गुरुवार, अप्रैल 22, 2010

...संकलकों के बहाने एक चर्चा

पिछले दिनों अदाजी ने एक के बाद एक ब्लागजगत के कुछ लोगों की नकारात्मक प्रवृत्तियों पर चोट करने की मंशा से ताबड़तोड़ लेख लिखे। शुरुआत इस पोस्ट से करके फ़िर या तो ब्लॉग वाणी इनपर कार्यवाही करे नहीं तो ब्लॉग वाणी का ही बहिष्कार होना चाहिए.... ब्लॉगवाणी से कल ब्लॉग वाणी से लगभग एक घंटे बात-चीत करने के बाद बाद मामला लगता है कुछ सुलट गया है।

एक भाई ने तो कहा है ब्‍लागवाणी चिटठाजगत से अनुरोघ नहीं अब उन्‍हें हुक्‍म देने का समय आ गया है इससे लगा कि अब बेचारे संकलकों की नौकरी गयी मंदी के जमाने में।

संकलक संचालक बेचारे की हालत जिमि दशनन्हि महुं जीभ बेचारी की होती है। वह अपनी रुचि और सेवाभाव के अनुसार ब्लॉग संकलक का काम करता है। नितान्त यांत्रिक तरीके से। पोस्टों को पाठक भाई लोग प्रचारित करते हैं। अच्छी पोस्टें प्रचारित होने पर उनको (ब्लॉग संकलक को) कोई क्रेडिट नहीं मिलता। नकारात्मक पोस्टों जब ऊपर आती हैं तब कहा जाता है कि ये तो बड़ा खराब काम कर रहा है संकलक। पोस्टें पाठक ऊपर नीचे लाता है , हड़काया बेचारा संकलक जाता है। खेत खायें गदहा, बांधे जायें कूकुर!

संकलक संचालन के लिये यह हमेशा दुविधा का काम होता है कि वे पोस्टों के आधार पर किसी का ब्लॉग बन्द कर दें। पता चला कुछ लोगों के कहने पर उसने कोई ब्लॉग बन्द किया तो दूसरे लोग कहने लगें ये तो अपनी मनमानी कर रहे हैं। मैंने ऐसा क्या गलत कहा/ ये तो उसका जबाब है/ संकलक तानाशाह है। संकलक संचालक हाय हाय।

इस मुद्दे पर मुझे स्मार्ट इंडियन और प्रवीण शाह की टिप्पणियां उचित लगी। उचित मतलब मेरी अपनी सोच के करीब! इसका मतलब यह नहीं कि बाकी लोगों की बातें अनुचित हैं।

एक अकेला संकलक संचालक कुछ नहीं कर सकता कि वे सबके ब्लॉग देखे और उसमें फ़िर अच्छे/खराब का निर्णय करके खराब को छांट दे। हरेक का नजरिया अलग-अलग होगा।

यह तो आम लोगों को देखना होगा कि कौन लोग ऐसे लोगों को महिमा मण्डित कर रहे हैं। बहिष्कार उनका करिये जो नकारात्मक प्रवृत्ति के लोगों को बढ़ावा दे रहे हैं। अपने आप ऐसे लोगों की ताकत कम होगी।

इसी संदर्भ में हिन्दी ब्लॉगिंग के सबसे ज्यादा समय तक चले विवादों में से एक के बारे में बताते चलें। ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत के पहले सबसे लोकप्रिय संकलक नारद होता था। ब्लॉग जगत पर एक-दो पोस्टों में एक ब्लॉगर ने संजय बेंगाणी के खिलाफ़ भद्दी टिप्पणी की। हम लोगों ने उस ब्लॉग को नारद से हटा दिया।

इसके बाद इत्ती-लानत मलानत हुई नारद की कि क्या कहने। तमाम लोगों ने नारद को तानाशाह कहा। अभिव्यक्ति का गला घोटने वाला कहा। यह भी कहा कि नारद की यह हरकत आपातकाल जैसी है। उस समय की सारी पोस्टें और कमेंट इकट्ठा करके फ़िर से देखने का मन है। अभी तो आप फ़िलहाल ये लेख देखिये। इससे आपको उस घटना का लब्बोलुआब मिल जायेगा- नारद पर ब्लाग का प्रतिबंध – अप्रिय हुआ लेकिन गलत नहीं हुआ

यह मेरी उस समय की सोच के अनुरूप है। आज भी मैं जब सोचता हूं कि अगर आज की स्थिति में होता तो क्या करता?

