मंगलवार, नवंबर 03, 2009

प्रथम किरण संग ओस घास पर मोती जैसा लगता है

आज की चर्चा की शुरुआत प्रथम परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा की स्मृति वाली पोस्ट से। गौतम राजरिशी मेजर सोमनाथ शर्मा के बारे में जानकारी देते हुये लिखते हैं:

सोच कर सिहर उठता हूँ कि उस रोज- उस 3 नवंबर 1947 को मेजर सोमनाथ शर्मा अगर अपनी बहादुर डॆल्टा कंपनी के पचास-एक जवानों के साथ श्रीनगर एयर-पोर्ट से सटे उस टीले पर वक्त से नहीं पहुँचे होते तो भारत का नक्शा कैसा होता...!

मेजर शर्मा का आखिरी संदेश देखिये:“I SHALL NOT WITHDRAW AN INCH BUT WILL FIGHT TO THE LAST MAN & LAST ROUND"{मै एक इंच पीछे नहीं हटूंगा और तब तक लड़ता रहूँगा, जब तक कि मेरे पास आखिरी जवान और आखिरी गोली है}

गौतम राजरिशी ने अपने जुड़ाव के बारे में भी बताया:हमारे 4 कुमाऊँ...??? जी हाँ, खाकसार उन चंद सौभाग्यशाली सैनिकों में से एक है जिन्हें इस ऐतिहासिक 4 कुमाऊँ का हिस्सा होने का सौभाग्य प्राप्त है।

 

मेजर सोमनाथ शर्मा की स्मृति को हमारा सलाम।

ज्ञानजी आजकल गंगा सफ़ाई अभियान में लगे हैं। इतवार को सफ़ाई पर निकले। निकलने के पहले की कहानी सुन लीजिये: शनिवार रात तक मैं सोच रहा था कि मेरी पत्नी, मैं, मेरा लड़का और भृत्यगण (भरतलाल और रिषिकुमार) जायेंगे गंगा तट पर और एक घण्टे में जितना सम्भव होगा घाट की सफाई करेंगे। मैने अनुमान भी लगा लिया था कि घाट लगभग २५० मीटर लम्बा और ६० मीटर आधार का एक तिकोना टुकड़ा है। उसमें लगभग चार-पांच क्विण्टल कचरा - ज्यादातर प्लास्टर ऑफ पेरिस की पेण्ट लगी मूर्तियां और प्लास्टिक/पॉलीथीन/कांच; होगा। लेकिन मैने जितना अनुमान किया था उससे ज्यादा निकला सफाई का काम।

ज्ञानजी की इस पोस्ट पर कई अच्छी टिप्पणियां हैं। अभय तिवारी की टिप्पणी है- ज़िन्दाबाद!

नीरजजी क्या गजल लिखे हैं तरही मुशायरे में। देखिये तो सही:

बात सच्ची कही तो लगेगी बुरी

झूठ ये सोच कर क्यूँ सुनाते रहें

दर्द में बिलबिलाना तो आसान है

लुत्फ़ है, दर्द में खिलखिलाते रहें

भूलने की सभी को है आदत यहाँ

कर भलाई उसे मत गिनाते रहें

गोदियाल जी देखिये क्या इंतजाम करते हैं यादों को दीर्धजीवी करने के लिये:


बिठा अंगना मे पसरे गुलाब के झुरमुट,
और अपनी घनी जुल्फ़ो की छांव तले !
हौले से जो गुनगुनाया उस कमसिन ने,
हमको अपना ही कोई तराना लगा !!

घडीभर के लिये मुस्कुरा भी दिये वो
नजरें चुराकर कुछ मेरी नादानियों पर !
मगर हमको तो वह भी महज उनका,
दिल को बहलाने का इक बहाना लगा !!

पा.ना. सुब्रमणियन ने अपनी पोस्ट में नालसोपारा (मुंबई), एक प्राचीन बंदरगाह और बौद्ध स्तूप की जानकारी दी:वास्तविकता तो यह है कि “नाल” और “सोपारा” दो अलग अलग गाँव थे. रेलवे लाइन के पूर्व “नाल” है तो पश्चिम में “सोपारा”. अब यह एक बड़ा शहर हो गया है और बहु मंजिले इमारतों की बस्ती बन गयी है. लेकिन जब हम लोग पुराने सोपारा गाँव के करीब पहुंचे तो भूपरिदृश्य एकदम बदला हुआ लगा. चारों तरफ हरियाली थी. बहुत सारे पेड़ थे परन्तु उनमे ताड़ की अधिकता मनमोहक थी. सड़क के एक किनारे सरोवर था

