Priyankar Paliwal सहजीवन के शानदार बीस वर्ष और प्रमिला के लिये एक गीत :
Twenty years of conjugal bliss and a song for Pramila :
आप ने सबसे ऊपर लगा "चल-चित्र" देखा होगा उसका सम्बन्ध भी खोज रहे होंगे तो बात यह है कि वह अनिमेटेड चित्र मानो इनकी भावना को ही व्यक्त कर रहा है जब ये कहते हैं कि -
स्वगत पर कुछ दिन पूर्व आई प्रविष्टि पर भी एक दृष्टि डालें -
अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते |
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ||
या आधुनिक हिन्दी साहित्य में भारतेंदु काल से काव्य में राष्ट्रभक्ति और भारत माता की प्रतिष्ठा करने की परम्परा| सभी स्थानों पर जननी व जन्मभूमि एक शब्द युग्म की भांति आते हैं| मेरे मन की डूबती उतराती संवेदनाओं पर जिस कविता ने मरहम रखा, उसे पढ़ कर एक बारगी तो आप भी दंग रह जाएँगे| यहाँ उसका यथावत् पाठ देखिए -
अनंतिम
अब उसी नगर का एक और चेहरा देखें और मुझे विदा दें | हाँ इतना ध्यान अवश्य रखें कि चर्चा की १००० वीं प्रविष्टि होने की या अन्य सूचनाओं पर बधाई आदि देने से बढ़कर कुछ अधिक भी कहें| चर्चा पर किए जाने वाले श्रम में किसी चर्चाकार का कोई स्वार्थ नहीं होता है अतः चर्चा के इस मंच पर जब जब आप को किसी भी प्रकार का श्रम और समर्पण दिखाई दे तो अपनी भावनाओं को अवश्य व्यक्त करें , ये भावनाएँ औपचारिक शाबाशी से जितनी इतर होती हैं उतनी सुखदाई होती हैं | आप के लिए सर्वमंगल की कामनाओं सहित इस चित्र के साथ अब विराम लेती हूँ |
अपने तमाम गुस्से के साथ मैं बाहर आया। बाहर आकर मैनें मन ही मन यह इच्छा जाहिर की कि काश यह एक सामान्य फिल्म निकल जाये। इस फिल्म मे वह सब वहो ही नहीं जिसकी इच्छा लिये मैं एक सौ चालीस – पचास किलोमीटर आया था। मैं सोचता रहा कि काश यह डॉक्युमेंट्री फिल्म निकल जाये। काश सीरी फोर्ट मे अजीबोगरीब नियम लगाने वाले का लैपटॉप खो जाये, तमाम।
स्वगत पर कुछ दिन पूर्व आई प्रविष्टि पर भी एक दृष्टि डालें -
संदेह - दृष्टि
बोर्हेस ने ‘द रिडल ऑफ पोएट्री’ में कहा है- ‘सत्तर साल साहित्य में गुज़ारने के बाद मेरे पास आपको देने के लिए सिवाय संदेहों के और कुछ नहीं।‘ मैं बोर्हेस की इस बात को इस तरह लेता हूं कि संदेह करना कलाकार के बुनियादी गुणों में होना चाहिए। संदेह और उससे उपजे हुए सवालों से ही कथा की कलाकृतियों की रचना होती है। इक्कीसवीं सदी के इन बरसों में जब विश्वास मनुष्य के बजाय बाज़ार के एक मूल्य के रूप में स्थापित है, संदेह की महत्ता कहीं अधिक बढ़ जाती है। एक कलाकार को, निश्चित ही एक कथाकार को भी, अपनी पूरी परंपरा, इतिहास, मिथिहास, वर्तमान, कला के रूपों, औज़ारों और अपनी क्षमताओं को भी संदेह की दृष्टि से देखना चाहिए।