यह जानते और मानते हुये भी कि संकलक पर ब्लॉग बैन करने से कुछ फ़र्क नहीं पड़ता। जब तक लोग ऐसे लोगों को पढ़ना नहीं बन्द करते तब तक इनकी चांदी ही रहेगी। उनका विरोध भी/ही उनको चमक प्रदान करता है। लेकिन अगर मुझे अकेले निर्णय लेना होता तो शायद मैं फ़िरदौस के खिलाफ़ सस्ती बातें लिखने वाले ब्लॉग को अपने संकलक से हटाकर तब अगला काम करता।

आखिर इतिहास अपने को दोहराता है भी तो कोई डायलाग है। उसको भी तो तवज्जो देनी होगी न!

यह निर्णय लेने में यह बात शायद कहीं नहीं आती कि फ़िरदौस अच्छा लिखती हैं या खराब।

लेकिन मुझे यह भी पता है कि इससे कुछ होना-हवाना नहीं है। जिसको इस तरह की बातें करनी है वो दूसरा ब्लॉग बनाकर करेगा। ब्लॉग संकलक के मत्थे एक और आफ़त आयेगी कि वो तानाशाह है। लोग शिकायत करके उसकी जिन्दगी हराम कर देंगे।

संकलक को हड़काने के साथ-साथ देखिये कि आपके आसपास आपके चहेते ब्लॉगर क्या-क्या कर रहे हैं? कैसी-कैसी अनामी/बेनामी टिप्पणियां अपने ब्लागों पर इकट्ठा रहे हैं। उनका तारतम्य देखिये। गुटबाजी/नीचता और तमाम नकारात्मक चीजें हैं ब्लॉग जगत में। लेकिन इनको जगह कौन दे रहा है। यह कौन देखेगा? क्या यह भी कोई संकलक देखेगा?

संकलक और चर्चाओं का महत्व तब है जब ब्लॉग हैं। ब्लॉग के कारण संकलक हैं और उन्हीं के चलते चर्चायें होती हैं चर्चाओं और संकलकों से ब्लॉग नहीं लिखे जाते। ब्लॉग पर जैसा लिखा जायेगा वैसा ही तो दिखेगा संकलक में और कुछ हद तक चर्चाओं में।

ब्लॉग जगत को आम पाठक गति और दिशा देते हैं। सबसे ज्यादा ताकतवर आम पाठक होता है यहां। अगर पाठक नहीं चाहेगा तो कोई भी नकारात्मक पृवत्ति वाला ब्लॉग बहुत दिन तक चल नहीं सकता।

अदाजी की बात के बहाने इत्ती बातें कहीं। लेकिन यहां उनको किसी तरह से जबाब देने की मंशा से यह सब नहीं लिखा। उन्होंने जो हिम्मत दिखायी और पहल की वह काबिले तारीफ़ है।

मैं उसकी पहल और हिम्मत की तारीफ़ करता हूं- हां नहीं तो।

एक लाईना

  1. पूरी मधुशाला पी लो तुम. : सुबह से कुछ लिये नहीं हो लाला तुम

  2. कल ब्लॉग वाणी से लगभग एक घंटे मेरी बात-चीत हुई है... :हां नहीं तो

  3. या तो ब्लॉग वाणी इनपर कार्यवाही करे नहीं तो ब्लॉग वाणी का ही बहिष्कार होना चाहिए.... : कुछ न कुछ होकर रहेगा अब तो

  4. द जजमेंट डे, ...... एक फ़ैसला , ....एक आग्रह , .संकंलकों से ..और चंद बातें .... : करने के बाद आईये... दो कदम चलिए नयी वाली चिट्ठाचर्चा के साथ

  5. जंहा दिल खुशी से मिला मेरा वंही सर भी मैने झुका दिया! :बेचारे वो का करेंगे जिनकी गरदन दर्द के मारे झुकती नहीं

  6. सरकारी नौकरी में सफलता के सात नियम. :किसी भी एक नियम का पालन करने पर सातो नियमों का पुण्य लाभ की शर्तिया गारन्टी

  7. मेरा जूता ! :बदलने के दिन आ ही गये अब समझो

  8. उन बीते हुए दिनों में :वो पास आकर सिगरेट छीनकर फैंक देती है ।

  9. इक चूहे नें बिल्ली पाली : उस पर एक कविता लिख डाली

  10. मजहबी विवाद, साम्प्रदायिकता और ब्लॉग जगत!! : से बच कर निकलिये न!!

