विचारों पर चर्चा हो रही थी और आज.......... ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें॥
जवाब देंहटाएंश्रद्धेय प्रभाष जी को हार्दिक श्रद्धांजलि। आज के समय में 72 साल की आयु छोटी नहीं है, लेकिन पत्रकारिता के उज्ज्वल पक्ष के इस प्रतीक-पुरुष की उर्जा अभी भी अक्षय जान पड़ती थी। इसलिए यह क्षति कष्ट पहुंचानेवाली है। उनकी स्पष्टवादिता से ही हम कुछ सीख ले सकें तो हामरे लिए बहुत है।
जवाब देंहटाएंप्रभाष जोशी जी को
जवाब देंहटाएंअपने श्रद्धा-सुमन समर्पित करता हूँ!
हम बचपन मे जनसत्ता पढ़कर ही बड़े हुए है ..खास तौर से पहले पन्ने पर किसी संपादक का क्रिकेट प्रेम उस ज़माने मे लीक से हटकर था पर अच्छा लगता था ....उन्हें विनम्र श्रदांजली ....
जवाब देंहटाएंआज जो ये इस चिट्ठा-चर्चा पर न आता, इस आघात से बचा रहता शायद!....प्रभाष जोशी जैसे नाम से पत्रकारिता अपने नाम को सार्थक बनाये हुई थी।
जवाब देंहटाएंमेरी विनम्र श्रद्धांजलि...
विनम्र श्रद्धांजलि...
जवाब देंहटाएंश्रद्धान्जलि.
जवाब देंहटाएंदुखद. मेरी विनम्र श्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएंप्रभाष जी जैसे मानक पुरुष को विनम्र श्रद्धांजलि ।
जवाब देंहटाएंमाफ करें टेम्पलेट की ये सेटिंग अच्छी नहीं है, फोओ की ऐसी तैसी हो जाती है।
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएंPrabhash ji ko naman hai...bhavbheene shraddhanjalii un mahaan purush ko !!
जवाब देंहटाएंजोशी जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि...
जवाब देंहटाएंप्रभाष जी को श्रद्धांजलि ।
जवाब देंहटाएंप्रभाष जी मन मानस पर इतने गहरे तक समा चुके हैं। वे कहीं जा ही नहीं सकते। विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंइस समय में प्रभाष जी की बहुत जरूरत थी। उन के शिष्यों की पत्रकारिता में कमी नहीं है। उन में से कोई उन की उठाई पताका को आगे ले जा सकेगा,इसी उम्मीद के साथ उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजली
जवाब देंहटाएंजोशी जी को मेरी श्रदांजलि..!
जवाब देंहटाएंप्रभाषजी को विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंजोशी जी को मेरी BHAAVBHEENI श्रदांजलि .......... UNKI BEBAAK PATRKAARITA KO BHOOLNA AASAAN NAHI HOGA .....
जवाब देंहटाएं