श्यामल सुमन जाड़े के आने के पहले लिखते  हैं:

शरद सुहावन उसी का होता जिसके तन पर कपड़ा हो।
वो कैसे जीता है जिनको रोटी का भी लफड़ा हो।।
मनमोहक श्रृंगार धरा का फूलों की आयी बारात।
सूर्योदय हो काम पे जाऊँ इसी आस में कटती रात।।

प्रथम किरण संग ओस घास पर मोती जैसा लगता है।
इक धोती ही वस्त्र-रजाई यूँ जाड़े को ठगता है।।


मनीषा पाण्डेय अपने शहर इलाहाबाद के बारे में लिखती हैं:

  मैं जितनी जल्‍दी हो सके, उस शहर से भाग जाना चाहती थी। जितनी जल्‍दी हो सका, मैं उस शहर से भाग आई। जिस शहर में अब मैं शहर रहती हूं या जिन भी शहरों में अपना शहर छोड़ने के बाद मैं रही, ऐसा नहीं कि वे शहर सुख और स्‍वाधीनता का स्‍वप्‍नलोक थे। सुख और स्‍वाधीनता जैसा शब्‍द भी कीचड़ में लिथड़ी किसी गाली जैसा है। कैसा सुख और कैसी स्‍वाधीनता? इस मुल्‍क या कि संसार के किसी भी मुल्‍क में होगी क्‍या? पता नहीं। लेकिन इलाहाबाद मुझे दुखी और उदास करता है। एक ठहरा, रुका हुआ सा शहर, जिसने कुछ किलोमीटर के दायरे में लंबी-लंबी फसीलें खड़ी कर ली हैं और मानता है कि यही संसार है।

सिद्धार्थ जोशी की जानकारी परक पोस्ट देखिये छद्म और अंध विश्‍वास में अंतर है

एक संवेदनशील पोस्ट -शो करते वक़्त जब मैं रो पड़ा!!!!

एक लाईना

१.महान होने का अरमां..हाय!!! : क्या हरकतें करवाता है!

२.   रामप्यारी का "खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी": एक गलती पर २१ टिप्पणी करवा दी।

३. तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो..........: हम तब तक भाव खाने का तरीका सीखने का रियाज करते हैं।

४. दीप जलते रहें झिलमिलाते रहें: तेल के खर्चे का बिल नीरज भैया को भेजवाते रहें

५. कि ये लोकतंत्र है: कै किलो चाहिये?

६. सरदार पटेल बड़े या वायएसआर रेड्डी ?:  जुगनू और सूर्य की क्या तुलना।

७. करोल के जंगलों में : जाट

८.मां और पत्नी के बीच अंतर: बताने से क्या फ़ायदा जी?

९. छद्म और अंध विश्‍वास में अंतर है: समझ लीजिये

१०.चूजों को लगे पंख [बकलमखुद-113]: और वे फ़ड़फ़ड़ाने लगे

११. लोकतंत्र की लाज ...: लूटने में लगे हैं सब

 

और अंत में:  आज की चर्चा में इतना ही। बाकी आप मजे में रहिये।

पिछले कुछ दिनों में तमाम टेम्पलेट बदले गये। लोगों की प्रतिक्रियायें आईं। अब पाठकों की राय पर जल्द ही पहले वाला टेम्पलेट ही लगा दिया जायेगा।

इस टेम्पलेट चस्पाई से चर्चा का काम गौण हो गया। चिट्ठाचर्चा से ज्यादा टेम्पलेट चर्चा होती रही। लेकिन इस दौरान लोगों के बारे में काफ़ी कुछ पता चला।

पता चला कि एक अनामी व्यक्ति एक ब्लागर को पकड़कर उससे ब्लाग लिखवा लेता है और उसको उसके बारे में कुछ पता नहीं चलता। लिखने का काम तुम संभालो बच्चा। गरियाने का काम हमारे लिये छोड़ दो।

पता चला कि साथी लोगों में एक-दूसरे से धुर उलट भाव वाली पोस्टों से एक ही समय में प्रभावित होने  की अद्भुत क्षमता है।

पता चला कि हम भी अनामी लोगों के नाम से अपने ही खिलाफ़ लिखते हैं। संदर्भ  RS की टिप्पणी-( ye shak to hume bhi kai din se tha ki Tipu chacha aur Fursatiya ek hi hain... bas logo se chhipane ke liye bhasha badal ke likhte hain. hum serious hain aapkee tarah majak nahi kar rahe)

और बहुत कुछ पता चला वह सब मन में है।

फ़िलहाल इतना ही। बाकी चलता रहेगा। आप और कुछ कहने के पहले आदि की ये फ़ोटो तो देख लीजिये पता नहीं क्या खोज खोज रहे हैं।:

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30 टिप्‍पणियां:

  1. अनूप जी बहुत सुन्दर चर्चा के लिए बधाई और साथ में शुक्रिया भी !