  11. जरा धीरे चलो मेरे भाई :धरती मैया पेट से है


और अंत में


फ़िलहाल इतना ही। आज चर्चा करने का दिन शिवकुमार मिश्रजी का है। वे शायद शाम तक चर्चा करेंगे। इसलिये मन किया तो यहां इत्ती बातें कर गया।

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29 टिप्‍पणियां:

  1. .
    .
    .
    आदरणीय अनूप शुक्ल जी,

    इस मुद्दे पर मुझे स्मार्ट इंडियन और दर्पण शाह की टिप्पणियां उचित लगी।

    क्षमा करिये कहीं आप मेरे बारे में तो नहीं लिख रहे क्योंकि वहाँ पर 'दर्पण शाह' की तो कोई टिप्पणी नहीं है।

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  2. @ माफ़ करना प्रवीण भाई! टाइपिंग की चूक के चलते प्रवीण की जगह दर्पण लिख गया था। गलती सही कर ली। चूक के लिये अफ़सोस है। ध्यान दिलाने के लिये शुक्रिया।

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  3. मुझे भी यही लगता है कि ऐसे नफ़रत फैलाने वाले ब्लॉगों को न पढ़ा जाये और न ही उन पर टिप्पणी की जाये. और मुझे ये लगता भी नहीं कि आम ब्लॉगर उन्हें पढ़ता होगा, पर उपेक्षा तब तक ठीक है जब तक वो लोग आपस में सिर-फुटौवल कर रहे हैं. अगर वो किसी और ब्लॉगर को उल्टा-सीधा कह रहे हैं, जो न तो उनसे सीधे मुखातिब है और न उनके ब्लॉग पर जाकर टिप्पणी करती है, तो बात बहुत आगे बढ़ चुकी होती है. तब सिर्फ़ उनको निगलेक्ट करने से काम नहीं चलेगा. कुछ और करना पड़ेगा. संविधान भी अभिव्यक्ति की आज़ादी पर युक्तियुक्त प्रतिबन्ध लगाता है...ये आज़ादी अल्टीमेट नहीं है.
    ये लोग आपस में एक-दूसरे के पोस्ट पर पसन्द का चटका लगाकर और टिप्पणी पर टिप्पणी करके उसे संकलकों की टॉप पोस्ट बना देते हैं. ये ठीक नहीं है. वैसे तो मैं मानती हूँ कि संकलक अपना काम करते हैं, उनसे इससे क्या मतलब कि कौन सी पोस्ट ऊपर जाती है और कौन सी नहीं. मुझे तो कभी कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि टॉप पर कौन सी पोस्ट है. पर जो नये ब्लॉगर संकलकों के माध्यम से ही ब्लॉग्स के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं, उन पर क्या असर पड़ेगा?
    खुद मेरे वर्डप्रेस ब्लॉग पर टिप्पणियाँ तीस से ऊपर जाती हैं और ब्लॉगवाणी पर दस से आगे कभी नहीं बढ़ती हैं, पिछले कुछ दिनों से इस बात पर ध्यान दे रही हूँ, जबसे घुघूती बासूती जी ने ये बात कही थी. पर मैंने कभी ब्लॉगवाणी से इसकी शिकायत नहीं की. लेकिन, जब बात एक निडर लेखिका के अपमान करने वालों के ब्लॉग को टॉप ब्लॉग बन जाने की आती है, तो ये चिन्ता की बात है.

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  4. अनुप शुक्‍ल जी कसम से इतनी अच्‍छी समीक्षा मैंने पता नहीं कितने दिनों के बाद पढी है, चर्चाओं की एक दो लाइन पढके ही निकल लेता हूँ पर आपने तो बाँध लिया,

    मुझे भी पता था कुछ होना-हवाना नहीं है। जिसको इस तरह की बातें करनी है वो दूसरा ब्लॉग बनाकर करेगा। ब्लॉग संकलक के मत्थे एक और आफ़त आयेगी कि वो तानाशाह है। लोग शिकायत करके उसकी जिन्दगी हराम कर देंगे।

    इधर से प्रवीण साहब को हमारा धन्‍यवाद, क्‍यूं? यह वह जाने या मैं जानूं या दो चार और भी जानें

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  5. सही मुद्दा छाया है इन दि‍नों।

