अजब-गजब दुनिया है रेडिफ़ लैण्ड की हिन्दी ब्लॉग दुनिया. मैंने यहाँ बेतरतीब गोता लगाने की कोशिश की. कुछ कड़ियाँ बेहद पुरानी भी हो सकती हैं. यहीं पर मुझे यह काम की कड़ी भी मिली –
तो, सबसे पहले तो आप ऊपर दी गई कड़ी (टकमक या टुकमुक?) पर ही विचरण करें. वहां से यदि आप जल्द और सुरक्षित वापस आ जाएँ, तो आगे देखें – (बस, ये ध्यान रखें कि यदि आपके ब्राउज़र पर हिन्दी के बजाए कचरा दिखे तो व्यू>एनकोडिंग> यूनीकोड - यूटीएफ़8 कर दें. रेडिफ़ में इसके जैसी और भी ढेरों समस्या है, पर फिर भी जनता जाने क्यों वहां चिपकी रहती है...)
गिरीश सिंह –
‘बनावटी जीवन’भागदौड़ वाली इस जीवनशैली में हर शक्स एक अनजानी सी दौड में अनजाने लक्ष्य के पीछे दौड़ रहा है। मैं भी अपनों से दूर ऐसे ही किसी अनजाने लक्ष्य के पीछे दौड़ रहा हूँ। क्या पाना है?, कैसे पाना है?,कुछ पता नही। क्या आपने किसी कुत्ते को अनजाने वाहन के पीछे भागते देखा है? सवाल यह नही कि वो क्यो भाग रहा है? अगर वह उस वाहन को पकड़ भी लेगा तो करेगा क्या?
http://girishsingh.rediffiland.com/blogs/2009/10/05/.html
विशाल सारस्वत –
save environment
पर्यावरण के किसी भी तत्व में होने वाला अवांछनीय परिवर्तन, जिससे जीव जगत पर प्रतिकूल प्रभाव
पड़ता है, प्रदूषण कहलाता है। पर्यावरण प्रदूषण में मानव की विकास प्रक्रिया तथा आधुनिकता का महत्वपूर्ण योगदान है। यहाँ तक मानव की वे सामान्य गतिविधियाँ भी प्रदूषण कहलाती हैं, जिनसे नकारात्मक फल मिलते हैं। उदाहरण के लिए उद्योग द्वारा उत्पादित नाइट्रोजन आक्साइड प्रदूषक हैं। हालाँकि उसके तत्व प्रदूषक नहीं है। यह सूर्य की रोशनी की ऊर्जा है जो कि उसे धुएँ और कोहरे के मिश्रण में बदल देती है।
http://bhuthegreat.rediffiland.com/blogs/2009/10/03/save-environment-1.html
अख़्तर रिज़वी –
दोस्तों
,सबसे पहले तो आप सभी को ..हिंदी पर्व की ढेर सारी शुभकामनायें...!! आप सोच रहे होंगे के हमने हिंदी दिवस को हिंदी पर्व क्यूँ लिखा..? तो दोस्तों जो चीज़ वर्ष में एक बार बहुत धूमधाम से मनाई जाये तो उसे पर्व नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे...? हर वर्ष १४ सितम्बर आते ही हम सब का हिंदी प्रेम जाग उठता है हम जोर शोर से इसे एक पर्व की तरह मानानेकी तय्यारियों में लग जाते हैं..जगह जगह हिंदी सम्मलेन कार्यालयों, में हिंदी पखवाडे ,रेडियो और दूरदर्शन से हिंदी दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों की रिपोर्ट,सर से पैर तक अंग्रेजी में नहाये हुए ,अंग्रेजी वर्दी पहने नेताओं के भाषण,कहीं निबंध प्रतियोग्यतएं तो कहीं अन्ताक्षरी...और उसके बाद.....इतिश्री.....अगले वर्ष फिर देखेंगे....??
http://meakhtarrizvi.rediffiland.com/blogs/2009/09/15/n.html
कमल दुबे –
Chhattisgarh main Aisa Bhi Hota Hai…
ऐसा भी होता है? छतीसगढ़ में निलंबन और बहाली
छत्तीसगढ़ शासन के परिवहन विभाग में हाल में हुई तीन निलंबित अधिकारियों की बहाली इन दिनों चर्चा में है, सी बी आई के एक केस(Stayed) में ये तीनो ही चार्जशीटेड हैं और जिनके खिलाफ गैरजमानती गिरफ्तारी वारंट जारी हैं. इनमें से दो अधिकारी जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट तक गए थे. लेकिन वहाँ भी उन्हें सिर्फ चार सप्ताह की ही मोहलत मिली थी और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें सी बी आई की विशेष अदालत में सरेंडर कर वहाँ से जमानत लेने के निर्देश दिए थे.
http://kdbaba.rediffiland.com/blogs/2009/09/13/Chhattisgarh-main-Aisa-Bhi-Hota-Hai.html
अंजू पंग्ती
जो बीत गया.............