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  2. achchhee charcha..

    lekin naye template se 'archive' kahan gya?

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  3. आज कल ये नया चलन होगया हैं हिन्दी ब्लॉग जगत मे की महिला के प्रोफाइल जैसे प्रोफाइल बना कर टिप्पणी करो । इस चर्चा मंच सहित बहुत से ऐसे मंच हैं जहाँ जहीन ब्लॉगर एक दूसरे से रंजिश निकाल रहे हैं पर नाम ऐसे हैं जो मूलत किसी महिला ब्लॉगर के नाम से मिलते हैं । अपनी जहिनियत मे अपनी जहालत दिखाने से क्या मिलने वाला हैं , छद्म नाम रखना हैं तो कोई भी रख लो क्या फरक पडेगा । बिना नाम के भी गाली दी जा सकती हैं , किसी दूसरे के नाम की आड़ मे अपने मंतव्य पूरे करने से क्या आप उस " नाम " के बराबर हो जायेगे !!!!!!!! ।
    महिला के नामो की आड़ लेकर जो पुरूष कमेन्ट लिख रहे हैं मेरी नज़र मे वो नर , नारी और किन्नर मे से कुछ भी नहीं हैं ।

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  4. बढि़या चर्चा।
    टेम्‍पलेट में नए टैब में कडि़यों के खुलने की सुविधा रहती तो अच्‍छा रहता। राइट क्लिक ऑप्‍शन रहने पर हम खुद ही नए टैब में कडि़यों को खोल लेते थे।

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  5. ‘तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो....’
    हम ने सलाम कर लिया:) बढिया चर्चा।

    मेजर सोमनाथ शर्मा जैसे जीवट ही इस देश की शान है...
    है खुशनसीब मां वो जिसका ये चिराग है....वतन की राह में वतन के नौजवान शहीद हो॥ इस शहीद को शत-शत नमन॥

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  6. salaam major somnath sharma aur gautam rajrishi sahab ko...
    jai hind..

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  7. ग़ालिब चचा ने कहा था :

    गमे इश्क गर न होता, गमे रोजगार होता ।

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  8. थोडी संक्षिप्त तो है, लेकिन फिर भी बढिया रही चर्चा.....

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  9. उत्त्म विचार है.. "चिट्ठा चर्चा" टेम्पलेट चर्चा बन गई.. just put the original and forget..

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  10. आजा,
    चच्चा आजा..
    अब आ भी जा,
    आ, अब घर लौट चलें !

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  11. भूल सुधार :-

    हालांकि हम किये नहीं है..मुदा तईयो अब हो गया है जिनसे ..तो हम सुधारने का प्रयास तो करिये सकते हैं न...

    एक ठो अनाम बिलागर....किसी भी बिलागर को पकड के ..

    का जुलुम कर रहे हैं..अनाम काहे ..एतना खांटी नाम है...टिप्पू चच्चा....और जाहिर है कि जब चच्चा हैं और हम भतीजा हैं तो ..हमही उनको पकडे होंगे ..ऊ नहीं....और ईका तो सबूत है जी....कबे से कह रहे हैं कि टीप चर्चा का पहिला दो ठो पोस्ट देखिये ..सब माजरा समझ जाएंगे...
    कोशिश तो औरो हुआ था...मुदा का करते..हमको तो चच्चा का भतीजा बनना था...सब संयोग है जी...और का...
    आप तो बेकारे टेंशनिया रहे हैं.....कतना कुछ पता लग रहा है आपको...कहीं ऐसा न हो कि कल को ई भी पता चले कि टीप्पू चचा कौन हैं ..तो आप कहने लगें..अरे ई का भजार( एक दम खासमखास यार ) आप हो ..और गलबहियां डाल के फ़ुरसतियाएं...

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  12. अब टेम्पलेट बदलें या यही रखें, बस इतनी व्यवस्था कर दें कि टिप्पणियां सबस्क्राइब की जा सकें.

