ब्लागवाणी की विशेष कृपा से ब्लाग जगत में प्रभाष जोशी के बारे में जो कुछ लिखा जा रहा है उसे एक स्थान पर देखा जा सकता है। प्रभाष जोशी को टैग रूप में ब्लागवाणी ने विशेष लिंक बनाया है जिसके कारण उनसे जुड़े पुराने लेख भी नत्थी हैं। बहुत दिन नहीं बीता जब उनका जन्मदिन बीता था। जन्मदिन को चार महीना भी नहीं बीता था कि प्रभाष जी नश्वर देह को छोड़कर चले गये। निधन के तीन घण्टे के अंदर ही ब्लाग जगत में पहली खबर कबाड़खाना पर आयी है। प्रभाष जोशी नहीं रहे। इसे खबर तो क्या सिर्फ सूचना कहें। सिर्फ एक लाइन। लेकिन 19 मिनट बाद एक लाइन की सूचना के बाद पूरी खबर किस्सागोई पर आ गयी. रात के 3.22 मिनट पर. राजीव मिश्रा लिखते हैं कि "अचानक रात के तीन बजे आफिस से खबर आयी कि प्रभाष जोशी नहीं रहे." और हां, तुरंत समीर लाल की टिप्पणी भी कि- हमारी विनम्र श्रद्धांजलि. कौन कहता है कि ब्लागर दिन रात सक्रिय नहीं रहते?
रात के तीन सवा तीन बजे की इन प्राथमिक सूचनाओं के बाद जैसे जैसे उजाला फैला प्रभाष जोशी के जाने की काली सूचना पर सबने अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की. पहली टिप्पणी दर्ज हुई अलबेला खत्री की. उन्होंने कहा - "उनके निधन से उस शम्मे उम्मीद की लौ मद्धिम हो गयी है जिसकी रोशनी में देश की पतोन्मुखी पत्रकारिता को सही दिशा दिखाकर उसकी दशा सुधारने की आस बंधी हुई थी." टिप्पणी के रूप में एक बार फिर ब्लाग जगत की श्रद्धांजलि. फिर हर्षवर्धन त्रिपाठी की टिप्पणी. हर्ष की टिप्पणी के पहले विनीत की विनती- "इन सबके वाबजूद प्रभाष जोशी को एक ऐसे कर्मठ पत्रकार के तौर पर जाना जाएगा जो कि अपनी जिदों को व्यावहारिक रुप देता है,नई पीढ़ी के लोगों को गलत या असहमत होने पर खुल्लम-खुल्ला चैलेंज करता है,अपनी बात ठसक के साथ रखता है और सक्रियता को पूजा और अराधना को पर्याय मानता है।" अब संजीत त्रिपाठी की श्रद्धांजलि. इन श्रद्धांजलियों के बीच रवीन्द्र रंजन का एक बड़ा ही महत्वपूर्ण सवाल- अब कौन करेगा कागद कारे? जवाब दिया अविनाश वाचस्पति ने- प्रभाष जोशी यहीं हैं और यही रहेंगे. लेकिन कैसे? उनकी देह गयी है, रूह नहीं.
इसके अलावा नारदमुनि का नमन, फिर संजय पटेल की सूचना कि दिल्ली जाकर भी प्रभाष जोशी कभी मालवा से दूर नहीं हुए. बिल्कुल सही है. दिल्ली में रहते हुए भी प्रभाष जोशी मालवा में रमे रहे और जब जहां जैसे मौका मिलता मालवा को याद जरूर करते. अंशु निराश हैं- प्रभाष जी के जाने से पत्रकारिता की वह पीढ़ी खत्म हो गयी जिस पर पत्रकारिता को नाज था. अंशु की निराशा बहुत भयंकर है. वे लिखते हैं- दर्जनों ऐसे हैं जो प्रभाष जोशी की पाठशाला से निकलकर संपादक बने हैं, लेकिन उनमें से एक भी ऐसा नहीं है जो प्रभाष जोशी की जगह ले सके. शायद अंशु सही कह रहे हैं. लेकिन अंशु से आप भी कहिए कि उम्मीद पर दुनिया कायम है. कमलकांत बुधकर भी आखिर कह ही रहे हैं कि हिन्दी पत्रकारिता में जमीनी जुड़ाव, सांस्कृतिक चेतना और बेलाग प्रखरता की चर्चा अब किस नाम से शुरू हुआ करेगी?
क्या आप कोई संकेत दे सकते हैं?......जवाब आप खोजिए लेकिन इरफान का कार्टून कह रहा है- चौथा खम्भा कमजोर हो गया. इसमें कोई दो राय नहीं.