गत दिनों सुशांत सिंहल जी से उनकी साईट के माध्यम से परिचय हुआ| प्रो. योगेश छिब्बर जी की एक कविता ने उनसे परिचय करवाया | पिछले दिनों वन्दे मातरम् को लेकर जिस प्रकार का अवांछनीय वातावरण निर्मित किए जाने की घटनाएँ हुई हैं, उन दिनों माँ, जननी, मातृ-भू, माता आदि संकल्पनाओं को अनायास ही राष्ट्र व धरती के साथ जोड़ कर देखने वाली परम्परा का स्मरण हो आता रहा| वह परम्परा भले ही वेद की ऋचाओं में "माता भूमि: पुत्रोहम् पृथिव्या: " का आदेश हो अथवा लंका जय के पश्चात राम का लक्ष्मण को लंका के वैभव को धूल समझने का विमर्श देते समय कहा गया -
अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते |
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ||
या आधुनिक हिन्दी साहित्य में भारतेंदु काल से काव्य में राष्ट्रभक्ति और भारत माता की प्रतिष्ठा करने की परम्परा| सभी स्थानों पर जननी व जन्मभूमि एक शब्द युग्म की भांति आते हैं| मेरे मन की डूबती उतराती संवेदनाओं पर जिस कविता ने मरहम रखा, उसे पढ़ कर एक बारगी तो आप भी दंग रह जाएँगे| यहाँ उसका यथावत् पाठ देखिए -
दुःख थे पर्वत, राई अम्मा
हारी नहीं लड़ाई अम्मा ।
लेती नहीं दवाई अम्मा,
जोड़े पाई-पाई अम्मा ।
इस दुनियां में सब मैले हैं
किस दुनियां से आई अम्मा ।
दुनिया के सब रिश्ते ठंडे
गरमागर्म रजाई अम्मा ।
जब भी कोई रिश्ता उधड़े
करती है तुरपाई अम्मा ।
बाबू जी तनख़ा लाये बस
लेकिन बरक़त लाई अम्मा।
बाबूजी थे छड़ी बेंत की
माखन और मलाई अम्मा।
बाबूजी के पांव दबा कर
सब तीरथ हो आई अम्मा।
नाम सभी हैं गुड़ से मीठे
मां जी, मैया, माई, अम्मा।
सभी साड़ियां छीज गई थीं
मगर नहीं कह पाई अम्मा।
अम्मा में से थोड़ी - थोड़ी
सबने रोज़ चुराई अम्मा ।
अलग हो गये घर में चूल्हे
देती रही दुहाई अम्मा ।
बाबूजी बीमार पड़े जब
साथ-साथ मुरझाई अम्मा ।
रोती है लेकिन छुप-छुप कर
बड़े सब्र की जाई अम्मा ।
लड़ते-सहते, लड़ते-सहते,
रह गई एक तिहाई अम्मा।
अनंतिम
अब उसी नगर का एक और चेहरा देखें और मुझे विदा दें | हाँ इतना ध्यान अवश्य रखें कि चर्चा की १००० वीं प्रविष्टि होने की या अन्य सूचनाओं पर बधाई आदि देने से बढ़कर कुछ अधिक भी कहें| चर्चा पर किए जाने वाले श्रम में किसी चर्चाकार का कोई स्वार्थ नहीं होता है अतः चर्चा के इस मंच पर जब जब आप को किसी भी प्रकार का श्रम और समर्पण दिखाई दे तो अपनी भावनाओं को अवश्य व्यक्त करें , ये भावनाएँ औपचारिक शाबाशी से जितनी इतर होती हैं उतनी सुखदाई होती हैं | आप के लिए सर्वमंगल की कामनाओं सहित इस चित्र के साथ अब विराम लेती हूँ |
आदरणीय समीर लाल जी के पोस्ट का फीड अभी मुझे मेल से मिला तब ज्ञात हुआ कि चिट्ठाचर्चा में 1000 वीं पोस्ट आ रही है. बहुत खुशी हुई इसे अनवरत आगे बढते देखकर.
जवाब देंहटाएंब्लागिंग के शुरूआती दिनों से इस चर्चा पर हमारी खासी रूचि रही है और सत्य कहें तो इसी चर्चा नें हमें ब्लाग लिखने के लिए निरंतर प्रोत्साहित किया है.
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ.
इसी पर लिखे हैं..फिर भी छूट गये... :)
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.
आज की चिट्ठा चर्चा बहुत बढ़िया लगी!