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  13. माफ़ करें, आगे आनेवाली टिप्पणियों को सबस्क्राइब करनेवाला टूल तो यहीं मौजूद था, बाद देखने से चूक गया. महान लोगों के यही तो लक्षण होते हैं!:)

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  14. @अजय झा, भाई आपके चच्चा आपके लिये खांटी होंगे। हमारे लिये तो वे अजय कुमार झा ही हैं।

    मैंने जो लिखा वह जो सच है वह ही लिखा है। अजय कुमार झा टिप्पणी लिखने का काम करें और चच्चा गरियाने का। चच्चा को इतनी भी समझ नहीं कि चीजों के मतलब समझ सकें। मैंने लिखा कि एक अनामी व्यक्ति एक ब्लागर को पकड़कर उससे ब्लाग लिखवा लेता है और उसको कुछ पता नहीं लगा। इसमें एक ब्लागर से मतलब तुमसे है और इसीलिये लिंक में मैंने तुम्हारे द्वारा की गयी चर्चा टीप के ऊपर टिप्पा.... वाली पोस्ट का लिंक दिया था। इस पर तुम्हारे तथाकथित चच्चा कहते हैं कि मैंने अजय कुमार झा को अनाम ब्लागर लिखा। इसके पहले भी तुम्हारे तथाकथित चच्चा अपनी समझ का मुजाहिरा कर चुके हैं। वे गरियाने के इत्ता मूड में रहते हैं कि और बाकी चीजें भूल-भाल जाते हैं।

    भाई अजय कुमार झा ऐसा है कि जितना हमारी समझ है उसके अनुसार यह अनामी-सनामी बहुत दिन तक चलता नहीं। कितने मुखौटे लगाये जायेंगे। पता नहीं कौन खुंदक में न जाने कब से कुश को गरियाये जा रहे हो। सच में बताओ क्या इस तरह मुखौटा लगाकर कुश को गरियाना बड़ी वीरता का काम है?

    अफ़सोस मुझे इस बात का है कि जब कुश को आपके तथाकथित चच्चा ऊलजलूल ढंग से गरियाते हैं तब अपने ब्लाग जगत के बेहतरीन साथी इस अंदाज की वाहवाही करते हैं। लगता है वे इसे देख ही नहीं पाते कि उस पोस्ट में किसी की फ़िजूल भर्त्सना भी है। तुम भी अपने चच्चा को असहाय भाव से या मुग्ध भाव से जो उनके मन आये कहते/लिखते देखते हो।

    चच्चा तुम्हारे तो अभी आये मैदान में। तुम तो बहुत दिन से हो। क्या इस तरह की बातें किसी के बारे में किया जाना उचित है? अगर तुम इस बात से सहमत हो तो अपने नाम से बुराई करो कुश की और अगर असहमत हो तो उसका विरोध करो।

    भाषा और तमाम अंदाज तुम्हारे और चच्चा के इतने एक से हैं कि तुमको यह खुद को मानने में संकोच होगा कि अजय कुमार झा और टिप्पू चच्चा एक ही नहीं हैं।

    कल को अगर मुझे पता चला कि टिप्पू चच्चा कौन हैं और वे मेरे खासमखास यार भी हुये तब भी मेरी नजर में उनकी यह हरकत ओछी ही होगी। मेरे खासमखास यार भी मेरी नजर से उतर जायेंगे।

    मेरा मानना है कि भले ही कुछ मजबूरियों के चलते हम गलत को गलत न कह सकें लेकिन गलत को सही कहकर वाह-वाह कहने से तो बचा जा सकता है।

    बाकी भैया तुम्हारे पास और तुम्हारे तथाकथित चच्चा के पास अपनी बात को सही ठहराने के तमाम तर्क होंगे। जो मुझे सही लगा वह मैंने कह दिया। आपको समझ में आये सही मानो, न समझ में आये न मानो। आपके तथाकथित चच्चा खिल्ली उड़ाने के लिये हैं हीं।

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  15. @फ़ुरसतिया जी
    अगर कुश के गरियाने का इतना ही मलाल है तो कम से कम इस बात पर भी ध्यान दे दे कि कुश भी तो चच्चा को भूले बिसरे गीत बोले थे उ का था कौनो आशिर्वाद ?