अक्सर ऐसा भी होता है
जो बीत गयी, सो बात गयी
क्या सच में ऐसा होता है
जो बीता है, वो बात गयी
कुछ अंतर्मन के द्वंदों में
उलझे कुछ, ऐसे फन्दों में
ना जीत सके अपना ही मन
ना हार सके, अपनों का मन
कुछ ऐसी गांठे है पड़ती
जो वक़्त के, साथ नहीं खुलती
वो हो जाती कुछ और गहन
धीरे धीरे, कुछ और सघन
http://anjupangty.rediffiland.com/blogs/2009/09/05/.html
राजेश पंकज –
प्रेम के दोहे
मन का नाता न तोड़ना, बाँध प्रेम की डोर।
मन मुआ तो जग मुआ, ठौर कहीं न और॥
प्रीत की बंसी बाजती, मन का नाचत मोर।
मीत कहे तो यामिनी, मीत कहे तो भोर॥
जीवन के आकाश तले ज्यों, पतंग उडावे डोर।
जीवन तो अनमोल रे!, मीत मोल है और॥
http://rajeshpnkj.rediffiland.com/blogs/2009/05/16/.html
भारत –
हमें तो अपनों ने लूटा,
गैरों में कहाँ दम था.
मेरी हड्डी वहाँ टूटी,
जहाँ हॉस्पिटल बन्द था.
मुझे जिस एम्बुलेन्स में डाला,
उसका पेट्रोल ख़त्म था.
मुझे रिक्शे में इसलिए बैठाया,
क्योंकि उसका किराया कम था.
मुझे डॉक्टरों ने उठाया,
नर्सों में कहाँ दम था.
मुझे जिस बेड पर लेटाया,
उसके नीचे बम था.
मुझे तो बम से उड़ाया,
गोली में कहाँ दम था.
और मुझे सड़क में दफनाया,
क्योंकि कब्रिस्तान में फंक्शन था
नैनो मे बसे है ज़रा याद रखना,
अगर काम पड़े तो याद करना,
मुझे तो आदत है आपको याद करने की,
अगर हिचकी आए तो माफ़ करना.......
http://hotbharat.rediffiland.com/blogs/2009/04/15/poem-1.html
राजेश यादव –
तनहाई मे जब भी सोचा करोगे.....
तुझ बिन नहीं मुझको जीना सनम
करले तू चाहे जितना भी सितम
मर भी गये हम तो भी कुछ गम नहीं
इक दिन तड़पोगे तुम भी यहीं
मेरी याद तुमको रुला जाएगी
इस बात का मुझको है पूरा यकीन
तनहाई मे जब भी सोचा करोगे
हर सांस मे मुझको ही ढूंढा करोगे
जब भी जुबान अपनी खोलोगे साथी
हर लफ्ज़ पे नाम मेरा ही पाओगे
जीने न देंगे हम चैन से तुझको
तेरी हर फरियाद में हम गूंजा करेंगे
http://rajcomp98.rediffiland.com/blogs/2009/11/12/a.html
श्याम –
नि:शब्द
कुछ शब्द
बामुश्किल
उनसे कुछ कहने
मनस्तल से निकल
जुबां तक आए
देख कर सम्मुख
उनका अतिशीतित अंदाज
नि:शब्द ही रह गए।
http://shyamgkp.rediffiland.com/blogs/2008/12/06/.html
राज कुमार –
Naari.........?