जवाब देंहटाएंकुछ अच्छे लिंक भी मिले।
1000वीं पोस्ट के अनुरूप ही विस्तृत और विचारणीय चर्चा के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंआजकल चिट्ठा चर्चाओं के चर्चे है हर ज़ुबान पर
सबको मालूम है और सबको ख़बर हो गई...
जय हिंद...
प्रियंकर जी को विवाह की वर्षगांठ की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंनिरपेक्षता और निष्पक्षता ?
जवाब देंहटाएंसचमुच गर्वीला घोष !
वाह ऐसा लच्छेदार गर्व -घोष की चारण परम्परा भी लज्जित हो उठी !
जवाब देंहटाएंकविता जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक रही चिठ्ठा चर्चा की चर्चा। भाई 9 नवम्बर तो हमारा भी जन्मदिन है, हमें भी बधाई दे ही दीजिए। आप लोगों की दुआओं से कुछ हासिल हो जाए शायद।
डॉ श्रीमति अजित गुप्ता जी को जन्म दिवस पर बहुत बधाई और शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंअब तो लगता है आपके द्वारा प्रदर्शित स्वावलंबन ही उचित है. :)
अच्छा लगा जानकर कि हिंदी ब्लोगिंग आज यहाँ तक कैसे पहुंची है.
जवाब देंहटाएंडॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी को सुनने का मौक़ा एक बार मुझे भी मिला था..उस पल कि मधुर स्मृतियाँ ताज़ा हो आयीं.
अजित जी,
जवाब देंहटाएंआप के जन्मदिवस पर शतशः मंगलकामनाएँ|
मैं आप को स्काईप पर आज मिलने पर सुबह जन्मदिन की बधाई देने ही वाली थी, अभी तो यहाँ रात है और इस समय रात्रि के ३.३७ हुए हैं|
कल दिन भर मैं स्काईप पर आ नहीं पाई, बेटी के साथ हुई दुर्घटना की सूचना यहाँ कल की चर्चा में दी ही गयी थी |
आज उत्तराखंड स्थापना दिवस भी है और महर्षि वाल्मीकि जयन्ती भी| सो सभी को इन की भी बधाई|
@ समीर जी
आपकी पोस्ट पब्लिश और चर्चा की पोस्ट पब्लिश होने में मात्र २ घंटे का अंतर है, अब क्या स्पष्टीकरण दिया जाए इस पर !! वैसे क्या स्पष्टीकरण दिया भी जाना चाहिए यह भी नहीं जानती और यह भी नहीं जानती कि स्पष्टीकरण देने की स्थिति में डाला क्यों जा रहा है मुझे ?
देखिए न कितनी अज्ञानी हूँ !!!
बहुत सुन्दर, आलमारियों और दराजो में से खोज-खोज कर निकाला, इसे कहते है असली चीर फाड़ !
जवाब देंहटाएं@ kavitaa jI
जवाब देंहटाएंआप खामखाँ परेशान हो रही हैं. स्पष्टीकरण और आपसे, न न!! ये किसने मांगा...??
क्षमा करियेगा अगर ऐसा लगा हो. मेरे लेखन की विवशता है कि स्पष्ट जाहिर नहीं कर पाता बातों को. सामर्थय में कमी रही है मेरी हमेशा ही और आप बेवजह परेशान हो गईं.
बधाई!
जवाब देंहटाएंचर्चा के इतिहास में और ज्ञान वृद्धि हुई !
वैसे तो मन हमरा भी ललचा रहा है जुड़ने के लिए !
मन तो मन है का करे?
डॉ श्रीमति अजित गुप्ता जी को जन्म दिवस पर बहुत बधाई और शुभकामनाएँ
>>>सुशांत जी ! की साईट का लिंक कुछ गड़बड़ दिख रहा है ?
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रियंकर जी को बधाई!
जवाब देंहटाएंइलाहाबाद में उनका कहने का अंदाज अच्छा लगा था !
जाहिर है उनको देख कर कहा जा सकता था कि सौम्य तरीके से भी अपनी बात उतनी ही ठसक से रखी जा सकती है !
ek 1000 badhaii
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाईयां ही बधाईयां.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ab tak 1000 . badhai badhai badhai ............
