शनिवार, अप्रैल 24, 2010

मिले बस चैन दिन का और गहरी नीद रातों की

बहुत दिनों बाद आज चर्चा करने की सोची. एक बार के लिए मन में विचार आया कि बहुत दिन बीत गए हैं, चर्चा कैसे की जाती है पता नहीं वो याद है या नहीं? फिर कहीं से सूचना मिली कि आदमी अगर एकबार साइकिल चला ले या फिर एक बार चर्चा कर ले तो फिर उसे भूल नहीं सकता. इस सूचना पर विश्वास करके हम चर्चा करने बैठ गए.

सेंसिटिव और जिम्मेदार ब्लॉगर आजकल ब्लॉग जगत में होने वाली धार्मिक हलचलों से बहुत दुखी हैं. धार्मिक हलचलों का मतलब यह मत समझिएगा कि लोग क्रिकेट पर बात कर रहे हैं क्योंकि क्रिकेट को हमारे देश में धर्म की तरह लिया जाता है. इसका सीधा-सीधा मतलब है कि लोग धर्म-धर्म खेल रहे हैं. ठीक वैसे ही जैसे बड़े लोग आईपीएल-आईपीएल खेल रहे हैं. अब चूंकि ऐसे लेखों पर ढेर सारी टिप्पणियां आती हैं तो सब ऐसे लेखों के बारे में जानते ही हैं. अब ऐसे में इन लेखों की क्या चर्चा करें? लोग कहेंगे अरे वही सब तो बता रहे हो जो हम पहले से जानते हैं.

ऐसे में चलिए आज केवल ग़ज़ल और ग़ज़ल के एक ब्लॉग की चर्चा करते हैं. जी हाँ, चन्द्रभान भारद्वाज जी के ब्लॉग की बात.

भरद्वाज जी अपने प्रोफाइल में लिखते हैं;

"अभी तक मेरे चार ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। (१) पगडंडियाँ (२)शीशे की किरचें (३)चिनगारियाँ (४)हवा आवाज़ देती है. पाँच ग़ज़ल संग्रहों में गज़लें सम्मिलित हैं। "


उनकी आज की ग़ज़ल, जो उनके ब्लॉग पर प्रकाशित की गई है, उसके कुछ अशआर पढ़िए;

रहा खुद पर भरोसा या रहा है सिर्फ ईश्वर पर
सिवा इसके हमारे पास ताकत भी नहीं कोई

मिले बस चैन दिन का और गहरी नीद रातों की
हमें अतिरिक्त इसके और चाहत भी नहीं कोई


कहते हैं हिंदी में ग़ज़ल लिखना आसान नहीं लेकिन भारद्वाज जी के लिए यह बिलकुल आसान सा लगता है. ये शेर पढ़िए;

करे जो दूध का तो दूध पानी का करे पानी
बिके सब हंस अब उनमें दयानत भी नहीं कोई

उनकी एक और ग़ज़ल के अशार पढ़िए. वे लिखते हैं;

तमन्ना थी कि हम उनकी नज़र में खास बन जाते
कभी उनके लिए धरती कभी आकाश बन जाते

अगर वे प्यास होते तो ह्रदय की तृप्ति बनते हम
अगर वे तृप्ति होते तो अधर की प्यास बन जाते


भारद्वाज जी साल २००७ से ब्लागिंग कर रहे हैं. शुरू-शुरू में वे देवनागरी में नहीं लिखते थे. उनकी लिखी हुई ये पोस्ट पढ़िए;

Jindagi men bas vijaya ki lalsayen khojiye,
Har men bhi jeet ki sambhavnayen khojiye;
Bhavanaon ke diye men tel shuchita ka bharo,
Chetna ki lo lagan ki vartikayen khojiye

देवनागरी में लिखी हुई उनकी पहली पोस्ट ३ अक्टूबर २००८ की है. वे लिखते हैं;
सजा किसको है किया किसका है;
लकीरों में जो लिखा किसका है

जड़ें थीं मेरी तना था उसका ,
फलों पर फिर हक़ बता किसका है

जरा ये पढ़िए;

