रविवार, जून 14, 2009

टैगलाइन चर्चा 2

tagline charcha

 

तो, जैसा कि पिछले हफ़्ते वादा था, प्रस्तुत है टैगलाइन चर्चा - दूसरा व अंतिम भाग. पर पहले, थोड़ा इतिहास.

समीर जी से टैगलाइन का दूसरा भाग लिखने का निवेदन किया  गया तो हत्थे से उखड़ गए. बोले, ये कोई होरियाना मौसम तो है नहीं. लोग बाग़ बुरा मान गए तो बुरा न मानो होली है भी नहीं कह पाएंगे. बारंबार निवेदन करने पर इस शर्त पर तैयार हुए कि हमारी भी जुगल-बंदी रहेगी – लोगों का गरियाना अकेले क्यों झेलें? तो लीजिए पेश है टैगलाइन जुगलबंदी - बुरा न मानो, क्या हुआ कि होली नहीं है!

आदित्य:

मेरे बारे मे चटपटी खबरें (The Indian Baby Blogger)

मीर-कभी हमारे बारे में भी कुछ चटपटी खबर सुनाओ, you Indian baby. :)

रवि: सुनाओ सुनाओ, ये तो कनेडियन बेबी हैं..इनकी खबर तो चटपटी बनेगी ही!!

 

पराया देश 

मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया

समीर: बाकी सब क्या जलूस लेकर निकले थे जो इत्ता जोर से चिल्ला रहे हैं..

रवि: इत्ते में ही कारवाँ-बड़े संतोषी जीव हैं आप!!

 

मोहन का मन  

मुझे लिखने का बहुत शौक है लेकिन लिखना नहीं आता हिंदी ब्लाग् पढे, तो लगा यह है वो जगह जहां खुल सकता है मोहन का मन...

मीर: क्या समझें कि आपको लगा यहाँ किसी को लिखना नहीं आता फिर भी लिख रहे हैं.इसलिये आपको कान्फिडेन्स आ गया.

रवि: शौक तो हमारे भी कई ऐसे है जो हमें नहीं आता-मसलन गाना गाना-हिन्दी ब्लॉगजगत ने ही हमें भी यह सहूलियत दी.

 

मुझे कुछ कहना है

कुछ बातें हैं जिन्हें कहना है...

समीर: ओह, येस, येस, सर्टेनली प्लीज...

रवि:  बट देयर आलवेज वेयर मोर दैट केनॉट बी सैड...?

 

कवि योगेन्द्र मौदगिल

-व्यंग्य-कवि एवं ग़ज़लकार

समीर- ओह!! सॉरी!! पढ़्कर तो लगा था विरह गीतकार हैं...

रवि: और हम कहानीकार समझ रहे थे..अच्छा किया..बता दिया.

 

 

 

नीरज

ायरी मेरी तुम्हारे जिक्र से मोगरे की डाली हो गई...

समीर: हमारी वाली यहीं से शुरु कर लिखती है कि शायरी मेरी तुम्हारे जिक्र से बजबजाती नाली हो गई.. (बहर में तो है न?)

रवि: तसव्वुर अपना अपना!!

 

क्वचिदन्यतोअपि..........!

यहाँ इस ब्लॉग पर मैं उन्मुक्त होकर मुक्त और स्फुट विचार व्यक्त कर सकूंगा ,अस्तु ....

मीर: इसी उन्मुक्त और मुक्त और स्फुट विचार ने कैसा लफड़ा मचवाया था, भूले तो नहीं हैं.

रवि: भूल जायेंगे तो फिर याद दिलाया जायेगा. :)

 

वो कुछ पल

दुनिया के रंग सब कच्चे हैं, इन्हें उतर जाने दो....

समीर: और, ब्लॉग रंग चढ़ जाने दो...

रवि: बेरंगी दुनिया आपको ही मुबारक हो…

 

 

अनवरत 

 हम बतलाएँ दुनिया वालों, क्या-क्या देखा है हमने।

 समीर: बिना देखे मत ठेलने लग जाईयेगा जैसा बाकी लोग कर रहे हैं.

रवि: सारा कुछ न बताने लगियेगा अति उत्साह में.

 

कुछ भी...कभी भी.. 

ये मन जो कुछ भी ...कभी भी कहता ही रहता है उसे आपके सामने रख दिया है...