जवाब देंहटाएंचिट्ठा-चर्चाकारों की मेहनत ने हमेशा से मुझे अचंभित किया है। सोचता हूँ, एक तो इतनी मेहनत से जुटाये गये लिंक, उन पर हिंदी का सुंदर शिल्प और तिस पर नित दिन बरसाने जाने वाले कटाक्षों के तीर को भी संग में झेलना....
जवाब देंहटाएंअद्भुत है ये मेहनत!
अद्भुत है ये चर्चा!!
...और इस हजारवें पड़ाव के लिये सैल्युट मेरा!
उधर महाराष्ट्र में माँ हिंदी के संग जो भी दुर्व्यवहार हुआ है, हम शर्मसार हैं। विरोध-प्रदर्शन के लिये गुरूजी पंकज सुबीर जी के ब्लौग पर खास टेम्पलेट और आज की पोस्ट निःसंदेह चर्चा-योग्य है।
जवाब देंहटाएंhttp://subeerin.blogspot.com/
अद्भुत! बहुत मेहनत की है आपने ..मेरे अल्पज्ञान में कोई शब्द नही जिसमे मैं खुद की भावनाएं अभिव्यक्त कर सकूँ ..सभी चर्चाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंकविता जी, आपको व आपके साथियों को इस उपलब्धि के लिए बहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंहैपी ब्लॉगिंग
हमने भी यहाँ अपनी चर्चा को याद किया है:
जवाब देंहटाएंhttp://www.tarakash.com/joglikhi/?p=1393
चर्चा चीरकाल तक जारी रहे. शुभकामनाएं.
कविता जी
जवाब देंहटाएंसचमुच 1000वीं पोस्ट जैसी ही एतिहासिक रही ये चिट्ठा चर्चा। और, निश्चित तौर पर समीर भाई की तरह हमारे जैसे कुछ सिर्फ 3 साल से ही ब्लॉगिंग करने वाले लोग भी अपनी पोस्ट का लिंक इस मंच पर पाकर प्रसन्न होते हैं। अच्छा एक जरूरी बात मैं तो, पुराने चिट्ठाकारों को इसके लिए बधाई का पात्र समझता था लेकिन, असली बधाई का हकदार तो कोई पगला आदमी(मैड्मैन)निकला।
चिट्ठाचर्चा की 1000 वीं पोस्ट पर सभी हिन्दी चिट्ठाकारों को बधाई. चिट्ठे न होते तो चर्चा कहाँ होती!
जवाब देंहटाएंबहरहाल, हमने भी अपनी चर्चास्मृति यहाँ रीठेल की है -
http://raviratlami.blogspot.com/2009/11/blog-post.html
बधाई। बहुत ही सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंबुकमार्क कर लिया है कविता जी ...पुरानी गठरियों के खोलने के जो लिंक आपने मुहैय्या कराये है .उन्हें आराम से खोल खोल के बांचा जाएगा .....ओर धूमिल को यहाँ खडा करके आपने इस पेज का मान बढा दिया है ....पूर्व में भी मै आपसे कह चूका हूँ आपकी कुछ चर्चाये सर्वश्रेष्ट की श्रेणी में आती है ....
जवाब देंहटाएं5 वषों में, 27 चर्चाकारों वाली मंडली के चर्चित सामूहिक चिट्ठाचर्चा की 1000वीं पोस्ट पर बधाई व शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंयह प्रथम चिट्ठाचर्चा मंच नित नई ऊँचाईयाँ छुए, यही कामना
बी एस पाबला
डॉ श्रीमति अजित गुप्ता जी,
जवाब देंहटाएंआपको जनमदिन की बधाई व शुभकामनाएँ।
आपका जनमदिन हमने अपने कैलेंडर में जोड़ लिया है।
माहांत में आपको हम याद करेंगे यहाँ
बी एस पाबला
बढिया है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
"इसका समस्त श्रेय इसके चर्चा मंडल के श्रम, समर्पण, निरंतरता, दायित्वबोध, पारस्परिकता, समयबद्धता, नूतनता के प्रति उत्साह, निरपेक्षता और निष्पक्षता को जाता है|"
जवाब देंहटाएंहिन्दी डिक्शनरी खाली हो गयी ! और भी कोई शब्द शेष रह गया हो तो वह भी पेश हो !
