- हिन्दी चिट्ठाकारी : एक और नई चाल? भाग तीन
- हिन्दी चिट्ठाकारी : एक और नई चाल? भाग दो
- हिन्दी चिट्ठाकारी : एक और नई चाल? भाग एक
अब लीजिए इलाहाबाद की कुछ कतरनें - (चित्रों को पढ़ने लायक बड़े आकार में देखने के लिए उस पर क्लिक करें)
अद्यतन : संज्ञान में यह बात लाई गई है कि राकेश के चिट्ठे पर कॉपी-पेस्ट करते समय वर्तनी की कुछ समस्या है, जिससे पठनीयता की समस्या भी
हो रही है. यही आलेख सुंदर रूप रंग में हिन्द युग्म पर समग्र रूप में उपलब्ध है.
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जवाब देंहटाएंपुराना टेम्पलेट बेहतर था. बस एक कमी थी कि कमेंट्स में फॉण्ट साइज़ छोटा था. उसे दुरुस्त कर लेते तो वही टेम्पलेट अच्छा था. विवेक सिंह जी की और हमारी बात को वजन दिया जाय. पिछले दिनों बहुतेरे लोग इस टेम्पलेट के गुणगान करते दिखे, कुछ समझ नहीं आया कि क्यों. शायद हमारी ही आँख में कोई नुस्ख होगा जो हमें नहीं जंचा.
जवाब देंहटाएंएक और बात - फायरफोक्स से इसके कमेन्ट बौक्स में कमेन्ट पेस्ट नहीं होता. बॉक्स को अलग टैब में खोलना पड़ता है. पिछले टेम्पलेट में यह दोष नहीं था.
और कुछ सेलेक्ट करना हो तो "नो राइट क्लिक" का ये लेक्चर क्यों आता है? क्या खतरा है आपको राइट क्लिक से? हम तो इसी तरह से रिफ्रेश/रीलोड करने के आदी हैं. और इस ट्रिक का तोड़ तो बहुतेरे जानते हैं.
जवाब देंहटाएंबढ़िया है सब !!
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा-आभार
जवाब देंहटाएं"मंच की गरिमा से छोटे लोग तो खिलवाड़ कर लिए, पर बड़े बड़प्पन दिखाएं तो मज़ा आये ।"
जवाब देंहटाएंये छोटे लोग कौन है भाई. तकनीक में बड़ों के कान काटने वाले? :)
डिजाइनर लोग रंगरूप का ध्यान रखो भाई...
@पिछले दिनों बहुतेरे लोग इस टेम्पलेट के गुणगान करते दिखे, कुछ समझ नहीं आया कि क्यों. शायद हमारी ही आँख में कोई नुस्ख होगा जो हमें नहीं जंचा.
जवाब देंहटाएंश्रीमान जी एक कहावत है कि जवने रोगी भावे , वही वैद बतावे ...शायद टेम्प्लेट बदलने वाले चाहते ही प्रशंशा है ....और राईट क्लिक करने के बजाय आप जो कापी करना हो उसको सेलेक्ट करके ctrl+c कर दिया करे कोई लेक्चर नहीं आयेगा ....
@विवेक सिंह
मंच की गरिमा से छोटे लोग तो खिलवाड़ कर लिए, पर बड़े बड़प्पन दिखाएं तो मज़ा आये ।
तुम शायद गलत लिख गये, छोटे लोगों ने खिलवाड नही किया बल्कि तथाकथित बडे बने बैठे लोगों ने छोटे और नये ब्लागर्स के साथ आज तक खिलवाड किया गया है। और तुम लोगों का यही बडबोला पन इस मंच को ले डूबेगा. अपने मन मे इतने बडे मत बनो कि आसपास देख ही ना पावो।
चर्चा महत्वपूर्ण है, पर विवेक की तरह हम भी चाहते हैं कि पुराना प्रचलित टेम्पलेट ही अच्छा है वही मन में बस गया है।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआगे कमेन्ट करने vaale लोगो से आग्रह , "छोटे लोगो " की बातो पर ना जाए । बहुत से लोगो मे "लड़कपन "सदा रहता हैं वो उम्र के किसी भी मकाम पर क्यूँ ना हो । बदलाव को जो सहजता से नहीं स्वीकारते हैं वो समय से पीछे रह जाते हैं । तकनीक का हर एक्सपेरिमेंट नयी सोच और नयी दिशा का प्रतिरूप होता हैं ।
जवाब देंहटाएंकतरने बढ़िया हैं।
जवाब देंहटाएंलिफाफा देख कर ही मजमून का आभास हो रहा है।
पुराना टेम्पलेट वापस चाहिए । राकेश के परचे को समय मिलने पर पढ़ा जायेगा । लिंक देने के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंआप सब की आलोचनाओं का स्वागत है, मित्रगण !