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  6. प्रवीण साहब सहमत होना मजबूरी समझो, वह कहते हैं:
    यह बात मैं केवल फिरदौस जी या आपके लिये नहीं हम सभी के लिये कह रहा हूँ कि मात्र आपसे भिन्न मत रखने के कारण कोई असामाजिक, गद्दार व असभ्य नहीं हो जाता... ब्लॉगिंग दुतरफा संवाद है... हर मसले के दो पहलू होते हैं... अगर आप एक पहलू दिखाते हो तो दूसरे को भी हक है दूसरा पहलू दिखाने का... संकलकों से कुछ खास ब्लॉगरों को बाहर करवाने का जो प्रयास किया जा रहा है... उस पर इतना ही कहूँगा कि जिस दिन भी कोई संकलक ऐसा करने का निर्णय ले... उसी दिन मेरा ब्लॉग भी बाहर कर दे... एक पक्षीय संकलकों का कोई भविष्य नहीं है नई दुनिया में...

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  7. अगर किसी को संकलक से असुविधा हैं तो वो अपना ब्लॉग वहा से हटा कर अपना "विरोध " व्यक्त कर सकता हैं । ब्लोगवाणी के बारे मे ये कहना चाहुगी कि किसी भी पोस्ट कि सुचना अगर उनको दी जाती हैं कि उसमे व्यक्तिगत आक्षेप हैं तो वो पोस्ट हटा दी जाती हैं यानी संकलक पर नहीं दिखती पर ब्लॉग पर जा कर उसको पढ़ा जन सकता हैं । ब्लॉग संकलक पर दिखता रहता हैं लेकिन उक्त पोस्ट नहीं ।

    और ये कहना कि कुछ ब्लॉगर अनाम हो कर कमेन्ट करते हैं मात्र एक भ्रान्ति हैं क्युकी सब ब्लॉगर कहीं न कहीं गूगल कि अनाम कमेन्ट करने कि सुविधा का उपयोग या दुरूपयोग कर चुके हैं ।

    फिरदौस पहली महिला नहीं हैं जिन को इस प्रकार कि बातो से गुज़ारना पडा । मेरे तो माता पिता तक के ऊपर आक्षेप किये गए हैं और बहुत ही पुराने सम्मानित ब्लॉगर ने किया था पर क्या हुआ कुछ नहीं वो अपने सम्मान के साथ आज निष्क्रिय हैं !!!!!!!!!!!!!!

    नीलिमा और सुजाता के ऊपर कितनी व्यक्तिगत टिप्पणियाँ कि गयी हैं यहाँ तक कहा गया कि नीलिमा खुद नहीं लिखती मसिजीवी से लिखाती हैं याद हैं ना वो प्रकरण आप को अनूप ???

    सुजाता के लिये कहा गया " रेड लाइट एरिया बना लो " क्या वो भूल गये ???

    बात संकलक कि नहीं हैं बात हैं कि जो भी महिला "बोलेगी " और बिना किसी बेक उप टीम के बोलेगी उसके ऊपर आक्षेप जरुरी हैं ।

    ब्लोगवाणी के ऊपर" मुरख ज्ञान ब्लॉग पर आक्षेप लगा" , ब्लॉग वाणी बंद हुआ सबकी मान मनोवल के बाद खुला तो फिर उस पर आक्षेप लगना गलत हैं ।

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  8. इसमें सँकलकों का हाथ हो, तो उनकी बाँह मड़ोरिये ।
    धोबी से डर लगता है, तो अपार पोस्टों का बोझ उठाये सँकलक को पीटने का न्यौता, मुझे नहीं रुचा ।
    एक स्वचालित प्रक्रिया में ऎसा दखल सँभव नहीं.. और यदि उन्हें बैन कर दिया जाये, तो वह वेबदुनिया या किसी अन्य मँच पर प्रकट होंगे, यह कहते हुये कि.. " हिन्दी ब्लॉगिंग के सँकलक " एकाँगी हैं और मुखर अभिव्यक्ति के माध्यम में उन्हें इस्लामी होने के नाते कुचला जा रहा है । फिर नारा-ए-तदबीर.. इत्यादि इत्यादि ।
    इतिहास से सबक लें, कहीं सुना है कि एक राष्ट्र के अँदर से दूसरे राष्ट्र का जन्म हुआ हो ? सीमाओं की हदबन्दी नहीं, इस बिना का आबादी का बँटवारा हुआ हो ?
    उनको अपने कीचड़ में लिसड़ा हुआ पड़ा रहने दीजिये, सकल विश्व में वह स्वयँ ही अपने को नष्ट करने पर आमदा हैं ।
    हम क्यों कीचड़ से कीचड़ को धोने का प्रयास करें । लोहा अलबता लोहे को काटता है, आप कैसे घबड़ा गयीं, आप तो लौह-नारी हैं, अदा जी.. हाँ नहीं तो !