    पंकज

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  16. मिर्जा गालिब का एक और शेर है ....
    फ़ुरसत-ए-कारोबार-ए-शौख किसे
    ज़ौक़-ए-नज़ारा-ए-जमाल कहाँ

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  17. भाई पंकज, अपनी किसी भी बात को सही ठहराने के लिये कोई भी तर्क दिये जा सकते हैं। आपकी अपनी बेहतरीन समझ है। अपनी समझ के अनुसार जो मुझे सही लगा वह मैंने लिखा। अब यह आप पर, अजय झा पर ,उनके तथाकथित चच्चा और तथाकथित चच्चा के तमाम समर्थकों पर हैं कि वे किस तरह इस बात की खिल्ली उड़ाते हैं। एक ठो शेर जो आपने लिखा उसका मतलब भी समझा दीजियेगा ताकि आनन्दित हो सकें।

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  18. फ़ुरसतिया जी शेर का मतलब भी अपने अपने बेहतरीन समझ से निकाला जा सकता है.....
    वैसे जिसको जिस अर्थ मे अच्छा लगे वही मान ले गालीब चचा पुछने नही आयेगे इस चचा की तरह :)

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  19. आज की चिठ्ठा चर्चा मे कम चिठ्ठों की चर्चा हुई है शायद समय की कमी की वज़ह से ऐसा हुआ हो ..फिर भी महत्वपूर्ण ब्लॉग्स की चर्चा के लिये बधाई ।
    शरद कोकास "पुरातत्ववेत्ता "

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  20. आदरणीय अनूप शुक्ल जी ,
    मुझे ये तो नहीं पता कि आप जबरिया हमें ही चचा साबित करने पर काहे तुले हुए हो जबकि विवेक बाबू ने तो अनूप शुक्ला का मतलब ..फ़ुरसतिया, टिप्पू चच्चा..और यहां तक कि अजय कुमार झा भी..बता दिया था..।
    हालांकि हम तो पहले ही कह चुके हैं कि सफ़ाई देने की जरूरत नहीं है हमें..क्योंकि कुछ भी ऐसा नहीं है जो साफ़ और स्पष्ट नहीं है...मगर यदि फ़िर भी आप कहते हैं कि

    भाई अजय कुमार झा ऐसा है कि जितना हमारी समझ है उसके अनुसार यह अनामी-सनामी बहुत दिन तक चलता नहीं। कितने मुखौटे लगाये जायेंगे। पता नहीं कौन खुंदक में न जाने कब से कुश को गरियाये जा रहे हो। सच में बताओ क्या इस तरह मुखौटा लगाकर कुश को गरियाना बड़ी वीरता का काम है?

    और इसके बाद..
    भाषा और तमाम अंदाज तुम्हारे और चच्चा के इतने एक से हैं कि तुमको यह खुद को मानने में संकोच होगा कि अजय कुमार झा और टिप्पू चच्चा एक ही नहीं हैं।

    तो कुछ हमारा भी सुन लिया जाए..
    आप डाटा दुरुस्त करें .टिप्पू चचा जो भी हैं या जैसे भी हैं ..वो कुश को गरियाने के लिये मुखौटा नहीं ओढे हैं उनका ये प्रोफ़ाईल पहले से ही ऐसा है...रही बात हमारे गरियाने की कुश भाई को...तो जिस दिन गरियाने-लतियाने की नौबत आ जाएगी न यकीन मानिये हम अपने डेढ दर्जन ब्लोग बच्चों को दफ़न करके निकल लेंगे ..कहीं एकांतवास करने ....
    हां एक जरूरी बात हमरी समझ में नहीं आई कि जब कोई आपके इहां से धडाधड किसी का स्टिंग करता है तो कभी कुछ ..तब आप एक शब्द भी नहीं कहते..अरे हम कहां कह रहे हैं कि अनुचित कहिये..उचित तो कहिये कि खुल के..कि बिल्कुल ठीक किया है..न्यूट्रल गियर का मजा तो कोई भी ले सकता है..।

    अब रही बात हमरे और चच्चा के स्टाईल की..तो ऊ पर हमारा जोर नहीं है जी..जो है सो तो आपके सामने हईये है..मगर आप लोग को फ़िर याद दिला दें एक बार सारा घटनाक्रम..