नारी क्या है.........? नारी एक माँ है , बेटी है ,बहू है , पत्नी है और इन सबके बाद एक कुशल ग्रहिणी है , जो सबको संभालती है , ग्रहस्थी चलाती है
लेकिन आज इसी नारी को क्या हो गया है , हम उसे एक नौकर से ज्यादा नही समझते एक भोग की तुझ वास्तु से ज्यादा नारी की कोई इज्जत हमारी यानी की पुरुष प्रधान समाज मैं नही
रही आखिर इसकी वज़ह क्या है , हम अपने परिवार को समय नही दे पाते , माँ - बाप के लिए , बच्चों के लिए हमारे पास समय नही है . समय का अकाल सा पड़ गया है, हमारे पास यार - दोस्तों मै बैठने का समय है , उनसे गप्प मारने का समय है . लेकिन परिवार के लिए समय नही है . और बीवी कुछ बोल दे तो हम उसकी पिटाई कर दे ते है या उसे उसके मायके भेज देते है !
मुझे एक कहानी याद आ रही है .
http://meriduniya123.rediffiland.com/blogs/2009/11/09/Naari.html
अमिता शर्मा –
शादीयाफ्ता इश्क की दास्तां
'शादीयाफ्ता' शब्द सुनते ही सजायाफ्ता शब्द दिमाग का दरवाजा खटखटाने लगता है। शादी के बारे में आमराय तो यही है कि यह वो बला है जिसका काटा उफ् तक नहीं करता। शादी के आपनी ही पत्नी से इश्क की कोई दास्तां भी हो सकती है कहने वाला कोई सिरफिरा ही हो सकता है यह एक स्थापित सत्य सा है। कोई भी यह सुनने वाला झट से कह देगा शादी के बाद दासता तो देखी है पर इश्क की दास्तां न सुनी न देखी है। शादी के बाद इश्क शेष ही कब रहता है अगर कुछ रहता है तो वह इश्क कर अवशेष होता है।
पर मैं यह बात दावे के साथ पूरे होशोहवास में, दुरूस्त दिमागी हालत में, कह रही हूं। कलमकार की शंकर की तरह तीसरी आंख जो होती है। वह दिखने वाली वस्तु के अंदर का भी देख लेता है। वर्डसवर्थ इसे "इनवर्ड आई" कहते थे। मेरी तीसरी आंख ने अपने देश के एक बहुचर्चित नेता में प्रेमी शहंशाह शाहजहां की झलक देखी है। बल्कि मेरा तो मानना है वह शाहजहां से भी ऊँचे दर्जे का प्रेमी कहा जा सकता है।
http://webmedia.rediffiland.com/blogs/2008/11/04/.html
यूँ तो और भी ऐसे सैकड़ों (हजारों?… शायद हाँ!) हैं, मगर अभी के लिए इतना ही. आप अगर वहाँ कुछ खोजबीन करना चाहें तो लिंक यह रही.
बेहतरीन...
जवाब देंहटाएंrediffland की सैर कराने का शुक्रिया ! वैसे हमारा भी वहां खाता है .....बहुत दिन हो गए हम भी ढूँढने जाते है !!!! क्यों लोग चिपके हैं rediffland में जब मालूम चले तो हमें भी बताइयेगा !!
जवाब देंहटाएंनये स्थानॊं पर पहुँचने की इच्छा पैदा करते हैं आप । रेडिफलैंड की सैर मजेदार रही ।
जवाब देंहटाएंअच्छा मसाला जुटा दिया आपने। आज सण्डे मनाने भर को काफी है। शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !!
जवाब देंहटाएंअरे वाह! ये तो सचमुच ही अजब-गजब दुनिया है। आपका हमेशा कुछ हटकर लिंक देना लाजवाब है रवि जी...
जवाब देंहटाएंअंजु जी की इस अद्भुत कविता से तो वंचित ही रह जाते हम तो...जो बीत गयी सो बात गयी...बच्चन का तोड़????
"हर वर्ष १४ सितम्बर आते ही हम सब का हिंदी प्रेम जाग उठता है हम जोर शोर से इसे एक पर्व की तरह मानानेकी तय्यारियों में लग जाते हैं"
जवाब देंहटाएं१४ सित्म्बर हो या १४ नवम्बर.... ये सब बालकों के लिए है :)
रेडिफ़ की सैर कराने के लिए रवि जी का आभार॥
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा है!
जवाब देंहटाएंबधाई!
रेडिफ़लैण्ड की अज़ब-ग़ज़ब ब्लॉग दुनिया ब्लॉग दुनिया से परिचय कराती चर्चा ।
जवाब देंहटाएंsari ki sari pangti lajawab he bahut hi gajab. gajab ki he
जवाब देंहटाएंati sunder
जवाब देंहटाएंmainek din
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