    पुनः
    मैं अपनी घोषणा के बावज़ूद पूरी बेशर्मी से इस टिप्पणी बक्से में मौज़ूद हूँ ।
    ब्लॉगिंग में एक अनिवार्य तत्व बेशर्मी भी है, समझीं के नहीं.. हाँ नहीं तो !

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  9. हत्त तेरे की जय हो,
    ऍप्रूवल, किसका.. सँकलक का, ( मुफ़्त के ) ब्लॉग के मालिक का, किसी ज्यूरी का, या छिन में भँगुर होने को तत्पर जनभावना का ?

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  10. सँदर्भ हेतु यह टिप्पणी देखें, और इनके तँज़ को पहचानें
    :बहिष्कार करने लायक ब्लॉग के नाम:

    स्वच्छ सन्देश: हिन्दोस्तान की आवाज़
    हमारी अन्जुमन
    वेद कुरान डॉ अनवर जमाल
    ;
    ;
    ;

    आप भी कुछ नाम सुझाईये या एक आइडिया है क्यूँ न सभी मुस्लिम ब्लॉगर के ब्लॉग को प्रतिबंधित कर दिया जाये सिवाय महफूज़, फिरदौस और मेरे ब्लॉग को

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  11. सुना था ...नैतिकतायो का विभाजन नहीं होता .....वे किसी पाले में जाकर सूरते नहीं बदलती ......फ्लेशबैक का बटन दाबने पर कई लोगो की निजतायो पर भद्दे ओर अक्षम्य हमले देखता हूँ ओर याद करता हूँ के वे कौन लोग थे ....???????बदली सूरतो में हमला करने लोग आज भी मौजूद है ......दो लडकिया याद आती है.... ..उनकी विवशता ओर फ्रस्ट्रेशन भी... ......उनमे से एक ने ब्लोगिंग को लगभग अलविदा सा कह दिया है ...उन्हें गरियाने आज भी यही है .....सुजाता जी ओर नीलिमा जी का जिक्र डॉ अमर कुमार ने कर ही दिया है .....वापस कुछ याद करता हूँ....... कोई भी आपकी पोस्ट पे आपकी कसीदे लिख कर आपका हो जाता है .....भले ही वो कही भी कुछ भी करे आप आँख मूँद लेते है ये "सलेक्टिव नैतिकता " है ..लोग जल्दी ही पिछली बाते भूल जाते है ......ये चीजे जब लगातार चलती है तो आप उब जाते है ......आपका की बोर्ड फिर टी.वी के रिमोट सरीखा हो जाता है ...जो देखना है देखो....यूँ भी पिछली किसी चर्चा में नीरज रोहिल्ला ने एक सटीक टिप्पणी की थी .नारी मुद्दे को लेकर ..........

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  12. भले ही वो कही भी कुछ भी करे आप आँख मूँद लेते है ये "सलेक्टिव नैतिकता " है

    टिपण्णी टेकन फ्रॉम अनुराग जी

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  13. 'ये चीजे जब लगातार चलती है तो आप उब जाते है ......आपका की बोर्ड फिर टी.वी के रिमोट सरीखा हो जाता है ...जो देखना है देखो.'--ये पंक्तियाँ साभार Dr.अनुराग जी.
    ****
    यह जानते और मानते हुये भी कि संकलक पर ब्लॉग बैन करने से कुछ फ़र्क नहीं पड़ता। जब तक लोग ऐसे लोगों को पढ़ना नहीं बन्द करते तब तक इनकी चांदी ही रहेगी--ये पंक्तियाँ साभार Anoop Shukl ji.
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  14. आपसे सहमत

    जिसे बहन कहते हैं, उसी के विरुद्ध घृणित कमेन्ट करते हैं. जिसके ऐसे भाई हों उसे दुश्मनों की क्या ज़रूरत है?

    Dr. Ayaz ahmad , EJAZ AHMAD IDREESI, zeashan zaidi, Aslam Qasmi ने जगह-जगह जाकर घृणित कमेन्ट किए, जो इनके ब्लोगों पर देखे जा सकते हैं.