किन्तु चर्चा के इस मंच की उपादेयता, ऐतिहासिकता व कालक्रम में इसकी सर्वांगीणता निस्संदेह है, प्रामाणिक है, सर्वविदित है, चिरकालिक और स्थाई है|
वाह वाह तालियाँ ! केवल सर्वकालिक शब्द कैसे छूट गया और वह भी एक खाटी हिन्दी के साहित्यकार से ! कृपया जोड़ लिया जाय !
बडे कामों और महनीय योगदानों का जयघोष अवश्य हो मगर इस रूप में नहीं की वह आत्म प्रचार सरीखा बन जाय !
इस विरुदावली ने इस विजय पर्व की चमक धूमिल कर दी है तथापि मरियल आवाज में मैं भी विजयोल्लास में अपना भी स्वर मिलाता हूँ -ऊपर के उद्धत चेप से भी भयग्रस्त हो गया हूँ !
जवाब देंहटाएंऒऎ हड़िप्पा बल्ले बल्ले
भले किसी का दिल जले
अपनी तो निकल पड़ी
दिल से दुआ एक बड़ी
हम रहे ना रहें,जारी रहे चाहे यूँ ही गालियाँ हज़ार देना
ऎ मालिक, ऎसे ही दस हज़ारवीं पोस्ट तक पहुँचा देना
चिट्ठाचर्चा तो हिन्दी के बँटाधारी मरुस्थल का कैक्टस है
तेज धूप, गर्म हवायें भी खिलाती इसमें फूल चौकस हैं
ऒऎ हड़िप्पा हुम्म, ऒऎ हड़िप्पा हुम्म, ऒऎ हड़िप्पा सदके जावाँ
आज की मेहनत से की गई चर्चा नें, कविता जी के कीबोर्ड :) से निकल कर मुझ जैसे ब्लॉगचोर पाठक की बैण्ड बजा दी..
सभी लिंक पगुराने का टाइम माँगता, पृष्ठाँकित करने के अलावा कोई और चारा नहीं, आज तो अँतरिम टिप्पणी सजा दी
मराठी मानुष को हम शुद्ध मनसे क्या कहें ?
वन्दे मातरम, जय हिन्द, जय हिन्दी !
रविजी की बात में हमारी बात शामिल मानी जाए, चर्चाकारी तो चिट्ठाकरी पर ही निर्भर है अत: बधाई चिट्ठों को।
जवाब देंहटाएंशायद सब मित्रों को यह जानकर अटपटा लगे पर इस चिठ्ठाचर्चा में मेरा ’शुभागमन’ आज पहली बार हुआ वह भी १००० वीं पोस्ट की रचनाकार डा. कविता जी के प्रदत्त लिंक के माध्यम से। कोई गांव का व्यक्ति अचानक चर्चगेट, मुंबई या राजीव चौक मैट्रो स्टेशन, नई दिल्ली देखकर चौंधिया गया अनुभव करेगा, कुछ ऐसा सा ही मेरे साथ भी हो रहा है। १००० वीं पोस्ट तेजी से एक बारगी पढ़ गया हूं, अब फुरसत से पढ़ता रहूंगा और ज्ञानार्जन करूंगा, उसके बाद देखूंगा कि क्या कहना है, क्या कह सकने की स्थिति में हूं। फिलहाल कविता जी का हार्दिक आभार कि उन्होंने छिब्बर जी की कविता व सहारनपुर की वेबसाइट को इस पोस्ट में स्थान दिया।
जवाब देंहटाएंसुशान्त सिंहल
www.thesaharanpur.com
www.sushantsinghal.blogspot.com
www.sushansinghal.com
जय हो !
जवाब देंहटाएंहां, एक बात अवश्य कहूंगा। महाराष्ट्र में या देश के अन्य राज्यों में हिन्दी का विरोध सिर्फ क्षेत्रीय भावनाओं को येन-केन-प्रकारेण उकसा कर अपनी राजनीति की दुकान को चमकाने का भौंडा प्रयास भर है। यह हमारे देश का दुर्भाग्य ही है कि ऐसी घृणित राजनीति करने वाले जेल के स्थान पर अखबारों की सुर्खियों में दिखाई देते हैं। मेरे देखते देखते मुंबई में से हर साइनबोर्ड पर से हिन्दी गायब होती चली गई है। इस सब के मूल में हमारे पूर्ववर्ती जननायकों की अदूरदर्शिता ही है जिन्होंने भाषावार प्रांतों का गठन कर बबूल बोये थे और आज वही फसल काटी जा रही है।
जवाब देंहटाएंसुशान्त सिंहल
www.thesaharanpur.com
अच्छा संयोग है धूमिल की सबसे अंतिम कविता आज अनुनाद पर भी डाली गयी है...