जवाब देंहटाएंगौरतलब है कि, चर्चामँडली में टिप्पणियों के अलावा मेरी अन्य कोई सहभागिता नहीं रही है ।
लिहाज़ा, बदलाव की यह मग़ज़मारी मेरी कोई स्वयँसेवी पहल न रही होगी ।
मेरे कनिष्ठ सहोदर का अल्पायु में असामयिक निधन हो गया है, अतएव ब्लॉगजगत से दूर हूँ ।
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@ One & All
HIS MASTER'S VOICES at this platform
त्रयोदशा की औपचारिकताओं तक अपने कम्प्यूटर से दूर आगरा में ही रुका रहूँगा ।
चर्चा पढ़ने की हुड़क अनायास दिन में एक बार इधर खींच ही लाती है, मैं इस व्यसन से मुक्त होने की इच्छाशक्ति एकत्र कर रहा हूँ ।
आज कोई नयी टिप्पणी न देते हुये, मैं पहले की गयी अपनी टिप्पणियों को पुनः उद्धरित करना ही पर्याप्त समझता हूँ ।
1. from डा० अमर कुमार
to dramar21071@gmail.com
date 30 October 2009 10:38
subject[चिठ्ठा चर्चा] महानगर में दर्द ज्यादा होते हैं ... और समंदर की जर... पर नई टिप्पणी.
mailed-byblogger.bounces.google.com
hide details 30 Oct (1 day ago)
डा० अमर कुमार ने आपकी पोस्ट "महानगर में दर्द ज्यादा होते हैं ... और समंदर की जर..." पर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:
भई यह चर्चा मँच है, आप सब उसकी तारीफ़ करो, मेरा क्या ?
तारीफ़ तो चढ़ने वाली शराब और शबाब की की जाती है, मुआ बोतल का लेबुल और नाज़नीन की पोशाक क्या अहमियत रखती है ।
आजकल आगरे में हूँ, कल यह चर्चा मोबाइल पर देख तो ली थी, आई. एम. ई. टूल आज उपलब्ध करवा पाया सो सनद रखे जाने को टीप रहा हूँ ।
@ मसिजीवी भईय्या, ललित शरमा जी और हिन्दीभारत
टेक्स्ट की कापी-पेस्ट कुछ असँभव तो नहीं, यह तो किसी भी फीडरीडर से किया ही जा सकता है ।
ताला जानबूझ कर कमज़ोर लगाया है, ताकि तोड़ने वाले पर निगाह रखी जा सके । मन तो कर रहा है बोलूँ कि चोर बन गये ब्लॉग ज़ेन्टलमैन.. लेकिन छोड़िये भी, इसके कोड ब्लॉक में आई.पी. ट्रैकर रूटकिट लगा हुआ है, जी ।
बोलो सियाराम चन्द्र की जै !
इलाहाबाद में उसको मिले महत्व से कैमरे जी का मूड अच्छा रहा होगा, मेरी भी एक्ठो अच्छी फोटू हँईच दी, बताओ हम का करें ।
2. डा० अमर कुमार
to dramar21071@gmail.com
date 30 October 2009 10:50
subject [चिठ्ठा चर्चा] जिन्हें हमारा मुल्क चुभता है पर नई टिप्पणी.
mailed-byblogger.bounces.google.com
hide details 30 Oct (1 day ago)
डा० अमर कुमार ने आपकी पोस्ट "जिन्हें हमारा मुल्क चुभता है" पर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:
" चर्चा में पता नहीं चर्चाओं की चर्चा क्यों नहीं होती। पिछली चर्चा में अनूपजी ने घोषणा की थी कि टैंपलेट बदल रहे हैं... पिछली टैंपलेट भी नई ही थी और लग भी अच्छी ही रही थी... आभास हुआ कि नई चिट्ठाचचाओं के नकलचीपन से दुखी हैं अनूप... "
@ मसिजीवी भईय्या,
टेक्स्ट की कापी-पेस्ट कुछ असँभव तो नहीं, यह तो किसी भी फीडरीडर से किया ही जा सकता है, या सीधे सीधे टेक्स्ट सेलेक्ट करके मारें और फिर नोटपैड पर ठोंक दें, बस इतनी ही बहादुरी तो दिखानी है, इसका क्या ?