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  15. @ डॉ. अनुराग.
    आज तक मैंने अगर कुछ नहीं कहा है तो इसका अर्थ यह नहीं लेना चाहिए कि मैं 'सेलेक्टिवे नैतिकता' की बीमारी से ग्रस्त हूँ....ये बार-बार मुझ पर जो आरोप लगते हैं अगर इसका मैं सही तरीके से जवाब दे दूँ तो किसी का बहुत ज्यादा नुक्सान हो जाएगा....इसलिए मेरी ख़ामोशी को मेरी कमजोरी न समझा जाए....जिस प्रकरण से आप अपना मन मलीन किये हुए हैं, और आप सोचते हैं मैंने चुप्पी साध ली थी वो चुप्पी साधने वाली ही बात थी..क्योंकि वो एक सामजिक मसला नहीं तीन लोगों के बीच का व्यक्तिगत मसला था....मेरे कुछ कहने का प्रश्न ही नहीं उठता है अगर मय सबूत मुझे कुछ बताया जाता है...वो भी दो अलग-अलग व्यक्तियों से एक जैसे सबूत....
    इसलिए आज इस बारे में मुझ पर तंज आखरी बार .होनी चाहिए....क्यूंकि न मैं इस प्रकरण में पात्र हूँ न ही दर्शक....हाँ अगर आप सही बात जानना चाहते हों तो दूसरे रास्ते हैं....

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  16. अव्वल तो लोग ऐसे ब्लॉग्स पर जायें ही नहीं , जहां धर्म को मुद्दा बनाया गया हो, और यदि जायें भी तो वहां आग में घी का का न करें. ऐसी पोस्टों नज़रान्दाज़ करना ही ठीक होगा, वरना जब तक इन्हें तवज्जो मिलेगी, तब तक ये नये-नये मुद्दे उखाड़ते रहेंगे.

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  17. सार्थक शब्दों के साथ अच्छी चर्चा, अभिनंदन।
    अव्वल तो लोग ऐसे ब्लॉग्स पर जायें ही नहीं , जहां धर्म को मुद्दा बनाया गया हो, और यदि जायें भी तो वहां आग में घी का का न करें. ऐसी पोस्टों नज़रान्दाज़ करना ही ठीक होगा, वरना जब तक इन्हें तवज्जो मिलेगी, तब तक ये नये-नये मुद्दे उखाड़ते रहेंगे.---- ये पंक्तियां साभार वंदना अवस्थी दुबे जी।

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  18. मेरे ख्याल से बद से भला त्याग है.

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  19. त्‍याग राग ही अपनाया जाना चाहिए

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  20. चलो इसी बहाने एक नया मुहावरा शामिल हुआ हमारे कुटिल-कोश मे..’खेत खायें गदहा, बांधे जायें कूकुर’..अब यथास्थान इसे प्रयोग किया जायेगा :-)....वैसे संकलक बेचारे ’मुफ़्त हुए बदनाम’ वाली कैटेगरी मे आते हैं..ब्लॉगिंग के असली ’एंजल्स एंड डेमन्स’ तो पाठक ही हैं..सो हम सब हैं..खेत खाते हुए..सो ऐसा ही चलेगा सब..सुंदर चर्चा!