समीर: कुछ तो बचाये रखें अपने लिए..काम आयेगा.

रवि: कुछ भी..कभी भी?? तभी सोचते थे कि क्या लिख रहे हैं आखिर?

 

 

ताऊ डॉट इन 

रामपुरिया का हरियाणवी ताऊनामा

समीर: कपड़े का पजामा वैसे ही जैसे हरियाणवी ताऊनामा--अरे, ताऊनामा तो हरियाणवी के सिवा होवे ही कहाँ है!!

रवि: मन्ने तो पहेली भी खालिस हरयाणवी ही लगे है - कड़क.

 

 

कुछ इधर की, कुछ उधर की

कुछ कल्पनाऐं, थोड़ा चिन्तन ओर बहुत सारी बकवास......बस यही कुछ

समीर: हर पोस्ट के साथ लेबल लगाया करिये कि यह कल्पना है, यह चिन्तन और यह बकवास...बहुत सारी के चक्कर में हर बार कन्फ्यूज हो जाते हैं.

रवि: बकवास में भी तो कल्पना और चिन्तन की जरुरत होती होगी?

 

शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग

उन्होंने निश्चय किया है कि हल्का लिखकर हलके हो लेंगे..

समीर: इतने हल्के न हो लेना कि उड़ने लगें, उड़न तश्तरी की तरह..अब कुछ भारी लिखें.

रवि: अब पता चला लिखकर भी ... ओह.. हे भगवान...

 

स्वपन मेरे

स्वप्न स्वप्न स्वप्न, सपनों के बिना भी कोई जीवन है ..

समीर: नींद में बड़बड़ा रहे हैं क्या? सोते में तो वाकई इसके बिना कुछ भी नहीं..बड़ी नीरस सी नींद हो जायेगी.

रवि: आज क्या देखा सपने में? वही लिखे हैं क्या?

 

 

मुसाफिर हूँ यारों

घुमक्कडी जिन्दाबाद.

समीर: और ब्लॉगरी?? मुर्दाबाद?

रवि: साथ में लिख्खड़ी भी जिन्दाबाद!!

 

आशाएँ

उठना है और भी ऊपर, ऊँचाइयां पुकारती हैं.

समीर: उतना मत ऊँचा उठ जाइएगा जहां से फिर नीचे आना मुश्किल हो जाए.

रवि:  और नीचे टांग खींचने वाले पुकारते हैं.

भारतीय नागरिक -

 

दिक्कत मुझे तब होती है, जब बराबरी का पैमाना सब के लिए अलग- अलग होता है.

समीर: नापने की क्या व्यवस्था धरे हैं?

रवि: सचमुच बहुत दिक्कत में होगे आप तो?

 

 

अमीर धरती गरीब लोग

लंबे अरसे तक प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में काम करने के बाद महसूस हुआ कि नौकरों की कलम आजाद नहीं रहती ..

समीर: बहुत समय लगा दिया समझने में..लोग तो बिना प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में काम किये यह सब जानते हैं.

रवि: और मालिकों की?

 

मानसिक हलचल

 मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग|

समीर: नोटराईज़ और करा लें इस दस्तावेज को ताकि बाद में लफड़ा न मचे कि थे कि नहीं.

रवि: बैकअप रखते जाईयेगा...आखिर प्रमाण है. कहीं डिलीट या करप्ट हो गया तब?

 

कुछ मेरी कलम से

अभी तो आई है मेरे दर पर ख़ुशी कही यह तेरी तेज़ रफ़्तार से डर ना जाए!

समीर: रफ्तार तो कम करना मुश्किल है-उसे ही जरा अपने पास छिपा लें.

रवि: तेज रफ्तार की आदत डलवाएं-आज दुनिया बड़ी तेज भाग रही है.

 

कुछ एहसास

जब कलम उठाई,एहसासों को कागज़ पर उकेरा तब जाकर तसल्ली हुई...

समीर: चोर को भी तसल्ली हुई होगी कि मैडम ने डंडा रखकर कलम उठा ली.

रवि: और, अपराधी के पीठ पर डंडे की मार उकेरा तब कानून व्यवस्था की तसल्ली हुई?