ताला जानबूझ कर कमज़ोर लगाया है, ताकि तोड़ने वाले पर निगाह रखी जा सके । मन तो कर रहा है बोलूँ कि चोर बन गये ब्लॉग ज़ेन्टलमैन.. लेकिन छोड़िये भी, इसके कोड ब्लॉक में आई.पी. ट्रैकर रूटकिट लगा हुआ है, जी ।
बोलो सियाराम चन्द्र की जै !
3. from डा० अमर कुमार
to dramar21071@gmail.com
date 31 October 2009 12:13
subject [चिठ्ठा चर्चा] जिन्हें हमारा मुल्क चुभता है पर नई टिप्पणी.
mailed-byblogger.bounces.google.com
hide details 12:13 (11 hours ago)
डा० अमर कुमार ने आपकी पोस्ट "जिन्हें हमारा मुल्क चुभता है" पर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:
रवि भाई, माँग के अनुरूप मैंनें माल तैयार कर दिया ।
इस साइट के एडमिनिस्ट्रेटिव अधिकार मेरे पास नहीं है, इसे हटा दिये जाने की सर्वसम्मति का आदर करते हुये यदि यह कोड हटा भी दिया जाय तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है ? किन्तु आपसे आग्रह है कि, अपनी आगामी चर्चा में आप इसी मुद्दे को लेकर चलें, जिसके चलते ऎसा करना अपरिहार्य हो जाया करता है । इतने वर्षों से यह चर्चा सुचारू रूप से अबाधित चलती रह सकी, किन्तु अब " रेलवे आपकी सम्पत्ति है " के आदर ( ? ) किये जाने की तर्ज पर चिट्ठाचर्चा के सहयात्रियों ने इस मँच की भी एक मख़ौल की स्थिति उत्पन्न कर दी है, इससे आप भी परिचित होंगे । जिनको भी कष्ट हुआ है, मैं क्षमाप्रार्थी हूँ, पर ऎसी तिकड़में अपनाने को बाध्य करने का दोषी कौन है ?
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एक बार पुनः गोहार है, प्रेम से बोलिये सियावर रामचन्द्र जी की जय !
जवाब देंहटाएंखेद है कि, निर्विवादित बने रहने का श्रेय बरकरार रखने के मोह में इसे अनदेखा कर
हमारे वरिष्ठतम रवि भाई भी मेरे अनुरोध पर एक लाइन लिखने तक से कन्नी काट गये । यदि अनूप जी उपरोक्त टिप्पणियाँ अपनी मँद मुस्कान के साथ बाँच चुके हों, तो इस पर अपनी तिरछे फ़ोकस वाली टार्च मारें । एक मॉडरेटर के नाते यह उनका अधिकार और कर्तव्य दोनों ही है !
समाचार पत्रों ने भी इलाहाबाद संगोष्टी का अच्छा कवरेज किया। बधाई॥
जवाब देंहटाएंहद है! अरे भइया, बस इतना ही तो कहा कि पुराना टेंपलेट ज्यादा अच्छा था. आजकल सब मनमाफिक ही सुनना चाहते हैं.
जवाब देंहटाएंबस यही सुनना चाहते हैं न "आज की चर्चा बढ़िया रही... सार्थक चर्चा... अगली चर्चा का इंतज़ार है..."?
इलाहाबाद-इलाहाबाद सुनकर कान पक गए थे इसलिए टेंपलेट पर गलती से टिप्पणी कर बैठा. हमसे भूल हो गई, हमका माफी दई दो.
कोई भी टेम्पलेट लगाइये , हमें चर्चा पढने से मतलब है ।
जवाब देंहटाएंचर्चा बढिया चल रही है !
ये क्या हो रहा है?अपनी समझ से परे है।
जवाब देंहटाएंWah ab baat our aage aaye
जवाब देंहटाएंalahabad se aage
यही तो समझाने की बात थी जब हम हमारे साथ ऐसा कुछ हुआ था आपके विचार जाने अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंमंच की गरिमा से छोटे लोग तो खिलवाड़ कर लिए, पर बड़े बड़प्पन दिखाएं तो मज़ा आये ।