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  21. @mrs Ada.....इस मंच पर इस तरह की उबाऊ बहसे मुझे बहुत अपील नहीं करती .अलबत्ता ...इस मंच के में "मुद्दे की हाइज़ेकीकरण प्रक्रिया " सी लगती है.....परन्तु चूँकि आपने मुझे संबोधित किया है इसलिए आखिरी बार इस विषय पर यहाँ कहूँगा ......
    आपकी त्वरित प्रतिक्रिया ने मुझे थोडा हैरान किया ..क्युकी मेरा संबोधन बहुत से लोगो से था ....पर तमाम कमियों के बावजूद नेट के साथ एक बेहद अच्छी बात है ...खंगालने पर पिछला सब कुछ ज्यू का त्यु रख देता है .कही बायस नहीं होता ......
    वैसी मेरी आपत्ति की कई वजहे थी....ओर ...इस हाईलाइटर समाज में जहाँ हर आदमी अपने हाथ में एक ग्लो साइन बोर्ड लिए खड़ा है ..विज्ञापित सा......टिप्पणी एक ऐसी ताकत बनकर उभरी है के अच्छे अच्छे लोग बेचारे इसके बेक फायर के करण अक्सर कमोबेश अपने सरोकार सीमित रखते है ... ओर .कुछ जब इस आभासी दुनिया में कुछ साल गुजार लेते है जान लेते है ...के कम्प्यूटरी दुनिया के पीछे भी हाड मांस के वही इंसान है जो आस पड़ोस में है .....इसलिए अक्सर अपने रिमोट की सेल दुरस्त करके रखते है ......
    तकरीबन दो साल एक लड़की को कुछ ऐसे हालातो से गुजरना पड़ा के लोगो ने आखिर में उसके होने पर सवाल उठा दिए .....एक साहब ने घोषणा कर दी के वे लड़की नहीं है फर्जी आई डी है ...जबकि मोहतरमा जीती जागती है ...ओर ब्लॉग जगत के कई लोगो से पर्सनली वाकिफ थी......आख़िरकार ख़ामोशी इख़्तियार कर गयी....अब कुछ दिन पहले वे नज़र आयी...वैसे तो फेस बुक पर वे तब से है.....पर ब्लॉग जगत से उब गयी......मै उनका जिक्र कर रहा था .मेरी याददाश्त में तब शायद आप ब्लॉग जगत में नहीं थी......आपको क्यों लगा ये आप पर तंज था ?नहीं समझ पाया ......वो भी एक मुस्लिम लड़की है.......सनद के लिए कंप्यूटर को खंगाले ......
    मेरी राय में जो चीज़े गलत होती है ..वे गलत होती है उनकी अलग व्याख्या नहीं होती .......यदि कोई व्यक्ति किसी बेनामी आई डी से दो दिन पहले पैदा हुए ब्लॉग से किसी व्यक्ति विशेष के ऊपर भद्दे ओर निहायत ही व्यक्तिगत स्तर पर उतरी पोस्ट का जाकर समर्थन करते है तो मुआफ कीजिये वे भी उसके चरित्र हनन में भागीदार है .... मेरी आपत्ति उन लोगो में थी.....
    खैर चीजे बहुत है

    कोई भी आपकी पोस्ट पे आपकी कसीदे लिख कर आपका हो जाता है .....भले ही वो कही भी कुछ भी करे आप आँख मूँद लेते है ये "सलेक्टिव नैतिकता " है ...मै अपनी इस सोच पर कायम हूँ....

    पुनश्च.......आज की एक नए पैदा हुए ब्लॉग ने एक महिला को निशाना बनाया है ....ओर ब्लोग्वानी पर वो टॉप पोस्टो में से एक है...अजीब बात है न के इग्नोर करना आज की दुनिया के पैमाने पर समझदारी है.....

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  22. क्यों?


    ब्लॉगर भी ज़हर फैला रहा है!
    जो बोया है वो काटा जा रहा है.

    धरम-मज़हब का धारण नाम करके ,
    भले लोगों को क्यों भरमा रहा है.

    अदावत, दुश्मनी माज़ी की बाते,
    इसे फिर आज क्यों दोहरा रहा है.

    सहिष्णु बन भलाई है इसी में,
    क्रोधी ख़ुद को ही झुलसा रहा है.

    हिफाज़त कर वतन की ख़ैर इसमें,
    तू बन के बम, क्यों फूटा जा रहा है.

    न भगवा ही बुरा,न सब्ज़-ओ-अहमर*,
    ये रंगों में क्यों बाँटा जा रहा है.

    बड़ा अल्लाह , कहे भगवान्, कोई;
    क्यूँ इक को दो बनाया जा रहा है.

    मिले तो दिल, खिले तो फूल जैसे,
    मैरा तो बस यही अरमाँ रहा है.

    *अहमर=लाल
    -मंसूर अली हाश्मी
    http://aatm-manthan.com

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  23. एकदम सत्‍य। विवादित ब्‍लाग पर जाना ही क्‍यूं।

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  24. ......की दाढ़ी में तिनका....लेकिन यहाँ तो दाढ़ी ही नहीं है