संजयजी,
जवाब देंहटाएंचर्चामंडली में आपको देखकर अच्छा लग रहा है। प्रभाषजी का देहावसान हिन्दीजगत के लिए कैसी क्षति है इसे साफ महसूस किया जा सकता है...दूसरी ओर अंग्रेजी पत्रकारिता देश के आमजन से कितना दूर हे इसका पता अंग्रेजी अखबारों में प्रभाषजी की मृत्यु को दी गई तवज्जोह (के अभाव) से लगता है। HT को आठवें में फुटकल खबरों के कालम लायक लगे प्रभाषजी।
पत्रकारिता के लिजेन्ड थे प्रभाष जी और आज के समाचार पत्र में की गई अभिव्यक्तियां इसका प्रतीक है। नामवरजी ने कहा ही है कि अब कागद कारे नहीं कोरे रहेंगे:( ईशवर प्रभाष जोशी जी की आत्मा को शांति प्रदान करें॥
जवाब देंहटाएंसभी मैनपुरी वासीयों की ओर से जोशी जी को शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंएक दम सामयिक चर्चा है। प्रभाष जी का न रहना भारत की संघर्षशील जनता की क्षति है।
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जवाब देंहटाएंनिश्चय ही उनकी मिसाल अपने आप में बेमिसाल है,
ब्लॉगिंग से सहमति और तमाम आस लगा कर, उन्होंने इसकी शक्ति का अपरोक्ष अनुमोदन ही किया ।
एक माध्यम के रूप में ब्लॉगिंग की शक्ति को आँक कर भी वह इसे अपदस्थ करने को कभी तत्पर नहीं हुये ।
पर.... ?
पर, देखना यह है कि क्या हम उनकी अपेक्षाओं को श्रद्धाँजलि के दो शब्दों में ही निपटा देते हैं, या कभी उत्तरदायित्वपूर्ण लेखन की ओर भी उन्मुख होंगे ?
इरफ़ान भाई का कार्टून सटीक है , सँप्रति हम लोग तो वर्चस्व और अहँ की लड़ाई में व्यस्त हैं, गहन मुद्दों के लिये वक्त कहाँ ?
संतुलित सम सामयिक चर्चा
जवाब देंहटाएंनमन और विनम्र श्रद्धांजलि।
बी एस पाबला
प्रभाष जी को नमन और श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंचर्चा में फ़िर से आपको लिखता देखना बहुत अच्छा लग रहा है। प्रभाषजी पर जितनी स्वत:स्फ़ूर्त लेख ब्लाग जगत में लिखे गये उतने हाल-फ़िलहाल में शायद किसी एक व्यक्ति पर नहीं लिखे गये। उनमें से काफ़ी कुछ को समेटते हुये बेहतरीन चर्चा की आपने।
जवाब देंहटाएंप्रभास जी को विनम्र श्रद्धांजलि।
मैं तो यही कह रहा हूं
जवाब देंहटाएंयही कहता रहूंगा सदा
प्रभाष जोशी जी
यहीं हैं और
यही रहेंगे सदा।
पत्रकारिता के पुरोधा प्रभाष जी को नमन करते हुए
जवाब देंहटाएंअपने श्रद्धा-सुमन समर्पित करता हूँ!
मैने जब अस्सी के दशक में देश दुनिया के बारे में जानने के लिए आँखें खोली थीं तो दो व्यक्तियों की बातें मुझे सबसे सटीक और सम्यक जानकारी से भरी लगती थीं- राजेन्द्र माथुर और प्रभाष जोशी। राजेन्द्र जी के जाने के बाद प्रभाष जी रो पड़े थे, लेकिन सजग पत्रकारिता की मशाल अकेले ही जलाये रखने के अदम्य उत्साह से लबरेज वे जीवनपर्यन्त सक्रिय रहे। आखिरी क्षण तक उन्होंने देश की नब्ज पर हाथ बनाये रखा।
जवाब देंहटाएंउनके जाने के बाद चर्चा पैनेल्स में से निष्पक्ष आवाज कम हो जाएगी। सच में अब कागज कारे नहीं ‘कोरे’ ही रह जाएंगे।
प्रभाष जी को हमारी विनम्र और हार्दिक श्रद्धांजलि।
acchi charcha....
जवाब देंहटाएंप्रभाषजी का देहावसान हिन्दी के लिए EK AISEE क्षति है इसे साफ महसूस किया जा सकता है......
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