चेतनाएं दांव पर हैं;
भावनाएं दांव पर हैं

पंगु है साहित्य जग का,
सर्जनाएं दांव पर हैं

मौन मन्दिर और मस्जिद,
प्रार्थनाएं दांव पर हैं

और ये;

समय का सितारा जिधर बोलता है;
उसी ओर सारा शहर बोलता है

समझाने लगा जो समय की नजाकत,
शहर की हवा देख कर बोलता है

गवाही वहां कत्ल की कौन देगा,
जहाँ चाकुओं का असर बोलता है


और उनकी ये ग़ज़ल पढ़िए. ज़िन्दगी जीने का तरीका;

है ज़हर पर मानकर अमृत उसे पीना यहाँ;
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी की ही तरह जीना यहाँ।

उन हवाओं को वसीयत सौंप दी है वक्त ने,
जिनने खुलकर साँस लेने का भी हक छीना यहाँ।

आँख में रखना नमी कुछ और होठों पर हँसी,
क्या पता पत्थर बने कब फूल सा सीना यहाँ।

एक बार उनके ब्लॉग पर जाकर पढ़िए तो सही. एक से बढ़कर एक बढ़िया ग़ज़ल पढने को मिलेगी. कहाँ धर्म-धर्म खेल रहे हैं? और सेंसिटिव लोग इनलोगों को झेल रहे हैं. बहुत कुछ अच्छा पड़ा है ब्लॉग पर पढने के लिए. हाँ, टिप्पणी मिलेगी अगर इस आशा में पढने जायेंगे तो न जाना ही ठीक होगा. अगर बढ़िया कुछ पढने का मन है तो ज़रूर जाइए. हिंदी ब्लॉग जगत के चंद अच्छे ब्लॉग में भारद्वाज जी का ब्लॉग है.

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25 टिप्‍पणियां:

  1. aaj hi gaya tha..padh ke aayaa...waqi khubsurat ghazlen likhte hain bhardwaj ji...

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  2. अरे वाह.. ये तो जबरदस्त चर्चा.. लेकिन जबरदस्त चर्चाये कहा टिकी है :)

    एक अच्छे ब्लाग से परिचय करवाने के लिये धन्यवाद... और शिव जी सचिन काफ़ी दिन न खेले तब भी वो सेच्युरी मारना नही भूलता..

    बहुत अच्छा लगा पढकर..

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  3. चेतनाएं दांव पर हैं;
    भावनाएं दांव पर हैं

    पंगु है साहित्य जग का,
    सर्जनाएं दांव पर हैं

    मौन मन्दिर और मस्जिद,
    प्रार्थनाएं दांव पर हैं
    ...बहुत खूब... लाजवाब लेखन ...लाजवाब प्रस्तुति ...अदभुत चर्चा ...बधाईंया!!!

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  4. पंकज सही टिपियाये.. सचिन वाली बात..

    भारद्वाज जी की गजलो का इम्पैक्ट तो शानदार है..

    ये कमाल का शेर है..
    अगर वे प्यास होते तो ह्रदय की तृप्ति बनते हम
    अगर वे तृप्ति होते तो अधर की प्यास बन जाते


    आज की चर्चा तो वाकई शानदार रही..

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  5. कुश सही टिपियाये, सचिन वाली बात :)

    मैं कुश की बात से सहमत हूँ

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  6. भारद्वाज जी की गजलें पढ़कर आनंद आ गया। पर कुछ संक्षि‍प्‍त-सी रही चर्चा।

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  7. एक बेहतरीन ब्लॉग को जानना सुखकर है !
    सुन्दर चर्चा !

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  8. मुझे मालुम नहीं इस विधा का, पर गज़ल में, अमूमन एक तरह का नेगेटिविज्म क्यों होता है।
    एक बच्चे की लोरी की तरह प्रभाव नहीं डाल सकती गज़ल?! या यह बुद्धिमानों की चीज है?