    अनुराग जी ने बड़ी अच्छी बात कही -'सेलेक्टिवे नैतिकता'
    ये वही मोहतरमा हैं ..जिन्होंने एक पोस्ट लिखी थी जिसमें चिटठा चर्चा करने वालों को पानी पी-पीकर कोसा गया था कि यहाँ बहुतों के साथ अन्याय हो रहा है, पक्षपात हो रहा है, फिर अचानक उनकी निगाह में सब सही हो गया, उनकी पोस्ट की भी यदा-कदा चर्चा होने लगी और वो बाकायदा रोज यहाँ ड्यूटी बजाने लगीं..... अपना काम बनता ...भाड़ में जाए जनता ...यही है 'सेलेक्टिवे नैतिकता'
    आप कहते हैं- 'नैतिकतायो का विभाजन नहीं होता'
    यहाँ तो आये दिन ये विभाजन देखने को मिलता है

    इन जैसे यहाँ कुछ लोगों ने यहाँ एक नया ट्रेंड शुरू किया हुआ है, गिरोहबंदी का. ये अपने लोगों की हर पोस्ट पर जाकर कसीदे पढ़ें और फिर वही लोग इनके यहाँ ड्यूटी बजाएं. इनके लिए अच्छा लेखन कोई मायने नहीं रखता

    जवाब देंहटाएं

  25. डा. अनुराग के तर्कों से पूर्णतया सहमत !
    लगता है कि, उनको अपने गुट में शामिल कर लेना ब्लॉगजगत के लिये श्रेयस्कर रहेगा :)
    अपने ब्लॉगजगत को ऎसे मुखर प्रवक्ताओं की सख़्त आवश्यकता है, जो गँद फैलने को लगातार हतोत्साहित करते रहें ।
    जिसको अनुराग " सेलेक्टिव-नैतिकता " के रूप में प्रक्षेपित कर रहे हैं, अँग्रेज़ी कमजोर होने से मैं उसीको " सुविधापरक आभिजात्य " कहता आया हूँ । नाक पर रूमाल रख लेना, या गँदगी देख हत्थे से उखड़ जाना किसी भी प्रकार के गँद का इलाज़ नहीं है ।
    मेरा पड़ोसी स्वयँ ही दूसरे को कचरा फैलाते देखता रहता है, सँम्बन्ध न बिगाड़ने की गरज़ से उन्हें कुछ नहीं कहता । पर यदि कचरे का कोई टुकड़ा हवा के वेग से उनके दरवाज़े फड़फड़ाने लगता है, तो वह नगरपालिका पर चिल्लाने लग पड़ते हैं ।
    क्या यह स्थिति एग्रीगेटर पर बरसने से मेल नहीं खाती, जहाँ स्वयँ कई ब्लॉगर ही हवा के रुख के हिसाब से फड़फड़ाने को तत्पर रहते हों । खेद है, खेद है, खेद है !

    एक बात और : फ़िरदौस के स्वयँ को बहन बता कर भावनात्मक उबाल पैदा करने का दोषी भले ही करार न किया जाये,
    पर यह वो भी जानती होंगी कि शरीयत और हदीस दोनों ही खून और दूध के तफ़रके पर ही बहन के रिश्ते की तसदीक करने की हिमायत करती हैं । बोले तो दोनों के रगों में एक ही पिता ( आदमी ) का खून न दौड़ रहा हो, दोनों ने कभी एक ही माँ ( औरत ) का स्तनपान न किया हो, इस नाते उनकी अपील ब्लॉगजगत को बरगलाने से कुछ अलग नहीं है ।
    बकिया नज़रिया अपना अपना !

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  26. .
    .
    .
    @ डॉ० अनुराग जी व डॉ० अमर कुमार जी,

    Both of you have hit the nail right on the head.

    बधाई इस साफगोई के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  27. # द जजमेंट डे, ...... एक फ़ैसला , ....एक आग्रह , .संकंलकों से ..और चंद बातें .... : करने के बाद आईये...


    बहुत सुंदर चर्चा रही अनूप जी । देखिए आपने कहा था कि करने के बाद आईये ...हम करके ही आए हैं, अभी अभी किया है और अब आ गए हैं ..ठीक किए न :)

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  28. "नारद" के समय महसूस किया गया था कि प्रतिबन्ध से यह सब नहीं रुकेगा, सिर्फ सामाजिक बहिष्कार ही ऐसे लोगों को हतोत्साहित कर सकता है।

    एक समय जहाँ "नारद" था आज वहाँ "ब्लॉगवाणी" है। उस समय जो लोग नारद की आलोचना में लगे थे और ब्लॉगवाणी को नये मसीहा के रुप में पेश कर रहे थे, उम्मीद है वे आज नारद का दर्द समझ रहे होंगे।

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