    हमने अपनी चिट्ठी चर्चा..दो लाईन वाली..ओतने पढे लिखे हैं न..
    जब शुरू की थी तो अविनाश भाई ..ने कैसे लिंक बनाना सिखाया ..या कैसे हम सीख सके थे..ई तो हम दोनों ही जानते हैं...फ़िर हमे ई टिप्पणी चर्चा दिखी..विचार बहुत अनोखा और अलग लगा..हमने अपनी तरफ़ से चच्चा से आग्रह किया कि हमें भी आपके साथ आना है..चच्चा की तरफ़ से जुडने के लिये रिक्वेस्ट आ गई हमने स्वीकार कर लिया...
    आप पता नहीं कैसे कह रहे हैं जबकि चचा और हमरे स्टाईल में बहुत फ़र्क है ..आप गौर से देखिये..चचा हमसे कोसों दूर बढिया वाला चर्चा करते हैं...आप हमारे द्वारा की गई चर्चाओं को देखिये..अंतर..अजी ब्लंडर कहिये ...खुदे पता चल जाएगा ..

    अब रही बात अनामी व्यक्ति के साथ रहने की मजबूरी..तो कल को यदि ताऊ, उन्मुक्त, समय, और पता नहीं कौन कौन ..जैसे ब्लोग्गर्स हमें अपने साथ आने के लिये कहते हैं तो ये एक बेहतर विकल्प होगा वनिस्पत उनके जो ..चेहरा दिखा दिखा के ..छीछालेदारी करते हैं..
    मकसद अच्छा होना चाहिये..शुक्ल जी..जिसके लिये हम आप सब यहां है...और मुझे नहीं लगता कि .कोई भाई (मेरे विरोधी , पता नहीं कोई है क्या.....?) बहन...औरों की छोडिये ..आप भी ..हमारे मकसद पर ,हमारी नीयत पर किसी को शक होगा ..
    बस एतने कहेंगे ..कि जो काम प्यार से हो सकता है ..उसे तलवार से कहां किया जा सका है आज तक ...

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  21. ये तो कमाल हो गया!

    हम तो हाल ही तक यहाँ टिप्पणीकर्तायों के लिए निर्देश पढ़ते चले आए हैं कि व्यक्तिगत आक्षेप न करें, व्यक्तिगत आक्षेप वाली टिप्पणियाँ हटा दी जाएँगी।

    लेकिन जब ब्लॉग लेखक ही आक्षेप करने लगें तो !?

    बी एस पाबला

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  22. मैं बीच बहस में टपक पड़ने की अनुमति चाहूँगा...

    दिलों में आग है जैसी भी जिसने ज़िन्दगी कर ली
    किसी ने घर जला डाले किसी ने रोशनी कर ली

    माना भतीजों ने शहर भर को कत्ल कर डाला
    ग़ैरत से निग़ाहें मिल गयीं तो खुदकुशी कर ली

    यहाँ फ़ुर्सत कहाँ थी दुश्मनी की ज़िन्दगी कम थी
    बढ़ाया हाथ जब उसने तो हमने दोस्ती कर ली

    यह दुनिया खूबसूरत है मगर मँज़िल कहाँ यारों
    इस सँसार में किसने ज़िन्दगी ये मुकम्मल कर ली


    जाने यह कौन सा परमाणु युद्ध छिड़ा है, मित्रों
    आख़िर कौन किससे किसके लिये भिड़ रहा है

    कोई भी मुद्दा समुन्दर से बड़ा तो नहीं...
    बकौल कवि कमलेश भट्ट -
    समुन्दर नहीं,
    लाँघना कठिन है
    अपनी परछाईं

    तो, अपनी परछाईंयों से बाहर आओ मित्रों,
    फिर तो सब कुछ खुद बखुद आसान हो जायेगा

    इसको अपील ही समझो, पर अब बस भी करो दोस्तों
    टेम्प्लेट जो कि मैंनें जान-बूझ कर अधूरा छोड़ रखा है, महज़ एक बहाना है
    पोस्ट और टिप्पणी को बहुत रो चुके, अब क्या टेम्प्लेट ही एक ठिकाना है ?


    @ पाबला जी, टिप्पणी बक्से के ऊपर से वह निर्देश एक विशेष स्थगनादेश के तहत फ़िलहाल हटा लिया गया है :)

    जवाब देंहटाएं
  23. @अजय झा, पाबलाजी और डा.अमर कुमार:

    मुझे जो कहना था वह मैं अपनी टिप्पणी में कह चुका। अब मुझे और कुछ नहीं कहना।

    जवाब देंहटाएं
  24. काश कुछ अच्छे मुद्दों पर यह स्पेस भरा गया होता। ‘विषय-वस्तु’ से अधिक ‘रूप-सिंगार’ पर टाइम खोटा हो रहा है।

    कुछ विषयान्तर होना चाहिए।

    जवाब देंहटाएं

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