जवाब देंहटाएंhttp://anunaad.blogspot.com/2009/11/blog-post_09.html
यह चर्चा भी शानदार है... १००० वीं पोस्ट के लिए हार्दिक शुभकामनाएं... तहे दिल से शुक्रिया... आनंद... महा आनंद... जय हो ...
bahut bahut badhaai ..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई ...चिटठा चर्चा का अपना ही एक मुकाम है हिंदी ब्लॉग में
जवाब देंहटाएंआज जन्म लेने वाले सभी विद्वजनों को बधाई।
जवाब देंहटाएंएक हज़ारवीं उपलब्धि को इतना सार्थक रूप देने के लिए कविताजी को बधाई।
इस मकाम को पहुंचाने के लिए सभी योगदानकर्ताओं को बधाई - विशेष रूप से फुरसतिया शुक्ला जी को जो अपनी व्यस्तताओं के चलते भी चिट्ठाचर्चा के लिए फुर्सत निकाल ही लेते हैं।
अरविंद मिश्र जी से यही कहा जा सकता है कि शुभ मुहुरत पर रोया नहीं करते। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कविताजी के शब्दकोश में संस्कृत शब्द का भी भण्डार है....पर आप तो यही नहीं सह पा रहे हैं:)
"आप के लिए सर्वमंगल की कामनाओं सहित"
उठते नहीं है हाथ अब इस दुआ के बाद....
बहुत सुंदर चर्चा के लिए बधाई कविता जी !अम्मा ने मन मोह लिया ... शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएं1000वीं पोस्ट की बधाई. आज की चर्चा बेजोड़ रही. कविता जी धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएंचिट्ठकाचर्चा का साथ बहुत पुराना है, साथ चलते हुये 1000वीं पोस्ट का अंग बनना भी सुखद है।
जवाब देंहटाएंबधाई
'चिट्ठा चर्चा' हो गया, एक तीर्थ बेजोड़।
जवाब देंहटाएंपोस्ट लिंक अपनी लगे, करें चिठेरे होड़॥
करें चिठेरे होड़, काश जम जाता सिक्का।
बादशाह, बेगम है कौन तुरुप का इक्का॥
हम तो हुए गुलाम देख बहु लिंक इकट्ठा।
यहाँ पहुँचकर धन्य हुआ हम सबका चिट्ठा॥
चारण कहे जाने का खतरा मोल लेते हुए भी हम अच्छी बातों को आगे बढ़ता हुआ देखकर उसके लिए शुभकामनाएं और बधाई देने में कोई कंजूसी नहीं कर सकते। खुले दिल से और पूरे मन से हम लख-लख बधाइयाँ देते हैं इस पूरी टीम को जिसने अनूप जी के कुशल और अहर्निश संयोजकत्व में इस अनूठे सफ़र को पूरी रोचकता और जीवन्तता से जारी रखा है।
यह मशाल यूँ ही जलती रहे और तमाम अँधेरे कलुषपुंजों को दिन का उजाला दिखाती रहे, यही हमारी कामना है।
चिठ्ठाचर्चा की हजारवीं पोस्ट पर ढेर सारी बधाई, कविता जी आज की चर्चा सहेज कर रख रही हूँ कई बार पढ़ने के लिए, शेष विस्तार से टिप्पणी कल करूंगी…:)
जवाब देंहटाएंपांच वर्ष की यात्रा . हज़ारों ब्लॉग . दो दर्ज़न से अधिक चर्चाकार . और चिट्ठाकारों के समवेत स्वर चिट्ठाचर्चा की एक हज़ारवीं पोस्ट का ’माइलस्टोन’ . सब आशाजनक है . खास तौर पर इसलिये कि यह वीराने में बस्ती बसाने जैसा काम था . जो इसके शुरुआती सूत्रधार और कार्यकर्त्ता थे उन्हें एक गुलाब का फूल मेरी ओर से और हिंदी चिट्ठा-परिवार के सभी सदस्यों को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं .
जवाब देंहटाएंहमारे प्रति व्यक्त समादर और शुभकामनाओं के लिये आप सबके प्रति आभार !
चिट्ठा चर्चा जिस मेहनत और लगन के साथ तैयार की जाती है, वह दिखाई भी देती है. बधाई.
जवाब देंहटाएंइस अवसर पर सभी चिटठा चर्चा प्रेमी मित्रों को बधाई एवं शुभकामनाऍं ।
जवाब देंहटाएंसभी मित्रो , साथियो को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाऍं
जवाब देंहटाएंचिट्ठाचर्चा और उसमें लगातार सक्रिय योगदान देनेवाले ब्लॉगर दोस्तों को ढेर सारी शुभकामनाएं।.
जवाब देंहटाएंकविता जी,
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई और कोटि-कोटि धन्यवाद. मेरा उत्साहवर्धन करने के लिये. चिट्ठाचर्चा की यह सफलता और लोकप्रियता आप जैसे प्रतिभाशाली चिट्ठाकारों के प्रयास का परिणाम है.
समस्त चिट्ठा चर्चा समूह को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंकविता जी ज्यादा कुछ कह्ने को है नही मेरे पास :)
वीनस केशरी
अच्छी चिठ्ठा चर्चा कही आपने कविता जी - हमारी भी ढेरों बधाईयाँ -- सभी मेम्बरों को जो इतना श्रम करते हैं
जवाब देंहटाएंसारे लिंक्स मार्के के दीये हैं और राज महाराष्ट्र में जो अशोभन कार्य हुआ है उसका प्रतिकार , शुध्ध हिन्दी चिठ्ठों की चर्चा को सफल बनाकर
आज सब के सामने आशा की उज्जवल किरण सम उपस्थित है आपको हार्दिक बधाई
प्रियंकर दंपत्ति को हार्दीक शुभकामनाएं
- डा. अजित जी को सालगिरह मुबारक हो
जय जय
सादर,
- लावण्या
यह निरंतरता एक उत्सवी उपलब्धि है। अतिरेकी हो जाय तो भी उत्सव होना ही चाहिए।
जवाब देंहटाएंइस स्तम्भ से जुड़े सभी आदि, भूत और वर्तमान के ब्लॉगरों को बधाई और धन्यवाद कि नए ब्लॉगरों के लिए एक लीक सहेज रखी।
जय हिन्दी।
_____________________________
उपर के 1000 POSTS चमकउवा को हिन्दी में कर दें। सम्भव है न ?
१००० बार बधाई सभी चिठ्ठाकारों को और चर्चाकारों को ।
जवाब देंहटाएंजब चिट्ठाचर्चा विस्तृत होती है तो दिल खुश हो जरा है और फिर जब कलेवर इसतरहा बुना गया हो तो कहना क्या....