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  9. शीब भाई ( कलकतिया उच्चारण )
    आप बड़े वो हो, यह क्या... ऎसी साफ़-सुथरी चर्चा इतनी सफ़ाई से कर के निवृत्त हो लिये ?
    आज से आपको ’ सर्फ़ एक्सेल ’ चर्चाकार घोषित किया जाता है ।
    कुछ नहीं, तो आईपिएल्वा तो कहीं नहीं गया है ।
    अब जैसे ’ बाँके वीर लड़इआ ठल्ले टिप्पणीकार ’ कहाँ किनारा ढूँढ़ें ?
    न विवाद, न प्रमाद, न अपवाद.. हुँह, आज की शाम बेमज़ा होय गयी !
    ( इसमें अपने स्वादानुसार कोई स्माइली भी बुरक दें, तो उत्तम ! )

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  10. लम्बे अर्से से टिप्पणी देना जैसे भूल ही गए थे आज आपकी चर्चा ने हमें फिर से याद दिला दिया.शुक्रिया..खूबसूरत चर्चा

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  11. भरद्वाज जी के ग़ज़लों के ब्लॉग के बारे में चर्चा पढ़ी.उनकी गज़लें बहुत ही अच्छी होती हैं.
    २००९ में पोस्ट मेरी एक ' बेनाम ग़ज़ल 'को उन्होंने ही दुरुस्त किया था.उस से ऐसा लगता है कि वे पढ़ते सब को होंगे लेकिन अपनी राय हर जगह नहीं देते हैं शायद.
    उन्हीं के जैसे और भी बहुत अच्छा लिखने वाले 'यहाँ की फजूल उठा पटक से परे 'अपना महत्पूर्ण योगदान ख़ामोशी से हिंदी ब्लॉग्गिंग को दिए जा रहे हैं.इनमें कुछ नाम मुझे जैसे अलोक पुराणिक जी,दिनेश दधिची जी आदि के भी याद आते हैं .हम उनके आभारी रहेंगे.

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  12. चिटठा चर्चा में आप का यह प्रयोग और प्रयास बहुत ही अच्छा है इस प्रकार के बेहतरीन चिट्ठों के बारे में दी गयी जानकारी ,[specially नए या अनजान पाठकों के लिए] उपयोगी होगी.

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  13. मुझे भी चर्चा का ये ढंग बहुत अच्छा लगा...चन्द्रभान भारद्वाज जी के विषय में, उनकी ग़ज़लों के विषय में अच्छे लिंक मिले. ये शेर खासकर--
    "रहा खुद पर भरोसा या रहा है सिर्फ ईश्वर पर
    सिवा इसके हमारे पास ताकत भी नहीं कोई "
    ---मैं पंकज, कुश, सागर और अल्पना जी से सहमत हूँ.

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  14. ब्लॉग जगत के कम जाने हुए मगर खुबसूरत कोनों पर रोशनी डालने का आपका यह प्रयास आवश्यक भी है और बेहद सराहनीय भी..बधाई हो!

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  15. ओह और यह तुरंत प्रकाशित भी हो गयी..वाह :-)

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  16. सूचना पक्का अनूप जी से मिली होगी ।

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  17. """"सेंसिटिव और जिम्मेदार ब्लॉगर आजकल ब्लॉग जगत में होने वाली धार्मिक हलचलों से बहुत दुखी हैं. धार्मिक हलचलों का मतलब यह मत समझिएगा कि लोग क्रिकेट पर बात कर रहे हैं क्योंकि क्रिकेट को हमारे देश में धर्म की तरह लिया जाता है. इसका सीधा-सीधा मतलब है कि लोग धर्म-धर्म खेल रहे हैं. ठीक वैसे ही जैसे बड़े लोग आईपीएल-आईपीएल खेल रहे हैं"""""..

    बहुत सटीक विचार सहमत हूँ .... बढ़िया चर्चा ..आभार.

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  18. एक नए ब्लॉग से परिचय का शुक्रिया मिश्रा जी

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  19. सुन्दर चर्चा. बढिया लिंक. आभार.

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