रविवार, अप्रैल 04, 2010

उड़े आकाश में ब्लॉगर, जमीं पे वो भी है इन्सां, कभी 'राम' ये चेहरा, कभी 'रहीम' मेरा चेहरा

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यूँ तो घनश्याम ठक्कर के मूल ग़ज़ल का मूल शेर ये है -

 

उडे आकाश में शायर, जमीं पे वो भी है इन्सां,

कभी 'घनश्याम' ये चेहरा, कभी 'ठक्कर' मेरा चेहरा

मगर इस उम्दा शेर की स्केलेबिलिटी भी बेहद उम्दा है. इस पोस्ट का शीर्षक भी इसी स्केलेबिलिटी का नतीजा है. कुछ प्रयोग आप भी करें!

 

घनश्याम ठक्कर बहुभाषी, बहुमुखी प्रतिभाशाली ब्लॉगर हैं. गुजराती, हिन्दी, अंग्रेज़ी में समान रूप से ब्लॉगिंग करते हैं. गीत-ग़ज़ल तो लिखते ही हैं, गायन वादन भी करते हैं.  उनके ब्लॉग पर बहुत सा मसाला है. टहल आएँ (हालांकि नेविगेशन थोड़ा अजीब सा, इरीटेटिंग है), आपका इतवार का दिन यकीनन खुशगवार गुजरेगा.  डाउनलोड के लिए भी बहुत सा मसाला है वहाँ. यहीं से  मैंने ओएसिस ठक्कर के ब्लॉग में लिंकित  हैलोवीन तथा मुड़ मुड़ के न देख रीमिक्स संगीत डाउनलोड कर सुना. इम्प्रेसिव संगीत!

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7 टिप्‍पणियां:

  1. उडे आकाश में शायर, जमीं पे वो भी है इन्सां,

    कभी 'घनश्याम' ये चेहरा, कभी 'ठक्कर' मेरा चेहरा


    achi panktiyon ke sath soch ahe aap ne


    http://kavyawani.blogspot.com/


    shekhar kumawat

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  2. संवेदनशील प्रस्तुति......
    http://laddoospeaks.blogspot.com/

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  3. अच्छा जिक्र किया आपनें,धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  4. सार्थक शब्दों के साथ अच्छी चर्चा, अभिनंदन।

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