 

दिल की बात

पेशे से डरमेटोलोजिस्ट हूँ. ओर ग़ैरपेशेवर थोड़ा सा इंसान.कब तक रहूँगा कह नहीं सकता ?

 समीर: एक्सपायरी डेट पढ़ लीजिए न भई, पता लगा जायेगा कब तक इंसान रहेंगे. दवाई तो है नहीं कि एक्सपायरी के बाद भी बिक जाये.

रवि: जब तक भी रहें, वर्ल्ड रिकार्ड ही कहलायेगा, क्योंकि आजकल तो जन्मते ही इंसान इंसान नहीं रह जाता.

 

कुश की कलम 

जो कुछ भी दिल से लिखा गया...

समीर: कभी कलम भी इस्तेमाल करें लिखने को..शायद कुछ बन पड़े.

रवि: दिल की स्याही बचाना भई..बहुत महँगी है रीफिल!!

 

 

सच्चा शरणम् 

 अभी कुछ और डूबो मन!

 समीर: कितना डुबाओगे भई..सांस भर आई है.

रवि: एक बार में बताएं-कितना डूबना है..कुछ और कुछ और नहीं चलेगा!!

 

ज़िंदगी के मेले 

ये ज़िंदगी के मेले दुनिया में कम होंगे, अफ़सोस हम होंगे

समीर: यही अफसोस तो हमें भी खाये जा रहा है.

रवि: सभी को ये ही टेंशन है. आपने नाहक कह दिया.

 

 

नारी

जिसने घुटन से अपनी आजादी खुद अर्जित की

समीर: क्या वाकई?

रवि: वैसे ही जैसे खुद चाय बना के पी, खुद खरीद के गोलगप्पे खाए?

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15 टिप्‍पणियां:

  1. एक नये अंदाज की चर्चा ,आनंददायक रही .

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  2. टैग लाइना चर्चा मोहक है । पराया देश, कुछ इधर की कुछ इधर की,कवि योगेन्द्र मौदगिल, मानसिक हलचल, दिल की बात और मेरे ब्लॉग सच्चा शरणम की टैग लाइनें खूब पसन्द आयीं ।

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  3. बेनामीजून 14, 2009 9:15 am

    एक तरफ मंद-मंद समीर
    दूसरी तरफ रवि की रौशनी

    और क्या चाहिए ज़िंदगी के मेले में :-)

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  4. बेनामीजून 14, 2009 9:43 am

    गोल गप्पे रवि और समीर को भी भाते हैं !!!
    तभी तो सूरज और हवा मे
    दोनों मिल कर खाते हैं
    कहां होगी घुटन जब हो संग
    रवि और समीर { सूर्य [रौशनी ] और वायु [हवा] }

    नारी - जिसने घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित की

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  5. बहुत मजेदार.. जारी रहे ये प्रयोग..

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. बेनामीजून 14, 2009 1:05 pm

    रवि: दिल की स्याही बचाना भई..बहुत महँगी है रीफिल!!

    ...शानदार कथ्य

    ... और ऐसी रिफिल सबको मिलती भी नहीं..

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  8. बहुत सुंदर अनवरत की टैग लाइन के साथ जो सावधानियाँ बताई गई हैं। उन का ध्यान रखना चाहिए। पर कभी कभी चूक हो जाना मानवीय स्वभाव नहीं है?

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  9. वाह गुरुदेवों क्या प्यार से बखिया उधेड़ी है..आनंद ही अंध है ..भाई टैग लाइन रखते वक्त कहाँ सोचा था इतना की आज तो इतिहास बन गया जी अपना भी...बहुत बढ़िया..

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  10. वाह, इस सहज हास्यात्मक सर्जना से मजा आ गया.

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  11. टैगलाइन चर्चा 2
    निट्ठल्ला : दुई ब्लागिया नम्बरी खींचें टैग की टँगड़ी
    फ़ुरसतिया : खुस भये हम, ई लेयो आपन ख़र्चा, आजु गबड़ी मचा दिहिस ई नई तरह की चर्चा

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  12. बहुत मेहनत और समय लगा कर की गई चर्चा है
    रवि जी समीर जी आपको सलाम,

    वीनस केसरी

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  13. रवि भाई के पंच मस्त हैं. मजा आया पढ़कर. :)

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  14. अहा...
    मजेदार टैग-लाइनर रवि जी

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