जवाब देंहटाएंआपने धूमिल को याद किया यही सार्थकता है इस 1000 वी पोस्ट की । बाकी आपकी मेहनत को सलाम ।
जवाब देंहटाएंअस्त व्यस्त हों, चाहे पस्त हों..हज़ारवीं पोस्ट पर बधाई देने चिट्टाचर्चा में आने से अपने को रोक न पाए...नियमित लिखने वाले चिट्ठाकार हों या चर्चाकार सभी को नतमस्तक प्रणाम और ढेरों बधाइयाँ.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा। कल से कई बार इसे देख चुके हैं अब मन किया कि हम भी खुश हो लें।
जवाब देंहटाएंप्रियंकर जी और श्रीमती गुप्ताजी को बधाई।
अरविन्दजी के लिये ही शायद आपने बजरबट्टू लगाये थे। अरविन्दजी अद्भुत लगन वाले व्यक्ति हैं। चाहे जितनी बार प्रयास करना पड़े लेकिन वे वह कहकर ही मानते हैं जो वह सच में कहना चाहते हैं।
समीरलाल जी के साथ यह अजब सी समस्या हो गयी है आजकल। वे वह कह ही नहीं पाते जो वास्तव में कहना चाहते हैं। कहीं न कहीं चूक हो जाती है उनसे। एक समय के अद्भुत चर्चाकार साथी के साथ ऐसा होते देखना कित्ता तो कैसा-कैसा लगता है! सुधर जाइये समीरलालजी। :)
असल में भाई समीरलाल की अपेक्षायें आपसे और चर्चा मंच से उसी तरह की होंगी जिस तरह की उनकी टिप्पणियां होती हैं। इधर आपने पोस्ट की नहीं उधर उनकी टिप्पणी टप्प से आ गयी। कभी कभी तो मैं मजाक में कहता भी था कि टिप्पणी उनकी पहले आती है पोस्ट बाद में प्रकाशित होती है।
तमाम टिप्पणियां बांचकर भी आनन्दित हुये।
आपको इतनी शानदार चर्चा के लिये शुक्रिया।
@ अनूप जी
जवाब देंहटाएं:)
सभी साथियों की शुभकामनाओं के लिए चर्चा दल की ओर से कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ|
जवाब देंहटाएं@अनूप जी,
बजरबट्टू तो बुरी नजर से बचाने के लिए हमारे यहाँ हर उत्सवधर्मी उपादान पर लगा दिए जाने की परम्परा है, ये प्रत्येक कुदृष्टि से बचाने का लोकमानस-जन्य प्रावधान-सा होते हैं | बुरी नज़र जिस किसी की भी हो, उस का निषेध करने का समाज का अपना आधारभूत प्रचलन है| सो जिनकी / जिसकी हो, उस उस पर लागू होते हैं| हम क्या जानें !! हमने तो बस लगा देना अनिवार्य समझा|
:-))
कोई भी नया काम शुरू करना तो बहुत आसान होता है - जोश की कमी नहीं होती, लोग भी नए काम में जुड़ने पर मदद करने को तत्पर रहते हैं।
जवाब देंहटाएंलेकिन शुरू होने के बाद लगातार उसी स्तर का जोश बनाए रख पाना - उसी उत्साह से दिन प्रतिदिन उसी चीज़ को करते रहना, नए लोगों को जोड़ते रहना - यह आसान नहीं है।
मेरी निजी राय यह है कि चिट्ठाचर्चा के सचिन तेंदुलकर अनूप शुक्ल जी को इसका श्रेय जाता है। आशा है कि आप सब भी इस बात से सहमत होंगे कि विभिन्न विचारधाराओं और उद्देश्यों वाले लेखकों को आपस में चर्चा में मग्न रख पाने में उनका बहुत बडा़ योगदान रहा है।
सभी को बधाई।
१. चिट्ठों पर चर्चा के मंच की आवश्यकता पर आपने खूब ध्यान दिलाया है. मेरा ख़याल है कि अभी कई सारे चिट्ठाकारों और चर्चाकारों को मैं-मेरा से ऊपर उठने की ज़रूरत है, अन्यथा रेंडी और बरगद के बीच तमीज बनने में बहुत वक़्त लग सकता है.
जवाब देंहटाएं२. अंग्रेजीपरस्तों से विचलित नहीं होना चाहिए.श्रेष्ठ सामग्री की उपलब्धता बढ़ेगी, तो हिंदी चिट्ठाकारी की लोकप्रियता भी बढेगी ही.
३.प्रो.सुरेश कुमार जी के मेल का अंश अत्यंत उपयोगी तथा मार्गदर्शक है. दो दिन पूर्व ही प्रो. दिलीप सिंह जी से बात हो रही थी कि किस प्रकार प्रो. सुरेश कुमार जी ने हिंदी में पाठ विश्लेषण के विविध प्रतिदर्श दिए हैं. वस्तुतः इस मेल में भी उन्होंने विशेषणों में निहित सर्जनात्मकता की परख का सूत्र दिया है .उन तक हमारे प्रणाम पहुँचाएँ.
४,विलंबित टिप्पणी के लिए...........['क्या कहूं आज जो नहीं कही?' - निराला]
dhoomil ki kavita ko post karaner ke liye danyavad.......
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